Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 721935 times)

Bhishma Kukreti

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Culture of Kumaun and Garhwal
Important  Places of Kumaun and Garhwal where Nathpanthi Philosophy was Developed in past  -2
(Mantra Tantra in Kumaun, Mantra Tantra in Garhwal, mantra Tantra in Himalaya , Mantra Tantra in Uttarakhand )
Original researches by Dr Vishundatt Kukreti (Village -Barsudi, Langur Valla, Pauri Garhwal
Presented on  Internet by Bhishma Kukreti
Dr Vishnu datt Kukreti is the only living expert on Gorakhpanthi or Nathpanthi sect of Garhwal and Kumaun . Before , Dr Vishnu Datt Kukreti, Dr Pitambar Datt Barthwal  , rahul Satyakritan Dr Shiv Prasad Dabral initiated the research in Nathpanth sect in Garhwal and Kumaun . Dr Purushottam Dobhal. Prof Shambhu Parasad Bahuguna, badri datt pandey , Dr Upadhyay, dr Chatak, Abodh Bandhu Bahuguna , Mohan Lal Babulkar also contributed in the area
Dr Vishnu datt Kukreti informed that following old centers were once, the centre of Nathpanthi secs in Garhwal and Kumaun
Asantii Pat Basant (Kumaun near  Ramganga) , Ukhimath, kaintapuri ( kartikpur , Kumaun) Kali Badli (Garhwal) , Kunjani kantha (tihri Garhwal) , Khairagarh near Beeronkhal, Shintakhal of Tihri Garhwal, Gosthal Gopeshwar, Golaksh near Shrinagar, gaurighat pithoragarh, ghaurighat near haridwar, Chandpur Garh, chakakwili Tihri Garhwal, Champawat, Chham in many places of Uttarakhand, Jushimath, junagarh, tal Pokhar chamoli garhwal or Pithoragarh, tumadi ghat, Tamotiya Ghat, Dhili darwaja (Most probably Kotdwar) Dehradun, Dhaulya Udyar, nagnath ki Navdi, neelkanth, betalghat Pithoragarh, Bairat, Bhartri ka Chauka near naithana Maniyarsyun, Bhagirathi mool, Bhitli don – \Dwarhat Kumaun, Bheeva Kali des Dwarhat , vailanka Uttarkashi, Lakhuri des Dwarhat, satadi chauka udaypur PG, Kailash mansarovar , seem, hingola nadi tat , Harda ki dod Uttarkashi




Bhishma Kukreti

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Nathpanthi Deities of  Kumaun and Garhwal
               गढ़वाल कुमाऊँ  के नाथपंथी देवता
                            भीष्म कुकरेती
गढ़वाल व कुमाओं में छटी सदी से नाथपंथी अथवा गोरखपंथी प्रचारकों का आना शुरू हुआ और बारवीं सदी तक इस पंथ
का पूरे समाज में एक तरह से राज रहा इसे सिद्ध युग भी कहते हैं
कुमाओं व गढ़वाल और नेपाल में निम्न नाथपंथी देवताओं की पूजा होती है और उन्हें जागरों नचाया भी जाता है
१- नाद्वुद भैरव : नाद का अर्थ है पहली आवाज और नाद वुद माने जो नाद का जानकार है  जो नाद के बारे में बोलता है . अधिकतर जागरों में नाद्वुद भैरव को जागरों व अन्य मात्रिक तांत्रिक क्रियाओं में पहले स्मरण किया जाता है , नाद्वुद भगवान शिव ही हैं
                    पैलो  का प्रहर तो सुमरो बाबा श्री नाद्वुद भैराऊं.... राम्छ्ली नाद बजा दो ल्याऊ. सामी बज्र दो आऊ व्भुती पैरन्तो आऊ . पाट की मेखळी  पैरंतो आऊ . ब्ग्मरी टोपी पैरन्तो  आऊ . फ्तिका मुंद्रा पैरंतो आऊ ...
२- भैरव : भैरव शिव अवतार हैं. भैरव  का एक अर्थ है भय से असीम सुख प्राप्त करना . गाँव  के प्रवेश द्वार पर भैरव मुरती स्थापित होती  है भैरव भी नचाये जाते हैं
        एक हाथ धरीं च बाबा तेरी छुणक्याळी लाठी
        एक हाथ धरीं च बाबा तेरी तेज्मली को सोंटा
         एक हाथ धरीं च बाबा तेरी रावणी चिंता
         कन लगायो बाबा तिन आली पराली को आसन
         .....
३- नरसिंह : यद्यपि नरसिंघ विश्णु अवतार है किन्तु गढवाल कुमाओं में नरसिंह नाथपंथी देवता है और कथा संस्कृत आख्यानो से थोड़ा भिन्न है . कुमाऊं  - गढवाल में नरसिंह गुरु गोरखनाथ के चेले /शिष्य के रूप में नचाये जाते है जो बड़े बीर थे नरसिंह नौ  है -
 इंगले बीर नरसिंघ, पिंगला बीर नरसिंह, जाती वीर नरसिंघ , थाती बीर नरसिंघ, गोर वीर नरसिंह, अघोर्बीर नरसिंघ, चंद्बीर नरसिंघ, प्रचंड बीर नरसिंघ, दुधिया नरसिंघ, डोडिया नरसिंह , नरसिंघ के हिसाब से ही जागरी जागर लगा कर अलग अलग नर्सिंगहो का आवाहन करते है
   जाग जाग नरसिंह बीर जाग , फ़टीगु  की तेरी मुद्रा जाग
   रूपा को तेरा सोंटा जाग ख्रुवा की तेरी झोली जाग
.............
४- मैमंदा बीर : मैम्न्दा बीर भी नाथपंथी देवता है मैमंदा बीर मुसलमानी-हिन्दू  संस्कृति मिलन  मेल का रूप है मैम्न्दा को भी भैरव माना जाता है
     मैम्न्दा बीरून वीर पीरून पीर तोड़ी ल्यासमी इस पिण्डा को  बाण कु क्वट भूत प्रेत का शीर
५- गोरिल : गोरिल कुमौं व गढ़वाल का प्रसिद्ध देवता हैं गोरिल के कई नाम हैं - गोरिल, गोरिया , गोल, ग्विल्ल , गोल , गुल्ली . गोरुल देवता न्याय के प्रतीक हैं .ग्विल्ल की पूजा मंदिर में भी होती है और घड़े ल़ा लगा कर भी की जाती है
       ॐ नमो कलुवा गोरिल दोनों भाई......
       ओ गोरिया कहाँ तेरी ठाट पावार तेरी ज़ात
       चम्पावत तेरी थात पावार तेरी ज़ात
६- कलुवा वीर ; कलुवा बीर गोरुल के भाई है और बीर हैं व घड़ेल़ा- जागरों में नचाये जाते हैं
      क्या क्या कलुवा तेरी बाण , तेरी ल़ाण .... अजी कोट कामळी बिछ्वाती हूँ .....
७- खेतरपाल : माता महाकाली के पुत्र खेतरपाल (क्षेत्रपाल ) को भी नचाया जाता है
             देव खितरपाल घडी -घडी का बिघ्न टाळ
             माता महाकाली की जाया , चंड भैरों खितरपाल
              प्रचंड भैरों खितरपाल , काल भैरों खितरपाल
               माता महाकाली को जायो , बुढा महारुद्र को जायो
               तुम्हारो द्यां जागो तुम्हारो ध्यान जागो 
८- हरपाल सिद्ध बाबा भी कलुवा देवता के साथ पूजे जाते हैं नचाये जाते है
न्गेलो यद्यपि क्ष व कोल समय के देवता है किन्तु इनकी पूजा भी या पूजा के शब्द  सर्वथा नाथपंथी हैं यथा
न्गेलो की पूजा में
उम्न्मो गुरु का आदेस प्रथम सुमिरों नाद भैरों .....
निरंकार ; निरंकार भी खश व कोली युद के देवता हैं किन्तु पुजाई नाथपंथी हिसाब से होती है और शब्द भी नाथपंथी हैं
( डा पीताम्बर दत्त बर्थवाल, डा विश्णु दत्त कुकरेती, डा गोबिंद चातक , डा कुसुम पांडे , डा शिवानन्द नौटियाल की पुस्तकों से संकलित )
Copyright @ Bhishma Kukreti bckukreti@gmail.com


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Garhwali Kumauni culture
                           Mantra of Goril, Gwill , Goria, Gol Deity
                             गोरिल, ग्विल्ल, गोरिया , गोल देवता का मन्त्र
           (Mantra Tantra in Garhwal, Mantra and Tantra in Kumaun , Mantra and Tantra in Himalaya , Mantra Tanra in Uttarakhand )
                            Presented by Bhishma Kukreti
                          ( Manuscript : Dharmma nand Pasbola, vill Naini, Banghat Paurigarhwal , Ramkrishn kukreti, vill Barsudi )
                           (Collected and edited by Dr Vishnu Datt Kukreti , vill. Barsudi, Langur Valla)
        नाथपंथ ने कुमाऊं  - गढ़वाल क्षेत्र को की देवता व मन्तर दिए है . इनमे एक मन्त्र ग्विल्ल , गोरिल देवता का सभी गाँव में महत्व है . यदि किसी पर ग्विल्ल/गोरिल का दोष लग जाय तो मान्त्रिक दूध , गुड, ल़ूण,  राख आदि को मंत्रता  है और यह मन्त्र इस प्रकार है :
                    ॐ नमो गुरु को आदेस
                  रिया : हंकार आऊ : बावन ह्न्तग्य तोडतो आऊ : हो गोरिया : कसमीर   से चली आयो : जटा फिकरन्तो   आयो,: घरन्तो आयो :गाजन्तो आयो : बजन्तो आयो : जुन्ज्तो आयो : पूजन्तो आयो : हो गोरिया बाबा : बारा कुरोड़ी क्रताणी : कुबन्द : नौ करोडी उराणी कुबन्द : : तीन सौ साट : गंगा बंद , नौ सौ नवासी नदी बंद : यक लाख अस्सी हजार वेद की कला बंध : रु रु बंद : भू भू बंद :   चंड बंद : प्रचंड बंद : टूना पोखर बंद : अरवत्त बंद : सब रत्त बंद :अगवाडा बंद का बेद बंदऊँ  : पीछे पिछवाडा को बेद बंदऊँ : महाकाली जा बन्दों : वन्द वन्द को गोरिया : हो  गोरिया : नरसिंग की दृष्टा बंद : युंकाल की फांस बंद : चार कुणे  धरा बंद : लाया तो भैराऊं बंद : खवायाँ चेडा  बंद : सगुरु विद्या कु बंद निगु
 This Mantra  reveals that Goril came from Kashmir by crossing all hurdles and was brave, tactful and knowledgeable personality . Goril was also knoledgeable to tackel varios problems of common men , geographical or psychological . Goril was available to solve various problems
If readers read the Goril mantra carefully, they will ome to conclusio that there is very less difference in markendey Puran (Devi Puran) and Goril mantra except that Markendey Puran is in sanskrit aand there is praiseful history of Devi and  Goril Mantra is described in Khadi Boli/Braj with some mixing of Garhwali of old time
इस मन्तर के अध्ययन  से साफ़ पता चलता है की इस मन्तर में गोरिल की वीरता व ज्ञान की प्रशंशा की गयी है
9 गोरिल कलुआ देव के भाई थे और राजतंत्र या अधिनायक तंत्र के विरुद्ध जन आन्दोलन में भाग लेते थे  एवम वे विकराल रूप भी धारण करते थे यही कारण है की गोरिल ग्राम देवताओं की सूची में आते हैं क्योंकि वे जन नेता थे )



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Culture of Garhwal and Kumaun
            Dariyavali Mantra in Chhaya, Nagjad, Dolgaddi Tantrik Performaces
              छाया , नगजाड डोलगड्डी  अनुष्ठान में दरियावली मन्त्र
           (Mantra Tantra in Garhwal, Mantra Tantra in Kumaun, Mantra Tantra in Uttarakhand, Mantra Tantra in Himalaya
 
                Bhishma Kukreti
       छाया का अर्थ है किसी भूत , अतृप्त आत्मा का किसी महिला पर दोष लगना . छाय निवारण हेतु कुमौं एवम गढवाल में छाय पूजी जाति है जो की एक तांत्रिक अनुष्ठान है   छाया तन्त्र के कई  प्रकार के अनुष्ठान होते हैं . सादी छाया , नगजोड़ , डोलगड्डी  आदि . नगजोड़ (महिला  को नंगा अनुष्ठान करना पड़ता है ) अनुष्ठान के डो भाग होते हैं एक घर में एवम दूसरा किसी नदी/ गधन  किनारे या किसी उन्चीए छोटी में
     छाया अनुष्ठान में मान्त्रिक दरियावली भी पढ़ता है या कहें की दरियावली मन्त्र पढ़ता है . दरियावली के दोहे बहुत हैं उन्हें एक साथ संकलित करना इस मध्यम में सम्भव नही है किन्तु मैं कुछ दोहों को पाठकों के सामने उदधगृत कर रहा हूँ जिससे उन्हें समझ आ सके की गढ़वाल में नाथपंथी मन्त्रों की असलियत क्या है ? और इन मन्त्रों का हमारे आज के जीवन में भी क्योंकर महत्व है . बिना पढ़े ही  हम पढ़े लिखे लोग अपनी धरोहर (मन्त्र)  की अवमानना किस तरह कर रहे हैं वह दरिय्वाली के कुछ  पद पढ़ कर समझ में आ जायेगा !!
       दरिया लच्छन साधू  का क्या गिरही क्या भेख
        निहकपटी निरसंक रही बाहर भीतर एक
       सत शब्द सत गूमुखी मत गजंद -मुखदन्त
       यह तो तोड़े पौलगढ़  वह तोड़े करम अनंत
       दांत रहे हस्ति बना पौल ण टूटे कोय
      कई कर थारे कामिनी के खैलाराँ होय
      मतवादी जाने नही ततवादी की बात 
       सूरज उगा उल्लुवा गिं अँधेरी रात
       सीखत ज्ञानी ज्ञान गम करे ब्रह्मा की बात
       दरिया बाहर चांदनी भीतर काली रात
       दरिया बहू बकबाद तज कर अनहद से नेह
        औंधा कलसा उपरे कंहाँ बरसावे मेह
        जन दरिया उपदेस से भितर प्रेम सधीर
       गाहक हो कोई हीक कर कहाँ दिखावे हीर
        दरिया गैला जगत को क्या कीजै सुलझाय
         सुलझाया सुलझे नही सुलझ सुलझ उलझाय
        रोग नीसरै देह में पत्थर पूजे जाय
         कंचन कंचन ही सदा कांच कांच को कांच
        दरिया झूठ सो झूठ है सांच सांच सौ सांच
इसी तरह दरियावली में सैकड़ो पद हैं जो छाया या अन्य तांत्रिक अनुष्ठानो में मान्त्रिक -तांत्रिक पढ़ता है और अब आपको भी समझ में आ जाएगा की दरियावली के मन्तर दर्शन , सच्चाई , आध्यात्म , वास्तविकता से भरे हैं
Copyright @ Bhishma Kukreti bckukreti@gmail.com



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Culture of Kumaun and Garhwal
                      Kamardani Mantra
                      क्मरदानी मन्तर 
(Mantra Tantra in Garhwal, Mantra Tantra in Kumaun, Tantra Mantra in Uttarakhand, Tantra Mantra in Himalaya )
                     Presented by Bhishma Kukreti
         Collected and edited by Abodh Bandhu Bahuguna
   
      When this author started providing the information about Mantra in Garhwal Kumaun the aim was information about language and contribution of nathpanth in development of culture in the region. However, when many readers showed interest to know more and many readers oppose the subject as Andhvishwash, the author has to do more research on the subject
    It is surprising that all Mantras in Kumaun and Garhwal are philosophical, historical, spiritual in nature
Take the example of following mantra which will tell that mantras in Kumaun and Garhwal are philosophical and spiritual in nature . the Kamardani Mantra is created in eighteenth century as the language is dominated by Garhwali of Pauri Shrinagar side .the legacy of Braj/Khadiboli language is also seen in this mantra .  The creator is definitely a Brahmin who is Shakt too . The Mantra also indicates that in that time Hanuman also becoming famous deity as happened in other part of India. It is general awreness that Hanuman became special deity only after Tulsidas created Hanuman Chalisa
   There are mentions of Bharon and Khetrpal in this mantr which is common in Nathpanthi Mantras . the mantra narates historical (Puran ) aspects of Kamrup area
                                  कमरदानी   मन्तर
   ॐ नमो गुरु जी को आदेस . गुरु को जुवार विद्वामाता को नमस्कार . पैल कामरू कामरू थै : मेगल दानौ कामरू लै : छेपक दानौ करे को उजाला असी दानौ कामरा पारा: मेगल दानौ चाड़ण   लागदा डांडा दानौ हलकण लागदा : बटुक भैरों हंशदो   आयो चल हळव्या   दिन छोड़ण  लायो : घर घर देवी पूजा लायो : तुमेरू तुमे रक्षा फुर हो माई . गुरु का वाक: एक दोसरी कामरू थै : गेग्ड़ दानी कामरू लै : छेपक दानौ मारू छाल :  . कामरू प्रचंडा कामुस्या हठ : जब हणुमंत  शकिर ह्व़े नौलक दानौ भागी गे भागवा दानौ भागण लागवा : उबा भैरों परबत जाग्वा: भैरों खोले रथ फुर मन्तर इश्वरो वाच : तीसरी कामरू कामरू थै ; मेगल दोनों कामरू लै : गोला दानौ भयवार  : बस्तरी दानौ कामरू पारा : पैरो दानौल लियो औतार : कावर देस्तो आयो भैरव खेत्रपाल : घांडी घुन्गरी उठे रिमीझिमीकार : राख देवी पारबली हमारा नाऊँ छेली  मुड़ी भैसा दानौ लखब्याबद कामरू जाग्वो बटुका भैरों कामरू जाग्वों बतीस ब्यादी न्ठ्या भाग्वा बंदी जम्पो नगर जाई बतीस ब्यादी खुली जाई अप बति श्री राम की कार : ब्यादी नियो दोसरी बार : आवे कावरू अहोहार : अरहर कम्पे मेरु मन्दिर बजरंगी पार : मेगल दानौ हंकारो जाई : कावरू देसते खेड़ पेडाई   : कपिला भैरों पाँव तो आयी सौल से ब्यादी लिच्ली लायो कपिला गोरिला दानौ मिल घटगडा विका वत हिंट . बावरी चोडा चड़कण :  लाग्यो थरहर मन्दिर कम्पण  लागवा गोठ गया इड दानौ मारा बाबरु भितर जीउराँ मार्या अब पवंति श्री रात की कार : ब्यादी नि अवे दोसरी बार : फुट मन्तर इश्वरो वाच : चौथी कामरू कामरू थैई चौडिया खेत्रपाल : गूंगी daanकतमरु  लेई : गोला भैरों मन्दिर ठोई : टं का सबद ना जाने कोई फुर मन्तर इश्वरो वाच : पांचो कामरू थैई चौडिया खेत्रपाल कामरू लैई गूंगी दानौ कुंकारो  ध्याऊं असी मसाण को भयो मिलाऊं : सिंगी चेडा हुकुम करे : नौलक दानौ थरहट पड़े : लुवारन  घण गडायो तब असी दानौ की गल में पैराया माठल   मुठल भैरों खेत्रपाल पवन्तो आयो वार ब्यादी लिली आयो ब्यादी रिबेसुर पूछण लायो : घर घर पूछे रिषेस्वर ब्यादी : नौलक दानौ लियो सादी : ब्यादी रिषेस्वरन लाया ताड़ा तब आयी पौंछे मदेस भराडा  : आदा डमरू तिरसूल धारा बतीस ब्याधि लिचलेसमोदर पारा तब बीररूपी हणिमंतन   लियो औतार : लेयिक मुगदर कामरू गये कामरू थरहर आणे सौल ब्यादी लोटो धरणे तले देहि बजरंगी श्री राम की कार : ब्याधि नी आवे दोसरिवार : रिख बंध थिर बन्धु बंधौ  दौं दौं कार ; कामरू प्रचंड का मुख्या बीर खेत्रपाल : तब ब्यादी रिषेसुर कामरू गये घर घर तनो की पूजा लागी तब हणीमंतन मारी उछाल कम्पे कामरू मछ पाताळ  : कम्पे कामरू डूंक हलाई पौन का सबद चलेच लेय्यीक मुकदर कामरू गये हणीमंत मुदगर दिनी ताल : सर्वब्यादी लिचले समोदर पार : फुर मंतर इश्व्रोवाच :
       कन्च मन्तर काली मसाण : कामरू प्रचंड कामुख्या थान : भाज्दो , सीद कामरू जान : बोले देवी मन्दिर हाकि ललु ब्यादी न्ति या भागी : महाविद्या महादेवन उपाई व्यादी रिसेसुर का गल मा पिराई गोरक्नाथ समरो अब मैं तैं धुते सिषी खेत्रपाल भयो आदि सगती को पूत :टनेल सुमरी कामरू की सेउले खेत्रपाल लेखा निरंजन भयो : फुर मन्तर इश्वारोवाच : छटी कामरू कामरू थैई गेवर दानौ कामरू लेई : सुमरा दानौ करे अजाला : चौंडा दानौ कामरू पारा : चिलिमिली दानौ वसत्री दानौ को भयो मिलाज : सुमरा दानौ आदरु आयो वर्मा दानौ लेषण लागो चलहल  चलणे लगा चार ब्यादी छोड़ण लाग्यो : आगे कामरू कामरू थै सुमरा सेट करौं विकराळ : लह लह हर्ट भर्यो विकराल़ा खंड प्रखंड कीय फाळ : सीद आसीद तब भयो विकराळ तब सरे व्यास्दी मरे श्री राम का काज ; हणमंत करे गुरु का वाक् : सीद की कार तब हणिमंत ल्क्नका पर जालि ट : लंकुट भैरों वा दोसरा सेट फुर मन्तर इश्वारोवाच
        सातो कामरू कामरू थै सूद्र दानौ कामरू ल़े , इनल वीनल रूप उरावल खंडित मंडित सीदत सादत : बारा ब्यादी रिषेसुर पारसुर दानौ भयो : साट भाग्वे ज्युन्रा बतीस कोष : आपै वर्मा सबद फुराऊं : कामरू दानौ शंकर भैरों असरन कुंडली खेत्रपाल भैरों जेमला दानौ करे सुम्रिता त्रीण   पाताळ का मरु गंजे सीदु शर ; बतीस ब्यादी लीच्ले समोदर पार जब चले बीर रूपी ह्न्मन्त चले लेईक मुदगर  कामरू गये हणमंत  मुदगर व्याधि णे ताल , सर्व व्याधि जी चले शगती पाताळ : सीव की अंग्वा ईश्वर की वाच्या फुर मन्तर इश्व्रोवाच : आटो कामरू मैगल दानौ कामरू लई रगत द्वि तुमको जै जैकार : तुन्मको नमस्कार बंदी कासमरी देस की विधी उखेल , मारूवाड़ देस की विद्या उखेल , कुंकुम छल़ा  की विध्या उखेल जलन्द्र देस की विध्या उखेल : गोरष खंड की विध्या उखेल स्वा लाख परबत की विध्या उखेल बार लाख बैराड़  विध्या उखेल लुवार लाख भोटन्त  की विध्या उखेल साट लाख सलाण की विध्या उखेल पांच लाख पछाड़ की विध्या उखेल . नौ लाख दुभाग की विध्वा उखेल मान्सरी वर की विध्वा उखेल फुर्मन्त्र इश्व्रोवाच : नौं कामरू कामरू थैं शनेशर दानौ कामरू लाई मन्दिर बैठा थ्य्र सौल हो गोपी भयो ध्यार : जमरघंटा दानौ भरे सेला काळ जिनुरा तनौ से डरयो : महाविद्वा महादेवन उषाई : व्याधि रिषेसुर का गल मा पैराई. हामू सुमरो कामुख्या माई लोचडि   लोचडा भस्मत हो जाई : श्री श्रेष्ठ भैरवो वाच : फुर मन्तर इसुरोवाच . इति कमरदानि मन्तर सम्पूर्ण : शुभम

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Tantra Mantra in Garhwal-Kumaun (Hills of Uttarakhand)
                        Vibhuti Mantra -  Apraksha Mantra
                         विभूति मंत्र अथवा आपरक्षा मन्तर
           
          Web Presentation: Bhishma Kukreti 
           Collected and  Edited by Abodh Bandhu Bahuguna

(कृपया  किसी भी मन्तर को अपने आप अनुष्ठान नही करना चाहिए . बगैर गुरु के अनुष्ठान नही किया जाता है )
      ॐ नमो गुरूजी को आदेस गुरु को जुवार विद्वामाता को नमस्कार : विभूति माता विभूति पिता विभूति तीन लोक तारणी अंतर सीला मौन प्रवात सुमरी मै . श्री गोरख ऊँ दर्शन पैरो मै तुमरे नाऊँ ज्ञान खड्ग ल़े मै काल सन्गारो जब मरों तब डंक बजाऊं डंकण   शंकण मै हाफिर खाऊं रोग पिंड विघिन बिनास ण जावै कचा घडा तरवे  पाणि : डाडा  वस्त्र गये कुआर शंकर स्वामी करले विचार : गल मै पैरो  मोती  हार : अमर दूदी पिउन धीर : बजरन्ग्या  सादी ल़े रे बाबा श्री गोरखबीर : गोरख कुञ्जळी  चारन्ति अर विचारती श्री गुरुपा काय नमस्तुते : घट पर गोष छेने रुतहा के वस्त्र नाथ का वचन : सीदा जने ना मा रि भय दुत :   धर्म धात्री तुम को आरि : वंदि  कोट तुमकौ आरि: वालारो वै फन्तासुर दाड़ी ईस  पिंड का असी मसाण ताड़ी :बावन बीर ताड़ो छ कड़ दैत्र तोड़ो ताड़ी अग्नि पठ देउन उज्याळी ताड़ी ताड़ी माहा ताड़ी ईस पिंड का सब्बा सौ बाण दियुं ढोळी प्र्च्चेद का बाण दिऊँ ढाळी प्रभेद को बाण दिऊँ ढाळी प्रजन्त्र को बाण दिऊँ ढाळी प्रमन्त्र को बाण दिऊँ टाळी ल्यूं बाण दिऊँ टाळी लग्वायुं वां दिऊँ टाळी  वायुं बाण दिऊँ ढाळी बाप बीर हणमंत चार डांडा पुरवी तोड्न्तो लायो : बाप बीर हणमंत चार डांडा पसीमी तोडंतो ल्याओ : बाप बीर हणमंत चार डांडा दखणी तोड्न्तो लायो बाबा बाप हणमंत चार डांडा उतरी तोड्न्तो ल्यायो : बाबा बीर बापबीर हणमंत जोधा चार दिसा का चार बाण तोड्न्तो ल्यायो : चार बाण औदी का तोड्न्तो ल्यायो बापबीर हणमंत जोधा से क्वा क्वा लंकाण  बाण झंकाण बाण उखेल : बाबा बापबीर हणमंत खायु बाण उखेल लायुं बाण लग्वायुं बाण उखेल , कौं कौं बाण उखेल कवट को बाण उखेल छल को बाण उखेल छिद्र को बाण उखेल , लस्ग्दो बाण उखेल चस्गदो  बाण उखेल , नाटक चेटक को बाण उखेल ,: ईस पिंड को आब्र्ट भैरों को बाण उखेल , धौण तोड्दा भैरों का बाण उखेल , मौण मोड़दा भैरों का बाप उखेल बापबीर हणमंत जोधा दृष्टि भैरों का बाण उखेल , घोर  भैरों का बाण उखेल अघोर भैरों का बाण उखेल, कच्च्या भैरों को  बाण उखेल , निच्या भैरों को बाण उखेल , खंकार भैरों को बाण उखेल , हंकार भैरों को बाण उखेल , लोटण भैरों को बाण उखेल , लटबटा भैरों का बाण उखेल , . सुसा भैरों का बाण उखेल , चौसठ भैरों का बाण उखेल , नौ नरसिंगुं ,बाण उखेल , .प्रथम  सुन भैरोंकी बाणी को बाण उखेल , बसून  भैरों की बाणी को बाण उखेल   घोर भैरिओं की बाणी को बाण उखेल , अघोर भैरों की बाणी को बाण उखेल चौसठ भैरों की बाणी को बाण उखेल : बापबीर हणमंत जोधा दूना भैरों को बाणी को बाण उखेल , पोसण भैरों की बाणी को बाण उखेल, धौण तोड्दा भैरों की बाणी को बाण उखेल , मौण तोड्दा भैरों की बाणी को बाण उखेल , बाबा अठावन सौ कलुवा का बाण उखेल , बाप  बीर हणमंत नि उखेली खाई त सात भाई चमारिका हात को पाणी पी : सुई का रंगत नायी: गै काच्डा दांत लगाई : नरम जाई : जागजंत्र  लागतन्त्र : फुर मन्तर इश्वरो वाच : या रखवाळी विभूति मंत्रणि की छ : अपणा वास्ता आप रक्षा की छ और उखेल का काम कु सीध छ : शुभम :
 


Bhishma Kukreti

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Culture of Kumaun and Garhwal
                 Gantha ki Samagri  a Tantrik Performance  of Kumaun Garhwal
                गांठा कि  हेतु तांत्रिक सामग्री
                (Mantra Tantra in Garhwal, Mantra Tantra in  Kumaun , Tantra Mantra in Uttarakhand , mantra Tantra in Himalaya )
                    Web   Presentation  by Bhishma Kukreti
                Collected and Edited by Abosh Bandhu Bahuguna
         Normally, the language of Mantrik or Tantrik literature of Kumaun and Garhwal is Braj/Khadi Boli but here, the language is Garhwali . This change clearly states/ indicates that this manuscript is quite new  (around ninteenth century and afterwards. It also clearly shows tha Abodh Bandhu Bahuguna edited it according to his wordings too )
                                गांठा की सामग्री
                       संकलन : अबोध बंधु बहुगुणा
      अब गांठा की सामग्री लेषीत. पैल धूप देण . गेगाड़ो सुकाण  . गैणा गू . रतागुळी की  जड़ . . सूकी हल्दी . वज बराह की मेंमण . मर्च की जड़ .      रूद्र का फूल . हड़ताळ गंधप इति .चीजी को धूप देणो  . पैल़े गाऊं माझा जब गांठो करणों होव ट सामिग्री गुगुळ काल़ो बिष . भुत्केश कस्तुरी , काला धतूरा को जड़ . हींग, :बर्ज : :    सर्वजीवनु डाला सर्व जीवनु नकल जडों सुदा आँक को जड़ , इति चीजे कठा पीसिक कूतिक चन्दन सि बणाण  तांको गोला बणोण : स्र्व्जीव्नु की अमीर ,सर्व औषधि एक रतगुळी    की जड़ सपेद पपड़ी की जड़ इति चीज सब भसम बनौण विभूति बणोण अपणा अंग पर मली तब सीर पर ल़ाणी  नाग पर ल़ाणी बिडोणी पर ल़ाणी आफुक बि गांठो करणो येती चीजे सब गांठों पर धरणी  दुखियों पर गांठा ल़ाण : षड मन्तर करणो ; सात सुट को पाणी झुंजण की जड़ डाळी सुदा तुलसी की जड़ डाळी सुदा ताछडि कि जड़ डाळी सुदा हिश्रा कि जड़ डालि सुदा किलगोड़ा  कि जड़ डाळी सुदा इति चीजौन षड मंत्र करणो  : सात बेरी सात चुल़ू दुखी सणी पेणु कु देणा और गांठों पर राज्श्थान कि माटी हरताल गंधप कुमाळी को माटो जड़ाउ को सिंग घोड़ाखुरि इति छेजे गांठों पर धरणी बिच गाँव मांझ कालिच्क्र लेखणो चक्र कि काख पर लांग पर हणमंत उठौणो : कुडा माझ श्रीनादबुद भैरों उठौणो काल़ो मेड़ो का आठ अंगुळ सींग होवन सो मेडा जापणो  काळी कुत्ती सणी  सात घरु कि खीचडि खैलौणी गाऊं मांझ भौत दुःख पोड त इतना जतन करणो बडो लोचडा पड़े त कोरा घडा पर येकोत्र सै कांडा धरणा : सरा गौं को सतनाज सब का नंग बाळ धरणो : वई घडा पर सर्व द्र्ष्तु का जड़ हरताल गंधण इति चीजे घडा पर धरणी सेमळ कि डाळी घडा पर धरणी घडा को मुख मुन्दिक मुणज्याड़ो बाँधणो कूड़ामांझ धरौणो तब भलो होऊ : जब भलो होव तब दिसौ  माझ चार बले दीण  चार दिसौ खीचड़ो पूरब बकरा उन्न मुर्गा पसीम गेगाड़ो दक्षिण ब्रजमुखो स्वा सेर को रोट अपणा   इष्ट देव को काटणो  गांठा तोड़ी देणा व गांठ घडा मा फूकी देणो व हणमंत पाणी मांझ सेल़ाइ देणो : तब गाँव को इष्टदेवता पुजणो गाईदान करौणो  गाओ सुजाई देणो तब भलो हवे : पैल अफूको गाँठ करणो आफो खंडत  चौंळ  नि खाण  अपणो आसण अलग रखणो पराळ को आसण राखण एक बेळी भोजन करणो आफो तख को दूद दही नि खाणो अस्त्री संगम नि करणो तब करामात रंद : तीन दप ताईं षड़ मंत्र दुरोणो तब लोचड़ो जाव शुभम शुभम शुभम


Regards
B. C. Kukreti   

Bhishma Kukreti

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Mantra Tantra Literature of Kumaun -Garhwal
                     Samain : A  Rare Collection of Mantras and Yantras (Jantras)
                     समैण : मन्त्रों  और यन्त्रों का अनोखा संग्रह
                     (Mantra Tantra in Garhwal , Mantra Tantra in Kumaun, Mantra Tantra in Uttarakhand, Mantra Tantra in Himalaya ) 
                           Bhishma Kukreti
                Dr. Pitambar Datt Barthwal,  Abodh Bandhu Bahuguna and Dr Vishnu Datt Kukreti apart from Dr Shiva Nand Nautiyal , Dr Govind Chatak and Mohan Babulkar are mainly credited to provide description of Mantra and Tantra of Garhwal-Kumaun . However, Dr Vishnu Datt Kukreti provided full knowledge about Mantras in Garhwal and Abodh Bandhu Bahuguana provided lterature in historical aspects of Garhwali literature 
   Dr Vishnu Datt Kukreti wrote about Samain in his classical book Nathpanth : Garhwal ke Parpeksh men  and Abodh Bandhu Bahuguna published the whole Mantras of Samain in Kaunli Kiran
      As far as manuscript of Samain is concerned Dr Kukreti describes that the size of manuscript is 20x12 centimeter . There are ten lines in each page and in quite a few pages, there are eleven lines of mantras The manuscript is of 53 pages.
    The booklet is devided into three parts Yantr Vidhaan, Samin Vidya and Dhamdev ki Ker
    The first part of Samain is upto 21 pages and there are many Yantras . These Yantras (Jantar) are to avoid/stop/finish -- various deseases, . bringing prosperity, having child by women who dont have child for many years, commanding over king, and Ashtbhairv jantr, Aanchhari Jantr nadbud jantra, Narsing Jantra, . There also Beej Mantra in the picture of yantras
  Secondpart is samain which starts from अथ समैण लिषित : ॐ नमो आदेसम .. and ends राजा रामच्न्द्रिकाय नमह ......फुर्र मंत्र इश्व्रोवाच इति शंकर्चार्ज विधि लेषित मंत्र झूठा जाई त देव मधे महादेव कि आण  पड़े जाई तारा मधे शुक्र कि जाण पड़ी ब्रिछ मधे चन्दन कि आण
  The literature is nathpanthi literature and language is Braj/Khadi Boli mixed with garhwali words . There are many historical aspects described in Samain as about two wices of king Ajaypal. There is description about Kantyuri Kings Peetam Dev, Dhamdev and Brahmdev of Kumaun region.
  Rare  of rarest is that there is descrition of Shankarchary . It shows that the literature is written after fifteenth century as there is description of Ram chandra too The booklet is important to know mid age history of Garhwal and Kumaun
 Dr Kukreti informed that  the manuscripts available with Shri Maheshanand Baluni of Uttinda Dhangu Pauri Garhwal,  Shri Gobardhan Prasad Nautiyal of Patli-Bali, Bichhla Badalpur Pauri Garhwal , Dharma Nand Pasbola , Naini, Banghat Pauri Garhwal, Boodhanath, Unneri, Bichhla badalpur Pauri Garhwal  also had Samain manuscript with them
  I shall be forwarding mantras of Samin to you very soon.
Copyright Bhishma Kukreti


Bhishma Kukreti

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Mantra and Tantra Literature of Kumaun - Garhwal
                             Suar ka Bhed: A Mantra Protecting from Wild Animals and its Similarity with Vedik Mantra
                         सुअर  का भेद : जंगली जानवरों के  रोकथाम वाला मन्त्र व अथर्ववेद के मंत्र से समानता
                (Mantra Tantra in Garhwal, Mantra Tantra in Kumaun, Mantra Tantra in Himalaya )
                          Commentary : Bhishma Kukreti
                         Collected and  Publiched by Dr Vishna Datt Kukreti and manuscripts available from Dharma Nand Pasbola, Naini, Banghat, Pauri Garhwal  and late Ram Krishna Kukreti, Barsudi , Dwarikhal, PG
   This Mantra is part of ' Mantravali'  a literature of hundreds of miscellaneous mantras of Kumaun and Garhwal. Unfortunately it is not discovered the full Granth of mantravali . The various mantriks have manuscripts in parts of this wonderful Mantravali literature . There are Mantras as Suar ka Bhed, tota Bhagane ka mantr , Jwar ka mantra , Ghunand ka Mantra etc . It is also sure that Mantravali is not created by one creator but many Mantriks as language and deities differ from one Mantra to other
 Take example of Suar ka Mantra , the start is by Shri ganeshay namh and there is prayer of Shri ram Chandra, Seeta, Lakshman and Hanumant . This clearly shows the effect of Vaishnava Panth on Nathpanth.
      In any Mantra the following ten aspects are important :Janan (Generation) , Deepan (enlightenment or Illustration) , Bodhan (understanding ) , Tadan (Blow, Whip, Great Sound) , Abhishechan, Vimalikaran (Cleaning ) , Jeevan (life) , Tarpan (sacrifice or Offering) , Gopan (Twist, secret, )  and Apyayan (causing Fulness)
                                           सुअर का भेद
       श्रीगणेशाय नम : ॐ नमो आदेस . गुरु जी कू आदेस . एक बालकनाथ चले खेत बिच , उजाड़  खाई बालकनाथ की पड़ी दुबाई , फाणी सा हनोमान की पड़ी दुबाई बंध बंध  रे बाबा  हणीमंत बाबा सुंगरी की सूंडी कू बंध  रे बाबा दांतुणी कु बंथ रे बाबा चार पुर पैर कू बंध रे बाबा . नजर बंध करी नील्याई तो गुरु महादेव की जटा काटी पारबती पीड़ा फोड़ी खाई उधो अजनी बोलाई मेरा काम करी नील्याई तो रजा रामचंद्र की आज्ञा नी पाई सीतागावरग दांत लगाई जती लक्ष्मण की आज्ञा नी पायी . सुंगर कू बंध नी  ल्याई तो राजा रामचंद्र ज्यांक जड़ाऊँ हीरण चीतळ वार से मिर्ग्याले कू बंध के नी ल्याई तो मूरत जल्या तेरी कार दुबाई मैमंदा तेरी कार दुबाई इस सुंगर कू बंध नि कराई नी ल्याई रे बाबा हनोमान गुरु मादेव पारबती की कार दुबाई. चार खूंट को बंध नि ल्याई तो गुरु महादेव पारबती जी तुमारी कार पड़ी जाई फोरमन्त्र इश्व्रोवाच : यीं राखे बार बभूत मंत्रणी २१ चार राड़ा चारों खूंट मा रखणो  एक राड़ा बीच खेत मा रखणो पांच रोट पांच राड़ा कि पूजा ल़ाणी खरवा कि झोली करणी पांच आना भेंट करन भेद सुअर को छ
   Now you may find similarity between this  Suar ka Bhed Mantra in Vedik Mantra
                            अथर्ववेद , आठवां अध्याय , चौथा सर्ग
                     
(ऋषि - चतन . देवता इन्द्रासोमदयो मंत्रोक्ता . छंद -अनुष्टुप , जगती , त्रिष्टुप )
हे इंद्र १ हे सोम ! राक्षसों को दुःख दो , उन्हें नष्ट करो ... भक्षण करने वाले राक्षसों को मारकर हमारी ओर धकेलो और उनके पक्ष को अत्यंत निर्बल कर दो ......
  उलोकी के समान जो राक्षसी रात्री में हमे मरने दौड़ती है और अपने को अदृश्य रखती है ... वह सोम कूटने वाले पाषाण के शब्द से दुष्ट राक्षस स्वयम ही नाश को प्राप्त हो
 This is one example that the mantra of Garhwal and Kumaun are in the same pattern in terms of psychological effects as mantras of Vedas
Copyright @ Bhishma Kukreti , bckukreti@gmail.com



Bhishma Kukreti

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Folk (Mantra Tantra ) Literature of Garhwal -Kumaun
         Similarity Between Ghunad ka Mantra and a Vedic Mantra
            घुणद (दांत का दर्द )  मिटाने का मंत्र तन्त्र  की वैदिक मन्त्रों में  समानता   
 
( Mantra Tantra in Garhwal, Mantra Tantra in Kumaun, Mantra Tantra in Himalaya)
              Bhishma Kukreti
        Obviously the source of creation of Mantra culture started from Vedic era when Vedas were created . mantra are related to get relief through psychological effects.
  Mantravali is collection of miscellaneous hundreds of mantra of Garhwal -Kumaun . Many Mantras are related to curing diseases or body disorder
   following is a Mantra for curing toothache
                                      श्री गणेशाय नम : अथ घुणदा कीड़ा गाडण को मंत्र , ॐ नमो गुरु जी को आदेस , माता पिता गुरु देवता को आदेस. चल धरती को उपर आकास को आदेस चन्द्र सूर्य पौन प्राणी कु आदेस मादेव पारबती को आदेस . गुरु तो गोरखनाथ मछिन्द्र्नाथ को आदेस. झड़ कीड़ा , झड़ कीड़ा दांत का द्न्तेला विष कीड़ा झड़ नी तो महादेव पारबती का सत की दुबै . फोर्मन्त्र इश्व्रोवाच २१ बगत उड़द चौंळ मंत्री क खन्क्वाळ मारणी धडेक मा थुकाइ देणी   , शुभ मंत लाग जंत्र
       Now you read atranslation of Vedic Mantra of Atharv Ved
                            अथर्व वेद , द्वितीय अध्याय , बत्तिसंवां श्लोक
          उदय होते हुए सूर्य गोंओं के शारीर में प्रविष्ट हुए कृमियों को अपनी किरणों से  नष्ट करे .
चितकबरे , चार नेत्र वाले , श्वेतादी अनेक वर्ण और आकार वाले कृमियों को मैं उनकी देह सहित नष्ट करता हूँ
   हे कृमियो ! अत्री कण्व, जम्द्गिन के मन्त्रों से मैं तुम्हे नष्ट करता हूँ . महर्षि अगत्स्य के पुनरउत्त्पति ण होने वाले मन्त्रं से कीड़ों को नष्ट करता हूँ
      .......
हे सीन्ग्युक्त कीट ! तेरी पीडाप्रद सींग को काटता हूँ . तेरे कुशुम्भ को तोड़ता हूँ . तेरे विषयुक्त अवयव को नष्ट करता हूँ
   By the above example , it may be concluded that there is certainly the legacy of Vedic philosophy and strategies for creating Mantras in Garhwal and Kumaun
 
Reference : Dr Vishnu datt Kukreti , nathpanth : Garhwal ke Paripeksh me , page 186
Manuscrips available from Ram Krishn Kukreti, vill Barsudi, Pauri Garhwal, Dharma Nand Pasbola, Naini, Banghat Pauri Garhwal
Copyright @ Bhishma Kukreti, bckukreti@gmail.com
 


 

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