Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 723903 times)

Bhishma Kukreti

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Satire and its Characteristics, Satire and Humor in Kalidas Literature ,  कालिदास साहित्य में हास्य -व्यंग्य,  व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
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                कालिदास साहित्य मा हास्य -व्यंग्य
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    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग - 23    )

                         भीष्म कुकरेती
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महाकवि कालिदास संस्कृत का नाटक शिरमौर छन। ऊंको महाकव्य , गीतों में प्रतीकों से सटीक बिम्ब बणदन, कालिदासन शास्त्रीय शैली अपणाइ।  कालिदास का नाटकुं माँ चरित्र अपण पद अर जाती का हिसाबन व्यवहार करदन तो  कालिदास का नाटकुं माँ     
हास्य -व्यंग्य करणो काम विदूषक  /भांड करदन।  किन्तु विदूषक  का हास्य बि परिष्कृत हास्य व्यंग्य च। बलदेव प्रसाद उपाध्याय (संस्कृत साहित्य का इतिहास , 1965 , शारदा मन्दिर प्रकाशन ) लिखदन बल  कालिदास का कवितौं माँ हास्य व्यंग्य पर्याप्त मात्रा माँ च और उंका नाटकुं मा वीम का सिर बि दर्शकों तैं हंसाण मं कामयाब च , हास्य च तो व्यंग्य बि ऐई जांद।   गोविंदराम शर्मा (संस्कृत साहित्य की प्रमुख प्रवर्तियाँ, 1969  ) लिखदन की कालिदास का हास्य प्रयोजन बि श्रृंगार कारस का अनुकूल च।.
                      जे  . तिलकऋषिन अपण एक लेख ' THE IMAGES OF WIT AND HUOUR IN KALIDAS'S AND SUDRKA'S DRAMAS ' मा  कालिदास अर शूद्रक का नाटकों माँ व्यंग्य की पूरी छानबीन अर व्याख्या कार। कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुंतलम का रूपान्तरकार विराजन बि कालिदास कृत ये नाटकम हास्य व्यंग्य का कथगा इ उदाहरण देन।
अनन्तराम मिश्र 'अनन्त ' अपण ग्रन्थ 'कालिदास  साहित्य और रीति काव्य परम्परा (लोकवाणी संस्थान , 2007 , पृष्ठ 297 ) मा लिखदन बल 'हास्य -व्यंग्य क्षेत्र में रीतिकवि कालिदास से अधिक सफल हैं। यद्यपि कालिदास ने नाटकों में विदूषक के माध्यम से हास्य रस उद्भावना के  विभिन्न प्रयास किये हैं तथापि उनमे हास् भाव रीतिकाव्य के जैसे स्फुट और विशद नही हैं ' ।
सुषमा कुलश्रेष्ठ (कालिदास साहित्य एवं संगीत कला, 1988  ) मा बथान्दन बल कालिदास साहित्य मा हास्य भरपूर च (भरत कु नाट्य शास्त्र माँ    हास्य माँ ही व्यंग्य समाहित च ) . 
कालिदास का विदूषक अंक  मा हास्य व्यंग्य पैदा करणो बाण कालिदासन अलंकार , उपमाओं को बढ़िया प्रयोग कर्यूं च। विदूषक की भाषा में अपभ्रंश व प्राकृत शब्दावली प्रयोग हुयुं च।

विक्रमोर्वशीय का तिसरो अंक मा विदूषक का भोजन की कल्पना व्यंग्य को बहुत सुंदर उदाहरण च जब भोजन व चिन्नी  -मीठा प्रेमी प्रिय  विदूषक ' चिन्नी ' की याद  माँ चन्द्रमा की  तुलना  चिन्नी -पिंड से करद (ही ही भो खांडमोदासस्सिरियो उदीदो रा। ... )   ।
'मालविकागणिमित्र' मा बि विदूषक का हाव भाव व वार्तालाप हास्य -व्यंग्य पैदा करद ( तिलकऋषि)
शकुंतलम (दुसर अंक ) मा बि विदूषक का भाव भंगिमा , वार्ता से हास्य व्यंग्य पैदा हूंद। विदूषक का वार्तालाप शब्द अर मच्छीमार का शब्द सामयिक प्रशासन अर समाज पर व्यंग्य  पैदा करदन। 
कालिदास का सभी नाटकों में हास्य व्यंग्य उतपति का वास्ता विदूषक ही मुख्य चरित्र च। कालिदास का नाटकुं मा मुख्यतया   उपमा अलंकार का प्रयोग हास्य -व्यंग्य उत्पन करद।   


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/ 2/2017 Copyright @ Bhishma Kukreti

Discussion on Satire; definition of Satire; Satire and Humor in Kalidas Literature, Verbal Aggression Satire; Satire and Humor in Kalidas Literature,  Words, forms Irony, Satire and Humor in Kalidas Literature, Types Satire; Satire and Humor in Kalidas Literature,  Games of Satire; Satire and Humor in Kalidas Literature, Theories of Satire;Satire and Humor in Kalidas Literature,  Classical Satire; Censoring Satire; Satire and Humor in Kalidas Literature, Aim of Satire; Satire and Culture , Rituals, Satire and Humor in Kalidas Literature,
 व्यंग्य परिभाषा , व्यंग्य के गुण /चरित्र ; व्यंग्य क्यों।; व्यंग्य  प्रकार ;  व्यंग्य में बिडंबना , व्यंग्य में क्रोध , व्यंग्य  में ऊर्जा ,  व्यंग्य के सिद्धांत , व्यंग्य  हास्य, व्यंग्य कला ; व्यंग्य विचार , व्यंग्य विधा या शैली , व्यंग्य क्या कला है ?   
Satire and Humor in Kalidas Literature ,  कालिदास साहित्य में हास्य -व्यंग्य,


Thanking You .
Jaspur Ka Kukreti

Bhishma Kukreti

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Satire and its Characteristics, Sanskrit Drama by  Shudraka's Vidushak &  Satire,  व्यंग्य परिभाषा, व्यंग्य  गुण /चरित्र
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  शूद्रक का विदूषक याने हिंदी फिल्मों  का महमूद , ओम प्रकाश शर्मा का  कैप्टन हमीद
                      (संस्कृत नाटकुं मा हास्य व्यंग्य ) 
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    (व्यंग्य - कला , विज्ञानौ , दर्शन का  मिऴवाक  : (   भाग - 24   )

                         भीष्म कुकरेती
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 शूद्रक नामी गिरामी प्राचीन भारतीय नाटकोंकारों  मादे एक प्रमुख  नाटककार माने जान्दन। शूद्रक एक राजा व नाट्यलेखक छ्या (सुकुमार भट्टाचार्यजी  , विश्वनाथ बनर्जी ) । यद्यपि शुकध्रक की जीवनी बाराम भ्रान्ति ही च। 
शूद्रक का रच्यां मृच्छकटिकम , वासवदत्ता  अदि तीन नाटक माने जान्दन।
 शूद्रकन बि अपण नाटकुं  मा कालिदासौ तरां हास्य अर व्यंग्य उत्पति करणो बान विदूषक को सहारा ले।  कालिदास का या अन्य प्राचीन संस्कृत  नाटकुं विदूषक जख मन्द बुद्धि , लालची , खाउ हून्दन तो शूद्रक का मृच्छिकटिकम का विदूषक राजा का सहचर , अनुशासनयुक्त , अफु पर काबु  करण वळ अर चतुर च।  हाँ वाक्पटुता अर अलंकार प्रयोग दुइ प्रकार का विदुषकुं चारित्रिक गुण छन।  शूद्रक की या विदूषक चरित्र की परिपाटी  हिंदी फिल्मुं  मा सन 1970 तक राइ तो  ओम  प्रकाश शर्मा  सरीखा हिंदी जासूसी उपन्यासकारों न बि अपणै।
   
 मृच्छकटिकम कु पंचों  अंक मा वसन्तसेना द्वारा ब्राह्मण  चारुदत्त तै भोजन दीणम उदासीनता का प्रति मैत्रेय नामौ विदूषक कसैली , कांटेदार , कड़क टिप्पणी  उपमा अलंकार या कहावतों से करद -
--------------"बगैर जलड़ो कमल , ठगी  नि करण वळु बणिया , सुनार जु चोरी नि कारो ,  बगैर  घ्याळ -घपरोळ  की ग्रामसभा की बैठक  , अर लोभहीन गणिका मुश्किल से ही ईं मिल्दन। " -----
पंचों अंक मा विदूषक चारुदत्त तै हास्य व्यंग्य रूप मा सलाह दीन्दो -
--------"गणिका जुत्त पुटुक अटक्यूं गारो च जैतै भैर निकाळण  बि मुश्किल ही हूंद "  -----
मृच्छकटिकम नाटक का खलनायक च शकारा अर वैक  दोस्त च विट जैक नौकर च चेत। यी चरित्र अलग अलग बोली -भाषा वळ छन अर  प्राकृत याने स्थानीय भाषा प्रयोग करदन ।  (तिलकऋषि )
शूद्रकन प्राकृत अर संस्कृत का प्रयोग हास्य -व्यंग्य उत्तपन करणो बड़ो बढ़िया प्रयोग कौर।  मृच्छकटिकम मा कल्पना, उपमा  अर मुहावरों मिळवाक्  से तीखा व्यंग्य करे गे।

शूद्रक की शैली अनुसार ही हिंदी मा महमूद , जॉनी वाकर जन हास्य कलाकारुं से काम लिए गे तो जासूसी उपन्यासकार ओम प्रकाश शर्मा का कैप्टन हामिद बरबस शूद्रक रचित मृच्छकटिकम  का मैत्रेय चरित्र की याद  दिलांद।



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8 / 2/2017 Copyright @ Bhishma Kukreti

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Jaspur Ka Kukreti

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CEO should exercise Neeti (Prudence or Moral code)
(CEO Refresher – 1)
By- Bhishma Kukreti

अतः सदा नीतिशास्त्रम अभ्यासेद यत्नो नृपः।
यदिज्ञानांन्नरीपाद्याश्च शत्रुजित लोकरंजकाः।।   6 ।। 
सुनीतिकुशला नित्यं प्रभवन्ति च भूमिपाः।
शब्दार्थानां न किं ज्ञानं  व्याकरणाद्भवेत।।  7।।   
(शुक्रनीति )

  The Chief Executive Officer should exercise the Neeti Shastra in the organization. The CEO that exercises Neeti Shastra becomes successful in out beating the competitors and becomes successful in offering happiness to the personnel of the organization and associates.
When the CEO is versed with Neeti then only CEO can exercise the Neeti (suitable Management Style for the organization). Therefore, it is essential that CEO knows the Neeti.

  Neeti means righteous things or rules and regulations Neeti means the objectives, rules and regulations for the organization. After setting value system in the organization the CEO should live for values and should do what she/he says. 
The CEO should make a note for ever that discrepancies for moral code of conducts destroy the organization.
Living for values (Neeti) means enhancing energy into organization.

प्राकृतानां यादार्थानं न्यायकैर्बिना च किम।
विधिक्रिया व्यवस्थानां न किं मीमांसया विना  ।। 8 ।।
देहादीनां नश्वरत्वं वेदांतैर्न विना ही किम।
स्वस्वाभिमत बोधिनी शास्त्राण्येतानि सन्ति हि ।।9 ।।
Is it possible for getting the knowledge of nature (mind) and materials  without the use of logic ? 
Is it possible for knowing the executional devices of actions without analysis? Is it possible to know the ephemerical properties of material without knowing Vedas or physics etc ?  It means that knowledgeable wrote books for knowledge gaining.
(शुक्रनीति )
   The CEO should analyze the facts from various angles and not from one angle. Using logic is the best device for analysis. Historical knowledge (Vedas) is essential for using logic or for analyzing any fact. CEO should adapt Investigating properties for taking decision. CEO should use memory for logical thinking. The logical thinking comes by reading books, taking notes from the learned persons and by experiences.
Knowledge of Code of Conduct is must for CEO
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(CEO Refresher – 3)
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---Bhishma Kukreti: The CEO Management Guru
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सर्वाभीष्टकरं नीतिशास्त्रं स्यात सर्वसम्मतं।
अत्यावश्यं नृपस्यापि स सर्वेषां परभुर्यतः  ।।12   ।। 
 (All are aware that Neetishashtra (Treatise for Code of Conducts) is for achieving all types of target. Since, the king is master of subjects he should know it. शुक्रनीति )

    The code of conducts for every organization is essential and very important.  The CEO is first entity that has to know code of conducts and should follow the code of conducts set for the organization. Small organizations do not keep it in written form but large organizations should distribute the same to each employee.
   The code of conducts guides all managers for taking decisions. The frame works for taking decision in the organization are based on code of conducts of the organization headed by CEO.  The code of conducts helps the organization cohesive working by employees inside the organization and guides he dealing with external stakeholders.  The well framed codes of conducts help in protecting the prestige, legal standing and assets of organization when needed.
  Code of conducts can cover any scope, from corporate level to workgroup level.
  The CEO should know that employees will act as per code of conducts when the CEO has knowledge of code of conducts and he/she follows the code of conducts. For new organization, CEO should frames code of conducts with the help of all department heads.
Copyright@ The CEO Guru, Mumbai, India, 23/4/2017

 (CEO Refresher – )
By- Bhishma Kukreti: The CEO Management Guru, Mumbai, India

Bhishma Kukreti

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नरेंद्र कठैत द्वारा स्व पूरण पंत पथिक को श्रद्धांजलि
पथिक जी की गढ़वळि साहित्य का निब्त लगायिं ‘धै’ साख्यूं तक सुण्ये जालि, गुणै जालि !
गढवळि साहित्यकार बड़ा भै पूरण पंत‘पथिक’ जी का भग्यान होणै दुखद खबर मिली। वुन त पथिक जी कु सरेर लम्बा टैम बिटि वूंकु दगड़ु नि निभौणु छौ। फिर्बि हमतैं य उम्मीद कतै नि छै कि कड़क मिजाज पथिक जी इथगा जल्दि हमसि दूर जाला। पर क्य कन उम्मीद हमतैं आखिरी तक इनी झुठू दिलासु दिलौणि रौंदि। बिधि का बिधान का ये मामला मा हम सबि बेबस ह्वे जंदां।
पथिक जी दगड़ा आखरी मुलाकात २०१२ मा एक कार्यक्रम मा देहरादून मा ह्वे छै। टेलीफून पर कबि-कबार बातचित बि होणी रौंदि छै। ब्वल्ये बि जांदु कि दुख बांटी तैं हल्कु ह्वे जांदु। पर पिछला लम्बा टैम बिटि पथिक जी ब्वन-बचल्योण मा बि दिक्कत मैसूस कना छा। यिं बात तैं हम बि समझणा रयां। हमतैं यिं बातौ अफसोस च कि वु अपड़ि वीं पिड़ा अफ्वी प्येणा रैनी। साणा रैनी। अब जबकि पथिक जी हमारा बीच ससरेल नीन त गढ़वळया पैथर हमारा आंखा खुलुण सि पैलि अर पथिक जी का आंखा बंद होण तकै सर्रा तस्बीर हमारा ऐथर जरा-जरा कैकि घुमणी च।
पथिक जी ब्वल्दा छा- ‘भुला! भाषा मा हमारि संसकिरति च अर साहित्य मा संस्कार। इलै दुयूं पर आंच नि औण चऐणी।’ अर ये हि ध्ये लेकि पथिक जी आखिर तक अपड़ि भाषा ठडयोण मा लग्यां रैनी।
पर सच बात त या च कि हम मा पथिक जी कि प्रतिभा तैं तोलुण लैक ‘बाट’ हि नि रैनि। अपड़ि ‘वाह-वाह’ मा हमुन वूंकि ‘आह’ बि नि सूणी।
फिर्बि य फकत एक ‘धै’ नि एक सचै बि च कि पथिक जी की गढ़वळि साहित्य का निब्त लगांिय ‘धै’ साख्यूं तक सुण्ये जालि, गुणै जालि ! परमेसुर सि यि प्रार्थना च कि यिं दुखै घड़ि मा पथिक जी की आत्मा तैं शान्ति अर सब्बि आपस मित्रू तैं धीरज रखणै सग्ति मिलु।
पथिक जी तैं विनम्र श्रंद्धाजलि!
Tribute to late Puran Pant Pathik by Narendra Kathait , Tribute to Garhwali Language satirist Puran Pant Pathik,


Bhishma Kukreti

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गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया अर् सैर के पिर्रा प्याज ने तुमको घड़ि-घड़ि रुलाया.

व्यंग्य - नरेंद्र कठैत


गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया अर् सैर के पिर्रा प्याज ने तुमको घड़ि-घड़ि रुलाया.
कट्यां दूबलै धौंणि मा कुर्सी डाळी वून बोली- क्य रख्यूं ये पाड़ मा?
हमुन् पूछी- क्य नी ये पाड़ मा।
वून एक किनारा थूकी जबाब दे- अजि कुछ नै है।
-हमुन् अगनै तौंकी टोन मा बोली- कुछ क्या नै है इस पाड़ में? क्य सांस लेणू को खुली हवा नै है? छोया-मंगरों को ठण्डु पाणि नै है? माटै कि साफ सुथरी गन्ध नै है? गौं-गौळा नजीक है। आस-पड़ोस, आबत-मित्र है। याँ से बक्कि क्य चैये?
-अजि हवा, पाणि, माटा ही सब्बि धणी नै होता । जिन्नगी बढ़ाणे के लिए हौरि धाणि बि चैये। असली चीज है रुजगार। वो तो है ही नै ।
-किसनै बोला रुजगार नै है?
-काँ है तब?
-क्य नैपाळि अर् बिहारि पाड ़मा तमाखू खैणी चबाणै आता है। सि बि त् रुजगार करता है। खाता है, कमाता है, बच्यूं-खुच्यूं नेपाळ, बिहार भिज्ता है।
-सि त् मिनत मजूूर है।
-हम बि त् भैर मिनत मजूर है। होटलू मा भाण्डा मंजाता है। य पहरा पर डण्डा बजाता है। साब लोग त् इणती-गिणती का है। पर ये बोलो कि खाणे-कमाणे को बि सगोर चए।
-अजि सगोर तबि त् हैगा जब कुछ रस्ता रैगा। बिना रस्ता का सगोर को काँ पैटाओगे।
-अच्छा जेे बताओ संकराचार्य जीले बदरीनाथ अर् केदारनाथ जाके कै करा?
-कन कै करा? उन नै धरम को मजबूत करा। धरम का पाड़ा सिखाया।
-पर ये त् नै बोला था कि भगवान के ऐथर जो रुप्यों कि थुपड़ि दे, वे सणी अगनै गाडो। अमीर अलग अर् गरीब अलग लैन में लगावो।
-तब अमीर अर् गरीब की लैन किनै लगाई?
-रूजगार नै। अर् जरा इन बि बताओ, क्य भगवान के नौ पर होटल ढ़ाबा संकराचार्य जीन् खोला?
-तब वो होटल ढ़ाबा किनै खोला?
-रुजगार ने।
-सूणों ज्यां-ज्यां से सड़क बदरीनाथ, केदारनाथ जाते है वां सि लेके भगवान तक करोड़ो को रुजगार होते हंै। अब त् भगवान जी कु परसाद बिदेसूं बि जाते है।
-कन क्वे?
-रुजगार से।
-अजि ये काम सबका बस का नै है?
-किनै का नै है?
-हमारा बस का त् नै है।
-बस जे ही तो बात है कि पाड़ आधा त् करम कना का बाद बि सरम से नै खाता है। अर् आधा करम से नै धरम सि जादा खाते है।
-पर पाड़ में सब्बि धाण्यूं कि सुबिधा नै है।
-जै दिन तुम गौं छोड़ कै सैर में गये थे तिस दिन बि तुमनें इन्नी बोला था कि पाड़ में सुबिधा नै है। पर सैर मा ऐ के तुमनें क्य फरकाया। सैर मा ऐकी बि तुम गौं पर चिब्ट्यां राया। साक भुज्जी से लेकी चुन्नू झंगर्याळ तक गौं बिटि मेटि-माटि सैर में लाया। अल्लू तुमनंे गौं मा बि थींचा अर् सैर मा बि थींचता है। गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया अर् सैर के पिर्रा प्याज ने तुमको घड़ि-घड़ि रुलाया। अब तुमी जबाब देवो तुमनें सैर में क्य फरकाया?
-भै नौनो को पढ़ाया लिखाया रुजगार लगाया।
-नौनौ को पढ़ाया! क्य पढ़ाया? ऐ बोलो तोता जन रटाया अर् कबोतर जन उड़ाया। नौना तुमारि भोणी छोड़ी दुन्ये भगलोणी मा ग्याया। तुमुन् तो सर्रा जिन्नगी दौड़ लगाया, हाय तोबा मचाया, अर् आखिरी दां क्य कमाया? खप-खप्प जिकुड़ा पर बलगम का कुटेरा।
-पर भुल्ला !गौं मा अबि बि सब्यता नै है। जंगलीपना है।
-भैजी! जाँ तक सब्यता का बात है तो सब्यता तो तुमनंे बि जम्मा नै सीखा। बोलो कैसे?
-कैसे?
-बुरू तो नै माणेगा।
-नै-न !
- अपड़ि फेमिली का बिलौज बिटाळ के कन्धौं तक लिजाणा सब्यता तो नै है। अर् जाँ तक जंगल को सवाल है। चला माण गये गौं मा जंगली लोग रैता है। पर जंगल छोड़ के सैर मा एके बगीचा त् तुमनें बि नै लगाया। हियाँ स्याम-सुबेर तुम दुबलू छंट्याता है। गौं उजाड़ कै सैर लाया, अब दुयूंकि निखाणी कैके काँ जैंगे।
तौंने बोला- दिल्ली, डेरादूण जैगैं।
झूठ क्यांे कु बुलणा है, सि गये हैं। पर आज बि तख अगर तौं दुन्या के चैबाटे में छौळ लगता है तो पुजाणे घौर आता है। भैजी! सात धारों को पाणि त् हमनंे बि पबित्रर माणा है अर् स्यो हमको खप बि जाता है। पर ताँ से अगनै खरण्यां पाणि पर तो जम्मा बि बरकत नै है। अब अगर सि आता है तो कोई चिन्ता नै है...... तिनके उपर का परोख्या पाणि हमनंे अबि तक समाळी रखा है।
(अड़ोस-पड़ोस -व्यंग्य संग्रह)



Bhishma Kukreti

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Tribute to late Chinmaya Sayar by Narendra Kathait
साहित्यकार चिन्मय जी की पैली बरसी पर द्वी सब्द
जब तक लोक साहित्ये य छतरी रालि तब तक चिन्यम जी कि याद बि बरोबर औणी आली !!
दुन्या मा औणु अर दुन्या बिटि जाणु परमेसुरा हथ मा च। पर औण अर जाणा बीच जाण वळू हमारा बीच अपड़ि ज्वा छाप छोड़ जांदु, वांकि भरपै हमारि भरसक कोसिसा बाद बि नि ह्वे सक्दि। बस, जब-जब तौं पि़त्र्वी याद औंदि त तौं पि़त्र्वा ऐथर हम गौ बंध ह्वे जंदां। चेतन चोळा छोडुण सि पैली तौं पि़त्रू बिटि ज्वा सीख अर आसिरवाद मिली, वां खुणी एक बार न बल्कि बार-बार इस्मरण कनू हम अपड़ु फर्ज समझ्दां।
आज सि ठीक साल भर पैली ठेठ गुजराता छोड़ बिटि साहित्य स्यवा मा लग्यां, छुटा भुला गीतेश नेगीन् फोन पर जब य खबर सुणैं कि ‘साहित्यकार चिन्मय सायर अब हमारा बीच नीन’। गीतेशा यूं सब्दू पर बिस्वास नी ह्वे। फौरन सायर जी का मोबैल लम्बर 9634670194 पर वूं तैं टटोळनै कोसिस कै। अपड़ा मन मा सोची कि उन्नै बिटि हमारा बीच घुलीं-मिलीं आवाज सुणैली- हलो! भुला ऽऽ ! अर मि तपाक ‘ भाई साब ऽऽ नमस्कार!!!’ ब्वनू तयार रवूं। पर उन्नै बिटि वूंकि गम्भीर आवाजै जगा, वूंकि ब्वार्या ब्वल्यां यूं सब्दू पर मन मारी बिस्वास पक्कू कन प्वड़ि- ‘ससुर जीन् दस मार्च द्वी हजार सोळौ तैं आखिरी सांस ले।’ यिं खबर सूणी तैं गीतेशा फोन कन्ना बाद धुकधुक्या जु बादळ कट्ठा ह्वे छा वू छांटा ह्वे छा वु दिल मा गैरु घौ कैकि चिन्मय जी की फकत याद छोड़ गेनी। एक इना बग्त पर जब्कि हमारि भाषा अपड़ी जगा बणौणू तैं छटपटौणी च, चिन्मय सायर जना बड़ा साहित्यकारो हमारा बीच बिटि जाणू, हमारा साहित्यो भौत बड़ु नुकसान ह्वे।
चिन्मय सायर जी कि साहित्यिक जात्रा वूंका सुरेन्द्र सिंह चैहान मूल नौ बिटि सुरु होंदि। पर भरसक कोसिसा बाद बि सुरेन्द्र सिंह चैहान बिटि चिन्मय सायर बण जाणा हालात कबि मालूम नि ह्वे सक्नी। जथगा बार पूछी, हंस्दि-हंस्दि टाळ गेनी। पर इथगा सब्बि जणदन कि 17 जनवरी उन्नीस सौ अड़तालिसा,ै पौड़ी जनपद, रिखणी खाल बिलौका अन्दरसौं नौ का गौं मा, मयाळू मां चन्दा देब्या कोख बिटि खुशहाल सिंह चैहान जी का गुठ्यार मा आपौ जलम ह्वे।
पढ़ै-लिखै कि बुन्याद गौं का नजीकै इस्कूल मा प्वड़ि। अगनै एम.ए. तक स्या पढ़ै-लिखै, छोरा-छापर्यू जन ठोकर खै-खै मिली। लुपड़ा उमुरौ कुछेक बग्त, बाॅम्बै मा बि काटी। घौर ऐकि द्वी बार मास्टरी छोड़ी। पर आखिरी मा मास्टरी मा ही सकून मिली। सन् द्वी हजार आठ मा हैड मास्टरी बिटि रिटैर होणा बाद हौळ-तांगळ अर पुगड़ा-पटळौं कि धाण दगड़ा साहित्य स्यवा मा जुट्यां छा। गौं मा कम्प्यूटर बि रख्यूं छौ त दूर आपस मित्रू दगड़ा ब्वन- बच्याणू मौबैल बि। पर बिस्वास कबि बि कैका मुंड मा नी ढोळी। हाथन ही तमाम चिट्ठी पत्री लेखणा रैनी। चिन्मय जी की चिठ्यूं का ऐंच ‘शब्द संधान’ नौ का द्वी सब्द पढ़दि बिथेक कबीरौ खाकू दिमाग मा ऐ जांदू छौ।
दरसल, चिन्मय जी हमारि लिख्वार बिरादर्या वीं सोच का अग्ल्यार छा जौं सदानि यू पक्कू बिस्वास रै कि हमारा गौं-गौंळौं की भाषन् ही हिन्दी भाषा मजबूत ह्वे। इलै गौं-गौळौं की यिं भाषा तैं बचैण जरुरी च। पर हमारि अजक्यालै लोक भासै दसा अर दिसा देखी चिन्मय जी खुस नी छा। आपन एक चिट्ठी मा अपड़ि य पिड़ा इन लेखी- ‘अफसोस च! लेख्ण वळौं कु ना,.....बल्कण वूं कु तैं, जु गढ़वाळि ह्वेकि बि गढ़वळि पढ़ण-लेख्णै नी जण्दन। य सिख्ण समस्या समझ्दन। एक जगम बेधड़क लेख्यूं बि च कि-
लोग/ब्वे ;भाषा,जन्मभूमि, राष्ट्र।’
ैडुण सि बढ़िया
कटाणा छन.....
अर/म्यार लाटा
टै लटकै/ झटकाणा छन!!!
चिन्मय जीन् हिन्दी अर गढ़वाळि द्वी भाषौ मा खूब लेखी। गढ़वळि कबिता ‘पसीनै खुसबू’, ‘तिमलाऽऽ फूल’, ‘मन अघोरी’ अर ‘औनार’ किताब्यूं मा सुनागण जन चमकिणी छन। अन्धविस्वास पर यिं चोट देखा-
म्यर मुल्कौ जगरी
रात हूंण पर/लगांद रांसा
अर, फजल हूण से पैल
से जांद
लोग खुस छन कि/ यनम मवसि ह्वे जांद।
अजक्याळै भाग दौड़ वळि जिन्दगी पर चिन्मय जी की नजर देखा दि-
खाणा छल, पींणा, हंसणा छन / रूंणा छन
पण, ऐ जिन्दगी त्वे थैइ, क्वी-क्वी जींणा छन।
कबितौं मा मजबूत पकड़ होणा बाबजूद बि चिन्मय जी छर्क्या कब्यूं का जना लटका-झटकों सि दूर रैनी। एक-आत बार कबि मंच पर गै बि ह्वला पर वुन अफु तैं वे खांचा मा फिट नि समझि। प्रसिध्यू तै सौल-दुसाला ओडुण सि बढ़िया वून अपड़ा काम मा मग्न रैकि सिद्ध होण सहि समझी।
चिन्मय जी हलन्त, नवल, दुदबोली, बाल प्रहरी, शैलवाणी, हिमशैल मा चिन्मय जी बरोबर लेखणा रैनी, छपणा रैनी। गढ़वाळि मा नप्यां-तोल्यां सब्दू दगड़ा जु भौ चिन्मय जी का लेख्यां मा देख्ण मा मिल्दू, वू हौरि कक्खि खुज्योण पर्बि नि मिल्दू। इन ब्वन मा बि क्वी बड़पन्नै नी कि चिन्मय जीन् जु बि लेखी, दमदार लेखी। मन लगै कि लेखी। गैरा मा झांकी न, गैरा मा उतरी लेखी।
चिन्मय जी कु योगदान कुछैक पन्नो मा समेटणू सौंगु नी। द्वी किताब पे्रस मा छै। अज्यूं बि चिन्मय जी, थकी नी छा। वूं सि, अबि बि भौत उम्मीद छै। पर बिधातन अपड़ि हठपनै कु जु सांसू दिखै, वांकि उम्मीद, कै तैं बि, कतै नी छै।
चिन्मय जी आखिरी तक अपड़ि लोक माटि मा डट्यां रैनी। कक्खि उड-फुड भागी नीन्। यु ये लोक माटा दगड़ा चिन्मय जी कु गैरु पिरेम भौ हि छौ कि पराण बि वूंन अपड़ा माटा मा हि त्याग्नि। म्यरा मोबैल मा चिन्मय जी कु लम्बर आज बि मौजूद च। पर यिं बात जाणी-सुणी हौरि बि खुसि होंदि कि वे ही लम्बर बिटि वूंकि कुटुम्बदार्या बि हम दगड़ा अपड़ैसा तार जोड़ी रख्यां छन।
साहित्य तैं अगर हम एक छतरु माण ल्यां त् इन समझा कि चिन्मय जी का जाणन् छतरै एक सीक सि टूट ग्या। पर चिन्मय जीन् अपड़ा ठोस कामा बदौलत, ये छतरा तैं अपड़ि तिरपां बिटि जु बल अर टिकणै सामर्थ दे, वां तैं सब्दू मा बंधणु बड़ू मुस्कल च। फिर्बि इथगा जरूर बोल सक्दां कि जब तक लोक साहित्ये य छतरी रालि तब तक चिन्यम जी कि याद बि बरोबर औणी राली !! बरोबर औणि राली!!
10 मार्च 2017

Bhishma Kukreti

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सुनील भट्ट की गढ़वाली कविताएं

Garhwali Verses by Sunil Bhatt


          "रूईं प्वीं फेर वी  छुईं"

-
कख लग्याँ तुम चक्कर मा, तुमरी बी छ्वीं ।

Bhishma Kukreti

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आज दिनांक 06/11/2016 सुप्रभात  सभी मित्रों को जी। इनै सुणा धौं....बल चुनौं नजदीक....
                           जरा सभंलीऽऽक.....
                           यूँ भावों की एक तुराक ..

         "पंच केदार पुजुणू छौं"

हम्म....अब ऐ गेनी चुनौ नजीक,
हे मेरी ब्वै! अब दिख्याँ तौंकी गिच्ची।
चिफऽली, पितऽली हाँ भै सच्ची,
रड़म रैड़ी खेल्या धौं रड़ागुसी।।

अब तौंथैं मेरू भारी ख्याल आण,
द्वी दिनौं मी हीरो बणाण ।
गपोड़्यौंन करड़ करड़ कैरि,
म्यरा कंदूड़ क्वरी खूबकै खाण।
चुनौ मा तुमुथैं खूब बखाण,
अर जीतै माऽला गौऽला डऽलैकी,
घिडुड़ै जन फुर्र ह्वै जाण ।।

मी "उत्तराखंड" छौं दगड़्यौं,
टुप्प बैठी तमाशु द्यखुणू छौं।
मिल्याँ सच्चा सेवादार ईं दाऽऽ,
हे देव्तौं, पंच केदार पुजुणू छौं।।

एक तुराक/स्वरचित
  सुनील भट्ट 06/11/2016

Bhishma Kukreti

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सुप्रभात सभी मित्रों को जी। 17/11/2016
पलायन से जोड़ी देखा।
   
       "मेरी तिमलै डाली"

मेरी तिमलै डाली, झणी कु लछैगे,
चुफ्फा तलैई बी, खूबकै चुगनैगे।।
मी त रैग्यौं बौण जयूँ
अर नौना गोर चरौणा,
सासु बिचरी त भितरै सैंईं रैग्ये।
मेरी तिमलै डाली झणी कु लछैगे ।।

सुख दुख मा कबरयौं
कै ध्वारों जाणू नी हुयेंदू ,
तमाशुगेर बणी बल, ऊ त द्यखदै रैगे।
मेरी तिमलै डाली झणी कु लछैगे ।।
अपणी अपणी खाणी पीणी
दुख दर्द बी अपणा अपणा छन,
हर्चीगे अब ऊ सारू भरोसू, बुरू जमानु ऐगे।
मेरी तिमलै डाली झणी कु लछैगे।।

ठठा मजाक बणौण मा कै
हैंके कुछ नी ख्वयेंदू,
देल्यौं देल्यौं जै जैकी झणी कु छ्वीं सरकैगे।
मेरी तिमलै डाली झणी कु लछैगे।।
हम स्वचणा रा कि ऊ ऐ जाला
ऊ त ब्वना  तुम अफी लीजा,
छौंदा हथ्यौं खुट्यौं बल तू डूंडी किलै ह्वैगे।
मेरी तिमलै डाली झणी कु लछैगे।।

स्वरचित/**सुनील भट्ट**
17/11/17

Bhishma Kukreti

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सुप्रभात भैं बन्दौं। आज 19/12/2016
दिदौं दुख विपदा अपणौ मा ही त लगौदन है न?....
अर सारू भ्वरोसू भी....
एक आह्वान  दगड़ी उत्तराखंड का बड़ा बड़ा औदौं (औहदा) पर विराजमान समस्त उत्तराखंड्यौ थैं समर्पित मेरी या रचना।।
         
       "
पंच केदार पुजणू छौं" भाग-2

         
यनु सी लगणु अब
मेरी खैरी का दिन,
कटेई गेनी दिदौं।
गाती का दुखदा,
मौऽली सी गेनी दिदौं।।

म्यरा सैत्याँ, म्यरा पऽल्याँ
म्यरा अपड़ा आज जब देखुदू ऊँथैं
औऽऽ मत्थी टुक्कु मा बैठ्यूँ,
त मेरी वा सुखीं डाली,
हैरी भैरी  द्यखेंदी दिदौं।
अर वींका फाक्यौं कु खुशी मा नचणू,
म्यरा दिलै झैल बुझौंदी दिदौं।।

खूब ह्वुयाँ , खूब रयाँ
गौं गल्या, दगड़ी कुटुंब परिवार
अर अपणा भै बंदौं बी खूब ख्याल रख्याँ।
सदनी सुपन्यूऽऽई  द्यखणू ह्वै मीकुणै
अर अजी बी सुपन्या द्यखुणू छौं,
मी उत्तराखंड छौं दगड़्यौं,
पंच केदार पुजणू छौं ।।

स्वरचित/**सुनील भट्ट**
19/12/2016

 

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