अमाल्डु में केदार दत्त -बलदेव प्रसाद उनियाल के चौपुर भवन में काष्ठ कला अलंकरण
Wood Carving Art in Three floored house of Kedar datt Uniyal ,Baldev Prsad Uniyal Amaldu
डबराल स्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला -8
House Wood Carving Art (ornamentation ) in Dabralsyun Garhwal , Uttarakhand - -8
Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya
दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण
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गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बखाई , खोली , मोरी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 85
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 85
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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जैसा कि पहले दो अध्यायों में सूचना दी जा चुकी है बल अनुपात के हिसाब से अमाल्डू में अन्य गाँवों की तुलना में अधिक तिपुर / तल मंजिल के ऊपर दो मंजिल वाले घर अधिक हैं। यहाँ दुहराना प्रासंगिक होगा कि अमाल्डु के उनियालों ने यह शैली अपने कुल देवी श्री क्षेत्र राजराजेश्वरी दरबार देवलगढ़ से लिया है और यह प्रचलन बहुत सालों से चलता रहा है। प्रस्तुत केदार दत्त -बलदेव प्रसाद उनियाल का मकान भी तिपुर और ढैपुर शैली में बना है। याने यह मकान चौपुर है। मकान दुखंड / तिभित्या याने एक कमरा अंदर व एक कमरा बाहर शैली।
केदार दत्त -बलदेव प्रसाद उनियाल के मकान में पहली मंजिल (मंज्यूळ ) व दूसरी मंजिल (तिपुर ) में छज्जों के ऊपर काष्ठ जंगले बंधे हैं। चौथी मंजिल अर्थात ढैपुर की जानकारी फोटो में नहीं दिख रहे है। प्रत्येक जंगले में छह छह सीधे काष्ठ स्तम्भ स्थापित हैं। स्तम्भ सपाट हैं व उन पर ज्यामितीय कार्य ही दीखता है कोई प्राकृतिक या मानवीय कला दर्शन नहीं होते हैं।
अशोक उनियाल ने सूचना दी कि तल मंजिल पर एक मंजिल से दूर मंजिल पर जाने का आंतरिक मार्ग , सीढ़ियां है और तल मंजिल में ही प्रवेश द्वार या खोली है। खोली /खोळी के काष्ठ सिंगाड़ /स्तम्भ सपाट पत्थरों की देहरी /देळी में स्थापित हैं। मुरिन्ड /शीर्ष में अष्टदल पुष्प अंकन हुआ है। याने पूरे भवन में ज्यामितीय कला उत्कीर्ण हुयी व एक स्थान याने मुरिन्ड में शगुन रूपी अष्टदल पुष्प उत्कीर्ण किया गया है।
भवन को स्थानीय कारीगरों ने ही निर्मित किया है व काष्ठ कलाकार थे चित्रमणी जो स्थानीय काष्ठ कलाकार थे।
निष्कर्ष नकलता है कि राज राजेश्वरी दरबार भवन देवलगढ़ शैली पर आधिरित चौपुर बड़ी होने के कारण आज भी भव्य भवनों की गिनती में आता है व ज्यामितीय व प्राकृतिक (अष्ट दल पुष्प ) कला /अलंकरण हुआ है। मानवीय अलंकरण की कोई सूचना नहीं मिलती है
फोटो आभार : बिक्रम तिवारी
सूचना आभार - अशोक उनियाल
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