devendra ji ki post ka hindi rupantaran
मैं देंवेन्द्रं सिंहं ग्राम सभा जोगथ, जनपद उत्तरंकाशी से सम्बन्ध रंखता हूँं । मैंने उतरांखण्ड़ं रांज्य आन्दोलन से संबधित अपना विवरंण दिया हैं । मैं एक सच्चा उत्तरांखण्ड़ं रांज्य आन्दोलनकारंी हूँं तथा उत्तरांखण्ड़ं रांज्य निर्माण में हंम लोगों ने पुलिस की लाठिंयाँ खाई औरं एक दिन जेल में भी रंहें । हंमें रांज्य सरंकारं की औरं से पहंचान पत्र भी मिला लेकिन एक दिन जेल में बिताने परं भीं हंमें किसी भी प्रकारं की कोई सुविधा नहंी मिल रंहंी है,ं यहं कहांं का न्याय हैं ?
पृथक उत्तरांखण्ड़ं रांज्य की मांग को लेकरं आजादी से पहंले से हंी उत्तरं प्रदेंश के गढंवाल कुमाऊ के पहांड़ंी इलाके के लोग एकजुटं हांेकरं प्रयास करंने लगे थे । लेकिन 1994 में उत्तरांखण्ड़ं क्रान्ति दल व छांत्र संगठंनों द्वांरां शुरूं किया गया पृथक उत्तरांखण्ड़ं रांज्य के लिये आन्दोलन इस दिशा में एक महंत्वपूर्ण आन्दोलन था । उत्तरांखण्ड़ं के लोगों के द्वांरां अहिंंसात्मक व लोकतंत्रात्मक ढंग से चलाया गया यहं आन्दोलन कई मायनों में ऐतिहांसिक बन गया । यहं एक ऐसा स्वत: स्फूर्त आन्दोलन था जिसमें छांत्र,युवाओं, बुजुर्गो, सरंकारंी कर्मचारिंयों,बच्चों, सामाजिक, सांस्कृतिक, रांजनीतिक संगठंनों औरं सबसे आगे रंहंकरं महिंलाओं ने भाग लिया । बिना किसी तात्कालिक परिंणाम औरं निर्णय के यहं आन्दोलन समाप्त तो हांे गया था, लेकिन सरंकारं के दमनकारंी कारंनामों औरं क्षेत्रीय उपेक्षा का अन्तरार्ंष्ट्रंीय औरं रांष्ट्रंीय स्तरं परं उजागरं करंने, छांेटें रांज्यों के निर्माण के लिये सकारांत्मक सोच विकसित करंने में यहं सफल रंहां । अन्तत: कुछं सालों बाद उत्तरांखण्ड़ं रांज्य प्राप्ति का मार्गप्रशस्त भी इसी आन्दोलन से हुंआ ।
दिनांक 15.12.1994 को ठंीक समय 11:20 बजे हंमें जेल में बन्द करं दिया गया औरं हंमारें ऊपरं ं धारां 151,107,116, लगा दी गई हंमारां भी तो वहंी उद्वेंश्य था जो कि 3 दिन या 3 दिन से ऊपरं जेल मे रंहें आन्दोलनकारिंयों का था । यहं कहांँ का न्याय हैं कि आज हंम लोग दरं दरं की ठांेकरें खा रंहें हैं । मैं देंवेन्द्रं सिंहं अपने समस्त उत्तरांखण्ड़ं आन्दोलनकारंी साथियों से पूछंता हूँं कि जब हंम सब एकजुटं आन्दोलन में थे तो हंमारें साथ ऐसा सौतेला व्यवहांरं क्यो किया जा रंहां हैं ? क्या हंमने अपने उत्तरांखण्ड़ं के लिये कुछं नहंी किया ? हांथों में मशाल औरं आंखों में अंगारं लेकरं निकल पड़ें । पैरं जमीन परं टिंके थे लेकिन नजर आकाशं (लक्ष्य) परं लगी थी । भेदभाव भुला करं सड़ंकों में जमा हांे गये थे लेकिन आज हंमारें साथ इस प्रकारं का भेदभाव क्यों, आखिरं क्यों ?
उपरांेक्त विवरंण के आधारं परं, मैं अपने उत्तरांखण्ड़ंी भाईयों से पूछंता हूँं कि मेरंी औरं मेरें जैसे अन्य आन्दोलनकारिंयों की उत्तरांखण्ड़ं निर्माण के बाद मिलने वाली आधारंभूत परिंतोषिक से भी क्यों वंचित किया जा रंहां हैं ? कब तक हंम अपने परिंवारांें के साथ अन्य रांज्यों में दीन हंीन सा जीवन व्यतीत करंते रंहेंगे ? कब हंमें अपने गृहं रांज्य में हंी इसकी सेवा औरं उन्नति का कार्यभारं सौंपा जायेगा ? क्या पुन:अपने अधिकारांें को प्राप्त करंने के लिए हंमें एक आन्दोलन की आवश्यकता हैं ? अत: में, मैं अपने सहंयोगी आन्दोलनकारिंयों समेत, रांज्य सरंकारं औरं आपने जैसे भाई बन्धुओं से यहंी प्रार्थना करंता हूँं कि हंमें अपने गृहं रांज्य में हंी रांेजगारं के अवसरं उपलब्ध करांके अपनी मातृभूमि के उत्थान कार्य में सहंयोगी बनने का हंक प्रदान किया जाए ।