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Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख

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Bhishma Kukreti:
                गुदगुदाता लघु नाटक :- भगवान  से सौदाबाजी
                                 मूल  - जेफ़ गोइबल

                       छिंडारण अर भावानुवाद --- भीष्म कुकरेती


  (धीरे धीरे उजाला फैलता है , एक खटोलाक किनारु दिखेंद द्वी खुट दिखेंदन . मनिख का खर्राटा सुणेन्दन।  अचानक तबि  एक धमाका हूंद अर चिट्टु उज्यळ हूंद। अर सरा उज्यळ खटला पर केंद्रित ह्वे जांद )
भगवान (बड़ी जोर मा )- हे सुंदुरु   खड़ु हु भै।  दुफरा हूण वाळ च भै
(खटला पर क्वी प्रभाव नि पड़द)
भगवान - इ भै ध्यान दे मि भगवान छौं।
(तब बि सुंदुरु पर कुछ फरक नि पड़द। खटला जोर से हिलण लग जांद )
भगवान - ये खड़ु हो भै सुंदुरु
सुंदुरु  (बरमुदा अर बनयाण मा सुंदुरु चम्म से खड़ हूंद , आँख मिंडद फिर हथुन  आँख बंद करदु,  )- ये क्या काण्ड लगीं गेन ? कैन जळाइ यु हैलोजन लैम्प ? उनि बि बिजली बिल बिंडी आणु च )
भगवान - हे सुंदुरु  ! यु हैलोजन लैम्पक उज्यळ नी च यी मि छौं , सर्वरचनाकार , सर्वरक्षक भगवान
सुंदुरु (जोर से हंसुद ) -द लगा बल सुंगरुं दगड़ मांगळ ! तू अर भगवान ? छ !
भगवान  (जोर से ताळी बजान्द )- ह्यां विश्वास कर मि परमपिता परमेश्वर छौं।
 सुंदुरु -अब बताओ लालू यादव भ्रस्टाचार भजाणो मंत्र पढ़णु च अर मनिख अफु तैं भगवान बथाणु च।  ठीक च वोट दींद दैं मि मूरख बौण जांदु त यांक मतबल यु त नी कि क्वी बि मि तैं कालु -लाटु समजिक मूर्ख बणै द्यो। मीन भगवान बि दिख्युं च वैक गात अर कपड़ा अलग सि हूंदन।  मि मानि नि सकुद कि एक मनिख भगवान ह्वाऊ।
भगवान -सूण भै सुंदुरु ! मि सच्ची मा भगवान छौं।  जौंक बात तू करणी छे उ तीन किताबुं माँ , फिल्मुं माँ या टीवी सेरियलुं मा देख होलु।  मी भगवान छौं अर लोगुं तैं बताण चांदु कि भगवान उन नि हूंद जब फिल्मों मा दिखाए जांद।  मि प्रमाणित करण चांदु कि भगवान रामानंद सागर या बीआर चपड़ा का सीरियल जन नि हूंदन बल्कि    … मि भगवान छौं अरुण गोविल नि छौं।
 सुंदुरु -मेरी समज से भैर च।  खैर तो चलो होटल चलदां अर द्वी पैग मि लींदु अर द्वी तुम फिर लंच करद करद यां पर बि बहस करी लींदा कि भगवान कन हूंद।  बहुत दिनों से मीन पींद दैं बहस बि नि कार।  चलो आज मति इ मारे  जावु।
भगवान (चीत्कार ) -नहीं ! यी त मी बि बताण चाणु छौं बल भगवान लंच या डिन्नर टेबल पर बहस नि करद। मि ये ब्रह्माण्ड कु रचयिता  छौं, मई सृष्टि करता छौं ।  एक सच्चो धार्मिक व्यक्ति ना न असली धर्म हाँ असली धर्म ! ना कि कैलेंडरों मा छ्प्युं भगवान।  मेरी इच्छा का विरुद्ध म्यार ब्यापरीकरण हूणु च। मेरी हजारों सालकी छवि धूमिल ह्वे गे    …सालों   .... हरामी  … नरक जैन . सालोंन म्यार ब्यापरीकरण करीक कखि नि रख।
 सुंदुरु -रुको रुको अपण भाषा पर म्वाळ लगाओ , लगाम लगाओ
भगवान -किलै , नरक नरक , नरक।  बैठ अर मेरी बात ध्यान से सूण।
सुंदुरु  (खाट का किनारा पर आंख्युं पर हथ धरिक )- हाँ हाँ पर अपण दिमाग पर काबू कॉरो
भगवान -ओहो मीम जब मुंड ही नी च तो दिमाग बि नी च। 
सुंदुरु -हां हाँ सही आपम दिमाग ह्वेइ नि सकुद। 
भगवान -ओहो म्यार मतबल च कि मि तैं दिमाग
सुंदरु -हाँ हाँ।  चलो अपण कथा सुणा !   
भगवान - सूण म्यार संरक्षक बणनो कोशिस नि कौर हाँ !
सुंदरु -क्षमा , ब्वालो ब्वालो
भगवान -ठीक च ठीक च।  मेरी साधारण  मनुष्य वळि छवि खतम करणो काम पर लग जा। अजकाल आम लोग बि मि तैं तन्नि मन्नी शक्ति समजदन।  म्यार प्रति लोगुं बड़ी  कैजुअल अप्रोच ह्वे गे। लोग मि तैं ब्रह्माण्ड रचयिता नि समझणा छन।  लोग मि तैं अजीब फ़िल्मी झुल्लों मा , कनफणि सि कपड़ों माँ कार्टून सि समजदन। मि तैं एक बड़ी इज्जत चयाणी च। मि चांदो कि लोग उनि व्यवहार कारन जन उचित व्यवहार हूंद।  पैल लोग समय पर मंदिर जांद छा , नियम धियम से मि तैं याद करदा छा।  अब त म्यार नाम तबि सुमरिन्दन जब सबसे झूठी कसम खाण हो।  मि त अब न्यायालय या संसद मा बि झूठी कसम खाणो एक जरिया बणि ग्यों।
सुंदरु -या फिर जब लोगुं तैं छींक आंदि तब !
भगवान -क्या?
सुंदरु -रण द्यावो !
भगवान - ठीक च , ठीक च ! तेरी मा ऐ गे कि म्यार क्या मतबल च। मि चांदो कि तू यीं स्तिथि तैं पूरी बदल दे।  पूरो ओवरहॉलिंग !
सुंदरु -पर !
भगवान -अच्छा अपर नौकरी की चिंता से चिंतित ह्वे गे ? फिकर नि कौर। अरे भै भूलि गे कि मि ब्रह्माण्ड रचयिता भगवान छौं ! (छत से रुपयों बरखा हूंद )
सुंदरु -ना ! ना ! मि नौकरी या तनखा बारा मा चिंतित नि छौं    .... पर फिर बि  ....
भगवान  ( बाद्लूँ गड़गड़ाट , भगवान गुस्सा मा )-यी क्या च भै ? मीन त्वै तैं बगैर इनकम टैक्स का सौ करोड़ दिएन अर फिर बि तू म्यार अहसानमंद नि ह्वे ? भगवान इनि रोज रुपयों बरखा नि करद हाँ !
सुंदरु -क्षमा ! मि सच्ची मा तुमर अहसानमंद छौ।  पर एक समस्या च।  मि भगवान पर विश्वास नि करदु अर ते जन सॉरी तुम जन भगवान पर त कत्ते विश्वास नि करदु।
भगवान - मि नि समजणु छौं कि तू कनफ्यूज किलै छे हूणु ? मि एक ज्योति रूप मा तेर समिण छौं। फिर तू में पर विश्वास किलै नि करणु छै।  कखि तू सीणु त नि छे ?
सुंदरु -यी आप तैं समजाण बडु मुश्किल च। मीन कबि नि ब्वाल कि भगवान नी च। मि धार्मिक किस्मौ मनिख नि छौं।  पर हाँ यदि भगवान च त ठीक अर भगवान नी बि च तो बि मै पर फरक नि पड़द।
भगवान -पर अब त तू नि बोल सकुद कि म्यार अस्तित्व नी च।
सुंदरु -ओहो ! म्यार बुलणो मतबल या च कि मि ये कामौ बान सही व्यक्ति नि छौ।
भगवान -त त्यार मतबल च कि मि कै धार्मिक नेता तैं ये काम पर लगौं ? मीन यु काम बि कौर छौ।  पर यी धार्मिक नेता अपणो इ राज्य स्थापित करण मा व्यस्त ह्वे जांदन अर अपणी सत्ता रक्षा बान इन काम करण लग जांदन कि जु मनिखों वास्ता बि ताज्य हुँदैन। अर अब त क्वी रामदेव , क्वी शंकराचार्य , क्वी इमाम बुखारी या क्वी के जॉन बुल्दु बि च कि भगवान च त आम लोग सुचदन कि यि धार्मिक नेता अवश्य ही कैं पार्टी बान वोट मंगणा छन। अब त लोग यूं तैं भगवानौ एजेंट ना राजनैतिक पार्टीक ऐजेंट माणदन। 
सुंदरु -पर क्या लोग मेरी बात सूणल ?
भगवान -हाँ ! पर चूँकि तीन पैली बोल याल कि तू भगवानौ अस्तित्व पर अविश्वास बि नि करदी हाँ तो धार्मिक किस्मौ मनिख नि छे।  जा लोगुं मा जैक बोल कि मि ही भगवान छौं याने ज्योतिस्वरूप  ही असली भगवान छौं।  लोगुं तैं समझा कि मि छौं अर वी ज्योतिस्वरूप मा छौं।  संसार तैं बता कि भगवान असली त ज्योतिस्वरूप मा हूंद। लोगुं तैं समझा कि वो मेरी पूजा आत्मचिंतन से दुबर शुरू कारन जन पैल हूंद थौ। चूँकि तेरो क्वी धार्मिक भूतकाल नी त लोगुंन त्वे पर चट्ट विश्वास करण।
सुंदरु -हम ! धन्यवाद !
भगवान - भई मि सत्य बुलणु छौं। लोगुंन तेरी बात पर विश्वास करण अर अखबार व मीडियान त्वे तैं मीडिया मा प्रथम स्थान दीण।
सुंदरु -पर भगवन ! मैं नि लगद  म्यार इन बयान कि मि तैं ज्योतिरूप मा भगवान मील छा पर क्वी बि पत्रकार विश्वास कारल।  इख तलक कि क्षेत्रीय पत्रकारुंन  बि विश्वास नि करण . ऊंन बुलण कि अपण फोन से भगवान से बात करावो।
भगवान -बोल देकि भगवान मा इन फोन नि हूंद।
सुंदरु -ओहो ! आप नि समजणा छंवां।  मी तैं भगवानन दर्शन दे जन छ्वीं तो सैकड़ों साल से लगणा छन। इख तलक कि डेढ़ सैकड़ा साल का संत महात्मा साईं महाराज या साईं बाबा अब भगवान की गणत मा ऐ गेन।
भगवान -वी तो रुण च कि महात्मा भगवान बणी गेन।
सुंदरु -तो आप क्वी चमत्कार कारो
भगवान -मि तैं पता छौ कि तीन अंत मा इनि बुलण।  अरे भै मीम चमत्कार से भगवान सिद्ध करणो बान क्वी बजट नी च।  सब बजट तो पहाड़ खड़  करण या पहाडुं मा उजड़ -बिजड़ मा खतम ह्वे गे।  फिर मि बि बजट डेफिसिट मा छौं।  बहुत सा ग्लेसियर लमडाण छ पर बजट की कमी से भौत सा ग्लेसियर उनि अदा मा लटक्यां छन। चमत्कार करणो बान बड़ो पैसा लगद।  वैसे पाँव भर पैसा मा चमत्कार विषयक पिक्चर बणी जाली तो ! यदि हॉलीवुड या बॉलीवुड या क्वी टीवी सीरियल वाल तयार ह्वे जाल।
सुंदरु -अबि त आपन मि तैं सौ करोड़ देन ! अर जम्मू कश्मीर मा इथगा रगड़ -बगड़ करणो बजट कखन आई ?
भगवान -अरे उ त कुछ  पर्यावरणवादियूंन  पाप करिन तो ऊँ तैं डंड्याणो बान एडहॉक बजट लाण पड़द। भाई चमत्कार की योजना मा भौत सा खोट छन।  बस तू देवदूत बण अर लोगुं तैं बता कि परमेश्वर हूंद च अर ज्योतिस्वरूप हूंद।
सुंदरु -यदि मि ना करी द्योल तो ?
भगवान -तो भोळ तू एक सुक्युं डाळ का रूप मा पाये जैल। 
सुंदरु -अर यदि मि दुसर शहर भाजी जौल तो ?
भगवान - किलै मि तैं हंसाणि छे ?
सुंदरु -वो मि बिसर ग्यों कि आप भगवान छंवां। ठीक च मि देवदूत बणनो तयार छौं पर एक शर्त च।
भगवान - क्या शर्त च ?
सुंदरु -तुम तैं लंच मा योजना कु प्रारूप विवेचना करण पोड़ल
भगवान -ऊँ ! ऊँ !
सुंदरु -लंच कु पैसा मि द्योलु
भगवान -ठीक च त्वे तैं मि तैं वी खलांण पोड़ल जु मेरी इच्छा होली , कुछ भी मांग सकुद मि !
सुंदरु -कुछ बि !
(कुछ बि शब्दों साथ कमरा मा सामन्य उज्यळ हूंद।  फिर धुंवा फैलदो अर धीरे धीरे धुंवां छंटद तो लोग दिखदन कि एक बुड्या , सुंदुरु हथ पकड़िक जाणु च )
फिर अचानक धुप्प  अंध्यर ह्वे जांद

सर्वाधिकार @ जेफ़ गोइबल
17/9/2014

उत्तराखंड गढ़वाली नाटक , पौड़ी गढ़वाल , उत्तराखंड से गढ़वाली नाटक ;चमोली गढ़वाल , उत्तराखंड से गढ़वाली नाटक ;रुद्रप्रयाग , उत्तराखंड गढ़वाल से गढ़वाली नाटक ;टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड से गढ़वाली नाटक ;उत्तरकाशी गढ़वाल, उत्तराखंड  से गढ़वाली नाटक ; देहरादून ,गढ़वाल, उत्तराखंड  से गढ़वाली नाटक ; हरिद्वार गढ़वाल, उत्तराखंड  से गढ़वाली नाटक ; अनूदित गढ़वाली नाटक श्रृंखला
Garhwali drama from Garhwal, Uttarakhand

Bhishma Kukreti:
                 यी सतनज्या  डौर अबि बि डरांदन  !

                      खरोऴया :: भीष्म कुकरेती

    अब मि नाती नतिण्यूं वाळ ह्वे ग्योँ तो भि बचपन मा सुण्यां  कथगा इ शब्द आज बि परोक्ष या अपरोक्ष रूप से आँख दिखाणा रौंदन , धमकाणा रौंदन , खुट पर कुटंसि बांधणा रौंदन।

   सरा जिंदगी यूँ कथगा ही डौरुं तैं खुकली पर उठैक लिजाणु रौं , कंधों मा जनकैक लिजाणु रौं , जिकुड़ी पर चिपकैक लिजाणु रौं अर  आज बि हर समय अपड दगड़ सिवाळणु रौंदु।

          जब मि अपण बचपन पर नजर मारदु त बचपन की पैली याद पकड्वा की डौर च।  मतबल होश संभाळणो पैली  केवल अर केवल डौर की च। ब्वेका वु शब्द अबि बि याद आंदन कि   - ये भैर नि जै , देळि से भैर गे ना कि पकड्वा पकड़िक लीजाल, पकड्वा त्यार रामतेल  निकाळल जन कि कई साख्युं पैल एक दैं फलण गांवक अलण ज्योरूक पड़ददा कु झड़ दादा तैं पकड्वा पकड़िक लीग छौ अर फिर पकड्वान ऊँ ज्योरू तैं ऊल्टु लटकैक रामतेल निकाळि छौ ।  हरेक मा , हरेक दादी अपण बच्चा तैं देळि से भैर नि आणो बान एक ऐतिहासिक सच्चो खलनायक याने मुस्लिम उठाईगीर का चित्रण करिक डरांदि छे अर हम बालक -बालिका देळि से भैर एक नई दुनिया की खोज करण चांदा छा किन्तु वो पकड्वा डौर हम तैं सुलभ , प्रकृति दत्त गुण सतत  अन्वेषण  करण से दूर कर दीन्दी छे।  आज बि मा अन्वेषण करण मा मि तैं डौर लगद, नया -नया क्षेत्र मा जाणो सुचदि पग्गड़धारी , भयानक , निर्दयी पकड्वा याद ऐ जांद जाँसे शरीर मा अस्यो -पस्यो (पसीना ) का धारा बगण शुरू ह्वे जांदन अर अंतमा पिछलग्गु बणन मा फायदा चितांदु। 

   फिर जब हम फिरण लैक ह्वे जांद छा त सरा गांका हमसे बड़ा -बूड़ लोग डरांदा छा कि अंक्वैक जावो निथर नवा कखि तुमर घुण्ड फुटि जाल , मुंड फुटि जाल , हथ -खुट टूटि जाल , भट्युड़ थिंचे जाल, त्वे पर रोग लग जाल ।   जख हमर शरीर अर मन कठिन किन्तु रोमांचक यात्रा (गांवक सैर ) करणो उत्साहित करदा छा तो हमर वरिष्ठ हमारी रोमांचिक प्रवृति पर डौर का गरम गरम रंगुड़ फेंकिक हमारी रोमांचक प्रवृति सदा सदा का वास्ता खतम करी दींद छा।  आज यीं उमर मा बि शारिरिक नुक्सान का बारा मा सोचिक हि डौर लगण शुरू ह्वे जांद अर सच्ची पूछो तो ता जिंदगी का रोमांच इख तलक कि बस या साइकल यात्रा मा बि शारीरिक नुक्सान कु डौर  लगद।

डौर हमर दिमाग मा कीटि कीटिक भरे जांद छे।  हमारी सामाजिक शिक्षा कु आधार ही डौर छौ। 

जब बिटेन होश संभाळ अर आज तक अपण वरिष्ठों से एक वाक्य हर दिन सुणदु -   तन नि कौर! लोग क्या ब्वालल   अर यी लोग क्या ब्वालल वाक्यन मि तैं ऊँ यी पुराणो रस्तों पर चलणो मजबूर कार जू रस्ता लकीरों का फकीरों का वास्ता आरक्षित छन।  हमेशा से इच्छा हूंदी छे कि मि अफुकुण एक अभिनव , नया रस्ता बणौ  किंतु वरिष्ठों सिखयुं वाक्य "तन नि कौर! लोग क्या ब्वालल  " मि तैं पिट्याँ -खत्याँ,बेकार, ढंगार, उबड़ -खाबड़, थकाँद रस्तों पर ही चलणो मजबूर करद।

एक हैंक डरौण्या वाक्य च जु अबि बि सब में से बुल्दन - ये भीषम तू तन करणी छे अर कखि रिस्तेदार , भाई -बंद नाराज ह्वे गे तो ? अर ये वाक्यन मि तैं सफाचट निकज्जु बणै दे।  मि तैं हर समय डौर रौंद कि मि इन करुल , मि तन करुल तो कखि ब्वे- बाब, भै -बंध में से प्यार की जगा घृणा करण बिसे जाल तो ? अर कैक प्रेम नि ख्वे जावो का डौरन मि कुछ बि नि करदो।

भूत का डौर तो हम तैं जन्मदि दूधो दगड़ पिलाये जांद अर दगड़ मा बुड्या हूणों खुराक बि दूधौ दगड़ ही ही पिलाये जांद अर फिर हम ताजिंदगी वर्तमान मा रौण ही भूल जाँदा अर यूँ डौरुं चक्कर मा यु लोक ((वर्तमान ) अर परलोक (भविष्य ) की सब खुसी भेळ जोग ह्वे जांदन।

मृत्यु की तो डौर अफिक ऐ जांद अर या डौर हमारी सब संभावित तागत पर हर समय जंक लगाणी रौंद , हर संभावना पर मृत्यु भय पलस्तर लगाणु रौंद।

अब द्याखो ना ये लेख टाइप करणो बाद मि तैं डौर सताणि च कि -

पता नि पाठक Like करदा छन कि ना ?

पता नी पाठक पढ़दा छन कि ना ?

पता नि पौढिक पाठ्कुं तैं लेख पसंद आलो कि ना ?

पता नि म्यार देवदूत याने प्रेमी पाठक टिप्पणी करदा छन कि ना ?

खैर हे पाठको ! तुम नि डौरो अपणि राय निडर ह्वेक बताओ।  ह्यां आपकी टिप्पणि से मि तुमर कुछ बि नि बिगाड़ सकद तो आलोचना करण बि पोडो  तो आलोचना कारो ना ! पर कुछ तो कारो ! मेरी नराजी से नि डौरो।  उल्टां डौर तैं डराओ !

         

Copyright@  Bhishma Kukreti 18 /9/ 2014

Bhishma Kukreti:
        History of Bawani Famine, Disaster and Calamity   in Pradyuman Period

History of Last United Garhwal King Pradyuman Shah part- 12
History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -186     
   History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -434 
 
                       By: Bhishma Kukreti (A History Research Student)
                  Bawani Akal or Drought Famine of 1852 Samvat
              There was a stiff drought in Garhwal in Samvat year 1852 or 1795-96 and there was disastrous earthquake too. The drought is still remembered as Bawani ku Akal.
         The drought was so acute that there was shortage of food everywhere including forests produces. There was reduction in population of Garhwal.
           The rain deficiency was so sharp that people could not sow the seeds and they were forced to eat boiled tree bark and weeds.  Mass migration started and people became slaves in the plains. People were forced to sell the human beings.
                The border villages of Kumaon and Garhwal were already population less. The raids of Gorkhas from Kumaon on the east of Garhwal also forced people to migrate from the effected regions.
             Rohillas Musslim raiders used to rain and loot Salan ( Badlapur, Paini, Langur, Sheela, Dhangu, Dabralsyun, Udyapur, Ajmer regions) region. The villagers were also compelled to leave the region. Gorkha soldiers entered into Garhwal from Bhabhar, Langur Salan region and they used to repress people of Salan. The region was having scanty population. There was infighting for crown in Shrinagar for a century. The weakening of King’s administration increase taxes on people and people became poorer than poorest.
Captain Hardwicke travelled from Haridwar, Bhabhar, Dwarikhal, Bilkhet, Naithana and Shrinagar. Captain Hardwicke described about worsening conditions of villages. He described that there were hardly five hut in a village. Rarely, he saw ten huts in a village.

                             Earthquake of 1803
   There was sever, disastrous earthquake on Anat Chaturdasi in 18o3 in Garhwal.  There were quake jerks and shots for seven days.
  There were cracks on most of the houses of Garhwal. Many hills got crack. In many cases the water sources dried and in many cases, new water sources also emerged.  Many farm walls were also fall down.
 In Shrinagar, every house was effected by earthquakes. 80 percent of houses were so much affected that the houses were not fit for living. The palace became the piles of ruins. There was heavy rain after earthquake and it was salt in would. The records in palace were destroyed due to earthquake and it is one of reasons that we don’t get historical evidences of Garhwal.
         In Barahat Uttarkashi, the houses fell down. More than three hundreds of people lost their life and many got injured. There was total destruction in Barahat.
Animals also died in thousands in Garhwal.
 In Devprayag, many houses and temples got destroyed. There was breakage on roof of Raghunath temple. Daulat Rao Sindhiya repaired the Raghunath temple.
In many temples in Garhwal, Badrinath temple was in ruined condition after the quake. Daulat Rao Sindhiya repaired the temple and by that the originality of temple was lost. The temples of Joshimath were also fallen down. There was also destruction in Kedarnath temple.
 Thousands of people and animals died in that earthquake. The economic loss was countless.

Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com 18/9/2014
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -434
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter ….
XX    
Notes on South Asian Modern Period  History of Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Pauri Garhwal; South Asian  Modern Period   History of Chamoli Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Rudraprayag Garhwal;  South Asian Modern  History of Tehri Garhwal;  Modern  History of Uttarkashi Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Dehradun, Garhwal;  Modern  History of Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Manglaur, Haridwar;  South Asian Modern Period   History of Rurkee Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Bahadarpur Haridwar ; South Asian Modern Period  History of Haridwar district to be continued

Bhishma Kukreti:
दिमाग डिस्काउंट पर उपलब्ध हैं -  कुतगळी लगांद लघु नाटिका
                           
                       भीष्म कुकरेती
((एक ठेला माँ दिमाग धर्यां छन।  हॉकर्स धै लगांद।  तरह तरह के दिमाग , मगज , मस्तिष्क या ब्रेन डिस्काउंट में लेलो , लेलो दिमाग, ले जाओ ब्रेन )
ग्राहक - जी मि तैं एक बढ़िया सि दिमाग बथावदी !
सेल्समैन - जी ! मीम   भौत सि वेराइटी छन।  आप तैं कन मगज चयेणु च।
ग्राहक -जी आप दिखाओ तो सै।  जू दिमाग पसंद आलु मि खरीद लेलु
ग्राहक -हमर इख सबि क्रडिट कार्ड बि चलदन 
सेल्समैन -वाह
सेल्समैन -जी हमर इख डिस्काउंट इ ना बल्कणम इन्स्टालमेन्ट पर ब्रेन मिल जांदन।
ग्राहक -वो भलो भलो ! दिमाग दिखावो त सैइ 
सेल्समैन -ल्या एक लाख रुपया कु दिमाग बीस  हजार मा
ग्राहक -इथगा ज्यादा डिस्काउंट ?
सेल्समैन -हाँ यी दिमाग तीन दैं चुनाव हर्युं नेताक च।
ग्राहक -नै नै ! हर्युं नेताक दिमाग नी चयाणु च
सेल्समैन -त ल्या द्वी लाख रुपया कु दिमाग एक लाख अस्सी हजार  मा
ग्राहक -कैक दिमाग च ?अर कम डिस्काउंट किलै
सेल्समैन -एक अध्यापक का अर ये गवर्मेंट प्राइमरी टीचरो कबि बि क्वी ट्रांसफर नि कार साकु
ग्राहक -नै नै ! जरा स्टॅण्डर्डो दिमाग दिखावो
सेल्समैन -त ल्यावो तीन लाखो मस्तिष्क ढाई लाख मा ले ल्यावो
ग्राहक -कैक मस्तिष्क  च ?
सेल्समैन -यु एक रिसर्च स्कॉलरों मस्तिष्क च
ग्राहक -जरा क्वी ब्रेन टाइपो दिमाग दिखावदी
सेल्समैन -ल्या पांच लाख कु ब्रेन , इखपर क्वी डिस्काउंट नी च
ग्राहक -कैक ब्रेन च ?
सेल्समैन - प्रिंसिपलौ ब्रेन च
ग्राहक -इख पर क्वी डिस्काउंट किलै नी च ?
सेल्समैन -किलैकि यु ब्रेन अनयूज्ड  ब्रेन च।  वै  प्रिंसिपलन अपण ब्रेन कबि यूज हि नि कार

Bhishma Kukreti:
कंडळी के बहुउपयोग

                 डा..बलबीर सिंह रावत


Nettle, Urtica dioica, कंडळी  एक ऐसा सर्वतोमुखी पौधा है जो दुनिया के ठन्डे इलाकों में  सर्वत्र आसानी से उग जाता है।  यह पौधा जहां उगता है वहा से ढेर सारे रे खनिज इत्यादि अपने में ले लेता है, जिस से इसकी उपयोगिता अनमोल हो जाती है। इस अकेले एक पौधे में कई कई पोषक तत्व पाये जाते हैं जो शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाते हैं,यह रक्त संचार प्रणाली को तंदुरुस्त रखता है और रक्तशोधन भी करता है।   कंडली में भिटामिन  A ,C, K, B १-३ , B ५, कैल्सियम ,फॉस्फोरस, मैग्नीशियम , पोटासियम ,लौह , ताम्बा, बोरोन, सिलिका , जिंक , फॉर्मिक अम्ल , सेराटोनिन ,और ओमेगा ३ , -६ इत्यादि तत्व पाये जाते हैं। 
कंडळी को बर्फीले िाकों में बसंत ऋतु का टॉनिक भी कहते हैं। इसकी चाय बनाकर ठंडी करके पीने से हाजमा ठीक रहता है , बीमारी के बाद के कमजोरी को भगाने में यह चाय सहायक होती है। कन्डली की धबड़ी और साग तो हर उस पहाड़ी जन ने खाया होगा जिसने जीवन के  कुछ साल पहाड़ों में गुजारे है , आजकल  शहरों में पर्वतीय जानो की शादी व्याह की दावतों में पहाड़ी भोजन में कन्डली ऐज ए मस्ट पदार्थ का दर्जा पाती जा रही है। कन्डली शकरकंद का मीठा हलुवा घर पर बनाइये और एक नए व्यंजन का आनंद लीजिये।  इस से सूप, और नीम्बू के रस के साथ  ५-१० मिनट उबाल  कर, स्वादानुसार मसाले वाला नमक या चीनी डाल कर ठंडा पेय भी स्वादिष्ट होता है।
कण्डळी की मुलायम कोंपलों को, सुबह ओस सूखने के बाद कैंची से काटना चाहये, इसके सुक्से भी बनाये जा सकते हैं, और कंडली की कोंपलों से सुक्से बनाकर १०० ग्राम के पैकेटों में पैक करके बेचना एक अच्छा रोजगार हो सकता है। कोँपलों से नीचे के तने से, रेशे निकाल कर बाकी बची पत्तियों और डंठलों से दुधारू गायों के लिए पौष्टिक पींडा  भा बनाया जा सकता है। कंडाली शीत जलवायु वाले क्षेत्रों के रहने वाले इन्सानों और पशुओं के लिए प्रकृति की अनूठी भेंट है, बस इसके काँटों की चुभन और लम्बे समय तक रहने वाली पीड़ा से बचने की कला आनी चाहिए। झापाक लग ही जाय तो खाने के सौदे से ढोते रहिये जल्दी राहत मिल जाती है।
कंडाळी का सुक्सा श्री सुरमान सिंह रावत ( 0976146148) , घंडालू , वाया सिलोगी , मल्ला ढांगू से प्राप्त हो सकता है।

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