Author Topic: Articles and Poems by Journalist Jagmohan Azad-जग मोहन आज़ाद जी के लेख  (Read 24439 times)

Jagmohan Azad

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उत्तराखंड में बीजेपी की दुरगति करने पर तुले भगत सिंह कोश्यारी और खंडूडी
उत्तराखंड के जनमानस के साथ हो रहे मज़ाक पर केंद्रीय नेतृत्व चुपचाप देख रहा है तमाशा
देवभूमि उत्तराखंड का जनमानस ख़ास तौर पर यहां का युवा आज उत्तराखंड के युवा नेतृत्व यानि डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक' की सरकार की कार्ययोजनों के साथ खुद के लिए नये-नये सपने देख रहा है। इसकी वजह भी हैं,और निश्चित तौर पर इन सपनों का साकार होना भी तय है। जिसके लिए प्रदेश सरकार अपने स्तर पर निरंतर प्रयासरत हैं,और उत्तराखंड के विकास और उत्तराखंड के युवाओं के लिए रोजगार के स्रोत पैदा करने के लिए निशंक सरकार ने जो प्रायस किए है। उसी के बदौलत आज उत्तराखंड में लगभग 22 हजार पदों पर यहां के नौजवानों को नौकरी के अवसर मिलने वाले है। पूरा विश्व मंच इस प्रयास के लिए सरकार की सराहना कर रहा है। लेकिन जब इन बैरोजगार युवाओं को अपने राज्य में नौकरी के अवसर प्राप्त होने जा रहे है। निश्चित तौर पर उत्तराखंड का युवा अपने स्तर पर इसके लिए हर संभव तैयारी मैं भी जुटा हैं,ताकि इनका भविष्य बन सकें और वर्षों पुरानी पलायन की समस्या का हल भी निकल सकें। जिसके लिए निशंक सरकार ने यह अहम कदम उठाया है। आज डॉ.निशंक के नेतृत्व में उत्तराखंड राज्य में विकास की जो लहर चल रही हैं,वह शायद की किसी से छुपी हो,तभी तो जानेमाने उद्यौगपति रतन टाटा पहली बार उत्तराखंड आकर यहां की विकास यात्रा में खुद को जोड़ने की बात करते है। उत्तराखंड में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी मुख्यमंत्री के एक बार बुलाने पर रतन टाटा जैसे उद्यौगपति यहां आए और आए ही नहीं बल्कि उत्तराखंड में विकास की नयी रहा बनाने के लिए प्रदेश सरकार को आश्वसत भी कर गए। यह डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक'का वहभागीरथी प्रयास था,जिसे उत्तराखंड का जनमानस हमेशा यदा रखेगा। क्योंकि इस उत्तराखंड के युवाओं और यहां के आम आदमी के लिए रोजगार के जो अवसर खुलने जा रहे हैं,जिससे उत्तराखंड की पृष्टभूमि पर विकास की एक नयी यात्रा शुरु होगी।
उद्यौगपति रतन टाटा उत्तराखंड आते हैं,वह यहां देश के भ्रष्टतंत्र पर आवाज उठाते हुए कुछ खुलासे भी कर जाते है। इसी बीच योगगुरु बाबा रामदेव को भी याद आता हैं कि यकीनन देश में भ्रष्टचार की जड़ मजबूत हो रही हैं,और बाबा भी कहते हैं,हां मुझ से भी उत्तराखंड के एक मंत्री ने दोकरोड़रुपए कीरिश्वतमांगीथी।बाबा ने यह भी साफ किया की वह समय क्या था और इसके तुरंत बाद ही एक नीजि न्यूज़ चैनल ने इस बात का खुलासा भी कर दिया की,वह मंत्री थे उत्तराखंड के खाद्य आपूर्ति एवं राजस्व विभाग के मंत्री दिवाकर भट्ट और उस समय मुख्यमंत्री थे भुवनचंद्र खंडूड़ी इसके बाद उत्तराखंड की राजनीति में हड़कंप मच गया। कांग्रेस को बैठे-बिठाए एक मुद्दा भी मिल गया। राज्य में आज भी हड़कंप मचा है। इस बारे में जब हमने बाबा रामदेव से संपर्क कर जानना चाहा की बाबा आप नाम का खुलासा क्यों नहीं कर रहे है,तो बाबा रामदेव ने कहा की हम रिश्वत मांगने वाले उत्तराखंड के उस पूर्व मंत्री के नाम का खुलासा जल्द ही करेंगे।
वह नाम जो भी हो,लेकिन उत्तराखंड में इस बीच राजनैतिक हलचल तेज हो गयी है। जो कल तक दुश्मन थे वह अब बंद कमरों में बैठकें कर रहे है। राज्य में अफवाबाज़ अफवावों का ताना-बाना बुन रहे हैं,और प्रदेश की जनता और युवा खुद के भाग्य पर हंस रहे है। बहराल यह तो बाबा रामदेव के बयान के मायने थे। लेकिन जिन का नाम खुले तौर पर इस प्रकरण में आ रहा हैं,उनमें पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी और दिवाकर भट्ट केंद्र में हैं। खंडू़ड़ी ने तो तुरंत एक पत्रकार वार्ता बुला कर इस प्रकरण से पला झाड़ाते हुए खुद को पाक-साफ बनाने की पूरी कोशिश की है,साथ ही हाथों-हाथ यह भी कह डाला की,मुझे तो उसी दिन से बदनाम किया जा रहा हैं,जिस दिन से मैने मुख्यमंत्री का पद छोड़ा था। लेकिन प्रदेश की जनता और खुद बीजेपी के कार्यकर्ताओं को यह समझ में नहीं आ रहा की,अगर खंडूड़ी इतने ही पाक-साफ थे तो उन्हें तुरंत पत्रकारों को खुद के पाक-साफ होने के सुबूत देने की आवश्यकता क्यों पड़ी। क्या वह खुद पर लग रहे इन आरोपों का जबाब देने के लिए एक समय सीमा तय नहीं कर सकते थे। लेकिन खंडूड़ी ने ऐसा किया नहीं,इससे लगता हैं कि दाल में कुछ तो काला हैं ही,दूसरी तरफ खंडूड़ी का यह कहना की इस प्रकरण की जांच एक स्वतंत्र ऐजंसी से करायी जानी चाहिए। यहां सवाल यह उठता हैं कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बैठे श्री सांरगी पर अभी तक जितने भी आरोप लगे या उनकी जितनी धन-सम्पती उत्तराखंड में मौजूद हैं,क्या उसकी जांच नहीं की जानी चाहिए। क्या प्रदेश की जनता को यह हक नहीं हैं की सांरगी से जुड़े तमाम मामलों की भी जांच हो और खंडूड़ी सरकार में रहे इस अधिकारी से जुडे वह तमाम मामले भी सामने आएं जो आज तक पर्दे के पीछे है। क्योंकि खंड़ड़ी सरकार में रहते हुए ही सांरगी के साथ-साथ खंड़ूड़ी पर भी समय-समय पर उंगली उठती रही है। क्या इस की जांच नहीं की जानी चाहिए। मुझे लगता हैं खंड़ूड़ी को इन सवालो का जबाब भी राज्य की जनता को देना चाहिए।
बाबा रामदेव के बयान के बाद उत्तराखंड में राजनैतिक घटनाक्रम जो भी हो,यह तो समय आने पर पता चल ही जाएगा,लेकिन इस प्रकरण के बाद खुद बीजेपी के वरिष्ठ चेहरे खुद कितने नीचे स्तर तक गिर सकते है। इसके बारे में शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा। लेकिन शर्म इनको फिर भी आती कहां है। उत्तराखंड की राजनैतिक पटल पर खुद के सबसे बड़ा खिलाड़ी मानने वाले राज्यकेपूर्वमुख्यमंत्रीऔरराज्यसभासांसदभगतसिंहकोश्यारी इस प्रकरण के बाद तुरंत उत्तराखंड आते हैं वह भी उस चेहरे के साथ जो खुद को इस राज्य का अगला मुख्यमंत्री के तौर पर देख रहा है,केन्द्रीयमंत्रीहरीशरावत के साथ। यह दोनो ही चेहर जब एक साथ एक ट्रेन से देहरादून के रेलवे स्टेशन पर हाथ से हाथ मिलाकर उतरते हैं तो स्वागत करने पहुंचे दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ता हैरान रह जाते हैं कि कल तक जो कोश्यारी जी हरीश रावत के ऊपर एक के बाद एक आरोप लगाते आ रहे थे। आज वही चेहरे एक साथ,निश्चित तौर पर भगत सिंह कोश्यारी के इस अंदाज से उत्तराखंड बीजेपी ही नहीं बल्कि केंद्रीय नेतृत्व और कार्यकर्ताओं में भारी रोश व्यापत है। कोश्यारी  के इस कदम पर बीजेपी के कई नेताओं का यहां तक कहना हैं कि ऐसे व्यक्ति को तुरंत पार्टी से बहार का रास्ता दिखा देना चाहिए। क्योंकि जिन लोगों से पार्टी का युवा नेतृत्व पार्टी को आगे बढ़ाने और पार्टी की भूमिका तय करने की यात्रा के बारे में जानकारी या ज्ञान अर्जित करता है,यदि वही लोग पार्टी की सोच के मायने बदल दें तो उन्हें निश्चित तौर पर पार्टी में रहने का कोई अधिकार नहीं है। बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं का इस बारे में कहना हैं कि कोश्यारी जी के इस मामले को केंद्रीय नेतृत्व को गंभीरता से देखना चाहिए। क्योंकि कोश्यारी ने अपने इस कदम से सिर्फ कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि केंद्रीय नेतृत्व और संघ की विचारधारा को भी चोट पहुंचायी है। जिसका जबाब कोश्यारी जी से मांगा जाना चाहिए।
बाबा रामदेव के बयान के बाद जिस तरह से खंडूड़ी और दिवाकर भट्ट का नाम इस मामले में आया है। उससे विपक्ष तो कम लेकिन पक्ष के यह दोनों चेहरो खंडूड़ी और कोश्यारी ने निश्चित तौर पर उत्तराखंड में बीजेपी की भद पिटकर रख दी है। इन दोनों ही पूर्व मुख्यमंत्रियों ने जिस तरह से पिछले दिनों पार्टी के गाईड लाईन से हटकर बयान बाजी की हैं और कर भी रहे है। उससे प्रदेश में बीजेपी की किरकिरी हो रहा है। क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक'आज के समय में जिस तरह से उत्तराखंड में आम आदमी की आवाज़ बनाते हुए और आम आदमी के साथ रहते हुए। जिस तरह से रात-दिन एक कर अपने काम में जुटे हैं। साथ ही राज्य की जनता का जिस तरह से निशंक को सहयोग मिल रहा है। उससे खंडूड़ी और कोश्यारी को खुद की ज़मीन खिसकती हुई नज़र आ रही है। जिसके चलते ही यह दोनों चेहरे उत्तराखंड में आये दिन नए-नए हथकंडे अजमा रहे हैं,और राज्य में बीजेपी को खुद ही नुकसान पहुंचा रहे है। कहां तो यहां का युवा 22 हजार नौकरियों के इंतजार में बैठा है। दूसरी तरफ खुद के राज्य का हितैषी मानने वाले यह पूर्व मुख्यमंत्री राज्य के इन युवाओं के सपनों पर लगातार पानी फैरने के काम में लगे है। आज जब इस बात की आवश्यकता हैं कि राज्य में जो विकास के कार्या चल रहे हैं,उन्हें और तेजी के साथ मिलकर आगे बढ़ाया जाएं। जो लोग रोजगार की आश में अपनी तैयारी में जुटे हैं,उनके सपनों को साकार किया जाएं,आपदा से घिरे इस राज्य को जल्द से जल्द विकास के मार्ग पर लाया जाएं। ऐसे समय में जब चुनाव को लिए बस कुछ ही समय बचा हो,ये माननीय कोश्यारी जी और खंडूड़ी जी उत्तराखंड में नये समीकरणों की खोज में लगे है। शर्म आनी चाहिए इन लोगों को खुद को राज्य का हितैषी कहने पर। लेकिन इन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तराखंड का जनमानस बैवकुफू नहीं हैं,वह बहुत ही सजग और ईमानदारी हैं,जो बहुत जल्द इन्हें इनकी असलियत देखा देगा और इनके क्रुरूर चेहरे सबके सामने आ जाएगें।
उत्तराखंड में चल रहे इन तमाम घटनाक्रम के बीच एक सवाल यह भी उठता हैं कि आखिर संघ और बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इन तमाम मामलों पर चुपी क्यों सादे है?वह क्यायह चाहता हैं कि जब उत्तराखंड में बीजेपी के यह चेहरे पार्टी को पूर्ण रुप से धुमिल कर दे तब वह इन पर कोई कार्रवायी करेगा। संघ और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की इस चुपी पर सभी को आर्श्चाय ही नहीं अफसोस भी हो रहा हैं कि जब आज की तारीख में उत्तराखंड में युवा नेतृत्व एक नयी सोच के साथ बीजेपी की भूमिका को तय कर रहा हो। ऐसे में यदि कोई उसे नुकसान पहुंचाने का काम कर रहा हो ख़ास तौर पर वह नेता जो खुद को राज्य का शुभचिंतक मानते हो,यानि खंड़ूडी और कोश्यारी तो यह और भी गंभीर मुद्दा हो जाता हैं कि संघ और केंद्रीय नेतृत्व आखिर किसका इंतजार कर रहा है। क्या उन्हें कोश्यारी की हरीश रावत से गुफ़्तगू नज़र नहीं आती,क्या यह पार्टी के ऐजेंडे में मौजूद हैं कि जिस राज्य में बीजेपी की सरकार काम कर रही हो,वहां पार्टी का एक वरिष्ठ नेता चुपचाप जाकर विपक्ष के एक बड़े नेता के साथ बंद कमरे में बैठकर पार्टी को तोड़ने की बातें करें। क्या यह भी पार्टी के ऐजेंडे में हैं कि पार्टी का कोई भी नेता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को सूचना दिए बगैर विपक्षी पार्टी के दूसरे नेताओं के साथ ऐसे समय में उस राज्य में जाकर बैठक करें जिस राज्य में तमाम दूसरी पार्टी के नेता राजनैतिक समीकरण बदले की बात कर रहे हों,वह भी उस पार्टी के खिलाफ जो मौजूदा दौर में राज्य को चल रही हो। क्या यह सब बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को नहीं दिखायी दे रहा हैं,यदि नहीं तो यह और भी शर्म की बात है।
जहां तक कांग्रेस पार्टी का इस मामले को लेकर होल-हल्ला मचाने और आदोलन करने की बात हैं तो,कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए की उनकी पार्टी और पार्टी में मोजूद चेहरे भी कई से साफ-सुथरे नहीं है। जो वह इतना उछल कूद रही हैं,और राज्य में राजनैतिक समीकरण बनाने की बात कह रही है। क्योंकि कल अखाड़ा परिषद के प्रवक्ता स्वामी हटयोगी भी इस बात की घोषणा कर चुके हैं कि "सन् 2005 में उत्तराखंड में मौजूद सरकार के एक मंत्री को 25 लाख दिए गए,जो इस एवज में दिए गए थे कि पतंजली योग पीठ द्वारा जिन दवाईयों को बनाया जाता है। जिस पर कुछ राजनैतिक पार्टियों ने यह कहकर आपत्ति जतायी थी कि इन दवाईयों में मानव अंगो की मिलावट की जाती है। यह मामला उन दिनों बड़े जोर-शोर के साथ उठाया गया था,यहां तक बात आयी थी की पतंजली योगी पीठ द्वारा बनायी गयी दवा कंपनी का लेसंस रद्द कर दिया जाएं। इस लेसंस को बचाने के लिए ही उत्तराखंड की मौजूद सरकार के एक मंत्री को 25 लाख की रिश्वत दी गयी"। स्वामी हटयोगी ने इस बात की घोषणा भी की कि उनके पास इस मामले से जुड़े हुए पूरे सुबूत मौजूद हैं,जिन्हें वह समय आने पर उजागर कर देगें। अब यह सभी जानते हैं कि सन् 2005 में उत्तराखंड में किसकी सरकार थी।
निश्चित तौर उत्तराखंड में आज के समय में जिस तरह से राजनिति का खुलेआम राजनेताओं द्वारा ही बल्तकार किया जा रहा है। इसे देखते हुए राज्य की जनता में भारी रोश है। क्योंकि इस सब से नुकसान आम आदमी को ही भुगतना पड़ रहा है। उनकी विकास यात्रा निरंतर इन राजैतिक छिछौले बाजी से प्रभावित हो रही है। राज्य के मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल 'निशंक' को भी यह छिछौले बाज आएं दिन उत्तराखंड की विकास यात्रा पर रोकने पर तुले है। उन्हें निरंतर काम नहीं करने दिया जा रहा है,जिस तरह से निशंक रात-दिन एक कर राज्य के विकास के लिए काम कर रहे है। उसे भी इन नेताओं के माध्यम से लगातार प्रभावित किया जा रहा है। ऐसे में कैसे राज्य का भविष्य बने,कैसे युवाओं को रोजगार के अवसर मिले...और कैसे इन पहाड़ों का विकास हो,यह यक्ष प्रश्न निरंतर बना हुआ है...।
-जगमोहन 'आज़ाद'

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Jagmohan Aazad बाबा केदार के दरबार में
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 खुद के दुखों का पिटारा ले
 खुशीयां समेटने गए थे वो सब
 जो अब नहीं है...साथ हमारे,
 बाबा केदार के दरबार में
 हाथ उठे थे...सर झुके थे
 दुआ मांगने के लिए...बहुत कुछ पाने के लिए
 अपनो के लिए-
 मगर पता नहीं...बाबा ने क्यों बंद कर ली-आंखे
 हो गए मौन-
 मां मंदाकिनी भी गयी रूठ
  ...और...फिर..
 सूनी हो गयी कई मांओं की गोद
 बिछुड़ गया बूढे मां-पिता का सहारा
 उझड़ गयी मांग सुहानगों की
 छिन गया निवाला कई के मुंह से
 ढोल-दमाऊ-डोंर-थाली
 लोक गीत की गुनगुनाहट
 हो गयी मौन....हमेशा-हमेशा के लिए,
 कुछ नम् आँखे
 जो बची रह गयी....खंड-खंड हो चुके
 गांव में...
 वो खोज रही है...उन्हें
 जो कल तक खेलते-कुदते थे
 गोद में,खेत-खलिहान में इनके,
 असंख्य लाशों के ऊपर...चिखते-बिलखते हुए
 बाबा केदार के दरबार में...।
 किसको समेट
 किस-किस को गले लगा कर
 समेटे आंसू...इनके अंजूरी में अपने
 किसी मां की गोद में लेटाएं
 उनकी नहीं गुहार
 किस पिता को सौंपे...उसका उजास कल
 किन बूढी नम् आखों को दे
 सहारा दूर तक चलते रहने का
 कितने गांव बसाएं...कितने घरों को जोड़े
 तिनका-तिनका जोड़
 जो जमीजोद हो गए...
 बाबा केदार के दरबार में...।
 मुश्किल बहुत मुश्किल है
 इन आसूओं को समेटना
 अंजूरी में अपनी
 मुश्किल तो यह भी बहुत है
 कि कैसे उन बूढ़ी नम् आंखों के सामने
 लेटा दें उस इकलौती लाश को
 जो इनसे कल ही तो आशीर्वाद ले
 गयी थी...दो जून की रोटी कमाने
 बाबा केदार के दरबार में...।
 कैसे बताएं
 उन आश भरी टकटकी लगायी निगाहों को
 कि...जिनकी रहा वो देख रही है
 वो अब कभी नहीं आयेगें लौटकर
 बहों में उनकी...उन्हें नहीं बचा पाये
 मंदाकिनी के तीव्र बेग के सामने
 बाबा केदारा की दरबार में...।
 ...मगर उनके बिछूड़ो-
 उनके आंखों के तारों की लाशों पर
 खड़े होकर...कुछ सफेद पोश धारी
 चीख रहे है...चिल्ला रहे है...
 सांत्वना दे रहे है...बूढी नम् आंखों,उजड़ी मांगों को
 कि हमने...अपनी पूरी ताकता झोंक कर
 हवाई दौरो के दमखम पर
 मुआवजे के मरहम पर
 तुम्हारे असंख्या रिश्तों को-
 असंख्य आंसूओं को बचा लिया है
 ज़मी पर गिरने से...
 जिनमें-
 कुछ गुजराती है...कुछ हिन्दु कुछ मुस्लमान
 कुछ सीख-ईसाई के भी...
 हमने समेट लिया इन सबके दुःखों को
 खुद में....हमेशा के लिए
 बाबा केदार के दरबार में...।
 जगमोहन 'आज़ाद'

 

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