Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1114668 times)

Bhishma Kukreti

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बैंजी कांडई   (दशज्यूला  , रुद्रप्रयाग ) में कांडपाल परिवार की तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण /नक्कासी
(गढ़वाळ  से अलग विशेष शैली )

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज   ) काष्ठ अंकन   -  128
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
-
सर्वेक्षण से पता चलता है कि   उत्तरकाशी के बाद चमोली व  रुद्रपयाग  भवन काष्ठ   कला के मामले में अधिक समृद्ध  रहा है।  रुद्रप्रयाग के दशज्यूला क्षेत्र  में  कांडई गाँव में कांडपाल परिवार की तिबारी दार  मकान यह सिद्ध करने में सफल है कि रुद्रप्रयाग भवन काष्ठ कला के मामले में भाग्यशाली क्षेत्र है। 
दश ज्यूला कांडई  में कांडपाल परिवार के  दुपुर , दुखंड /तिभित्या मकान के  हर स्तर पर काष्ठ  कला उत्कीर्णन या नक्कासी के दर्शन होते हैं  , नकासी या काष्ठ कला अलंकरण  विवेचना से कांडपाल परिवार के मकान को निम्न भागों में  विभक्त करना आवश्यक है -
मकान के तल मंजिल में  खोली व खोली  के  अगल  बगल में दोनों ओर काष्ठ कला उत्कीर्णन /नक्कासी
 तल मंजिल में अन्य कमरों के द्वारों  तथा   खिड़कियों में काष्ठ कला अलंकरण
पहली मंजिल में तिबारी में काष्ठ कला अलंकरण /नक्कासी
पहली मंजिल में खोली या झरोखों में काष्ठ नक्कासी
      प्रवेश द्वार में  उत्कृष्ट  काष्ठ कला अलंकरण या  आमद रास्ते में उमदा नक्कासी:-  कांडपाल परिवार की खोली  प्रवेश द्वार /आमद रास्ता  में नकासी उत्कृष्ट किस्म की है।  प्रवेश द्वार के दरवाजों के स्तम्भों में लाजबाब नक्कासी हुयी है।  मुख्य स्तम्भ दो अधोलम्भ वर्टिकल  स्तम्भों को मिलकर बना है।   स्तम्भों के  आधार में घुंडी , कमल दल आदि अलंकरण दृष्टिगोचर होते हैं व ऊपर स्तम्भों में वानस्पतिक  कला उत्कीर्ण हुयी है।  खोली के मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष में प्रतीकात्मक याने  देव मूर्ति खुदी है व मुरिन्ड पट्टिकाओं में प्राकृतिक (लता , पत्ती ) अलंकरण /नक्कासी हुयी है।  छज्जे से शंकुनुमा आकृतियां लटक रही है।
खोली के अगल बगल में दो दो अलग तरह के स्तम्भ  खड़े हैं।  प्रत्येक स्तम्भ के तल भाग में ज्यामिति कला अलंकरण उत्कीर्ण है व ऊपर चौखट है जिसमे बहुदलीय  फूल है।  फिर ऊपर के चौखट में एक मानव आकृति व ऊपर के चौखट में फिर बहुदलीय फूल है।  फिर ऊपर  ज्यामितीय  दो चौकियां व बीच में ड्यूलनुम आकृति कटान हुआ है।  इन impost /चौकियों के ऊपर  दो दो S  (अंग्रेजी का एस ) नुमा आकृति खुदी हैं व ऊपर एक आकृति के ऊपर शेर व दूसरी आकृति के ऊपर हाथी की नक्कासी हुयी है।  कहा जा सकता है कि खोली के दरवाजे के अगल बगल कुल चार फूल , दो मानव , दो शेर व दो हाथियों की आकृति खुदे है।  नक्कासी दिलकश है। 
कांडई (दश ज्यूला ) तल मंजिल  में अन्य तीन कमरों के दरवाजों  के सिंगाड़ /स्तम्भ में आधार से व ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड  तक उम्दा किस्म की नक्कासी  हुयी है।  स्तम्भ के आधार में उल्टा कमल दल (कुम्भी आकृति ) है व ऊपर लता पर्ण व ज्यामितीय कला का मिश्रण है जो लुभावना है।  मुरिन्ड /शीर्ष में भी प्राकृतिक व ज्यामितीय कला अंकन है।  मुरिन्ड के मध्य प्रतीकात्मक देव आकृति खुदी है।  दरवाजों पर भी मन भवन ज्यामितीय कला अलंकरण उत्कीर्णनन दर्शन होते हैं।
  दशज्यूला कांडई  में कांडपाल परिवार की इस तिबारी की बिलकुल अलग विशेषता है जो गढ़वाल की अन्य किसी भी तिबारी में अब तक नहीं मिली।  तिबारी  छज्जे के ऊपर देहरी /देळी के ही ऊपर है किन्तु  कांडई दशज्यूला के इस तिबारीमें मुख्य  चार स्तम्भ के प्रत्येक स्तम्भ वास्तव में चार चार स्तम्भों से मिलकर एक स्तम्भ निर्मित हुए हैं। 
चारों मुख्य स्तम्भों में प्रत्येक स्तम्भ में आधार पर उल्टा कमल दल , फिर ड्यूल फिर सुल्टा कमल दल , फिर स्रम्भ की मोटाई कम होना व फिर उल्टा कमल दल , ड्यूल व फिर सुल्टा (upward () कमल दल है।  अब प्रत्येक सुलटे कमल दल से उप स्तम्भ आकृतीयना निकलती है जो अंत में ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष से मिल जाते हैं।   इन उप स्तम्भों से ही मेहराब बनते हैं।  मेहराब के बाहर त्रिभुजाकार आकृति में प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है   सुंदर नक्कासी हुयी है।  मुरिन्ड में प्रत्येक मेहराब के ऊपर  एक देव या प्रतीकात्मक  आकृति खुदी है।  छत  आधार पट्टिका से कई शंकुनुमा आकृतियां नीचे लटकी हैं।
एक और विशेषता दशज्यूला कांडई में  कांडपाल परिवार के मकान की है कि  मकान के पहली मंजिल पर खड़की का काम बाहर झांकना नहीं अपितु झंकन अहइ , इस खोली में अंडाकार खोल है जिसके बाहर की तो में ज्यामितीय ालकरण हुआ है व अंडकार खोल के अंदर झरोखा बना है जो अलग शैली का ही है और गढ़वाल में कम  देखने  को मिलता है। 
जय वर्धन कांडपाल ने सूचना दी कि मकान सन  1941  में निर्मित हुआ व  1600   चांदी के सिक्के silver  coins  सिक्के व्यय हुए थे व बल्कि काम श्रमदान से पूर्ण हुआ था।  डिजाइन प्राणी दत्त का था व शिल्पकार थे क्वीली के कोली धुमु व धामू।   

   निष्कर्ष है निकलता है कि  कांडपाल परिवार (जगदीश कांडपाल, त्रिलोचन  कांडपाल, भगवती कांडपाल, देवेंद्र कांडपाल, विनोद कांडपाल ) के मकान में काष्ठ कला व् अलंकरण उत्कृष्ट किस्म का ही नहीं अपितु कुछ अलग व विशेष किस्म  का है , उम्दा नक्कासी का नमूना इस मकान में मिलता है , मकान के काष्ठ में सभी प्रकार के प्राकृतिक , मानवीय, प्रतीकात्मक  व ज्यामितीय अलंकरण /नक्कासी मिलता है।  दशज्यूला कांडई के इस मकान में  गढ़वाल से अलग विशेष कला के दर्शन भी होते हैं जैसे  खोली  के बाहर अगल बगल में अलग  किस्म  की आकृतियों का अंकन , तिबारी के चारों स्तम्भ अलग अलग चार स्तम्भों से मिलकर निमृत हुयी है जो गढ़वाल में अन्य जगह नहीं दिखी है अब तक व  इ सभी स्तंभसीधा मुरिन्ड  से नहीं मिलते अपितु इनके उप फिर से उप स्तम्भ नुमा आकृतियां है वे आकृतिया मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष से मिलते हैं।  मकान में खड़की भी  अंडे से झाँकन हेतु है। 

सूचना व फोटो आभार : जय प्रकाश कांडपाल

   * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों  ,खोली  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखई  ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्कासी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्कासी  , द्वार में नक्कासी , खिड़की में नक्कासी , खम्बों में नक्कासी

Bhishma Kukreti

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    फल्दाकोट मल्ला (यमकेश्वर )  में आलम सिंह  पयाल की तिबारी /डंड्यळ  में काष्ठ कला /नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , काठ बुलन )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 129

 संकलन -भीष्म कुकरेती
-
 पिछले अध्याय में  सूचित किया ही गया है कि फल्दाकोट  मल्ला कृषृ समृद्ध गाँव तो था ही 90  %  लोग ब्रिटिश पुलिस विभाग  में नौकरीरत  थे  और यह संस्कृति आज भी है।  समृद्धि  की अभिव्यक्ति होती है मकान की भव्यता।  फल्दाकोट में भी समृद्धि  तिबारियों , जंगलेदार मकानों में अभिव्यक्त हुयी है।
आज फल्दाकोट में आलम सिंह पायल की तिबारी - डंड्यळ  की चर्चा करेंगे। दुखंड /तिभित्या  मकान की  पहली  मंजिल पर यह डंड्यळ  है जिसमे केवल तीन  ही स्तम्भ या  सिंगाड़ हैं, ये सिंगाड़ दो ख्वाळ /खोली बनाते हैं।   व सिंगाड़  व मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष  में कोई विशेष नक्कासी /खुदाई नहीं हुयी है। केवल ज्यामितीय अलंकरण हुआ है।  मकान की सीमेंटेड छत  साक्षी है कि मकान 1960  के बाद ही निर्मित हुआ होगा।  मकान में खोली /प्रवेश द्वार तल मंजिल में है उसके सिंगाड़ों  में भी कोई उलेखनीय कल नक्कासी नहीं हुयी है।  एक समय बिन नक्कासी के   भी इस डंड्यळ  की इलाके में हाम थी। 
निष्कर्ष निकलता है कि फल्दाकोट (यमकेश्वर ) के आलम सिंह पायल के डंड्यळ  में काष्ठ  कला सामन्य किस्म की है व कोई विशेषता चर्चा योग्य नहीं है।   
सूचना व फोटो आभार :  सी .पी.कंडवाल व पूर्व प्रधान  फल्दाकोट  बालम  सिंह पयाल
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला  , पिथोरागढ़  में  बाखली   काष्ठ कला ; चम्पावत में  बाखली    काष्ठ कला ; उधम सिंह नगर में  बाखली नक्कासी ;     काष्ठ कला ;; नैनीताल  में  बाखली  नक्कासी  ;
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of Garhwal , Kumaun , Uttarakhand , Himalaya  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Almora Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Nainital   Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Pithoragarh Kumaon , Uttarakhand ;  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Udham Singh  Nagar Kumaon , Uttarakhand, नक्कासी , काठ खुदाई  ;    कुमाऊं  में बाखली में नक्कासी ,  ,  मोरी में नक्कासी , मकानों में नक्कासी  ;


Bhishma Kukreti

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Kirti Shah reorganizing Forest department

History of Tehri King Kriti Shah   - 10
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 183 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1429   
 
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)

  Kirti Shah Reorganizing Forest department:-
  King Pratap Shah appointed his brother in laws as conservator and deputy conservator for Tehri forest department. They took harsh decisions and villagers were annoyed by the Kingdom snatching forest rights of the villages.  King Kirti Shah sent Chandra Mohan Raturi of Godiganv for taking Forestry education from Forest College Dehradun (1). Chandra Mohan Raturi passed ranger degree and the King appointed him as Assistant conservator of Their Forest Department. Chandra Mohan Raturi worked there with hard work, devotion. The dissatisfaction of people calmed down for some time by work of Raturi. (1).
    Forest Contract to Ganga ram Khanduri:- Ganga  Ram Khanduri of Sardana village of British Garhwal used to take forest contract in Chakrata and British Garhwal. Ganga ram Khanduri decided to take forest contract of Tehri Garhwal. Ganga Ram did not have sufficient money for taking contract of the Riyasat. Ganga Ram met Kirti Shah. Kirti Shah gave 1500 cedar trees to Ganga Ram Khanduri without any payment. Ganga ram cut those trees and converted into sleepers or logs. Those logs were brought to Haridwar through Bhagirathi and Ganga. Ganga Ram got thousands of rupees profit by selling those logs. From that year, ganga ram used to take Tehri forest contracts regularly. Ganga Ram Khanduri died on 7th August 1907 and his brothers took over the works.  (1)
 Ghana Nand Khanduri emerging as famous forest Contractor and social Worker too:-
    Ganga Ram Khanduri had four brothers and when he died there was total loss for Rs. 64000. Ghana Nand was more energetic and courageous than others. Ghana Nand Khanduri did not lose heart. All four brothers of late Ganga Ram Khanduri took decision that that bother who was in Tehri government service would continue there only. Radha Ballabh Khanduri would manage cutting trees and despatching them into Bhagirathi. Ghana Nand Khanduri would be stationed at Haridwar for collecting logs from Ganges and selling them. Chandra Ballabh Khanduri would be stationed in Mussoorie for looing after family members .  Ghana Nand Khanduri took loan for Rs. 40000 and restarted contract works with zeal. After a couple of years, Khanduri family returned loan and covered all past losses too. Very soon, Khanduri’s firm/s Ganga Ram Ghana Nand became famous and a profit making firm.
Ghana Nand Khanduri with the help of his brothers established free Sanskrit school in Uttarkashi. Khanduri brothers founded a girl school in Uttarkashi too. Khanduri brothers used to offer scholarship to poor students for taking education outside Garhwal and country. M/s Ganga ram firm was one of the biggest private Employment house in the region at that time. (2)
References
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 190 -191
Bhakta Darshan (1952), published by Bhakta Darshan Lansdowne, page 204 (The book is available on Internet as free PDF)
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Kirti Shah reorganizing Forest department

History of Tehri King Kriti Shah   - 10
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 183 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1429   
 
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)

  Kirti Shah Reorganizing Forest department:-
  King Pratap Shah appointed his brother in laws as conservator and deputy conservator for Tehri forest department. They took harsh decisions and villagers were annoyed by the Kingdom snatching forest rights of the villages.  King Kirti Shah sent Chandra Mohan Raturi of Godiganv for taking Forestry education from Forest College Dehradun (1). Chandra Mohan Raturi passed ranger degree and the King appointed him as Assistant conservator of Their Forest Department. Chandra Mohan Raturi worked there with hard work, devotion. The dissatisfaction of people calmed down for some time by work of Raturi. (1).
    Forest Contract to Ganga ram Khanduri:- Ganga  Ram Khanduri of Sardana village of British Garhwal used to take forest contract in Chakrata and British Garhwal. Ganga ram Khanduri decided to take forest contract of Tehri Garhwal. Ganga Ram did not have sufficient money for taking contract of the Riyasat. Ganga Ram met Kirti Shah. Kirti Shah gave 1500 cedar trees to Ganga Ram Khanduri without any payment. Ganga ram cut those trees and converted into sleepers or logs. Those logs were brought to Haridwar through Bhagirathi and Ganga. Ganga Ram got thousands of rupees profit by selling those logs. From that year, ganga ram used to take Tehri forest contracts regularly. Ganga Ram Khanduri died on 7th August 1907 and his brothers took over the works.  (1)
 Ghana Nand Khanduri emerging as famous forest Contractor and social Worker too:-
    Ganga Ram Khanduri had four brothers and when he died there was total loss for Rs. 64000. Ghana Nand was more energetic and courageous than others. Ghana Nand Khanduri did not lose heart. All four brothers of late Ganga Ram Khanduri took decision that that bother who was in Tehri government service would continue there only. Radha Ballabh Khanduri would manage cutting trees and despatching them into Bhagirathi. Ghana Nand Khanduri would be stationed at Haridwar for collecting logs from Ganges and selling them. Chandra Ballabh Khanduri would be stationed in Mussoorie for looing after family members .  Ghana Nand Khanduri took loan for Rs. 40000 and restarted contract works with zeal. After a couple of years, Khanduri family returned loan and covered all past losses too. Very soon, Khanduri’s firm/s Ganga Ram Ghana Nand became famous and a profit making firm.
Ghana Nand Khanduri with the help of his brothers established free Sanskrit school in Uttarkashi. Khanduri brothers founded a girl school in Uttarkashi too. Khanduri brothers used to offer scholarship to poor students for taking education outside Garhwal and country. M/s Ganga ram firm was one of the biggest private Employment house in the region at that time. (2)
References
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 190 -191
Bhakta Darshan (1952), published by Bhakta Darshan Lansdowne, page 204 (The book is available on Internet as free PDF)
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King Kirti Shah Reorganizing Public works department

History of Tehri King Kriti Shah   - 11
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 184 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1430     

  By:   Bhishma Kukreti (History Student)

  Kirti Shah was a progressive person. King Kirti Shah had ability for recognizing the potentiality in a person.  Bhavani Datt Uniyal was teacher in Pratap Shah High School. Bhavani Datt Uniyal impressed the king in a formal gathering. King Kirti Shah appointed Bhavani Datt Uniyal as clerk in public works department. Later on Kirti Shah promoted Uniyal as Store Supernatant of PWD. Later on Kirti Shah appointed Bhavani Datta Uniyal as his Private Secretary (2).  Bhavani Datt used to be busy in various acts for the King.  King Kirti Shah used to dictate him the basic of the subject and Bhavani Datt used to prepare written order for Kirti Shah to sign.
 Kirti shah was impressed by the works of Bhavani Datt Shah and he mentioned it in his dairy too, (2).
References
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 190 -191
Bhakta Darshan (1952), published by Bhakta Darshan Lansdowne, page 187 (The book is available on Internet as free PDF)
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Kirti Shah establishing Garhwali Sappers, Founding Kirtinagar

History of Tehri King Kriti Shah   - 12
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 185 
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1431 
   
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)

         Kirti Shah Establishing Army: British government established Garhwal rifle Brigade in Lansdowne. There was talk about bravery of Garhwali soldiers all over world due to their bravery.
 Kirti Shah established an Army brigade in Tehri as ‘Garhwali Sappers’.  The said organization helped in constructing public works department’s bridges etc. The said army brigade also helped British army (2).
     Kirti Shah establishing Kirti Nagar. ;-
Kirti shah founded a new township in Biloli village as ‘Kirti Nagar’ The place was /is opposite of Shrinagar Garhwal and near the village Maletha of Madho Singh Bhnadari.  Kirti Shah built a couple of public buildings there. (1)
 
References   
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 190 -193
Bhakta Darshan (1952), published by Bhakta Darshan Lansdowne, page 188 (The book is available on Internet as free PDF)
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Protection of earth and Environment is also Important for CEOs
Guidlines for Chief Executive Officers (CEO) series – 72
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   

By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)

खनि: सर्वधनस्येयं  देवदैत्य   विमर्दनी   I
भूम्यर्थे भुमिपतय: स्वात्मानं नाशयंत्यपि  II 179 II
उपभोगाय च धनं   जीवितं  येन    रक्षितम I
न रक्षिता तु भूर्येन  किं  तस्य  धनजीवितै:   II180II  (Shukra Niti Rajkrityadhikar Nirupan, 1.179 -1.180) 
Translation:-
 There are all types of wealth available in the earth. This earth is the reason for destroying deities and demons. Because of earth, the king destroys himself.  That whoever, ignored earth for her/his consumption and protected the wealth and personal life that person did not do any good.   Without protecting earth every wealth and life is useless.
(Shukra Niti Rajkrityadhikar Nirupan, 1.179 -1.180) 
 Shukra Niti was created around 1st century AD or before. However, on that time, there was awareness of Earth and protection.
All CEOs should make a note that their first priority is for protecting earth and environment. It is crime for CEO to destroy the natural norms of earth and pollute the environment,
  References   
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 41
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Copy Guidelines for Earth and Environment Protection   for Chief Executive Officers; Guidelines for Earth and Environment Protection   for Managing Directors; Guidelines for Earth and Environment Protection   for Chief Operating officers (CEO); Guidelines for Earth and Environment Protection   for  General Mangers; Guidelines for Earth and Environment Protection   for Chief Financial Officers (CFO) ; Guidelines for Earth and Environment Protection   for Executive Directors ; Guidelines for Earth and Environment Protection   for ; Refreshing Guidelines for Earth and Environment Protection   for  CEO; Refreshing Guidelines for Earth and Environment Protection   for COO ; Refreshing Guidelines for Earth and Environment Protection   for CFO ; Refreshing Guidelines for Earth and Environment Protection   for  Managers; Refreshing Guidelines for Earth and Environment Protection   for  Executive Directors; Refreshing Guidelines for Earth and Environment Protection   for MD ; Refreshing Guidelines for Earth and Environment Protection   for Chairman ; Refreshing Guidelines for Earth and Environment Protection   for President

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फल्दाकोट मल्ला (यमकेश्वर ) में केशर सिंह - छप्पन  सिंह पयाल की निमदारी  में काष्ठ कला अंकन  , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , बखाई ,  खोली  ,   कोटि बनाल   )  काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 135
 संकलन -भीष्म कुकरेती

जैसे पहले अध्यायों में  लिखा गया है कि   उदयपुर पट्टी  में फल्दाकोट ब्रिटिश काल से ही कृषि समृद्धि व  ग्रामवासियों  के पुलिस बल में शामिल होने के लिए प्रसिद्ध था।    अधिकतर समृद्धि का प्रतीक मकान होते जाते हैं।  फल्दाकोट में तिबारियों से अधिक निमदारी या जंगलेदार मकान अधिक पाए गए हैं। व अधिकतर निमदारी /जंगलेदार मकान 1946  के पश्चात ही निर्मित हुयी हैं।   पहाड़ी गढ़वाल में  खिड़कीयों लम्बाई चौड़ाई बता सकने में सक्षम होती हैं कि मकान कितना आधुनिक है।  मोरी में केवल  छेद हो तो समझा जाता है प्राचीन व लोहे की छड़ियाँ व बड़ी खिड़की मतलब आधुनिक मकान।
सम्प्रति  आधुनिक श्रेणी  के फल्दाकोट मल्ला के केशर सिंह - छप्पन सिंह पयाल के ढैपुर या  तिपुर  मकान के जंगल में लगी लकड़ी में कला, अलंकरण उत्कीर्णन  व नक्कासी  की विवेचना होगी।   मकान दुखंड /तिभित्या  है व तल मंजिल में आगे के कमरों  को ढका नहीं गया है अपितु बरामदे में बदल दिया गया है , तल मंजिल पर  गारा सीमेंट   के पिलर्स भी मकान के आधुनिकता का बोध कराते हैं।  पहली मंजिल पर छज्जे  (संभवतया सीमेंट का ही ) के ऊपर जंगल बंधा है।   वास्तव में छज्जे को बरामदे में तब्दील किया गया है।
फल्दाकोट मल्ला के  केशर सिंह -छप्पन सिंह पयाल की निमदारी  (जगंले )  में कुल आठ स्तम्भ हैं जो सात  ख्वाळ /खोली बनाते हैं।  स्तम्भ के आधार में ढाई फिट तक दोनों ओर काष्ट पट्टिका लगी हैं जिससे स्तम्भ /खम्बे मोठे दीखते हैं व ऊपर कीओर स्तम्भ सीधी सपाट हैं।
 पहली मंजिल में स्तम्भ , मुरिन्ड। मथिण्ड की कड़ी , छत आधार काष्ठ पट्टिका , कमरों के दरवजों , खिड़की के दरवाजों के  सिंगड़ -मुरिन्ड  में केवल ज्यामितीय  कला , अलंकरण उत्कीर्णन (नकासी ) के ही दर्शन होते हैं , मकान के कसी बगी काष्ठ भाग    में प्राकृतिक , प्रतीकात्मक , मानवीय अलंकरण (motifs ) के दर्शन नहीं होते हैं।
मकान के डिजाइन व बड़े होने के कारण मकान भव्य दीखता है।  ज्यामितीय अलंकरण में कटान सफाई है। 
  निष्कर्ष निकलता है कि फल्दाकोट मल्ला के  केशर सिंह -छप्पन सिंह पयाल की  तिपुर  वाले मकान की निमदारी  में केवल ज्यामितीय कला के सर्शन होते हैं।

सूचना व फोटो आभार : सी पी कंडवाल व बलवंत सिंह पयाल (फल्दाकोट )

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , कोटि बनल  ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
  यमकेशर गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  ;लैंड्सडाउन  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;दुगड्डा  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; धुमाकोट गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला ,   नक्कासी ;  पौड़ी गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;
  कोटद्वार , गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; फल्दाकोट मल्ला में काष्ठ कला , नक्कासी ; उदयपुर पट्टी में काष्ठ कला , नक्कासी


Bhishma Kukreti

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  बग्वाली पोखर (अल्मोड़ा ) में मोहन सिंह बिष्ट की 110  साल पुरानी बाखली में काष्ठ  कला 

बग्वाली पोखर (अल्मोड़ा ) मे मोहन सिंह बिष्ट की 110  साल पुरानी बाखली में काष्ठ  कला  , अलंकरण , लकड़ी नक्कासी

कुमाऊं , गढ़वाल,  हरिद्वार ,  उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान  , खोली  ,  कोटि बनाल  )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 134
 संकलन - भीष्म कुकरेती
 -
प्रोफेसर मृगेश पांडे अनुसार बाखली का अर्थ होता है  कि ---  एक जाति बिरादरी के लोग  एक  दूसरे  से जुड़े  एक कतार में घर बनाते है तो उसे बाखली  कहते हैं व  बाखली  के सभी घरों की धुरी  एक ही सीध में होती है।  अधिकतर मकान दो मंजिले  दोपुर या तिपुर होते हैं व  घर एक बराबर ऊँचाई  में होते हैं।  मोहन बिष्ट अनुसार बाखली का पर्यायवाची शब्द बखाई भी है। 
    भैया दूज के दिन  धार्मिक मेले हेतु प्रसिद्ध बग्वाली  पोखर में कई बाखली या बखाई थीं।  सम्प्रति , आज अल्मोड़ा के द्वारहाट क्षेत्र में बग्वाली पोखर में मोहन सिंह बिष्ट परिवार का 110 साल से अधिक पुराने दुपुर (1 +1 ) बखाली  में  काष्ठ  कला व काष्ठ अलंकरण अथवा लकड़ी में नक्कासी की विवेचना होगी। सन  1915  में इस बाखली के मध्य पोस्ट ओफिस था व आज भी पोस्ट ओफिस इसी स्थान में बगल वाले मकान में स्थानन्तरित हुआ  है। 
बाखली /बखाई  दुखंड /दुभित्या (एक कमरा अंदर व एक कमा बाहर ) है व  लगता है  या तो गौशाला रूप में प्रयोग होता था या भंडारीकरण  हेतु  उपयोग होता रहा होगा /है।  काष्ठ कला या काष्ठ अलंकरण उत्कीर्णन दृष्टि से तल मंजिल में कोई विशेष काष्ठ  वस्तु दृष्टिगोचर नहीं होती है।  पहली मंजिल में भी स्तम्भ छोड़कर दास (छज्जा को आधार देने वाली संरचना) , छत आधार पट्टिका में सीधा सपाट  कटान ही है । 
दोनों मकानों में कुल  32  या अधिक स्तम्भ /सिंगाड़ /खम्भे हैं व उनसे 31  ख्वाळ /खोली बनते हैं।  ख्वाळ /ख्वाल  के निचले भाग में ढाई फिट तक स्तम्भ के दोनों ओर काष्ठ पट्टिकाएं लगीं है जिससे स्तम्भ मोटा दीखता है व यहीं से स्तम्भ ऊपर की ओर बढ़कर सीधे मुरिन्ड /मथिण्ड   या छत के नीचे पट्टिका के नीचे शीर्ष  वाली कड़ी से मिल जाते हैं।  शीर्ष कड़ी से नीचे स्तम्भों में कटान नुमा आकृति उत्कीर्ण हुयी है।   छज्जे से ढाई फिट ऊपर तक  रेलिंग व निम्न भाग पर पट्टिका लगी हैं। , इन पट्टिकाओं में ज्यामितीय ढंग से  आयताकार आकृति  उत्कीर्ण (carved ) हुयी है।   कुश ख्वाळ  पूरे के पूरे लकड़ी की पट्टिका से ढके हैं जैसे दरवाजे होते हैं।  इन ख्वाळों  /खोलियों की पट्टिकाओं में त्रिभुजाकार या आयताकार अंकन /कटान हुआ है व अंकन नयनाभिरामी हैं।  सभी ख्वाळों  के पपोरे पट्टिकाओं या आधार पर ढाई फिट तक की पट्टिकाओं में सभी में एक सामंता है।
कला दृष्टि से पूरे  बाखली या मकान में लकड़ी के काम में सामंजस्य है, एकरुपता, एकरसता से छुटकारा , अनुपूचारिक  व औपचारिक संतुलन ;  कटान में अनुपात का ध्यान ,  गति , कुछ भागों का  अनायास ही ध्यान खिंचाऊ होना , आकार व डिजाइन सिद्धांत  का प्रयोग बखूबी हुआ है।
  कुमाऊं  के अन्य भागों की तुलना में मोहन सिंह बिष्ट की बाखली में प्राकृतिक व मानवीय अलकंरण  /नक्कासी नहीं है किन्तु  मकान बड़ा होने व स्तम्भों के कटान ने मकान की सुंदरता में चाँद लगा दिए हैं। 

सूचना व फोटो आभार : दीपक मेहता , अल्मोड़ा

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली, कोटि बनल    ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला  , पिथोरागढ़  में  बाखली   काष्ठ कला ; चम्पावत में  बाखली    काष्ठ कला ; उधम सिंह नगर में  बाखली नक्कासी ;     काष्ठ कला ;; नैनीताल  में  बाखली  नक्कासी  ;
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of Garhwal , Kumaun , Uttarakhand , Himalaya  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Almora Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Nainital   Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Pithoragarh Kumaon , Uttarakhand ;  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Udham Singh  Nagar Kumaon , Uttarakhand ;    कुमाऊं  में बाखली में नक्कासी ,  ,  मोरी में नक्कासी , मकानों में नक्कासी  ;


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  कोटि बनाल   गांव  में    300 साल पुराने मकान में काष्ठ कला

कोटि बनाल  ( बड़कोट उत्तरकाशी  ) में कोटि बनाल  शैली में निर्मित  300 साल पुराने मकान में काष्ठ कला , अलंकरण  ( नक्कासी )

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( कोटि बनाल    , तिबारी , बाखली , खोली  )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 132
  (लेख अन्य पुरुष में हैं जी श्री है प्रयोग हुए हैं )   
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  इस मकान की कला देख कर कहा जा सकता है कि  कला की परिभाषा 1 +1 = 2  या 1  +1  =11  वाले सिध्दांत से नहीं अपितु  कला की परिभाषा 1 +1  = अनंत से   परिभाषित होनी  चाहिए
इस मकान का  चित्र की सूचना भेजते समय हिमालयी संस्कृति वेत्ता राजेंद्र बडवाल       ने  लिखा  कि उत्तरकाशी जिले के  राजगढ़ी  तहसील में  बड़कोट में मकान की कोटि बनाल शैली   के कारण ही गांव का नाम  कोटि बनाल पड़ गया है। कोटि बनाल के निकटवर्ती गांव हैं गैड , बखरेती , घंडाला आदि।   मकान 300  साल पुराना है व कभी यहां सात आठ  परिवार रहते थे अब पूरा गाँव बस गया है।  मकान को देखने देश विदेशों से सैलानी आते रहते हैं।  कोटि बनाल शब्द वास्तव में  संस्कृत जोड़ शब्द काष्ठ  कोण   से निकला है जिसका अर्थ होता है लकड़ी का कोना। कोटि बनाल का सीधा अर्थ है दीवार के कोने में  लकड़ी  का ही प्रयोग।  यह मकान सात मंजिला है (1 +6  ) .
    ऐसे भवन 900 साल तक भी खड़े रह सकते हैं व जलवायु रोधी तो हैं ही भूकंप रोधी भी हैं।  यही कारण कि कुछ सालों पहले तक उत्तरकाशी व जौनसार बाबर में कोटि बनाल शैली के मकान ही निर्मित होते थे।  देवदारु की लकड़ी १००० साल तक जलवायु को झेलने में सक्षम होती है व मकान की दीवारें देवदारु लकड़ी की बलि या कड़ी व रेड़ी  हैं तो जलवायु व भूकंप दोनों के रोधी बन जाते हैं।  मकान आयताकार प्लेटफार्म पर बनाये जाते हैं व एक तह  देवदारु की  लकड़ी की व दूसरी तह रेडी (पत्थर ) की होती है।  ऐसे बहु मंजिले मकान में गीली मिट्टी का मस्यट  प्रयोग नहीं होता है तो जलवायु के प्रभाव से अछूते रह जाते हैं ऐसे  मकान।  मकान जैसे जैसे ऊँचा होता जाता है पत्थर की मात्रा कम होती  जाती है व लकड़ी बढ़ता जाता है।  या पत्थर का भार अधिक हो तो  लकड़ी का भार  कम हो जाता है।  अंदर की दीवारों व नीचे    फर्श में मिट्टी  से  /लिपाई प्लास्टरिंग होती है । 
   अधिकतर मकान दुखंड या दो इकाईयाँ वाले होते हैं।  कोटि बनाल बनाते समय अधिकतर  तल मंजिल में खड़कियाँ नहीं होती और एक प्रवेश द्वार होता है ,  कोटि बनाल शैली के मकान गढ़वाल    के चार -छह खम्बों के ऊपर  आधार में चौकोर  बुसुड़ /मचान नुमा आकृति के होते हैं।
 इस प्रस्तुत मकान में  चार मंजिल तक सपाट  ज्यामितीय कला अंकन है व  विशेष नक्कासी के दर्शन ही होते हैं।  तल मंजिल में दो   द्वार हैं व सिंगाड़ व मुरिन्ड में  ज्यामितीय कला  छोड़कर  कोई  अन्य प्रकार का अलंकरण नहीं है।  यही हाल   चौथी   मंजिल  तक है।  बीच में दूसरे व तीसरे मंजिल में  झरोखे हैं।   छटी   सातवीं मंजिल में वास्तविक कला दर्शन होते हैं।   छटा  व सातवें  मंजिल नीचे वाले भाग से चौकोर में बड़े हैं व ूपी मंजिलों में कई प्रकार  की कला दृष्टिगोचर होते हैं। मकान के ऊपरी भाग कला दृष्टि से अपने उच्चतर स्तर पर पंहुचता है।   मंजिलों में ज्यामितीय कला व अनंत निराकारी  (abstract ) धरातल पर पंहुच जाता है कला है किन्तु दर्शक इसका वर्णन   करने में  अपने को असक्षम पाता  है। छटे  मंजिल में दरवाजों के बाहर दीवालगीर /ब्रैकेट हैं जो  कलायुक्त   हैं।  ऊपरी मंजिलों के मध्य बिभाजिय लकड़ी की कड़ियों व झालरों व जंगले नुमा आकृतियां है जो  नक्कासी  की लाजबाब मिसाल हैं।  कोई जटिलता  नहीं   है  तब भी  काष्ठ कला दर्शक को आश्चर्य में डालने में सक्षम  है।
 एक मत है कि उत्तरकाशी का यह इलाका  प्राचीन समय में  गढ़वाल को  काष्ठ  कला निर्यात  (concept  and  Material ) करने  हेतु प्रसिद्ध था।  एक अनुमान अनुसार उत्तरकाशी का प्रभाव जौनपुर काष्ठ कला पर पड़ा व जौनपुर का प्रभाव टिहरी पर व टिहरी का प्रभाव इतर क्षेत्रों में पड़ा।  हाँ इसमें बिबाद हो सकता है कि  यदि उत्तरकाशी की मकान कला का प्रभाव गढ़वाल के  अन्य क्षेत्रों में पड़ा  होता तो  प्राचीन काल में क्यों नहीं गढ़वाल के अन्य भागों में लकड़ी के मकानों का प्रचलन हुआ।
   निष्कर्ष निकलता है कि राजगढ़ी  के कोटि बनाल गाँव के इस बहु  मंजिला मकान की कला  अविस्मरणीय  है व  शब्दों की जगह देखने   में ही लाभ है या शायद अभी तक   विशेष शब्दावली  प्रकाश में नहीं  आयी जो आम पाठकों के  से रूबरू करा सके।   आशा है कि  यह लेखक  धीरे धीरे इन स्थानीय  शब्दावली बटोरेगा व स शब्दावली को पर्थकों के सामने लाएगा।   

सूचना व फोटो आभार :  हिमालयी संस्कृति प्रचारक  राजेंद्र बडवाल

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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