Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 728295 times)

Bhishma Kukreti

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 English Language Poet Navin Dabral: as a Garhwali Poet

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 (गढ़वाल, उत्तराखंड,हिमालय से गढ़वाली कविता  क्रमगत इतिहास  भाग -304 )
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 (Critical and Chronological History of Garhwali Poetry, Part -304)
  By: Bhishma Kukreti     (Literature Historian)
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  Navin Dabral is famous English and Hindi poet. Navin Dabral created a couple of Garhwali verses too.
   Navin Dabral was born in Timli, Dabralsyun, Pauri Garhwal. Navin Dabral was professor of English literature in Ujjain, M.P. Navin Dabral is poet, art critic and freelancer journalist. Navin Dabral is now retired and is busy in promoting literary works.
  Navin Dabral created a few Garhwali poems. The following poem is an example of his caliber for illustrating perfect image.  Navin uses common phrases for creating perfect desired image.
मंगथ्या फूफू
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"हे ल्वालों तुम्हरी ट्वटगी ह्वै जाव
तुम्हरी बडचोदी मराव तुम्हारा पुंगडा बाँझा पड़ी जाव
तुम्हरी कपाळी फुट्टी जाव
तुम्ते टप्प निराश ह्वै जाव
" यन खिज्यान्दी छै मंगथ्या फूफू
छ्वारा छपड़ी गौं का लिक्योंदा छाई
मंगथ्या फूफू तें मज़ा लूटणो को
कैन बुरो नी मानी गालिओंन चपट्ट करदी छाई
खिज्ये खिज्ये की ज्युकडी से
कैको बुरो नी चाये
यखुली अपणा ड्यारम रैंदी छाई
 गत्ति अंगक्वैकी लगौंदी छाई
अपणो स्वाभिमान बणै राखी
कैका अगनै कपळी नी झुकाए
कैका अगनै हत्थ नि पसारी फुल्यां लटला की मंगथ्या
फूफू कुटार पुटिग आँख बैठी रए
झुर्रियों न मुख भरयूँ छाई
पूरा बावन अध्याई गीता लिखीं छाई
कर्म योगी मंगथ्या फूफा का चेहरा पर
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Facebook Post  ............१८ जुलाई २०१६
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2017
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चमोली गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; देहरादून गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; हरिद्वार गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ;
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History and review of Garhwali Poems, Folk Song from Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand, South Asia; History and review of Garhwali Poems, Folk Song from Tehri Garhwal, Uttarakhand, South Asia; History and review of Garhwali Poems, Folk Song from Dehradun Garhwal, Uttarakhand, South Asia; History and review of Garhwali Poems, Folk Song from Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, South Asia; History and review of Garhwali Poems, Folk Song from Chamoli Garhwal, Uttarakhand, South Asia; History and review of Garhwali Poems, Folk Song from Pauri Garhwal, Uttarakhand, South Asia; History  Garhwali poems from Haridwar ;


Bhishma Kukreti

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 बजट और सामजिक संस्थाओं , पत्रकारों व जागरूक  उत्तराखंडियों से अपील !
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अपीलकर्ता - भीष्म कुकरेती
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  बंटना और धड़े में लड़ना मनुष्य की नियति है। पहले हम उत्तराखंडी खबड  में बंटे थे ओर अब भाका में बंट चुके हैं हैं।  हमने अपने चश्मे भी नेहरू परिवार और संघी परिवार के कांच के बना लिए हैं।  इन चश्मों के कारण अब हम लाभ या हानिकारक कारकों की पहचान करने में असक्षम हो गए हैं अब हम पकोड़े तलने वाले व्यापार की तौहीन करने से चौखम्बा की चोटी में पंहुचना चाहते हैं तो मनरेगा  जैसी योजना (जिसमे आमूल चल परिवर्तन की आवश्यकता है) को कोढ़ी साबित करने में तुले हैं।  उत्तराखंडी खबड की भयंकर बीमारी से तो छुटकारा नहीं पा सका किन्तु उसने एक और महामारी को अपने घर बुला लिया है और वह बीमारी है हर वस्तु , हर उद्देश्य , हर योजना को भाका के चश्मे से देखना।
   कल बजट था तो सोसल मीडिया में दो ही प्रकार के गुलाब जामन बंट रहे थे।  बजट की तौहीन , बेज्जती और बजट का बिन जांच प्रशंसा।  क्योंकि हम भाजपा और कांग्रेस में बंट चुके हैं।
    बजट कोई भाजपा वालों का नहीं है कि कॉंग्रेस वालों को लाभ नहीं होगा।
      हम उत्तराखंडी बुद्धिजीवियों का कर्तव्य बन जाता है कि बजट से भविष्य में परिवर्तन को समझें और अपने समाज को समय के साथ अवसरों से लाभ उठाने के लिए प्रेरित करें।  हमने मिडल ईस्ट में नौकरी के फायदे को समय पर नहीं पहचनाना , हमने सॉफ्ट वेयर में क्रांति को नहीं पहचाना और  इन सुअवसरों से फायदों से त्वरित लाभ उठाने में पीछे रहे।
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           ----   बजट भविष्य की भविष्यवाणी कर रहा है ----स्वास्थ्य सेवा-
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सन 2018 -19 का बजट वास्तव में भविष्य की भविष्यवाणी कर रहा है और वह है स्वास्थ्य सेवाओं में क्रान्ति।  मोदी सरकार दुबारा जीते या ना जीते , मोदी सरकार की स्वास्थ्य सेवा नीति (10 करोड़ परिवारों को 5 लाख की गारंटी ) पहले यह योजना चाहे  घिसट कर चले या तेजी से चले किन्तु अब भारत में स्वास्थ्य सेवा में आमूल चूल परिवर्तन होना ही है।  2019 में बनने वाली दूसरी या यही सरकार अब इस नीति से पीछे नहीं हट सकती है।  जब मेडकल इंस्युरेन्स में तेजी आयी तो मेडिकल संस्थान खुलने  में तेजी आयी याने मेडिकल सर्विसेज में रोजगार के अवसर  बढ़े।  इसी तरह इस योजना से छोटे बड़े अस्पतालों में वृद्धि होगी फिर 1 .5 लाख हेल्थ सेंटर भी खुलेंगे।  याने यहां भी रोजगार पैदा होंगे।
       -----डाक्टरी  ना सही मेडिकल सर्विस में अन्य रोजगारों को पकड़ें  ----
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  हेल्थ केयर सर्विसेज में जब परिवर्तन होंगे तो हेल्थ केयर संस्थानों को सौ किस्म से अधिक टेक्नीशियन व विशेष टेक्नीशियनों जिसमे फिनेंस मैनेजमेन्ट भी आता है की आवश्यकता पड़ेंगी।  मैं कोशिश करूँगा कि इन टेक्नीकल पदों के बारे में अलग से पोस्ट करूँ।
   आज आवश्यकता है कि नॉन ग्रेजुएट उत्तराखंडी इन जॉब्स की और ध्यान दें और प्राइवेट या सरकारी संस्थाओं से आवश्यक ट्रेनिंग लें।
   हेल्थ केयर जॉब्स कल एक क्रेज बनने वाला है जैसे सॉफ्ट वेयर या इलेक्ट्रॉनिक्स उद्यम में जॉब्स क्रेज बना था।
 --- युवाओं को हेल्थ केयर में जाने के लिए प्रेरणा -
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 बुद्धिजीवियों का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि वे विभिन्न कार्यों व माध्यमों से से उत्तराखंडी  युवाओं को हेल्थ केयर प्रोफेसन में जाने हेतु प्रेरित करें
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  राजनैतिक कार्यकर्ताओं को राजनैतिक स्वार्थ छोड़ उत्तराखंडी युवाओं को हेल्थ केयर प्रोफेसन में आने हेतु प्रेरित करना चाहिए
 सामाजिक संस्थाओं को जागरण हेतु आगे आना सामयिक मांग है।

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     धनी उत्तराखंडियों के मेडिकल सर्विसेज में निवेश करना चाहिए -
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    जो उत्तराखंडी धनी व कर्मठ हैं उन्हें मेडिकल सर्विसेज व मेडिकल सर्विसेज ट्रेनिंग सेंटर खोलने में निवेश करना चाहिए।
 हर उत्तराखंडी को गाँठ बाँध लेनी चाहिए के हेल्थ सर्विसेज में भविष्य है तो युवाओं को हेल्थ केयर सर्विसेज में जाने के लिए प्रेरित करना ही चाहिए।


Bhishma Kukreti

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 डुबण वळि टीरी म पुरोहिती की समस्या
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रचना --  महंत देवी प्रसाद नौटियाल   (जन्म टिहरी , , टिहरी   गढ़वाल  )
Poetry  by -  Mahant  Devi Prasad Nautiyal
s = आधी अ
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला - 280 )
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इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
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जिंदगी मंदिरों मा गुजारी
बुढैंदि दौं कख जाला पुजारी
बाँध की योजना बणि गे सारी
कख जैं पराण खोळा पुजारी
कख पराण खोण ले खोण बुबा
पुजारी नि होणु , नि होणु बुबा
बन्धानु का नौ नि टका
पुजारी नि होणु , नि होणु बुबा।
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संदर्भ -एक थी टिहरी पृष्ठ (2010 ) -67 , 69

चमोली गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; देहरादून गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ; हरिद्वार गढ़वाल , उत्तराखंड , उत्तरी भारत कविता , लोकगीत  इतिहास ;

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हेल्थ केयर उद्यम में गैर चिकित्सक रोजगार
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भीष्म कुकरेती
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  भारत में हेल्थ केयर इंडस्ट्री बड़ी तेजी से बढ़  रही है। फ्रॉस्ट ऐंड सुलिवेन कम्पनी के अनुसार 2008 में हेल्थ केयर उद्यम का टर्न ओवर 45 बिलियन दुलर था तो सन 2016  में 110  बिलियन डॉलर पंहुचा तो सन 2020  में 280 बिलियन डॉलर पंहुच जाएगा। याने प्रति वर्ष वृद्धि ही वृद्धि होगी।  उत्तराखंडी युवाओं को हेल्थ केयर इंडस्ट्री में वृद्धि से लाभ लेकर इस उद्यम में रोजगार प्राप्ति हेतु  जतन करना चहिये।  हेल्थ केयर में कुछ नौकरियां इस प्रकार हैं -
१- मेडकिल असिस्टेंट (प्रशासनिक )
२-नर्सिंग असिस्टेंट (नर्स की सहायता )
३-हॉस्पिटलों में होम हेल्थ एड (प्रशासनिक )
४-नर्स (मेल नर्स व फीमेल नर्स )
५-थिरेपिस्ट  - मानसिक सलाहकार
६-फार्मेसी टेक्नीशियन
७-सोनोग्राफर
८- क्लिनिकल लैब टेक्नीशियन
९-डेंटल असिस्टेंट
१०-फार्मेसिस्ट
११- इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन
१२- रेडिओलॉजी टेक्निशयन
१३-फिजिकल थेरेपिस्ट्स
१४-डेंटल हाईजेनिस्ट
१५-हेल्थ इन्फॉर्मेशन टेक्नीशियन
१६- ओक्युपेसनल थेरैपी असिस्टेंट
१७-स्पीच लैंग्वेज पथोलॉजिस्ट
१८-रेस्पिरेटरी थेरेपिस्ट
१९-फेमिली प्रैक्टिसनर
२०-फ्लिबॉटॉमिस्ट
२१-सर्जिकल टेक्नोलॉजिस्ट
२२-फिजिसियन असिस्टेंट
२३-विटंर टेक्नोलॉजिस्ट
२४-साइकेट्रिस्ट सहायक
२५- मेडिकल अनुवादक (ऑन लाइन ऑफ लाइन )
२६- ऑक्यूपेशनल हेल्थ, सुरक्षा कर्मी
२७-लैब ऐनिमल केयर टेकर
२८-मसाज /मालिस थेरेपिस्ट
२९-फिजिकल थेरेपी असिस्टेंट
३०-डिस्पेंसिंग ऑप्टीशियन
३१-डाइटीशियन
३२ -वेटेरियन डाइग्नोसिस्ट
३३- अर्दली
३४-कार्डियो टेक्नोलॉजिस्ट
३५-मेडिकल इक्विपमेंट प्रिपियरर
३६-ऐनेस्थेटिसियन
३७-मेग्नेट संबंद्धी टेक्नीशियन
३७ अ  - सोशल वर्कर्स
३८- ब्लड टेस्ट विशेषज्ञ आदि
३९- रिसेप्सनिस्ट
४० -हॉस्पिटल प्रशासक व सहायक
४१- हॉस्पिटल /डॉक्टर फिनेन्स प्रबंधन
४२- रसोईये
४३- विभिन प्रशासनिक कर्मी
४४- पब्लिक रिलेसन ऑफिसर
४५- मार्केटिंग /सेल्स विशेष्ज्ञ/ बिजिनेस डेवेलपमेंट -औफ लाइन , ऑन लाइन ,
४६- परचेज प्रशासन
४७- स्टोर कीपर
४८ -परसनल मैनेजमेंट
४९- लीगल सहायक
५०-कम्प्यूटर, इंटरनेट  सेल
५१-मेडिकल कंटेंट राइटर (ऑन लाइन )
५२- क्लेम स्क्लेमन्ट सहायक
५३- पेसियंट केयर मैनेजमेंट प्रशासन
५४-प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट
५५-इम्प्लीमेंटेशन कंसल्टेंट
५६-मेंटेनेंस विभाग
५७-हेल्थ केयर डाटा एनेलिस्ट (कंसल्टेंट या रोजगार )
५८- विभिन्न विभागों में प्रशिक्षण दाता
५९- वैज्ञानिक
६०- हेल्थ वेलनेस कोच
६१- लाइफ साइंस वैज्ञानिक
६२ -सुरक्षा कर्मचारी

अन्य कार्य भी है किन्तु उन्हें रेखांकित करना मुनासिब नहीं है
Jobs in Healthcare Industry

Bhishma Kukreti

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 उत्तराखंड में मेडिकल टूरिस्म: अवसर  और चुनौतियाँ



 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग --108   

मेडिकल टूरिज्म विपणन - 3

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लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

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     मेडिकल टूरिज्म या चिकित्सा पर्यटन भारत में तेजी से बढ़ रहा है।  सन 2015 में मेडिकल टूरिज्म कारोबार तीन (3 )  बिलियन डॉलर का था तो सन 2020 में मेडिकल टूरिज्म आठ  (8 ) बिलियन डॉलर का अनुमान है।  और 2022 में दस (10 ) बिलियन डॉलर भी आंका जा रहा है।
  मेडिकल टूरिज्म का सीधा अर्थ है चिकित्सा संबंधी उद्देश्य हेतु अन्य क्षेत्रवासियों द्वारा यात्रा।
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             प्राचीन काल में उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म
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    प्राचीन काल से ही उत्तराखंड धार्मिक , रोंच प्रेमी व औषधीय पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है।  मेडिकल टूरिस्म के चिकित्सा व  दवाइयां निर्माण दो मुख्य अंग होते हैं और उत्तराखंड प्राचीन काल में दोनों पर्यटनों  में कुशल रहा है।  धार्मिक पर्यटन वास्तव में मानसिक शांति चिकित्सा का अंग है किन्तु इसे अब धार्मिक या पंथ  पर्यटन के रूप में अधिक लिया जाता है।
      उत्तरखंड में चिकित्सा पर्यटन उदाहरण के बारे में हमे चरक संहिता , सुश्रुता संहिता , महाभारत , जातक साहित्य (बौद्ध साहित्य ) कालिदास साहित्य आदि में संकेत मिलते हैं।  उत्तराखंड इतिहास अध्ययन से ऐसा लगता है कि चरक या चरक के मुख्य सहायकों ने उत्तराखंड भ्रमण  किया था।  जड़ी बूटियों के अन्वेषण हेतु भ्रमण भी मेडिकल टूरिज्म का हिस्सा है।  महाभारत में लाक्षागृह निर्माण वास्तव में आज का स्पा व्यापार ही है।  पांडु का बन में पत्नियों के संग वास करना कुछ नहीं मेडिकल टूरिज्म ही है। वाल्मीकि  रामायण में  लक्ष्मण पर शक्ति लगने पर हनुमान का जड़ी बूटी हेतु उत्तराखंड आना मेडिकल टूरिज्म का एक अहम हिस्सा है।  सम्राट अशोक व उनके अन्य संभ्रांत कर्मियों हेतु टिमुर आदि निर्यात भी मेडिकल टूरिज्म ही था।  अशोक काल में उत्तराखंड से सुरमा आदि दवाइयों का निर्यात भी मेडिकल टूरिज्म का हिस्सा था।  ऋषियों जैसे भृगु , कण्व , विश्वामित्र आदि का उत्तराखंड भ्रमण में चिकित्सा भी शामिल था  और उस ज्ञान पाने के लिए अन्य ऋषियों व शिष्यों का उत्तराखंड भ्रमण  भी मेडकल टूरिज्म ही था।  जातक साहित्य , कालिदास साहित्य में भी मेडकल टूरिज्म के संकेत पूरे मिलते हैं।
       उत्तराखंड में कुछ ऐसी जड़ी बूटी हैं जो अन्य क्षेत्रों में नहीं मिलती हैं।  इन जड़ी बूटियों को खोजने , जड़ी बूटियों को दवा बनाने लायक संरक्षण करवाने हेतु विषेशज्ञों द्वारा उत्तराखंड भ्रमण करना भी मेडिकल टूरिज्म ही है।
                 उत्तराखंड में योग शिक्षा अथवा योग से उपचार , नरेंद्र नगर जैसे कस्बों में स्पा में ठहरना भी मेडिकल टूरिज्म ही है।  पतंजलि उद्यम में कई प्रकार के ट्रेडरों का आना भी मेडिकल टूरिज्म है। हरिद्वार , ऋषिकेश आदि स्थानों में तांत्रिक अनुष्ठान वास्तव में मेडकल टूरिज्म है
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     मेडिकल टूरिज्म के प्रोडक्ट्स या सेवाएं


मुख्यतया मेडिकल टूरिज्म में निम्न सेवाएं शामिल होती हैं
रोग पहचान व डाइग्नोसिस
रोग निदान
पुनर्वसन
औषधि निर्माण , कच्चा मॉल निर्माण , व विपणन
आध्यात्मिक या मानसिक चिकित्सा
आनंद जैसे स्पा
   
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          उत्तराखंड में आयुर्वेद-प्राकृकतिक  चिकित्सा, आध्यात्मिक चिकित्सा व जड़ी बूटी निर्यात
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     उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास के असीम अवसर हैं।  मेडिकल टूरिज्म विकास से पारम्परिक टूरिज्म व कृषि टूरिज्म को भी बल मिलेगा।  वास्तव में पारम्परिक धार्मिक टूरिज्म, कृषि /जंगल और मेडिकल टूरिज्म एक दूसरे के पूरक हैं। 
  उत्तराखंड में पारम्परिक ऐलोपैथी मेडिकल टूरिज्म नहीं अपितु प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेदिक चिकित्सा व योग चिकत्सा मेडिकल टूरिज्म हेतु लाभदायी सेवायें है।
      आयुर्वेद चिकित्सा , प्राकृतिक (नेचरोपैथी ) को उत्तराखंड में नए सिरे से पुनर्व्यवस्थित करने से ही मेडिकल टूरिज्म को बल मिल सकेगा। सरकार ने 2016 में केरल की तर्ज पर मडिकल टूरिज्म विकास  हेतु ऋषिकेश को  आरोग्य नगर बनाने की योजना शुरू की थीं  और आगे तुंगनाथ , जागेश्वर व लोहाघाट आदि स्थानों में आरोग्य केंद्र खोलने की योजनाएं बनायीं थी किन्तु अब इन योजनाओं के बारे में कुछ सुनाई नहीं देता है।  शायद इन योजनाओं के फाइलों को दीमक चाट गयीं है या वाइरस लग गया है।
   आध्यात्मिक चिकित्सा याने योग व तंत्र -मंत्र अनुष्ठान भी मेडिकल टूरिज्म के मुख्य अंग हैं।  दुनिया भर में  योग व उत्तराखंड के बारे में एक सकारात्मक छवि है।  किन्तु उत्तराखंड निर्माण के पश्चात भी उत्तराखंड योग टूरिज्म को उस मुकाम पर नहीं ला सका जिस मुकाम के लायक उत्तराखंड  है।  योग टूरिज्म को यदि ऊंचाई देना है तो विपणन में आधार भूत  परिवर्तन आवश्यक है।  2017  में भी सरकार ने वेलनेस -रिजुविनेशन टूरिज्म पर प्रोजेक्ट बनाया किन्तु क्या काम हो रहा है यह धरातल पर नहीं दिख रहा है या सूचनाएं नहीं मिल रही हैं।
      प्राकृतिक चिकत्सा टूरिज्म भी उत्तराखंड टूरिज्म की काया पलट कर सकती है।
        इसी तरह जड़ी बूटी कृषि भी मेडिकल टूरिज्म को नया आयाम दे सकती है।  बहुत सी जड़ी बूटी की खेती पारम्परिक खेती से अधिक लाभकारी हैं और बंदरों , सुवरों व मवेशियों द्वारा भी हानि से दूर हैं।  इन जड़ी बूटियों की खेती का प्रसार में एक सबसे बड़ी समस्या है कि 90 प्रतिशत भूमि मालिक प्रवासी हैं।  इस समस्या का हल ढूँढना बहुत बड़ी चुनौती  है किन्तु असंभव तो नहीं है।  केरल प्रदेश भी वासियों द्वारा पलायन से जूझ रहा है किन्तु सरकारों ने प्रवासियों को टूरिज्म उद्यम से जोड़ ही लिया है।  तो फिर उत्तराखंड में क्यों नहीं प्रवासी जड़ी बूटी कृषि से जुड़ सकते हैं।
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              सरकारों द्वारा विचित्र कदम
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        उत्तराखंड की वेदना यह है कि जनता कॉंग्रेस या भाजपा में से एक दल को पूर्ण बहुमत के साथ सिंघासन पर बिठाती है किंतु दोनों दलों की सरकारें पहली सरकार के टूरिज्म संबंधी फैसलों , योजनाओं को आगे नहीं बढ़ाती और टूरिज्म उद्यम विकास के निरंतरता को तोड़ देती हैं।  किसी किसी योजना के साथ तो भांड जैसा व्यवहार होता है।  एक ही योजना को नए नाम दिए जाते हैं कभी वह योजना मोती लाल नेहरू योजना बन  जाती है , फिर नई सरकार आने के बाद वह योजना फाइलों में हेगडेवार नाम से प्रचारित की जाती है तो कॉंग्रेस सरकार के आने के बाद उस योजना का नाम बाड्रा योजना हो जाता  है और जैसे ही भाजपा की सरकार आती है तो वही योजना दीन दयाल उपाध्याय के नाम से प्रसारित की जाती है।  निरन्तरीकरण मेडिकल टूरिज्म विकास की पहली शर्त है किन्तु हमारा नेतृत्व तो टूरिज्म में भी  भगवा या हरा रंग पोतता रहता है।
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            पत्रकारों व बद्धिजीवियों में मेडिकल टूरिज्म की समझ में विस्तार की आवश्यकता
                 पत्रकारों की मेडिकल टूरिज्म विकास में बहुत बड़ी भूमिका होती है।  किन्तु बहुत से पत्रकार जो समाज को प्रेरित करने में सक्षम  हैं वे भी बहुत बार सामयिक पर्यटन को नहीं समझ पाते हैं और पारम्परिक पत्रकारित सिद्धांतों के तहत नव पर्यटन विपणन कीआलोचना कर बैठते हैं।  उत्तराखंड के हर पत्रकार , हर बुद्धिजीवी का कर्तव्य है कि वे मेडिकल टूरिज्म विकास में कुछ न कुछ भूमिका अदा करें।

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    प्रवासियों द्वारा निवेश व पब्लिक रिलेसन
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प्रवासी मेडिकल टूरिज्म में निवेश कर व पब्लिक रिलेसन का कार्य कर अपनी भागीदारी निभा सकता है।

         सरकार नहीं समाज
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 मैंने आज तक टूरिज्म विपणन  पर शायद 150 अधिक लेख प्रकाशित किये होंगे और निरंतर लिखता रहता हूँ कि टूरिज्म विकास हेतु सरकार से अधिक समाज का टूरिज्म को समझना व सरकार पर सामाजिक दबाब आवश्यक है। 
  आज आवश्यकता है कि उत्तराखंड का हर वर्ग मेडिकल टूरिज्म के नए तेवर को समझे और तरह तरह से मेडिकल टूरिज्म विकास में योगदान दे। 



Copyright @ Bhishma Kukreti   2 /2 //2018 


Contact ID bckukreti@gmail.com

Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल

Marketing of Travel, Tourism and  Hospitality Industry Development  in Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Haridwar Garhwal, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development in Pauri Garhwal, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Dehradun Garhwal, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Tehri Garhwal, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Chamoli Garhwal, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Nainital Kumaon, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Almora Kumaon, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Champawat Kumaon, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development  in Bageshwar Kumaon, Uttarakhand; Marketing of Travel, Tourism and Hospitality Industry Development in Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand;
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 ========स्वच्छ भारत , स्वच्छ भारत , बुद्धिमान उत्तराखंड ========








Bhishma Kukreti

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कोल  युग (प्राचीन उत्तराखंड) में  मेडिकल टूरिज्म: एक दृष्टि

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास परिकल्पना -4


   Medical Tourism Development in Uttarakhand     -   4               

  (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--109 )   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 109   

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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   प्राचीन काल याने पाषाण युग आदि में भी उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म हेतु कुछ रूप में प्रसिद्ध था ही।  भारत से कई प्रदेशों से हिम गिरियों  में मोक्ष पाने याने मरने, आत्मघात  करने आते थे।  अंदाज लगाना कठिन नहीं है कि बीमार लोग उत्तराखंड में प्राकृतिक उपचार हेतु आते थे और जो स्वस्थ हो गए हो गए वे यहीं बस जाते थे या अपने प्रदेश वापस बौड़  जाते थे। शेष अपनी जीव हत्या कर मोक्ष प्राप्त कर लेते थे।
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       कोल जाति समय में मेडिकल टूरिज्म
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 कॉल या डूम (कृपया इस शब्द को आज के संदर्भ छुवाछूत में न लें ) जाति  (60 -70 हजार साल पहले से ) का उत्तराखंड के संस्कृति विकसित करने में आर्य जातियों से कहीं अधिक रहा है ।  पाषाण संस्कति को उत्तर प्रस्तर उपकरण संस्कृति विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान है।
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        कृषि से मेडिकल टूरिज्म - कोल -डूम जाति ने जब केला , जामुन , सेमल की कृषि शुरू की व कुक्क्ट , मोर ,व शहद शुरू किया तो अंदाज लगाया जा सकता है कि इन वस्तुओं को स्वास्थ्य से अवश्य जोड़ा गया था और अन्य क्षेत्र के लोग जिन्हे इनकी जानकारी नहीं थी तो वे उत्तराखंड आये ही होंगे और यही तो मेडिकल टूरिज्म है।  माना कि उत्तराखंड की कोल जाति के पास इन स्वास्थ्य वर्धक वस्तुओं का ज्ञान नहीं था और यहां के निवासी इन वस्तुओं के ज्ञान हेतु बाहर गए या बाहर से अन्य लोग इस प्रकार के ज्ञान को लाये तो भी वः मेडिकल टूरिज्म भी कहा जाएगा।
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             कोल युग में अंध विश्वास (?) याने मेडिकल टूरिज्म का विकास
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  कोल युग में उत्तराखंड में कई अंध विश्वास (मानसिक शांति हेतु कर्मकांड ) प्रचलित हुए जैसे हंत्या -भूत प्रेत पूजा ; दाग -घात लगाने व दूर करने के तातंत्रिक विधियों  का विकास भी इसी युग की देन है। इसी तरह पीपल , बड़ , नीम , आम , महुआ , बबूल , भोजपत्र , किनगोड़ा , सरी , रिंगाळ , तुलसी  बुग्याळ आदि वृक्षों को स्वास्थ्य से , पावनता , कष्टनिवारण , जादू -टोना , से जोड़ने की बिभिन्न विधिया इसी युग में शुरू हुआ।  साफ़ अर्थ है कि इन मानसिक व शारीरिक व्याधि उपचार विधियों के ज्ञान प्राप्ति या ज्ञान बाँटने का काम हुआ होगा याने उत्तराखंड के लोग बाहर गए होंगे व बाहर के लोग उत्तराखंड आये होंगे।  इसे ही आज मेडिकल टूरिज्म कहते हैं।
     मानसिक व भौतिक चिकिता क्षेत्र में पशु बलि (मानसिक शांति का एकअंग  ) व कई पशुओं के अंगों का उपयोग; पेड़ पौधों से चिकित्सा , आग-राख से चिकित्सा ; मिट्टी , जल से चिकित्सा इस युग में फली फूली और इसमें कोई शक नहीं कि कोल -डूम युग में चिकित्सा ज्ञान , चिकत्सा हेतु लोगों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में आवागमन हुआ होगा।  याने कोल -डूम युग में  मेडिकल टूरिज्म विकसित हो ही रहा था। 
3000 साल पुराने चरक संहिता, सुश्रुता संहिता में 700 से अधिक पेड़ -पौधों का जिक्र है जिसमे कुछ उत्तरखंड में ही पैदा होने वाले पौधों का जिक्र है तो इसका अर्थ है कि पेड़ों से आयुर्वेद चिकित्सा का विकास हजारों साल से चल रहा था।  चिकित्सा विकास याने स्वयमेव मेडिकल टूरिज्म का विकास.
     



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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी

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पूर्व महाभारत काल  में उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास पारिकल्पना -5


   Medical Tourism Development in Uttarakhand     -   5                 

  Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--110   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 110   

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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       पूर्व महाभारत काल में उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म
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  महाभारत काल से पहले किरात , द्रविड़ , खस आदि जातियां उत्तराखंड में आ बसीं थीं और उन्होंने अवश्य ही उत्तराखंड में मेडकल टूरिज्म विकसित किया।   धार्मिक विश्वास (आत्मबल हेतु , ऑटोसजेसन ) हेतु इन जातियों  ने कई देवताओं की कल्पना कर इन्हे पूज्य बना डाला जैसे वेदकाल में आर्य जाति  ने भी  किया।  किरात , द्रविड़ , खस जातियों के देवताओं में अधिकाँश देवता आज भी पूजे जाते हैं जैसे जाख , जाखणी , नाग , नगळी , भटिंड , गुडगुड्यार , विनायक , कुष्मांड , कश्शू , महासू , जयंत , मणिभद्र घंटाकर्ण आदि देवी देवता  (डा डबराल , उ. इ . पृष्ठ 210 )।  इससे पता चलता है कि समाज में मनोचिकित्सा आम घटनाएं थीं।  मनोचिकत्सा भी मेडिकल टूरिज्म का ही हिस्सा होता है।
     इतिहास मौन है कि फोड़े या अन्य बीमारी पर कई जड़ी बूटी उपयोग कैसे शुरू हुआ होगा।  कोल , किरात खस , द्रविड़ जातियों ने अवश्य ही कई जड़ी बूटियों से दवा प्रयोग शुरू किया होगा और बाद में चरक व अन्य संहिताओं में वे संकलित हुयी होंगी। कुछ दवाइयां संकलित भी नहीं हुयी होंगी किन्तु श्रुति माध्यम से आज तक चल ही रही हैं
 पशु -पक्षी अंगों से दवाईयां व ऊर्जा प्राप्ति हेतु भी अन्वेषण , परीक्षण हुए ही होंगे।
     पशु -पक्षियों की हड्डियों , सींगों , खुरों , चोंच, दांतों  से ना केवल हथियार , औजार बने होने अपितु सर्जरी -छेदन में भी नित नए परीक्षण व अन्वेषण हुए ही होंगे।  बनस्पति काँटों का भी मेडिकल में उपयोग होता रहा होगा और स्थान विशेषज्ञ  से उस विशेष स्थान में मेडिकल टूरिज्म बढ़ा ही होगा।
  द्रविड़ भाषा  के कई ग्राम नाम व शरीरांग नामों  से अंदाज लगाया जा सकता है प्राचीन द्रविड़ जाति ने शरीर विज्ञान व औसधि विज्ञान में हिमालय में कई परीक्षण किये होंगे व मडिकल टूरिज्म को कई नए आयाम दिए होंगे।
  ताम्र युग या महाभारत काल में गढ़वाल -कुमाऊं में ताम्बे  की खान मिलने से औषधि विज्ञान में भी क्रान्ति आयी जैसे ताम्बे की भष्म से आयुर्वेद या जड़ी बूटी में उपयोग। ताम्बे की सुई से सर्जरी ,  छेदन आदि भी मेडकल अन्वेषण ही थे।   ताम्बे के बर्तन में पानी रखना आदि ने भी उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म को विकसित ही किया होगा
गंगाजल ने मेडिकल टूरिज्म से धार्मिक टूरिज्म का रूप दिया होगा।  अलकनंदा , भगीरथी , व अन्य उत्तराखंडी नदियों की विशेषताओं पर परीक्षण हुए होंगे व उन चिकित्सा विशेषताओं का प्रचार प्रसार में ना जाने कितने साल व काम हुआ होगा।  यह सोचने की आवश्यकता नही कि महाभारत काल से पहले गंगा जल का  चिकत्सा वा धार्मिक कार्य हेतु विपणन हुआ होगा तभी तो महाभारत में गंगा स्नान का उल्लेख हुआ है।
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            लगातार परीक्षण से ही मेडिकल टूरिज्म विकसित होता है
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 खस जाति अशोक काल में अशोक हेतु गंगा जल ,मधुर आम्र,  नागलता -टिमुर ले जाते थे से पुष्टि होती है कि कॉल , किरात , ,  शकादि , खस जातियों ने उत्तराखंड की बनस्पतियों व पशुओं पर स्वास्थ्य रक्षा हेतु कई परीक्षण किये होंगे। फिर इन परीक्षणों को प्रयोग किया होगा और फिर इन जड़ी बूटियों के प्रचार व निर्यात हेतु कई तरह के माध्यम अपनाये होंगे।
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       मलारी संस्कृति में मेडिकल टूरिज्म
 
     ताम्र युग में मलारी संस्कृति अध्ययन से पता चलता है मृतकों पर कोई  वानस्पतिक रस , पेस्ट व भूमि तत्व लागए  जाते थे।  मलारी लोग सोना , कांस्य पात्र , रंगीन पाषाण , भोज्य सामग्री आयात करते   थे और बदले में पशु , ऊन , खालें , तो निर्यात करते ही थे अपितु समूर , कस्तूरी व कई प्रकार की जड़ी बूटियां निर्यात करते थे (अदला बदली ). (डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग -२ पृष्ठ 234 )
    समूर , कस्तूरी व जड़ी बूटियां निर्यात (अदला बदली ) का साफ़ अर्थ है मेडिकल टूरिज्म।  यह मेडिकल टूरिज्म आंतरिक भी हो सकता है और बाह्य टूरिज्म भी।
     



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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
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 भगीरथ और गंगा नदी द्वारा मेडकल टूरिज्म विकास


उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास पारिकल्पना -6


   Medical Tourism Development in Uttarakhand     -  6                 

  (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--111 )   

      उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 111   

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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  रामायण काल का सबसे प्रथम वर्णन 'महभारत '  में मिलता है और बाद में वाल्मीकि ने 'रामायण ' की रचना की।  रामायण में सगर व उसके पुत्र भगीरथ का वर्णन मिलता है।  भगीरथ द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने की कल्पना महाभारत में मिलती है (वनपर्व-107 , 109  अध्याय ) . भगीरथ द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने से वह नदी भगीरथी याने भगीरथ पुत्री कहलायी जाती है।  भगीरथ द्वारा भगीरथी या गंगा को पृथ्वी में लाना व फिर गंगा हेतु रास्ता बनाना दो बातों को सिद्ध करता है।  भगीरथ युग में भगीरथी के लिए रास्ता बनाना याने नहर निर्माण की महत्ता को उस समय लोग समझ चुके थे।  मजूमदार , पुसलकर आदि जैसे इतिहासकारों ने ने भगीरथ द्वारा भगीरथी लाने का अर्थ गंगा पर नहर खोदने का अर्थ समझाया है।  नहर खोदना याने कृषि में क्रांति और कृषि में क्रान्ति याने मेडिकल उद्यम में विकास।
     महाभारत में बताया गया है कि भगीरथ ने भगीरथी जल से अपने पुरखों का तर्पण किया।  गंगा या उत्तराखंड की नदियों में स्वास्थ्य वर्धक जल होने पर अन्वेषण हुए होंगे जो सैकड़ों साल के मेहनत से ही प्राप्त हुए होंगे। उस काल याने सात आठ हजार साल पहले उत्तराखंड में मेडिकल क्षेत्र में अन्वेषण , अनुभव प्राप्त करना व उन परिणामों को  श्रुति माध्यमों से प्रचार -प्रसारित करने जैसी पद्धति परिपक्वा हो चुकी थी। गंगा जल का स्वास्थ्य वर्धक गुण व कई रोग निरोधक गुणों के होने से ही गंगा को कई धार्मिक अनुष्ठानो (जैसे भगीरथ द्वारा पुरखों को गंगाजल से तर्पण देना ) जोड़ना इस बात का परिचालक है कि  गंगा पर आरोग्य संबंधी कई अन्वेषण हुए थे।  सर्वपर्थम गंगा को मेडिकल बेनिफिट्स से जोड़ा गया होगा और फिर गंगा को धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़ा गया होगा।  सर्वपर्थम भारतीय नागरिक गंगा में नहाने स्वास्थ्य लाभ हेतु उत्तराखंड आये होंगे तो मेडिकल टूरिज्म भी  विकसित भी हुआ होगा।

   आज ही नहीं भगीरथ काल में भी गंगा जल एलर्जी (पीत उठना ) , कई त्वचा रोगों के उपचार हेतु उपयोग होता रहा होगा और भारत के लोग उपचार हेतु उत्तराखंड आते रहे होंगे।  सम्राट अशोक के समय तो गंगाजल निर्यात होने लगा था।  भूतकाल में गंगा जल निर्यात मेडकिल टूरिज्म का एक अभिन्न अंग रहा है।
     जब गंगा को भगीरथ प्रयास से धार्मिक अनुष्ठानों से जोड़ा गया होगा तो गंगा धार्मिक पर्यटन का माध्यम भी बन गयी।  इसे मेडिकल टूरिज्म में  एक वास्तु का दूसरे वस्तु से इंटर कनेक्शन कहा जाता है।  याने पर्यटन में केवल एक वस्तु /प्रोडक्ट /उत्पाद से अभीष्ट परिणाम नहीं मिलते अपितु टूरिज्म विकास में कई उत्पादों की आवश्यकता पड़ती है।  भारत में सात आठ अन्य नदियों को पुण्य नदी कहा जाता है किन्तु गंगा को सर्वोपरि पुण्य नदी माना गया तो उसके पीछे गंगा का स्वास्थ्य वर्धक या रोग निरोधक गुण  का होना है।  याने गंगा नदी याने अलकनंदा व भगीरथी ने मेडिकल टूरिज्म को विकसित किया जो बाद में धार्मिक पर्यटन का सबंल बन गया। 


   गंगा को पावन नदी की छवि (ब्रैंड परसेप्सन ) प्रदान करने में कितने हजार लोगों ने सैकड़ों साल जाने अनजाने काम किया होगा यह अपने आप में मिशाल है और मेडिकल टूरिज्म के विपणनकर्ताओं के लिए एक अभिनव उदाहरण  भी है। 


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                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
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शकुंतला समय में उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास  विपणन  -7


   Medical Tourism Development in Uttarakhand     -  7                 

  (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Haridwar series--112 )   

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 112   

 लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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  दुष्यंत -शकुंतला प्रकरण के बारे में रिकॉर्ड हमें सबसे पहले महाभारत के आदिपर्व में मिलता है।  दुष्यंत को इक्ष्वाकु वंश के सगर से दो तीन पीढ़ी बाद का राजा  माना जाता है और जिसकी रजधानी आसंदीवत  (हस्तिनापुर क्षेत्र ) थी।  दुष्यंत के राज में कहा गया है कि किसी को रोग व्याधि नहीं थी (आदि पर्व 68 /6 -10 ) . इससे पता चलता है कि उस काल में रोग , निरोग , व्याधि व चिकित्सा के प्रति लोग संवेदन शील थे। राजा दुष्यंत आखेट हेतु कण्वाश्रम  (भाभर से अजमेर -हरिद्वार तक ) आया था।

            आश्रम याने चिकित्सा वार्ता केंद्र

 शकुंतला -दुष्यंत प्रकरण में उत्तराखंड कण्वाश्रम , विश्वामित्र आश्रम का व्रर्णन है. उस समय आयुर्वेद की पहचान अलग विज्ञान में नहीं होती थी अपितु सभी ज्ञान मिश्रित थे।  आश्रमों में कई ज्ञानों -विज्ञानों पर वार्ता व शास्त्रार्थ  होते थे।  उनमे अवश्य ही रोग चिकित्सा पर भी वार्ताएं व शास्त्रार्थ   होते ही होंगे।  चिकित्सा पर वार्ता व शास्त्रार्थ का सीधा अर्थ है चिकित्सा के प्रति जागरूकता।  आश्रमों  में कई अन्य स्थानों से पंडित व ऋषि आते थे।  इसका अर्थ भी सीधा है कि मेडिकल विषय पर कॉनफ़्रेंस।  मेडिकल कॉन्फ्रेंस से जनता में शरीर , व्यवहार विज्ञान , सामाजिक विज्ञान , चिकित्सा के प्रति संवेदनशीलता विकसित होती है तो वार्ताओं से चिकित्सा (मानसिक , व्यवहार विज्ञान  , शरीर शास्त्र आदि ) विज्ञान ज्ञान का आदान प्रदान सिद्धि होती है. उत्तराखंड में आश्रमों के होने का अर्थ है कि  चिकित्सा ज्ञान का आदान प्रदान।  दुष्यंत या अन्य ऋषि जब उत्तराखंड आये होंगे तो यह निश्चित है कि आगंतुकों हेतु चिकित्सा व्यवस्था व वैद या विशेषज्ञ भी उत्तराखंड में उपलब्ध रहे होंगे।  मेडिकल टूरिज्म कैसे रहा होगा इसकी हमें कल्पना करनी होगी।
 
                    बलशाली भरत का जन्म व लालन पोषण

  महाभारत के आदिपर्व  (74 /126, 74 /304 ) व फिर शतपथ ब्राह्मण 13 /5 /4 ; 13 /11 /13  ) में शकुंतला -दुष्यंत पुत्र महा बलशाली भरत का वणर्न मिलता है जिसका जन्म कण्वाश्रम में हुआ और चक्रवर्ती सम्राट बना व भरत के नाम से जम्बूद्वीप का नाम भारत पड़ा।  आदि पर्व में उल्लेख है कि दुष्यंत पुत्र शकुंतला के गर्भ में तीन साल तक रहा।  और वह जन्म से ही इतना बलशाली था कि उसका शरीर स्वस्थ , सुडौल शरीर गठन परिपक्व मनुष्य जैसे था।  तीन साल गर्भ में रहने पर वाद विवाद इतिहासकार व चिकित्सा शास्त्री करते रहेंगे।  जहां तक मेडिकल साइंस , सोशल साइंस व मेडिकल टूरिज्म का प्रश्न है -महाभारत का यह प्रकरण कई संदेश  देता है।  गर्भवस्था में महिला का पालन पोषण अच्छी तरह से होना चाहिए  जिससे कि स्वस्थ बच्चे पैदा हों।  जिस समाज में स्वस्थ बच्चे पैदा होंगे उस समाज में हर तरह की सम्पनता आती है।
            फिर आदि पर्व में ही उल्लेख है कि कण्वाश्रम में ही भरत के लालन  पोषण ऐसा हुआ कि बालक सर्वदमन  छः  वर्ष में ही वह बालक शेर की सवारी कर सकता था. बारह वर्ष की अवस्था में ऋषियों की सहायता से बालक सर्वदमन समस्त शास्त्रों व वेदों का ज्ञाता बन चुका था।  मेडिकल टूरिज्म आकांक्षियों व समाज  शास्त्रियों हेतु सीधा संदेस है कि बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास हेतु माता- पिता व समाज को पूरा इन्वॉल्व होना आवश्यक है। 

                     भारद्वाज  आश्रम

          गंगा तट पर गंगाद्वार (आज का हरिद्वार ) में भारद्वाज का आश्रम भी था जिनका पुत्र द्रोण हुआ। महाभारत में द्रोण  का जन्म द्रोणी (कलस ) से हुआ  कहा गया है ( लगता है तब टेस्ट  ट्यूब बेबी की विचारधारा ने जन्म ले लया था ) (आदि पर्व 129 -33 -38 ) . याने उत्तराखंड में इस क्षेत्र में भी चिकित्सा विज्ञान पर वार्ताएं व चिकित्सा ज्ञान का आदान प्रदान हुआ ही होगा।  याने चिकित्सा विज्ञान के ज्ञान का आदान प्रदान से आम जनता में भी मडिकल नॉलेज फैला ही हुआ होगा।  जनता के मध्य मेडिकल नॉलेज अवश्य ही मेडिकल टूरिज्म को बड़ा  बल देता है या उत्प्रेरक का काम देता है।
           



Copyright @ Bhishma Kukreti  8  /2 //2018 



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      उत्तराखंड  परिपेक्ष में  सिरळ , भूकुशमंडी   की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan  Indian Kudzu , Pueraria tuberosa  in Uttarakhand context

   उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 40

              History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand -  40                     
         
  उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   81

       History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -81
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 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Pueraria tuberosa
सामन्य अंग्रेजी नाम - Indian Kudzu
संस्कृत नाम -भूकुशमंडी
हिंदी नाम - सिरळ , सुराल , बिलाईकंद , बिदारी  कंद
नेपाली नाम - बराली कुंद
उत्तराखंडी नाम - सिरळ
 सिरळ एक लतावान , झाडी नुमा झाडी है जिसके पत्तियां 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी होती हैं। सिरळ  के  कंद उपयोग औषधि व सब्जी बनाने हेतु होता है। 
जन्मस्थल संबंधी सूचना - सिरळ का जन्मस्थल हिमालय ही है , चीन में भी पाया जाता है। विंग मिंग केयुंग  की पुस्तक  Pueraria the genus में इस प्रजाति के कई स्पेसीज व  इस जिनस का कृषिकरण होने  और फिर कृषिकरण से प्रजाति वन वनस्पति में तब्दील होने का वर्णन है इस पुस्तक में इस कंद के कई उपयोग व परीक्षओं का भरपूर वर्णन भी है। वास्तव में सिरळ  एक खर पतवार है और जब भी खेती उगाई गयी तब तब इस वनस्पति ने अन्य खेती को नुक्सान पंहुचाना शुरु  कर दिया था।

संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - विदारी कंद का उल्लेख सुश्रुता संहिता , भावप्रकाश निघंटु , धन्वन्तरि निघण्टु , कैव्य देवा निघण्टु व राज निघण्टु में हुआ है।
औषधीय उपयोग -सिरळ  कंद का अलग या अन्य हर्ब्स में मिश्रण से बुखार , जोड़ों के दर्द जय बीमारी निवारण हेतु व स्त्रियों में दूध बढ़ाने , वीर्य वर्धन , मांस वृद्धि व त्वचा असुन्दरी हेतु उपयोग होता है।

      -सिरळ  की सब्जी -
सिरळ  कंद से सब्जी वैसे ही बनाई जाती है जैसे पिंडाळू , आलू से बनाई जाती है।  इसको उबालकर नमक मिलाकर भी सलाद रूप में खाया जाता था।  अब लगता नहीं सिरळ खाया जाता है।  इसकी जड़ें बहुत मंहगी बिकती है




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