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Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख

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Bhishma Kukreti:

 Jhatri ka Pani: Garhwali Folk Story about emerging Water Source

                     (Folk Tales from Garhwal Series-112)
                           Collected by Bhishma Kukreti
           (Narrated by Shri Tribhuwan Balodi of Jhatri village, Patti-Sheela, Pauri Garhwal)
  There are folk stories about emerging new water sources and drying of old water sources in every village of Garhwal.
           There is a folk tale about emerging of new water source in Jhatri village, near Dadamandi, Sheela Patti, Pauri Garhwal.
 Balodi caste community lives in Jhatri village, of Sheela Patti.   Long back, Then there was no water source in Jhatri village of Pauri Garhwal. People used to go to one mile steep down for fetching water. Long back, one day, in high summer noon, a sage came to Jhatri and asked a woman for water. The woman felt sorry and started weeping by listening request of the sage for water. After asking the reason of weeping by the sage, the woman told the sage that it was her poor luck that she could not offer water to a thirsty sage. Even there was no water drop in her pots in the house. The Jhatri woman told the sage to wait for a couple of Ghadi(time unit)as she would go to down and would fetch water.
 The sage felt pity on the villagers and they had to go steep down for water.   The sate told the woman not to go down and blessed that Jhatri would get water within a couple of Ghadi in the village itself.
The sage went from Jhatri and after some time, the Jhatri woman was happily shocked that water started oozing from the place where the sage was standing. The villagers started praising the unknown sage who blessed water for Jhatri. Jhatri villagers built a Nauli/Nao at the new water source. Still today, Jhatri villagers remember the unknown sage for offering them water by his blessing.

 
Copyright@ Bhishma Kukreti 7/6//15, Mumbai, India
References

1-Bhishma Kukreti, 1984, Garhwal Ki Lok Kathayen, Binsar Prakashan, Lodhi Colony, Delhi 110003, 
2- Bhishma Kukreti 2003, Salan Biten Garhwali Lok Kathayen, Rant Raibar, Dehradun
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Bhishma Kukreti:
                                    अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत                   
                                 मेरी मुंबई बटें जसपुर तक नागराजा पूजा जात्रा -1
     
                                                           जत्र्वै - भीष्म कुकरेती


                                   नागराजा ग्रामदेवता अर ग्विल्ल /गोरिल कुलदेवता
    मीन सन 75 -76 बिटेन 2009 तक दर महीना 20 दिन व्यवसायिक यात्रा त करी ही होलि। फिर  कै दैं उन्नादेसी (विदेश) यात्रा बि कौर।  पर ये सालैक (2015 ) त्रिवर्षीय नागराजा पूजा खासी विशेष जात्रा छे। या यात्रा इन मा बि विशेष च बल बिट्ठुं 117 परिवार वळु लोगुंक यीं महाजात्रा मा तकरीबन 15 लाख खर्चा त ह्वे इ ह्वाल। सांस्कृतिक , सामाजिक दृष्टि  से या पुजै   प्रवास्युं ड्यार बौड़ै का एक रूप च अर उत्तराखंड राज्य पर्यटन कु एक अखंडित भाग च।
                 हमर गां पौड़ी गढ़वाल कु लैंसडाउन तहसील मा मल्ला ढांगू पट्टी मा जसपुर च।  इन बुले जांद बल जसपुर 600 साल से बि पुरण गाँव च अर आज की भौगौलिक स्थिति बि भौत पुरण गां हूणों गवाअ च। कुकरेत्युं मूल गाँव  जसपुर इ  च। गाँव 3500 फ़ीट पर एक बड़ो तपड़ा मा बड़ो पौड़ मा बस्यूं छौ। अब  यु गाँव एक डेढ़ किलोमीटर लम्बी पंक्ति माँ बसी गे। आस पास का गांव ग्वील , बड़ेथ , सौड़ , छतिन , बाड्यों , रणेथ , मित्रग्राम , ठँठोली आदि गां छन। ग्वील , सौड़ , छतिन बाड्यों पैल जसपुर का इ हिस्सा छा। बड़ो भाई ग्वील मा बस गे छौ।
  जख तक दिबतौं अर पूजास्थलुं सवाल च हमर गां मा निम्न पूजास्थल छन -
नागराजा मंदिर - उत्तर दिशा मा  गौं से भैर तूंगुं जंगळो (अब ? ना ) मध्य एक पख्यड़ मा च।
ग्विल याने काली कुमाऊं का गोरिल मंदिर।  यु मंदिर गाँव की सारी मा इ श्री गोविंदराम कुकरेती का खेतों मा च।
मिथाळ - नागराजा मंदिर से तकरीबन चौथाई किलोमीटर   अळग मिथाळ क्षेत्र मा एक आळ च।  मीन या जगा नी दिखीं च।
जसपुर की सारी मा ग्वील वाळु शिवाला - यु मंदिर ग्वील गाँव वळु मंदिर बुले जांद।  ग्वील गाँव मा हम कुकरेत्युं  बड़ू दादा जी बस छा तो मंदिर ग्वील वळु माने जांद।  अन्यथा मंदिर तब का च जब जसपुर -ग्वील गां एक छौ।  मेरी दृष्टि से जब ठँठोली क्षेत्र मा बसयूँ गोदेश्वर सिद्धपीठ मंदिर क्षेत्र मा भळग ऐ ह्वाल याने भूमिसखलन ह्वे ह्वाल अर ऊख पाणी सुख गे ह्वाल तो यु शिवाला गदन मा स्थापित करे गे ह्वालु।
खड़दिवता -जसपुर से  उत्तर मा डेढ़ किलोमीटर ऐंच एक तपड़ा च जैक नाम खड़ दिबता च।  इखम एक पत्थर च जैकुण बुले जांद बल यू खड़ दिबता च।   भौत पुछण पर बि पता नि लग कि खड़ दिबता खड़िक से या खड़ हूणै कारण खड़ डिब्ता बुले जांद ? खैर अवश्य ही यु दिबता एक क्षत्रपाल दिबता होलु।
जसपुर मा देवी मंदिर नी च। कारण हम कुकरेत्यूं एक दादा जी जब बरसुडी बसिन तो एक रात वो जसपुर दैविक मंदिर से मूर्ति उठैक (जसपुर वळु कुण चोरी अर बरसुड़ी वळु कुण देवी लाण ) ली गेन तो फिर दैविक मंदिर जसपुर -ग्वील मा नी च।  अन्यथा हर कुकरेत्युं गाँव मा दैविक मंदिर च।
हरेक थोक का अपण मिथाळो आळ बि च। हमर मिथाळो आळु ट्वाल का खेतों मा च।
                            नागराजा ग्रामदेवता अर ग्विल्ल /गोरिल कुलदेवता
नागराजा दिबता जसपुरौ ग्राम दिबता च पर ग्विल्ल /गोरिल कुकरेत्युं कुलदिबता च।  ग्विल्ल /गोरिल दिबता की दक्षिणा जागरी तै लीणो अधिकार नी च।  जसपुर मा जखमोला अर बहुगुणा लोग ग्विल्ल तै माणदा त छन पर कुलदिबता का रूप मा ना।
   ग्वील वळु ग्विल्ल जसपुर से पूर्व मा ग्वील से उत्तर मा दूर एक धार गौड़धारौ तौळ च।  याने जब  जसपुर -ग्वील एक रै होलु तो ग्विल्ल मंदिर गौड़धारम रै होलु।
भोळ बांचो - आखिर त्रिवर्षीय नागराजा पुजै की शुरुवात कनै ह्वे ?


अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत - भाग दो में पढ़िए

Copyright @ Bhishma Kukreti 7/6/15

Bhishma Kukreti:
                Garhwali Prose of Nineteenth Century from Garhwal
                    जसपुर के बहुगुणाओं का संस्कृत से गढ़वाली टीका साहित्य में योगदान
                       गढ़वाली का उनीसवीं सदी का गद्य -१

                                                 -भीष्म कुकरेती     
(आभार ------------जसपुर के समस्त बहुगुणा परिवार विशेषतः  श्री शत्रुघ्न प्रसाद पुत्र स्व पंडित खिमानन्द बहुगुणा )
                                                  खोज कार्य

              गढ़वाली साहित्य इतिहासकार अबोध बंधु बहुगुणा ने 'गाड म्यटेकी गंगा' पुस्तक में संस्कृत ज्योतिष /कर्मकांड साहित्य का गढ़वाली में टीका का उल्लेख किया है।  अबोध बंधु ने 1925 का धोरा खोळा ,   कटळस्यूं   निवासी पंडित रतनमणि घिल्डियाल द्वारा ज्योतिष गणित का गढ़वाली टीका (Interpretation )  का जिक्र किया है ('गाड म्यटेकी गंगा' पृष्ठ 59 ) । उसके बाद के गढ़वाली साहित्य इतिहासकारों ने इस दिशा में कोई खोजपूर्ण  कार्य नही किया।  मेरा मानना था कि सन 1890 से पहले जब कोई स्कूल नही थे और हिंदी का कोई स्थान गढ़वाल में नही था तो कर्मकांडी पंडित अवश्य ही अपने शिष्य (पुत्र , पौत्र , भतीजे , भ्राता आदि ) को संस्कृत श्लोकों को गढ़वाली में ही समझाते होंगे और पाण्डुलिपि में गढ़वाली में ही टीका करते रहे होंगे।
मेरे गाँव जसपुर , ढांगू , पौड़ी गढ़वाल में कर्मकांडी चौथ ब्राह्मण बहुगुणा सन 1875 के आस पास कुकरेतियों द्वारा बसाये गए थे।  अतः मुझे इस दिशा में कुछ कुछ ज्ञान था कि बहुगुणा पंडितो के पास हस्तलिखित पांडुलिपियां होती थीं।
     इस साल के प्रथम चरण में जसपुर के पंडित स्व पंडित तोताराम बहुगुणा के पौत्र व /स्व विद्या दत्त के द्वितीय पुत्र कर्मकांडी पंडित महेशा नन्द बहुगुणा से मुंबई में मिलने का अवसर मिला।  मैंने रिश्ते में भ्राता किन्तु सांस्कृतिक रूप से गुरु महेशा नन्द बहुगुणा से यही प्रश्न किया कि जब जसपुर में ब्रिटिश शिक्षा नही थी तो कर्मकांड /ज्योतिष टीका अवश्य ही गढ़वाली में हुयी होगी। पंडित महेशा नन्द बहुगुणा ने मेरा समर्थन करते कहा कि जसपुर के बहुगुणाओं में ज्योतिष /कर्मकांड को श्रुति रूप से लिखित रूप  देने का काम स्व पंडित जयराम बहुगुणा ने प्रारम्भ किया था।  स्व पंडित जयराम बहुगुणा स्व तोताराम के  भाई थे।
पंडित महेशा नन्द ने मुझे आश्वासन सूचना दी थी कि पंडित जयराम बहुगुणा की पांडुलिपियां गाँव में पंडित पद्मादत्त बहुगुणा के पास हैं जिसमे गढ़वाली में टीका उपलब्ध हैं। पंडित पद्मादत्त बहुगुणा पंडित जयराम के भतीजे के पुत्र हैं। पंडित महेशा नन्द ने आश्वासन दिया था कि वे मुझे इस प्रकार के साहित्य को फोटोकॉपी द्वारा उपलब्ध कराएंगे।
   इसी दौरान मुझे नागराजा पूजन हेतु मई में गाँव जाना पड़ा।  वहां सभी बहुगुणा पंडितों से मुलकात अवश्यम्भावी थी और  मैं आस्वस्त था कि मुझे गढ़वाली साहित्य का प्राचीन खजाना अवश्य मिलेगा।  किन्तु गाँव में त्रिवर्षीय नागराजा पूजन होने से सभी प्रवासी चाहते थे कि अपने कुलगुरुओं बहुगुणाओं से पूजन भी कराया जाय। आस पास के गाँवों में भी प्रवासी आये थे जो इन कुलगुरुओं से पूजा करवाने को इच्छित थे।   अतः सभी बुजुर्ग (मेरे समकक्ष आयु वाले ) व युवा पंडित इतने व्यस्त थे कि उन्हें सांस लेने की फुर्सत नही थी।  मैंने जिससे भी गढ़वाली टीका की बात की उन पंडित ने साहित्य उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया किन्तु काम फारिग होने के बाद। मैं निराश था कि मुझे खजाना नही मिलेगा और फिर यह अवसर नही मिलेगा।  दूसरी दिक्कत थी कि पंडित पद्मादत्त बहुगुणा के अतिरिक्त सभी पंडित कोटद्वार या अन्य शहरों में निवास करते हैं अतः यह महत्वपूर्ण साहित्य को देखना व फोटोकॉपी करना कठिन ही था।
           मुझे उन्तीस मई को ऋषिकेश के लिए प्रस्थान करना था और मुझे कोई साहित्य उपलब्ध नही हो सका था।  एक कारण यह भी था कि प्रिंटिंग सुविधा उपलब्ध होने से पाण्डुलिपि साहित्य की अब किसी भी कर्मकांडी पंडित को आवश्यकता नही है और पाण्डुलिपि अब किसी कोने में ही मिल सकतीं हैं।
अचानक 27 सांय , मेरी धर्मपत्नी ने मेरे स्कूल के सहपाठी बड़े भाई शत्रुघ्न प्रसाद की दी गयी पोथी मेरे हाथ में पकड़ा दी। इस पोथी में कई पोथियाँ (Booklets ) थीं।
मूल पोथी नीलकंठी कर्मकांड का है और अंदर कि छोटी पोथियाँ अन्य ज्योतिषीय विषय।
 मुझे निम्न पंडितों की हस्तलिखित पोथियाँ मिलीं -
पंडित सदानंद द्वारा लिखित दो संस्कृत विषयी लघु आकार की पोथियाँ
पंडित खिमानन्द  द्वारा लिखित व हिंदी में टीका की हुयी पोथी
पंडित तोताराम को दो या तीन विषयों में लिखी पोथियाँ और सभी में हिंदी में टीका लिखी गयीं हैं।
उपरोक्त तीनों लेखकों ने द . लिखकर अपने हस्ताक्षर किये हैं।
नीलकंठी प्रकरण में एक जगह पंडित जयराम के हस्ताक्षर या नाम हैं दो जगह पंडित लोकमणि के हस्ताक्षर हैं व दो तीन जगह उनका नाम भी लिखा है। पंडित विद्यादत्त का नाम भी है।
पंडित जयराम ने जातक चन्द्रिका संस्कृत में छांटें छांटी पंक्तियों में कलम से लिखी है और फिर बाद में किसी ने निब से बीच की पंक्ति में हिंदी में टीका लिखी है।
कहीं भी लेखकों ने बहुगुणा शब्द नही लिखा है बल्कि पंडित शब्द का प्रयोग किया है।  पंडित सदानंद ने तो पंडित शब्द भी प्रयोग नही किया है।
पंडित तोताराम लिखित टीका व श्लोकों से पहले गणेश का चित्र भी बनाया है व दूसरे पृष्ठ में भी रंगीन चित्रकारी की है।
पंडित खिमानन्द ने जसपुर , ढांगू व कुमाऊं कमिनसनरी लिखा है और इसका कारण है कि वे पंडिताई से पहले चकबंदी विभाग में नौकरी की थी।
                  गढ़वाली टीका पोथी  के कुछ भाग
जहां तक गढ़वाली टीका का प्रश्न है इन पोथियों के अंदर चार पृष्ठ की निखलिश गढ़वाली टीका मिलीं हैं।
गढ़वाली टीका वाली पोथी में पंडित सदानंद की पोथी में पंडित शब्द भी नही है।
मेरे सहपाठी श्री शत्रुघ्न बहुगुणा व कुलगुरु पंडित विवेका नन्द बहुगुणा के अनुसार यह टीका पंडित खिमानन्द बहुगुणा की है किन्तु मैं आदर सहित लिखना चाहूँगा कि पंडित खिमानन्द ने गढ़वाली टीका नही लिखी है।  उसके कारण निम्न हैं -
१- इस  पुस्तिका का आकार  पंडित खिमानन्द लिखित  पोथी से मेल नही खाती है।
२- पंडित खिमानन्द ने हिंदी टीका निब से लिखी है।
३- पंडित खिमानन्द का हस्थलिपि भी मेल नही खाती है। जबकि पंडित जयराम की हस्थलिपि से मेल खाती हैं
४- मूल पोथी का आकार भी छोटा है किन्तु पंडित सदानंद द्वारा लिखित पोथी से एक इंच बड़ा होगा।
५- कागज भी अन्य पोथियों से मेल नही खाते हैं।
६- एक पोथी के उपलब्ध भाग लाल रंग के दो लाइनों से बनी हासिये दोनों तरफ है व स्याही अब मटमैली हो गयी हैं इसी तरह काली स्याही केवल पंडित जयराम द्वारा लिखित श्लोकों से मेल खाती हैं। दूसरी पोथी के भाग का पृष्ठ पर दोनो ओर लाल स्याही से दो दो हासिये बने हैं। जो अन्य पोथियों से भिन्न हैं।
७ -चूँकि पंडित लोकमणि , पंडित सदानंद , पंडित खिमानन्द , पंडित तोताराम ने सन 1890 में ब्रिटिश स्थापित स्कूल टँकाण स्कूल में शिक्षा पायी है अतः इन्हे हिंदी का पूरा ज्ञान था।  पंडित जयराम ने टंकाण में शिक्षा नही पायी थी अतः उन्होंने गढ़वाली में टीका लिखी होगी जो पंडित महेशा नन्द व पंडित पद्मादत्त ने भी स्वीकारा है।


अतः साफ़ है कि जो दो पोथियों के एक एक पृष्ठ मेरे पास हैं वे पंडित जयराम द्वारा या उनसे पहले किसी अन्य द्वारा लिखी टीका है।
पंडित जयराम की जीवनी विश्लेषण से लगता है यह टीका सन 1900 से पहले की होगी।
पोथी योन के उपलब्ध पृष्ठों की इबारत इस प्रकार हैं -

                        दस दोष निरोपण की गढ़वाली टीका
                 श्री

संस्कृत शोक के बाद टीका II १II भाषा आद्य भद्रा नी होवू: दुतिय शूल चक्र नि होवू: जनु सूर्य नक्षेत्र तक गणणो। १। १२। १५। १८। २८।  हो वू त शूल हूंद : शुभ काम बर्जित बोले =तृतीय ग्रह संजोग : जोदिन नक्षेत्र पर पाप ग्रह हो वो त नी लेणो दुसरी एक बात या छ कि जनु अशु नक्षेत्र प्र : आश्वार दग्ध तिथी और वार जोडिक तेर हो वू त वारदग्ध होंद अथमासदग्ध
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बै  I ज्येष्ठ I आषा Iश्रावण I  भाद्रपद I असूज I  कार्तिक I  मंगसीर I  पुख   I  माघ I  फा Iचैत्र I
६ I   ४     I  ८      I ६    I १०       I  ८      I  १२       I    ८        I   २     I        I१२   I   
अवरविरेखावोद : सूर्जन न क्षेत्र ते सतताईस रेखा धरणी अश्लेषा -मघा -चीत्रा : अनुराधा . रेवत  . श्रवण  . यूंका निचे भि रेखा मारणी तव असुनी ते दिन नक्षेत्र तक गणणो जो निचे को चिरो आवत नी लेणो . जामैत्रिवोद . दिन का नक्षेत्र ते चौदवें नक्षेत्र पर पाप ग्रह होवू त नी लेणो शुभ होवू त दोस नी होंदो -गरहवेद तथा अष्टम वेद दोष चक्रमा देखणो जनु नी नक्षेत्र पर विवाह और पु र्फालगुनी पर पाप ग्रह क्षे त वेद होयो सो नी लिणो : अथ: तलातवोद -दिन नक्षेत्र ते १२ वूंआ नक्षेत्र पर सूर्य्यत्वात मार ३ तीसरा नक्षेत्र पर मंगल ६ छटा नक्षेत्र पर वृहस्पति ८ आटवूआं नक्षेत्र पर शनी
इस प्रकरण का इतना ही साहित्य उपलब्ध है।

कल गुणनो की गढ़वाली टीका पढ़िए .....

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Bhishma Kukreti:
Garhwali Folk Tale about Shukla community settling in Udaipur Patti Pauri Garhwal

                     (Folk Tales /Community from Garhwal Series-113)
                           Collected by Bhishma Kukreti
(Narrated by Mr. Jagdish Prasad Shukla of Ramjiwale Ganv, Udaipur, Pauri Garhwal)
                   Most of upper castes Garhwali communities are migrated communities from various parts of India. Therefore, each community has folk story about settling in Garhwal. Shukla community has its own folk story about settling in Ramjiwale village of Patti Udaipur, Pauri Garhwal.
      There was a Karmkandi, Astrologer Shukla family that migrated to Nangal, Bijnor from Banaras. After some time, a family settled in Kankhal Haridwar. The man had three sons one settled in Haridwar, second in Kankhal and third was living in Jwalapur.  The name of third son was Mahesha Nand Shukla. Mahesha Nand met Sudarshan Shah in Jwalapur (most probably in that time when he was in exile). Mahesha Nand was great astrologer and could draw picture of a person without seeing the person but by his astrology knowledge.
          Tehri King Sudarshan Shah appointed Mahesha Nand Shukla as one of Purohit in Tehri court. One day, King Sudarshan Shah asked Mahesha Shukla to draw the picture of his queen. Mahesha Nand did not see the queen in the past at all. However, by his mere sound knowledge of astrology Mahesha Nand drew picture of the queen. He drew a black mole on the thigh of the queen. The King became suspicious that definitely Mahesha had bodily relationship with the queen that was why the astrologer could draw mole in the same place in picture as of real place.
           Sudarshan Shah was in rage and he ordered his four soldiers to kill Mahesha Nand and bring his eyes and blood soaked clothes as proof of his death, Soldiers took Mahesha Nand in Jungle for killing. When Mahesha Nand Shukla came to know about reality he convinced soldiers not to kill him. As per advice of Mahesha Nand Shukla, the soldiers showed eyes of a sheep and its blood soaked clothes of Mahesha Nand Shukla. King Sudarshan Shah was satisfied.
             Mahesha Nand Shukla fled to Haridwar and started living as Sadhu in Haridwar.
   Bisht was the Thokdar (landlord) of Mathi Banwas of Udaipur Patti. He lost his seven sons within short time after taking birth. Bisht Thokdar was a sad man. He met Mahesha Sadhu in Haridwar. Mahesha Sadhu   performed a ritual and blessed Bisht that his next son would live for long.
 Bisht wife gave birth to eighth son who did not die as other sons die. The son grew as normal boy. When the time of Chudakarm Sanskar or first shaving ceremony of the boy came the Thokdar Bisht decided to have Mahesha Shukla as his priest for performing the Sanskar. He went to Haridwar and requested Mahesha Nand Shukla to come to Mathi Banwas for performing rituals of Chudkarm Sanskar of his son.
        Mahesha Nand Shukla came to Banwas and performed Chudakarm Sanskar. In Dakshina, Thokdar Bisht offered a land of Ramjiwale village to Mahesha Nand Shukla. Mahesha Nand Shukla saw foot print of Lord Rama there and settled there in Ramjwale Ganv. Mahesha Nand settled in Ramjiwale village and built Rama temple there where foot print of Rama was there. Mahesha Nand wedded a Bahuguna girl from Bugani.
 This way Shukla settled in Ramjwale.

Copyright@ Bhishma Kukreti 8/6//15, Mumbai, India
bckukreti@gmail.com
References

1-Bhishma Kukreti, 1984, Garhwal Ki Lok Kathayen, Binsar Prakashan, Lodhi Colony, Delhi 110003, 
2- Bhishma Kukreti 2003, Salan Biten Garhwali Lok Kathayen, Rant Raibar, Dehradun
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Bhishma Kukreti:
                         झैड़ गाँव मा  देवी मंदिर पुनर्निर्माण और जसपुर नागराजा मंदिर पुनर्निर्माण
                   
                                      मुंबई बटें जसपुर तक नागराजा पूजा जात्रा -2                                         अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत                   
                                 
     
                                                           जत्र्वै - भीष्म कुकरेती

               जसपुर मा बि नागराजा , ग्विल्ल मंदिर उनि छा जन गढ़वाळ  का हौरि गाउँ माँ हूंदन याने छुटु पहाड़ी कूड़ जख पुजारी अर भक्त ही बैठ सकदन बस ! मंदिर भितर द्वी चार लौह नाग  बस। मंदिर पुनर्निर्माण या घर मा बागवानी की बात तबि सुचे जांद जब किसाउन्द कुछ माल मसाला ऐ जावो।  उन भैजि श्री सत्यप्रसाद कुकरेती पुत्र तहसीलदार श्री दयाराम कुकरेतीन पुराणो ग्विल्ल मंदिर का बगल मा एक आधुनिक मंदिर बि चिणै याल छौ तो सैत च हुरस्या हुरसी मा जसपुर का प्रवास्युं तै नागराजा मंदिर पुनर्निर्माण को ख़याल ऐ हो ?
  आजौ समौ मा सर्वप्रथम मंदिर से सार्वजनिक , सहकारिता व सामूहिकता का दर्शन हमर इलाका मा तल्ला ढांगू का झैड़ गाँव मा दिखे गे। झैड़ गाँव गंगातट पर ऋषिकेश बद्रीनाथ पुराणी सड़क का किनारा याने बद्रीनाथ मोटर रोड पर स्थित सिंगटाळी का समिण बस्युं गाँव च।
  अस्सी का दशक का प्रथम चरण की बात होलि (शायद 1974 ) जब झैड़ का लोगुंन सार्वजनिक रूप से देवी मंदिर पुनर्निर्माण कार अर नया देवी मंदिर बणाइ अर तब पुनर्स्थापना दिवस पर उख सबी प्रवासी पूजा मा शामिल ह्वेन तो सरा ढांगू मा मंदिर पुनर्निर्माण और प्रवास्युं जण बच्चा शामिल हूणै घटना भौत सालुं तक चर्चा मा राइ।  इख तलक कि जब मि मुंबई औं तो इख बि कै ना कै रूप मा ढांगू वळु मध्य झैड़ का नया मंदिर की चर्चा का दगड़ सामूहिकता अर सहकारिता की बि चर्चा हूंदी रौंद छे।  प्रेरणा या जलन द्वी रूप मा झैड़ मंदिर की चर्चा आज बि ह्वेई जांद।
   प्रेरणा मा बात हूंदी छे कि झैड़ का प्रवास्युंन मीलिक बड़ो काम कार ।
जलन की जख तक बात च ढांगू मा छ्वीं बि लगिन कि झैड़ वाळुन तो अपण सँजैत  जंगळ का खैर बिकैक देवी मंदिर बणाइ।  मीन अपण क्षेत्र की चर्चाओं मा भौत सि दै बार बार इ सूण कि हमर गां मा बि खैर का जंगळ हूंद तो हम बि अपण गांवक मंदिर नया चिणवांदा।  झैड़ मंदिर की जलन युक्त चर्चा से मी बि अति प्रभावित होऊं अर मीन सन 1985 का ध्वार एक गढवळि नाटक ल्याख - बखरुँ ग्वेर स्याळ। 
फिर यदा कदा  मि मुंबई मा सुणनु रौंद छौं कि उदयपुर पट्टी मा अलण गां मा मंदिर पुनर्निर्माण ह्वे गे या डबरालस्यूं का लोगुं मा एका च तबि त फलण गाँव वळुन  देवी क नै मंदिर चीण अथवा ढांगू का से गाँव मा बि नै मंदिर चिणे गे।
 जु बि हो अस्सी अर नब्बे का दशकुं मा  अर सदी का अंतिम सालुं मा  हमर क्षेत्र ढांगू , डबरालस्यूं , उदयपुर अर अजमेर पट्ट्यूं मा मंदिर पुनर्निर्माण को भौत काम ह्वे।
मुंबई मा जसपुर क लोग जब मिलदा छया अपण असहकारिता गुण अवश्य गांदा छया।
शायद झैड़ जन गांवुं उदाहरणुं से प्रेरित ह्वेक मुंबई अर हौर जगाऊं  का जसपुर प्रवास्युं दिमाग मा बैठ गे होलु कि हम तै बि कुछ करण चयेंद।
कुछ करण चयेंद का सही अर्थ हूंद कुछ नि करण याने इच्छा तो छैं च पर बाटो नी मिलणो च।
मुंबई मा बीसवीं सदी का अंतिम सालुं मा जसपुर का युवा वर्ग बैठक बुलाण लग गे छा।

-----------मुंबई मा किलै जसपुर का लोग मीटिंग करदा छा ? का वास्ता भोळ तक जग्वाळ !



अविस्मरणीय धार्मिक -सांस्कृतिक यात्रा वृतांत - भाग 3  में पढ़िए

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