Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1123021 times)

Bhishma Kukreti

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बजारी कठूड़ में टंखीराम कुकरेती  की तिबारी की काष्ठ कला
 
बजारी कठूड़ , ढांगू गढ़वाल ,संदर्भ में   हिमालय  की तिबारियों पर काष्ठ उत्कीर्णन अंकन कला-  2
 
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  हिमालय की भवन ( तिबारी )  काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 6   
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(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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     ढांगू में क्षेत्रफल व जनसंख्या दृष्टि से  बजारी कठूड़ एक बड़ा गाँव है।  यहां की तिबारियों के मामले  में 6 तिबारियों  के बारे में  सूचनाएं व छायाचित्र सतीश कुकरेती ने भेजी हैं।  इनमे से एक तिबारी की फोटो व सूचना टंखी राम कुकरेती की तिबारी के बारे में भी मिली है  .   
 बजारी कठूड़ (मल्ला ढांगू , गढ़वाल, हिमालय ) के टंखीराम की तिबारी कम भव्य तिबारी है। 
तिबारी में चार स्तम्भ हैं व ये चरों स्तम्भ तीन खोली /द्वार बनती हैं।  दो स्तम्भ दिवार से लगीं है।
   प्रत्येक काष्ठ स्तम्भ पत्थर के छज्जे पर स्थापित  हैं व आधार पर उल्टा कमल पुष्पदल दृष्टिगोचर होता है , फिर बीच में चारों ओर गोलाई लिए गुटके हैं।  गोल गुटका नुमा आकृति से स्तम्भ में फिर से ऊर्घ्वाकार (ऊपर उठता ) कमल पुष्पदल दृष्टिगोचर होते है और इस कमल पुष्प आकृति के बाद स्तंभ सीधा ऊपर चलता है व छत के नीची चौकोर पट्टियों से मिल जाते हैं।  छत की पट्टी व कमलाकृति पुष्प के मध्य काष्ठ स्तम्भ में बेल बूटा नुमा आकृतियां अंकित है।  छत के नीचे भी चार काष्ठ पट्टियां हैं जिन पर वनस्पति की आकृतियां अंकित है। छत के नीची चार समानंतर चित्रकारी वाली पट्टियां दिखती हैं। 
    टंखीराम कुकरेती की काष्ठ तिबारी  की मुख्य विशेषता है कि इस तिबारी में कोई मेहराब (arch ) नहीं है जो इस तिबारी को भव्यता दे सके। 
    स्तम्भों व ऊपर पट्टियों में बारीक कला युक्त अंकन हुआ है।  किसी भी भाग में पशु , पक्षी अंकन नहीं दीखता है व कमल को छोड़ कोई   चक्राकार आकर में पुष्पदल  भी अंकित नहीं हुआ है जो अधिकतर ढांगू अन्य तिबारियों में मिलता है।     
 तिबारी को काष्ठ  उत्कीर्णन कला दृष्टि से साधारण तिबारी ही कहा जायेगा। 
    अनुमान है कि ऐसी तिबारियों का निर्माण प्रचलन अधिकतर 1940 के पश्चात ही शुरू हुआ। 
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सूचना व फोटो आभार - सतीश कुकरेती (कठूड़ )
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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
House Wood Carving Art of Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Malla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Dhangu, Garhwal, Himalaya; ढांगू गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला


Bhishma Kukreti

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बजारी कठूड़ में राघवा नंद कुकरेती व देवानंद कुकरेती की तिबारियों की काष्ठ कला
 
बजारी कठूड़ , ढांगू गढ़वाल ,संदर्भ में   हिमालय  की तिबारियों पर काष्ठ अंकन कला 1
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  हिमालय की भवन ( तिबारी )  काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 5 
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(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  ( उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला पर कुछ अधिक कार्य  हुआ है ।  यद्यपि पुस्तकें भी प्रकाशित हुयी हैं और लेख भी।  यह देखा गया कि कला इतिहासकारों ने देहरादून , चमोली गढ़वाल , रुद्रप्रयाग व उत्तरकाशी को  ही गढ़वाल समझा , पौड़ी गढ़वाल विशेषकर दक्षिण गढ़वाल की हर कला अन्वेषक , विश्लेषक , व  इतिहासकार ने हर तरह से अवहेलना ही की है।  ढांगू तो सदा की तरह इस विषय में भी अपेक्षित ही रहा  है। इसीलिए इस लेखक ने दक्षिण गढ़वाल की लोक कलाओं पर ध्यान केंद्रित किया है ) 


जैसा कि कठूड़ संदर्भ में हिमालय कलायें व कलाकार शीर्षक में उल्लेख किया गया है कि कठूड़ जनसंख्या दृष्टि से ढांगू का एक बड़ा गाँव था जहां 12 जातियां वास करती थीं व सम्भवतया क्षेत्रफल हिसाब से भी कठूड़  बड़ा गाँव है।  (यद्यपि कड़ती वाले भी दावा करते हैं कि कड़ती क्षेत्रफल में बड़ा गाँव है ) .
    तिबारियों की दृष्टि में कठूड़ में दो तिबारी पधान (राघवानंद कुकरेती परिवार ) परिवार व दो राजपूत परिवार में थीं।  पधान राघवा नंद कुकरेती के अतिरिक्त इसी परिवार के देवी प्रसाद कुकरेती की भी तिबारी थी।  अब राघवानंद कुकरेती की ही तिबारी बची है जबकि देवी प्रसाद कुकरेती की तिबारी उजाड़ दी गयी है और  नया  भवन निर्मित हो गया है।  तीसरी और भव्य तिबारी (लगभग क्वाठा भितर  जैसे ) तिबारी  जोध सिंह -प्रताप सिंह नेगी भाईयों की थी।  ये दोनों भाई देहरादून जा बसे और तिबारी नत्थी सिंह नेगी को बेच दी गयी थी। इस दौरान बस्बा नंद कुकरेती 'पटवारी व तनखीराम कुकरेती की तिबारियों या हंगलों की भी जानकारी मिली है
      इस लेखक के पास राघवा नंद कुकरेती 'पधान' की तिबारी की सूचना व फोटो मिली है (आभार सतीश कुकरेती ) .
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                             चार स्तम्भ वाली राघवा नंद कुकरेती 'पधान ' व देवा नंद कुकरेती की कठूड़ की तिबारी
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    राघवा नंद कुकरेती 'पधान ' की तिबारी व देवानंद कुकरेती की तिबारियां भी  प्रथम मंजिल पर हैं ।   चारों   स्तम्भ /खम्बे /सिंगाड़   छज्जे के  पत्थर से बने देहरी (देळी ) पर ठीके है।  किनारे के दोनों स्तम्भ  मिटटी पत्थर की बनी दिवार से लगी हैं।   चित्रकारी से समाहित लम्बी ऊपर जाती लकड़ी   स्तम्भ व दीवार को जोड़ती है। यह चित्रकारी से भरपूर दोनों लम्बी लकड़ी अंत में छत कीकाष्ठ  छज्जे से जा मिलते  हैं।  चारों स्तम्भ तीन मोरी /खोळी /द्वार बनाते है और चारों मोरी लगभग 6 फ़ीट से ऊँची होंगी ही।  चारों मोरी आयत व लम्बाई चौड़ाई में समान हैं। 
 प्रत्येक स्तम्भ का आधार उलटा कमल जैसे है और कमल खिलने के स्थान पर जोड़ है जिसके चारों ओर गोलाई लिए काष्ठ गुटके हैं।  फिर इन जोड़ों से प्रत्येक स्तम्भ में ऊपर की और उठते कमल पंखुड़ियां हैं  जो कुछ ऊपर खिलते जैसे लगती हैं और वहां से फिर नई मोटाी अंडाकार आकृति जो धीरे धीरे कम होती है ऊपर की ओर जाती है और कुछ ऊपर एक जोड़ है जो गोलाई में गुटकों से बना है।  यहां से ही स्तम्भ से मेहराब /arch निकलते है।  मुकुट  आकार के तीन मेहराब /arch  पर भी चित्रकारी है।  जिस जोड़ से मेहराब /arch शुरू होता है वहीं से एक काष्ठ आकृति जैसे थांत ऊपर की ओर जाती है जो मकान की छत के छज्जे से मिलते हैं। 
मेहराब के बगल में थांत पर मयूर नुमा पक्षी का गला व चोंच की चित्रकारी है।  इस तरह दोनों तिबारियों में प्रत्येक तिबारी में चार  पक्षिमनुमा  चित्रकारी मिलते हैं
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                       तिबारी के प्रत्येक मेहराब में दो  चक्राकार फूल व  चित्रकारी
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 तिबारी के प्रत्येक मेहराब /arch  के किनारे  दो दो चौड़े पंखुड़ियां काले चक्राकार फूल है जिसके केंद्र में गणेश ( जैसे   पूजा  वक्त  गोबर का गणेश अंडाकार बनाया जाता है ) है।  तीनों मेहराबों में कुल 6 फूल हैं।  प्रत्येक  थांत पर भी नयनाभिराम करते चित्रकारी है।  मेहराब से और पत्थर की छत के छज्जे में मध्य कई मोटे  पटले / पट्टियां हैं जिन पर कई प्रकार की आनंददायक चित्रकारी  है। 
 मेहराब ऊपर चार पट्टियों  में विशेष बेल बूटे
        मेहराब के ठीक ऊपर चार आयताकार पट्टियां हैं जिनमे नीचे की तीन पत्तियों में हर पट्टी पर विशेष व भिन्न बेल बूटे /फूल व पत्तियां कलाकृतियां अंकित हैं।  सबसे उप्पर जो पट्टी छत को छूती है उस पर बिलकुल भिन्न किस्म के फूल हैं , सबसे ऊपर की पट्टी में  किनारे पर की दो चौकी में कमल आकृति दिखती है तो बीच में  ऊपर की ओर उठे पुष्प दल वाला बड़ा फूल दीखता है।  नीचे की तीन पट्टियों में चित्रकारी तरंगों का छवि perception प्रदान करने में सफल हैं।   
  छत के काष्ठ छज्जे से भी शंकु नुमा कलाकृति लटक रही हैं। 
             फोटो में कोई मानवाकृति  अथवा  पशु नहीं दीखते हैं। 
        राघवा नंद कुकरेती 'पधान ' की तिबारी व देवा नंद कुकरेती की तिबारी के स्तम्भों  पर कमल पंखुड़ी आकृति  , झैड़ के चित्रमणि मैठाणी की तिबारी स्तम्भ व मित्र ग्राम  के नारायण दत्त जखमोला की तिबारी स्तम्भ के सामान ही है। मित्रग्राम व कठूड़ की उपरोक्त दो तिबारियों में व झैड़  के तिबारी  स्तम्भों में समानता है। 
  आकलन से लगता है कठूड़  के राघवा नंद कुकरेती 'पधान ' व देवा नंद कुकरेती की तिबारियों का  निर्माण समय 1900 इ.  के पश्चात ही होगा
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 मुख्य सूचना व फोटो आभार - सतीश कुकरेती

 अतिरिक्त  सूचना , भास्कर कुकरेती व  शालनी कुकरेती बहुगुणा
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बजारी कठूड़ में लीला नंद  कुकरेती  की तिबारी की काष्ठ कला
 
बजारी कठूड़ , ढांगू गढ़वाल ,संदर्भ में   हिमालय  की तिबारियों पर काष्ठ उत्कीर्णन अंकन कला-  3 
 
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  हिमालय की भवन ( तिबारी )  काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 7   
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(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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   बजारी कठूड़ मंदिरों व तिबारियों व जंगलाओं (भवन प्रकार ) के लिए क्षेत्र में प्रसिद्ध है। कठूड़  तिबारी श्रृंखला में लीला नंद कुकरेती की तिबारी एक समय जानी मानी तिबारी थी।  अब जीर्ण -सीर्ण स्थिति में लगभग अंतिम सांस ले रही है।
  मेहराब /arch न होने यह तिबारी उच्च श्रेणी की तिबारियों में स्थान नहीं पा सकती है। 
लीला नंद कुकरेती की तिबारी में चार काष्ठ स्तम्भ है दो किनारे वाले भवन दीवाल से लगे हैं व चारों सत्मभ तीन मोरी /खोली /द्वार बनाते हैं।  चारों स्तम्भों के प्रत्येक स्तम्भ छज्जे पर आधारित है।  आधार पर उल्टा कमल पुष्पदल दीखता हिअ व फिर गोल गुटके का एक आकृति है जिससे ऊर्घ्वाकर कमल पुष्पदल है जहाँ से स्तम्भ सीधे ऊपर आता है और मुंडीर (सिर ) से जुड़ जाता है सभी स्तम्भ इसी प्रकार मुंडीर से जुड़ते हैं।  मुण्डीर पर चार से   अधिक समांतर र पट्टियां है और आखरी ऊपर की काष्ठ पट्टी छत से मिल जाती है।  मुण्डीर की प्रत्येक नीचे वाली व मध्य पट्टियों  के बिलकुल मध्य में कोई शुभ चिन्ह अंकित है  याने मुण्डीर पर कुल तीन शुभ चिन्ह अंकित है। 
 स्तम्भ या मुण्डीर की पट्टियों पर कोई विशेष कला कृति अंकन के दर्शन नहीं होते हैं किन्तु अपने  निर्माण काल में अवश्य ही कला अंकन दृष्टिगोचर होता रहा होगा। 
छत लकड़ी के दासों (टोड़ी )  की सहायता से ताकतवर पट्टी पर टिकी  है और दास में उल्लेखनीय कला अंकन नहीं मिलता है।
यह तिबारी भी लगभग 1940 या बाद समय की ही लगती है।
तिबारी काष्ठ कलाकारों की अभी तक कोई सूचना नहीं मिल सकीय है।  लगता है लकड़ी कम टिकाऊ /ड्यूरेबल  की है। 
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सूचना व फोटो आभार - सतीश कुकरेती (कठूड़ )
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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -     गढ़वाली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B - 79   

 (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश     )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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Vandalism,बर्बरता = सेंसरशिप
Vanish,गायब , समाप्त = वोट दीणो उपरान्त आपक अधिकार अर नेताओं कर्तव्य
Vanity,घमंड = बड़ लोगुं जेवरात
Variable,परिवर्तनशील = नेताओं आश्वासन
Variety,विवधता = बुफे म जु हूंद
Vegetarian वनस्पतियां = इ राम दा कब्याक  बात छन धौं
Vegetation ,शाकाहारी = जौंक  मजाक मांशाहारी उड़ांदन
Ventilation,हवादार = सार्वजनिक आरामगृहुं की मुख्य कमी
Verbalism,रूढ़िवाद = श्रुतियूं से बताये जांद
Voiceless, बेजवान   /मौन = जैक मुहल्ला म राजनैतिक पहचान नि हो

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Copyright@ Bhishma Kukreti , 2020
गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Roasting Garhwali satire , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from  North  India Garhwal ,Garhwali  South Asian Satire , भारतीय सभ्य हंसी व व्यंग्य , South Asian satire, Mid Himalayan  satire,


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बजारी कठूड़ में विद्या दत्त  कुकरेती  की तिबारी की काष्ठ कला
 
बजारी कठूड़ , ढांगू गढ़वाल ,संदर्भ में   हिमालय  की तिबारियों पर काष्ठ उत्कीर्णन अंकन कला-  6
 
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  हिमालय की भवन ( तिबारी )  काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 10   
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(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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     ढांगू में क्षेत्रफल व जनसंख्या दृष्टि से  बजारी कठूड़ एक बड़ा गाँव है।  यहां की तिबारियों के मामले  में 6 तिबारियों  के बारे में  सूचनाएं व छायाचित्र सतीश कुकरेती ने भेजी हैं।  इनमे से एक तिबारी की फोटो व सूचना टंखी राम कुकरेती की तिबारी के बारे में भी मिली है  .   
 बजारी कठूड़ (मल्ला ढांगू , गढ़वाल, हिमालय ) के विद्या दत्त  की तिबारी कम भव्य तिबारी है। 
तिबारी में चार स्तम्भ हैं व ये चरों स्तम्भ तीन खोली /द्वार बनती हैं।  दो स्तम्भ दिवार से लगीं है।
   प्रत्येक काष्ठ स्तम्भ पत्थर के छज्जे पर स्थापित  हैं व आधार पर उल्टा कमल पुष्पदल दृष्टिगोचर होता है , फिर बीच में चारों ओर गोलाई लिए गुटके हैं।  गोल गुटका नुमा आकृति से स्तम्भ में फिर से ऊर्घ्वाकार (ऊपर उठता ) कमल पुष्पदल दृष्टिगोचर होते है और इस कमल पुष्प आकृति के बाद स्तंभ सीधा ऊपर चलता है व छत के नीची चौकोर पट्टियों से मिल जाते हैं।  छत की पट्टी व कमलाकृति पुष्प के मध्य काष्ठ स्तम्भ में बेल बूटा नुमा आकृतियां अंकित है।  छत के नीचे भी चार काष्ठ पट्टियां हैं जिन पर वनस्पति की आकृतियां अंकित है। छत के नीची चार समानंतर चित्रकारी वाली पट्टियां दिखती हैं। 
    विद्या दत्त  कुकरेती की काष्ठ तिबारी  की मुख्य विशेषता है कि इस तिबारी में कोई मेहराब (arch ) नहीं है जो इस तिबारी को भव्यता दे सके। 
    स्तम्भों व ऊपर पट्टियों में बारीक कला युक्त अंकन हुआ है।  किसी भी भाग में पशु , पक्षी अंकन नहीं दीखता है व कमल को छोड़ कोई   चक्राकार आकर में पुष्पदल  भी अंकित नहीं हुआ है जो अधिकतर ढांगू अन्य तिबारियों में मिलता है।     विद्या दत्त कुकरेती की तिबारी व टंखी राम कुकरेती की तिबारियों में साम्यता है
 तिबारी को काष्ठ  उत्कीर्णन कला दृष्टि से विद्या दत्त कुकरेती की तिबारी साधारण तिबारी ही कहा जायेगा। 
    अनुमान है कि ऐसी तिबारियों का निर्माण प्रचलन अधिकतर 1940 के पश्चात ही शुरू हुआ। 
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सूचना व फोटो आभार - सतीश कुकरेती (कठूड़ )
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Copyright @ Bhishma Kukreti ,26 1/  2020
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बजारी कठूड़ में बासवा नंद कुकरेती ' पटवारी जी '  की जगलादार तिबारी में   में काष्ठ कला     
कठूड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों पर अंकन कला -5
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    उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -   9
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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    बजारी कठूड़ के बासवा नंद कुकरेती पटवारी पद पर थे व प्रसिद्ध व्यक्ति थे।  बासवा नंद कुकरेती 'पटवारी जी ' ने एक मकान बनवाया जिसमे बैठक भी थी व काष्ठ कलाकृति उत्कृणित हिन् व यह मकान जंगलेदार माकन की श्रेणी में आता है और जब कि इस मकान में मेहराब भी हैं।
     पहली मंजिल पर बैठक भी है व सीढ़ियां अंदर से ही पहली मंजिल में पंहुची हैं।  तल मंजिल में  कमरों के दरवाजों पर बेल बूटों का अंकन आज भी साफ़ साफ़ दिकता है। 
पहली मंजिल का छज्जा पत्थर के दासों (टोड़ी ) पर ठीके हैं।  पहली मंजिल के छज्जे पर जंगल है।  छज्जों के दासों से शुतु होते इस जंगल में 11 काष्ठ स्तम्भ हैं।  और ये 11 स्तम्भ 10 खोली /मोरी /द्द्वार बनाते हैं। 
 जंगला स्तम्भ का आधार जो तल मंजिल के दास (टोड़ी जो काष्ठ के हैं ) से शुरू होता है व   चौकोर  , आयताकार मोटा आधार है।  फिर जब यह आधार समाप्त होता है तो उसी में जंगलों के बेलन हैं।  जब आधार समाप्त होता है तो स्तम्भ का उल्टा कमल पुष्प दल मिलता है व फिर इस उल्टे पुष्प व ऊपर ऊर्घ्वाकार कमल दाल के मध्य गुटके वाला गोला आकर स्थापित है।  इस गुटका नुमा आकृति से ऊर्घ्वाकर कमल पुष्प दल शुरू होता और पुष्प दलान्त से स्तम्भ गोलाई में ऊपर बढ़ता है व फिर ऊर्घ्वाकर कमल पुष्प दल शुरू होता है और पुष्प दलान्त से एक तरफ स्तम्भ का सबसे ऊपरी भाग छत की निचले तल के छज्जे से मिलता है तो वहीँ कमल पुष्प दलान्त से अर्ध मंडलाकार आकृति  शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडलकार आकृति से मिल मेहराब का निर्माण करते हैं इस तरह इस मकान के ऊपरी मंजिल में कुल दस मेहराब है याने प्रत्येक खोली में एक मेहराब। 
    मेहराब की कटाई में आनंद दायक आकृतियां  हैं  . प्रत्येक मेहराब के पत्ते /पट्टी के किनारे पर  एक  चक्राकार पुष्प है व बीच में अण्डाणुमा गणेश प्रतीक आकृति अंकित है।  जहँ पर दो मंडलाकार  मिलते हैं वहां पर शुभ प्रतीक भी है।
 खोली के आधार पर जंगल हैं और कुल दस जंगलle हैं
 पहली मंजिल के कमरों के दरवाजों व खिड़कियों  पर कोई विशिष्ठ  कला आकृति नहीं मिलती है बस चौकोर स्ट्रिप गढ़े  मिलते हैं। 
   इस तरह की शैली के मकान निर्माण सन 1947 /1950  के बाद ही शुरू हुआ था व इसी तरह का जंगलेदार मकान मित्रग्राम मल्ला ढांगू  के शेखरा नंद जखमोला की भी था। 
सूचना व फोटो साभार - सतीश कुकरेती (बजरी कठूड़ )
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बजारी कठूड़ में जोत  सिंह /प्रताप सिंह या नत्थी सिंह नेगी की तिबारी (कोठाभितर )  में काष्ठ कला     
कठूड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों पर अंकन कला -4
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    उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -   8
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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   बजारी कठूड़ में कई तिबारियां हैं और 'क्वाठा भितर ' की तिबारी  अध्क प्रसिद्ध हुयी।  'क्वाठा भितर ' अर्थात किले के भीतर।  साफ़ है कि यह तिबारी थोकदारों की या सौकारों की तिबारी थी।  पारिवारिक रूप से जोत  सिंह नेगी व प्रताप सिंह नेगी आखरी उत्तराधिकारी थे जिन्होंने देहरादून स्थांनतर  होने के बाद यह तिबारी /क्वाठा भितर  नत्थी सिंह नेगी को बेच दी थी जिसे अब नत्थी सिंह नेगी की तिबारी कहा  जाता है। 
क्वाठा भितर की तिबारी भव्य या उच्चकोटि श्रेणी में आती  है
 कोठा भितर की  तिबारी भी पहली मंजिल पर ही है।  तिबारी में चार काष्ठ स्तम्भ हैं , दो स्तम्भ  दिवार से लगे हैं व ये चार  काष्ठ स्तम्भ तीन खोली , मोरी /द्वार बनाते हैं। प्रत्येक  स्तम्भ  पत्थर  के छज्जे पर आधारित हैं व हाथीपांव जैसे आधार छवि प्रदान करते हैं। 
 उल्टा कमल  दल व ऊर्घ्वाकर पदम् पुष्प दल व   गुटके
 स्तम्भ आधार के बाद उलटा पदम् पुष्प दल है जो उलटे कमल शुरू होने  के बाद गुटके नुमा आकृति में बदल जाता है।  फिर ऊर्घ्वाकार कमल दल आकृति है व ऊपर की ओर आगे जाकर  स्तम्भ मेहराब  से जुड़ जाता है। दो  स्तम्भों से मेहराब का अर्ध धनुष या मंडल आपस में मिलकर मेहराब बनाते हैं। 
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 मयूर पक्षी आकृति
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जहां से मेहराब शुरू होता है स्तम्भ पर  मयूर  नुमा पक्षी का गला व चोंच आकृति उभरती है। 
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  पुष्प आकृति
 प्रत्येक मेहराब में किनारे पर  एक एक चक्राकार नुमा पुष्प  उत्कीर्णित है व बीच में गणेश प्रतीक है। 
   शुभांकर
 मेहराब के शीर्ष के ऊपर  चौड़ी प्रस्तर पट्टिका है जिस  पर कई प्रकार की जाली व बेल बूटे की आकृतियां उभरे हैं , इस प्रस्तर (entablature ) के मध्य स्तम्भ के ठीक ऊपर शंकुनुमा व डमरू छवि लिए काष्ठ आकृति ऊपर से लगे हैं।  कुल चार इस तरह के शुभ प्रतीक की आकृतियां हैं
 अंत में प्रस्तर या मेहराब के ऊपर की पट्टी /पत्तियां छत के आधार वाले काष्ठ पट्टी से मिल जाते हैं
 दीवार से स्तम्भ को जोड़ने वाली  खड़ी काष्ठ पट्टी पर बेल नुमा आकृति उभरी हैं।
 अपने शुरुवाती दिनों में अवश्य ही यह तिबारी भव्य रही होगी।
  तिबारी का समयकाल की सूचना  नहीं मिल सकीय है किन्तु 1900 के बाद ही इस तिबारी का निर्माण हुआ होगा।  इसी तरह तिबारी में काष्ठ कलाकारों  /उत्त्कीर्णकारों ) की कोई सूचना उपलब्ध नहीं है हाँ इतना कहा जा सकता है कि क्वाठा भितर तिबारी  के काष्ठ कलाकार ढांगू के नहीं थे क्योंकि ढांगू के स्थानीय तिबारी काष्ठ कलाकारों की कोई संस्कृति नहीं थी। 
सूचना व फोटो साभार - सतीश कुकरेती (बजरी कठूड़ )
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House Wood Carving Art of, Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Malla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Dhangu, Garhwal, Himalaya; ढांगू गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला


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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -     गढ़वाली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश  B - 80   

 (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश     )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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Volunteer , स्वयंसेवक = चूसक
Vote वोट = इथगा तागतवर नि हूंद जथगा समजे जांद
Voter वोटर - ढिबरुं  की अलग जाति
Voucherवाउचर = बौगाणो कागज जु बेवकूफ बणान बरोबर ही हूंद
Vulture गिद्ध = जु बि विज्ञापन से जुड्युं  हो
 
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गढ़वाली हास्य , गढ़वाली व्यंग्य , ताना मारते , चिढ़ाते , जलाते , गढ़वाली,  व्यंग्य, मजाक उड़ाते गढ़वाली व्यंग्यकोश  , Roasting Garhwali satire , Sarcastic definitions in Garhwali , Sarcasm from  North  India Garhwal ,Garhwali  South Asian Satire , भारतीय सभ्य हंसी व व्यंग्य , South Asian satire, Mid Himalayan  satire,


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भरच्यांद , भड्यांद  तून लगांद , पित्यांद  अंग्रेजी-शब्द  -     गढ़वाली में  परिभाषित करते व्यंग्य  शब्दकोश   B - 81   

 (English -Garhwali  Dictionary of Satire , Sarcasm,  Aggravating , Galling , Roasting  Definitions   )
 (गढ़वाली ,  व्यंग्य,  हंसी, जोक्स ,  चिढ़ाते , धृष्टता करते ,ठट्टा लगाते  , ताना मारते , झिड़कते शब्द -परिभाषा शब्दकोश , व्यंग्यकोश     )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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Wager,दांव =अधिकतर अधिकित्र लोगुं सही नि लगद
Wagon,गाड़ी - सबसे बिंडी लोग यां  मंगन गिर्दन
Wail,विलाप = बच्चों द्वारा अलार्म बजाण
Waist,कमर , कटि = रतिकालीन कवियों प्रिय विषय
Waiter वेटर = एक कौम जु टिप्स अर गाळी खाणो बान जिन्दा रौंद
Waitress वट्रेस्स =मथि जनि बस यौन शोषण ऑवर जोड़ द्यावो
Wake,जगण,  जगाण = इच्छा से दूर
Walking घुमण = जै तै बेकार म एक्सरसाइज नाम दिए गे
Wallet, बटुआ =   सड़क म  बसम आदि जगा म खुले  आम  नि दिखये जांद
Wallflower,भित्ति पुष्प  = पार्टी म मी भी

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सौड़ गांव के बण्वा सिंह नेगी की पारम्परिक भवन की तिबारी में काष्ठ उत्कीर्ण कला
  Traditional House wood Carving Art of Saur village , Dhangu , Garhwal, Himalaya 
सौड़  संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की पारम्परिक भवन की तिबारियों पर अंकन कला -7
Traditional House wood Carving Art on Tibari  of Dhangu , Garhwal, Himalaya -7
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  उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -   11
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari Art ) of Uttarakhand , Himalaya -   
( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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सौड़ मल्ला ढांगू (द्वारीखाल ब्लॉक ) पौड़ी गढ़वाल का एक छोटा गाँव है जो  प्राचीन काल में सैकड़ों सालों से  जसपुर ग्रामसभा का हिस्सा था।  अब सौड़ जसपुर से अलग कर अलग ग्रामसभा बना दी गई है।  सौड़ में सभी परिवार नेगी हैं।  सौड़ कम से कम दो सालों से भवन  निर्माण शिल्प (ओड ) व भवन व घरेलू उपकरण काष्ठ शिल्प हेउ प्रसिद्ध रहा है।  1970 से पहले सौड़ में प्रत्येक परिवार भवन निर्माण शिल्प से जुड़ा था।  अब सौड़ के नेगी परिवार भवन निर्माण तो नहीं करते किन्तु भवन निर्माण ठेकेदारी करते हैं।  सौड़ गांव सदा से ही उपजाऊ जमीन व भरपूर फसल हेतु जाना  जाता  रहा है।  कर्मठता हेतु भी सौड़ का बड़ा नाम रहा है।  सौड़ जसपुर के पश्चिम में जसपुर व गोदेश्वर पर्वत की घाटी में चौरस स्थान का गांव है और सौड़ क्र पश्चिम में इसी घाटी में छतिंड गाँव है। 
   सौड़ में बण्वा  सिंह नेगी व शेर सिंह नेगी की दो तिबारियां अभी तक सही सलामत है किन्तु   बण्वा  सिंह नेगी  की तिबारी खप सी रही है क्योंकि  बण्वा सिंह नेगी ने  1960  के लगभग नया मकान बना लिया था।  दोनों तिबारी काष्ठ  कला दृष्टि से भव्य या उच्च मानी जाती है। 
  बण्वा  सिंह नेगी की   तिबारी (Tibari ) में   पक्षी व पशु अलंकरण  (Figurative ) अंकन है,  प्राकृतिक अलकंरण  व ज्यामितीय चारों  प्रकार के अलंकरण  चित्रित या उतकीर्त हैं।   बण्वा  सिंह नेगी की तिबारी में मानव अलंकरण नहीं मिलते है न ही कोई नजर न लगे वाला महामानव का अलंकरण मिलता है। 
     बण्वा  सिंह नेगी  की तिबारी (Tibari ) वास्तव में    बण्वा  सिंह नेगी  के पिता ने निर्मित करवाई थी।
    बण्वा  सिंह नेगी की तिबारी (पहली मंजिल का खुला बरामदा ) भी ढांगू की अन्य तिबारियों की तरह ऊपरी पहली मंजिल पर ही स्थापित है याने नीचे दो दो दुभित्या कमरे हैं व ऊपरी मंजिल पर बाहर के दो कमरों  के ऊपर बरामदा है और बरामदा के द्वार पर  चार स्तम्भ / सिंगाड़ है जो तीन मोरी / द्वार बनाते हैं।   दो किनारे के काष्ठ स्तम्भ  अन्य काष्ठ कड़ी के जरिये दीवार से जुड़े होते हैं। तिबारी के कोने वाले स्तम्भ को जोड़ने वाले स्तम्भ या शाफ्ट पर भी कला कृतियां उत्त्कीर्णित हैं (carved ) .  दिवार व स्तम्भ को जोड़ने वाली कड़ी /शाफ़्ट पर  प्राकृतिक  अलंकरण दोनों अंकित है।  दिवार -स्तम्भ जोड़ कड़ी  या खम्भे पर  बेल  बूटे दृष्टिगोचर होते हैं। इस तिबारी स्तम्भ -दीवार जोड़ खम्भे पर पशु -पक्षी या मानवीय अलंकरण बिलकुल नहीं है।
    सौड़ गांव के इस तिबारी में भी निम्न तकनीक प्रयोग हुयी हैं
उभरी या उभारी गयी नक्कासी (Relief Carving Technique )
अधः काट नक्कासी तकनीक (Under Cutting Carving   Technique )
तेज धार /छेनी से कटाई तकनीक /खड्डा करती विधि  (Incised Carving Technique )
मूर्ति सदृष्य सदृश्य /मूर्तिवत नक्कासी ( Sculpturesque Carving   Technique)
वेधित करती नक्कासी तकनीक  (Pierced Carving  Technique)   
इसके अतिरक्त -
 दरवाजों पर छीलने वाली तकनीक (Chips Carving )
  बण्वा  सिंह नेगी की  तिबारी के चारों  मुख्य  स्तम्भ ज्यामितीय कला, अलंकरण कला दृष्टि व  नाप दृष्टि से एक जैसे ही है.  प्रत्येक तिबारी  स्तम्भ कुम्भाकार आधार पर पत्थर के छज्जे पर टिका है।  कुम्भकार आधार  वास्तव में अधोगामी पदम् पुष्प दल कृति है।  अधोगामी पदम् पुष्प दल  के आधार पर उपधानी /गोलगुटका नुमा व गड्ढा से नीचे आते है व इसी उपधानी से ऊर्घ्वाकार पदम् पुष्प दल शुरू होते हैं व कुछ ऊपर  खिल जाते हैं।  जब खिलता कलम समाप्त होने होता है वहां से खम्भा  /शाफ़्ट पर ज्यामितीय अलंकरण है।  गड्ढे वाली  रेखा व उभरी खड़े रेखाएं। 
 स्तम्भ /column से जब मेहराब  शरू होने वाली होती है तो उससे पहले उपधानी से नीचे अधोगामी कमल पुष्प दल उभर कर आते है और कमल पुष्प जड़ से उपधानी के ऊपर की ओर प्रकृति जन्य अंकन ( पत्ती  जैसे फर्न की पत्ती  हो ) उभर कर आते है। यहीं से मेहराब का अर्ध मंडल (arch ) शुरू होता है जो ऊपर दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर मेहराब बनता है।  मेहराब के दोनों मंडलों में किनारे पर शुभ प्रतीक चंद्राकार पुष्प दल हैं व पुष्प के मध्य में गणेश  चिन्ह (अर्ध अंडाकार ) स्थापित है। जहां पर दोनों स्तम्भ के अर्ध मंडल मिलते हैं वहां एक शुभ संकेत प्रतीक है।   
मेहराब की पत्ती पर बेल बूटों का अंकन   बड़ा आनंद दायी है। 
  तिबारी स्तम्भ में जहां से मेहराब के अर्ध मंडल शुरू होते हैं वहीँ से स्तम्भ पर ऊपर छत की और एक बड़ी प्लेट (थांत ) शुरू होता है जो मेहराब के शीर्ष /सर से मिलता है।  इस थांत के ऊपर मोर नुमा चिड़िया का गला व चोंच उभर कर आते हैं  (अभिवार या bracket ) ये मोर भी नयनाभिराम छवि देते हैं और कुल चार मयूर पक्षी उभारे गए हैं। 
  अब तो तिबारी के मेहराब के ऊपर मेहराब शीर्ष  की लकड़ी समाप्ति पर ही है किन्यु  जिन्होंने देखा है वे बताते हैं छत के नीचे प्लेट्स /पट्टियों पर हाथी भी अंकित थे।  मेहराब शीर्ष से ऊपर  की पट्टियों में बेल बूटे अंकित हैन व छत की पट्टी से शंकुनुमा आकृतियां लटकी हैं। 
  सौड़ ढांगू के बण्वा  सिंह नेगी की  तिबारी   तिबारी कला का एक उम्दा उदाहरण है जिसमे सभी प्रकार की कलाएं - प्राकृतिक , ज्यामितीय , प्रतीकत्मक , व मानवीय (Figurative ornamentation ) अलंकरण हुआ है। व भारत में उपलब्ध सभी उत्कीर्ण अंकन  तकनीक का प्रत्योग हुआ है (
  बण्वा  सिंह नेगी की  तिबारी  में गढ़वाल ,की अन्य तिबारी   जैसे साम्यता  ही नहीं अपितु गुजरात के   कई काष्ठ  तिबारियों  से भी मेल खाती  है गुजरात में तिबारी अधिकतर तल मंजिल पर थीं बाद में ब्रिटिश काल में काष्ठ स्तम्भ व लकड़ी ब्रैकेट /अभिवार पत्थर के बनने लगे ( देखें ----जय ठक्कर  , 2004 , नक्श , स्कूल ऑफ इंटीरियर डिजायन , पृष्ठ 6 , 7 , 11 व इंट्रोडक्शन अध्याय, व वी   . ऐस  . परमार , 2001 द वुड कार्विंग ऑफ़ गुजरात ,  सूचना विभाग प्रकाशन , पृष्ठ प्रवेश अध्याय व प्लेट अध्यन  )
  बण्वा  सिंह नेगी की  तिबारी के निर्माण समय व तिबारी कलाकारों के बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। 
   कभी यह तिबारी भी शेर सिंह नेगी की तिबारी जैसे ही शान शौकत वाली तिबारी थी किन्तु अब संरक्षण की प्रतीक्षा में है।  राज्य सरकार को क्षेत्र के कॉलेज छात्रों की सहायता से क्षेत्र में तिबारियों का सर्वेक्षण करवाना चाहिए व तिबारियों के स्थान पर तिबारी मालिकों को वैकल्पिक जगह देकर तिबारी तोड़न बंद करवाना चाहिए व तिबारियों का संरक्षण रोमा शहर मुताबिक करना चाहिए । 
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सूचना व फोटो आभार - आलम सिंह नेगी,  कीर्ति  सिंह नेगी , व दीनू  नेगी  (सौड़ )
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House Wood Carving Art of, Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Malla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Bichhala Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Talla Dhangu, Himalaya; House Wood Carving Art of  Dhangu, Garhwal, Himalaya; ढांगू गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला Glossary Tibari a House  wood Art of Himalaya ;  Tibari a House  wood Carving Art of Garhwal

 

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