Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 722095 times)

Bhishma Kukreti

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                                        नमक कहे मैं जो नहीं सब ही  चीज हैं कम !

                                                               भीष्म कुकरेती
 

  नाम -   अजी ! मेरि समिण क्वी नी च , म्यार अग्वाड़ी क्वी नी च , मि नि हों त कुछ बि नि ह्वे सकद। वेद , गणित , इतिहास , व्याकरण , अर्थ आदि सब मि छौं.। बगैर नाम का क्वी कुछ नि जाण सकद   , मेरी पूजा हूण चयेंद।
   वाणी  - अहा ! घर मा ना धेला अर नाम च गुमान  सिंग रौतेला ! भारी आई अफु तैं बडु बतौण वळु ! यदि मि जि नि हूँ त वेद , ज्ञान -अज्ञान, सत्य -असत्य तैं    कु  विज्ञापित कारल ?   मे से ही धर्म -अधर्म कु ज्ञान हूंद। पूजा तो मेरी हूण    चयेंद।
मन - हाहाहा ! यदि मनिख स्वाच ना तो क्यांक नाम अर क्यांक वाक् ? म्यार कारण मनिख वाक् बुलद अर तब नाम कु नाम लींद।   कामना मीम जनम लींद। इलै मी इ लोक छौं , मी हि आत्मा छौं अर मी इ ब्रह्म छौं। उपासना तो मेरी हूण चयेंद।
संकल्प - ही ही ही! बाप ना मार सकु  मेंढकी अर बेटा बुल्दु मि छौं कमाल ! हाथ ना हिलाये तो पेट कैसे भरेगा ! मि नि हूँ  त क्वी बि संकल्प नि कर सकद , अर क्वी संकल्प नि कारल तो मनमा कनै कुछ बि गंठ्याल ? मि नि हूँ त मन की बात मन मा इ रै जालि।  पूजा तो संकल्प की ही हूण चयेंद।
चित्त -भितर नी आलण अर भैरम नाचणी बादण ! मनिखम चेतना नि आवो तो संकल्प कनकै ल्याल ? चेतना से संकल्प पैदा हूंद , संकल्प से वाणी पैदा हूंद अर वाणी नाम लींद।  पूजा का हकदार त मि छौं।
ध्यान -  गुड बुलण से मुख मिठु नि ह्वे सकद , हथेली मा राइ नि उगाये जांद,गधा से घ्वाड़ा कु काम नि लिए जै सक्यांद ।  यदि मनिख या क्वी बि ध्यान से नि स्वाचल तो एक साथ हजारों संकल्प लेकि पागल ह्वे जालो।  इलै मि याने  ध्यान ही तुम सब मादे श्रेष्ठ छौं।
विशिष्ठ ज्ञान - विशिष्ठ ज्ञान से ही मनिख ध्यान कर सकुद, विशष्ठ तर्क मनिख माँ ध्यान लांद , विशष्ठ ज्ञान ही मनिख तैं अनुशासित करद।    अतः ब्रह्म रूप मा पूजा कु असली अधिकारी मि छौं, मेरी ही पूजा हूण बेहतर च।
बल /तागत -तन सुखी त मन सुखी ! तागत नी च त सब स्याणी , गाणी , ध्याणी धर्यां का धर्यां रै जांदन।  तागत से ही छुट से छुट -बड़ु से बड़ु कार्य सम्पादन हून्दन।  तागत ही भगवान च ! तागत ही ब्रह्म च।
अन्न - हल्दीक जलड़ मील अर मूसन दुकान खोलि दे , अधभर गगरी छलकत जाय , गधा तैं झुल्ला पैराण से गधा घ्वाड़ा नि ह्वे सकद।  क्या तागत असमान  बटें टपकदि ? क्या छड़ी घुमाण से  ताकत ऐ जांदी ? बगैर अन्न खयाँ तागत कखन आलि ? तबि त बुले जांद बल अन्न ही ब्रह्म च।
जल /पाणी - वो तो अब गंगू तेली बि राजा भोज की गद्दी सम्बाळणो ख्वाब दिखणु च।  मि नि हूँ त अन्न कखन उगल /उपजल ? पाणी ही अमृत च , पाणि ही पूज्य च , जल ही ब्रह्म च।
ऊर्जा - द ल्या !बैलगाड़ी तौळौ   कुकुर समझणु कि बैलगाड़ी उ चलाणु च!  कुवा मिडुक समझणु कि कुवा से भैर क्वी संसार नी च ! काठै बिरळि मैं बणौलु पर म्याउ कु करलु ? बगैर ऊर्जा का , बगैर तेज का , बिना ऊर्जा का गर्मी , बरखा , हिंवळि कखन होलु ? अर गर्मी , बरखा , हिंवळि नि होला तो जल कखन आलु ? इलै मि याने तेज ब्वालो या ऊर्जा ब्वालो ही ब्रह्म च।
शून्यता , रिक्तता या आकाश - बड़ो ऐन अफु तैं अफिक बड़ा साबित करण वाळ ? आँख बंद करिक क्लास मा  मास्टर नि दिख्यावु त यांक मतबल यु नी च कि क्लास मा मास्टर नी च , नाक बंद करिक सड्याण खतम नि हूंद , गरम कपड़ा पैरण से वातावरणौ  तापमान नि बढ़द।  रिक्तता नि हो त ऊर्जा कु उपयोग कनै होलु ? आकास याने रिक्तता नि हो तो समय चक्र , वायु चक्र , जल चक्र , सूर्य -चन्द्र आदि ग्रहऊँ  चक्र चली नि सकद। इलै बुले जांद कि शुन्य ही ब्रह्म च।
स्मरण /यादास्त - तेल करे छम , नमक कहे मी जि ना  तो सब इ चीज छ कम्म ! ये स्मरण शक्ति ही नि हो त मनिख मनन ही नि कर सकद तो फिर क्यांक संसार अर क्यांक अन्न जल ? इलै स्मरण ही ब्रह्म बुले जांद।
आशा - द लगा बल सुंगरुँ दगड़ , मुसाक नौनु दीवान नि हूँदु , पिपळा डाळम बैठ्युं गरुड़ बि घमंड करद कि पूजा वैकि हूणी च।  यदि मि  आशा ही नि   हूं त मनिख कुछ बि स्मरण नि कारु।  इलै त बुले जांद बल आशा: ब्रह्मास्ति।
आकाशवाणी - ये अपजितो (ईर्ष्यालु ), अपर अफि प्रशंसको  ! प्राण क्या च ? प्राण का बारा मा तुमर क्या बुलण च ?
सबि नतमस्तक ह्वेक - प्राण ही माता च , प्राण ही पिता च , प्राण ही आशा कु जन्मदाता च , प्राण ही म्यार जन्मदाता च , प्राण ही शक्ति च , प्राण ही ब्रम्हांड च , प्राण ही सब कुछ च।  याने प्राण ही सत्य मा ब्रह्म च। 
( छान्दोगेय उपनिषद सप्तम अध्याय    (१-१५ खंड  )   की व्याख्या )                   

Copyright@  Bhishma Kukreti  23  /10 /2014       

Bhishma Kukreti

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  Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era

Administration, Social and Cultural Characteristics History of Garhwal in Shah Dynasty -26 

History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -215     
   History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -463 
                        By: Bhishma Kukreti (A History Research Student)

                                   Solders
    Initial period of Pal dynasty, Garhwal kings appointed solders locally – Lohaba, Badhan and Salan. Those solders were called Lobhi Solders, Badhani Solders and Salani solders. On later period, Garhwal Kings started appointing solders from outside too. The migrated Hindus also got place in the Garhwal Kingdom Army. Kings also appointed Muslim (Rohilla solders) to strengthen the defense. In the Mahipat Shah period, there were soldiers from Delhi (Dilwali); Diswali (Muslims from Plains) and Himachal Pradesh.
        There was a commander called Tunwar in Medanishah army who captured Butaulgarh. Garhwal Kings of later era used to appoint soldiers from Kangda, Himachal Pradesh too. Maedni Shah also helped Himachal Kings to fight with Guru Govind Singh. There were Faujdar and Senanayk from Himachal in the army of Pradip Shah.
                   Appointment Procedure for Solders 

          As Mughal Emperors, Garhwal King did not appoint solders directly. Faujdar and Goldar used to appoint the solders. There is no record the timing of such procedure of appointing solders by Faujdar and Goldar and not directly by the Kingdom.
  Garhwal King used to offer Jagir (Land) to Faujdar and Goldar for paying salaries to the solders.
 Goldar or Faujdar used to appoint their devotees from their own regions and from their own castes. There was no particular scientific procedure for selecting solders by Faujdar or Goldar. The main criteria for appointing solder were the person should have strong built and desire for using arrow, bow, spears etc.
   Faujdar did not care much for training and  exercises   for his solders.
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com 23/10/2014
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -464
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter ….
History of Characteristics of Garhwal Kings Shah dynasty, to be continued

XX    
Notes on South Asian Modern Period  History of Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Pauri Garhwal; South Asian  Modern Period   History of Chamoli Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Rudraprayag Garhwal;  South Asian Modern  History of Tehri Garhwal;  South Asian Modern  History of Uttarkashi Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Dehradun, Garhwal;  Modern  History of Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Manglaur, Haridwar;  South Asian Modern Period   History of Rurkee Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Bahadarpur Haridwar ; South Asian Modern Period  History of Haridwar district, South Asian History of Bijnor old Garhwal
XX
Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Rudraprayag Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Tehri Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Uttarkashi Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Dehradun Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Haridwar Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Bijnor, old Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Pauri Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Chamoli Garhwal History;


Bhishma Kukreti

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                                           बौड़ पैटाण अर माया काका पर मार पड़णो  याद
                                                        आपकी आत्मकथा , भाग -1
                                                                कथा वाचक :::  भीष्म कुकरेती

           आज से मि आपकी याने जौन सन 1980 तक गढ़वाळ मा वचपन विताइ , स्कूल मा मार खाई अर फिर भागिक प्रवास मा नौकरी पाई वळु आत्मकथा लिखणो पुठ्याजोर (कोशिस ) लगौल।
  आत्मकथा याने समळौण , संस्मरण अर वी बताण जै तैं मि महत्व दींदु।
अब द्याखो ना ! बड़ा , नामी गिरामी , वुद्धिजीवी लिख्वार आत्मकथा मा सबसे पैल अपण परिवार , ममी -पापा अर कूड़ो जिकर करदन अर मि बौड़ पैटाण से आपकी आत्मकथा शुरू करणु छौं।  असल मा आपकी आर्थिक दशा  की धुरी गौड़ -बौड़ ,ब्वेइ -बौ अर बरखा-सूखा  पर टिकीं छे तो सर्वप्रथम यी सब याद आल कि ना ?
    जन भारत मा खासकर हरियाणा मा बेटी पैदा हूणै बान क्वी प्रार्थना , इबादत , गाणी -स्याणी नि करद उनि गढ़वाळ मा बौड़ पैदा हूणै कामना लेक नागर्जा मंदिर क्वी नि जांद छौ , आज बि नि जांद ना ही क्वी भोळ जाल ।  सब तैं कुखलिम नौनु चयेंद छौ अर सन्निम /छनिम /गौशालाम बाछी चयेंद छौ।  किंतु भगवान साल द्वी सालम हरेक मौ तैं बौड़ अर बेटी देइ दींद छौ।
    यदि तुमर एक जोड़ी बल्द ह्वावन तो द्वी जोड़ी बल्द आर्थिक गणित का हिसाबन रखण मूर्खता ही माने जाली जन शायद पीएमओ मा राज्य मंत्री एकी हूंद।  तो यदि तुमर बल्दुं जोड़ी हो अर इन मा  बौड़ पैदा ह्वे जाव तो बि वै बौड़ तैं जल्दी बिचे नि जांद।  बगैर ट्रेनिंग का मजदूर अर बगैर पटयुं (हल लगाने लायक ट्रेंड ) बौड़ की क्वी कीमत नि हूंदी।  जन खांड्युं से पत्थर गडण वाळ ट्रेंड मजदूर की ध्याड़ी आम मजदूर से अधिक हूंद छे ऊनि बगैर पटयूं बौड़ तैं औना -पौना दाम ना बल्कण मा फोकट मा बिचण पड़द छौ अर पटयूं बौड़ तैं खरीदणो बान रोज क्वी ना क्वी हळया तुम तैं सलाम ठुकणो आंद रै होला।  झूट बुलणु हूँ तो तुमि ब्वालो ! हैं , नि बोल जाण ?
       दादा जी मोरणो बाद हमन कबि अपण गुठ्यारम बल्दुं जोड़ी नि देखि अर मीन क्या म्यार बडा  जी अर बुबा जीन बल्द  नि जोतिन  किन्तु म्यार बडा जीन , म्यार बुबा जीन अर मीन बौड़ अवश्य ही पैटयां (ट्रेनिंग दीण ) छन। बौड़ु ठीक से कीमत मिल जावो का बाना हम तैं बौड़ पैटाण इ पड़दा छा। 
  हमर कूड़ो  बगल मा आम रस्ता तौळ एक मौक़ा चार पांच जरा चौड़ सि पुंगड़ छा तो हर साल यि पुंगड़ पांच छै बौड़ु ट्रेनिंग सेंटर अवश्य बणदा छा। तो बचपन याने तीन चार सालक रै होलु तबी बिटेन हर साल बौड़ पैटाण दिखद -दिखद समझ मा ऐ गे छे कि बौड़ कन पैटाये जांदन।
 
            बौड़ पैटाणो जब बि छ्वीं लगदन मि तैं जोगी दादा (भैजि )  कु ट्याड़ु सिँग्या बौड़ौ बड़ी याद आंद अर जनि ये ट्याड़ -सिंग्या बौड़ै याद आवो तो स्वयमेव माया काका बि याद ऐ जांद।
         हौळ लगाणो हिसाब से बौड़ तीन चार प्रकार का हूंदन।  एक उत्साही बौड़ हूंद जु पैलि दिन से हौळ -ज्यु लैक हूंद याने इन बौड़क काँध मा ज्यु धौरो तो इन बौड़ बितक़द नी च अर द्वी चार दिनम पैटाण लैक ह्वे जांद अर एक मैना बाद हौळ लगाण लैक बि ह्वे जांद जन कि राजनीति मा ज्योतिराव सिंधिया , मिलिंद दीक्षित , अमित देशमुख , नागपुर का बीजेपी नेता फड़नवीस , हिमाचल का भूतपूर्व  मुख्यमंत्री क नौनु अनुराग ठाकुर आदि।  इन बौड़ अर पुत्र बड़ी मुस्किल से पैदा हूंदन।
  दुसर किस्मौ बौड़ इन हूंदन जु ज्यु काँध मा धारो ना अर जोर जोर से बितकण , कुतकी मारण , उठा पटक करण लग जांदन। इन बौड़ तैं ज्यु से या तो कुतगळी लगद   होली या अभ्यास नि हूण से यी बदहवास ह्वे जांदन।  इन बौडूँ काँध मा गौळ धरण पोड़द।   गौळ ज्यु जन ही हूंद किन्तु अकेला ज्यु अर यु भारी हूंद।  बौड़क काँध मा चार से सात आठ दिन तक रात दिन गौळ बंध्युं रौंद अर जब इन बौड़ ज्यु धरण से कुतगी नि मरदन त समझे जांद कि बौड़ अभ्यस्त ह्वे गे।  फिर बि आना कानी कारो तो ज्यादा दिन तक बौड़ तैं गौळ बुकण पड़द। राजनीति मा इन बौड़ छैं छन जन कि नवीन पटनायक , लालू प्रसाद यादव का सपूत अर रामविलास पासवान का पुत्र।  यी राजपुत्र राजनीति मा नि आणा छा किन्तु गौळ बुकणो बाद झूट बुलण से लेकि जातीय भाषण दीण मा यी जल्दी ही प्रवीण ह्वे गेन।
 तिसर किस्मौ बौड़ हूंदन गळया बौड़ जन कि राजनीति मा राहुल गांधी , महाराष्ट्र का भूतपूर्व मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटिल का सुपुत्र । कथगा बि गौळ ब्वाकन राजनीति युंक बस कि नि हूंदी। शायद के सी पंत बि इनि जबरदस्ती का राजनीतिज्ञ छया। फिल्मों मा बि इन बौड़ हूंदन जन कि सिल्वर जुबली किंग राजेन्द्र कुमार सुपुत्र गौरव कुमार ; राजकपूर पुत्र राजीव कपूर आदि।
       जोगी दादा का ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तिसर किस्मौ बौड़ छा।  शायद तीन चार मैना तलक ये बौड़न गौळ बोकि ह्वाल।  जब बि जोगी दादा ये गळया बौड़   तैं ट्रेनिंग द्या तो उखम सरा गांक जमघट लग जांद छौ।
   जोगी दा ये ट्याड़ु सिँग्याबौड़ौ दगड़ कबि ढब्यूं बौड़ ज्वात तो कबि बल्द।  हैंक बौड़ या बल्द अग्नै बड़द छौ त ट्याड़ु सिँग्या बौड़ पैथर सरकद छौ।  ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तैं अग्वाड़ी बढ़ानो बान जोगि दा वैक पूठ पर मुंड लगाओ , पूछ मरोड़ो पर ट्याड़ु सिँग्या बौड़ टस से मस नि हूंद छौ।  कथगा ही सोटी , डंडा अर फण्यटों से ट्याड़ु सिँग्या बौड़ पिटे गे  किन्तु ट्याड़ु सिँग्या बौड़ हौळ लगाण नि सीख। जिंदगी मा मीन जानवरूं की इन निर्दयी पिटाई नि देखि जन ट्याड़ु सिँग्या बौड़ की पिटाई द्याख।  यांसे पैल जोगिदान पचासेक बौड़ पटै छा , ट्रेंड कौर छा।  अब त उल्टां ट्याड़ु सिँग्या बौड़ का जोड़ीदार बौड़ अर बल्द जब गळया हूण शुरू ह्वे गेन तो जोगी दान ट्याड़ु सिँग्या बौड़ ही ना कै बि बौड़ तैं ट्रेनिंग नि दीणै कसम खै देन।
             अब एकी विकल्प बच्युं छौ कि ये बौड़ कि निफल्टी लगाये जावो याने बिचे जाव।  जोगी दान ट्याड़ु सिँग्या बौड़ हैंक गामा कै हळया तैं ब्याच अर पांच दिन बाद ऊ हळया गाळी दींद दींद ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तैं जोगी दाक छनिम बाँधि गे अर अपर रुपया वापस ली गे।  इन करद करद जोगी दान पांच दैं ट्याड़ु सिँग्या बौड़ मुकदान लगै याने ये बौड़ तैं ब्याच किन्तु हरेक बौड़  तैं वापस करिक ही गे। सरा क्षेत्र मा ट्याड़ु सिँग्या बौड़ ना जोगी दा कुप्रसिद्ध , बदनाम  ह्वे गे कि जोगी दा अपड़ इ  लोगुं तैं ठगद।  अब तै बौड़ तैं संडा बि नि छोड़ि सकदा छा किलैकि संडा याने शिव रूप अर शिव रूप तो अछूत ही हूण चयेंद छौ जब कि ट्याड़ु सिँग्या बौड़ पर ज्यु सरयूं युं छौ।  भौत सा बार बिचारा ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तैं जंगळ खद्याड़ कि बाग़ खै द्याल किन्तु शायद बाग बि हड़ताल मा चली गे छा अर ट्याड़ु सिँग्या बौड़ द्वी चार दिनम घौर ऐ जांद छौ।  फिर एक दिन जोगी दाक भागन एक नजीबाबादी घुड़ेत आई अर वै बौड़ तैं एक भिल्ली बदल लीगे।  फिर वै गळया  बौड़ो क्या ह्वाइ हवाई क्या नि ह्वाइ कुछ नि पता।
***भोळ पढ़िए कि  माया काका को मार क्यों पड़ी और ट्याड़ु सिँग्या बौड़  माया काका की मार से क्या संबंध था ?
                                         
               

Copyright@  Bhishma Kukreti  25  /10 /2014     
*लेख में  घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख  की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने  हेतु सर्वथा काल्पनिक है

 
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Bhishma Kukreti

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महान कुमाउँनी कवि श्री ख्याली  राम जोशी की कविताएँ
Poetries of Khyali Ram Joshi Great Poet of Kumaoni
(Presented by : Bhishma Kukreti )
दीवालिक य सुन्दर सा त्यार
जीवन में ल्यावो उज्याव अपार
लक्षमी जी आओ तुमार द्वार
शुभकामना करो हामरि स्वीकार
Xxx                    xx
पल पल सुन्दर फूल खिलो, कभ्भें नि हो कानोंक सामना
जिंदगी खुशियोंल भरी रवो,यै छू तुमुहैं हामरि शुभकामना
Xx                           xx
जगओ दी और सार दुनी कें जगमगाओ
ल्हिबेर सीता माताकें रामज्यु आप आओ
हर घर हर द्वार में तुम यास दी जगाओ
हर गों हर द्वार अयोध्या जौस है जाओ

Xxx          xx
दाग तुमार फोचिनाक कभ्भें धुलो नि धुलो
भलाई करी तुमरि तराज में तुलो नि तुलो
आजबै कान पकड़ि लियो आपण ऐबों हैं बै
भोव के पत्त तुमार आंख लै खुलो नि खुलो
Xx                        xx
चीनाक बणी दी और पटाखोंक वहिष्कार करो
ऐला दिवाई में आपण देशाक माट दगा प्यार करो
यमें मिली छू भारतीय मेहनतक चनण पिठ्यां
यनु दियांकें प्रज्वलित करि दिवाईक श्रंगार करो
Xxx       xx
तारों में यकलै चन्द्रमा जगमगों
मुश्किलों में यकलै आदिम डगमगों
काना देखि लै झन घबराया दोस्तो
काना में यकलै गुलाब खिलखिलों
Xx                 xx
ख़ुशी यदुग मिलो की आँखों आंशु जामि जाओ

टैम हवो यदुग सुन्दर कि बखत लै थामि जाओ

दोस्ती निभोंल हाम तुमु दगै कुछ यैस तरिकैल

कि दगाड़ बिताई हर पल जिन्दगी बणी जाओ
Xx                    xx
जदुग खूबसूरत आज रात्ति छी उ है खूबसूरत भोव हवो
जदुग ख़ुशी तुमार पास आज छन उ है ज्यादा भोव हवो
Xxx                             xxx
कृपा बणी रवो तुमरि हमेसा आपण नानतिना पै हे बाबा भोले नाथ सदा।
म्यार मन मन्दिर तुम बिराजो, गौरा माताक सांथ बाबा भोले नाथ सदा॥
Xx                   xx
हर सांस में हौनै रवो त्यर नामौक जाप बस जिंदगीक छू आश यै।
जब बटिक आयुं मी तेरि शरण में लागों हर पल तू म्यार पास छै॥
Xx      xx
थ्वाड़ भौत जैकें अंग्रेजी ऐं उ हैं सारि दुनि बुलें जी-जी कें
किलै सब मैस देसि समझनि आपण पहाड़ी बुलाणियांकें
आब नानतिना कें लै दूर धरनि आपण पहाड़ीभाषा धे बै
यदुग लै के गलती हैगे महाराज हामरि पहाड़ी भाषा हैं बै
Xx             xxx
कदुग जल्दी बीति जांछी उ टैम जब इजाक पास रौंछी।
जब क्वे दुःख-सुख हौंछी इजाक काखि में ख्वर हौंछी॥
Xx                       xx
दोस्तो तुमौर नि हौंण पर जिन्दगी में यदुग कमी रैं ।
मीचाहे लाख हसड़े कोशिश करूं पर आँखों में नमी रैं॥
Xx                                             xx
ब्याव सूरज कें उछाण सिखें
दियैलौ पतंगा कें जगण सिखें
घुरिणीयां कें तकलीफ हैं पर
ठोकरै इंसान कें चलण सिखें
Xx                         xx
मांफ करि द्यों भगवान लै उकें
जनरी आपणी किस्मत ख़राब हैं
उनूं कें कभ्भें मांफि निमिलैनि
जनरी आपणी नियत ख़राब हैं
Xx               xx
आजै कै दिन य पंजाबैकि धरती में पैद हौ छी एक यस लाल ।
जैल अंग्रेज राजाक जाड़ाकें हिलै बेर बणी गोच्छी उनौर काल॥
Xx                   xx
मी तुमु हैं बै कभ्भें नाराज है नि सकन
दोस्तीक रिस्त हमार ख़राब है निसकन।
तुम चाहे मिकें कदुगै भूलिबेर स्ये जाओ
मी तुमुकें याद करी बिना स्यी निसकन॥
Xxx                     xx
वैण देखनी च्यलांक, पर ऐ जानी च्येली,
नौणि खानी च्याल पर स्वस्त रौनि च्येली।
पढाई करूनि च्यलांक सफल हौनि च्येली,
ठोकर मारनी च्याल, पर समाउनी च्येली ॥
Xxx                   xx
स्वैण देखनी च्यलांक, पर ऐ जानी च्येली,
नौणि खानी च्याल पर स्वस्त रौनि च्येली।
पढाई करूनि च्यलांक सफल हौनि च्येली,
ठोकर मारनी च्याल, पर समाउनी च्येली ॥
Xx           xx
जो घर में बुड़ बाड़ीक लिजी आदर न्हें,
समझो उ घराक नजीक लै भगवान न्हें।
भुलि जानि जो ज्योंन जी मै बाबों कें,
दुनी में उनूं है बेर नीच क्वे इंसान न्हें।
के कमाक ऊं कोठि, महल, कार अगर,
मै बाबोंक रौंणाक लिजी घर बार न्हें।
Xx          xxx
चितैइक ग्वोलज्यु मी दास तुमर,तुमार चरणों में नमन बारम्बार छू।
पग पग पर हों तुमरि दयाक अहसास, तुमार दर्शनोंक मोहताज छू ॥

Xx                         xxx
हिन्दी मेरि इमान छू, हिन्दी मेरि पछ्याण छू।
हिन्दी छों मी देश लै म्यर प्यारा हिंदुस्तान छू॥
Xx               xx
त्यार खुशियों मतलब म्यार लीजि,त्येरि मुखड़ेकि हँसि हैं मेरि इजा।
तुकें पत्त छू तेरि मुखड़ैकि उदासी, मेरि हँसि कें लूटि लिजै मेरि इजा॥
Xx                                      xxx
च्येलि पावण च्यलां हैबेर आसान छू
अगर नौक य हामौर समांज निहओ
च्येलियांकें पेट में यसिक क्वे निमारो
अगर चलीनक दैजौक रिवाज निहओ
Xxx                       xx
इजाक पसिणल घर में खिलीं गुलाब
आपणी चाहत कें खुद कुतरि गे इज
जब बटिक ब्वारि ऐगे उ चुप चाप रैं
औलादक कौण छू आब सुधर गे इज
Xx                  xx
क्वे लै मुस्किलैकि आब कै कणी क्वेलै बाट निमिलन।
सायद आब घर बै क्वेलै इजाक खुट छुंई बेर निचलन॥
Xx             xxx
शिक्षक दिवस
इजैल दे हमुकें जनम
बाबु हमरि रक्षा करनी
लेकिन सच्ची मानवता
शिक्षक हमार जीवन में भरनी
सही और न्यायक बाट में हिटण
शिक्षक हमुकें बतौनी
जीवन में संघर्षों दगे लड़ण
शिक्षक हमुकें सिखौनी
ज्ञान दिपैकी जोत जगे बेर
मनमें हमार उज्याव करनी
बिद्या-धन दिबेर शिक्षक
जीवन हमार सुखौल भरनी
जिंदगी में कुछ बणण छौ तो
शिक्षकोंक सम्मान करो
मुनौव झुके बेर इज्जतैल तुम
शिक्षकोंकें प्रणाम करो|
के: आर: जोशी. पाटली (बागेश्वर)
Xx       xx
मुखौड़ देखि लोग प्यार करनी,
आत्मा कें प्यार करों क्वे क्वे।
पाखमें चढ़ै खैंच लिनि सिड़ी,
ख़ुशी कैकी सहन करों क्वे क्वे।
डबल वालोंकि सब पुज करनी,
गरीबैकि हामी भरनी क्वे क्वे।
हाम तो याद धरनूं ससब्बों कें,
पर हमूं कें याद धरनी क्वे क्वे
Xx   xxx
कौनी की प्यार बिना जिन्दगीक गुजार निहुंन,
हौवो सांच प्यार तो वीकि बराबरि रीस निहुनि।
जब करनैछू प्यार तो दोस्तों दगा करो किलैकि,
दोस्तोंक प्यार में ध्वाक जसि क्वे चीज निहुनि॥
Xx   xxx
डुबि जानि किस्ती जबलै औनी तूफान,
याद रैजानि और बिछुड़ जानि इन्सान।
याद धरला दोस्तो भौत नजदीक पाला,
भुलि जाला तो दोस्तो ढुनैनै में रै जाला॥

Xxx              xx
आपण दिल में लुकी यादोंल सवारों तुकें
तू यहाँ देख तो आपण आँखों में उतरुं तुकें
त्यर नाम आपण होटों पै सजै राखौ मील
अगर से लै जौ तो स्वैणा में पुकारूं तुकें
Xx                         xxx
पैलिक आपण नानतीनांक पेट भरें इज
फिर बची खुची में आपण संतोष करें इज
मांगनी न्हें कभ्भें के आपण लिजी इज
आंचोव फैल्यैं आपण नानतिना लिजी इज
आपण नानतिना जिन्दगिक खातिर
आँशुऔंक फूल हर मौसम में बरसें इज
जिन्दगीक सफर में मुशीबतोंक घाम में
जब कें स्योव नि मिलन तो याद ऐं इज
Xx           xx
दोस्त हमार बणनें रओ यदुग लै भौत छू,
सब हर बखत हसनें रओ यदुगै भौत छू।
हर क्वे हर बखत कैका दगाड़ रैनिसकन,
याद एक दुसरै कें करनें रओ यदुगै भौतछू॥
Xxx           xx
पाणील तस्वीर कां बनें
स्वैणोल तकदीर कां बनें
कै दगड़ी दोस्ती करो तो
सांच दिलैल करो किलैकी
य जिंदगी फिर कां मिलैं
Xx                        xxx
इजाक पसिणल घर में खिलीं गुलाब
आपणी चाहत कें खुद कुतरि गे इज
जब बटिक ब्वारि ऐगे उ चुप चाप रैं
औलादक कौण छू आब सुधर गे इज
Xx                      xxx
क्वे लै मुस्किलैकि आब कै कणी क्वेलै बाट निमिलन।
सायद आब घर बै क्वेलै इजाक खुट छुंई बेर निचलन॥

Xxx             xxx
Copyright@  Khyali Ram Joshi, Patli , Bageshwar
Notes on Kumauni Poetries, Songs from Kumaon; Kumauni Poetries, Songs from Udham Singh Nagar Kumaon; Kumauni Poetries, Songs from Nainital, Kumaon; Kumauni Poetries, Songs from Almora, Kumaon; Kumauni Poetries, Songs from Champawat Kumaon; Kumauni Poetries, Songs from Bageshwar, Kumaon; Kumauni Poetries, Songs from Dwarhat, Kumaon; Kumauni Poetries, Songs from Pithoragarh Kumaon;

Bhishma Kukreti

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Salaries Procedures for Soldiers in Garhwal in Pal /Shah Dynasty Rule

Administration, Social and Cultural Characteristics History of Garhwal in Shah Dynasty -27 

History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -216     
   History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -464 
                        By: Bhishma Kukreti (A History Research Student)

                                    Salaries by Faujdar
           Fuajdar or regional commanders or commanders used to pay salaries to their own soldiers. By this the Kings were from hurdles of appointing or punishing the soldiers. It was easier to administrate the tax collection and to keep law and order under control in nearby regions of the capital Shrinagar. However, it was difficult to keep administration under control far away from the capital.
     Rohillas , jat, Gujjar, Raghad, Rajput, Sikhs , Sirmauri used to attack on Dehradun , Bhabhar and Bijnor regions. Garhwal Kings adapted the procedure to offer charge to Faujdar for tax collection and protection to those bordering regions. Due to that wrong procedure, Garhwal Kings lost the rule over Bijnor, Haridwar and many times in Dehradun. Many times, Bhabhar was looted by Rohillas and Muslims. Fuajdar used to appoint soldiers and used to look after the defense and tax collection. There was always ill hearted competition for getting Faujdar position among administrators in Shrinagar.
   Faujdar used to get salaries or money from Jagir. Dr Dabral mentions that Doon and Salan Faujdar used to get salaries of one and quarter lakh. Faujdar used to spend maximum money on salaries of solders from the amount of Faujdari.  Faujdar had to deposit certain fixed amount in treasury too.
                             Late Payment to Soldiers 
  Faujdar used to delay the salaries to soldiers. Faujdar were more attentive in offering salaries to soldiers when they were in trouble. It was thought that if soldier salaries were not kept by Faujdar or Kings, soldiers would leave them for another Faujdar or King. Many times, after too much delay in getting salaries, the soldiers used to disturb the capital. There were many instances when soldiers disturbed the king in Shrinagar for their salaries.
                                 Awards to Soldiers
                   King used to offer awards and rewards to brave soldiers. Award or reward was called ‘Raut’.  The King used to offer lands to ‘Raut’ awardees and there was no tax on ‘Raut’ land. The awardees were called ‘Rawat’.
  King and Faujdar used to offer other gifts to brave soldiers as award certificate (copper plate ) Khilat, Horses etc. Faujdar had right to have Naubat before his courtyard and Nishan or State flag when marching.


Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com 25/10/2014
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -465
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter ….
History of Characteristics of Garhwal Kings Shah dynasty, to be continued

XX    
Notes on South Asian Modern Period  History of Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Pauri Garhwal; South Asian  Modern Period   History of Chamoli Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Rudraprayag Garhwal;  South Asian Modern  History of Tehri Garhwal;  South Asian Modern  History of Uttarkashi Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Dehradun, Garhwal;  Modern  History of Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Manglaur, Haridwar;  South Asian Modern Period   History of Rurkee Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Bahadarpur Haridwar ; South Asian Modern Period  History of Haridwar district, South Asian History of Bijnor old Garhwal
XX

Bhishma Kukreti

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                            टूर ऑपरेटर द्वारा प्रदर्शनी में भाग लेने हेतु  समयबद्ध तैयारियां

                        Time Bound Planning -Activities of Tour Operators for Participating in Trade Fair


                      (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--92  ) 

                                                      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 92   

 
                                               लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
 
किसी भी स्थानीय , अंतर्देशीय , विदेशी स्थल की प्रदर्शनी में भाग लेने हेतु व्यापारी या टूर ऑपरेटर को निम्न समयबद्ध तैयारी करनी होती है -

                                       प्रदर्शनी से 12 महीने पहले तैयारियां

१- किन किन यात्रायें , यात्रा स्थान व सेवाओं का चयन जो प्रदर्शनी में बेचने हैं या नए उत्पाद /सेवा जिन्हे अवतरण करना है
२- जगह /स्टाल के क्षेत्रफल का आकलन
३-पुरानी प्रदर्शनियों का पुनर्आकलन , विश्लेषण
४- शुरुवाती बजट प्रस्तुतीकरण व विश्लेषण
५- प्रदर्शनी संस्थान के साथ संवाद स्थापित करना
६- प्रदर्शनी के नियमावली का अध्ययन
७- प्रदर्शनी में रजिस्ट्रेसन करवाना आदि
८- प्रदर्शनी संस्थान के साथ लेन  देन   करना आदि
 
                                 प्रदर्शनी से 10  महीने पहले तैयारियां     

१- प्रदर्शनी हेतु प्रचार योजनाएं बनाना और उन्हें कार्यावानित करना
२- प्रचार हेतु बजट बनाना
३-सूचना  व विक्री माध्यमों का चयन
४- प्रदर्शनी हेतु अपनी आवश्यकताओं  व बजट बनाना
५- ट्रिप /यात्रा /टिकेट।/ होटल आदि का प्रबंध करना
                             प्रदर्शनी से 8 -10  महीने पहले तैयारियां
१- प्रदर्शनी के लिए प्रचार , सूचना आदि का पक्का करना
२- प्रदर्शनी बाद की क्रियाओं का बजट व समयबद्ध कार्य का पक्का करना
३- कई योजनाओं व कार्यों को मूर्त रूप देना व बजट
४- भूल आदि को दूर करना
                            प्रदर्शनी से 6 -8   महीने पहले तैयारियां

१- प्रचार -प्रसार - विक्री व अन्य लघुतम बातों को मूर्त रूप देना
२- सूचनाओं को ग्राहकों व सहायकों , संस्थानों के साथ सम्पर्क साधना
३- प्रदर्शनी संस्थान व अन्य संस्थानों के साथ व्यवसायिक सम्पर्क व सूचना आदान प्रदान
४- प्रदर्शनी हेति आवश्यक ऑर्डर देना
५- परिवहवन आदि का प्रबंध व ऑर्डर देना
६- स्टाल डिकोरेसन , डिजाइन आदि का आकलन व ऑर्डर देना

                             प्रदर्शनी से 4 -6   महीने पहले तैयारियां

१- कई कार्यों व संस्थानों के मध्य समन्वय
२- नए ग्राहकों, सहायक संस्थानों व व्यापरियों को जुड़ने के साधन ढूंढना व उनसे सम्पर्क करना
३- प्रदर्शनी से संबंधित उत्पाद व सेवाओं के लिए आदेश (ऑर्डर ) देना
४- कई अन्य इंसेंटिवों की योजना और उन्हें कार्यवानित करने के लिए स्थिर करना

                           प्रदर्शनी से 2 -4   महीने पहले तैयारियां
 १-विपणन कार्यों में तेजी लाना
२- कार्य आबंटन
३- प्रेस रिलीज भेजना , सूचना भेजना
४- पेमेंट आदि करना या इंतजाम करना
५-पास /निमंत्रण भेजना
६- ग्रहक रिजिस्ट्रेसन आदि का प्रबंधन
७ -उन वस्तुओं व सेवाओं को चेक करना जिन्हे प्रदर्शनी में ले जाना है और उनसे संबंधित प्रबंधन
८- प्रेस कोन्फेरेंस आदि का इंतजाम

                                         प्रदर्शनी से    O महीने पहले तैयारियां

१- स्टैंड आदि का पूरा करना उन्हें प्रदर्शनी तक पंहुचाना , प्रदर्शनी का इंतजाम

२- चेकलिस्ट के हिसाब से कार्य पूरा करना

३- प्रदर्शनी लगाना व प्रबंध करना

४- प्रतिदिन प्रदर्शनी का प्रशासन करना , गग्राहकों की सूचि बनाना आदि

५- स्टाफ के साथ , सेलमैनो /गर्ल्स के साथ समन्वय व सूचना आदान प्रदान और आवश्यकता पड़ने पर रणनीति /कार्यनीति बदलना

६- सभी सूचनाएं जैसे पर्यटन बजार में नए स्थान , उत्पाद , सेवाओं , नए एजेंटों का अवतरण , प्रतियोगियों आदि की जानकारी इकट्ठा करना


                     प्रदर्शनी के तुरंत बाद के कार्य

१- स्टाल को तोडना व स्टाल , प्रदर्शनी हेतु प्रयोग किये उत्पाद को वांछित स्थान तक पंहुचाना, परिवहन , स्वयं का परिवहन यात्रा प्रबंध

२- अपने स्टाफ के साथ बैठक

३- किराया आदि का पेमेंट हो तो उसे चुकाना

४- ग्राहक -लीड आवश्यक कार्यवाही

                प्रदर्शनी के बाद के कार्य

१- प्रदर्शनी का पूरा विश्लेषण व नकारत्मक -सकारात्मक बिन्दुओं का अध्ययन

२- प्रदर्शनी से लाभ -हानि लेख जोखा

३- पेमेंट करना

४- ग्राहकों को वांछित सूचनाये व उत्पाद आदि पंहुचाना

५- ग्राहकों से संबंध स्थापितिकरण व संपर्क , ग्राहक लीड के हिसाब से कार्य

६- अन्य बचे कार्य पूर्ति आदि

Copyright @ Bhishma Kukreti  25 /10//2014


Contact ID bckukreti@gmail.com

Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल


Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and  Hospitality Industry Development  in Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Haridwar Garhwal, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development in Pauri Garhwal, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Dehradun Garhwal, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Tehri Garhwal, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Chamoli Garhwal, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Nainital Kumaon, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Almora Kumaon, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Champawat Kumaon, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Bageshwar Kumaon, Uttarakhand; Time bound Activities for Exhibition for Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development in Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand;


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                               बौडौ गळया हूण अर माया काका कु मार खाण

                                          आपकी , अपणी  आत्मकथा , खुदेणो कथा , भाग -2       

                                              कथा वाचक :::  भीष्म कुकरेती
           

                     माया काका कु बि आम गढ़वळि तरां बुबाजी छा , ब्वे छे , भाई -बैणि छे पर वैन अपण ददि -ददा नि देखि छा। माया काकाक बुबाजी याने सचिदा दादा जीक बि आम गढ़वळि  किसाणु  तरां गौड़ , बल्द , ढिबर -बखर छा पर भैंस नि छौ पर  कव्वा - कुत्तौं  तैं खाणो खिलान्द छा। आम गढ़वळयुं तरां चौक बि साफि रौंद छौ , रुस्वड़ साफ़ छौ अर पाणि भांडु  तौळ खौड़ रौंद छौ।  आम गढवळयुं तरां सचिदा दादा जीक बड़ो परिवार छौ।

              माया काकाक जनम   ना तो ग्रहण  , ना मूळ नक्षत्र मा ह्वे छौ अर साधारण नक्षत्र मा ह्वे छौ तो माया काका का नक्षत्रुं  से सचिदा दादा जी,  दादी अर तीन बड़ा भाई बैण्यूं का नक्षत्रुं   तैं  क्वी खतरा नि छौ तो माया काका की बि  पूछ नि छे । वै बगत हरेकाक द्वी नाम हूंद छा एक नाम पंडित नक्षत्रुं हिसाब से धरद छौ अर दुसर नाम ददि -ननि -ब्वे -बाब  बचणो बान , दाग नि लगो , घात नि लगो का बान धरदा छा जन कि घुत्ता , गुन्दरू , मख्वा , जोगी आदि आदि अर तिसर नाम मनिखौ कार्यकलाप से गाँ -गौळ पैथर धरदो छौ । चूंकि माया काका से बड़ा तीन हौर बच्चा बच्यां छा तो घूरा दादी जी तैं माया काका तैं बचाणो क्वी बड़ी चिंता नि छे तो माया काकाक बचणो बान अलग से नामकरण नि ह्वे बल्कि जन्मपत्री कु नाम से ही माया काका तैं पुकारे जांद छौ।  हाँ गाँ वळ घूरा दादीक पीठ पैथर माया काका कुण दुमुंड्या बुल्दा छा किलैकि मया काका कु मुंड  शरीरो अनुपात से बड़ु छौ।

          गढ़वळि बच्चो समान , दुमुंड्या काका मळयो;, बाड़ी -पळयो ;  सचिदा दादा -घूरा दादीक श्रुति से जमा कर्याँ शब्दकोश मा  जथगा बि गाळी  रै होलि ऊँ सदाबहार गाळयुं बेहिचक  सेवन करिक , खूब  मार खैक बड़ु ह्वे गे। खांद -पींद मवाशौ नाता ना ; बामण हूणों नाता ना बल्कण मा वै बगतौ रिवाजौ डौरन सचिदा दादा जी तैं दुमुंड्या काका तैं माया से मायाराम घोषित करण जरूरी ह्वे गे याने माया काका तैं चौकल दीण जरूरी ह्वे गे छौ। चौकल दीण से ही माया काका स्कूलम भर्ती ह्वे सकद छौ अर सचिदा काकाक बखर छया कि जु माया काका तैं चौकल दीण से रुकणा छा।  यदि माया काका तैं चौकल दीण तो समस्या बखर चराणो जि आणि छे। खैर वै बगतौ रिवाजन सचिदा काका तैं विवश कार कि माया काका तैं स्कुल भिजे जावो तो सचिदा दादा तैं चौकल दीणो दिन निकाळणो बान बामणम जाण ही पोड़। 

           कुछ पूजा या श्लोक वाचन का बाद बामण बि तयार छौ , चौकल बि तयार छौ , लाल माटु   बि चकाचक तयार छौ बस दूल्हा याने मायाराम जी की इंतजारी छे।  जब तक चौकल नि सज छौ तब तलक माया काका नया  मलेसिया का कुर्ता -सुलार मा फर्र फर्र करिक घौरम हि फुदकुणु छौ पर जनि माया काकन चौकल मा माटु द्याख , अर तयार बामणो अंगुळि  द्याख कि माया काका तैं पिसाब लग गे।  पिसाब करणो बान माया काका गौं फिरणो हि चलि गे , बड़ी मुस्किल से काका की बड़ी बैणि माया काका तैं खेंचिक लायी।  जनि बामण जीन सरस्वती पूजा का श्लोक ब्वाल कि माया काका तैं झाड़ा लग गे। दादा जीन गाळी से अर एक थप्पड़ से काका तैं रुकणो  बोल , किन्तु शायद झाड़ा कुछ ही ज्यादा लगीं छे कि माया काका तैं टट्टी करणो इजाजत दिए गे।  झाड़ा करणो शिल्पकारुं मुहल्ला तौळ जाण पड़द छौ त माया काका हुस्यर बाड़ाक अणसाळ जिना चलि गे।  अब जब बिंडी देर ह्वे गे अर माया काका नि ऐ तो द्वी दूत भिजे गेन।  दूतुं आँख चंख लगि गेन जब उंन द्याख कि बामणु छ्वारा याने माया काका ल्वार  हुस्यर बाडा दगड़ बैठिक दाथी पळयाणु च।  खैर दूत माया काका तैं खैंचिक ड्यार चौक मा लैन, पाणी बरताणो अभिनय बि ह्वे। फिर जनि माया काका चौकल का समिण आई अर फिर वै तैं पिशाब लगी गे।  अबै दै सचिदा दादान अफिक माया काका क बाळ पकड़िक पिशाब करायी।

           

खैर जब माया काका चौकल का समिण बैठ तो लिखणो बान निर्देशिका अंगुळि  खुलणो जगा काका अंगुळी  टेढ़ी कर द्यावो।  बड़ी मुस्किल से मार पीटिक बामण जीक कोशिस से माया काकान ऊँ अर न ही ल्याख।  किन्तु भगवान की दया से चौकल दीणो कर्मकांड सुखी शान्ति से निपटि गे।  यद्यपि बामण जी तैं मोरद दैं  बि मलाल छौ कि जिंदगी मा युइ नौनु छौ जै तैं पूरा ऊँ , न , म , सि , ढ़ंग नि सिखै सकिन।

  अब सात साल कु ढाँट तैं धके -धकैक स्कूल बि भिज्याण लग गे।   माया काका कु स्कूल से मास्टरुं गाळी दीणै आवृति मा आशातीत वृद्धि हूंद गे , मास्टरुं पिटणो रचनाधर्मिता मा अंदादुंद विकास हूंद गे।   मास्टरुं समिण  चैलेन्ज , एक चुनौती छे , एक चिंता कु विषय छौ कि माया काका तैं शिक्षा कनै दिए जाव।  माया काका तैं सिखणम इंट्रेस्ट ही नि आंद छौ।  पर ड्यारम माया काका छुटि उमर मा बि कील , निसुड़ी बणै दींद छौ , पैगुड़ी , ज्यूड़ , नाड़ु आदि बणाण मा प्रवीण ह्वे गे।  स्कूलम पता नी कथगा बेंत , कथगा लाठी खपिन धौं किन्तु क्वी बि मास्टर माया काका मा पढणो वास्ता आकर्षण पैदा नि कौर साक। माया काका अर मास्टरों मार दुसरो पर्यायवाची शब्द बण गे छा।

        चूँकि रिवाज पढ़ाणो छौ तो माया काका तैं स्कूल भिजे ही जांद छौ अर दर्जा पांच तक आंद आंद कथगा ही मास्टर रिटायर ह्वेन , स्कूल का बड़ा बड़ा पत्थर बि हाई स्कूल का पत्थर बणी गे छा किन्तु माया काका अबि तलक दर्जा पांच तक ही पौंछ।  हरेक कक्षा पास करण मा कम से कम द्वी साल लगांद छौ फिर बि माया काकन कबि बि घमंड नि कार।  दर्जा पांच मा जब माया काका तिसर दै इमतान दीणो गे तो सब डिप्टी इंस्पेक्टर साब भगवती प्रसाद पांथरी जीन  सचिदा दादा तैं बुलाइ अर दादा जीक  खुट मा मुंड धरिक प्रार्थना कार कि मास्टरों कु जानो  ख्याल कारो।  असल मा हमर आधारिक विद्यालय मा क्वी बि अध्यापक , इख तलक कि मरखुड्या से मरखुड्या मास्टर बि आणो तयार नि छा। तो एक समझौता का तहत पांथरी जीन माया काका तैं पास कार अर सचिदा दादान सौं घटि छौ कि माया काका की पढ़ाई बंद करे जाली। तो माया काका तैं छटी क्लास मा नि भिजे गे।

               चूँकि तब रिवाज ऐ गे छौ कि कृषि कार्य एक निसप्रिय , हीन , जयूँ -बित्युं कार्य च तो माया काका कृषि कार्य मा विशेषज्ञ  हूणों उपरान्त बि माया काका तैं सचिदा दादा जीक गद्दी नि मील अपितु ऊँ तैं दिल्ली भिजे गे अर माया काका तैं एक गैरेज मा काम मिल गे।  चूँकि यु काम माया काका की प्रवृति से मेल खांद छौ तो माया काका की प्रोग्रेस गति पूर्वक ह्वे।  आज माया काका तीन बड़ा गैरेजों मालिक च अर पढ्या -लिख्यां काकाक तौळ काम करदन।  भारत क्या अधिसंख्य देसुं मा बच्चों तैं ऊंक प्रवृति, प्रकृति ,  मति का हिसाब से शिक्षा नि दिए जांद तो इन मा माया काका सरीखा चरित्र पैदा हूंदन अर मे सरीखा लिख्वारो बान संस्मरण कु एक चरित्र बणदन।

Copyright@  Bhishma Kukreti  26  /10 /2014     
*लेख में  घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख  की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने  हेतु सर्वथा काल्पनिक है

 
Garhwali Humor in Garhwali Language, Himalayan Satire in Garhwali Language , Uttarakhandi Wit in Garhwali Language , North Indian Spoof in Garhwali Language , Regional Language Lampoon in Garhwali Language , Ridicule in Garhwali Language  , Mockery in Garhwali Language, Send-up in Garhwali Language, Disdain in Garhwali Language, Hilarity in Garhwali Language, Cheerfulness in Garhwali Language; Garhwali Humor in Garhwali Language from Pauri Garhwal; Himalayan Satire in Garhwali Language from Rudraprayag Garhwal; Uttarakhandi Wit in Garhwali Language from Chamoli Garhwal; North Indian Spoof in Garhwali Language from Tehri Garhwal; , Regional Language Lampoon in Garhwali Language from Uttarkashi Garhwal; Ridicule in Garhwali Language from Bhabhar Garhwal; Mockery  in Garhwali Language from Lansdowne Garhwal; Hilarity in Garhwali Language from Kotdwara Garhwal; Cheerfulness in Garhwali Language from Haridwar;



Bhishma Kukreti

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                  Number of Military Soldiers in Garhwal in Pal /Shah Era
Administration, Social and Cultural Characteristics History of Garhwal in Shah Dynasty -28 

History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -217     
   History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -465 
                        By: Bhishma Kukreti (A History Research Student)

  According to available historical records, following numbers of soldiers were in Garhwal Kingdom at various times –
1-Jesuit traveler Antonio de Andrade stated (1623) that there were eighty thousand soldiers including cavalries.
2-in 1624, in Shyam Shah period, there were 12000 soldiers with 11000 guns and twenty canons  in first battalion for Tibet attack, second battalion had 20, 000 soldiers and third battalion had lesser soldiers. According to Father Azevedo, the Garhwal Kingdom army was having 40,000 soldiers.
3- According to Maularam, when in 1635, Mahipat Shah attacked on Kumaun, there were one and quarter lakh soldiers in Garhwal Army.
4- When Pradip Shah attacked on Kumaon in 1755, there were one and quarter lakh soldiers in Garhwal Army.
5- According to copper plate inscription to Shivdev Joshi by Kumaon King Deepchand, there were three and half lakh soldiers in Garhwal Army.
6- According to Hardwicke in 1796, there were permanent 1000 soldiers in Shrinagar, and other 4000 were in other parts. There were six thousand soldiers in Langurgadh in 1792.
   Definitely, it was not possible to have 1, 00, 000 or more soldiers in Garhwal Kingdom. There were 100000 or 150000 able or healthy men in Garhwal. That means the numbers of soldiers would be between thirty and forty thousand only.   
  Usually, Thokdar used to keep less soldiers but would boost (lied) the numbers before the King.When King used to see the numbers, Thokdar used to call soldiers from other Thokdars.
When needed Thokdar used to call Padhan and they used to send men with wood rods.
 
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com 26/10/2014
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -466
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter ….
History of Characteristics of Garhwal Kings Shah dynasty, to be continued

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Notes on South Asian Modern Period  History of Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Pauri Garhwal; South Asian  Modern Period   History of Chamoli Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Rudraprayag Garhwal;  South Asian Modern  History of Tehri Garhwal;  South Asian Modern  History of Uttarkashi Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Dehradun, Garhwal;  Modern  History of Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Manglaur, Haridwar;  South Asian Modern Period   History of Rurkee Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Bahadarpur Haridwar ; South Asian Modern Period  History of Haridwar district, South Asian History of Bijnor old Garhwal
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Bhishma Kukreti

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                            टूर ऑपरेटरों हेतु ब्रोचर्स  या विवरण पुस्तिका
                                    Brochures for  Tour Operators

           (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--93 ) 

                                                      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 93   

 
                                               लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

विपणन में ब्रोचर  या विवरण पुस्तिका का बड़ा महत्व होता है। ब्रोचर्स अधिकतर A -4 साइज में, रंगीन प्रिंटिंग का ,  ग्लॉसी कागज का, प्रथम व आखरी पन्ने मोटे कागज का होता है जी कम्पनी की छवि वर्धन व ग्राहकों को समुचित सूचना प्रदान करता है। रंग  ही हों तो भले लगते हैं और किफयती भी।
ब्रोचर या विवरण पुस्तिका में निम्न बातों का ध्यान रखा जाना -
१- कम्पनी का न्यायिक, कम्पनी ऐक्ट के हिसाब से जरूरी परिचय व पोस्टल पते
 २-कम्पनी का इतिहास , कम्पनी के  उदेस्य और दूरदृष्टि
३- यात्र स्थलों का विवरण /परिचय /मौसम की जानकारी सहित
४- यात्राएं समय बद्ध  हों तो तिथियों का विवरण
५- यात्रा /परिवहन के साधन विवरण                           
६-रहने के स्थानो /होटलों का विवरण
७- भोजन प्रबंध का विवरण
८- अन्य सुविधाएँ
९- बुकिंग नियम
१०- पासपोर्ट , वीसा नियमों आदि जानकारी
११- मौसम अनुसार कपड़ों की जानकारी
१२- मूल्य / कीमत नीति
१३- इन्सुरेंस नीतियां
१४- स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक व  संबंधी  सूचनाएं
१५- कानूनी सलाह /वैधानिक चेतावनियां
१६- यात्रा में आने वाली कठनाईयां व निराकरण  संबंधी सूचनाएं
१७- नक्से
१८- यात्रा स्थानो का नक्सा /  फोटो आदि
१९० गाइडलाइन्स
२०- क्या करें व क्या ना करें और अन्य आकर्षण
ब्रोचर बनाते समय निम्न बातों का ध्यान आवश्यक है -
कवर पृष्ठ आकरचक हो और ध्यान आकर्षित कर सके
रंगों का चुनाव ग्राहकों की रुचिअनुसार हो
धार्मिक विवाद से दूर हो.
भाषा ग्राहकों के अनुसार हो , यदि दुभाषा बहुभाषाओं का प्रयोग आवश्यक हो तो प्रयोग करना चाहिए
फोटो वास्तविक व चित्तर्षक हों।
विवरण समझ में आने लायक हो और गलतफहमी या संसय पैदा ना करे।  अलंकृत भाषा प्रयोग हो किन्तु द्विअर्थी शब्द ना ही  प्रयोग हों तो सही है।

Copyright @ Bhishma Kukreti  26 /10//2014


Contact ID bckukreti@gmail.com

Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल

Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and  Hospitality Industry Development  in Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Haridwar Garhwal, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development in Pauri Garhwal, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Dehradun Garhwal, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Tehri Garhwal, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Chamoli Garhwal, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Nainital Kumaon, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Almora Kumaon, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Champawat Kumaon, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Bageshwar Kumaon, Uttarakhand; Brochures for  Tour Operators in Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development in Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand;

Bhishma Kukreti

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Tum Chup Kilai Chhin:  Garhwali Poetries about Pain of Migration and Social Changes

                  Critical Review of Garhwali Literature- 2288
                     (Review of Modern Garhwali Literature series)
  Review of Garhwali Poetry Collection ‘Tum Kilai Chhin’ by Deepak Nautiyal ‘Nishant’ 
           Review by: Bhishma Kukreti (Regional Language Promoter)
 
              Deepak Nautiyal is Hindi poet, Garhwali drama writer, lyrist and Garhwali Poet. Tum Chup Kilai Chhin is about showing pain of migration from Garhwal and emergence of new social changes.
 There are 40 Garhwali poems in this volume.
The poetries deal with many aspects as –
Migrants not taking care of their houses, land in native place in Garhwal (Tum Chup Kilai Chhin)
Dream drifting of women and their pain (Man ki Ginak)
Migrated Garhwali ignoring their native villages (Sweena Dekhi)
Village councilors ignoring welfare works (Padhan Dada)
Social and economical changes in hills (Pahad Badlige)
 No benefits by new state Uttrakhand creation (Malamal )
There are poems about pain, pathos, ethos etc.
   The poems are of free verse types.
The poet uses various local language phrases, proverbs to beautify the poetries. The language og poems is simple and even the created images are understandable.
Deepak uses phrases to make the poetry understandable and creating effective images.
 Overall the collection is appreciable efforts.
Tum Chup Kilai Chhin
Garhwali Poetry Collection
Poet – Deepak Nautiyal
Year – 2013
Winsar Publishing Co.
4 Dispensary Road
Dehradun
Contact 085780696
deepu.nautty@gmail.com
Price Rs. 100/-
Copyright@ Bhishma Kukreti 26/10//2014
Bhishma Kukreti, 2013, Angwal, Garhwali Kavita Puran (History of Garhwali Poetry) Dehradun, India 
Critical Review of Garhwali Literature to be continued…
Critical Review of Garhwali Poetry Collection to be continued…
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