Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1121643 times)

Bhishma Kukreti

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 CEO must have knowledge of Management Principles

CEO should have knowledge of learning from past experiences of own and others
Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 36 
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukraneeti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers based on Shukraneeti)   

By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)
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 नयस्य विनयो मूलं विनय: शास्त्रनिश्चयात् I
 विनयस्येन्द्रिय जयस्तद्युक्त: शास्त्रमृछ्ति II (Shukra Niti 1.91)
 The King makes policy only by humility. The humility comes by knowledge of Shastra or books of knowledge. That is the reason the person that controls his senses can get Shastra Knowledge. (Shukra Niti 1.91)
   CEO must have ability for learning from experiences of others and his/her own experiences and from books and periodicals too .  The past knowledge comes by studying management books or periodicals and or by attending management schools or training conferences.  It is important the CEO has tacit knowledge and industry experiences or management experiences.

References-
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 28
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020 


Bhishma Kukreti

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  ढुंगा सकरा में बडोला बंधुओं की भव्यतम तिबारी में उत्कृष्टतम कला  अलंकरण दर्शन   

House wood Carving Art of Udaypur Patti (Yamkeshwar) -12
गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला -
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya 40 
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  40
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  66
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 66   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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अब तक समीक्षित  तिबारियों में ढुंगा  सकरा गांव में ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं  की तिबारी काष्ठ कला अलंकरण दृष्टि से सबसे उत्कृष्ट तिबारी है।  भव्य है बड़ी है और कई तरह की कलाएं /अलंकरण बडोला बंधुओं की तिबारी में हैं।  अब यह भव्य तिबारी हर्ष मोहन बडोला की तिबारी कहलायी जाती है।
    ढुंगा उदयपुर /यमकेश्वर क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण गाँव है जहां बडोला जाती का  संख्या अधिक है , ढुंगा  तीन हैं  अकरा , ढुंगा पल्ला सकरा ढुंगा , वल्ली सकरा ढुंगा।  ढांगू , डबराल स्यूं  लिए ढुंगा  का अर्थ  था रिस्तेदारी हो गयी तो उच्च गुणवत्ता के उड़द , काले सफेद लुब्या /किंडनी बीन्स की दाल बीज व ढुंगा गए तो दाल के संग कटोरी भर घी।  याने अन्य  क्षेत्रवासियों की दृष्टि में ढुंगा याने कृषि व  पशु पालन में समृद्ध गाँव। 
   कहा जाता है कि बड़ोली एकेश्वर से बडोला ढुंगा में बसे व यहाँ से उदयपुर के अन्य क्षेत्रों में ठांगर , पण चूर, जड़सारी  आदि ही नहीं बेस अपितु ढांगू  में ठंठोली में भी बेस।
   सम्प्रति   तिभित्या म, दुखंड मकान में छह कम तल मंजिल व  पहली मंजिल में है (याने  तीन बंद कमरे व बाहर  कमरों का मकान किन्तु तिबारी हेतु तीन कमरों को बरामदा में बदल दिया गया है।  आम  तिबारी चार स्तम्भों व तीन मोरियों की तिबारी देखि गयीं किन्तु  ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं  (वर्तमान हर्ष मोहन बडोला ) की तिबारी  में  छह स्तम्भ हैं व पांच द्वार /मोरियां /खोळियां हैं।  अब तक समीक्ष्य तिबारियों से विलक्षण तिबारी हुयी   ढुंगा  सकरा में ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं   की तिबारी।
   मकान पत्थर के छज्जों वाला है , दास भी पत्थर के ही हैं।  पत्थर की देळी /देहरी   ऊपर छह के छह स्तम्भ हैं , ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं  की तिबारी में स्तम्भ ालकरण भी क्षत्र की  तिबारियों से भिन्न है।  क्षेत्र की अन्य  स्तम्भ आधार कुम्भी अधोगामी पदम् दल  (descending lotus flower petals ) से अलंकृत होता है किन्तु   बडोला की तिबारी में स्तम्भ कुम्भी में भिन्न प्रकार का पत्ती अलंकरण  हुआ हो इस तिबारी को अन्य तिबारियों से  ही देता है। 
  स्तम्भ में दोनों डीले  (round wood plate ) भी अन्य तिबारियों जैसे ही हैं , आधार में कुम्भी के बाद डीला  व फिर उर्घ्वगामी पदम्  दल की शैली भी क्षेत्रीय शैली से मिलती जुलती है।   किन्तु स्तम्भ के ऊपरी  सिरे याने डीले के ऊपर कुम्भी/पथोड़ा आकृति  कमल दल से नहीं अपितु फूल व पत्ती मिश्रित चित्रकारी से अलंकृत है जो  ढुंगा  सकरा में ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं   की तिबारी को दक्षिण गढ़वाल की अभी तक विवेच्य  तिबारियों से अलग कर देने में सक्षम है। 
 ऊपर प्रत्येक स्तम्भ शीर्ष  में  थांत/ bat blade  नुमा काष्ठ आकृति  शुरू होती  है जो छत की आधार पट्टिकाओं के नीचे की पट्टिका से मिल जाता है. थांत पट्टिका से काष्ठ छिप्पटी /ब्रैकेट /bracket निकले हैं जिनमे उत्कृष्ट कला उत्कीर्ण हुयी है।   व यहीं से स्तम्भ से तोरण /मंडन अर्ध चाप /arch बनाने की पट्टिका भी शुरू होती है जो दुसरे स्तम्भ की पट्टिका से मिल सम्पूर्ण अर्ध चाप या तोरण बनाती है। 
 थांत पट्टिका से निकले छिप्पटी में पक्षी व पुष्प /पात /flowers leaves की प्राकृतिक कला अलंकरण हुआ है याने इस  छिपट्टी /ब्रैकेट /wood bracket में प्राकृतिक , ज्यामितीय व मानवीय या पशु पक्षी युक्त  कलाओं /अलंकरणों का सम्मिश्रण हुआ है जो कला दृष्टि से अभिनव माना जाता है।  पक्षी तोता या मोर की छवि प्रदान करता है व पंख में फूल पत्तियों का अलंकरण है। 
प्रत्येक ब्रैकेट /छिपट्टी ऊपर छत के आधार पट्टिका से मिलते हैं व छत की आधार काष्ठ पट्टिका से लटकते शंकु नुमा आकृतियां तिबारी को भव्य छवि perception प्रदान करने में सफल सिद्ध हुए हैं। तोरण शीर्ष व छत  आधार पट्टिकाके मध्य पट्टिका में भी प्राकृतिक ज्यामितीय अलंकरण हुआ है। ऐसे ही शंकु सौड़  ढांगू में शेर सिंह नेगी की तिबारी में भी मिले हैं। 
 कला विदों की स्पष्ट राय है कि  ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं , अजमेर , लंगूर व शिला पट्टियों  में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (पक्षी) का सम्मिश्रित अलंकरण  की दृष्टि से  ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं   की तिबारी भव्यतम व उत्कृष्टतम  तिबारियों में से एक है व यह तिबारी कई विशेषता लिए भी है जो क्षेत्र की अन्य तिबारियों में नहीं मिलते हैं ua utne haavi nhi hai ।
तिबारी का निर्माण सम्भवतया 1930 के लगभग  हुआ होगा व कलाकार तो आयतित ही रहे होंगे।  कहा जाता  है कि   कलाकार श्रीनगर या मथि गढ़वाल से ही आये थे।   

सूचना व फोटो आभार : शिव प्रसाद बडोला , ढुंगा , सकरा

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला
 


Bhishma Kukreti

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Lady Canning Visiting Mussoorie (Garhwal , Uttarakhand )

History of King Bhavani Shah of Tehri Riyasat – 11
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 159
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1396   
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)
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 In June 1860, Lady Canning the wife of Governor General Lord Canning visited Mussoorie via Tehri Garhwal territory. Lady canning entered Tehri Garhwal territory on 11 June 1860 Lady canning used to camp within short distances daily as she used to enjoy the natural beauty of Tehri Garhwal. On 14th June Lady canning reached to Ramsirayi. , On 17th June 1860  , she reached to Jaunpur, Garhwal . On  20 the June 1860 , Lady  Canning reached to Mussoorie . It was must that the Tehri government officials would have joined Lady Canning at the point of entery into Tehri Garhwal.
References –
1-Dabral S.P, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition) , Veer Gatha Press, Dogadda  , (1999  )page  168 
2- Tehri Court Archives vio.2, notes 11/92
Copyright@ B.C.Kukreti, bckukreti@gmail.com

Bhishma Kukreti

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   स्यूपुरी सतेरा  (नागपुर ) थोकदार  धन सिंह बर्तवाल  की  तिबारी व खोळी में काष्ठ /  अलंकरण


House wood Art (ornamentation ) of Tibari of Thakur Dhan Singh Bartwal of Syupuri, Satera  ( Nagpur region) 

  रुद्रप्रयाग  गढवाल , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )   -1
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Rudraprayag , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -1
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गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  67
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    67
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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उत्तराखंड में जहाँ जहां शीत  ऋतू प्रकोप व भ्यूंचळ /भूकंप प्रकोप रहा है वहां वहां काष्ठ भवन  निर्माण की प्रवृति /प्रचलन सदियों से रहा है।  उत्तरकाशी , चमोली व उत्तरी रुद्रप्रयाग , उत्तरी पिथौरागढ़ में काष्ठ  भवन निर्माण एक सामन्य घटना ही मानी जाएगी।  तिबारी कला कहाँ से पनपी व किस तरह एक क्षेत्र से दुसरे क्षेत्र  पर अभी भी कला विदों व कल्ला इतिहासकारों की एक राय न बन सकी है। 
    नागपुर पट्टी के स्यूपुरी  सतेरा  के थोकदार ठाकुर  धन सिंह बर्त्वाल की ख्याति   बड़ी थी ।   उनकी तिबारी की भव्यता  ही नहीं इतिहास  सेक्रेट  भी प्रसिद्ध है।   
थोकदार धन सिंह   बर्त्वाल की  वह तिबारी  में ही  बद्रीनाथ  स्तुतिनामा /प्रार्थना की पाण्डुलिप मिली थी। 
ठाकुर धन सिंह बर्त्वाल की तिबारी में ही उत्तराखंड की प्रथम  फिल्म जग्वाळ    का फिल्मांकन हुआ था।  इसके  अतिरिक्त घुघति घुरोण  लग गे मेरो मैत ,  व  मेरु  रंग    बाजू रंग रंगा रंग बिचारि   गीत  का फिल्मांकन भी इसी तिबारी  हुआ था।
  थोकदार /मालगुजार धन सिंह बर्त्वाल  तिबारी वास्तव में गढ़वाल की तिबारियों की प्रतिनिधि तिबारी है। 
 तिभित्या /दुखंड भवन के पहली मंजिल पर  बाहर  के दो  कमरों में परिवर्तन कर बरामदे बनाकर बरामदे को तिबारी से  अलंकृत किया।    तल मंजिल से पहली मंजिल  जाने के लिए तल मंजिल पर  नक्कासीदार खोळी भी है।
 थोकदार धन सिंह बर्त्वाल की तिबारी में चार काष्ठ स्तम्भ हैं जो तीन द्वार /मोरी /खोळी  बनाते हैं।   दिवार से काष्ठ कड़ी से जुड़े हैं व कड़ी में बेल बुते उत्कीर्ण हुए हैं।   पाषाण छज्जे  के ऊपर पत्थर की देहरी /देळी है जिस पर स्तम्भ  चौकोर पत्थर डौळ के ऊपर टिके  हैं।  स्तम्भ का आधार कुम्भी है जो छवि /धारणा perception  से अधोगामी कमल दल लगता है किन्तु कमल दल  में प्राकृतिक या पत्तियां  उत्कीर्ण   जो  कमल  शोभा वृद्धिकारक।  हैं
    स्तम्भ के कुम्भी नुमा अधोगामी कमल के ऊपर डीला /round wood  plate है  जहां से उर्घ्वगामी पदम् दल फूटते दीखते हैं व पत्येक कमल दल petal पर  पत्तियां उत्कीर्ण हुयी हैं। उर्घ्वगामी  कमल दल से स्तम्भ का शाफ़्ट की मोटाई कम होती जाती  से  यहीं से फिर  से अधोगामी   पत्तीदार नकासी युक्त कमल दल उत्कीर्ण है।  अधोगामी कमल दल के ऊपर डीला /धगुल  है जहां से उर्घ्वगामी  फूटता है व कमल  पत्तिया उत्कीर्ण हुयी हैं।
  इसी कमल दल से स्तम्भ का ऊपरी भाग  नक्कासी युक्त थांत पट्टिका शीर्ष /मुरिन्ड पट्टिका  से मिलती है व यहीं से  अर्ध चाप तोरण का एक भाग  है जो दूसरे  अर्ध चाप से मिल पूरा तोरण /आर्च , मेहराब बनता है।  तोरण  arch तिपत्ति  व मध्य का तोरण  arch  तीखा शार्प है।   तोरण  बाहर  पट्टिका जो स्तम्भ थांत पट्टिका के बगल में है में  प्राकृतिक याने बेल बूटों की नक्कासी लिए हुए है व तोरण के बाह्य पट्टिका के किनारे पर दो सोलह दलीय फूल हैं और इस तरह कुल 6 फूल हैं।  मुरिन्ड /शीर्ष पट्टिकाओं  (जो   छत के आधार पट्टिका से मिलते  हैं)हैं )   में भी बेल बूटे उत्कीर्णहुआ है।
 थोकदार धन सिंह की तिबारी शानदार है जानदार है व आज भी भव्य है।  तिबारी में वानस्पतिक (natural ) व ज्यामितीय  अलंकरण (ornamentation ) हुआ है व मानवीय या प्रतीकत्मक अलंकरण देखने  को नहीं मिला। 
ठाकुर धन सिंह के पड़  पोते महेंद्र सिंह  बर्तवाल  ने सूचना दी कि काष्ठ तिबारी निकट  के गाँव जवाड़  में निर्मित हुयी थी व वहीँ से लाकर  स्यूपुरी में  बिठाई गयी थी।  कलाकार जवाड़ के ही थे।  तिबारी का निर्माण काल 1910  के पश्चात ही होना चाहिए जब थोकदारी पूरी तरह से ब्रिटिश शाशन में सेटल हुयी व थोकदार समृद्ध होने लगे.
    थोकदार धन सिंह बर्तवाल  की खोली में काष्ठ कला उत्कीर्णन
  खोली के सिंगाड़ों    मुरिन्ड  पट्टिकाओं में वानस्पतिक कलंकरण हुआ है व मुरिन्ड /शीर्ष में गणेश मूर्ति बिठाई गयी  प्रतीकत्मक कला /अलंकरण खोळी  में मिलता है।  अर्थात खोळी  में ज्यामितीय , प्राकृतिक (बेल बूटे ) व प्रतीकात्मक   (गणेश जी )  अलंकरण हुआ है। 

सूचना व फोटो आभार : महेंद्र सिंह बर्त्वाल , सतेरा
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  House Wood carving Arts  (Tibari , Nimdari , Jangle railing) of Rudraprayag, Garhwal;  House Wood carving Arts  (Tibari , Nimdari , Jangle railing) of Jakholi , Rudraprayag, Garhwal;  House Wood carving Arts  (Tibari , Nimdari , Jangle railing) of Rudraprayag, Garhwal;  House Wood carving Arts  (Tibari , Nimdari , Jangle railing) of Ukhimath, Rudraprayag, Garhwal;  House Wood carving Arts  (Tibari , Nimdari , Jangle railing) of Agugastyamuni, Rudraprayag, Garhwal;   House Wood carving Arts  (Tibari , Nimdari , Jangle railing) of Nagpur, Rudraprayag , Garhwal


Bhishma Kukreti

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Plants/Trees Suitable for Forest mentioned in Shukra Niti
Or
Trees suitable for Forestation illustrated in Shukra Niti     
Plant Science (Botany) aspects in Shukra Niti -4
Applied Botany in Smriti, Niti Shastra, Dharma Shastra and Purana
Botany History in Smriti, Niti Shastra, Dharma Shastra, Purana etc. 9
BOTANY History of Indian Subcontinent –77

By: Bhishma Kukreti M.Sc. {(Botany), B.Sc. (Honours in Botany), Medical Tourism Historian)
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    Shukra Niti in Shlokas /stanzas from 57 to 62 of Lokdharma Nirpana Chapter describes the tress or plants suitable for forest or trees are suitable for forestation (1)  as follows –
  Khadir (Catechu)
Ashmantak (Bidi leaf tree)
Sagaun (Teak)
Sonapatha (Broken Bones Tree)
Babul (Gum Arabic tree)
Tamal ( Indian Bay  leaf Tree)
Kutj (Conessi Tree)
Arjuna Tree
Palash (* Teak)
Saptaparna (White Cheesewood)
Shami (Indian Mesquite)
Tung ( a Himalayan hill shrub )
Tuna
Devdaru( Cedar )
Vikakant Tree
Karaunda (Bengal Currant or Christ Thorn)
Ingudi ( Desert Date)
Bhoja Patra (Himalayan Birch)
Vishmushti (Strychnine trees ) 
Karir or Kair (Caparis decidua)
Shallakir ( Indian oil benum )
Kashmiri (Goomar Teak)
Padha (Butterfly tree or Mountain Ebony)
Tinduka (Gaub Tree)
Vijaysar (Indian Kino or Malabar Kino)
Hiritaki (Harad or Chebulic  myarobalan)
Bhallat (Marking nut tree)
Shampak (Drumstick?)
Pohakar (Blackboard Tree)
Durgandh Khair
Pitadru
Shalmali (red silk cotton tree or Semal)
Vibhitak (baheda , beleric )
Narbel
Maha Vriksha or banyan
Mahua etc. and long creeping plants, flower bunch plants, should be planted in forest or jungle
References –   
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books, Delhi, page 231
Copyright@ Bhishma Kukreti, bckukreti@gmail.com , Mumbai India,
History of Plant Science / Indian Botany in Smriti, Niti Shastra and Purana will be continued

Bhishma Kukreti

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CEO must practices humility what the CEO preaches

Benefits of  Humility in CEO for Improvement   
Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 38 
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukraneeti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers based on Shukraneeti) 
 
By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)
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आत्मानं प्रथमं राजा विनयेनोप पाद्येत्  I
तत: पुत्रांस्ततो अमात्यांस्ततो भृत्यांस्तत: प्रजा :  II (Shukra Niti 1.92)
 Translation-
  The King should practices humility first, Then he should see that his sons, ministers, servants and citizens practice humility. That means the King should not only preach but should practice first before preaching. (1)
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 Benefits of humility in CEO for improvement
  Amy et al concluded by their thoroughly researches that (2)
1-“A CEO’s humility narrates positively to their empowering leadership behaviours “
2-These empowering leadership conducts subsequently   relate positively the integration of top management
3-It is proved that the top management team integration recounts  positively to middle management’s perception for values of the  organization
4- The middle management‘s positive perception affect job performances, work engagements and commitment and affect positively same way to workers too
It is clear that the humility importance cited by Shukra Niti is relevant in today’s conditions too
References-
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 29
2-Amy, Y. et al, (2014) Humble Chief Executive Officer’s connexions to  the Top Management Team integration and Middle Managements’ Responses , Administrative Science Quarterly (8th January 2014)
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020 
CEO must practices Humility, CEO refreshing guidelines, CEO training humility; Strategies for Humility by CEO , Leader must have humility, Importance of humility of CEO  in improving empowerment in Organization  to be continued …

Bhishma Kukreti

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ठंठोली (ढांगू ) में चंद्रशेखर कंडवाल के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला  व  अलंकरण

House Wood Carving art in House of Chandrashekhar Kandwal of Thantholi
ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में लोक कला (तिबारी , निमदारी , जंगला ) कला -5 
House wood Carving Art in Thantholi - 5
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला -
    गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  68
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    68
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

  ठंठोली एक समृद्ध कृषि प्रधान गाँव होने के अतिरिक्त ढांगू -पश्चिम उदयपुर में कर्मकांड पंडिताई , आयुर्वेद चिकत्स्कों का गाँव हेतु भी प्रसिद्ध था  आयुर्वेद चिकत्सा के लिए ठंठोली अधिक प्रसिद्ध था।  ऐसे में ठंठोली में  नक्काशीयुक्त भवनों का पाया जाना कोई आश्चर्य नहीं।
   चंद्रशेखर कंडवाल का जंगलेदार मकान भी बयां करता है कि  ठंठोली कई दृष्टि से समृद्ध गाँव था व यहां  काष्ठ जंगलेदार  भवन निर्माण की एक परम्परा प्रचलित रही जो बीसवी सदी के अंतिम दशकों में भी बरकरार रही। 
 चंद्रशेखर कंडवाल के काष्ठ जंगलेदार भवन में पहली मंजिल पट लकड़ी का जंगला बंधा है जिसमे 18 स्तम्भ खड़े हैं जो लकड़ी के ही छज्जे पर टिके  हैं व सीधे ऊपर छत के आधार काष्ठ पट्टिका से मिल जाते हैं।  संभो के मध्य नीचे दो ढाई फिट ऊंची लौह जाली बिठई गयी है जो भव्यता प्रदान करने में सफल है। 
 स्तम्भ सीधे सपाट ज्यामिति शैली में निर्मित हैं व कहीं भी कोई प्रांकृतिक या मानवीय चित्र अंकन नहीं मिलता है। जंगले पर कोई इंच भर भी नक्कासी न होना द्योत्तक है कि जंगलेदार भवन 1980 के आस पास या तत्तपश्चात ही निर्मित हुआ होगा।  इसमें संशय न होगा कि  बढ़ई व ओड  ठंठोली या निकटवर्ती गाँव के ही रहे होंगे।
निष्कर्ष निकलता है कि  बीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में निर्मित चंद्रशेखर कंडवाल के जंगलेदार भवन  में केवल  ज्यामितीय कला  / अलकनकरण है. दस कमरों के भवन ने इस जंगल को  शानदार छवि दी है।

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सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती , कठूड़ 
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला
 


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ठंठोली (ढांगू ) में चंद्रशेखर कंडवाल के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला  व  अलंकरण

House Wood Carving art in House of Chandrashekhar Kandwal of Thantholi
ठंठोली (मल्ला ढांगू ) में लोक कला (तिबारी , निमदारी , जंगला ) कला -5 
House wood Carving Art in Thantholi - 5
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला -
    गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  68
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    68
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 संकलन - भीष्म कुकरेती

  ठंठोली एक समृद्ध कृषि प्रधान गाँव होने के अतिरिक्त ढांगू -पश्चिम उदयपुर में कर्मकांड पंडिताई , आयुर्वेद चिकत्स्कों का गाँव हेतु भी प्रसिद्ध था  आयुर्वेद चिकत्सा के लिए ठंठोली अधिक प्रसिद्ध था।  ऐसे में ठंठोली में  नक्काशीयुक्त भवनों का पाया जाना कोई आश्चर्य नहीं।
   चंद्रशेखर कंडवाल का जंगलेदार मकान भी बयां करता है कि  ठंठोली कई दृष्टि से समृद्ध गाँव था व यहां  काष्ठ जंगलेदार  भवन निर्माण की एक परम्परा प्रचलित रही जो बीसवी सदी के अंतिम दशकों में भी बरकरार रही। 
 चंद्रशेखर कंडवाल के काष्ठ जंगलेदार भवन में पहली मंजिल पट लकड़ी का जंगला बंधा है जिसमे 18 स्तम्भ खड़े हैं जो लकड़ी के ही छज्जे पर टिके  हैं व सीधे ऊपर छत के आधार काष्ठ पट्टिका से मिल जाते हैं।  संभो के मध्य नीचे दो ढाई फिट ऊंची लौह जाली बिठई गयी है जो भव्यता प्रदान करने में सफल है। 
 स्तम्भ सीधे सपाट ज्यामिति शैली में निर्मित हैं व कहीं भी कोई प्रांकृतिक या मानवीय चित्र अंकन नहीं मिलता है। जंगले पर कोई इंच भर भी नक्कासी न होना द्योत्तक है कि जंगलेदार भवन 1980 के आस पास या तत्तपश्चात ही निर्मित हुआ होगा।  इसमें संशय न होगा कि  बढ़ई व ओड  ठंठोली या निकटवर्ती गाँव के ही रहे होंगे।
निष्कर्ष निकलता है कि  बीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में निर्मित चंद्रशेखर कंडवाल के जंगलेदार भवन  में केवल  ज्यामितीय कला  / अलकनकरण है. दस कमरों के भवन ने इस जंगल को  शानदार छवि दी है।

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सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती , कठूड़ 
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  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला
 


Bhishma Kukreti

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सुकई  गाँव में म 1749 में निर्मित काष्ठ भवन की कला व अलंकरण
सुकई गाँव में  भवन काष्ठ कला , अलंकरण -1
बंगार स्यूं , गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला -1
   Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Bangarsyun , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -1
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  69
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   69 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 बंगारस्यूं   में सुकयि    गाँव अठारवीं सदी से ही सयाणो /कमीणो   यानी क्षेत्रीय या पट्टी के थोकदारों का गाँव रहा है।  यद्यपि तब ब्रिटिश काल से पहले गढ़वाल देस में आम परिवार झोपड़ी नुमा उबर में ही रहते थे व भारी कर बचाने हेतु पक्के मकान व नए मकान व  पहली मंजिल  वाले मकान निर्मित नहीं करते थे तो भी  1749  में निर्मित व अभी तक सुरक्षित सुकई के सयाणो  के काष्ठ भवन  साबित करता है कि सबल को नहीं नियम गुसाईं याने सयाणे  थोकदार या जमींदार )  तो कर भरने लायक थे किन्तु  प्रजा  इतनी समृद्ध न थी कि  मंज्यूळ  चढ़ा सके।  तब बंगारी सुकई  से ही सयाणा चारि निभाते थे।
बंगारी सयाणो  में गणेशु  बंगारी  का पुत्र सुरती बंगारी  प्रसिद्ध सयाणा  हुआ और बाचस्पति बहुखंडी अनुसार सुरती बंगारी अपनी बिलासता के कारण आज भी क्षेत्र में लोक कथाओं के जरिये याद किया जाता है।
    सुकई  (बंगार  स्यूं , पौड़ी गढ़वाल ) के अठारवीं सदी के सयाणो  के बंशज  संतन सिंह  रावत ने अपने पूर्वजों  द्वारा  निर्मित  काष्ठ    की सूचना व फोटो भेजी है और लिखा है कि भवन में 1749   उत्कीर्ण हुआ था जो अब मिट गया है।  संतन सिंह रावत ने सूचना नहीं दी कि सन  संवत में था या शक में उत्कीर्ण हुआ था।  सुकई आज भी  बंगारी सयाणो के गाँव नाम से प्रसिद्ध है व विवेचित काष्ठ  भवन  सुकई में  दीबा चौक में स्थित है। 
   बंगारी सयाणो  का  काष्ठ भवन  के पहली मंजिल पर काष्ठ संरचना  वास्तव में बीसवीं सदी के तिबारियों से बिलकुल अलग है।  सयाणो  के काष्ठ भवन के प्रथम मंजिल में पांच मोरी , खोली या द्वार हैं जो सात स्तम्भों से बने हैं।  स्तम्भ छज्जे की नक्काशीयुक्त काष्ठ  पट्टिका पर टिके हैं।
   प्रत्येक स्तम्भ पर कमल फूल नुमा आकृति उत्कीर्ण है।  स्तम्भ के शीर्ष से अर्ध तोरण /half arch निकलता है जो दुसरे स्तम्भ के अर्ध तोरण  से मिलकर पूरा तोरण /arch बनाता है।  तोरण /arch  तिपत्तिनुमा है।  मुरिन्ड के ऊपर शीर्ष पट्टिका है जिस पर नक्कासी हुयी है व इस शीर्ष पट्टिका की संरचना के ऊपर  लकड़ी का ढैपर है जो बाहर से बंद नहीं है और यह एक आश्चर्य भी है कि ढैपर क्यों खुला है व बंद क्यों नहीं है। ढैपर  में लकड़ी पर केवल ज्यामितीय कला दर्शनीय है। 
 स्तम्भ में कमल दल , डीले व बेल बूटों की नक्कासी उत्कीर्ण हुयी है।   स्तम्भों की खोली पर लकड़ी  (दरवाजे ) निर्माण समय  174 9  का ही है या अभी लगे हैं की सूचना मिलनी बाकी है।
सुकई के इस काष्ठ भवन से कई प्रश्न भी खड़े हुए हैं कि काष्ठ भवन कलाकार  कहाँ से लाये गए थे व स्तम्भ , तोरणों  पर कलाकारी की प्रेरणा कहाँ से मिली थी याने इस भवन कला पर किस क्षेत्र की संस्कृति का  प्रभाव  था ? यदि तकनीक व कलाकार तब उपलब्ध थे तो  बंगार स्यूं या निकट की पट्टियों में या अन्य गाँवों में इस तरह के भवन क्यों नहीं बने ? क्या अन्य क्षेत्रों की लोक कथाओं अनुसार सुकई  के सयाणो  के भवन के निर्माण कलाकारों की भी बलि चढ़ा दी गयी थी ?  क्या  संबत या शक 1749  में निर्मित इस भवन  का जीर्णोद्धार नहीं हुआ  ? के प्रश्न भी  अनुत्तरित हैं  और इन  प्रश्नों के उत्तर इतिहासकारों को खोजना आवश्यक है। 
'भवन में किस किस लकड़ी का प्रयोग हुआ 'की जानकारी भी इतिहासकारों को खोज करनी बाकि है।   

सूचना , फोटो : संतन सिंह रावत , सुकई
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पौड़ी , चमोली गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  ; Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Pauri , Chamoli Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ;  रुद्रप्रयाग , टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  ; Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Rudraprayag , Tehri  Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ;  उत्तरकाशी गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  ; Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Uttarkashi Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; ,देहरादून  हरिद्वार गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  ; Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Dehradun , Haridwar Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ;

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 King Bhavani Shah in Almora 

History of King Bhavani Shah of Tehri Riyasat – 12
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 160
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1397   
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)
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    The Lieutenant General of North West India Calvin held Darbar in Almora on 1st October 1860. Officials, elites were invited attending for Darbar. Bhavani Shah also attended the Darbar. Bhavani Shah was also invited for Darbar.  Bhavani Shah started his journey from Tehri in time with his officials and loaders. There were 400 loaders with the troop for taking gift items and necessary items for the journey. There were 150 officials elites with Bhavani Shah in the troop.  Troop reached Almora via Shrinagar and Kanyur region. (2)
   The troop reached Almora before one or two days of Darbar day. (1)
References –
1-Dabral S.P, Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition) , Veer Gatha Press, Dogadda  , (1999  )page  168 
2- Tehri Court Archives vio.2, notes 11/101
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