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Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख

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Bhishma Kukreti:
                                        नमक कहे मैं जो नहीं सब ही  चीज हैं कम !

                                                               भीष्म कुकरेती
 

  नाम -   अजी ! मेरि समिण क्वी नी च , म्यार अग्वाड़ी क्वी नी च , मि नि हों त कुछ बि नि ह्वे सकद। वेद , गणित , इतिहास , व्याकरण , अर्थ आदि सब मि छौं.। बगैर नाम का क्वी कुछ नि जाण सकद   , मेरी पूजा हूण चयेंद।
   वाणी  - अहा ! घर मा ना धेला अर नाम च गुमान  सिंग रौतेला ! भारी आई अफु तैं बडु बतौण वळु ! यदि मि जि नि हूँ त वेद , ज्ञान -अज्ञान, सत्य -असत्य तैं    कु  विज्ञापित कारल ?   मे से ही धर्म -अधर्म कु ज्ञान हूंद। पूजा तो मेरी हूण    चयेंद।
मन - हाहाहा ! यदि मनिख स्वाच ना तो क्यांक नाम अर क्यांक वाक् ? म्यार कारण मनिख वाक् बुलद अर तब नाम कु नाम लींद।   कामना मीम जनम लींद। इलै मी इ लोक छौं , मी हि आत्मा छौं अर मी इ ब्रह्म छौं। उपासना तो मेरी हूण चयेंद।
संकल्प - ही ही ही! बाप ना मार सकु  मेंढकी अर बेटा बुल्दु मि छौं कमाल ! हाथ ना हिलाये तो पेट कैसे भरेगा ! मि नि हूँ  त क्वी बि संकल्प नि कर सकद , अर क्वी संकल्प नि कारल तो मनमा कनै कुछ बि गंठ्याल ? मि नि हूँ त मन की बात मन मा इ रै जालि।  पूजा तो संकल्प की ही हूण चयेंद।
चित्त -भितर नी आलण अर भैरम नाचणी बादण ! मनिखम चेतना नि आवो तो संकल्प कनकै ल्याल ? चेतना से संकल्प पैदा हूंद , संकल्प से वाणी पैदा हूंद अर वाणी नाम लींद।  पूजा का हकदार त मि छौं।
ध्यान -  गुड बुलण से मुख मिठु नि ह्वे सकद , हथेली मा राइ नि उगाये जांद,गधा से घ्वाड़ा कु काम नि लिए जै सक्यांद ।  यदि मनिख या क्वी बि ध्यान से नि स्वाचल तो एक साथ हजारों संकल्प लेकि पागल ह्वे जालो।  इलै मि याने  ध्यान ही तुम सब मादे श्रेष्ठ छौं।
विशिष्ठ ज्ञान - विशिष्ठ ज्ञान से ही मनिख ध्यान कर सकुद, विशष्ठ तर्क मनिख माँ ध्यान लांद , विशष्ठ ज्ञान ही मनिख तैं अनुशासित करद।    अतः ब्रह्म रूप मा पूजा कु असली अधिकारी मि छौं, मेरी ही पूजा हूण बेहतर च।
बल /तागत -तन सुखी त मन सुखी ! तागत नी च त सब स्याणी , गाणी , ध्याणी धर्यां का धर्यां रै जांदन।  तागत से ही छुट से छुट -बड़ु से बड़ु कार्य सम्पादन हून्दन।  तागत ही भगवान च ! तागत ही ब्रह्म च।
अन्न - हल्दीक जलड़ मील अर मूसन दुकान खोलि दे , अधभर गगरी छलकत जाय , गधा तैं झुल्ला पैराण से गधा घ्वाड़ा नि ह्वे सकद।  क्या तागत असमान  बटें टपकदि ? क्या छड़ी घुमाण से  ताकत ऐ जांदी ? बगैर अन्न खयाँ तागत कखन आलि ? तबि त बुले जांद बल अन्न ही ब्रह्म च।
जल /पाणी - वो तो अब गंगू तेली बि राजा भोज की गद्दी सम्बाळणो ख्वाब दिखणु च।  मि नि हूँ त अन्न कखन उगल /उपजल ? पाणी ही अमृत च , पाणि ही पूज्य च , जल ही ब्रह्म च।
ऊर्जा - द ल्या !बैलगाड़ी तौळौ   कुकुर समझणु कि बैलगाड़ी उ चलाणु च!  कुवा मिडुक समझणु कि कुवा से भैर क्वी संसार नी च ! काठै बिरळि मैं बणौलु पर म्याउ कु करलु ? बगैर ऊर्जा का , बगैर तेज का , बिना ऊर्जा का गर्मी , बरखा , हिंवळि कखन होलु ? अर गर्मी , बरखा , हिंवळि नि होला तो जल कखन आलु ? इलै मि याने तेज ब्वालो या ऊर्जा ब्वालो ही ब्रह्म च।
शून्यता , रिक्तता या आकाश - बड़ो ऐन अफु तैं अफिक बड़ा साबित करण वाळ ? आँख बंद करिक क्लास मा  मास्टर नि दिख्यावु त यांक मतबल यु नी च कि क्लास मा मास्टर नी च , नाक बंद करिक सड्याण खतम नि हूंद , गरम कपड़ा पैरण से वातावरणौ  तापमान नि बढ़द।  रिक्तता नि हो त ऊर्जा कु उपयोग कनै होलु ? आकास याने रिक्तता नि हो तो समय चक्र , वायु चक्र , जल चक्र , सूर्य -चन्द्र आदि ग्रहऊँ  चक्र चली नि सकद। इलै बुले जांद कि शुन्य ही ब्रह्म च।
स्मरण /यादास्त - तेल करे छम , नमक कहे मी जि ना  तो सब इ चीज छ कम्म ! ये स्मरण शक्ति ही नि हो त मनिख मनन ही नि कर सकद तो फिर क्यांक संसार अर क्यांक अन्न जल ? इलै स्मरण ही ब्रह्म बुले जांद।
आशा - द लगा बल सुंगरुँ दगड़ , मुसाक नौनु दीवान नि हूँदु , पिपळा डाळम बैठ्युं गरुड़ बि घमंड करद कि पूजा वैकि हूणी च।  यदि मि  आशा ही नि   हूं त मनिख कुछ बि स्मरण नि कारु।  इलै त बुले जांद बल आशा: ब्रह्मास्ति।
आकाशवाणी - ये अपजितो (ईर्ष्यालु ), अपर अफि प्रशंसको  ! प्राण क्या च ? प्राण का बारा मा तुमर क्या बुलण च ?
सबि नतमस्तक ह्वेक - प्राण ही माता च , प्राण ही पिता च , प्राण ही आशा कु जन्मदाता च , प्राण ही म्यार जन्मदाता च , प्राण ही शक्ति च , प्राण ही ब्रम्हांड च , प्राण ही सब कुछ च।  याने प्राण ही सत्य मा ब्रह्म च। 
( छान्दोगेय उपनिषद सप्तम अध्याय    (१-१५ खंड  )   की व्याख्या )                   

Copyright@  Bhishma Kukreti  23  /10 /2014       

Bhishma Kukreti:
  Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era

Administration, Social and Cultural Characteristics History of Garhwal in Shah Dynasty -26 

History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -215     
   History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -463 
                        By: Bhishma Kukreti (A History Research Student)

                                   Solders
    Initial period of Pal dynasty, Garhwal kings appointed solders locally – Lohaba, Badhan and Salan. Those solders were called Lobhi Solders, Badhani Solders and Salani solders. On later period, Garhwal Kings started appointing solders from outside too. The migrated Hindus also got place in the Garhwal Kingdom Army. Kings also appointed Muslim (Rohilla solders) to strengthen the defense. In the Mahipat Shah period, there were soldiers from Delhi (Dilwali); Diswali (Muslims from Plains) and Himachal Pradesh.
        There was a commander called Tunwar in Medanishah army who captured Butaulgarh. Garhwal Kings of later era used to appoint soldiers from Kangda, Himachal Pradesh too. Maedni Shah also helped Himachal Kings to fight with Guru Govind Singh. There were Faujdar and Senanayk from Himachal in the army of Pradip Shah.
                   Appointment Procedure for Solders 

          As Mughal Emperors, Garhwal King did not appoint solders directly. Faujdar and Goldar used to appoint the solders. There is no record the timing of such procedure of appointing solders by Faujdar and Goldar and not directly by the Kingdom.
  Garhwal King used to offer Jagir (Land) to Faujdar and Goldar for paying salaries to the solders.
 Goldar or Faujdar used to appoint their devotees from their own regions and from their own castes. There was no particular scientific procedure for selecting solders by Faujdar or Goldar. The main criteria for appointing solder were the person should have strong built and desire for using arrow, bow, spears etc.
   Faujdar did not care much for training and  exercises   for his solders.
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com 23/10/2014
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -464
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter ….
History of Characteristics of Garhwal Kings Shah dynasty, to be continued

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Notes on South Asian Modern Period  History of Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Pauri Garhwal; South Asian  Modern Period   History of Chamoli Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Rudraprayag Garhwal;  South Asian Modern  History of Tehri Garhwal;  South Asian Modern  History of Uttarkashi Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Dehradun, Garhwal;  Modern  History of Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Manglaur, Haridwar;  South Asian Modern Period   History of Rurkee Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Bahadarpur Haridwar ; South Asian Modern Period  History of Haridwar district, South Asian History of Bijnor old Garhwal
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Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Rudraprayag Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Tehri Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Uttarkashi Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Dehradun Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Haridwar Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Bijnor, old Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Pauri Garhwal History; Defense or Army Administration in Garhwal in Pal/Shah Era in context Chamoli Garhwal History;

Bhishma Kukreti:
                                           बौड़ पैटाण अर माया काका पर मार पड़णो  याद
                                                        आपकी आत्मकथा , भाग -1
                                                                कथा वाचक :::  भीष्म कुकरेती

           आज से मि आपकी याने जौन सन 1980 तक गढ़वाळ मा वचपन विताइ , स्कूल मा मार खाई अर फिर भागिक प्रवास मा नौकरी पाई वळु आत्मकथा लिखणो पुठ्याजोर (कोशिस ) लगौल।
  आत्मकथा याने समळौण , संस्मरण अर वी बताण जै तैं मि महत्व दींदु।
अब द्याखो ना ! बड़ा , नामी गिरामी , वुद्धिजीवी लिख्वार आत्मकथा मा सबसे पैल अपण परिवार , ममी -पापा अर कूड़ो जिकर करदन अर मि बौड़ पैटाण से आपकी आत्मकथा शुरू करणु छौं।  असल मा आपकी आर्थिक दशा  की धुरी गौड़ -बौड़ ,ब्वेइ -बौ अर बरखा-सूखा  पर टिकीं छे तो सर्वप्रथम यी सब याद आल कि ना ?
    जन भारत मा खासकर हरियाणा मा बेटी पैदा हूणै बान क्वी प्रार्थना , इबादत , गाणी -स्याणी नि करद उनि गढ़वाळ मा बौड़ पैदा हूणै कामना लेक नागर्जा मंदिर क्वी नि जांद छौ , आज बि नि जांद ना ही क्वी भोळ जाल ।  सब तैं कुखलिम नौनु चयेंद छौ अर सन्निम /छनिम /गौशालाम बाछी चयेंद छौ।  किंतु भगवान साल द्वी सालम हरेक मौ तैं बौड़ अर बेटी देइ दींद छौ।
    यदि तुमर एक जोड़ी बल्द ह्वावन तो द्वी जोड़ी बल्द आर्थिक गणित का हिसाबन रखण मूर्खता ही माने जाली जन शायद पीएमओ मा राज्य मंत्री एकी हूंद।  तो यदि तुमर बल्दुं जोड़ी हो अर इन मा  बौड़ पैदा ह्वे जाव तो बि वै बौड़ तैं जल्दी बिचे नि जांद।  बगैर ट्रेनिंग का मजदूर अर बगैर पटयुं (हल लगाने लायक ट्रेंड ) बौड़ की क्वी कीमत नि हूंदी।  जन खांड्युं से पत्थर गडण वाळ ट्रेंड मजदूर की ध्याड़ी आम मजदूर से अधिक हूंद छे ऊनि बगैर पटयूं बौड़ तैं औना -पौना दाम ना बल्कण मा फोकट मा बिचण पड़द छौ अर पटयूं बौड़ तैं खरीदणो बान रोज क्वी ना क्वी हळया तुम तैं सलाम ठुकणो आंद रै होला।  झूट बुलणु हूँ तो तुमि ब्वालो ! हैं , नि बोल जाण ?
       दादा जी मोरणो बाद हमन कबि अपण गुठ्यारम बल्दुं जोड़ी नि देखि अर मीन क्या म्यार बडा  जी अर बुबा जीन बल्द  नि जोतिन  किन्तु म्यार बडा जीन , म्यार बुबा जीन अर मीन बौड़ अवश्य ही पैटयां (ट्रेनिंग दीण ) छन। बौड़ु ठीक से कीमत मिल जावो का बाना हम तैं बौड़ पैटाण इ पड़दा छा। 
  हमर कूड़ो  बगल मा आम रस्ता तौळ एक मौक़ा चार पांच जरा चौड़ सि पुंगड़ छा तो हर साल यि पुंगड़ पांच छै बौड़ु ट्रेनिंग सेंटर अवश्य बणदा छा। तो बचपन याने तीन चार सालक रै होलु तबी बिटेन हर साल बौड़ पैटाण दिखद -दिखद समझ मा ऐ गे छे कि बौड़ कन पैटाये जांदन।
 
            बौड़ पैटाणो जब बि छ्वीं लगदन मि तैं जोगी दादा (भैजि )  कु ट्याड़ु सिँग्या बौड़ौ बड़ी याद आंद अर जनि ये ट्याड़ -सिंग्या बौड़ै याद आवो तो स्वयमेव माया काका बि याद ऐ जांद।
         हौळ लगाणो हिसाब से बौड़ तीन चार प्रकार का हूंदन।  एक उत्साही बौड़ हूंद जु पैलि दिन से हौळ -ज्यु लैक हूंद याने इन बौड़क काँध मा ज्यु धौरो तो इन बौड़ बितक़द नी च अर द्वी चार दिनम पैटाण लैक ह्वे जांद अर एक मैना बाद हौळ लगाण लैक बि ह्वे जांद जन कि राजनीति मा ज्योतिराव सिंधिया , मिलिंद दीक्षित , अमित देशमुख , नागपुर का बीजेपी नेता फड़नवीस , हिमाचल का भूतपूर्व  मुख्यमंत्री क नौनु अनुराग ठाकुर आदि।  इन बौड़ अर पुत्र बड़ी मुस्किल से पैदा हूंदन।
  दुसर किस्मौ बौड़ इन हूंदन जु ज्यु काँध मा धारो ना अर जोर जोर से बितकण , कुतकी मारण , उठा पटक करण लग जांदन। इन बौड़ तैं ज्यु से या तो कुतगळी लगद   होली या अभ्यास नि हूण से यी बदहवास ह्वे जांदन।  इन बौडूँ काँध मा गौळ धरण पोड़द।   गौळ ज्यु जन ही हूंद किन्तु अकेला ज्यु अर यु भारी हूंद।  बौड़क काँध मा चार से सात आठ दिन तक रात दिन गौळ बंध्युं रौंद अर जब इन बौड़ ज्यु धरण से कुतगी नि मरदन त समझे जांद कि बौड़ अभ्यस्त ह्वे गे।  फिर बि आना कानी कारो तो ज्यादा दिन तक बौड़ तैं गौळ बुकण पड़द। राजनीति मा इन बौड़ छैं छन जन कि नवीन पटनायक , लालू प्रसाद यादव का सपूत अर रामविलास पासवान का पुत्र।  यी राजपुत्र राजनीति मा नि आणा छा किन्तु गौळ बुकणो बाद झूट बुलण से लेकि जातीय भाषण दीण मा यी जल्दी ही प्रवीण ह्वे गेन।
 तिसर किस्मौ बौड़ हूंदन गळया बौड़ जन कि राजनीति मा राहुल गांधी , महाराष्ट्र का भूतपूर्व मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटिल का सुपुत्र । कथगा बि गौळ ब्वाकन राजनीति युंक बस कि नि हूंदी। शायद के सी पंत बि इनि जबरदस्ती का राजनीतिज्ञ छया। फिल्मों मा बि इन बौड़ हूंदन जन कि सिल्वर जुबली किंग राजेन्द्र कुमार सुपुत्र गौरव कुमार ; राजकपूर पुत्र राजीव कपूर आदि।
       जोगी दादा का ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तिसर किस्मौ बौड़ छा।  शायद तीन चार मैना तलक ये बौड़न गौळ बोकि ह्वाल।  जब बि जोगी दादा ये गळया बौड़   तैं ट्रेनिंग द्या तो उखम सरा गांक जमघट लग जांद छौ।
   जोगी दा ये ट्याड़ु सिँग्याबौड़ौ दगड़ कबि ढब्यूं बौड़ ज्वात तो कबि बल्द।  हैंक बौड़ या बल्द अग्नै बड़द छौ त ट्याड़ु सिँग्या बौड़ पैथर सरकद छौ।  ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तैं अग्वाड़ी बढ़ानो बान जोगि दा वैक पूठ पर मुंड लगाओ , पूछ मरोड़ो पर ट्याड़ु सिँग्या बौड़ टस से मस नि हूंद छौ।  कथगा ही सोटी , डंडा अर फण्यटों से ट्याड़ु सिँग्या बौड़ पिटे गे  किन्तु ट्याड़ु सिँग्या बौड़ हौळ लगाण नि सीख। जिंदगी मा मीन जानवरूं की इन निर्दयी पिटाई नि देखि जन ट्याड़ु सिँग्या बौड़ की पिटाई द्याख।  यांसे पैल जोगिदान पचासेक बौड़ पटै छा , ट्रेंड कौर छा।  अब त उल्टां ट्याड़ु सिँग्या बौड़ का जोड़ीदार बौड़ अर बल्द जब गळया हूण शुरू ह्वे गेन तो जोगी दान ट्याड़ु सिँग्या बौड़ ही ना कै बि बौड़ तैं ट्रेनिंग नि दीणै कसम खै देन।
             अब एकी विकल्प बच्युं छौ कि ये बौड़ कि निफल्टी लगाये जावो याने बिचे जाव।  जोगी दान ट्याड़ु सिँग्या बौड़ हैंक गामा कै हळया तैं ब्याच अर पांच दिन बाद ऊ हळया गाळी दींद दींद ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तैं जोगी दाक छनिम बाँधि गे अर अपर रुपया वापस ली गे।  इन करद करद जोगी दान पांच दैं ट्याड़ु सिँग्या बौड़ मुकदान लगै याने ये बौड़ तैं ब्याच किन्तु हरेक बौड़  तैं वापस करिक ही गे। सरा क्षेत्र मा ट्याड़ु सिँग्या बौड़ ना जोगी दा कुप्रसिद्ध , बदनाम  ह्वे गे कि जोगी दा अपड़ इ  लोगुं तैं ठगद।  अब तै बौड़ तैं संडा बि नि छोड़ि सकदा छा किलैकि संडा याने शिव रूप अर शिव रूप तो अछूत ही हूण चयेंद छौ जब कि ट्याड़ु सिँग्या बौड़ पर ज्यु सरयूं युं छौ।  भौत सा बार बिचारा ट्याड़ु सिँग्या बौड़ तैं जंगळ खद्याड़ कि बाग़ खै द्याल किन्तु शायद बाग बि हड़ताल मा चली गे छा अर ट्याड़ु सिँग्या बौड़ द्वी चार दिनम घौर ऐ जांद छौ।  फिर एक दिन जोगी दाक भागन एक नजीबाबादी घुड़ेत आई अर वै बौड़ तैं एक भिल्ली बदल लीगे।  फिर वै गळया  बौड़ो क्या ह्वाइ हवाई क्या नि ह्वाइ कुछ नि पता।
***भोळ पढ़िए कि  माया काका को मार क्यों पड़ी और ट्याड़ु सिँग्या बौड़  माया काका की मार से क्या संबंध था ?
                                         
               

Copyright@  Bhishma Kukreti  25  /10 /2014     
*लेख में  घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख  की कथाएँ , चरित्र व्यंग्य रचने  हेतु सर्वथा काल्पनिक है

 
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Bhishma Kukreti:
महान कुमाउँनी कवि श्री ख्याली  राम जोशी की कविताएँ
Poetries of Khyali Ram Joshi Great Poet of Kumaoni
(Presented by : Bhishma Kukreti )
दीवालिक य सुन्दर सा त्यार
जीवन में ल्यावो उज्याव अपार
लक्षमी जी आओ तुमार द्वार
शुभकामना करो हामरि स्वीकार
Xxx                    xx
पल पल सुन्दर फूल खिलो, कभ्भें नि हो कानोंक सामना
जिंदगी खुशियोंल भरी रवो,यै छू तुमुहैं हामरि शुभकामना
Xx                           xx
जगओ दी और सार दुनी कें जगमगाओ
ल्हिबेर सीता माताकें रामज्यु आप आओ
हर घर हर द्वार में तुम यास दी जगाओ
हर गों हर द्वार अयोध्या जौस है जाओ

Xxx          xx
दाग तुमार फोचिनाक कभ्भें धुलो नि धुलो
भलाई करी तुमरि तराज में तुलो नि तुलो
आजबै कान पकड़ि लियो आपण ऐबों हैं बै
भोव के पत्त तुमार आंख लै खुलो नि खुलो
Xx                        xx
चीनाक बणी दी और पटाखोंक वहिष्कार करो
ऐला दिवाई में आपण देशाक माट दगा प्यार करो
यमें मिली छू भारतीय मेहनतक चनण पिठ्यां
यनु दियांकें प्रज्वलित करि दिवाईक श्रंगार करो
Xxx       xx
तारों में यकलै चन्द्रमा जगमगों
मुश्किलों में यकलै आदिम डगमगों
काना देखि लै झन घबराया दोस्तो
काना में यकलै गुलाब खिलखिलों
Xx                 xx
ख़ुशी यदुग मिलो की आँखों आंशु जामि जाओ

टैम हवो यदुग सुन्दर कि बखत लै थामि जाओ

दोस्ती निभोंल हाम तुमु दगै कुछ यैस तरिकैल

कि दगाड़ बिताई हर पल जिन्दगी बणी जाओ
Xx                    xx
जदुग खूबसूरत आज रात्ति छी उ है खूबसूरत भोव हवो
जदुग ख़ुशी तुमार पास आज छन उ है ज्यादा भोव हवो
Xxx                             xxx
कृपा बणी रवो तुमरि हमेसा आपण नानतिना पै हे बाबा भोले नाथ सदा।
म्यार मन मन्दिर तुम बिराजो, गौरा माताक सांथ बाबा भोले नाथ सदा॥
Xx                   xx
हर सांस में हौनै रवो त्यर नामौक जाप बस जिंदगीक छू आश यै।
जब बटिक आयुं मी तेरि शरण में लागों हर पल तू म्यार पास छै॥
Xx      xx
थ्वाड़ भौत जैकें अंग्रेजी ऐं उ हैं सारि दुनि बुलें जी-जी कें
किलै सब मैस देसि समझनि आपण पहाड़ी बुलाणियांकें
आब नानतिना कें लै दूर धरनि आपण पहाड़ीभाषा धे बै
यदुग लै के गलती हैगे महाराज हामरि पहाड़ी भाषा हैं बै
Xx             xxx
कदुग जल्दी बीति जांछी उ टैम जब इजाक पास रौंछी।
जब क्वे दुःख-सुख हौंछी इजाक काखि में ख्वर हौंछी॥
Xx                       xx
दोस्तो तुमौर नि हौंण पर जिन्दगी में यदुग कमी रैं ।
मीचाहे लाख हसड़े कोशिश करूं पर आँखों में नमी रैं॥
Xx                                             xx
ब्याव सूरज कें उछाण सिखें
दियैलौ पतंगा कें जगण सिखें
घुरिणीयां कें तकलीफ हैं पर
ठोकरै इंसान कें चलण सिखें
Xx                         xx
मांफ करि द्यों भगवान लै उकें
जनरी आपणी किस्मत ख़राब हैं
उनूं कें कभ्भें मांफि निमिलैनि
जनरी आपणी नियत ख़राब हैं
Xx               xx
आजै कै दिन य पंजाबैकि धरती में पैद हौ छी एक यस लाल ।
जैल अंग्रेज राजाक जाड़ाकें हिलै बेर बणी गोच्छी उनौर काल॥
Xx                   xx
मी तुमु हैं बै कभ्भें नाराज है नि सकन
दोस्तीक रिस्त हमार ख़राब है निसकन।
तुम चाहे मिकें कदुगै भूलिबेर स्ये जाओ
मी तुमुकें याद करी बिना स्यी निसकन॥
Xxx                     xx
वैण देखनी च्यलांक, पर ऐ जानी च्येली,
नौणि खानी च्याल पर स्वस्त रौनि च्येली।
पढाई करूनि च्यलांक सफल हौनि च्येली,
ठोकर मारनी च्याल, पर समाउनी च्येली ॥
Xxx                   xx
स्वैण देखनी च्यलांक, पर ऐ जानी च्येली,
नौणि खानी च्याल पर स्वस्त रौनि च्येली।
पढाई करूनि च्यलांक सफल हौनि च्येली,
ठोकर मारनी च्याल, पर समाउनी च्येली ॥
Xx           xx
जो घर में बुड़ बाड़ीक लिजी आदर न्हें,
समझो उ घराक नजीक लै भगवान न्हें।
भुलि जानि जो ज्योंन जी मै बाबों कें,
दुनी में उनूं है बेर नीच क्वे इंसान न्हें।
के कमाक ऊं कोठि, महल, कार अगर,
मै बाबोंक रौंणाक लिजी घर बार न्हें।
Xx          xxx
चितैइक ग्वोलज्यु मी दास तुमर,तुमार चरणों में नमन बारम्बार छू।
पग पग पर हों तुमरि दयाक अहसास, तुमार दर्शनोंक मोहताज छू ॥

Xx                         xxx
हिन्दी मेरि इमान छू, हिन्दी मेरि पछ्याण छू।
हिन्दी छों मी देश लै म्यर प्यारा हिंदुस्तान छू॥
Xx               xx
त्यार खुशियों मतलब म्यार लीजि,त्येरि मुखड़ेकि हँसि हैं मेरि इजा।
तुकें पत्त छू तेरि मुखड़ैकि उदासी, मेरि हँसि कें लूटि लिजै मेरि इजा॥
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च्येलि पावण च्यलां हैबेर आसान छू
अगर नौक य हामौर समांज निहओ
च्येलियांकें पेट में यसिक क्वे निमारो
अगर चलीनक दैजौक रिवाज निहओ
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इजाक पसिणल घर में खिलीं गुलाब
आपणी चाहत कें खुद कुतरि गे इज
जब बटिक ब्वारि ऐगे उ चुप चाप रैं
औलादक कौण छू आब सुधर गे इज
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क्वे लै मुस्किलैकि आब कै कणी क्वेलै बाट निमिलन।
सायद आब घर बै क्वेलै इजाक खुट छुंई बेर निचलन॥
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शिक्षक दिवस
इजैल दे हमुकें जनम
बाबु हमरि रक्षा करनी
लेकिन सच्ची मानवता
शिक्षक हमार जीवन में भरनी
सही और न्यायक बाट में हिटण
शिक्षक हमुकें बतौनी
जीवन में संघर्षों दगे लड़ण
शिक्षक हमुकें सिखौनी
ज्ञान दिपैकी जोत जगे बेर
मनमें हमार उज्याव करनी
बिद्या-धन दिबेर शिक्षक
जीवन हमार सुखौल भरनी
जिंदगी में कुछ बणण छौ तो
शिक्षकोंक सम्मान करो
मुनौव झुके बेर इज्जतैल तुम
शिक्षकोंकें प्रणाम करो|
के: आर: जोशी. पाटली (बागेश्वर)
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मुखौड़ देखि लोग प्यार करनी,
आत्मा कें प्यार करों क्वे क्वे।
पाखमें चढ़ै खैंच लिनि सिड़ी,
ख़ुशी कैकी सहन करों क्वे क्वे।
डबल वालोंकि सब पुज करनी,
गरीबैकि हामी भरनी क्वे क्वे।
हाम तो याद धरनूं ससब्बों कें,
पर हमूं कें याद धरनी क्वे क्वे
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कौनी की प्यार बिना जिन्दगीक गुजार निहुंन,
हौवो सांच प्यार तो वीकि बराबरि रीस निहुनि।
जब करनैछू प्यार तो दोस्तों दगा करो किलैकि,
दोस्तोंक प्यार में ध्वाक जसि क्वे चीज निहुनि॥
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डुबि जानि किस्ती जबलै औनी तूफान,
याद रैजानि और बिछुड़ जानि इन्सान।
याद धरला दोस्तो भौत नजदीक पाला,
भुलि जाला तो दोस्तो ढुनैनै में रै जाला॥

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आपण दिल में लुकी यादोंल सवारों तुकें
तू यहाँ देख तो आपण आँखों में उतरुं तुकें
त्यर नाम आपण होटों पै सजै राखौ मील
अगर से लै जौ तो स्वैणा में पुकारूं तुकें
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पैलिक आपण नानतीनांक पेट भरें इज
फिर बची खुची में आपण संतोष करें इज
मांगनी न्हें कभ्भें के आपण लिजी इज
आंचोव फैल्यैं आपण नानतिना लिजी इज
आपण नानतिना जिन्दगिक खातिर
आँशुऔंक फूल हर मौसम में बरसें इज
जिन्दगीक सफर में मुशीबतोंक घाम में
जब कें स्योव नि मिलन तो याद ऐं इज
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दोस्त हमार बणनें रओ यदुग लै भौत छू,
सब हर बखत हसनें रओ यदुगै भौत छू।
हर क्वे हर बखत कैका दगाड़ रैनिसकन,
याद एक दुसरै कें करनें रओ यदुगै भौतछू॥
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पाणील तस्वीर कां बनें
स्वैणोल तकदीर कां बनें
कै दगड़ी दोस्ती करो तो
सांच दिलैल करो किलैकी
य जिंदगी फिर कां मिलैं
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इजाक पसिणल घर में खिलीं गुलाब
आपणी चाहत कें खुद कुतरि गे इज
जब बटिक ब्वारि ऐगे उ चुप चाप रैं
औलादक कौण छू आब सुधर गे इज
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क्वे लै मुस्किलैकि आब कै कणी क्वेलै बाट निमिलन।
सायद आब घर बै क्वेलै इजाक खुट छुंई बेर निचलन॥

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Copyright@  Khyali Ram Joshi, Patli , Bageshwar
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Bhishma Kukreti:
Salaries Procedures for Soldiers in Garhwal in Pal /Shah Dynasty Rule

Administration, Social and Cultural Characteristics History of Garhwal in Shah Dynasty -27 

History of Garhwal including Haridwar (1223- 1804 AD) –part -216     
   History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -464 
                        By: Bhishma Kukreti (A History Research Student)

                                    Salaries by Faujdar
           Fuajdar or regional commanders or commanders used to pay salaries to their own soldiers. By this the Kings were from hurdles of appointing or punishing the soldiers. It was easier to administrate the tax collection and to keep law and order under control in nearby regions of the capital Shrinagar. However, it was difficult to keep administration under control far away from the capital.
     Rohillas , jat, Gujjar, Raghad, Rajput, Sikhs , Sirmauri used to attack on Dehradun , Bhabhar and Bijnor regions. Garhwal Kings adapted the procedure to offer charge to Faujdar for tax collection and protection to those bordering regions. Due to that wrong procedure, Garhwal Kings lost the rule over Bijnor, Haridwar and many times in Dehradun. Many times, Bhabhar was looted by Rohillas and Muslims. Fuajdar used to appoint soldiers and used to look after the defense and tax collection. There was always ill hearted competition for getting Faujdar position among administrators in Shrinagar.
   Faujdar used to get salaries or money from Jagir. Dr Dabral mentions that Doon and Salan Faujdar used to get salaries of one and quarter lakh. Faujdar used to spend maximum money on salaries of solders from the amount of Faujdari.  Faujdar had to deposit certain fixed amount in treasury too.
                             Late Payment to Soldiers 
  Faujdar used to delay the salaries to soldiers. Faujdar were more attentive in offering salaries to soldiers when they were in trouble. It was thought that if soldier salaries were not kept by Faujdar or Kings, soldiers would leave them for another Faujdar or King. Many times, after too much delay in getting salaries, the soldiers used to disturb the capital. There were many instances when soldiers disturbed the king in Shrinagar for their salaries.
                                 Awards to Soldiers
                   King used to offer awards and rewards to brave soldiers. Award or reward was called ‘Raut’.  The King used to offer lands to ‘Raut’ awardees and there was no tax on ‘Raut’ land. The awardees were called ‘Rawat’.
  King and Faujdar used to offer other gifts to brave soldiers as award certificate (copper plate ) Khilat, Horses etc. Faujdar had right to have Naubat before his courtyard and Nishan or State flag when marching.


Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com 25/10/2014
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -465
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
History of Garhwal from 1223-1804 to be continued in next chapter ….
History of Characteristics of Garhwal Kings Shah dynasty, to be continued

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Notes on South Asian Modern Period  History of Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Pauri Garhwal; South Asian  Modern Period   History of Chamoli Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Rudraprayag Garhwal;  South Asian Modern  History of Tehri Garhwal;  South Asian Modern  History of Uttarkashi Garhwal;  South Asian Modern Period   History of Dehradun, Garhwal;  Modern  History of Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Manglaur, Haridwar;  South Asian Modern Period   History of Rurkee Haridwar ;  South Asian Modern Period   History of Bahadarpur Haridwar ; South Asian Modern Period  History of Haridwar district, South Asian History of Bijnor old Garhwal
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