जल्ठ (डबराल स्यूं ) में सोहन लाल , जगदीश व अनसूया प्रसाद डबराल की खोळी में काष्ठ कला व अलंकरण
जल्ठ (डबरालस्यूं ) की लोक कलाएं -2
डबरालस्यूं गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अलंकरण , अंकन कला श्रृंखला -6
Traditional House wood Carving Art/ornamentation on Tibari, Nimdari, Kholi of Dabralsyun - 6
Traditional House wood Carving Art /ornamentation of West Lansdowne Tahsil (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya
दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण श्रृंखला
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गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 71
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 71
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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जल्ठ डबराल स्यूं ही नहीं अपितु ढांगू उदयपुर में एक प्रसिद्ध गांव है। पंडिताई में जल्ठ अगवाड़ी गाँव था और तभी कहावत या लोक गीत चलता था कि "जल्ठ कौंकी 'धोती बड़ी" .' बड़ी धोती' वास्तव में विद्वता हेतु उपमा दी गयी थी जल्ठ को। सिलोगी स्कूल स्थापना में स्व सदा नंद कुकरेती को जल्ठ के ही डबराल गुरु ने सहायता दी थी।
आज का विषय है जल्ठ में सोहन लाल , जगदीश व अनसूया प्रसाद डबराल डबराल बंधुओं की खोली में काष्ठ कला /अलंकरण ! खोळी का एक अर्थ होता है तल मंजिल से ऊपरी मंजिल जाने हेतु अंदरूनी मार्ग का प्रवेश द्वार। जब दुखंड मकान में तिबारी (बंद या खुला ) में जाने हेतु तल मंजिल में प्रवेश द्वारा बनाया जाता था तो उसमे अधिकतर आध्यात्मिक /प्रतीकात्मक , प्राकृतिक अलंकरण किया जाता था।
भोला दत्त -सोहन लाल डबराल की खोळी में तीन तह वाले स्तम्भ /सिंगाड़ है जो ऊपर शीसरह में जाकर तीन तह वाला तोरण /मेहराब /अर्ध गोलाकार मुरिन्ड बनाते हैं। स्तम्भ या सिंगाड़ पत्थर के चौकोर डौळ में खड़े हैं व स्तम्भ की हर तह में प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है। तोरण /मेहराब का भीतरी भाग में तिपत्ति आकर का अलंकरण है तो मध्य तह व बाह्य तह में प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्णित हुआ है। तोरण के बाह्य तह में पुष्प भी उत्कीर्णित हैं। बाह्य तह तो काष्ठ उत्कीर्ण कला व अलंकरण का उत्कृष्ट नमूना है। पुष्प नक्कासी कई छवि बनाते हैं जो एक नायब नक्कासी का सबूत है।
सिंगाड़ के तोरण ऊपर शीसरष में एक कलात्मक काष्ठ छत बिठाई गयी है। छत के ऊपरी भाग पर ब्रिटिश काल की टिन छत या खिड़कियों की छत पर कटान का सीधा प्रभाव दीखता है और यह वास्तु उस समय सिलोगी जैसे स्थलों में फारेस्ट गार्ड की चौकियों में साफ़ दीखता था या आम जनता हेतु देखने हेतु उपलब्ध था। मुरिन्ड के ऊपर पत्थर की छत न हो कर काष्ठ की छपरिका है। छपरिका व मुरिन्ड के मध्य दोनों ओर दो दो कलात्मक प्रतीकात्मक काष्ठ ब्रैकेट /दिवालगीर चिपके /फिट हैं। प्रत्येक दिवालगीर /ब्रैकेट में मोरनुमा पक्षी, बेल बूटे व एक प्रतीकात्मक आधात्मिक आकर उत्कीर्णित हुआ है। पक्षी के पंख ऐसे लगते हैं जैसे कमल पुष्प दल हों। खोळी /खोली में कला का अद्भुत नमूना का उदाहरण है जल्ठ में सोहन लाल , जगदीश व अनसूया प्रसाद डबराल की भवन खोली।
शीर्ष में छप्परिका में ज्यामितीय व प्राकृतिक दोनों अलंकरण हुआ है यद्यपि ज्यामितीय अलंकरण अधिक उभर कर आया है। छपरिका से शंकुनुमा आकृति नीचे लटकी हैं जो खोळी की सुंदरता वृद्धि करती हैं। खोली संभवतया 1930 के लगभग निर्मित हुयी होगी।
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि जल्ठ में सोहन लाल , जगदीश व अनसूया प्रसाद डबराल की खोली /खोळी में नक्कासी नक्श का उमदा नमूना मिलता है। जल्ठ की डबराल बंधुओं की इस खोली/खोळी में प्राकृतिक /वानस्पतिक , मानवीय (पक्षी व नजर उतरने का प्रतीक ) व ज्यामिति कलाओं /अलंकरणों का नयनाभिरामी प्रयोग हुआ है। खोली को आज की दृष्टि से नहीं अपितु उस समय की दृष्टि से देखें तो एक ही शब्द जुबान पर आएगा 'वाह ! वाह ! क्या कलात्मक खोली है !'
सूचना व फोटो आभार : नरेश उनियाल ,जल्ठ
सूचना व फोटो आभार : नरेश उनियाल ,जल्ठ
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