Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1123399 times)

Bhishma Kukreti

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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B-60   
 
   (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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Nail,नंग /कील = राजनीति म विरोध्युं भाषण
Naked नंग/नंगी  = भारतीय नेता
Name,नाम = जांक बान हजारों साल से मनिख युद्ध/लड़ै  करदो
Nasty,भौत बुरु - विरोध्युं अभियोग
Navel नौली = फिल्म निर्देशक की पहली पसंद
Negligence , लापरवै = सरकारी अस्पताल म विशेष
Nepotism भाई भतीजावाद = भारतीय संस्कृति
Nobble,बेमानी से अपण कब्जा करण - भू माफिया या नेताओं करतब
Noisy घ्याळ = टीवी चैनलों म राजनैतिक चर्चा
Nominate   नामजद -करण  भाई भतीजावाद का एक खेल

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Copyright@ Bhishma Kukreti
गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Sarcastic definitions in Garhwali



Bhishma Kukreti

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डवोली (डबरालस्यूं ) की लोक कलायें व कलाकार

डबरालस्यूं संदर्भ में  , हिमालयी लोक कलायें  व लोक कलाकार
संकलन -भीष्म कुकरेती
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  डबरालस्यूं में डवोली क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा गाँव है जिसकी सीमायें - पूर्व में ख्याड़ा , देवीखेत , पश्चिम में कूंतणी , उत्तर पश्चिम में खमण व उत्तर में मंडुळ गदन व दक्षिण में अमाल्डू हैं।


मनोरंजन हेतु कलाएं  व कलाकार
वाद्य वादन - वादी व ढोल वादक बादी बादण शादी ब्याहों में गीत सुनाते थे व नृत्य करते थे।
लोक गीत रचना व गायन - बादी
नृत्य मनोरंजन हेतु - वादी
धार्मिक अनुष्ठान हेतु गायन , वादन - ढोल वादक, मंगळेर , पंडित जी द्वारा मंत्रोच्चारण , भूत भगाने आदि हेतु  झारखंडी , गारुड़ी द्वारा गायन , मंत्रोचारण
विशेष ऋतू में  गीत गायन,  नृत्य, स्वांग भरना  - होली वक्त गीत नृत्य , भैल खेलते वक्त , एवं बसंत पंचमी से बैसाखी तक - ग्राम पधान के चौक में मुख्यतया महिलाओं द्वारा सामूहिक नृत्य गायन व स्वांग भरना।  महिलाएं व पुरुष खेतों व वनों में अकेले व सामूहिक गायन भी करते थे 
धार्मिक अनुष्ठानों में - कई कलाओं का जैसे गणेश निर्माण , वेदी निर्माण , जन्मपत्री में कई कला चित्रकारी गढ़वाल भांति सामान्य
रामलीला से मनोरंजन - नाट्य , नृत्य गीत व शायरी प्रदर्शन - होते थे

   शिल्प शास्त्र कला (ओडगिरी )- ललिता प्रसाद डबराल , ज्ञान सिंह
शिल्पशास्त्र / पगार चिणाइ आदि - लगभग सभी पुरुष निपुण होते थे काष्ठ कला व कलाकार - बढ़ई

अलंकार शास्त्र - शास्त्री (सुनार ) -दूसरे गाँव पर निर्भर
धातु निर्माण शास्त्री - टमटागिरी - दूसरे
लोहार - चैन सिंह मुंडित
वस्त्रालंकार शास्त्र व शास्त्री - प्राचीन काल में पराळ से गद्दा निर्माण व ऊनि वस्त्र आदि निर्माण
शय्या सज्जा कला व कलाकार - मंदर  निर्माण , चटाई निर्माण - स्वतन्त्रता से पहले सांय कला थी
वैद्य गिरी -  दूसरे गाँव निर्भर
 रेशों से रस्सी आदि निर्माण - सभी परिवार संलग्न होते थे
द्यूत  क्रीड़ा  का अन्य क्रीड़ा जैसे पत्ती ,  चौपड़ - पत्ती चौपड़ सामन्य थे
  पाक कला विशेषज्ञ , ढुंगळ विशेषज्ञ , अरसा विशेषज्ञ  सभी कलाओं के थे
फौड़ के  सर्यूळ - तोताराम डबराल
जागरी - अल्मोड़ी के चैतराम डबराल
हंत्या जागरी - डवोली के गयळु
बड़ी कष्ट कला में दूसरे गांव पर निर्भर
छोटे मोटे बढ़ई के  कार्य डवोली  वाले ही।
झरखंडी - भोला दत्त डबराल , तुमड़ रिटाने के विशेषज्ञ भी थे
औजी - जामळ  वाले
 गोठ संस्कृति थी तो टाट , पल्ल , कील ज्यूड़  अदि निर्माता हर परिवार से थे
ब्वान , भ्यूंळ से बनीं टोकरियों के सल्ली सभी परिवार से थे
तिबारियां - गुणा नंद डबराल व भोला दत्त डबराल
कर्मकांडी ब्राह्मण - अमाल्डू  के पंडित

सूचना आभार - हरीश डबराल (डवोली )

Folk Arts  of Davoli, , Folk Art of Garhwal, Folk Arts of Himalaya , Folk Artist

Bhishma Kukreti

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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B-61   
 
   (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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Non Conductor= कुचालक = राजनीती म राहुल गाँधी
Normal, सामान्य  = एक उदाहरण = मेरठ माँ दंगा ह्वे सौ आदिम घायल ह्वेन पर स्थिति सामन्य च
Nostalgia खुद = उत्तराखंड्युं प्रथम पीढ़ी का प्रवास्यूं एक बड़ी बीमारी
Nourishment , पोषक = भारत म लोग खोज करणा छन यु शब्द क्या च
Nuncio ,धर्मदूत = क्या हूंदन पर खोज जारी च
Nudity,नंगा/नंगी  = पूरी राजनीति
Oak,बांज = कब्या की बात ?
Oath,शपथ /सौं = राजनीतिग्यों कुण  मजाक , मसखरी
Obedient आज्ञापालक = आम कॉंग्रेसी नेहरू खानदान का समिण
Obi,जापानीज तंत्र /टूण -टण मण = बस अब भारत में बि प्रचलित ह्वै  इ जाल
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गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from Sumari Garhwal ,


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कठूड़ बड़ा (ढांगू ) संदर्भ में हिमालयी कला व कलाकार 
 सूचना  - सतीश कुकरेती (कठूड़ )  प्रस्तुति -  भीष्म कुकरेती (चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
- कठूड़ शब्द द्रविड़ व खस शब्द है जो इस बात का द्योतक है कि  यह स्थान 3000 वर्ष पहले भी  प्रचलन में था।  कठूड़ ढांगू का क्षेत्रफल ही नहीं जनसंख्या में बड़ा गाँव था इसिलिए इसे बजरि कठुड़  भी कहते थे।  कठूड़ में 12 जातियां बसती करतीं हैं ।  कठूड़ में दो पधान थे (राम प्रसाद कुकरेती व राघवा नंद कुकरेती थोक ) । उत्तर में पल्तिर टटरी  आदि गाँव हैं , पूर्व में पाली , दक्षिण पूर्व में ठंठोली गाँव हैं व पश्चिम में ढौंर -ढासी  गाँव हैं व  पूर्व से ठंठोली गदन कठूड़  गदन बनता है जो कठघर में हिंवल में मिल जाता है।  कठघर में जींद मेला प्रसिद्ध था व अंग्रेजों के समय यह गेंद मेले में खेलते वक्त एक खून माफ़ था।  पहले पहल कठूड़ में गुमानी जाति वास करती थी जो महामारी में अन्यत्र चले गए।     हिमालय के अन्य क्षेत्रों की भाँति कठूड़  में निम्न मुख्य कलाएं विकसित थीं जो काल चक्र अनुसार विकसित होती गयीं या हरचतीं गयीं जैसे आज पाषाण युग की कलाएं हर्च गयी हैं अथवा  भांग रेशों या स्योळू से कपड़े बनाना , धान के पराळ से गद्दा बंनाने/बिछौना या गेंहू के पराळ व माळू रेशों से मंदर बनाना अब इतिहास में ही सुना जाता है ।   सन १९६० के बाद ऊन के कपड़े बनना भी बंद हो गयीं थीं। धार्मिक उतसवों  व पूजन में  प्रयोग होने वाली कलाएं जैसे गणेश पपोजन में छुआकल में गणेश व दिवार  पर गणेश थरपण , जनेऊ निर्माण, विवाह में वेदी निर्माण , बग्वाळ , दिवाली , गोधन व इगास दिन पीण्ड के उपर फूल लगाना , झरखंडी पूजन में कई कलाओंका प्रदर्शन।              सांस्कृतिक कलाएं सामहिक - लोक नृत्य व लोक गायन , महिलाओं व पुरुषों द्वारा बसंत पंचमी से बैसाखी तक  रात को सामूहिक नृत्य व गीत व स्वांग।  वसंत पंचमी दिन हल्दी से सफेद कपड़ा रंगने की संस्कृति थी व सिंगार में लोहार जाऊ की हरयाळी लगाते थे।  शैली याने सामूहिक गुड़ाई में गीत गायन आम संस्कृति थी।  विवाह अवसर आदि में मांगळ गीत गाने की परम्परा अभी भी है। बादी -बादण  द्वारा नृत्य , गीत , स्वांग - बादी बिजनी  गाँव के थे।  प्रत्येक 12 साल में गाँव में लांग  खेलते थे धार्मिक नाच गान व वाद्य बजाया जाते थे जैसे घडयळ में।  ढोल वादक - बड़ेथ के स्वांर दास का परिवार अब पयांखेत के प्रेम दास परिवार बंधाण पूजा - मोर रावत बंधाण  पूजा के  कर्मकांडी थे ।  गांव में बंधाण  धार भी है।  बंधाण पूजा में  खिन्न  लकड़ी के सात टहनियों से पूजनीय कलाकृति बनाई जाती थीं।  दर्जी - राजाराम सुनार /स्वर्णकार कला - कहा जाता है बहुत पहले  सुनार कठूड़ में थे जो  पलायन कर गए थे।  लगता है सम्भवतया कठूड़ के सुनारों के पलायन पश्चात ही जसपुर में सुनार बसाये गए हों ! जसपुर में सुनार 1890  लगभग  ही बसाये गए थे। स्वर्णकार कला हेतु जसपुर व  पाली पर निर्भरता। लौह कला - कठूड़ में लोहार परिवार ,  -काली चरण व राबी दो परिवार ओड - चमन लाल , काली चरण , दया राम टमटा गिरी याने लौह के अतिरिक्त अन्य  धातु वर्त्तन व कंटेनर्स - 50 से पहले जसपुर पर निर्भर , बाद में तैयार वर्त्तन संस्कृति किन्तु सन  70 तक घांडी , हुक्का जसपुर में बनते रहे हैं कठूड़ में पुरोहितायी - अजब राम कुकरेती के ख्वाळ  के कुकरेती पुरोहितायी करते आये रहे हैं किन्तु  इनके पुरोहित जसपुर के बहुगुणा।  हंत्या जागरी - राबी व पुत्र   हंत्या अतिरिक्त अन्य देव जागरी  - मुरली सिंघ  नेगी       कर्मकांड  व ज्योतिष    बीसवीं सदी के मध्य - देवी दत्त कुकरेती ,टंखी राम कुकरेती , राम प्रसाद कुकरेती , पुरुषोत्तम कुकरेती  प्रसिद्ध हुए और  वर्तमान  में भगवती प्रसाद कुकरेती प्रसिद्ध ज्योतिषी       रेशों के रस्सियां कंटेनर्स आदि - प्रत्येक परिवार कृषि पर निर्भर था तो भांग -भ्यूंळ      माळु  के रेशों से विभिन्न रस्सियां  व टोकरियां , दबल निर्मित होते थे।  गदन  व जंगल होने के कारण मच्छी मारने की कला  , सुंगर -मृग घेर कर मारने की कला , सौल , मुर्गा शिकार कला hunting art भी सामन्य हिमालयी कला जैसा ही कठूड़ में विद्यमान थी गाँव    में कुछ दशाब्दी पहले तक कुलुड़ (कोल्हू ) भी था।     रामलीला नाट्य मंचन - एक समय रामायण नाट्य मंचन भी होता था जिसके कलाकारों में बीर सिंह  नेगी , अर्जुन सिंह रावत , राकेश कुकरेती , नरोत्तम कुकरेती , अश्विनी कुकरेती , दिनेश कुकरेती ,  कूंतणी  के ललिता प्रसाद डबराल व मसोगी के श्याम प्रसाद डबराल प्रसिद्ध हुए , व्यवस्था ब्रिज मोहन कुकरेती व रुद्रमणि कुकरेती करते थे।  आध्यात्मिक - गोविन्द प्रसाद कुकरेती उज्जैन में  डबराल बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए साहित्यकार - रजनी  ध्यानी कुकरेती फिल्म निर्देशक -अनुज जोशी कठूड़ के चारों ओर मंदिर हैं और  कठूड़  देवी मंदिर (देवी डांड ) के नाम से भी जाना जाता है।  दो पनचक्की थीं (राबी आर्य व कृपाल सिंह कीअलग अलग  मिल्कियत ) 

 कठूड़ बड़ा (ढांगू ) के इ लोक कलाएं व लोक कलाकार , crafts of Kathur  (Himalaya ) , folk art of Himalaya ,North India  

Bhishma Kukreti

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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B-62
 
   (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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Paternity = पितृत्व = जांक फैसला  कोर्ट म हूंद
Pathetic, दयनीय = पितृत्व को फैसला कोर्ट म हूंद
Patient , रोगी = सरकारी अस्पताल म जु बहुत बुरु भुगतदु
Patriot , देशभक्त = एक मोरदि नसल
Patriotic, देशभक्ति = राय राय पर निर्भर
Pawn,प्यादा = युद्धक्षेत्र म सैनिक
Peace, शान्ति = भौत  प्रस्ताव करदन किन्तु कार्यन्वित कम ही करदन
Pedestal, कुर्सी, पद = राजनैतिक नेता , खिलाड़यूं पैली पसंद
Penance  तपस्या = कुछ तो हूंद च  पर क्या च मैं पता नी
Penmanship लेखनकला = एक हर्चीं  कला
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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B-62
 
   (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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Pension .पेंसन =  भागदा  जोगी  लंगोट ही सै
People,लोग =  समाज को पतन
Perdition,नर्कवास , तबाही = अच्छा इरादा कु बाटो
Perfume, परफ्यूम , इत्र = जु नयाणो  विकल्प कतई  नी  च
Permanent , स्थायी = ज्यादातर गलती
Permission, अनुमति = जु बच्चा नि लीन्दन
Perspiration पसीना = कैन बोलि  बुरु च ?
Perspire पसीना आण = लावो जरूर लावो किलकि तुम जणदा  छा यु आवश्यक च
Pessimism , नकारात्मकता =  जिंदगी कु असली सच्च
Pest, हानिकारक जीव /कीड़ो = उ बच्चा जु बिंडी ऊल  जलूल का सवाल करदो

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गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from  North  India Garhwal ,

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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B-64
 
   (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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Pet, पालतू , घरेलू जानवर (कुत्ता , बिरळ )= अधिकतर आदम्युं  से अधिक प्यार करे जांदन
Philanthropist  परोपकारी = झूठो मनिख
Philosopher, दार्शनिक = अजकाल कॉमेडियन
philosophy दर्शनशास्त्र = बार बार कै चीज तै समझाणो  शास्त्र
Phobia , भय =  बुरी आदतों का वास्ता बचणो बहाना
Photograph,फोटो = बणै  बि सकद बर्बाद बि कौर सकद
Photographer फोटोग्राफर =जो संस्कृति व गिद्ध - गरुड़ तै एकि सामान समझद
Picket ,पैरा दीण =  प्रेमिका पैथर पैथर जाण
Pickpocket जेबकतरा = जौं तै गली म एकसाथ हूण से माल हाथ लगद
Pig , सुंगर = गाळी दीणो माध्यम तो उत्तराखंडियों कुण  गोळी मरण  लैक  जानवर
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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -गढ़वली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B-65 
 
   (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश  )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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Pigeon कबूतर = उड़दो मूस
Pillage डकैती डलण = ग्रामीण डिपार्टमेंट स्टोर का वास्ता निवेश माध्यम
Pillager डकैत /लुटेरा = आजकाल राजनीतिज्ञ  कु सम्मानार्थी शब्द
Pimp, वैश्याओं दलाल = भ्रस्ट नेताओं से अधिक ईमानदार
Pimple,मुहासा = अधिकतर मांगण  देर हूणो कारण
Pinch चुटकी =हिंदी फिल्मों म सिंदूर नापणो  इकाई
Pine, चीड़ / कुंळैं = क्रिश्चियनों कुण  धार्मिक पेड़ , पहाड़ियों कुण  बांज वृक्ष निबटाणो  पेड़ 
Pineapple पाइनऐपल - न ही ऐपल न ही पाइन
Piss,पिशाब - बरफ तै रंगीन करणो बढ़िया द्रव
Pistol,पिस्तौल = हरेक तकिया की अहम आवश्यकता 
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गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from  North  India Garhwal , Garhwali  South Asian Satire

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 ठंठोली संदर्भ में ढांगू गढ़वाल  की तिबारियों पर अंकन कला -1
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  हिमालय की भवन काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -1   
चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

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  गोरखा काल याने 1815 तक गढ़वाल में पक्के मकान ढूंढने से भी नहीं मिलते थे।  कच्चे व घास फूस के मकानों में ही जनता रहती थी।  हम में से बहुतों को गलत फहमी होती है कि गढ़वाल में तिबारी संस्कृति (नक्कासीदार भवन काष्ठ  कला युक्त मकान ) बहुत पुरानी है।  गढ़वाली राजा युग में मकान निर्माण वास्तव में पाप समझा जाता था क्योंकि नए मकान पर भारी कूड़ कर देना पड़ता था।  जब गढ़वाल में सम्पनता आनी शुरू हुयी तो ही 1860 के पश्चात ही आधुनिक , पक्के एक मजिला मकान निर्माण शुरू  हुआ।  तिबारी निर्माण का प्रचलन लगता है 1890 या उसके बाद शुरू हुआ होगा जब अन्न उत्पादन से कुछ परिवार सौकार (शाहूकार ) बनने लगे व पधानचारी में अधिक बचत होने लगी।  ढांगू में भी 1890 लगभग तिबारियों , डंड्यळ / डंड्यळियों  का निर्माण शुरू हुआ।  अभी तक इस लेखक को कोई ठोस , तर्कयुक्त प्रमाण नहीं मिला कि दक्षिण गढ़वाल (ढांगू , डबरालस्यूं , उदयपुर ) में कोई मकान 1860 से पहले बना हो या तिबारी 1890 से पहले निर्मित हुयी होगी। 
  तिबारी का अर्थ है दुभित्या उबर के ऊपर बरामदे में काष्ठ की नक्कासी  हो।  यदि काष्ठ नक्कासी ना  हो तो ऐसे एक मंजिले खुले बरामदे या बंद बरामदे को डंड्यळ कहते हैं यदि बरामदा न हो और ऊपर कमरा हो तो उस कमरे को मंज्यूळ  ही कहते हैं। 
    सर्वेक्षण से इस  शोधकर्ता ने पाया कि ढांगू के तकरीबन हर गाँव में दो से अधिक तिबारियां अवश्य थीं  जो कुछ बर्बाद हो गयीं है या समाप्ति के बिलकुल निकट हैं।  यह भी पाया गया है कि जिनके मालिक गाँव में नहीं थे व तिबारी नष्ट हो गयी तो तिबारी की नक्कासीदार लकड़ी को लोग ऐसे ही उठाकर ले गए हैं या तिबारी के मालिक ने किसी को अन्य प्रयोग हेतु दे दी गयीं।  कुछ तिबारियों की लकड़ी जला भी दी गयी थीं। 
    सर्वेक्षण से पाया कि लगभग सभी तिबारी सूचनादाता कहते हैं कि तिबारी पर काष्ठ कला अंकन हेतु कलाकार श्रीनगर से आये थे।  श्रीनगर के कारीगर वास्तव में एक जनरिक ब्रांडिंग का उदाहरण है।  किसी को कुछ नहीं पता कि वे अनाम कलाकार कहाँ से आये थे व कहाँ ठहरा करते थे।  केवल ग्वील की सूचना मिलती है कि काष्ठ  कलाकार रामनगर से आये थे व  सौड़ की तिबारी अंकन कलाकर श्रीनगर के थे व छतिंड में रहते थे (अस्थायी निवास ) .
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       ठंठोली के  मलुकराम बडोला की तिबारी में काष्ठ अंकन कला

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ठंठोली मल्ला ढांगू का महत्वपूर्ण गाँव है।  कंडवाल जाति किमसार या कांड से कर्मकांड व वैदकी हेतु बसाये गए थे।  बडोला जाति ढुंगा , उदयपुर से बसे।  शिल्पकार प्राचीन निवासी है।  ठंठोली की सीमाओं में  पूर्व  में रणेथ  , बाड्यों , छतिंडा व दक्षिण पश्चिम में ठंठोली गदन (जो बाद में कठूड़ गदन बनता है ) , दक्षिण पश्चिम में कठूड़ की सारी , उत्तर में पाली गाँव हैं।   
 चंडी प्रसाद बडोला की सूचना अनुसार लकड़ी की नक्कासीदार आलिशान तिबारियां भी ठंठोली में थी व  मलुकराम बडोला (नंदराम बडोला , नारायण दत्त बडोला के पिता  ) , , राजाराम बडोला , बासबा नंद कंडवाल,  जय दत्त कंडवाल, पुरुषोत्तम कंडवाल , रामकिसन कंडवाल आदि सात  तिबारियां थीं। 
    इस लेखक को ठंठोली के मलुकराम बडोला के पड़पोते (great grandson ) हरगोपाल बडोला ने अपनी तिबारी की फोटो भेजीं हैं. यदि स्व मलुक राम  बडोला,  उनके पुत्र स्व नंदराम बडोला   उनके पुत्र स्व प्रेम लाल बडोला व पड़पोते हरगोपाल बडोला (जन्म 1952 ) के मध्य  समय की गणना करें तो हर साखी में 25 साल के अंतर् से मलुकराम बडोला का जन्म  लगभग सन 1875  बैठता है।  याने तिबारी मलुकराम बडोला के यौवन काल के बाद ही निर्मित हुयी होगी।  याने यह तिबारी 1900 के लगभग ही निर्मित  हुयी होगी।  तिबारी की शैली बताती है कि नक्कासी शैली प्राचीन व  नहीं है  याने किसी भी प्रकार से तिबारी 1900  से पहले नहीं निर्मित हुयी होगी। 
  काष्ठ तिबारी साधारण दुभित्या उबर (तल मंजिल ) के ऊपर बरामदा  नक्कासी तिबारी है युक्त है।   तिबारी का काष्ठ  कला चौकोर है , चार खम्बों या स्तम्भों  वाली तिबारी में कोई धनुषाकार मेहराब (arch ) नहीं है सभी चौकोर हैं । चारों स्तम्भ छज्जे के ऊपर स्थापित हैं।  चारों खड़े स्तम्भों में  सुंदर चित्रकारी हुयी है अथवा अंकन किया गया है।   यह पता नहीं चल सका है कि स्तम्भ  एक ही लकड़ी के स्लीपर /लट्ठ से उकेर कर किया गया हो या कई कलाकृतियों को जोड़कर निर्मित किये गए हों  जैसे ग्वील के क्वाठा भीतर के स्तम्भ हैं। 
 
   स्तम्भ में आधार के कुछ ऊपर पहले अधोमुखी कुछ  कुछ कमलाकार अंकन व उसके ऊपर  एक अंडाकार आकृति के ऊपर  उर्घ्वमुखी  कमला की पंखुड़ियां     अंकन हुआ है।  बीच में भी कला कृती में  उभार है जो गोल है व स्तम्भ के चारों और है।  फिर स्तम्भ की गोलाई कम होती है और कुछ कुछ चौकोर  आकृति में स्तम्भ ऊपर के  काष्ठ आकृति जो ऊपरी छज्जे (छत के नीचे ) छज्जे के मिलता है।  यह रेखायुक्त हैं और काष्ठ की कई पत्तियों से बने लगते हैं।  कई परतों में ऊपर का भाग है जो छत से मिलते हैं।  चारों स्तम्भों को मिलाने वाली ऊपर भू समांतर  वाली परत सीधी प्लेट हैं किन्तु दो बीच की प्लेटों में बेल बूटे  अंकित हैं  . ऊपर की परतों में से दो स्तम्भों से बने  दोनों किनारे की खिड़की (?) के ऊपर मध्य में दो गुच्छे हैं व बीच की खिड़की के ऊपर चक्राकार फूल की पंखुड़ियां अंकित है।   स्तम्भों में भी वर्टिकली  बेल बूटे अंकित हैं जो ऊपर की परतों से मिलती हैं व समानता प्रदान करती हैं याने शौक (shock ) से छुटकारा देते हैं। 
    उबर/तल मंजिल  के ऊपर पत्थर के छज्जे  है व छज्जा पत्थर के दासों (टोड़ी ) पर टिके  हैं।   पत्थरों के निर्मित हैं व दास उलटा s की आकृति आभास देता है।  ढांगू में अधिकतर दास (टोड़ी ) इसी आकृति के होते थे।   इस तिबारी में छत के नीचे का छज्जे  का वह  भाग जो स्तम्भों से संबंधित में दास लकड़ी के हैं चौकोर।  उन दासों (टोड़ीयों ) के सबसे आगे नीचे  तीन लम्बे शंकुनुमा आकृतियां लटकी दिखती हैंजबकि वे चिपकी हैं । 
हर स्तम्भ के मध्य एक उभरी लकीर है जिस पर बड़े कमल पंखुड़ियों के ऊपर छोटे ऊर्घ्वाकार कमल पखुड़ियां अंकित हैं और फिर एक उभरी काष्ठ लकीर है इस  उभरी काष्ठ लकीर पर बेल बूटे जैसे कुछ  अंकन है
  नक्कासी में अधिकतर आकृतियां बेल बूटे के ही आभास देते हैं या हैं। 
तिबारी मेंक हीं  भी पशु या पक्षी अंकित नहीं हैं
अपने जमाने में यह तिबारी मेहमानों की खातिरदारी हेतु गाँव वाले प्रयोग  करते थे।  अब तो रंगदार तिबारी लग रही है किन्तु पहले नहीं थी।  कब रंग लगाया में भी शोध आवश्यक है। 
      ठंठोली की इस तिबारी का अभी भौतिक रूप से देखकर शोध आवश्यक है व बारीकियां व अति वैशिष्ठ्य तभी पता चल सकेगा।       
साधारणतया किसी को आज पता नहीं कि इन तिबारियों के बढ़ई /काष्ठ कलाकार कौन थे , कहाँ के थे।  ठंठोली की इस तिबारी के उत्तराधिकारियों के पास भी इस बाबत कोई सूचना नहीं बस एक ही सूचना है वे शायद श्रीनगर गढ़वाल के थे।  वैसे यह भी निश्चित नहीं है कि वे श्रीनगर के थे या जनरिक ब्रैंडिंग हिसाब से  श्रीनगर नाम पड़ा है। 
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फोटो व सूचना आभार - ठंठोली के पंडित  हरगोपाल बडोला

सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती

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Bhishma Kukreti

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 दाबड़ ( बिछला ढांगू ) संदर्भ में हिमालयी कला व कलाकार

ढांगू गढ़वाल की  लोक कलाएं व लोक कलाकार श्रृंखला - 9
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 प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती


(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 ढांगू में दो गाँवों के नाम 'दाबड़ ' हैं एक मल्ला ढांगू में मळ -दाबड़  व दूसरा बिछला ढांगू के खंड -अमोळा -दाबड़।  इस अध्याय में  बिछला ढांगू दाबड़ की लोक कलाओं की चर्चा की जा रही है।
   सामन्य गढ़वाली गाँव जैसे ही डाबड में  भी निम्न कलाएं मौजूद थीं या हैं -
अ - संस्कृति संस्कारों से संबंधित कलाभिव्यक्तियां  जैसे पंडितों द्वारा पूजन समय  गणेश ,  निर्माण आदि , जन्मपत्रियों में पंडितों द्वारा कई कलाएं , बधाण पूजन समय खिन्न लकड़ी से कुछ धार्मिक प्रतीक निर्माण आदि।
ब - शरीर अंकन व अलंकरण (हल्दी हाथ , होली व सुनारों द्वारा अलंकार निर्माण 
स - धार्मिक व सामजिक स्तर पर लोक नृत्य व गीत गायन आदि
द - स्वयं हेतु या जीवकोपार्जन हेतु कई लोक कलाएं
   तिबारियां - दाबड़ में आज भी चार तिबारी (ऊपरी मजिल बरामदे का काष्ठ कला अंकन  )  मौजूद हालत में हैं  . जब इन तिबारियों की निम्न जानकारी मिली है -
 १ - भोला सिंह राणा की तिबारी - भोला सिंह के पहली पीढ़ी में नंदन सिंह व जगत सिंह राण हुए फिर जगमोहन सिंह राणा हुए अब हीरा सिंह राणा चौथी पीढ़ी के हैं।  हीरा सिंह राणा का जन्म लगभग 1980 में हुआ था. एक पीढ़ी में 20 वर्ष का अंतर  से तातपर्य निकलता है कि भोला सिंह का जन्म लगभग 1900 या 1880 (एक पीढ़ी में 25 साल का अंतर हो तो )  याने किसी भी प्रकार से भोला सिंह की तिबारी  1910 से पहले निर्मित नहीं हो सकती।
२- बालम सिंह राणा की तिबारी - बालम सिंह के पोते कलम सिंह राणा की उम्र आज 80 के लगभग है तो बालम सिंह का जन्म लगभग 1900 ठहरता है।  याने 1925 के करीब तिबारी निर्मित हुयी होगी और तिबारी की मरोम्मत 1952 में भी हुयी
३- तारा सिंह राणा की तिबारी - तारा सिंह राणा का पुत्र भरत सिंह राणा हुए , भरत सिंह का पुत्र आलम सिंह राणा व आलम सिंह का पुत्र कलम सिंह की उम्र आज 40 वर्ष की है।  याने यह तिबारी भी 1940 के बाद ही निर्मित हुयी।   अनाम तिबारी काष्ट  अंकन कलाकार - इन तिबारियों के वर्तमान उत्तराधिकारियों से पूछने पर उत्तर मिला कि उस समय भवन चिणाइ तो गंगापार वाले करते थे किन्तु तिबारी निर्माण के बारे में एक उत्तर होता है मथि मुलक (उत्तरी गढ़वाल ) . केवल भोला सिंह राणा की तिबारी कलाकार का नाम मिला और उसका नाम था मथुरा।  कोई कहता है भवन निर्माता व् काष्ठ कलाकार गंगापार  (टिहरी ) डुमरी -बछणस्यूं के थे।  जबकि बछणस्यूं तो गंगा वार आज रुद्रप्रयाग किन्तु पहले पौड़ी गढ़वाल में था । 
ओड /भवन निर्माण
  छोटे मकानों चिनाई (निर्माण ) हेतु ओड व मिस्त्री  गाँव या मंजोखी (पड़ोसी गाँव ) के होते थे जिनमे भूतकाल व वर्तमान ओड ओं  के नाम हैं - जवाहर सिंह , रूप सिंह , टेक  सिंह ,  घनश्याम।
 मंजोखी के ओडों  में रैजा , भाना सतूर आदि प्रसिद्ध हुए हैं। यही पत्थर खान से पत्थर निकलते थे व बढ़ई गिरी का काम भी करते थे
यद्यपि मंदर निर्माण (बड़ी व दर्री  जैसी गेंहू के पराळ  से बनी चटाई ) प्रत्येक व्यक्ति पारंगत था किन्तु लूंगा सिंह , होशियार सिंह , फते  सिंह , , कल्याण सिंह , दलीप सिंह विशिष्ट कलाकार माने जाते  थे।
बांस के भंडार हेतु बर्तन (कंटेनर ) जैसे दबल आदि कलाकार थे चतुर
लोहार - गडमोला के चैतराम आर्य
टमटा गिरी  (धातु वर्तन व उपकरण  )- टंकयाण  (धातु बर्तन मरोम्मत ) हेतु गडमोला पर निर्भर अन्यथा कभी जसपुर पर ही निर्भर थे
सुनार हेतु भी अन्य गाँव जैसे मल्ला ढांगू के जसपुर व पाली गाँव पर निर्भर
कोल्हू (कुलड़ ) - तेल पेरने हेतु कोल्हू दाबड़ के बंशीलाल  कुलड़ मालिक हुए हैं।
   कृषि कार्य हेतु कील , ज्यूड़ (रेशे का ) , हल , जुआ , निसुड़ , पाटा , दंदळ ,  रेशे बुनने , प्रत्येक परिवार स्वयं करता था।  स्वतन्त्रता के बाद भी प्रत्येक मवासे के अपने म्वार जळट (मधुमखहि घर ) थे।  लगभग प्रत्येक पुरुष हिरण , काखड़ , सुवर , शाही (सौलू  ), आदि के आखेट खेलने , मुर्गा पकड़ने मेंकुशल    थे।  गंगा किनारे गाँव होने के कारण मच्छी भी मारना Fishing  जानते थे।
 पंडित - दाबड़ एक राजपूतों व शिल्पकारों का गाँव है अतः पंडिताई हेतु खंड पर निर्भर।  खंड के स्व परमान्द बड़थ्वाल प्रसिद्ध थे और वर्तमान में श्याम लाल बड़थ्वाल। 
, Dhol Vadak /drum player - Swanr Das and family and now Pitambar Das
-सूचना आभार - सत्यप्रसाद बड़थ्वाल (खंड ) व ममता राणा (दाबड़ )

 

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