Author Topic: Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad  (Read 11549 times)

पंकज सिंह महर

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Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad
« on: September 09, 2010, 11:45:45 AM »
हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ अभियान
 
साथियो,
उत्तराखण्ड के क्रांतिवीर स्व० ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल जी ने 1962 के बाद उक्त नारा दिया था, उन्होंने सबसे पहले दुनिया को चेताया था कि अंधे विकास की दौड़ में जिस प्रकार से उच्च हिमालयी क्षेत्र के मूल निवासियों के हक-हकूकों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है तथा जिस कारण उस क्षेत्र के लोग पलायन कर रहे हैं। वह भविष्य के लिये खतरनाक साबित होगा, क्योंकि इस क्षेत्र के मूल निवासी ही इस क्षेत्र की हर संरचना से वाकिफ होते हैं और यदि हिमालय को बचाना है तो पहले उस क्षेत्र के मूल निवासियों को वहां पर बसाना होगा। आज हिमालय संरक्षण पर बडे-बड़े सेमिनार आयोजित होते हैं, जिसमें ग्लोबल वार्मिंग जैसे जटिल और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर बहस होती हैं, लेकिन कुछ सार्थक होता नजर नहीं आता। इसके पीछे मुख्य कारण और कारक यही है कि हिमालय को भीतर से जानने वालों की उपेक्षा। यदि हिमालय को बचाना है तो पहले उसे बसाना जरुरी है।
 
स्व० सुन्दरियाल जी के इस दूरगामी और सारगर्भित विचार के प्रेरित होकर क्रियेटिव उत्तराखण्ड-म्यर पहाड़ द्वारा "हिमालय बचाओ-हिमालय बसाओ" अभियान शुरु किया है, जिसके पहले चरण में जगह-जगह सेमिनार आयोजित कर लोगों को इस विषय के मूल तत्व से परिचित कराने की पहल की जा रही है।
 
मेरा सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया इस विषय पर अपनी बहुमूल्य राय दें, क्योंकि हमारा उत्तराखण्ड मध्य हिमालय का क्षेत्र है, जो सबसे नया है और अभी विकसित हो ही रहा है। इसे बचाने और बसाने की बहुत जरुरत है और इसके लिये यदि अभी से प्रयास शुरु हों तो भविष्य में एक समृद्ध हिमालय बच और बन सकेगा।

हेम पन्त

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Re: Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad
« Reply #1 on: September 09, 2010, 12:06:04 PM »
ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल जी का "हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ" नारा वर्तमान समय में ज्यादा प्रासंगिक हो गया है. सीमान्त क्षेत्र में चीन की बढती गतिविधियां, बेतहाशा बनाये जा रहे बांध और बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों में हिमालय के निचले क्षेत्रों में लोगों की बस्तियां बसाया जाना और पलायन का शिकार हो रहे लोगों को स्थाई रूप से उनके मूलस्थान पर रोकना बहुत जरूरी हो गया है.

हमारी टीम ("क्रिएटिव उत्तराखण्ड - म्यर पहाड़" और "मेरा पहाड़ नेटवर्क"), "श्री ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल विचार मंच", "जनपक्ष आजकल पत्रिका", "म्यर उत्तराखण्ड" तथा अन्य संगठनों के साथ मिलकर "हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ" अभियान के प्रति लोगों को के  बीच जनजागरण चला रही हैं. इस श्रंखला में दिल्ली, चौबट्टाखाल (पौड़ी), टिहरी तथा द्वाराहाट में कई गोष्टियां आयोजित की गई हैं.

पंकज सिंह महर

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Re: Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad
« Reply #2 on: September 09, 2010, 12:17:08 PM »
इस वर्ष से ९ सितम्बर को हिमालय दिवस में मनाये जाने का संकल्प लिया गया है, जो कि बहुत सराहनीय है। मेरा पहाड़ इस संकल्प को अपना पूरा समर्थन देता है।

उत्तराखण्ड में हिमालय दो भागो में बंटा है-
१- महान हिमालय- यह भू-भाग हमेशा बर्फ से आच्छादित रहता है, इसमें सबसे ऊंची चोटी नन्दा देवी है, जिसकी ऊंचाई ७८१७ मीटर है। इसके अलावा कामेत, गंगोत्री, चौखम्बा, बन्दरपूँछ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, त्रिशूल बद्रीनाथ शिखर है जो ६००० मीटर से ऊँचे है। फूलों की घाटी तथा कई बुग्याल भी इसमें शामिल हैं। इस भू-भाग में केदारनाथ, गंगोत्री आदि प्रमुख ग्लेशियर है जो कि गंगोत्री हिमनद, यमनोत्री हिमनद, गंगा-यमुना आदि नदियों के उद्गम स्थल है।

२- मध्य हिमालय- महान हिमालय के दक्षिण में मध्य-हिमालय-भू-भाग फैला हुआ है जो कि ७५ कि.मी. चौड़ी है। इस भू-भाग में कुमाऊँ के अन्तर्गत अल्मोड़ा, गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल तथा नैनीताल का उत्तरी भाग भी सम्मिलित है जो कि ३००० से ५००० मी. तक के भू-भाग में फैले हुए है।
 
इन हिमालयी क्षेत्रों के मूल निवासी शौका, भोटिया और मार्छा लोग हैं, जो मुख्य रुप से पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी के सीमान्त में चीन सीमा से लगे क्षेत्र में निवास करते हैं। लेकिन कुछ समय से यह देखने में आया है कि इस क्षेत्र में स्थाई रुप से रहने वाले लोग आजीविका की तलाश और इन क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधायें न होने के कारण में मैदानी या पर्वतीय क्षेत्र के छोटे शहरों में वास करना ज्यादा पसन्द करने लगे हैं। जिस कारण सीमान्त के गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं, जो हिमालय बचाने के लिये ही नहीं वरन सामरिक महत्व से भी चिन्तनीय है। क्योंकि इनर लाइन के ऊपर रहने वाले लोग अवैतनिक प्रहरी की भी भूमिका निभाते रहे हैं। इसलिये जरुरी है कि हिमालय के पास रहने वाले लोगों को वहां के संसाधनों पर आधारित रोजगार लगाकर दिये जांय, वहां पर शिक्षा, स्वास्थ्य और संचार की अच्छी व्यवस्था हो, अवस्थापना सुविधा बढ़ाई जाय। अवैज्ञानिक और अवांछित गतिविधियों (शौकिया पर्वतारोहण आदि, जिससे हिमालय में कचरा फैल रहा है) पर पूर्ण रोक लगाई जाय। वहां के लोगों को मुख्य धारा में लाकर उन्हें वहीं पर आत्मनिर्भरता के साथ बसाया जाय, ताकि हिमालय भी बच सके।

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Re: Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad
« Reply #3 on: September 09, 2010, 12:44:12 PM »
अश्युत्ताराश्याँ दिशी देवात्मा: हिमालया: नाम नगाधिराज:
पुर्वापरी तोयनिधि वग्याहंग, स्थित: पृथव्या: ईव मापदंड:
कालिदास ने भी हिमालय को देवताओ ka आत्मा कहा है जो चारो ओर से समुद्र से घिरी पृथ्वी का मापदंड है हिमालय केवल उत्तराखंड का नहीं है या हिमालय केवल भारत वर्ष का नहीं है या हिमालय केवल एशिया का नहीं है बल्कि हिमालय पुरे विश्व का है और पूरा विश्व हिमालय से प्रभावित होता है विश्व का तापमान, बारिस, समुद्र स्तर हिमालय पर निर्भर करता है इस भूमंडलीय दौर में हिमालय के ऊपर बहुत सारे खतरे आ गए हैं इन खतरों का नवारण बहुत जरुरी है नहीं तो विश्व या ब्रह्माण्ड का अस्तित्व गड़बड़ा जायेगा, पिछले ३ सालो से म्योर पहाड़ ने एक मुहीम छिड़ी है हिमालय को बचाने और बसने की, जगह जगह सेमिनार व गोष्टियाँ करके जनमानस को जगाने का प्रयास हो रहा है आप सभी भी इस मुहीम में भागीदार बने और विश्व को बचाने में भागीदार बनें.
दयाल पाण्डेय   

हेम पन्त

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Re: Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad
« Reply #4 on: September 09, 2010, 01:09:26 PM »
हिमालय को बचाने और बसाने के क्रम में कुछ महत्वपूर्ण कारक निम्न प्रकार से हो सकते हैं-

1. स्थानीय लोगों को जीवनयापन की बेहतर सुविधाएं जैसे - जल, शिक्षा और रोजगार उनके मूल निवास के आसपास उपलब्ध होने चाहिये. जिससे लोग अपने गांवों में रुकेंगे और पलायन पर लगाम लगाना सम्भव हो पायेगा.

2. तेजी से बिगड़ते जा रहे पर्यावरण की सुरक्षा के लिये आम जनमानस को नीतिनिर्धारण का प्रमुख कारक बनाया जाना चाहिये. पहाड़ के लोग परम्परागत तरीकों से वन और जल का संरक्षण कर रहे थे ये तरीके वहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप थे. इसलिये जनता को जल-जंगल-जमीन के प्रयोग और संरक्षण का प्रथम अधिकार होना चाहिये.

3. पहाड़ों के साहसी लोग विदेशी ताकतों के बढते कदमों को रोकने में सहायक हो सकते हैं. सीमान्त इलाकों में खाली पड़े हुए गांव एक गम्भीर चुनौती हैं. निर्जन क्षेत्रों का लाभ उठाकर चीन और अन्य दुश्मन राष्ट्र भारत के लिये चिन्ताजनक स्थिति पैदा कर सकते हैं.

4. पहाड़ी क्षेत्रों में बनाये जा रहे बांधों की नीतियों में स्थानीय जनता का पक्ष लिया जाना चाहिये. छोटे बांधों के निर्माण को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिये.

हेम पन्त

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Re: Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad
« Reply #5 on: September 09, 2010, 01:14:39 PM »
2 जुलाई 2010  को "हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ" आन्दोलन के पर्वर्तक स्व. श्री ऋषि बल्लभ सुन्दरियाल जी के गांब चौबट्टाखाल, जिला पौड़ी में आयोजित कार्यक्रम

हेम पन्त

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Re: Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad
« Reply #6 on: September 09, 2010, 01:19:20 PM »
"हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ" अभियान के तहत उत्तराखण्ड की दिवंगत विभूतियों के पोस्टर भी प्रकाशित कराये जा रहे हैं. इसी श्रंखला में प्रकाशित ऋषिबल्लभ सुन्दरियाल जी का पोस्टर


पंकज सिंह महर

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Re: Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad
« Reply #7 on: September 09, 2010, 01:36:44 PM »
हिमालय दिवस: पर्वत को बचाने की एक मुहिम-दिनेश पाठक

बर्फ के घर यानी हिमालय को बचाने की पहल उत्तराखंड की धरती से शुरू हो रही है। सभी को लगने लगा है कि इस पर्वत श्रृंखला की रक्षा अब बेहद जरूरी है। अब भी न जागे तो देर हो जाएगी। हिमालय के खतरे में पड़ने का मतलब पर्यावरण के साथ ही कई संस्कृतियों का खतरे में पड़ना है।
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर बने अन्तरराष्ट्रीय पैनल की तीन साल पहले आई रिपोर्ट में जब इस बात का खुलासा किया गया था कि हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक पिघल कर समाप्त हो जाएँगे, तब ग्लोबल वार्मिग से जोड़कर पूरी दुनिया के विज्ञानी चिंता में डूब गए थे। बाद में यह मामला हल्का पड़ा, लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि ग्लेशियर पिघलने की गति तेज हुई है। उत्तराखंड सरकार ने कई वर्ष पहले जलनीति के ड्राफ्ट में स्वीकार किया है कि राज्य में स्थित 238 ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं। इन्हीं से गंगा, यमुना और काली जैसी नदियाँ निकलती हैं।
इस सूरत में हिमालय दिवस के बहाने इस मुहिम को परवान चढ़ाने वालों की सोच है कि हिमालय की रक्षा तभी होगी जब उसकी गोद में रचे-बसे करोड़ों लोग वहीं रहेंगे। बीते कुछ वर्षो से पलायन की जो गति है, उसने इस चिंता को और बढ़ाया है। अगर पलायन की गति यूं ही बनी रही तो कंकड़-पत्थर का पहाड़ रहकर भी क्या करेगा। यह मानने में किसी को एतराज नहीं होना चाहिए कि सुदूर पहाड़ों में कोई बड़ा कारखाना नहीं लग सकता। इस सूरत में हमें पहाड़ के बाशिंदों को रोकना आसान नहीं होगा। वे तभी रुकेंगे जब उनके लिए आजीविका के ठोस इंतजाम किए जाएँगे। अभी पहाड़ों पर जो भी सामान बिक रहा है, सब नीचे से जा रहा है। ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि पहाड़ में पैदा होने वाले अन्न और वन उपजों से वहीं रोजगार के अवसर पैदा किए जाएँ।
बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे प्रमुख मंदिरों में स्थानीय उत्पादों से बने प्रसाद क्यों नहीं चढ़ाए जाएँ। हेस्को के कर्ताधर्ता अनिल जोशी की मदद से वैष्णो देवी मंदिर में मक्के का लड्डू चढ़ने की शुरुआत हुई तो मंदिर की गोद में बसे गाँव परथल की आर्थिक स्थिति सुधर गई। मुहिम से जुड़े लोगों का प्रबल मत है कि छोटी-छोटी तकनीक के सहारे स्थानीय लोगों को पहाड़ में ही रोजगार से जोड़ा जा सकता है। हिमालय से निकलने वाली नदियों का कर्ज मैदान के लोग भी नहीं उतार सकते, क्योंकि जल में जाने वाले हिमालयी तत्व मैदानी किसानों के खेतों को उपजाऊ बनाते हैं। नदियों के कारण ही इनके किनारों पर बसने वाले गाँवों-शहरों की अपनी संस्कृति है। देश के बड़े हिस्से को पीने का पानी हमारी यही नदियाँ दे रही हैं। वर्षा चक्र के निर्माण में भी हिमालय के योगदान को नकारना नादानी होगी।

ग्लेशियरों के पिघलने की गति देखकर ही पर्यावरणविद कहने लगे हैं कि वह दिन दूर नहीं जब हमें पानी की तरह बहाने के बजाय पानी की तरह बचाने का मुहावरा अपनाना होगा। यह मानने में किसी को एतराज नहीं कि अब जल, जंगल, जमीन और खनिज को बचाए बिना कुछ हो नहीं सकता। इसके लिए एक नए आंदोलन की जरूरत है। विकास की अंधी दौड़ में बीते कई दशकों में हिमालयी पर्यावरण, लोक-जीवन, वन्य जीवन और मानवीय बन्दोबस्तों को भारी नुकसान पहुँचाया है। दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। झरने सूख गए। नदियों में पानी कम हो गया। अकेले उत्तराखंड में तीन सौ से ऊपर बिजली परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं। हालाँकि, गंगा पर बनने वाली तीन बड़ी परियोजनाएँ लोहारीनाग पाला, मनेरी-भाली और भैरोंघाटी का निर्माण सरकार रद्द कर चुकी है, लेकिन अभी भी बड़ी-बड़ी सुरंगें अन्य परियोजनाओं के लिए बन रही हैं। नेपाल और भारत में पानी की अधिकतर आपूर्ति हिमालय से ही होती है। पेयजल और कृषि के अलावा पनबिजली के उत्पादन में भी हिमालय की भूमिका को कोई नकार नहीं सकता। बेशकीमती वनौषधियाँ यहाँ हैं। यह भारत की विदेशी हमलों से रक्षा भी करता आ रहा है, लेकिन अब इस हिमालय को ही रक्षा की जरूरत है।

कुमाऊं शरदोत्सव समिति की ओर से प्रकाशित शरद नन्दा में प्रो. शेखर पाठक लिखते हैं- हिमालय फिर भी बचा और बना रहेगा। हम सबको कुछ न कुछ देता रहेगा। मनुष्य दरअसल अपने को बचाने के बहाने हिमालय की बात कर रहा है, क्योंकि हिमालय पर चहुँओर चढ़ाई हो रही है। उसके संसाधन जिस गति से लूटे जा रहे हैं, उस गति से पुर्नसस्थापित नहीं किए जा सकते। दरअसल हिमालय एक ऐसा पिता है, जो अपनी बिगड़ैल संतान को डाँट नहीं सकता और एक ऐसी माँ जो उन पर शक नहीं कर पाती।

लेखक हिंदुस्तान, देहरादून के स्थानीय संपादक हैं
 
साभार-http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/57-62-136441.html

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad
« Reply #8 on: September 09, 2010, 03:06:05 PM »

अगर धरती को बचाए रखना है तो हिमलाय को बचाना अति जरुरी है! हिमालय न केवल हमारे लिए पानी का क्ष्रोत है बल्कि देश के पहरी भी है!

शुद्ध हवा, शुद्ध पानी और प्रकर्ति की सुन्दरता में चार चाँद लगाने वाले हिमालय ही है!

हम शपथ लेना चाहिए हिमालय को बचना का हर प्रयास करना चाहिए !

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Re: Save Himalaya, Inhabited himalaya Compaign By MeraPahad
« Reply #9 on: September 10, 2010, 09:33:28 AM »
कल ९ सितम्बर को दिल्ली के गाँधी पीस foundation के सभागार में मेरा पहाड़ (म्योर पहाड़) की अगवाई में बिभिन्न संगठनों ने मिलकर हिमालय दिवस मनाया, और हिमालय के बचाने तथा बसाने पर चिंतन किया इसमें देश विदेश के जाने माने हस्तियों ने भाग लिया इसमें पर्यवारंविद श्री सुंदर लाल बहुगुणा, डॉ कर्ण सिंह, आदरनीय राधा बहिन, सांसद प्रदीप टम्टा, सिक्किम के सांसद श्री रॉय, श्री अनिल जोशी, श्री चारू तिवारी जी, युवा बिधायक पुष्पेश त्रिपाठी, U K D सुप्रीमो श्री कशी सिंह ऐरी सहित कई बुद्धिजीवी मौजूद थे गोष्टी में जनकवि गिर्दा को भी उनके जन्मदिन पर याद किया गया जिसमें श्री चन्द्र सिंह रही जी ने उनकी रचना " सुनो सुनो उत्तराखंडी आज हिमाला तुमुकैं धत्युछा"  सुनाया, इस मौके पर क्रेअटिव उत्तराखंड म्योर पहाड़ ने चिपको आन्दोलन से समन्धित पेड़ बचाओ पर एक प्रदर्शनी भी लगाई. जल्दी ही फोटो भी रिलीज़ कर रहा हू.

 

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