Uttarakhand Updates > Anti Corruption Board Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी की मुहिम

Justice for State Activist- ये कैसा कानून, दर-२ ठोकर खा रहे है राज्य आन्दोलनकारी

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


 
देवेन्द्र जी... धन्यवाद ... मेरापहाड़ के पोर्टल के माध्यम से आपने सरकार के सामने यह अपनी बात रखी है!

मुझे व्यक्तिगत रूप से बहुत दुःख हो रहा है आपके यह भाविक एव सरकार की आँखे खोलने वाली मेल पड़ कर!  दोस्तों येसा केवल देवेन्द्र जी के साथ नहीं हुवा है बल्कि हमारे उत्तराखंड के बहुत से लोग है जिन्होंने राज्य निर्माण में अपनी अहम् भूमि निभायी थी पर राज्य बनने के बाद उनकी हालात क्या आप खुद देख सकते है!

सरकार इस और ध्यान देना चाहिए और इन आन्दोलन कारियों को उचित मुवाजा एव सम्मान देना चाहिए!


--- Quote from: पंकज सिंह महर on April 07, 2010, 03:48:47 PM ---devendra ji ki post ka hindi rupantaran

मैं देंवेन्द्रं सिंहं ग्राम सभा जोगथ, जनपद उत्तरंकाशी से सम्बन्ध रंखता हूँं ।  मैंने उतरांखण्ड़ं रांज्य आन्दोलन से संबधित अपना विवरंण दिया हैं । मैं एक सच्चा उत्तरांखण्ड़ं रांज्य आन्दोलनकारंी हूँं तथा उत्तरांखण्ड़ं रांज्य निर्माण में हंम लोगों ने पुलिस की लाठिंयाँ खाई औरं एक दिन जेल में भी रंहें ।  हंमें रांज्य सरंकारं की औरं से पहंचान पत्र भी मिला लेकिन एक दिन जेल में बिताने परं भीं हंमें किसी भी प्रकारं की कोई सुविधा नहंी मिल रंहंी है,ं यहं कहांं का न्याय हैं ?

पृथक उत्तरांखण्ड़ं रांज्य की मांग को लेकरं आजादी से पहंले से हंी उत्तरं प्रदेंश के गढंवाल कुमाऊ के पहांड़ंी इलाके के लोग एकजुटं हांेकरं प्रयास करंने लगे थे । लेकिन 1994 में उत्तरांखण्ड़ं क्रान्ति दल व छांत्र संगठंनों द्वांरां शुरूं किया गया पृथक उत्तरांखण्ड़ं रांज्य के लिये आन्दोलन इस दिशा में एक महंत्वपूर्ण आन्दोलन था । उत्तरांखण्ड़ं के लोगों के द्वांरां अहिंंसात्मक व लोकतंत्रात्मक ढंग से चलाया गया यहं आन्दोलन कई मायनों में ऐतिहांसिक बन गया । यहं एक ऐसा स्वत: स्फूर्त आन्दोलन था जिसमें छांत्र,युवाओं, बुजुर्गो, सरंकारंी कर्मचारिंयों,बच्चों, सामाजिक, सांस्कृतिक, रांजनीतिक संगठंनों औरं सबसे आगे रंहंकरं महिंलाओं ने भाग लिया । बिना किसी तात्कालिक परिंणाम औरं निर्णय के यहं आन्दोलन समाप्त तो हांे गया था, लेकिन सरंकारं के दमनकारंी कारंनामों औरं क्षेत्रीय उपेक्षा का अन्तरार्ंष्ट्रंीय औरं रांष्ट्रंीय स्तरं परं उजागरं करंने, छांेटें रांज्यों के निर्माण के लिये सकारांत्मक सोच विकसित करंने में यहं सफल रंहां । अन्तत: कुछं सालों बाद उत्तरांखण्ड़ं रांज्य प्राप्ति का मार्गप्रशस्त भी इसी आन्दोलन से हुंआ ।

दिनांक 15.12.1994  को ठंीक समय 11:20 बजे हंमें जेल में बन्द करं दिया गया औरं हंमारें ऊपरं ं धारां 151,107,116, लगा दी गई हंमारां भी तो वहंी उद्वेंश्य था जो कि 3 दिन या 3 दिन से ऊपरं जेल मे रंहें आन्दोलनकारिंयों का था । यहं कहांँ का न्याय हैं कि  आज हंम लोग दरं दरं की ठांेकरें खा रंहें हैं । मैं देंवेन्द्रं सिंहं अपने  समस्त उत्तरांखण्ड़ं आन्दोलनकारंी साथियों से पूछंता हूँं कि  जब हंम सब एकजुटं आन्दोलन में थे तो हंमारें साथ ऐसा सौतेला व्यवहांरं क्यो किया जा रंहां हैं ?  क्या हंमने अपने उत्तरांखण्ड़ं के लिये कुछं नहंी किया ? हांथों में मशाल औरं आंखों में अंगारं लेकरं निकल पड़ें । पैरं जमीन परं टिंके थे लेकिन नजर आकाशं (लक्ष्य) परं लगी थी ।  भेदभाव भुला करं सड़ंकों में जमा हांे गये थे लेकिन आज हंमारें साथ इस प्रकारं का भेदभाव क्यों, आखिरं क्यों ?

उपरांेक्त विवरंण के आधारं परं, मैं अपने उत्तरांखण्ड़ंी भाईयों से पूछंता हूँं कि मेरंी औरं मेरें जैसे अन्य आन्दोलनकारिंयों की उत्तरांखण्ड़ं निर्माण के बाद मिलने वाली आधारंभूत परिंतोषिक से भी क्यों वंचित किया जा रंहां हैं ? कब तक हंम अपने परिंवारांें के साथ अन्य रांज्यों में दीन हंीन सा जीवन व्यतीत करंते रंहेंगे ? कब हंमें अपने गृहं रांज्य में हंी इसकी सेवा औरं उन्नति का कार्यभारं सौंपा जायेगा ? क्या पुन:अपने अधिकारांें को प्राप्त करंने के लिए हंमें एक आन्दोलन की आवश्यकता हैं ? अत: में, मैं अपने सहंयोगी आन्दोलनकारिंयों समेत, रांज्य सरंकारं औरं आपने जैसे भाई बन्धुओं से यहंी प्रार्थना करंता हूँं कि हंमें अपने गृहं रांज्य में हंी रांेजगारं के अवसरं उपलब्ध करांके अपनी मातृभूमि के उत्थान कार्य में सहंयोगी बनने का हंक प्रदान किया जाए ।

--- End quote ---

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Now this news.
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गोपेश्वर (चमोली)। राज्य आंदोलनकारी चिह्नीकरण का मामला पहले ही विवादास्पद बना था और अब राज्य आंदोलनकारियों ने भी सरकार से निर्गत परिचय पत्र को झुनझुना बताना शुरू कर दिया है।

बताते चले कि पृथक राज्य निर्माण के बाद आंदोलनकारियों को चिन्हित कर उन्हें सम्मान दिए जाने के लिए पिछले नौ वर्षो से समय-समय पर अलग-अलग प्रकार की नीति अपनाई गई। इसके तहत समय-समय पर बदलती सरकार व इसी के अनुरूप बदलते शासनादेशों से न सिर्फ राज्य आंदोलनकारियों के साथ छलावा हुआ है, बल्कि आंदोलनकारी चिह्नीकरण में भी खुले तौर पर समय-समय पर राजनीति की बू आती रही है। 22 अक्टूबर 2008 को जारी हुए शासनादेश के अनुसार राज्य आदोलनकारियों को चिन्हित कर पहचान पत्र निर्गत किए जाने के लिए अभिलेखों के आधार पर पाच प्रमाण साक्ष्य माने गए, जिनमें एलआईयू की रिपोर्ट, पुलिस की डेली डायरी के प्रासंगिक अंश या पुलिस के अन्य अभिलेख, प्रथम सूचना रिपोर्ट, चिकित्सालय संबंधी रिपोर्ट एवं अन्य अभिलेखों पर आधारित सूचनाएं जिनकी प्रमाणिकता जिलाधिकारी द्वारा पुष्टि की जाए। इन पांच साक्ष्यों के आधार पर चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों को 9 नवंबर 2009 को राज्य स्थापना दिवस के मौके पर जिला मुख्यालय सहित तहसील मुख्यालयों में वितरित किया गया। बावजूद इसके आज भी कई चिन्हित आंदोलनकारियों को परिचय पत्र नहीं मिल पाए हैं।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6382342.html

naveensaklani:
निकम्मी सरकार....कुछ नहीं करने वाली इन नेताओ का बस चले तो पूरा उत्तराखंड बेच खाए ये...
जिन को सम्मान मिलना चाहिए उन को ठोकरे मिल रही है..
और जिन को यहाँ से बहार खदेड़ना चाहिए उन को जमीन आवंटित कर रही है...

धनेश कोठारी:
भई आन्दोलनकारियों की स्थिति तो कुछ ऐसी ही है (जैसा वे नारा भी लगाते थे) कि-
कोदा झंगोरा खायेंगे-------
क्योंकि देरादूण में राजधानी बसाकर बासमति तो ये लोग उजाड़ चुके हैं। थोड़ा भौत तो सरकार के प्वटगे के लिए भी चाहिए कि ना???

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


उत्तराखंड राज्य अब घोटालो का राज्य बन रहा है! बिजली में घोटाला, आन्दोलनकरियो के चिन्दिकरण में घोटाला, हर जगह घोटाले ही सामने आ रहे है!

क्या इसी उद्देश्य के यह राज्य का निर्माण हुआ था ?   

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