Mera Pahad > MeraPahad/Apna Uttarakhand: An introduction - मेरा पहाड़/अपना उत्तराखण्ड : एक परिचय

Uttarakhand Govt Appeal - Help for Victim of Natural Calamities- अपील

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Devbhoomi,Uttarakhand:
बिलकुल सही बात है लिखी गयी है फेस बुक में जब सरकार कोई काम ही नहीं तो उसे क्यों आप लोग मदद के पैसे देंगें क्यों आप मुख्यमंत्री राहत कोष को देंगें ,अगर हम लोगों ये महान कार्य करना ही है तो मेरा पहाड़ से कोई मेम्बर को ये कार्य सोंप दीजिये और जो धन राशि होगी वो उन आपदा ग्रस्त जन्वों तक तो पंहुच जाएगी,अगर हम सरकार के पास देगें तो वो दावात्र में ही उड़ायेंगे और उन आपदा ग्रस्त लोगों गांवों तक आज तक कुछ भी नहीं मिला और न ही मिलेगा
 सरकार ने भी कुछ मदद की होगी तोपूरा पूरा  का पैसा वहां तक नहीं पहुँचता है !

Jagmohan Azad:
निश्चित तौर पर हम सबका प्रयास इस समय राजनिति से इत्र अपने विखरे हुए पहाड़ो के विकास के लिए होना चाहिए। ताकि हम उनके लिए कम के कम कुछ अच्छा कर पाएं...जो इस आपदा का शिकार हुए है। आज हमारे समुख यह सबसे बड़ी चुनौती है कि हम....अपने विखरे पहाड़ों को कितनी जल्द खड़ा कर सकते है।
जगमोहन 'आज़ाद'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Some Teachers from Loghghat have come forward for help. They will give their one Day Salary as a donation for the landslide victims.


एक दिन की पगार देंगे गुरुजन

लोहाघाट: राजकीय शिक्षकों ने दैवीय आपदा मद में स्वेच्छा से एक दिन का वेतन देने का निर्णय लिया है। संगठन के जिलाध्यक्ष प्रकाश बोहरा की अध्यक्षता व मंत्री जगदीश अधिकारी के संचालन में हुई बैठक में वक्ताओं ने राज्य में अतिवृष्टि से हुई तबाही व जान-माल के नुकसान पर गहरा दु:ख व्यक्त करते हुए कहा कि दु:ख की इस घड़ी में सभी लोगों को आपदा पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आना चाहिए। बैठक में निर्णय लिया गया कि जिले के सभी राजकीय शिक्षक मुख्यमंत्री आपदा कोष में अपने एक दिन का वेतन देंगे। जिलाध्यक्ष ने बताया कि प्रान्तीय अध्यक्ष भीम सिंह ने राज्य के सभी शिक्षकों से एक दिन का वेतन आपदा कोष में दान करने का आह््वान किया है। प्राकृतिक आपदा को देखते हुए पिथौरागढ़ में 28 व 29 सितम्बर को प्रस्तावित मंडलीय अधिवेशन भी स्थगित कर दिया गया है। बैठक में शिक्षक संघ की जिला इकाई के कई पदाधिकारी उपस्थित थे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6749093.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

See this photo of Nainital District.



उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों का अधिकांश हिस्सा भूस्खलन से खतरे के क्षेत्र में आता है। नाचनी की घटना   हमारे मन में अब भी ताजी है, जहाँ 44 लोग एक ही झटके में जिन्दा दफन हो   गये। खैर प्राकृतिक आपदा के सामने ज्यादा कुछ तो किया नहीं जा सकता। अपने   रिश्तेदारों, दोस्तों, जमीन, घर सब कुछ खो देने वाला व्यक्ति जबरदस्त आघात   का सामना करता है, जिसे सरकार विस्थापन और आर्थिक मदद के मलहम से कम करने   का दावा करती है। लेकिन वास्तव में ये दावे कितने सच होते हैं, ये जानने कि   कोशिश की हमने गढवाल में 1998 और 2001 में आए भूस्खलन प्रभावित कुछ गाँवों   का दौरा कर।  रुद्रप्रयाग जनपद के केदारनाथ रूट में स्थित है एक कस्बा फाटा। यहाँ सन्   2001 में आये भूस्खलन ने इस कस्बे का नक्शा ही बदल के रख दिया। किसी समय   यहाँ की बाजार आज की बाजार से करीब 200 मीटर ऊपर स्थित थी, जो अब एक सुनसान   इलाका बन कर रह गया है। यहाँ का दृश्य देखते ही आठ साल पहले यहाँ क्या हुआ   होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। जमीन में धँसे हुए खण्डहर, टेड़े-मेड़े   पेड़ मानो हमें कुछ कहानी सुनाना चाह रहे हों। जो खण्डहर हमारे सामने था,   पता चलता है कि कभी राजकीय इण्टर कॉलेज के प्रधानाचार्य का आवास हुआ करता   था। उस दिन यहीं वे अपने परिवार, बच्चों सहित दफन हो गये, लाश का कोई   अता-पता नहीं।
इस खण्डहर के बगल में ही हमें एक ऐसे परिवार से मिलने का मौका मिला, जो   करीब आधा घण्टे मलवे के नीचे दबे रहने के बावजूद भी जिन्दा बचा लिए गये। 70   वर्षीय आदित्य राम जमलोकी अपनी जुबानी उस रात की घटना बताते हैं- इतवार का   दिन था। करीब 9 बजे कान फाड़ने वाली बिजली गिरने की आवाज आयी। इसके बाद   पत्थरों की गड़गड़ाहट की आवाज आने लगी। करीब 11 बजे तक बगल में बह रहे गधेरे   का प्रवाह इतना तेज हो गया कि पानी और कीचड़ में मकान बहने लगे। तेज आवाज के   बीच ऊपर से चट्टानें खिसक कर आने लगीं। इतने में ये अपने परिवार के साथ   कीचड़ और पानी के तेज प्रवाह के बीच खिसकती जमीन में भागने लगे। एक नजर पीछे   देखा तो मकान ध्वस्त होकर कई खेत नीचे जा चुका था। कुछ दूर भागने के बाद   ये भी मलवे की चपेट में आ गये। अपनी पत्नी नर्मदा और बड़े बेटे विनोद के साथ   ये कीचड़ और चट्टान के नीचे दब गये और अपना होश खो बैठे। इसके करीब आधे   घंटे बाद गाँव वालों ने इनको जिन्दा मलबे के नीचे से निकाल लिया। इस प्रलय   में 32 लोगों ने अपनी जानें गँवा दीं।
मगर इनको सरकार की तरफ से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। दरअसल जब   मजिस्ट्रेट साहब इस गाँव के दौरे पर आये तो एक राजनैतिक पार्टी ने प्रशासन   की लेटलतीफी के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। मजिस्ट्रेट साहब खफा हो गये और   सारी मदद लेकर वापस लौट गये। इस घटना को आठ साल हो गये हैं इसके बाद तो   गाँव वालों ने कई विरोध प्रदर्शन और अनशन किये, लेकिन कोई नतीजा नहीं   निकला। जमलोकी जी के बेटे विनोद, जो कि रीढ़ की हड्डी टूट जाने के कारण चलने   योग्य नहीं रहा, ने तो राष्ट्रपति को पत्र लिख कर ‘इच्छा मृत्यु’ दिये   जाने तक की गुजारिश की।
अब न जाने यहाँ कितने परिवार होंगे, जिनकी खेती योग्य भूमि, मकान सहित   सब कुछ जमीन निगल गयी, जिसका मूल्य सरकार ने मात्र पच्चीस हजार रुपया रखा   और वह भी इनको नहीं मिल पाया। इतने रुपयों का तो आजकल एक शौचालय भी नहीं   बनता। यह राशि तो मदद के नाम पर मजाक भर है। ऊपर से इनको कहीं और बसाये   जाने की योजना न होने के कारण ये आज भी उसी पहाड़ की तलहटी में रहने को   मजबूर हैं।
ऐसी ही स्थिति अन्य गाँवों की भी है। उखीमठ के समीप राउँलेख, जहाँ 1998   के भूस्खलन ने 44 जाने ले ली थीं, में अभी भी लोग पहाड़ के मलवे के ऊपर ही   घर बनाने को मजबूर हैं। अब पच्चीस हजार में वे कहीं सुरक्षित जगह में जमीन,   खेत लेकर नई जिन्दगी शुरू भी नहीं कर सकते।
अब अगर हम आपदा प्रबन्धन की बात करें, तो भूस्खलन के प्रबन्धन के नाम पर   रिटेनिंग वॉल बनायी जा रही थी। जहाँ रिटेनिंग वॉल बन रही है, वहीं उसी   पहाड़ से पत्थर निकाल कर उसे बनाया जा रहा है, जिससे पहाड़ खोखला होकर   भूस्खलन की संभावना को और अधिक बढ़ा देता है। अब ऐसी रिटेनिंग वॉल से क्या   फायदा ?
कुल मिलाकर देखा जाए तो आपदा के दंश से ज्यादा प्रशासन का मुँह चिढ़ाना   ज्यादा खतरनाक होता है। ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति आपदा से कभी उबर नहीं   पाता और उसकी जिन्दगी खुद को हमेशा आपदा से घिरी हुई ही पाती है।
http://www.nainitalsamachar.in/no-government-help-even-after-eight-years-of-disaster/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:




                                      
                                                  Source :www.travelpod.com                         

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