" बांटने वाले हो अंधे जहाँ , किसको कितना मिला पूछता कौन है'
नोट गिनता है पर लाशें गिनता नहीं, पूछते हैं सरफिरा कौन है"
ये बल्ली जी वो पंक्तियाँ हैं जो सबकुछ बयां कर रही हैं, देवेंदर जी जैसे अनगिनत आन्दोलन कारी हैं जिनको कुछ नहीं मिलन वाला सरकार का जो पैरामीटर है वो उसके अपने लोगों के हित को ध्यान मैं रख कर बनाया है माफिया और चोरे आन्दोलन कारी हो गए उन्हें इसका फायदा हो गया है जबकि ये सब जानते हैं की राज्य आन्दोलन एक अहिंसात्मक आन्दोलन था जिसमें लोगों से आपने करियर यां तक की पुरे ३ पुश्तों का करियर ख़राब कर लिया है इस पहल पर अगर हम किसी नतीजे तक पहुच सकें तो बहुत ख़ुशी होगी,