भ्रष्टाचारियों का भ्रष्टाचार देखो पदक मिला, राशि नहींगोपेश्वर (चमोली)। एक ओर सूबे के मुख्यमंत्री और मंत्रीगण सरकारी कार्यप्रणाली में सुधार के दावे कर रहे हैं, दूसरी ओर महकमों की सुस्त कार्यप्रणाली इन दावों की हवा निकाल रही है। अन्य योजनाओं की बात तो छोड़िए शासन-प्रशासन की लचर व्यवस्था के चलते राष्ट्रपति से अनुमोदित जीवन रक्षा पुरस्कार की धनराशि भी चयनित व्यक्ति तक समय पर नहीं पहुंच पा रही है। आलम यह है कि गोपेश्वर निवासी एक व्यक्ति को 11 नवंबर,2008 में राष्ट्रपति से जीवन रक्षा पुरस्कार अनुमोदित हुआ, लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक उसे महज तीस हजार रुपये की पुरस्कार राशि प्रदान नहीं की है। आलम यह है कि लंबे समय से भारत सरकार के गृह सचिव का स्वीकृति पत्र लेकर सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने के बावजूद उसकी कोई सुनवाई नहीं कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि गोपेश्वर गांव निवासी सुनील चौहान ने चार फरवरी 2006 को अपने गांव में एक बच्चे सचिन को आदमखोर बाघ के मुंह से छुड़ा लिया था। इसके लिए उसने जान जोखिम में डालकर बाघ के साथ करीब बीस मिनट तक संघर्ष किया। काफी मशक्कत के बाद उसने बच्चे को बाघ के जबड़े से छुड़ा लिया, लेकिन इससे पूर्व वह और बालक बुरी तरह जख्मी हो गए थे। दोनों का उपचार काफी दिनों तक जिला चिकित्सालय में चला और तब जाकर वे स्वस्थ हुए। सुनील के अदम्य साहस को आधार मानते हुए 11 नवंबर,2008 को राष्ट्रपति ने उसे जीवन रक्षा पुरस्कार से सम्मानित करने का अनुमोदन किया। भारत सरकार के तत्कालीन गृह सचिव मधुकर गुप्ता ने बाकायदा एक पत्र भेजकर सुनील को इस संबंध में अवगत कराया। पत्र में कहा गया था कि पुरस्कार का पदक, प्रमाण पत्र और पुरस्कार राशि राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जाएगी। राज्य सरकार की ओर से दो अक्टूबर वर्ष 2009 में जिला मुख्यालय में आयोजित समारोह में पदक और राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त प्रमाण पत्र तो सुनील को प्रदान किया, लेकिन उसे पुरस्कार राशि नहीं दी गई। तत्कालीन जिलाधिकारी ने कहा कि पुरस्कार राशि का ड्राफ्ट किन्हीं कारणों से आउटडेटेड हो चुका है, लिहाजा उसे पुनर्जीवित करने के लिए शासन को प्रेषित किया गया है, लेकिन अब तीन माह बाद भी सुनील को यह राशि नहीं दी गई है। सुनील का कहना है कि वह कई बार कलक्ट्रेट के चक्कर काट चुका है, लेकिन कोई अधिकारी उसकी सुनने को तैयार नहीं है।
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