Yet another Scam in Uttarakhand. ----------------------
उत्तराखंड के नागरिक उड्डयन विभाग में भी करोड़ों का घोटाला उत्तराखण्ड सरकार के पास एक हेलीकाप्टर एवं एक वायुयान उपलब्ध है। इस वायुयान एवं हेलीकाप्टर की उड़ाने जौलीग्रान्ट एयरपोर्ट, देहरादून से सम्पादित हो रही हैं। वर्तमान में राज्य सरकार के पास दो हेलीकाप्टर पायलट एवं तीन वायुयान पायलट उपलब्ध हैं। इन वायुयान एवं हेलीकाप्टर के अनुरक्षण आदि कार्यो के संपादन हेतु एक वरिष्ठ अभियंता एवं एक मुख्य अभियंता उपलब्ध हैं।
पायलटों का मुख्य कार्य वायुयान व हेलीकाप्टर को उड़ाने तथा इंजीनियर का कार्य वायुयान व हेलीकाप्टर पर ग्राउन्ड में तकनीकी अनुरक्षण एवं मेन्टीनेंस कार्यो को सम्पादित करने का है। पायलटों एवं अभियंताओं के कार्य एवं लाइनें अलग-अलग हैं तथा इनकी योग्यता एवं अर्हता भी अलग-अलग के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा जारी लाइसेंस भी अलग-अलग हैं।
विशिष्ट एवं अति विशिष्ट महानुभावों की उड़ानें नागर विमानन विभाग, भारत सरकार के संलग्न सर्कुलर में योग्यता एवं अर्हता निर्धारित हैं और उसी के अनुसार पायलट उड़ान हेतु सक्षम है। पायलट की अर्हता एवं योग्यता निर्धारित होने के बावजूद निदेशालय के मुख्य अभियंता द्वारा नियम विरुद्ध को-पायलट के रूप में उड़ानें की जा रही हैं। विभाग की हिटलरशाही ने राज्य के महानुभावों के साथ जानबूझ कर उनकी लाइफ के साथ खिलवाड़ एवं राजकीय सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसी प्रक्रिया अपनायी जा रही है।
उदाहरण के रूप में दिनांक 19 जून 2007 को राज्य का हेलीकाप्टर पाबौ जनपद पौड़ी गढ़वाल में बिजली के तार से टकराने के पश्चात दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस उड़ान को को-पायलेट के रूप में मुख्य अभियंता से हेलीकाप्टर उड़वाया जा रहा था। को-पायलेट के रूप में मुख्य अभियंता द्वारा हैलीकाप्टर उड़ाने के दौरान बिजली के तार न दिखायी देना अपनी फ्लांइग डयूटी में सक्षम न होना प्रतीत होता है। यहां यह कहना भी गलत न होगा कि यदि मुख्य अभियंता के स्थान पर सक्षम को-पायलट हेलीकाप्टर की उड़ान पर होता तो संभवतः इस प्रकार की दुर्घटना को रोका जा सकता था। राज्य में इस प्रकार की दुर्घटना से राज्य सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ तथा लगभग 2 माह तक हेलीकाप्टर ग्राउण्ड होने की दशा में किराये पर लिये गये हेलीकाप्टर पर निजी संस्थाओं को करोड़ों का भुगतान करना पड़ा।
उपरोक्त घटना घटित होने के बावजूद भी उत्तराखण्ड सरकार के हेलीकाप्टर पर मुख्य अभियन्ता द्वारा दूसरे पायलट के अनुपस्थिति के दौरान उड़ान कार्यक्रम संपादित किये जा रहे हैं, जबकि मुख्य अभियंता का मूल कार्य राजकीय विमान एवं हेलीकाप्टर के अनुरक्षण एवं शिड्यूट कार्यो को सम्पादित करने का है। शासन के पत्र संख्या- 2002/कैम्प/पग/2008 दिनांक 31 अक्टूबर 2008 संख्या 106/पग/2008 दिनांक 12 मार्च, 2009 एवं कार्यालय ज्ञाप संख्या-105/पग/2008 दिनांक 12 मार्च, 2009 द्वारा मुख्य अभियंता को राजकीय विमान एवं हेलीकाप्टर के अनुरक्षण एवं शिड्यूल आदि कार्यो हेतु वर्तमान में अन्य सुविधाओं, मोबइल बिल, वाहन, सरकारी आवास निःशुल्क इत्यादि सहित रुपये 2.50 लाख यानी दो लाख पचास हजार रुपये प्रतिमाह पर संविदा में नियुक्त किया गया है।
यहां विशेष रूप से उल्लेख करना है कि मुख्य अभियन्ता की नियुक्ति वायुयान एवं हेलीकाप्टर दोनों के अनुरक्षण एवं शिड्यूल आदि कार्यो को सम्पादित करना अनिवार्य है। उत्तराखण्ड सरकार मुख्य अभियन्ता को इतनी बड़ी धनराशि मुहैया कराने के बावजूद वायुयान के मेन्टीनेंस का कार्य निजी संस्था श्रीमंत इन्डामर कम्पनी प्राइवेट लिमिटेड, मुम्बई द्वारा कराया जा रहा है, जिस पर प्रतिमाह 1,60,000 यानी एक लाख साठ हजार रूपये प्रतिमाह अलग से व्यय हो रहा है। इससे यह स्पष्ट है कि मुख्य अभियंता द्वारा मात्र एक हेलीकाप्टर के मैन्टीनेंस कार्य ही संपादित किये जा रहे हैं, जबकि इन्हें राजकीय वायुयान का अनुरक्षण भी करना था। इस प्रकार लगभग तीन वर्षो से मुख्य अभियंता दो कार्यो का पैसा ले रहे हैं और उसमें से एक ही कार्य कर रहे हैं। यहां एक बात और है कि वायुयान का रखरखाव जौलीग्रान्ट में ही निदेशालय के कर्मचारियों द्वारा अभियंताओं की देखरेख में किया जा रहा है। कभी भी इडमार कम्पनी का स्टाफ इस जहाज को मैन्टेन करने हेतु कभी भी देहरादून नहीं आता है। इस प्रकार से यह बड़ा खेल हो रहा है। इन तीन वर्षो में अब तक करोड़ों का घोटाला किया गया है और यह कार्य राज्य सरकार की नाक के नीचे किया जा रहा है, जिसका नुकसान राज्य सरकार को झेलना पड़ सकता है।
इस हेलीकाप्टर को पूर्ण रूप से मेन्टेन करने के लिए उत्तराखण्ड सरकार के पास एक लाइसेंसधारक एवं अनुभवी वरिष्ठ अभियंता कार्यरत हैं। इस प्रकार से उत्तराखण्ड सरकार ने यदि हवाई जहाज का मेन्टीनेंस का एक लाख साठ हजार रूपया प्रतिमाह में निजी संस्था से कराया जा सकता है तो सितैईया इंजीनियर को ढाई लाख व अन्य सुविधाओं को देने का क्या औचित्य है। जबकि विभाग में एक क्वालीफाइड इंजीनियर पूर्व से मौजूद है। इस प्रकार उत्तराखण्ड नागरिक उड्डयन विभाग में करोड़ों का घोटाला राज्य सरकार के नाक के नीचे बडे़ ही सफलता से किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त उत्तराखण्ड नागरिक उड्डयन विभाग में कई अनियमितताएं ऐसी है जिसकी निष्पक्ष जांच कराने पर कई हैरतअंगेज घोटाले सामने आएंगे।
लेखक चंद्रशेखर जोशी वेब जर्नलिस्ट एवं उत्तराखंड के निवासी हैं. http://bhadas4media.com/vividh/10969----------.html