इस वर्ष से ९ सितम्बर को हिमालय दिवस में मनाये जाने का संकल्प लिया गया है, जो कि बहुत सराहनीय है। मेरा पहाड़ इस संकल्प को अपना पूरा समर्थन देता है।
उत्तराखण्ड में हिमालय दो भागो में बंटा है-
१- महान हिमालय- यह भू-भाग हमेशा बर्फ से आच्छादित रहता है, इसमें सबसे ऊंची चोटी नन्दा देवी है, जिसकी ऊंचाई ७८१७ मीटर है। इसके अलावा कामेत, गंगोत्री, चौखम्बा, बन्दरपूँछ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, त्रिशूल बद्रीनाथ शिखर है जो ६००० मीटर से ऊँचे है। फूलों की घाटी तथा कई बुग्याल भी इसमें शामिल हैं। इस भू-भाग में केदारनाथ, गंगोत्री आदि प्रमुख ग्लेशियर है जो कि गंगोत्री हिमनद, यमनोत्री हिमनद, गंगा-यमुना आदि नदियों के उद्गम स्थल है।
२- मध्य हिमालय- महान हिमालय के दक्षिण में मध्य-हिमालय-भू-भाग फैला हुआ है जो कि ७५ कि.मी. चौड़ी है। इस भू-भाग में कुमाऊँ के अन्तर्गत अल्मोड़ा, गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल तथा नैनीताल का उत्तरी भाग भी सम्मिलित है जो कि ३००० से ५००० मी. तक के भू-भाग में फैले हुए है।
इन हिमालयी क्षेत्रों के मूल निवासी शौका, भोटिया और मार्छा लोग हैं, जो मुख्य रुप से पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी के सीमान्त में चीन सीमा से लगे क्षेत्र में निवास करते हैं। लेकिन कुछ समय से यह देखने में आया है कि इस क्षेत्र में स्थाई रुप से रहने वाले लोग आजीविका की तलाश और इन क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधायें न होने के कारण में मैदानी या पर्वतीय क्षेत्र के छोटे शहरों में वास करना ज्यादा पसन्द करने लगे हैं। जिस कारण सीमान्त के गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं, जो हिमालय बचाने के लिये ही नहीं वरन सामरिक महत्व से भी चिन्तनीय है। क्योंकि इनर लाइन के ऊपर रहने वाले लोग अवैतनिक प्रहरी की भी भूमिका निभाते रहे हैं। इसलिये जरुरी है कि हिमालय के पास रहने वाले लोगों को वहां के संसाधनों पर आधारित रोजगार लगाकर दिये जांय, वहां पर शिक्षा, स्वास्थ्य और संचार की अच्छी व्यवस्था हो, अवस्थापना सुविधा बढ़ाई जाय। अवैज्ञानिक और अवांछित गतिविधियों (शौकिया पर्वतारोहण आदि, जिससे हिमालय में कचरा फैल रहा है) पर पूर्ण रोक लगाई जाय। वहां के लोगों को मुख्य धारा में लाकर उन्हें वहीं पर आत्मनिर्भरता के साथ बसाया जाय, ताकि हिमालय भी बच सके।