Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1113086 times)

Bhishma Kukreti

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खमण (द्वारीखाळ  ) में घनश्याम कुकरेती की निमदारी में काष्ठ कला     अलंकरण अंकन,  नक्कासी      
 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन,  नक्कासी  -  145
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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   खमण   (ढांगू , द्वारीखाल ,पौड़ी ग ) की  कुछ तिबारियों , निमदारियों  की विवेचना पिछले अध्यायों में हो चुकी है। आज  घनश्याम कुकरेती की निमदारी में लकड़ी पर नक्कासी की चर्चा होगी।
 घनश्याम कुकरेती की निम दारी भी गढ़वाल की सामन्य निमदारी जैसे ही दुखंड /तिभित्या व दुपुर मकान में  जंगला बिठकार निर्मित हुयी है। है।पहली मंजिल पर बिठाई गयी     निमदारी आठ से अधिक स्तम्भों (खम्भों ) से निर्मित हुयी है।  प्रत्येक स्तम्भ आधार पर  दोनो  ओर पट्टिकाएं कगायी गयी हैं जिससे स्तम्भ में कल अंकन आभास व मोटाई बढ़ जाती है।  स्तम्भ के मुरिन्ड। मथिण्ड शीर्ष कड़ी से मिलने से पहले कुछ ज्यामितीय कटान से स्तम्भ की सुंदरता बधाई गयी है , रेलिंग धातु की है।
खमण में घनश्याम कुकरेती की निमदारी में  ज्यामितीय अलंकरण अंकन के अतिरिक्त अन्य कोई  अलंकरण नहीं हुआ है।  खमण की यह निमदारी  सामन्य किस्म की निम दारी की श्रेणी में आती है। 
सूचना व फोटो आभार : बिमल कुकरेती , खमण
यह लेख  भवन  कला,  नक्कासी संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों  ,खोली , कोटि बनाल  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण,  नक्कासी  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,  बाखली , खोली, कोटि बनाल   ) काष्ठ अंकन लोक कला , नक्स , नक्कासी )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , नक्कासी  , हिमालय की  भवन काष्ठ कला  नक्कासी , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्कासी , नक्स , नक्कासी  dhaangoo me nkkasi , Wood carving Folk Art Khaman

Bhishma Kukreti

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 चिटगल   (गंगोली हाट , पिथौरागढ़ )  में  पंतों   द्वारा निर्मित  महर लोगों के  मकान में   काष्ठ  कला ,  अलंकरण  , लकड़ी  में इल्म -ए  -हिंदसे नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 147
 संकलन - भीष्म कुकरेती

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  गंगोलीहाट  पिथौरागढ़ का एक छोटा कस्बा है व   शक्ति पीठ हट कालिका देवी  हेतु प्रसिद्ध है व ।  गंगोलीहाट के निकटवर्ती पातळ भैरवी गुफाएं भी है व चोक्तिया की पहाड़ियां .भी हैं। .  इसी तहसील के एक गाँव चिलगट में यक मकान है।
  गंगोलीहाट से कुछ  विशेष बाखलियों व मकानों की सूचना मिली हैं जो कुमाऊं की अन्य बाखलियों से  विशेष है exclusive  हैं। 
चिटगल में इस  मकान  को   पन्त परिवार ने निर्मित किया था , प्रवास में चले गये तो  पंत परिवार के सदस्यों ने महर परिवार को घर  दे   दिया .
    पंकज सिंह महर    द्वारा  भेजे गए यह मकान भी कुमाऊं में आम बाखलियों के मुकाबले कुछ अलग ही है।  मकान का डिजाइन तो बाखली जैसा है किन्तु आकार    बहुत  ही छोटा है और काष्ठ कला भी बाखली के अनलिखे नियमों से हठ कर ही है।
चिटगल के इस मकान  ढैपुर शैली का है व तल मंजिल भंडार या गौशाला रूप में इस्तेमाल होता रहा होगा     पहली मंजिल में या ऊपर कोई छज्जा /छाज नहीं है। पहली मंजिल या ऊपर कोई छज्जा /छाज नहीं है। पहली मंजिल में सात  लकड़ी के स्तम्भ/सिंगाड़ /खम्बे  हैं जो छह खोली या मोरी बनाते हैं। मकान में  सिंगाड़ों  से बने खोली /द्वार को लकड़ी की  पट्टियों  से ढक दिया गया है।  एक  मोरी के दरवाजा लगाकर  प्रवेश द्वार बना लिया गया है।  एक खोली  के पट्टी को आधा काटकर मोरी बना दिया गया है।
मोरी को  ढकने वाले पत्तियों में ज्यामितीय कला ही उत्कीर्ण हुयी है  जो कि  कुमाऊं की बाखलियों से भिन्न है।  आम बाखलियों की मोरी के दुंळ  (खोह ) को ढकने वाले  पट्टियों  में कई थर की नक्कासी मिलती है जैसे हमने बिंतोली  व  जीजार की बाखलियों में देखा कि  मोरी ढकने की पट्टी  में न सही सिंगाड़ में कला उत्कीर्ण होती है।
   मुरिन्ड /मथिण्ड  (खोलियों के ऊपर शीसरह की कड़ी ) की कड़ी में  ज्यामितीय कटान  छोड़ कोई कला उत्कीर्ण नहीं है  व मुरिन्  के  ऊपर छत आधार पट्टिका में भी ज्यामितीय कला / याने इल्म  -ए - हिंदसे नक्कासी ही मिली है।
मकान की शान इसकी गोलकार सीढ़ियां हैं जो पहाड़ों में कम ही देखने को मिलते हैं।
 निष्कर्ष है कि   चिटगल  गंगोली हाट  (पिथोरागढ़ )  की इस  लघु बाखली में ज्यामितीय  काष्ठ  कला अलंकरण उत्कीर्णित हुए है याने बस  इल्म -ए - हिंदसे  फन  के  ही  दीदार होते हैं। 

सूचना व फोटो आभार :  पंकज सिंह महर 

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली, कोटि  बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला  , पिथोरागढ़  में  बाखली   काष्ठ कला ; चम्पावत में  बाखली    काष्ठ कला ; उधम सिंह नगर में  बाखली नक्कासी ;     काष्ठ कला ;; नैनीताल  में  बाखली  नक्कासी  ;
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari, Bakhali,  Mori) of Garhwal , Kumaun , Uttarakhand , Himalaya  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Almora Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in Nainital   Kumaon , Uttarakhand ; House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Pithoragarh Kumaon , Uttarakhand ;  House wood  carving Art in Bakhali Mori, chhaj   in  Udham Singh  Nagar Kumaon , Uttarakhand ;    कुमाऊं  में बाखली में नक्कासी ,  ,  मोरी में नक्कासी , मकानों में नक्कासी  ; कुमाऊं की बाखलियों में लकड़ी नक्कासी ,  कुमाऊं की बाखली में काष्ठ कला व   अलंकरण , कुमाओं की मोरियों में नक्कासी  श्रृंखला स्स्गे भी   ...


Bhishma Kukreti

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किमसार  (यमकेश्वर ) में जय कृष्ण कंडवाल की निमदारी में काष्ठ कला अलंकरण  , लकड़ी पर  नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , बखाई ,  खोली  ,   कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 148
 संकलन -भीष्म कुकरेती
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  जैसे कि  पहले कई अध्याओं  में  बताया गया है  कि किमसार   (यमकेश्वर ,पौड़ी गढ़वाल )  एक पुराना स्थल है व यहाँ कई तिबारियां व निमदारियां , जंगलेदार  मकान थे।  आज  किमसार   के जय कृष्ण कंडवाल के भव्य निमदारी में लकड़ी पर नक्कासी की चर्चा होगी।
मकान  दुखंड/ तिभित्या  एवं ढैपुर  (तल मंजिल + पहली मंजिल +  आधा  मंजिल )   शैली का है।   मकान वर्तमान में ही बना है। 
किमसार में जय कृष्ण कंडवाल  की निमदारी /जंगला   पहली मंजिल पर  छज्जे पर टिका  है। छज्जा व निमदारी का मुरिन्ड /ऊपरी भाग लकड़ी के ही हैं।    निमदारी में  सामने  की ओर कुल  14 स्तम्भ हैं  व  लकड़ी के छज्जे पर  टिके   है व ऊपर काष्ठ
मुरिन्ड /शीर्ष से मिलते हैं।     स्तम्भों के आधार पर दोनों ओर  पट्टिकाएं लगी हैं जिससे स्तम्भ की  मोटाई  बढ़ा हुआ आभास  होता है।  इसके बाद  चौकोर स्तम्भों की मोटाई समान है। शीर्ष में कुछ कटान है बस।  मुरिन्ड की कड़ियों व पटलों   में ज्यामितीय  अलंकरण कलाके अतिरक्त  कोई अन्य अलंकरण नहीं हुआ है।   स्तम्भों  के आधार  में स्तम्भों को  लकड़ी की कड़ी से जोड़ा गया है जिसके नीचे धातु रेलिंग /जंगला  बंधा है।   
निष्कर्ष निकलता है कि  किमसार में जय कृष्ण मकान बड़ा है व खूबसूरत है व सुंदरता की दृष्टि से उच्च श्रेणी में आता है।   मकान में केवल ज्यामितीय कटान हुआ है प्राकृतिक  या मानवीय अथवा रुहानी नक्कासी  जय कृष्ण कंडवाल के मकान में नहीं  दीखते हैं।
सूचना व फोटो आभार :  विकास बडोला
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
  यमकेशर गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  ;लैंड्सडाउन  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;दुगड्डा  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; धुमाकोट गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला ,   नक्कासी ;  पौड़ी गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;
  कोटद्वार , गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;


Bhishma Kukreti

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Family Life and Last days of Tehri King Kirti Shah

History of Tehri King Kriti Shah   - 19
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 192   
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1438   
   
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)

 Forest Destruction in Saklana region-
Saklana  region was tax frees zone and Saklanis or Jagirdars were also administrators of Saklana  region.  It was time to get big income from forests.  Saklanis cut cedar tress without future thinking. When the king asked them they answered that they are the sole owners of the region and King did not have any authority t0 intervene. King Kirti Shah reported to Kumaon commissioner. Kumaon commissioner seized the right of forest management from Saklanis for Saklana region and handed over the rights to Tihri Kingdom.(1)
           Family Life of Kirti Shah:-
Kirti Shah was a noble man and was more interested in works than enjoyment. Kirti Shah had only one queen (granddaughter of Janagbahadur of Nepal)   and one Khavasan or keep (from Bisht family of Barsali-Nandganv). 
   Kirti shah had two sons Narendra Singh and Sundar Singh. Kirti Shah ahd good relation with his two uncles – Vichitra Shah and Surendra Shah. Bushehar King adopted Surendra Shah.
  In a sense Kirti Shah was workaholic and never thought of rest. Kirti Shah used to have simple food.  Tihri King Kirti shah expired on 25th April 1913 at the age of 39. His elder son Narendra Shah was .15 years old at the time of his death. His mother queen Guleria was alive at that juncture.
References   
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 1 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 197 
Copyright@ B.C .Kukreti, 2020

Bhishma Kukreti

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Plant Classification as Food articles in Charaka Samhita

Plant Science in Charaka Samhita – 5
BOTANY History of Indian Subcontinent –99 D 
 
Information Compiler: Bhishma Kukreti 


 Charaka Samhita also classified plants as food articles and food uses in Sutrasthana 27.
  27th chapter of Sutrasthana of Charaka Samhita divided food articles (plants )as follows –
1-Sukha Dhanya (corns with bristle) –  Rice varieties , barley, wheat, millets 
2-Shami (dal or pulses) -9 pulses    
3-Shaka varga or vegetables – 7 varieties
4-Phala Varga (Fruits) -19 fruits
Harita varga ( Raw vegetables) -7 vegetables
Copyright@ Bhishma Kukreti
Plant Classification in Charaka Samhita to be continued …

Bhishma Kukreti

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Taking help from all is duty of a CEO and being egoless

Guidlines for Chief Executive Officers (CEO) series – 77
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)
 
By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant) 

     यद्यप्यल्पतरं तदप्येकेन दुष्करम्    I
पुरुषेणा सहाये किमु राज्यं  महोदयम्  II 2.1II
सर्वविद्यासु कुशलो नृपो ह्यपि सुमंत्रवित् I
  मंत्रिभिस्तु विना मंत्रं नैकोअर्थ चिंतयेत्वक्वचित्  II 2 .2 II (Shukra Niti Yuvrajadi Lakshan 2. 1, 2)
Translation:-
 The man cannot complete a smallest work without the help of others. It mean that  it is just impossible to perform the duties of king without taking cooperation and help. It means the perfect king takes help of ministers or should never decide anything without consultation of ministers.
(Shukra Niti Yuvrajadi Lakshan 2. 1)
 CEO must seek cooperation from all subordinates and associates
  The perfect leader is who is expert in taking help or cooperation from subordinates and associates as well. 
  The CEO should consult his best team leaders before taking decision for long tern effects.
  The CEO who knows to take cooperation is the real charismatic leader.
The leader who does not feel embarrassment in taking /asking hep is always a successful leader.
Asking help means diminishing down the unnecessary ego.
For getting help, a person should be egoless .Having ego, the person cannot get help or don’t ask help from others.
  In Hindu Religion there is good teaching for taking help from others. In Yagnopvit Ritual, the by has to go for begging from aunts, sisters etc. This is the best way to train diminishing ego and getting help. In Jainism too there are rituals for children to learn diminishing egos for getting help from others.
References   
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 66 
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020


Bhishma Kukreti

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Crowning of Narendra Shah as Tehri King

History of Tehri King Narendra Shah -1
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 193   
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1440   
   
  By:   Bhishma Kukreti (History Student)

  Narendra Shah was born on 3rd August 1898  in Pratap Nagar.   Narendra Shah was first son of Kirti Shah by queen Nepalan. Surendra Singh the Second son of Kirti Shah was by Bishtayani an official mistress of the King.
  Narendra Shah was of 15 years when Kirti Shah expired on 25th April 1913. Narendra Shah had only primary education by that time.  It was decided that Narendra Shah should be sent to Ajmer school and when he became adult he would be given charge for ruling.  After crowing ceremony, Narendra Shah was sent to Ajmer for further education. 
The elders decided to create a Guardian Council (Sanrakhshan Samiti ) for  administrating the Kingdom.  Queen Guleria (grandmother of Narendra Shah) had experience of ruling through Sanrakshan Samiti. She was alive at that time.  It was decided that Let Nepalan queen be the chairperson of Sanrakshan Samiti.  Howeer, she became ill and could not  continue her duty for long.
  In that situation, as per advice by Kumaon Commissioner, British Government sent Shamiyer as Chairperson of Sanrakshan Samiti for Tehri Garhwal. He worked in Tihri up to 1917. Then Mure was sent to Tihri as Chairperson of Samiti. Mure  an ICS officer who   worked till Narendra Shah  took the charge .
   Diwan Harikrishna Raturi was appointed as second member of the Sanrakshan Samiti.  Bhavani Datt Uniyal was appointed as member and later on promoted as secretary of the Samiti.
 Sanrakshan Samiti administrated the princely state from 8th may 1913 n to 4th October 1919.   
References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 1
Copyright@ Bhishma Kukreti

Bhishma Kukreti

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    कंडारगढ़ी (चंद्रपुरी) में महेशानन्द  गैरोला की तिबारी  में काष्ठ कला

कंडारगढ़ी  (चंद्रपुरी , उखीमठ ) में महेशानन्द  गैरोला की तिबारी  स्तम्भों/सिंगाड़ों  में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ अंकन , नक्कासी   -   152
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती

   रुद्रप्रयाग गढ़वाल क्षेत्र में तिबारियों  के लिए सबसे समृद्ध क्षेत्र  है. इस क्षेत्र में तिबारी को तिबार नाम से पुकारा जाता है।   प्रसिद्ध नाट्य शिल्पी   डा राकेश भट्ट ने  रुद्रप्रयाग की कुछ तिबारियों व मंदिरों की सूचना भेजी हैं जो काष्ठ कला हेतु नायब उदाहरण हैं।  आज इसी क्रम में  कंडारागढी ( कंडारा।, चंद्रपुरी , ुख्यमठ ब्लॉक ) रुद्रप्रायग  में महेशानन्द  गैरोला की तिबारी के स्तम्भों में काष्ठ कला अंकन की चर्चा होगी व विवेचना  की जाएगी कि  किस प्रकार का अलंकरण इन स्तम्भों में है। 
कंडारागढ़ी   (चंद्रपुरी , कंडारा , उखीमठ ) में   महेशा नन्द  गैरोला की तिबारी  मकान के पहली मंजिल में स्थित है व लकड़ी के छज्जे /स्लीपर में टिके  हैं।  संरचना बताती है कि तिबारी में नक्कासीदार चार स्तम्भ /सिंगाड़  (Column ) हैं जो तीन खोली /ख्वाळ /द्वार बनाते हैं।  स्तम्भ छज्जे के ऊपर पत्थर के चौकोर डौळ ऊपर स्थित हैं जहां पर अधोगामी  पद्म पुष्प दल  (उल्टा  कमल पुष्प ) आधार पर कुम्भी ( घड़ा या पथोड़ /दबल आकर ) आकृति बनता है।  कुम्भी /पथोड़ /पथ्वड़  के ऊपर लकड़ी का ड्यूल  ( Wood Ring  plate ) है व ड्यूल के ऊपर उर्घ्वगामी  कमल दल  है जहां पर यह आकार समाप्त होता है , स्तम्भ /सिंगाड़  की गोलई कम होती जाती है। व शाफ़्ट कड़ी बनता जाता है (shaft of  Column )  जहां पर सिंगाड़ /स्तम्भ की सबसे कम गोलाई है वहां पर उल्टा कमल दल है जिसके ऊपर ड्यूल है व फिर सीधा खिला  कमल फूल है  . कमल पंखुड़ियों (पद्म पुष्प दल ) में व कड़ी में पत्तीदार  (जैसे फर्न पत्तियां हों ) .  फर्न पत्ती अंकन बड़ी  बारीकी से हुआ हाइवा कलाकार की प्रशंसा आवश्यक हो जाती है। खान पर ऊपरी कमल दल की पंखुडिया खिली हैं  वहां से ऊपर की  ओर  सिंगाड़  थांत (bat blade type ) में बदल जाता है व यह थांत   मुरिन्ड  /शीर्ष / abacus से मिलता है।  यहीं से स्तम्भ / सिंगाड़  से मेहराब की छाप भी निकलती हैं व दूसरे  स्तम्भ की चाप से मिलकर पोर्न मेहराब बनता  है।   मेहराब की आंतरिक पटल  के छापें नुकीले हैं।  थांत व मेहराब में   फर्न पत्तियों का अंकन हुआ है।  थांत  में ज्यामितीय कला का भी अंकन हुआ है।
पहली मंजिल क इक कमरे के दरवाजों के सिंगाड़ों  में ज्यामितीय व प्राकृतिक  अलंकारों का अंकन हुआ  है।
 निष्कर्ष निकलता है कि  कंडारागढ़ी  ( कंडारा , चंद्रपुरी ) में महेशानन्द  गैरोला की तिबारी  स्तम्भों/सिंगाड़ों  की    जो भी    कसूचना मिली है उनमे प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकराओं का    अंकन ं प्रभावशाली ढंग से हुआ है।   
सूचना व फोटो आभार : प्रसिद्ध नाट्य शिल्पी डा राकेश भट्ट
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
  Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020 
 Traditional House wood Carving Art of  Kandargarh , Chandrapiuri Ukhimath Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्कासी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्कासी  , खिड़कियों में नक्कासी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्कासी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्कासी ,  स्तम्भों  में नक्कासी     , कंडारा गढ़ी  (चंद्रपुरी ) में महेशानन्द  गैरोला की तिबारी  स्तम्भों/सिंगाड़ों  में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी


Bhishma Kukreti

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खमण  ( द्वारीखाल पौड़ी  गढ़वाल ) में  राम प्रसाद कुकरेती की निमदारी में काष्ठ कला  ( Wood Railing  in  Balcony  ) , अलंकरण , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन,  नक्कासी  -  150
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 खमण तिबारियों , निमदारी  ( जंगलेदार मकान Wood Railing  in  Balcony  ) , के मामले में समृद्ध गाँव है।  आज  राम प्रसाद कुकरेती की निमदारी  ( Wood Railing  in  Balcony  ) , की चर्चा होगी।  मकान  दुखंड /तिभित्या  व ढैपुर   (1  + 1  + 1 /2 ) शैली का है।  निमदारी (wooden railing  in  balcony ) पहली मंजिल पर  स्थापित है।  खमण के राम प्रसाद कुकरेती  की निम दारी  (wooden railing  in  balcony  ) में चौदह स्तम्भ कसे गए है जो कंक्रीट के छज्जे पर स्थापित है।  स्तम्भ बिलकुल सपाट हैं व  ज्यामितीय अलंकरण हुआ है। स्तम्भों के मध्य ढाई फ़ीट की उंचाईमे धातु जाली की रेलिंग लगी है। कोई विशेष काष्ठ कला के दर्शन इस निमदारी में नहीं होते हैं।
 निष्कर्ष निकलता है कि कला व अलंकरण दृष्टि   से खमण  में राम प्रसाद कुकरेती की  निम दारी  (wooden railing  in  balcony  ) साधारण हैं किन्तु अपने समय में रामप्रसाद कुकरेती की  निम दारी  (wooden railing  in  balcony  )  की डबरालस्यूं में एक पहचान थी  गाँव व राम प्रसाद कुकरेती परिवार वालों के लिए एक शान थी।  खमण के कई सामाजिक  कार्यों  में राम प्रसाद कुकरेती की  निम दारी  (wooden railing  in  balcony  ) काम आती थी। 

सूचना व फोटो आभार : बिमल कुकरेती , खमण
यह लेख  भवन  कला,  नक्कासी संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:   वस्तुस्थिति में अंतर      हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों  ,खोली , कोटि बनाल  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण,  नक्कासी  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,  बाखली , खोली, कोटि बनाल   ) काष्ठ अंकन लोक कला , नक्स , नक्कासी )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , नक्कासी  , हिमालय की  भवन काष्ठ कला  नक्कासी , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्कासी , नक्स , नक्कासी 

Bhishma Kukreti

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  नावदा  (देहरादून ) में   पुराणी धर्मशाला  की   निमदारी में काष्ठ कला ,  अलंकरण , नक्कासी 

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाली , कोटि बनाल , खोली , मोरी    ) में  काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण, नक्कासी    -  151
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Dehradun , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 जब यह लेखक पहले पहल 1965   में देहरादून  गया तो निमदारी जैसे  वाली शैली  शायद भोगपुर , डोईवाला अदि में देखा होगा।  देहरादून शहर में  निमदारी  या जंगलेदार  शैली के मकान निर्मित होने बंद हो गए थे।  फेसबुक मित्र विजय  भट्ट  ने  नवादा गांव के अतीत इतिहास  साथ यह  फोटो  भेजी।  विजय भट्ट अनुसार नवादा बहुत पुराना गाँव है  व गाँव का संबंध रानी कर्णावती  (नाक  कटी , )से है , . कभी नवादा 1750 - 80  तक देहरादून का  मुख्यलय भी था।   नवादा में  . यहां एक प्राचीन शिव मंदिर  भी है जिसकेलिए यह धर्मशाला बनी थी आज तकरीबन उजाड़ ही है। 
धर्मशाला की संरचना देखते कहा जा सकता है धर्मशाला का यह भवन /निमदारी  1955 -60  के मध्य ही निर्मित हुआ होगा जब तक देहरादून वासियों पर गढ़वाल  स्थापीय शैली का प्रभाव रहा होगा।  मकान कंक्रीट का है ,
छत चद्दर की है व आधुनिक है बस निमदारी  संरचना पर पर गढ़वाली प्रभाव है।  पहली मंजिल पर निम दारी स्थापित है।  निमदारी  में  छह स्तम्भ है व कंक्रीट की छोटी दीवार पर आधारित एक कड़ी पर टिके हैं।  स्तम्भ सपाट हैं। व ऊपर मुरिन्ड की कड़ी भी कला दृष्टि से सपाट है।  भवन में कमरों के ध्वजों , खड़कियों के दरवाजों पर ज्यामितीय खुदाई ही हुयी है।  , कोई  बेल बूटों , पशु पक्षियों की कोई नकासी प्रस्तुत नवादा की धर्मशाला में नहीं मिली।
 नवादा   मंदिर धर्मशाला  का यह भवन वास्तव  में देरादून वाश्तु शैली परिवर्तन का गवाह है व आगे आने वाले दिनों में जब देहरादून के वास्तु /स्थाप्य  इतिहास लिखा जायेगा तो  अवश्य ही नवादा धर्मशाला की निम दारी  कड़ी साबित होगी। 
सूचना व

 

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