02 OCT 2007
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प्यारे साथियों,
2 अक्टूबर 2007 को दिल्ली के दक्षिणपुरी इलाके में कुछ संगठनों द्वारा आयोजित "शहीद श्रद्धांजली सभा" में "म्यर पहाड - क्रिएटिव उत्तराखण्ड" के सदस्यों ने भी सक्रिय भागीदारी निभायी. इस कार्यक्रम का आयोजन मुज्ञफ्फरनगर काण्ड की 15वीं बरसी पर शहीद आन्दोलनकारियों को श्रद्धांजली देने के लिये किया गया था. सभी उपस्थित लोगों ने शहीदों को श्रद्धांजली अर्पित की तथा 2 मिनट का मौन रखा गया.
इस अवसर पर क्रिएटिव उत्तराखण्ड के सदस्यों ने 2 प्रसिद्ध जनगीत गाये जो उत्तराखण्ड आन्दोलन के समय आन्दोलनकारियों द्वारा व्यापकता से प्रयोग किये जाते थे.
लस्का कमर बांध हिम्मत का साथ - हीरा सिंह राना
जैंता एक दिन त आलो ऊ दिन यो दुनी में – गिरदा
2 अक्टूबर 1994 को अलग उत्तराखण्ड राज्य की मांग के समर्थन में दिल्ली में आयोजित होने वाली विशाल रैली के लिए पूरे उत्तराखण्ड से लोग बसों मे भर कर दिल्ली पहुंच रहे थे, इनमें से कुछ बसें जो गढवाल से आ रही थीं उन्हें मुज्ञफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर पी.ए.सी. व यू.पी. पुलिस द्वारा रोक कर लोगों को गोलियों से भून दिया गया. इतने पर ही यह सब नही रुका, भीड मे शामिल महिलाओं से अभद्रता की गयी और लोगों का सामान लूट लिया गया. इस काण्ड ने पूरे उत्तराखण्ड को हिला कर रख दिया. अलग उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन इस घटना के बाद चरम पर पहुँच गया. सी.बी.आई. की रिपोर्ट के अनुसार इस घटना में 6 लोग मौके पर मारे गये और राजेश नेगी का कोई पता नही चल पाया.17 लोग घायल हुए, 4 महिलाओं के साथ दुष्कर्म हुआ. वास्तविक गणना निस्संदेह अधिक ही रही होगी.
इस जघन्य काण्ड को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की शह पर डी.आइ.जी बुआ सिंह और मुज्ञफ्फरनगर के जिलाधिकारी अनन्त कुमार सिंह ने अन्जाम दिया. मुज्ञफ्फरनगर काण्ड के दोषियों के खिलाफ संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा कानूनी लडाई लडी गयी. 1996 में एक एतिहासिक फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आन्दोलनकारियों को मुआवजा देने का आदेश दिया. लेकिन 13 मई 1999 को सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को जल्दीबाजी में लिया गया निर्णय मानकर खारिज्ञ कर दिया. दुर्भाग्य से 2003 में अनन्त कुमार को साक्ष्यों के अभाव में अदालत ने बरी कर दिया.
इससे भी बडा दुर्भाग्य तो यह है कि अपने राजनीतिक आकाओं की पूंछ पकड कर उत्तराखण्ड के अपराधी बुआ सिंह और अनन्त कुमार लगातार प्रोन्नतियां पाते गये. बुआ सिंह तो उत़्तर प्रदेश के आई.जी. के पद से रिटायर हुए. हमारे प्रदेश के नेताओं की संवेदनहीनता और बेशर्मी देखिये यही बुआ सिंह जब पिछले दिनों उत्तराखण्ड गये तो सरकार द्वारा उन्हें "स्टेट गेस्ट" की तरह सम्मान दिया गया. इससे ज्यादा अपमान क्या हो सकता है उन शहीदों का जिन्होने अलग उत्तराखण्ड के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर किया था?
यहां पर प्रश्न यह भी उठता है कि क्या उत्तराखण्ड राज्य उसी दिशा में बढ रहा है जिसका सपना आन्दोलनकारियों ने देखा था? और क्या उन शहीदों और उत्तराखण्ड के प्रति हमारी जिम्मेदारी सिर्फ श्रद्धांजली सभाओं में भाषण दे कर और कुछ गीत गाकर ही खतम हो जाती है?
नहीं! इतना काम तो नेता लोग कर ही रहे हैं. आपको और हमें आगे बढकर कुछ और जिम्मेदारियां लेनी पडेंगी.
और अन्त में गिर्दा की कुछ पंक्तियां जो इस मुद्दे पर बिलकुल प्रासंगिक हैं-
गोलियां कोई निशाना बांधकर दागी थी क्या?
खुद निशाने पर आ पडी खोपडी तो क्या करें?
खामख्वां ही तिल का ताड बना देते हैं लोग,
वो पुलिस है, उससे हत्या हो पडी तो क्या करें?
आप जैसी दूरद्रष्टि, आप जैसे हौंसले,
देश की ही आत्मा गर सो गयी तो क्या करें?
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