द सन्डे पोस्ट के निम्न लिंक से साभार-
http://www.thesundaypost.in/misaal.php मिसाल
विरासत सहेजने की मुहिम
राज्य गठन के दस साल बाद अब जब पहाड़ की जनता सरकार और नेताओं से पूरी तरह निराश हो चुकी है, यहां के युवाओं का प्रयास उम्मीद जगाता है। इसकी एक बानगी बागेश्वर में सरयू-गोमती तट पर लगने वाले उत्तरायणी मेले में दिखी। देश-विदेश में रहने वाले प्रदेश के युवा 'क्रिएटिव उत्तराखण्ड म्यर पहाड़' का गठन कर पहाड़ की विरासत को बचाने के साथ राज्य के जमीनी सवालों को उठा रहे ह
बागेश्वर के उत्तरायणी मेले से उठने वाले चेतना के स्वर अभी धीमे नहीं पड़े हैं। सरयू-गोमती के संगम में लगने वाले इस मेले का जितना सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है उतना ही समाज को नई दिशा देने के लिए यहां के संकल्प। आजादी के दौर में सरयू- बगड़ में कुली बेगार के खिलाफ उठी चेतना ने आंदोलनों का जो फलक तैयार किया वह अब नयी पीढ़ी के लिये प्रेरणा का काम कर रहा है। बगड़ में राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के लगने वाले मंच अब एक-दूसरे को गलियाने के लिये इस्तेमाल होते हैं। सरकार इस मेले पर लाखों रुपये खर्च करती है। मेला समिति अभी तक कोई ऐसा दस्तावेज तैयार नहीं कर पायी है जिससे बागेश्वर के अतीत को समझा जा सके। ऐसे समय में प्रवास में रह रहे युवाओं की संस्था 'क्रिएटिव उत्तराखण्ड म्यर पहाड़' ने जिस तरह यहां के अतीत और आंदोलनों को याद किया वह उम्मीद जगाता है कि आने वाले दिनों में विरासत को अक्षुण्ण रखने की मुहिम जारी रहेगी।
उल्लेखनीय है कि बागेश्वर में मकर संक्रान्ति पर उत्तरायणी का पौराणिक मेला लगता है। यह धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यापार मेले के रूप में प्रसिद्ध है। आजादी के दौर में अंग्रेजों के दमन का हथियार बना कुली बेगार कुमाऊं के लोगों के लिये किसी अभिशाप से कम नहीं था। इसके प्रतिकार में १४ जनवरी १९२१ को सरयू-गोमती के संगम पर कुमाऊं केसरी बद्रीदत्त पांडे के नेतृत्व में कुली बेगार प्रथा के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत हुयी। इस ऐतिहासिक द्घटना ने जहां उस समय आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में कार्य किया वहीं बाद में पहाड़ के आंदोलनों के लिये संकल्पों की जमीन भी बनी। कई आंदोलनों की शुरुआत और नारे उत्तरायणी में सरयू-गोमती के बगड़ से निकले। समय के साथ अब यह मेला भी बाजारवाद की चपेट में है। सरकारी मेले में तब्दील होने के साथ इसका सांस्कृतिक, धार्मिक स्वरूप तो समाप्त हो ही रहा है, अब ऐतिहासिक महत्व भी किसी को याद नहीं आ रहा। सरकार ने नगरपालिका को इस मेले को संपन्न कराने की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके लिये जो समिति बनी है उसमें जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, बुद्धिजीवी, पत्रकार और प्रशासन से जुड़े अधिकारी शामिल हैं। प्रतिवर्ष समिति में बढ़ती सदस्यों की संख्या और बजट ने इसे जनता से और दूर कर दिया है। इस बार भी वही हुआ जैसा पिछले कुछ वर्षों से मेला समिति का रवैया रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री के स्वागत की औपचारिकतायें, भारी पुलिस बल, मेले से राजनीतिक लाभ उठाने की जुगत के बीच यह मेला अपनी पहचान खो रहा है। इस बार मेले में पुलिस ने एक मामूली झगड़े में हिरासत में लिये एक युवक को इतना पीटा कि उसकी मौत हो गयी।
बागेश्वर की थाती को बचाने के लिये राजधानी दिल्ली में काम कर रही युवाओं की संस्था ने महत्वपूर्ण काम किया। सरयू-गोमती बगड़ में संस्था ने अपने सहयोगी संगठनों 'म्यर पहाड़' और 'सार्थक प्रयास' के संयुक्त तत्वावधान में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। इस प्रदर्शनी में बागेश्वर के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आंदोलनों से संबंधित दस्तावेज रखे गये थे। संगठन ने अपने पोस्टरों की श्रृंखला में कुली बेगार से जुड़े पांच स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के पोस्टर भी जारी किये। इन पोस्टरों में कुमाऊं केसरी बदरीदत्त पांडे, मोहन सिंह मेहता, तुलसी रावत, बिशनी देवी साह और हरगोबिन्द पंत थे। इस मौके पर टिहरी के जननायक श्रीदेव सुमन, उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के प्रणेता ऋषिवल्लभ सुन्दरियाल, सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक और उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के संस्थापक डॉ ड़ीडी पंत, प्रखर समाजवादी एवं उत्तराखण्ड राज्य के नारे से पहली बार विधायक बने जसवंत सिंह बिष्ट और समाजवादी एवं उत्तराखण्ड राज्य परिकल्पना के थिंक टैंक माने जाने वाले विपिन त्रिपाठी के पोस्टर भी प्रदर्शनी में लगाये गये। प्रदर्शनी के मंच पर बागेश्वर से संबंधित एक स्मारिका, प्रवास में रह रहे युवाओं द्वारा लिखे और स्वयं गाये गये गीतों की एक सीडी का लोकार्पण किया गया। देश और देश से बाहर 'क्रिएटिव उत्तराखण्ड' पिछले छह वर्षों से लगातार अपनी विरासत को अक्षुण्ण रखने में जुटा है। इससे पहले संगठन ने टिहरी में जननायक श्रीदेव सुमन, पौड़ी के चौबटाखाल में ऋषिवल्लभ सुन्दरियाल और द्वाराहाट में विपिन त्रिपाठी की पुण्यतिथि पर इस तरह के आयोजन किये हैं। दिल्ली से लेकर अमेरिका तक संस्था लगातार अपनी जड़ों को ढूंढ़ने का प्रयास कर रही है। क्रिएटिव उत्तराखण्ड डाट कॉम, मेरा पहाड़ डाट कॉम और हिसालू डॉट कॉम के माध्यम से भी ये युवा पहाड़ को नई दृष्टि से देखने का प्रयास कर रहे हैं।
क्रिएटिव उत्तराखण्ड के संस्थापक और संयोजक दयाल पांडे ने बताया कि 'संस्था पिछले छह वर्षों से लगातार पहाड़ के इतिहास और संस्कृतिबांध पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रही है। यहां के सांस्कृतिक, सामाजिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक योगदान को जो सम्मान मिलना चाहिये था वह नहीं मिला है। हमारी सरकारें भी ऐसा नहीं होने देती हैं। जब हमने इस दिशा में काम करना शुरू किया तो व्यापक समर्थन हमको मिला। इस समय प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से देश और विदेश के एक हजार युवा हमारे इस मिशन से जुड़े हैं। असल में हम एक बेहतर और संपन्न उत्तराखण्ड का सपना देख रहे हैं, इसलिये हमें लगा कि पहले हमें अपनी समृद्ध विरासत के संरक्षण के लिये काम करना चाहिये। अमेरिका से आये संस्था के संस्थापक डॉ ़ शैेलेश उप्रेती ने बताया कि हमने पहले छोटी सांस्कृतिक गतिविधियों से इसकी शुरुआत की थी। हमने थीम पर आधारित कार्यक्रम दिये। लोगों ने इसे सराहा। नैनीताल में २००५ में पहाड़ के बुद्धिजीवियों और आंदोलनकारियों ने हमारी साइट का विमोचन किया। बागेश्वर पर केन्द्रित स्मारिका, दो सीडी और तीन किताबें अभी तक संस्था प्रकाशित कर चुकी है। अमेरिका में कई संगठनों के साथ मिलकर हमने पहाड़ को जानने-समझने का प्रयास किया है।'
प्रवास में रह रहे पहाड़ के इन युवाओं ने पहाड़ के सवालों को भी प्रमुखता से उठाया है। गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिये एक अभियान चलाया है। प्रतिवर्ष ३० अगस्त को दिल्ली से गैरसैंण की यात्रा की जाती है। इस अभियान में नेट के माध्यम से अब तक चार हजार से अधिक लोग जुड़ चुके हैं। बांधों के खिलाफ एक बड़ा अभियान युवाओं ने चलाया है। 'हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ अभियान' के तहत कई ऐसे कार्यक्रम संस्था कर रही है जो पहाड़ के नियोजन के साथ जुड़े हैं। अब इन युवाओं ने नई हिमालयी नीति की वकालत करते हुये पूरे देश के हिमालयी राज्यों के लिये ब्लू प्रिंट बनाने का काम किया है।
पिछले साल नौ नवंबर को हिमालय दिवस पर गांधी पीस फाउंडेशन में एक प्रदर्शनी भी लगाई गई। इस मौके पर हुये सेमिनार में संस्था ने मध्य हिमालय की हालत पर अपना पक्ष रखा। इसमें सुन्दरलाल बहुगुणा, डॉ क़र्ण सिंह, सांसद प्रदीप टम्टा, काशी सिंह ऐरी, विधायक पुष्पेश त्रिपाठी, विधायक एवं पूर्व मंत्री किशोर उपाध्याय, राधा बहन, असम के सांसद सहित विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने शिरकत की। पिछले वर्ष उत्तराखण्ड में आयी प्राकृतिक आपदा के समय क्रिएटिव उत्तराखण्ड ने कई संगठनों के साथ मिलकर आपदा राहत का काम किया। इसमें प्रभावितों को तात्कालिक मदद के अलावा इस पर नीति बनाने के लिये व्यापक सर्वेक्षण तथा पहाड़ में और किस्म की आपदाओं पर भी विचार करने के लिये काम करना शुरू किया।
इन कार्यक्रमों के संयोजक हेम पन्त ने निराशा व्यक्त करते हुये कहा कि 'हमारे जननेताओं और नीति-नियंताओं में कुछ बेहतर करने की इच्छाशक्ति मर गयी है। हमारा अनुभव कहता है कि पहाड़ में विकास का जो मॉडल लाया गया है उसे परिवर्तित कर देने भर से ही सारी समस्याओं का हल निकल सकता है। सरकारें जितना पैसा खर्च करती हैं उस पर कई संपन्न उत्तराखण्ड बनाये जा सकते हैं। दुर्भाग्य से सत्ता में आने वाले लोगों के पास ऐसी समझ नहीं है।' उन्होंने हैरानी व्यक्त करते हुये कहा कि 'बागेश्वर में जो कार्यक्रम हमने दिये थे उसका वहां के मीडिया के लिये कोई महत्व नहीं था। आखिर जनता कैसे कोई रास्ता निकाले इस पर नए सिरे से सोचना होगा।'