Satire and its Characteristics,
व्यंग्य
व्यंग्य तै धारदार बणाण वळि भावना वास्तवमा आम जिंदगी मा बुरा माने जांदन
(व्यंग्य - कला अर भावनाओं का करतब : भाग 1 )
भीष्म कुकरेती
आप भि सहमत ह्वेल्या बल व्यंग्य मा व्यंग्य तै धारदार , प्रभावशाली , यादगार बणानो वास्ता जु जु बि भावना प्रयोग करे जांदन सि सि भावना वास्तव मा आम जीवन मा बुरी भावना माने जांदन।
अब आपि बतावा कि गुस्सा /क्रोध /रोष भावना आम जीवन मा भली भावना त नि माने जांद ना ? पर जु क्वी बि व्यंग्यकार अपण व्यंग्य लेख , निबंध , कथा , कविता , उपन्यास मा गुस्सा /क्रोध /रोष/तामस /खीज /नारजगी /झांझ आदि नि लावो तो व्यंग्य निसवादी , निलुण्या , गळतु व्यंग्य या बेकार प्रहसन ह्वे जांद अर व्यंग्य कु भतियाभंद ह्वे जांद।
दुसर भावना जु चबोड़ , चखन्यौ , मजाक , मसखरी मा चचकैल (उत्तेजना ) लांद , तेज धार लांद , ऐसिडीय रिजल्ट लांद वा च घृणा। यदि व्यंग्य मा घृणा , घीण , द्वेष -नफरत नि हो तो व्यंग्य बगैर पेट्रोल की बस ह्वे जांद , बगैर टायर की सायकल , बगैर सिंदूर की नई नवेली दुल्हन। अर व्यंग्यकारुं का अस्त्र शस्त्र जन कि रूण या घृणा , द्रोह , द्वेष , नफरत जन भावना समाज मा बुरी दृष्टि से दिखे जांदन। अब बतावो व्यंग्यकारौ कुण कथगा बड़ो रोग च बल ज्वा भावना असामाजिक भावना माने जांद वीं भावना का बल पर बड़ा बड़ा व्यंग्यकार प्रसिद्ध ह्वेन। यांसे बड़ो व्यंग्य क्या ह्वे सकद कि व्यंग्यकार सामाजिक बुराइयुं तै नंगी दिखाणो बान अमान्य भावनाओं की सौ सायता लींद। पर दुनिया मा अहिंसा लाण तो हिंसक हथियार पास मा हूण इ चयेंदन। हिन्दुस्तान -पाकिस्तान का पास परमाणु बम नि हुँदा तो पता नी कथगा दैं युद्ध ह्वे जांद धौं।
व्यंग्य रचण अर व्यंग्य मा गति लाणो बान व्यंग्यकार ईर्ष्या , डाह , जलन , दुर्भाव भावना का उपयोग इन करदो जन बुल्यां जंगळ कु जख्या ह्वावो , गैर सरकारी जंगळ मा कुखड़ ह्वावन या बाप का माल हो कि जथगा प्रयोग करणा इ सि कर ल्यावो। यदि व्यंग्यकार तुलना नि कारो त व्यंग्य मा पैनोपान , तीखोपन , रुंडता नि आंद अर व्यंग्य इन लगद जन खुंडि खुंकरी हो। अर जरा इन बतावो कि खुंडि खुंकरि से बुगठ्या धळकाण त राइ दूर मुर्दा कुखड़ै मौणि बि नि कटेंदि।
फिर व्यंग्यकार घृणा दगड़ क्रोध भावना कु मिऴवाक करद कि व्यंग्य तीखी चटणी जन ह्वे जावो। अर घृणा व क्रोध संगम सबसे बुरा माने जांद। तबि त अकबरुद्दीन ओवेसी, डा तगोड़िया अर ओसामा बिन लादिन जी स्वस्थ समाजौ कुण खतरनाक माने जांदन। किन्तु घृणा -क्रोध को मिश्रण व्यंग्यकार का वास्ता आवश्यक असला च , केमिकल वीपन्स च , लॉफिंग गैस च।
हाहाहा राहुल गांधी बि क्या क्वी बि कॉंग्रेसी नि चांदु कि मध्यप्रदेश की हार की शरमंदिगी झेलण पोड़ो। हू हू ! नरेंद्र मोदीकी बात तो जाणि द्यावो भाजपा बि नि चांदि कि व्यापम घोटाला की लज्जा का सामना करण पोड़ो। उफ़ ! इख तक कि जैंक ग्युं बि खतेन अर नांगी बि दिखे वा बि लानत -हया से दूर भागदि। पर व्यंग्यकार की कलम से , बचनुं से , ऐक्टिंग से यदि लालू यादव जन बेशरम नि शरमावो तो लानत च वै व्यंग्यकारौ कुण ,चबोड़्या कुण शरमाणै बात च , एक अंज्वळी पाणि मा डूब मरणै छ्वीं छन। जब तक व्यंग्यकार कै तैं शरमाणो मजबूर नि कारो तो वै तै व्यंग्यकार नि माने जांद। कन्हैयालाल डंडरियाल की कविता गढ़वाली समाज तै शरमाणो मजबूर करदन।
समाज मा अपराधबोध भौत भयंकर , भिलंकारी ब्यथा , अपराध बोध हज्या से बि बड़ी बित्था च अर भगवान से प्रार्थना करे जांद कि कखि बि मीमा अपराधबोध नि रावो। पापहरण का वास्ता गंगास्नान माने अपराधबोध की छुट्टी। किंतु व्यंग्यकार को काम च बार , बार बारम्बार अपराधबोध की जागृति। व्यंग्यकार जथगा जोरों से अपराधबोध जगालो वु /वा उथगा ही बड़ो व्यंग्यकार। हाँ , इन व्यंग्यकार तैं पुरूस्कार मिलणै गारंटी नी च किलैकि ह्वे सकद च व्यंग्यकारन पुरुष्कार समिति का सदस्यों मा ही अपराधबोध भर दे हो।
मनिखौ वास्ता चिंता चिता समान च , व्यग्रता नासूर च , रगबग ब्याळ च। लोग व्यग्रता , चिंता , रगबग असहजता पैदा करदन। क्वी बि व्यग्रता , चिंता , रगबग नि चाँद। किन्तु व्यंग्यकार जब तक पाठकौ मन मा व्यग्रता , चिंता , रगबग नि कुच्यावो तो वै व्यंग्य को क्वी लाभ नि हूंद। व्यंग्य से पाठक चिंतित हूण चयेंद , व्यंग्य पढ़णो बाद पाठक की नींद हर्च जाण चयेंद , व्यंग्य बांचणो बाद बंचनेर तनावग्रस्त ह्वावो न तो व्यंग्य न बल्कणम बकबास , अवोळ डाळु च।
व्यंग्य माँ मानव संबंधी विचार सरासर नकारात्मक हूंदन जन कि उत्तेजना ,विक्षुब्ध , उग्र , उपदरबी , निराशादायक , अराजक , अभद्र, स्वार्थी , चिड़चिड़ापन से भर्यां । या बिडंबना च कि जौं विचारुं से मानव समाज तै दूर रौण चयेंद वी नकारात्मक विचार ही व्यंग्य का असला, युद्धसामग्री , लड़ै कु समान हूंद। उत्तेजना ,विक्षुब्ध , उग्र , उपदरबी , निराशादायक , अराजक , अभद्र जन अमानवीय विचार व्यंग्य तै तेजधारी , तीखा , तातो बणान्दन। अफ़सोस !
इलै आप दिखिल्या कि व्यंग्यत्मक कविता , लेख , कथा , उपन्यास , नाटक फिलम मा एक या और मुख्य पात्र बेहूदा , बेढंगा , निपट स्वार्थी , लालची , मुर्ख , धूर्त, दम्भी , अफखवा , अफु तै हुस्यारूं हुस्यार समझण वाळ हूंदन।
बकै अगला भाग मा .... 2
आखिर व्यंग्यकार मार किलै खांदन ?
(व्यंग्य - कला , भावनाओं , विज्ञान का करतब : भाग 2 )
भीष्म कुकरेती
आपन बि सूण होलु या पढ़ी होलु बल फलण व्यंग्यकार की आदिर खातिर डंडों से ह्वे या फलण राजनीतिक दलक कार्यकर्ताउंन फलण अखबारौ कार्यलय मा तोड़ फोड़ कार -किलै बल की व्यंग्यकारन फलण दल की नीतियूं विरोध कार। भारत माँ हरिशंकर परशाई की पिटाई संघ का लोगुन करि छे। चो रामस्वामी पर भौत दैं मुकदमा चौल। एक बामपंथी स्ट्रीट नाटककार तै बि पिटे गे छौ। ममता बनर्जी तो बदनाम च कि वीं तैं अपण विरुद्ध व्यंग्य नि चयेंद अर वा व्यंग्यकार तै जेल भिजण मा बिलकुल बि नि शर्मान्दि। ममता बदनाम च कि व विरोधी व्यंग्यकार तै चुप कराणम बिंडी विश्वास करदी।
अबि एक साल पैलि पेरिस मा अलकायदा वळुन व्यंग्यकारुं निर्मम हत्या कार। व्यंग्यकार जोनाथन स्विफ्ट , कमेडियन पाइथॉन , आद्ययूं पर आक्रमण की तयारी ह्वे छे या आक्रमण ह्वे।
भौत सा देसुं मा बर्मा या ईरान मा भौत सा व्यंग्यकारुं तै देस निकाळा ह्वे या व्यंग्यकारुं तैं देस बिटेन भगण पोड़।
मतलब व्यंग्यकारुं से लोग चिरड़ेन्द छन अर कबि इथगा नराज हून्दन कि व्यंग्यकार की हत्या बि कर दींदन।
यांक अलावा भौत सा व्यंग्यकारों व्यंग्य से असीम चर्चा बि शुरू ह्वे जांद।
व्यंग्यकार पर शाब्दिक या शारीरिक आक्रमण , व्यंग्यकार तै जेल या देशनिकाला या चुप कराणो टुटब्याग का पैथर सबसे बड़ो कारण च कि व्यंग्य वास्तव मा अपण आप मा आक्रमण च। जी हाँ व्यंग्य अहिंसात्मक। भारत मा बुले जांद कि मनसा वाचा कर्मणे मादे क्वा बि हिंसा नि हूण चयेंद किन्तु व्यंग्य को काम इ शब्दों से बुगदरा मारण च , चुभाण च , घुप्याण च , डंक मरण च , शौलकुंड पुड़ाण च , खुकरी तरां घैल करण च , शब्दों से विश्वास पर खैड़ाकी या मुंगरो चोट करण च। अर यदि आप कै पर आक्रमण करल्या तो अवश्य ही कै ना कै भांतिका आक्रमण आप पर अवश्य होलु। सबि आर लक्ष्मण तो नि ह्वे सकदन कि शिकार शिकार्या तै पसंद करदो।
व्यंग्य वास्तव माँ मनसे हिंसा च अर हिंसा प्रतिहिंसा तै भट्यान्दि। इलै व्यंग्यकारों का दुसमन बि पैदा ह्वे जांदन।
दुसर व्यंग्य एक दुधारू तलवार च। भौत सा बगत व्यंग्यकार अपण हिसाब से कुछ हौर रचद किन्तु पाठक कुछ हौर समझद तो भी व्यंग्यकार आलोचना का शिकार हूंद।
फिर व्यंग्य अर आलोचना - कटु आलोचना -बीभत्स आलोचना का मध्य या तो सीमा रेखा नी च या भौत पतळो वाड हूंद तो व्यंग्य तै क्या से क्या समझे जांद।
जरा एक बात बतावो उनि बि नकारात्मक टिप्पणी , आक्रमण -प्रतिआक्रमण, अराजकता कु समर्थन , पागलपन , मूर्खता कु पसंद करद ?
आक्रमण से आक्रमण पैदा हूंद अर इन मा व्यंग्यकार की आलोचना अवश्यंभावी च।
व्यंग्य अर व्यंग कु टंटा
(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक : भाग 3 )
भीष्म कुकरेती
चूँकि गढ़वळि मा माध्यम नि हूण से कबि बि साहित्यिक विमर्श अधिक नि ह्वे तो व्यंग्य अर व्यंग का टंटा गढ़वळि मा नि ह्वे। हिंदी मा सटायर तै क्वी व्यंग्य बुल्दु तो क्वी व्यंग। चबोड़ , चखन्यौ गँवाड़ी शब्द माने गेन तो कवियुंन या समीक्षकुंन कबि नि ब्वाल कि वु या फलणी चबोड़्या कवि /कवित्र्याणि च। . व्यंग्य तै राजगद्दी मील अर चबोड़ , चखन्यौ शब्दुं तै गढ़वाली साहित्य या समीक्षा मा पटरानी रखैल /ढाँटणि (?) कु पद बि नि मील। बस शायद मि इ चबोड़ , चखन्यौ से चिपक्युं छौं . निथर चाहे ललित केशवान हो , पूरण पंत 'पथिक हो ' या हरीश जुयाल हो सब अफु तै चबोड़्या /चखन्यौर्या नि बुल्दन बल्कणम व्यंग्यकार बुल्दन। असलम चबोड़ या चखन्यौ शब्द गढ़वळि मा कुछ कुछ नकारात्मक शब्द छन अर कमजोरी तै हंसी -मजाक मा दिखाणो कुण प्रयोग हुँदन अर वास्तव मा छन कतल्यौ करदारा शब्द अर कार्य।
पर जु व्यंग्य पर मि इथगा लिखण इ मिसे ग्यों तो व्यंग अर व्यंग मा भेद की छ्वीं त लगाणी पोड़ल कि ना ? व्यंग माने अंग मा कुछ ना कुछ कमी। व्यंग्य निर्देशन याने व्यंग पर आघात।
संस्कृत मा व्यंग्य शब्द अवश्य च अर अर्थ बि च पर आज व्यंग्य पर धारणा अलग च तो संस्कृत का प्राचीन साहित्य मा अलग धारणा छे ।
संस्कृत काव्यशास्त्रीय अध्यन साहित्य माँ व्यंग्यार्थ पर बात ह्वेनि ना कि व्यंग्य पर।
विश्वनाथ कु साहित्यदर्पण अनुसार अर्थ तीन प्रकार का हूंदन -व्याच्यार्थ ( अमिघा शक्ति द्वारा प्रतिपादित ) ; लक्षणार्थ (लक्षण शक्ति द्वारा बोधित ) अर व्यंग्यार्थ अर्थात जु व्यंजना शक्ति द्वारा अवगत कराये जांद।
साहित्यदर्पण मा व्यंग्यार्थ द्वी किस्मौ हूंद -
अ -गूढ़ प्रयोजनवती
ब- अगूढ़ प्रयोजनवती
गूढ़ प्रयोजनवती साहित्यिक व्यंग्य ह्वे अर इख्मा अध्ययन , मनन चिंतन से प्रतिफल प्राप्त हूंद। तो अगूढ़ प्रयोजनवती आज हिसाब से ठट्टा , सस्ता हास्य आदि ह्वे।
संस्कृत माँ वक्रोक्ति सिद्धांत च।
वास्तव मा संस्कृत कु व्यंग्य एक व्यापक रूप च। अर अंग्रेजी कु सटायर कखि ना कखि व्यंग्य का नजिक बैठद।
अंग्रेजी कु सटायर लैटिन कु सैटुरा शब्द से निकळ। सैटुरा शब्द कु अर्थ च उबड़ खाबड़ या गड़बड़झाला याने हौच पौच। दुसरै निंदा /काट सटुरा का वास्ता प्रयोग हूंद छौ। अमर्यादित नाटकुं वास्ता तो रोम मा 1965 मा बि सटुरा ही बोल्दा छ। सटायर कु व्यापक रूप ह्वे गे जन भारत मा व्यंग्य अब एक व्यापक रूप मा प्रयोग हूंद।
व्यंग्य की परिभाषा क्या च ?
(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक : भाग 4 )
भीष्म कुकरेती
पुरण पन्त पथिक बुल्दन बल चबोड़ /व्यंग्य से लिख्वार भ्रष्ट अर दुरजनु को छाती मा कील घुट सकद अर बंचनेरुं तैं रौंस बि दींदु
मदन डुकलाण बोल्दु बल व्यंग्य क्या-बुन्या-क्या-कन्या वालुं क खलड़ गाडण मा भौत कामगर ब्यूँत च
हरीश जुयाल माणदो बखरों भेष मा लुक्याँ बागु, स्याळ रूपी नेतौं /ऑफीसरूं तैं खुले आम जुत्याण /लत्याण ह्वाऊ या अपणा गौं क भ्रष्ट पधान तैं स्ब्युं समणि रुवा ण ह्वाऊ त बस एक इ दवा च चबोड़ इ चबोड़ मा जुत्याओ , चखन्यौ मा ल्त्याओ अर मजाक मा इ सै रुवाओ
भीष्म कुकरेती को मानण च कुनेथी, कुबोल्या उटंगी (नटखट ) उतड्यू (असभ्य) उदभरी (उत्पाती ) क्मसल (कमयोग्य) कलजुगी ( अन्यायी )कुकराण (सभा मा असंगत बात ) कुजात (दुष्ट ) कुहाल, खचराट , खच्चा (काम में बाधा डालने वाला ) छ्ग्टो (ठग ) , कुढब, , , फदौण वलू, (किसी को विश्वाश दिला कर ), निगरू (निर्दयी ) करुड (कठोर व निर्दयी ) अन्यायी जन गुण या मनिखों की काट करणो बान चबोड़ से बडो अस्त्र, शस्त्र , हथयार, च
रॉबर्ट इल्लियट चबोड़ या व्यंग्य की परिभाषा इन दीन्दो , " चबोड़ या व्यंग्य या सटाइर साहित्य, अर हौरी बि कलों (जन कि बल रिख्डा (चित्र), स्वांग (नाटक) या फिल्म ) मा एक ब्युंत (विधा ) च चबोड़ मा चबोड्या पाप, मुर्खपन , बेव्कुफ्फ़ी , क्म्जोर्युं तैं बतांदु अर फिर वै या वीं बुरे तैं शर्मशार करद .उन त चबोड़ /व्यंग्य एक तरां मसखरी या मजाक च पण यू एक सामजिक काट बि च जरोरी च (Encyclopeadia Britenica, 2004 )
लोर्ड बईरोन बुलद बल मुर्खता म्यारो विषय होंद, अर चबोड़ /व्यंग म्यारो गीत
जुवेनल बोल्दु थौ बल तुम व्यंग्य/चबोड़ क्र्याँ बगैर रै इ नि सकदा
रॉबिन विलियम न बोली थौ बल कैन बोली बल चबोड़/व्यंग्य मोरी गे व्यंग्य/चबोड़ त जिन्दो च अर ख़ास व्हाईट होंउस (राजनैतिक -क्वाठाभितर , गलियार्रौं डंड़यळ या बड़ लोखुं इख ) मा ज़िंदा च
अलेक्जेंडर पोप को बुलण छौ कि जु बडे या बधाई लैक नि ह्वाऊ अर वैकी बड़ें ह्वाऊ या बडाउ मांगे जाऊ (प्रशंशा ह्वाऊ ) त येइन बड़ें तै लुकयुं चबोड़ माने जाण चयेंद याने छद्मधारी व्यंग्य
ब्लादिमीर नाबोकोव त इन बुल्दु बल " व्यंग्य/चबोड़ /चखन्यौ त सिखाणो पाठ च त पैरोडी या नकल सिरफ़ बौगाणो खेल च "
जोनाथन स्विफ्ट का विचार च बल चबोड़/व्यंग्य इन आइना/ऐना /क्कंच च बल जखमा दिखण वा ळ दूसरों का छैल (कुकर्तब ) इ नि दिखदु बल्कण मा अपण छैलू बि दिखदु
बेन निकोल्सन त इन बोदू बल चबोड़/व्यंग्य जोरदार चीज च . व्यंग्य एक गम्भीर विधा /ब्यूँत च जनी राजनीति मा तिड्वाळ पोड़दी तन्नी चबोड़ मा पैनोपन आंदो किलैकि व्यंग्य मा ही बोध च ज्ञान च तत्व च
लिओ रोसटेन व्यंग्य/चबोड़ तैं कडु वाट पर केन्द्रित विधा/ब्यूँत माणदो
डाउन पोवेल को मनण च बल व्यंग्य/चबोड़ - जन लोग छन (वोई व्यंग्य च), व्यंग्य रोमांस च किलैकि लोक उन होण चांदन जन उ नि छन , चबोड़ / व्यंग्य त असलियत च
समाचार पत्र (छापा ) मा व्यंग्यात्मक व्यंग्य का बारा मा जेओर्ज काफ्मन बुलदो बल व्यंग्य/चबोड़ छ्न्छर (शनिबार) कुणि बंद ह्व़े जांद
मोली इविंस इन ब्वाद , " साख्युं बिटेन इन हूंद गे बल चबोड़/व्यंग्य , सगत्या (शक्तिशाली ) पर निसगत्या (शक्तिहीन ) को आक्रमण करणों बडो हथ्यार च "
माइकल फ्लान्दर्स को बुलण च बल व्यंग्य लुक्युं सच तैं खैन्चीक भैर लान्दो
इस्सक हेस लिखदो बल जख्म व्यंग्य/चबोड़ खतम होंद उखम बिटेन असहिष्णु , कट्टरपंथी धार्मिक नेता असह्य ह्व़े जान्दन
इडवार्ड यंग क लिख्युं च बल व्यंग्य/चबोड़ आज तैं भोळ दिखान्दो अर आजै कमजोरी दिखांद
ज़ोन ओल्ढम कु बुलण च बल कलम अस्त्र च शस्त्र च अर व्यंग्य/चबोड़ वैको पैनोपन .
चन्द्रसेखर रेड्डी क हिसाब से ब्रित्तानुगामी प्रहारमय व्यंजना को नाम व्यंग्य च (गोळ घुमैक जै बात से चोट लगद )
मेरिडिथ कु बुल्युं च बल व्यंग्यकार नैतिकता को ठेकेदार च जु गाँ गौ ळ की गन्दगी साफ़ करदो
ए निकौल त इन लिखद ," व्यंग्य ये सीमा तक कटु ह्वे सकुद कि वैमा किंचित बि हौंस -हंसी नि हो। व्यंग्य भौत तीखो वार करदो। व्यंग्य मा , विनम्रता अर आदर नि हूंद। व्यंग्य निर्दयता पूर्वक प्रहार करदो। कै तैं बगैर माफ़ कर्याँ व्यंग्य अपण समयकी सरि परिस्थित्युं खुलेआम धज्जी उदांदू। "
हरिशंकर परसाई बोल्दन बल व्यंग्य जीवन से मुखाभेंट (साक्षात्कार ) करदो , जीवन की आलोचना करद बिसंगतियों , कुसंग्तियों , ..अर पाखंड को पर्दाफास करदो
शरद जोशी बुल्दन बल व्यंग्य अन्याय , अत्याचार अर निराशा का विरुद्ध एक अभिव्यक्ति च
रविन्द्र त्यागी बोल्दो बल भ्रष्टाचार कुरीत्त्युं को भंडाफोड़ व्यंग्य से ही ह्व़े सकद
शंकर पूणताम्बेकर बुल्दन बल व्यंग्य युग की विसंगतियों की वैदग्धपूर्ण अभिव्यक्ति च .
बालेन्दु शेखर तिवारी को मानण च बल व्यंग्य एक विशिष्ठ समाजधर्मी प्रेक्षण च .
लतीफ़ घोंघी को बुलण च बल व्यंग्य से चोट त लगण इ चयेंद पण बंचनेरुं तैं रौंस बि आण चयेंद .
गुजराती का विद्वान विनोद भट्ट लिखदन बल," व्यंग्य कुतगळी बि दींद , चुंनगी बि दींद , अर जरूरत पड़न घाव बि लगांद। व्यंग्य इन कलम च जखमा व्यंजना टपकणि रौंदि , सरलता बुन्नी /बुलणि रौंदि ; मार्मिकता हंसणि रौंदि अर सूक्ष्मता झलक मारणी रौंदि। "
मराठी का व्यंग्य भीष्म पितामह कोल्हटकर की समीक्षा करदा समीक्षक कानिटकर अपण विचार बथान्दन ," व्यंग्यात्मक साहित्य का हास्यास्पद पहलू तै इन उजागर करदु कि पाठक की वैको विरोध करणै तीब्र इच्छा जागृत हूण मिसे जांद । "
व्यंग्य का तीन अंग
(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक : भाग 5 )
भीष्म कुकरेती
व्यंग्य माँ उपदेश अधिक च या कम पर एक बात सत्य च कि व्यंग्य कु काम उपदेश दीण च पर वक्रोक्ति /ट्याड़ु ढंग से अर हंसी मिलैक। उपदेश का उद्देश्य ही व्यंग्य की रचना च। निखालिस उपदेश अर व्यंग्य मा अंतर हूंद अर ये विषय पर अग्वाड़ी विमर्श होलु।
कै बि व्यंग्य का तीन अंग हून्दन -
१- व्यंग्य रचनाकार याने व्यंग्यकार
२- दर्शक , पाठक या श्रोता (ग्राहक-प्रेषिती ) ( याने जैकुण व्यंग्य रचे गे )
३- जै पर व्यंग्य कसे जांद।
ग्राहक /पाठक और व्यंग्यकार इ व्यंग्य घटना का हिस्सा हून्दन। किन्तु यु जरूरी नी च कि जै पर व्यंग्य करे गे वु व्यंग्य घटना (Satire Event ) मा कुछ देरौ कुण बि शामिल ह्वावो। जन कि गढ़वळि मा राजनीतिज्ञों पर व्यंग्यात्मक साहित्य रचे तो ग्याइ किंतु शायद ही कै बड़ो राजनीतिज्ञन राजनीतिज्ञों पर कर्युं गढ़वळि व्यंग्य पौढ़ बि हो धौं।
व्यंग्य पर सबसे बड़ो व्यंग्य या च कि जु व्यंग्य कु टारगेट च /विषय च वु व्यंग्य की घटना मा शामिल नि हूंद।
रचनाकार की रचना तै जब ग्राहक ( दर्शक , पाठक या श्रोता ) आत्मसात करदो तो यु बि जरूरी नी च कि रचनकार व ग्राहक का मध्य क्वी संवाद हो।
फिर व्यंग्यकार तो विषयी (टारगेट याने जैपर व्यंग्य करे गे ) दगड़ संवाद स्थापित करणम असमर्थ च तो इखम बि व्यंग्यकार /रचनाकार टारगेट से संवाद नि कारो तो व्यंग्य रचणो उद्देश्य ही समाप्त ह्वे जांदो। उदाहरणार्थ - व्यंग्यकारन लालू यादव कु चारा घोटाला पर गढ़वाली मा व्यंग्य ल्याख , व्यंग्य वीडियो कैसेट बणाइ या कवि सम्मेलन मा कविता सुणाई। किन्तु लालू यादव तक या रचना पौंछण सर्वथा कठिन च। इखम रचनाकार और ग्राहक का मध्य कखि ना कखि संवाद च किंतु टारगेट का रचनाकार से , ग्राहक का टारगेट से क्वी संबंध स्थापित नि ह्वे सकद।
अब यूँ तीन अन्गुं मध्य संवादहीनता की स्थितियों मा व्यंग्यकार का पास विकल्प एकी च कि वैकि रचना ग्राहक का मन मा टारगेट का प्रति गुस्सा , घृणा , वितृष्णा पैदा करण मा सक्षम हो अर यो विकल्प ही व्यंग्यकार का उद्येस्य हूण चयेंद।
फिर यदि व्यंग्यकार उस्ताद च तो वो इन रचना रचो कि रचना चर्चा मा ऐ जावो और रचना या रचना का मंतव्य टारगेट का पास पंहुच जावो। नरेंद्र सिंह नेगी का गीत ' नौछमी नारेण ' अर कथगा खैलु' सीधा टारगेट (क्रमशः नारायण दत्त तिवारी व डा रमेश पोखरियाल 'निशंक ) का पास पौंछेंनि। द्वी दैं टारगेटन प्रतिक्रियास्वरूप नरेंद्र सिंह नेगी का विरुद्ध कुछ प्रतिक्रियात्मक कदम बि उठैन। इखम नरेंद्र सिंह नेगी का द्वी व्यंग्युंन ग्राहक व टारगेट का साथ कै ना कै रूप याने सीधा या अपरोक्ष मा संवाद स्थापित कार।
पर नरेंद्र सिंह नेगी अपना आप मा एक महशक्ति च तो नेगी का काम सरल ह्वे गे। किन्तु प्रत्येक व्यंग्यकार इथगा शक्तिशाली नी च कि वु ग्राहक व टारगेट दुयुं दगड़ संवाद स्थापित कर साको।
गढ़वाली साहित्य मामला मा सबसे सरल व सही विकल्प च बल रचनाकार इन रचना रचो कि ग्राहक व्यंग्य विषय की चर्चा का वास्ता कटिबद्ध ह्वे जावो। यदि ग्राहक व्यंग्य विषय पर जगा जगा चर्चा करण लग जावो तो समझो कि व्यंग्य सफल ह्वे गे।
अन्तोगत्वा व्यंग्यकार तै ग्राहक (पाठक , श्रोता , दर्शक ) तै ही झकझोरण पोड़द कि ग्राहक टारगेट का प्रति विद्वेष , क्रोध , रोष आदि दिखै साको।
व्यंग्य तबि गाहक तै झकझोर सकुद जब व्यंग्य विषय और शैली झकासदार हो।
*** भोळ -व्यंग्य अर उपदेश पर विमर्श होलु
समाज मा व्यंग्य से सजा बि दिए जांदि
(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक : भाग 6 )
भीष्म कुकरेती
सब्युं तै अनुभव होलु बल घौरम , गांवम , मुहल्ला मा कै तै छुटि मुटि सजा दीण हो त वैका /वैकि ठट्ठा लगाये जांद। कै तै शरमैक सजा दिलाये जांद अर याँकुण हंसी , व्यंग्य , चखन्यौ कु सहारा लीण आम बात च। समाज द्वारा व्यंग्य से शरमवाण बड़ी सजा ही हूंदी।
जब कैको नौनु या नौनी का नाक से सींप बगणु हो तो नॉन /नौनी कुण बुले जांद ," आह त्यार नाक से गंगा जमुना बगणी छन। अर इन मा द्वी चार लोग हंस जावन तो नौनु /नौनी रुणफ़त बि ह्वे सकदन। " यु शब्द नौनु /नौनी कुण असल मा शाब्दिक सजा ही च। शब्द बच्चा का माँ बाप का समिण बुले जादन तो भी ब्वे बाबु कुण शरम की बात च। शरम लैकि सजा दिलाण समाज मा मान्य च। किन्तु यु केवल छुट समाज और एकसमान समाज याने छुटि जगा का वास्ता कामयाब तरीका च। बड़ो समाज या बड़ो परिदृश्य मा हास्य व्यंग्य से सजा दिलाण जरा कठण इ च।
साहित्यिक समाज अपण आप मा छुटु समाज च , खासकर गढ़वळि साहित्यिक समाज। इलै यु दिखे गे कि गढ़वळि साहित्यिक समाज मा एक साहित्यकार हैंको साहित्यकार की खिल्ली नि उड़ान्द। उन आलोचना बि भौत कम मान्य च तो एक हैंक साहित्यकार पर व्यंग्य करण बि बुरु माने जांद। यु साबित करदो कि हास्य अर व्यंग्य सजा दिलाणो करदो।
हमारा सांस्कृतिक कर्मकाण्डुं मा हास्य -व्यंग्य शामिल च जखम एक हैंक तै नीचा या सजा दीणो अपरोक्ष कोशिस बि हूंदी। ब्यौ काज मा बर पक्ष तै हौंस इ हौंस मा गाळी दीणो रिवाज एक तरह से नीचा दिखाणो कु एक रूप च।
मजाक या मखौल उड़ाण एक तरह को हथियार हि हूंद।
साहित्य मा व्यंग्य से कै अभियोगी या बुराई तै सजा दीण कठिन च किलैकि साहित्य मा परिपेक्ष्य बड़ो ह्वे जांद।
26/ 8/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti
व्यंग्य विधा च या शैली ?
(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक : ( भाग - 7 )
भीष्म कुकरेती
विद्वानुं मध्य या बहस पुराणि च कि व्यंग्य एक विधा (genre ) च या शैली (style ) च। व्यंग्यकार हरीश परसाईं का हिसाब से व्यंग्यौ क्वी स्ट्रक्चर नी च तो यु असल मा एक स्पिरिट च ना कि विधा। हरिशंकर कु बुलण च बल व्यंग्य कथा , निबंध , नाटकआदि मा लिखे जांद। व्यंग्य कु दायरा बृहद च अर हर विधा मा प्रयोग ह्वे जांद। परसाई का हिसाब से व्यंग्य सभी विधाओं तै समाग्रहीत करदो। व्यंग्य को इष्ट भाव प्रेषण च ना कि विधा।
डा श्याम सुंदर घोष का अनुसार - व्यंग्य लेखन मा वस्तु तत्व ही विधा शिल्प का शीर्ष मा चमकद। इलै इ कुछ लोग विधा तै व्यंग्य का अधीन समझदन।
रवीन्द्र र त्यागी का हिसाब से विधा तो तीन इ छन - गद्य , पद्य अर नाटक। व्यंग्य तो रस च जु कैं बि विधा मा प्रयोग ह्वे सकद।
डा बालेन्दु तिवारी कु मनण च बल जब क्वी शैली या प्रविधि भौत लिख्याणु हो तो फिर व शिल्प एक विधा कु सम्मान अफिक प्राप्त कर लींदु। याने तिवारी व्यंग्य तै विधा मंणदन।
पप्रा किरीट का हिसाब से व्यंग्य विधा ना बल्कण मा एक शैली मात्र च।
शेरजंग का मुताबिक व्यंग्य तै एक स्वतंत्र विधा नि माने जै सक्यांद किलैकि व्यंग्य जौं विधाओं मा साहित्यिक रूप मा उभरिक आंद वु त य वास्तव मा पैलि विधा छन -निबंध , उपन्यास , कथा , नाटक , कविता आदि। शेरजंग कु मनण च जनि व्यंग्य तै विधा मने जाल वु हास्य का तरफ अधिक ढळक जालो। हास्य व्यंग्य का वास्ता एक साधन अवश्य ह्वे सकद किन्तु साध्य नि ह्वे सकुद।
अर म्यार मनण च कि व्यंग्य वास्तव मा एक भौण च , शैली च ना कि विधा।
28 / 8/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti
व्यंग्य मा उपदेश
(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक : ( भाग -8 )
भीष्म कुकरेती
अमृता भारती 'प्रसंगतः ' माँ लिखणी च बल साहित्यकार असल मा उपदेष्टा हूंद। शास्त्रकार अर साहित्यकार मा भेद च विधि का , शैली का , स्टाइल का। साहित्य मा उपदेश शब्दगत नि हून्दन अपितु हृदयगत्वा हून्दन। साहित्य माँ कान्ता सम्मित उपदेश हूंद याने स्त्रियुं मधुर संवाद जन।
इनि सुधार , उपदेश व्यंग्य मा आवश्यक शर्त च। बगैर उपदेश का व्यंग्य नि ह्वे सकद। व्यंग्य मा हास्य मिश्रित करीक उपदेश दिए जांद। यदि व्यंग्य मा हौंस नि हो तो व्यंग्य नि बुले जालो अपितु वु नीतिवचन बण जालु। व्यंग्य हौंस अर उपदेशक सामंजस्य च। हौंस अर उपदेश का मध्य एक फाइन बैलेंस हूंद व्यंग्य मा। व्यंग्य दुधारी खुंकरि तरां च। सुरेशकांत लिखद बल एक तरफ व्यंग्य हास्य से संभ्रमित करद त दुसर तरफ उपदेश से संभ्रमित करद। व्यंग्य का मुख्य उद्येस्य दुराचार , पापाचार, बदकरनामा हटाण हूंद, सुधार करण हूंद , एक सुखमय , सभ्य समाज की रचना पर ध्यान हूंद, पर दगड मा हंसी का गोलगप्पा बि दगड़म हूंद । उपदेशक बि सत्य की खोज मा रौंद अर व्यंग्यकार बि। दुयुंक आधार सत्य ही हूंद किन्तु दुयुंक शैली मा भारी हूंद।
उपदेशक कठिनायुं पर चिंतन करदो और आध्यात्म का साथ सुधार लाणो बान लोगुं तै अड़ान्द च तो व्यंग्यकार व्यवस्था पर चोट करदो और व्यवस्थाक समर्थन करदो जखमा सुधार स्वयं मा निहित हो। सुरेशकांत का बुलण सै च बल व्यंग्य मा फोटजनिक यथातथ्यता हूंदी पर उपदेश मा एक व्यापकता हूंदी। व्यंग्य मा भाषा अलंकृत या बक्रोक्ति , क्रोध दिलाऊ हूंदी जब कि उपदेश की भशा सपाट , विस्तृत व व्यापकता हूंदी ।
उपदेश सीधा सरल , अर सपाट हूंद तो व्यंग्य मा वैदग्ध्य , वक्रोक्ति अर भगार द्वारा टारगेट पत चोट करे जांदी। उपदेश मा नैतिक बोध जगाये जांद तो व्यंग्य माँ नैतिकता का साथ सुधार आवश्यक तत्व हूंद। व्यंग्य मा हास्य जरूरी खुराक हूंद तो उपदेश गुरु गंभीर हूंदन।
व्यंग्य मा कथगा , कन , कै तरां को हास्य हूण चयेंद यु व्यंग्यकार की लेखनी , रचनधर्मिता , वैचारिक सामर्थ्य पर निर्भर करदो। व्यंग्य मा हौंस नि हो तो वु आलोचना का नजिक पौंछ जांद अर भौत अधिक या असबंद्ध हौंस हो तो प्रभावहीन व्यंग्य बण सकद। इलै उपदेश अर हौंस का सामंजस्य व्यंग्य मा आवश्यक च। हाँ यु बि जरूरी नी च कि व्यंग्य मा हास्य ह्वाइ। बगैर हास्य का बि व्यंग्य रचे सक्यांद।
30/ 8/2015
हास्यविहीन व्यंग्य की कल्पना
(व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , भावनाऊँ मिऴवाक : ( भाग - 9 )
भीष्म कुकरेती
हौंस बगैर क्या चबोड़ , चखन्यौ , मजाक ह्वे सकुद क्या ? जी हाँ अब आधुनिक व्यंग्यकार बि मणदन कि ठीक च हौंस व्यंग्य का वास्ता जरूरी च पर इन बि ना कि बगैर हौंसक व्यंग्य रचे इ नि जावो।
भौत सा व्यंग्यकार अपण व्यंग्य रचना मा हौंस तै नेपथ्य मा छोड़ दींदन अर आग , अग्यो, बुराई पर चक्कू अधिक चालांदन। बुराई पर प्रहार करणो वास्ता व्यंग्यकार अस्त्र का रूप मा प्रतीक , अर बिडंबना का प्रयोग करदन। क्रोध , रोष गुस्सा दिलाण इनमा व्यंग्यकार का उद्येस्य ह्वे जांद। गढ़वळि गद्य व्यंग्य मा त्रिभुवन उनियाल अपण व्यंग्य हौंस तै महत्व दीन्दो , हरीश जुयाल अधिक हास्य लान्दो ; कमोवेश सुनील थपल्याल घंजीर बि हास्य तै व्यंग्य मा महत्व दींदु। कुकरेती अर कठैत द्वी तरफां ढळकदन। भौत सा बगत कठैत का व्यंग्यों मा बि हास्यविहीनता रौंदी अर व्यंग्य दार्शनिकता का तरफ ढळक जांद। पराशर गौड़ अर प्रकाश धषमाणा चूँकि पत्रकारिता आधारित व्यंग्य पर विश्वास करदन तो हास्य की कमी यूंक व्यंग्य मा मिल्दो। पूरण पंत 'पथिक ' अपण व्यंग्य मा गुस्सा, तीक्ष्णता , कटाक्ष तै अधिक महत्व दीन्दो। याने पूरण पंत व्यंग्य मा हास्य तै बिलकुल ही महत्व नि दीन्दो। यद्यपि पंत हास्य से छौं बि नि करदो पर वैक नजर बुराई पर जोर की कटांग लगाणो रौंद।
असल मा व्यंग्यकारुं उदेस्य पाठ्कुं तै हंसाण नि हूंद अपितु चेत करण , गुस्सा दिलाण , कै बुरै से दूर रौणै सलाह आदि हूंद तो हास्यविहीन व्यंग्य उत्पन ह्वेई जांद। हाँ एक समस्या ये लिख्वारन बि अनुभव कार कि हौंस नि रावो तो व्यंग्य या तो शुद्ध, सुखी आलोचना ह्वे जांद या दार्शनिकता का तरफ ढळके जांद।
/ 9/2015 Copyright @ Bhishma Kukreti
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