देवलसारी (जौनपुर, टिहरी गढ़वाल ) के श्री कोणेशवर महादेव मंदिर में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, जंगलेदार निमदारी , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्कासी ) -153
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संकलन - भीष्म कुकरेती
देवलसारी मसूरी पुजालटी (जौनपुर टिहरी गढ़वाल ) गांव के ट्रैक में देवदारु वन के बीच में स्थित है। कहा तो जाता है कि मंदिर 1600 ईश्वी में निर्मीय हुआ किन्तु अधिसंख्यों की राय है 1800 ईश्वी में ही निर्मित हुआ होगा। कुछ साल पहले मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया।
सम्भवतया पहले श्री कोणेश्वर देवालय की दीवारें भी जौनसार , रवाईं देवालयों की भांति लकड़ी की ही रही होंगी। यदि गहरे से चिंतन किया जाय तो गढ़वाल , कुमाऊं , जौनसार के सभी मंदिर घर जैसे ही थे हर गांव का लोक मंदिर छोटे मौलिक रूप में थे। आधुनिकता व पैसे की छळ बळाट व मैदानी चकाचौंध से लोगों ने मैदानी शैली अपनाकर मंदिरों की मौलिकता ही चम्पत करवा दी है । देवलसारी का सीधा अर्थ है बल देवों के पुंगड़ या देव खेत क्षेत्र। यहीं कम से कम २०० साल पुराण 3 पुर श्री कोणेश्वर महादेव मंदिर है। कहा जाता है बल इस मंदिर की मौलिक दीवारें भी लकड़ी की थीं जो अब कंक्रीट की हो गयी हैं। बाकी देवलसारी के 3 पुर देवालय के द्वार , छत लकड़ी की हैं और अपने मौलिक रूप में हैं।
देवलसारी के श्री कोणेश्वर मंदिर तक पंहुचने के लिए दसेक सीढ़ियां है और मंदिर मजबूत नींव पर टिका है। तिपुर नुमा देवलसारी के श्री कोणेश्वर महादेव मंदिर में लकड़ी की नक्कासी विवेचना हेतु दो बिंदुओं पर सघन ध्यान देना होगा -पहला मंदिर के द्वार पर काष्ठ कला , अलंकरण अंकन या नक्कासी व दूसरा लकड़ी की छतों में यदि कलाकृति है तो।
छतों के आकार व शैली से स्वतः ही अनुमान लगता है कि देवलसारी के महादेव मंदिर पर रवांई , नेलंग या लद्दाख क्षेत्र के बौद्ध स्थाप्य कला का पूरा प्रभाव है जैसे सुंगडा हिमाचल के महेश्वर मंदिर की छत पर बुद्ध मंदिरों का पूरा प्रभाव दीखता है वैसे ही देवलसारी के श्री कोणेश्वर मंदिर की छत पर बौद्ध मंदिर छत शैली का पूरा प्रभाव है। तीन मंजिल की प्रत्येक छत का रूप पिरामिड जैसे है यही नहीं पूरा आकार भी पिरामिड का ही रूप दीखता है याने ' बैठवा तिरभुज ' . सबसे ऊपर के पिरामिडीय काष्ठ आकृति के ऊपर देव प्रतीक हुक्के की नली या पर्या जैसे नक्कासी है -घट , ड्यूल व तुमड़ नुमा आकृति . तीनों मंजिलों की छतें लकड़ी की सपाट लम्बे पटलों से बने हैं। तीनों अलग अलग पिरामिड आकृति आकर्षक है व उस समय के प्लानर /डिजायनर को सभी नमन करेंगे ऐसी आकृति के बारें डिजायन बनाने व उसे डिजायन को मूर्त रूप देने हेतु . पुनः नमन .
देवलसारी के श्री कोणेश्वर महादेव मंदिर के खोली /प्रवेश द्वार में भी सुंदर काष्ठ अलंकरण अंकन हुआ है। प्रवेश द्वार में लकड़ी की नक्कासी की प्रशंसा होनी ही चाहिए।
काष्ठ कला दृष्टि से प्रवेश द्वार (खोली ) के स्तम्भ /सिंगाड़ गढ़वाल के आम तिबारियों या खोलियों की स्तम्भ /सिंगाड़ जैसे ही हैं। सिंगाड़ की बनावट मजबूत है जो देवदारु की लकड़ी ही दे सकती है। सिंगाड़ /स्तम्भ का आधार चौकोर पर्या /बरोलळी जैसे है , जिसके ऊपर दो ड्यूल हैं व ड्यूल के ऊपर उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल (सीधा कमल फूल ) आकर अंकन हुआ है। इसके ऊपर स्तम्भ चौकोर कड़ी का रूप ले मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष फलक से मिल जाता है।
देवलसारी के श्री कोणेश्वर महादेव मंदिर के खोली /प्रवेश द्वार के दरवाजों पर भी काष्ठ कला अंकन दर्शन होते हैं। दरवाजों पर यद्यपि ज्यामितीय कटान हुआ है किन्तु पट्टों पर प्रतीकात्मक आकृतियां खुदी है , दरवाजों पर बाहर भीतर झाँकने हेतु खोळ /ढड्यार भी हैं।
निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पिरामिड शक्ल लिए देवलसारी (टिहरी गढ़वाल ) के श्रीकोणेश्वर महादेव मंदिर में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय मिश्रण हुआ है व मंदिर के तीनों पिरामिडीय आकृति की छतें तो मन लुभानवी हैं व सबसे अधिक याद रहने वाली आकृतियां हैं।
सूचना व फोटो आभार :हर्ष डबराल व मित्र
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