Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1121815 times)

Bhishma Kukreti

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फतेहपुर गढ़वाल में बारजा  /बालकनी में काष्ठ कला , अलंकरण

शीला पट्टी , गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला - 6
House Wood carving art of Shila Patti Garhwal (Kotdwra Tahseel) -6
  Traditional House wood Carving Art of West Kotdwra and Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  56
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   56 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 फतेहपुर वास्तव में ब्रिटिश काल में  लैंसडाउन सेना विभाग बन जाने से से दुगड्डा ब्लॉक का मुख्य  भाग ही नहीं बना बल्कि  गढ़वाल के लिए भी महत्वपूर्ण गांव बना  । एक महत्वपूर्ण स्थल बना जहां सेना के घुड़शाल थे    फतेहपुर दुगड्डा ब्लॉक याने कोटद्वार तहसील का  समृद्ध गाँव है।  फतेहपुर (दुगड्डा ब्लॉक ) से एक चित्तार्शक फोटो Exotic Uttarakhand  group से मिली जिसे फोटोग्राफर प्रशांत पंसेरी ने पोस्ट की।  मैंने जब पंसेरी से  भवन मालिक के बारे में सम्पर्क किया  तो उनका कोरा कोरा  जबाब था 'पता नहीं ' पर फतेहपुर की बात उन्होंने स्वीकार  की भवन फतेहपुर दुगड्डा में ही है।  ऐसे मकान फतेहपुर , ऐता  अदि  होना कोई आश्चर्य नहीं ।   इस अनाम मालिक के  भवन व आम ग्रामीण गढ़वाल के भवन में अंतर् साफ़ झलकता है कि  भवन की खिड़किया ऊंची व चौड़ी हैं जब कि पहाड़ी गढ़वाल में गाँव भवन में खड़किया बिरली ही होती थी।  जड्डू /शीत   के कारण खिड़की का रिवाज था ही नहीं यदि था भी तो बहुत छोटी खिड़कियां निकाली जाती थी और वास्तव में खड़कियों का रिवाज न था जो कि सुकई गाँव (बंगार  स्यूं , पौड़ी गढ़वाल ) में ब्रिटिश काल से पहले के भवन से भी साबित हो जाता है। 
 फतेहपुर वास्तव में भाभर के निकट का गाँव है तो हवादार सर्दी उस तरह की नहीं पड़ती जैसे कि पहाड़ी गढ़वाल में।  दूसरा भवन में तल मंजिल व खिड़की व पहली मंजिल पर बड़ी खिड़की  व बारजा  देखकर साफ़ अनुमान लगता है कि मकान व काष्ठ कला पर बिजनौर का साफ़ प्रभाव है।   पहली मंजिल पर बारजा  /बालकोनियां  या खड़की में छजजा बिजनौर से ही प्रभावित हुयी होंगी। 
तलमंजील की खिड़की आम बड़ी खिड़की है और कोई छज्जा बालकोनी नहीं है।  पहली मंजिल पर खिड़की पर छज्जा है मकान की दायी ओर।   यह भी पहाड़ी मकानों से कुछ अलग ही है कि इस ओर  दो खिड़की है।
 खिड़की में काष्ठ   छज्जा आगे की और है  व लकड़ी के ही काष्ठ दासों पर टिका  है। खड़की छज्जे काष्ठ पट्टिकाओं , व दासों में कोई कला /अलंकरण उत्कीर्ण नहीं हुआ है  व ज्योमितीय  कटान है।
  फतेहपुर के इस भवन की खिड़की के काष्ठ छज्जे के चारों तरफ   अभी चार स्तम्भ हैं  किन्तु अवश्य ही पांच काष्ठ  स्तम्भ /columns रहे होंगे दो दीवार के लगते व तीन आगे सामने जैसे अभी भी सामने के स्तम्भ विद्यमान हैं।
  प्रत्येक स्तम्भ  में कटाई व उत्कीर्ण एक जैसे ही हुआ है।   प्रत्येक स्तम्भ आधार जो काष्ठ छज्जे पर टिका है थांत कार्य पट्टिका नुमा या जैसे क्रिकेट बैट ब्लेड जैसा है व इस थांत कार्य पट्टिका नुमा आकृति पर ज्यामितीय  अलङ्करण  उत्कीर्ण  हुआ है।  ऊपर की ओर जब थांत कार्य पट्टिका आकर समाप्त होता है तो गोल - डीले /धगुले आकृति उत्कीर्ण है जो शोभा देते हैं।  धगुले या डीले से स्तम्भ कुम्भी आकार लेता है व फिर गोलाई लिए  मोटाई धीरे धीरे कम होती जाती है फिर जहां  गोलाई लिए  मोटाई कमतम है  वहां डीला या ढगला है फिर कोई फूल दल नुमा आकृति उभर कर आती है व यहीं सर फिर स्तम्भ थांत कार्य पट्टिका का (क्रिकेट बैट  ब्लेड ) अकार ग्रहण कर लेता है व बाद में छज्जे के छत से मिल कर  शीर्ष बनता है। 
स्तम्भ शीर्ष के ऊपर  बरखा /घाम रोकु काष्ठ पट्टिका  है जिस पर नीचे की ओर त्रिभुजाकार कटाई है जो ज्यामितीय अलकंरण है व भवन की शोभा बढ़ाती है।  काष्ठ छज्जे की ऊपरी छत पर पहाड़ी स्लेटी पटाळ  हैं। 
   खिड़की व काष्ठ  छजजा व अलंकरण उमदा  ही नहीं अपितु भवन  की शोभा बृद्धिकारक हैं।   
  मकान तो परम्परगत पहाड़ी शैली का है किंतु बड़ी खिड़की व उस पर काष्ठ कलाकारी पर अवश्य ही बिजनौर का प्रभाव है और हो सकता है बढ़ई बिजनौर से ही बुलाये गए हों।
एक पाठक ने सूचना दी कि यह तिबारी  फतेहपुर में नत्थी सिंह  की है
  सूचना व फोटो आभार : प्रशांत पंसारी (फोटोग्राफर ) (एक्जोटिक उत्तराखंड ) 
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

Bhishma Kukreti

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Bhavni Singh Corresponding to British officials

History of King Bhavani Shah of Tehri Riyasat – 2
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 148 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1386       
  By:  Bhishma Kukreti (History Student)
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  Queen Khaneti ji groups was  bent  for not only coronation Sher Singh as King but the group wanted Bhavani Singh to withdraw his right.  As per Dabral, Bhavani Singh was a simple and religious man .Bhavani Singh was not crook and was not highly educated one . Sudarshan Shah declared Bhavani Shah as future Tehri King (Crowned Prince) in his life time.
 Bhavani Singh wrote letter on 7th June 1859 (Sudarshan Shah death day) to Backet arguing that sa couple of groups want Sher Sngh as King but infact He was eldest sons among sons by Sudarshan Shah .Same way, Bhavani Shah wrote letter to hunter Wilson for getting support (2)
References –
1-Dabral S.P, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition) , Veer Gatha Press, Dogadda  , (1999  )page  162 
2- Tehri Rajy Abhilekhagar or Court Archives , register no 2, notes 11/3
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Bhishma Kukreti

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गटकोट में रैजा सिंह की डंड्याळी में काष्ठ उत्कीर्ण कला व अलंकरण

गटकोट (ढांगू ) गांव की लोक  कलाएं  काष्ठ उत्कीर्र्ण कलाएं - 5
 Folk and House Wood   Carving Art of Gatkot (Dhangu) Garhwal - 5
ढांगू संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला -31
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   31
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   31
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  57
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    57
(लेख में जी श्री नहीं प्रयोग जिए गए  हैं )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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   गटकोट  (गढ़ कोट या गढ़ी में किला ) खस समय अथवा गढ़ी शब्द प्रचलन काल का एक प्राचीन स्थल है व गोरखा काल में निकटवर्ती गाँव घनशा ली में गोरखा छवनी होने से भी प्रसिद्ध रहा है।  यहां के गोर्ला रावत डबराल स्यूं व ढांगू के कमीण /सयाणा /थोकदार भी थे।
  आज का विवेचना विषय है गटकोट में रैजा सिंह की डंड्यळी  में काष्ठ उत्कीर्ण अलंकरण या कला दर्शन।  गटकोट के विवेका नंद जखमोला ने सूचना भेजते समय इस मकान भाग को डड्यळी  नाम दिया जबकि जसपुर -ग्वील - सौड़ (गटकोट से तीन मील दूर ) डंड्यळी  लघु आकार की पहली मंजिल की बैठक (कम  आयात  /लघु आकार में स्त्रीलिंग होना )  को डंड्यळी कहते हैं   व दो कमरों  से बने बरामदे (ढके या अनढके ) को डंड्यळ  कहते हैं।  मैं विचारक अध्यापक विवेका नंद जखमोला का सम्मान करते हुए इस मकान भाग को डंड्यळी ही लिख रहा हूँ।
  डंड्यळ  व तिबारी     में मानकीकृत शब्दावली में भी मतभेद है।  साइकलवाड़ी -किमसार के दिनेश कंडवाल ने इसी तरह के अपने भवन भाग को तिबारी नाम दिया और पहाड़ी भवन काष्ठ कला विशेषज्ञ मनोज इष्टवाल ने कोई विरोध नहीं जताया जबकि अन्य  मकान भागों में वे विरोध जताते दीखते भी हैं (तिबारी , निमदारी , डंड्यळ भेद )  कला विवेचक महेशा नंद ने भी कई बार इस विषय पर मुझे आगाह किया भी किन्तु फिर उन्होंने भी पूरा खुलासा नहीं किया कि वास्तव में   मानकीकृत परिभाषा  क्या हो (शायद उनके आने वाले शब्दभंडार शब्द कोष में खुलासा अवश्य होगा किन्तु तब तक मुंगरी पाकली पाकली पर तब तक म्यार संधि भूख चल जालो वाली  स्थिति भी रहेगी ) मेरी महेशा नंद , मनोज  इष्टवाल , डा डी  आर पुरोहित , रमाकांत बेंजवाल आदि भाषा विद विशेषज्ञों से अनुरोध है कि यदि हो सके तो शीघ्र ही इन शब्दों की परिभाषाएं निश्चित कर दें।  जिस तरह से मुझे गंगासलाण  (सामन्य नाम ढांगू उदयपुर  पर असलियत में लंगूर , ढांगू ,श्लीला , डबरालःस्यूं  , अजमेर व उदयपुर पट्टियां ) व अन्य क्षेत्रों से सूचनाएं व फोटो मिल रहे हैं 100 से अधिक तिबारियों व  उत्तराखंड से कम से कम 500 तिबारियों के फोटो आदि आने की पूरी आशा है।  पाठकों व मेरे लिए भी सही है कि सुनिश्चित परभाषिक शब्दों का प्रयोग हो। 
     आज गटकोट के जिस डंड्यळ  का जिक्र हो रहा है वः एक समय के धनी रैजा सिंह परिवार की है।  आज भवन ध्वस्त  होने के कगार पर है किन्तु कभी इस भवन से गटकोट व रैजा सिंह परिवार को इलाके में पहचान मिलती थी व अन्य लोग ऐसी तिबारी   निर्माण के सपने भी देखते थे।  मकान तिभित्या याने तीन भीत (एक कमरा आगे व एक कमरा पीछे ) का है व पहली मंजिल पर आगे के दो कमरों के मध्य दीवाल न रख तिबारी या डड्यळ या बरामदा या बैठक या सभागृह (?) में बदल दिया गया है। 
 डंड्यळ में चार स्तम्भ /सिंगाड़ हैं व चौखट रूप में हैं याने कोई मेहराब , तोरण /चाप /मंडल /arch न होने से स्तम्भ शीर्ष /मुण्डीर /मुरिन्ड भू समांतर ही में हैं व मुरिन्ड छत आधार से पट्टिका  के बल पर से मिलता है। 
    स्तम्भ /सिंगाड़ चौकोर हैं , पाषाण देहरी /देळी पर ठीके हैं।  प्रत्येक सिंगाड़ /स्तम्भ में वानस्पतिक व ज्यामितीय अलंकरण हुआ है जो नयनाभिरामी था।  शीर्ष /मुरिन्ड /मुण्डीर में कोई कला अलंकरण दृष्टिगोचर हो हो रहा है।
 भले ही आज व तब भी कला व अलंकरण दृष्टि से डंड्यळ  वह अलंकरण न रहा हो जितनी आकांशा होती है किन्तु जब संसाधन अलप से अल्पमत हों तो इस तरह की डड्यळ /डड्यळयूं  का निर्माण करवाना भी जिगर का काम था।
प्रश्न तो सदाबहार /यक्ष प्रश्न  ही है कि   किन्ही भौगोलोइक , राजनातिक कारणों से पहाड़ों का इतिहास गर्त हुआ किन्तु अब  जब इस तरह के डंड्यळ /तिबारियों , निमदारियों का संरक्षण न होगा (ध्यान योग्य बात है कि मकान स्थल की भयंकर समस्या पहाड़ों में होती है ) व इस तरह की कलाओं का डौक्युमेंटेसन  /प्रलेखन भी नहीं हो रहा है।  आज कुछ नहीं तो एक जगह प्रलेखित साहित्य तो रखा जाय। 
सूचना व फोटो आभार :  विवेका नंद  जखमोला , गटकोट
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti

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Khaneti ji Gang Looting Tehri Kingdom Treasury and Games by Sher Singh

History of King Bhavani Shah of Tehri Riyasat – 3
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 149 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1387       
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)
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  Sher Singh promised to Khaneti ji that she would take treasury after death of King. As soon as King Sudarshan Singh expired , in night only,  Khaneti ji gang looted treasury including jewelleries etc. The cashiers participated in looting with queen’s gang. (1).
Minya Prem Singh writes in Guldast Tavarikh (page 276) that when looters emptied the whole treasury then the looters informed other people. In morning, people, neighbours and subjects cremated the deceased (King).
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    Conspiracies and   Games by Sher Singh 
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   Sher Singh won over the confidence of his step brothers and five brothers took his side. However, his one step brother Uttam Singh did not support him.  Uttam Singh had sympathy with Bhavani Singh and not with Sher Singh. Uttam Singh sent a letter Political agent henry Ramsay on 11june 1859 through his representative. Uttam Singh informed to Hennery that Bhavani Singh took me, Sher Singh, Ganga Singh and Badri singh before queen Khaneti ji and requested her to decide for offering crown. Before, Kaneti ji would take any decision, Shiva Nand Khanduri    coroneted Sher singh as Tehri King.  (1)

References –
1-Dabral S.P, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition) , Veer Gatha Press, Dogadda  , (1999  )page  162 
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Bhishma Kukreti

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डाबर  में रघुनाथ डबराल की तिबारी . खोळी में भवन काष्ठ  कला (अलंकरण )
डबराल स्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला -3
House Wood Carving  Art (ornamentation ) in Dabralsyun  Garhwal , Uttarakhand  -3 
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   -32
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   32
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  58
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   58
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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   डाबर शब्द तो खस शब्द है किन्तु डाबर गाँव डबरालों  से जुड़ा है।  कहते हैं चौदहवीं सदी में यहां एक ब्राह्मण परिवार बसा था तो वह परिवार डबराल कहलाया गया।  डबराल मुख्यतया डबराल स्यूं पट्टी में बसे हैं (डबराल स्यूं पहले करुड़  पट्टी थी और उससे पहले ढांगू , इसीलिए डबरालस्यूं हेतु भी ढांगू उदयपुर  आज भी पुकारा जाता है ) . किन्तु कुछ डबराल फलदा कल्जीखाल ब्लॉक , देवरयाग , व टिहरी गढ़वाल में भी बसे हैं।  सभी डबराल डाबर से ही पलायन किये ।
   आज इस श्रृंखला में डबराल स्यूं की दूसरी तिबारी की काष्ठ कला /अलंकरण पर चर्चा होगी।  पंडित रघुनाथ डबराल की तिबारी अपने समय में डाबर व रघुनाथ डबराल परिवार हेतु विशेष पहचान थी व एक लैंडमार्क भी थे।  एक आकलन अनुसार तिबारी 1925 के बाद या लगभग आस पास ही निर्मित हुयी होगी
   तिबारी अपने समय की शानदार तिबारियों में गिनी जाती थी और ढांगू क्षेत्र में भी रघुनाथ डबराल की चर्चा होती थी। 
चार स्तम्भों की तिबारी भी दुखंड मकान की पहली मंजिल पर स्थापित की गयी है।   मकान के छज्जे पाषाण के हैं व दास या टोड़ी  भी पत्थर के हैं।  छज्जे के ऊपर पाषाण देहरी / देळी है जिसपर पत्थर के चौकोर डॉळ के ऊपर प्रत्येक स्तम्भ आधारित है।  किनारे के स्तम्भ डीआर से काष्ठ कड़ी से जुड़े हैं , कड़ी पर वानस्पतिक अलंकरण हुआ है।
चारों स्तम्भ के शीर्ष /मुरिन्ड /मुण्डीर  में कोई तोरण /मेहराब // arch नहीं है अपितु आयताकार पत्तियां शीर्ष बनाती है और ये पत्तियां छत के आधार पट्टिका से मिलते हैं , जैसा कि उस समय रिवाज था मुरिन्ड पट्टिका पर प्राकृतिक कला अलंकृत होती थी तो इस तिबारी के शीर्ष पट्टिका में भी अवश्य वानस्पतिक ालकरण हुआ होगा आज फोटो में धूमिल है। चारों स्तम्भ तीन मोरी/खोळी / द्वार बनाते हैं
 प्रत्येक काष्ठ स्तम्भ का आधार कुम्भीनुमा या पथ्वड़ नुमा है व यह अकार अधोगामी पदम् पुष्प दल (Descending  Lotus Petals ) आकार कलाकृति उत्कीरणन  के कारण है।  कमल दल के बाद काष्ठ डीला है फिर उर्घ्वगामी कमल दल की आकृति निर्मित हुयी है जहां से स्तम्भ की मोटाई गोलाई में कम होती जाती है व इस शाफ़्ट में बारीक ज्यामितीय कला दृष्टिगोचरहोती है।  जहां पर स्तम्भ की गोलाई सबसे कम है वहां पर डीला /धगुल  है व वहीं से    उर्घ्वगामी पद्म दल शुरू होता है जो ऊपर शीर्ष /मुण्डीर  . मुरिन्ड  में मिल जाता है। 
 तिबारी में मानवीय या पशु आकृति या नजर उतरने वाला कोई प्रतीक दृष्टि में नहीं आया। 
तल मंजिल से ऊपर मंजिल आने हेतु आंतरिक पथ ही जो मोरी /खोळी  /प्रवेश द्वार से खुलता है किन्तु प्रवेश द्वार या खोळी /मोरी पर   काष्ठ कला अलंकरण दृष्टिगोचर नहीं होते हैं।  किन्तु खोळी  पर ornamentation    अलंकरण विशेषकर आध्यात्मिक प्रतीक उत्कीरण हुआ ही होगा।
 इतना निश्चित है कि जब संसधन मुश्किल से  जुटते थे, तकनीक व तकनीशियन दुर्लभ थे  तब इस तिबारी का निर्माण परिवार हेतु ऐतिहासिक  निर्णय ही रहा होगा

सूचना व फोटो आभार : नरेश उनियाल , जल्ठ
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Bhishma Kukreti

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Botanical Knowledge in Smriti & Purana: An Introduction

Botany History in Smriti, Purana etc. -1
BOTANY History of Indian Subcontinent –69
By: Bhishma Kukreti M.Sc. {(Botany), B.Sc. (Honours in Botany), Medical Tourism Historian)
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Smriti – The literal meaning of Smriti is the Hindu text that is remembered. Smritis are next step of Shruti (Vadanga). Smriti is derivative is secondary works. The base of Smriti is Shruti (oral)
Smriti is corpus of diverse varied text.
Srmriti are not Vedanta. Bu Root of Smritis are Vedas. Though John Mitchiner mentions that the creation period of Smritis is 600 – 200 .However, the editing works was finished in Gupta period only (Dr Dabral  in Uttarakhand ka Itihas Bhag 2 )   and Ayurveda ka Vrihat Itihas writer Vidyalankar Atrideva (1960, Hindi Samiti Banaras) too states that the creation period of Smritis is after 1st Century AD (page 121)
 There are following main Smritis or Dharma Smriti rules –
Manusmriti (famous in North India )
Yagvalkya Smriti   became popular in South and West India )
Narada Smriti  (definitely very late than Gupta period)
Vishnu Smriti (mostly Gupta period )
Barring Vishnu Smriti, all other Smritis are in Shlokas
References-
1-John E Mitchiner (2000), Tradition of seven Risis, Motilal Banarasidas , Delhi page   XVIII
Copyright@ Bhishma Kukreti, bckukreti@gmail.com , Mumbai India, 2020 

Bhishma Kukreti

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अमाल्डू  (डबरालस्यूं ) के ललिता प्रसाद उनियाल ' ललाम जी '  के भव्य  तिपुर भवन  में काष्ठ कला व अलंकरण
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अमाल्डू  (डबरालस्यूं  में भवन काष्ठ अलंकरण कला/अलंकरण  -1
डबरालस्यूं , गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला - 4
House Wood  Carving  ornamentation art    of  Dabralsyun  -4
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   33
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   33
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  59
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 59   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 ढांगू , उदयपुर , डबरालस्यूं , अजमेर में  डबराल स्यूं में  125 -150 साल पूर्व लगभ बसे  अमाल्डू   गाँव का सामजिक व सांस्कृतिक  महत्व है।   ये चारों पट्टियां सामन्य से अधिक ब्राह्मण बहुल पट्टियां हैं , डबरालस्यूं व मल्ला ढांगू में तो गंगाड़ी ब्राह्मणो की जनसंख्या अधिक ही है।  इन चार  पट्टियों  ब्रिटिश शासन के कुछ दशाब्दी उपरान्त सर्यूळ  ब्राह्मणों की आवश्यकता महसूस हुयी तो जसपुर ढांगू  में बहुगुणा , अमाल्डू  में उनियाल का डिबरण  उदयपुर  में  रतूड़ी, जल्तह में ममगाईं  सर्यूळ  ब्राह्मण बसाये गए।  इन्हे  इन पट्टियों  में बामण , पंडित नहीं 'गुरु ' शब्द से भट्याया  जाता था।  देखा जाय तो कुछ  समय पहले भी  इन जातियों को बामण , पंडित नाम से भट्याने का अर्थ है इनकी बेज्जती करना। 
 अमाल्डू  डबराल स्यूं में डवोली के दक्षिण सट कर , कूंतणी के पूर्व व कख्वळ - जल्ठ , दिख्यत  के पश्चिम में बसा है।  ऊणी   (उत्तर गढ़वाल , उनियालों  का मूलस्थान)  से उनियाल यहां अमाल्डू  में तिमली- डाबर - डवो ली के डबरालों ने बसाया।  अमाल्डू  से ही उनियाल 'कख्वळ , जल्ठ  बसे।  या हो सकता है प्राचीन समय में जल्ठ  भी डवोली  या अमाल्डू  का ही भाग रहा हो।  यह तो निश्चित है कि  अमाल्डू  पहले डवोली  का ही हिस्सा था।
    अमाल्डू  के उनियाल  शाक्त हैं और आज भी अपने समय आने पर राज राजेश्वरी मंदिर में पूजा( इनका पूजा विधान में हिस्सा बनता है ) करने जाते हैं व इनको दक्षिणा भाग मिलता है।  प्रवासी रतुड़ियों , बहुगुणाओं , मँगाईयों , या थपलियालों का अपने मूल गाँव से सम्पर्क लाइन सर्वथा टूट चुकी है  किन्तु ु अमाल्डू  के उनियालों  का राजराजेश्वरी दक्षिणा पर बराबर का हिस्सा होने से आज भी इनका सम्पर्क सूत्र ऊणी  से है ही। इस बराबर सम्पर्क के कारण राजराजेश्वरी वास्तु कला का प्रभाव अमाल्डू  की वास्तु कला पर पूरा है।  अमाल्डू  गाँव में तिपुर/ तिमंजिला मकान   सामन्य  अनुपात से अधिक हैं और उसका श्रेय राजराजेश्वरी वास्तु कला प्रभाव को ही जाता है। अमाल्डू  में  तिपुर  राजराजेश्वरी दरबार की बरबस नकल भी कहलायी जाती हैं। 
      आज का विवेचत तिपुर   है स्व ललिता प्रसाद उनियाल  याने 'ललाम जी ' की  भव्य तिबारी /तिपुर  का।  ललाम जी ' नाम से प्रसिद्ध ललिता प्रसाद उनियाल गढ़वाली के प्रसिद्ध कवि हुए हैं और अबोध बंधू बहुगुणा ने ; ललाम जी '  की  रचनाओं विनोद काव्य व सासु ब्वारी की भूरी भूरी भूरी प्रशंसा  की है। 
 'ललाम जी  के 'तिपुर  को कभी डबरालस्यूं  की शान कहा जाता था।   तिपुर देवलगढ़ की राजराजेश्वरी तर्ज पर ही निर्मित हुआ  है । तिपुर /तिबारी का निर्माण काल 1935 के लगभग का है तब  ' ललाम जी ' लाहौर थे।
   तिपुर मकान 24 कमरों वाला है याने दुखंड , तिभित्या।  हर मंजिल पर आठ कमरे।  अमाल्डू  हे के अशोक उनियाल प्रत्यक्षदर्शी ने  'ललिता प्रसाद उनियाल के तिपुर /तिबारी  का वर्णन इस प्रकार किया है -
  तिपुर  में तल मंजिल , पहला मंजिल व दूसरा मंजिल है।  बाहर चौक दांदण  है।  ऊपर जाने हेतु जो डिंड्याळी  या खोळी  में आती है।  पहली मंजिल व दूसरी मंजिल में  कुल 36 काष्ठ स्तम्भ है व साल तूण  से निर्मित स्तम्भों के मध्य दूरी ढाई फिट है।  दूसरी मंजिल के स्तम्भों पर अष्टदल पदम् पुष्प उत्कीर्णित हुआ है। 
प्रवेश द्वार याने तल मंजिल की खोली का काष्ठ सिंगाड़ /स्तम्भ  साल की लकड़ी के बने हैं व चौकोर पाषाण आधार पर टिके हैं।  पाषाण आधार के बाद सिंगाड़  का कुम्भी रूप वैसे ही है जैसा तिबारी स्तम्भों में होता है।  स्तम्भ के इस कुम्भी आकार के बाद डीला /धगुल  या  round  wood  plate  है फिर शफ्ट /कड़ी पर वानस्पतिक /प्राकृतिक अलंकरण हुआ है।  खोली के सिंगाड़  पर प्राकृतिक याने फूल , पत्तियों का अलंकरण हुआ है।  बाकी जगह ज्यामितीय कला के दर्शन होते हैं। मुरिन्ड /मुण्डीर / शीर्ष पट्टिका के मध्य अष्ट दल कमल अंकित है।
   ललिता प्रसाद उनियाल की इस तिबारी का निर्माण अमाल्डू  के ही मृदा -पाषाण व काष्ठ शिल्पी  भानाराम  आर्य ने व उनके शिष्यों ने किया था।  भानाराम आर्य का आज भी नाम बड़े आदर से लिया जाता है।
 ललिता प्रसाद उनियाल का तिपुर /तिबारी आज भी  भव्य स्थति में तो  कारण उनके पुत्र द्वारा समय समय पर मरोम्मत व देखरेख।
निष्कर्ष निकलता है कि  ललिता प्रसाद उनियाल का भव्य तिपुर देवलगढ़ में राजराजेश्वरी दरबार की तर्ज पर है व इस भवन में प्राकृतिक , ज्यामितीय कला, अलंकरण  हुआ है  . कंही भी मानवीय (मानव , पशु या चिड़िया ) नही हुआ है
  ललिता प्रसाद उनियाल के तिपुर भवन के दरवाजों व खड़कियों में काष्ठ कला ज्यामितीय शैली में ही उत्कीर्ण हुयी है।
 अपने समय में डबरालस्यूं के शान नाम से प्रसिद्ध यह तिपुर  आज भी डबराल स्यूं मी शान ही है।  ललिता प्रसाद उनियाल की नई पीढ़ी सदस्यों का धन्यवाद जिन्होंने  इस भव्य भवन का नष्ट होने से बचाये रखा।   
   
      
सूचना व फोटो आभार : अशोक उनियाल , अमाल्डू
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhavani Singh advising elites of Tehri Court

History of King Bhavani Shah of Tehri Riyasat – 4
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 150 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1388     
  By:  Bhishma Kukreti (History Student)
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  On 29th June 1859, Bhavani Singh again informed henry Ramsey that Sher Singh Gang offre3d him 2000 annual Jagir for withdrawing my rights of the Tehri Kingdom and he refused to withdraw claim (1).  . Further Bhavani Singh informed to Ramsey that he eldest son of late king and he was married to daughters of Royal families of Mandi and Hindor (HP). Bhavani Singh requested Hennery to  ask the truth from Jashodhar Dobhal, Shiva Nand and Rama Nand ( Dabral guested that they were in office of Kumaon commissioner ).       
            Guldast –E- Tavarikh (page 177) mentions that Bhavani Singh advises to the court officials as Rudradatta, Badridatt , Joshi etc that since he sent request to British offcilas and till the British officials send their judgement the Tehri court officials should not obey Sher Singh blindly.

References –
1-Dabral S.P, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition) , Veer Gatha Press, Dogadda  , (1999  )page  163 
2- Tehri Court Archive vol.2, Document no. /113
Copyright@ B.C.Kukreti, bckukreti@gmail.com

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Plant Classification  in Manusmriti/Manusmruti 

Botany History in Smriti, Purana etc. 2
BOTANY History of Indian Subcontinent –70

By: Bhishma Kukreti M.Sc. {(Botany), B.Sc. (Honours in Botany), Medical Tourism Historian)
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 Manusmriti or Manusmruti is a Dharmashastra (laws for code of Conducts) and was more famous in North India, East India and Far East India s Myanmar etc.   than south India. Yagvalkyamsriti was more famous in South and West India
   A Sanskrit Classic Manusmriti or Manusmriti states that without plants human life is impossible. There is mention of classification of Plants in Manusmriti or Manusmruti (MS1.46-49) –
Manusmriti classified plants as Aushadhi (herbs), Vanspati , Vriksha and Valli .
According to Manusmriti (1)–
Asuhadhi (medical plants) means the plants perish after ripening fruits and bear flowers and fruits abundantly (MS1.46)
Vanaspati don’t bear flowers but fruits (MS1.47)
Those bear flowers and fruits are called Vriksha (MS1.47)
Grass or tendrils are many and are called Valli (MS1/47)
Manusmriti states that the plants also bear bark and offer us many benefits to us (1.49)

References -
1-Goel, S.L., (2008) Environment health Education and Value , Deep and deep Pub New Delhi ( page 115
Copyright@ Bhishma Kukreti, bckukreti@gmail.com , Mumbai India, 2500 Shlokas (verses)   


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किमसार में राजेंद्र कंडवाल  के जंगलादार मकान में काष्ठ उत्कीर्णन  /अंकन कला व अलकरण

किमसार में   भवन काष्ठ कला अलंकरण भाग - 3
उदयपुर /यमकेश्वर ब्लॉक गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला -11
House wood Carving Art /ornamentation of Udayapur Patti , Garhwal -11
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   34
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण   34
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  60
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   60 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती 

जैसे कि  पहले ही लिखा गया बल किमसार  यमकेश्वर क्षेत्र का प्रसिद्ध गाँव है व प्राचीन गाँव भी माना जाता है।  यहां तिबारियां  व जंगल दार कूड़ मकान होना कोई आश्र्चय नहीं है।
  राजेंद्र कंडवाल का जंगलेदार कूड़ /मकान भी किमसार  को एक छवि वृद्धिकारक रहा है।  15 स्तम्भों /खम्भों /खामों वाले जंगल दार मकान तिभित्या /तीन दीवार याने दुखंड मकान है (एक कमरा बहार व एक अंदर ) किन्तु राजेंद्र कंडवाल के जंगलेदार मकान में तल मंजिल /ground flour  के आगे के कमरे खुले हैं और बरामदे में तब्दील किये गए हैं।  ऊपरी मंजिल में १२ वस तल मंजिल में ६ कमरे हैं। छजजा अमूनन लकड़ी  ही होगा
  जंगल के सम्भों  में स्तम्भ आधार पट्टिका , स्तम्भ मध्य पट्टिका व शीर्ष बनती पट्टिका (जो छत से जुडी है ) में कोई विशेष प्राकृतिक अथवा मानवीय अलंकरण (motifs ) नहीं दीखते है केवल ज्यामितीय अलंकरण से ही सजावट आयी है , दरवाजों व  भी कोई विशेष  अलंकरण दृष्टिगोचर नहीं होता है।  स्तम्भ शीर्ष में भी थांत पट्टिका आकर के हैं।  स्तम्भ आधार इलाका के अन्य जंगलों जैसे ही थांत पट्टिका  (bat blade ) जैसे हैं व  स्तम्भ थांत पर भी   ज्यामितीय कला छोड़ विशेष प्राकृतिक , मानवीय नहीं हुआ है।
 बड़ी खड़की होने  से  लगाना सरल है कि मकान 1960  के बाद ही निर्मित हुआ होगा और कलाकार स्थानीय ही रहे होंगे
  एक समय दक्षिण गढ़वाल में जंगलेदार कूड़ों /मकानों का बड़ा प्रचलन रहा है व इन कूड़ों में मालिकों की छवि  ही नहीं गाँव की छवि भी वृद्धि की है और राजेंद्र कंडवाल के जंगलदार मकान ने राजेंद्र कंडवाल व किमसार गाँव की छवि वृद्धि में योगदान दिया है।


सूचना व फोटो आभार :   दिनेश कंडवाल , साइकलवाड़ी
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