Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1103337 times)

Bhishma Kukreti

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केदारनाथ -बद्रीनाथ   ट्रैक  सड़क पर  कांचुला  खरक के   रेस्ट हाउस  में काष्ठ   कला, अलंकरण  अंकन , लकड़ी पर नक्कासी

ढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   - 169

(अलंकरण व कला पर केंद्रित ) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
-
  चमोली गढ़वाल के  गोपेश्वर  मंडल में कांचुला खरक  क्षेत्र  अपने वन्य जीवियों   विश्व प्रसिद्ध  क्षेत्र है।  केदनरनाथ -बद्रीनाथ ट्रेक ( साहसिक आनंद हेतु पैदल सड़क )  में कांचुला क्षेत्र में यात्रियों हेतु एक रेस्ट  हाउस  भी यहाँ स्थापित है जिसकी  फोटो व सूचना किशोर रावत  से साभार मिली।  इस भवन की मुख्य विशेषता है कि  छत को छोड़ बाकी हिस्से  का अधिकतर हिस्सा लकड़ी से निर्मित है व बहुत ही आकर्षक है।   मकान को देखकर बरबस  ब्रिटिश जमाने में जंगलों के बीच  फारेस्ट गार्ड चौकी मकान की याद आ जाती है।  यह भवन ब्रिटिश शैली व गढ़वाली शैली का मिला जुला रूप है। 
मकान उबर (केवल तल मंजिल ) शैली का है व अंदर हॉल , बेड  रूम आधुनिक  सुविधाएँ हैं।  शौचालाय भी बाहर है व अभिनव शैली का है।  खम्बों में ज्यामितीय कटान  हुआ है और खड्डा -उभार शैली आकर्षण पैदा करने में सक्षम है।  बरामदे के आधार पर कटघरा /जंगल े है व दो रेलिंग के मध्य जंगले  हैं।
मकान के बाहर दो मुख्य चौकोर बरामदे हैं जिनकी घेराबंदी चार चार खड़े स्तम्भ करते हैं।  स्तम्भ सीधे सपाट  हैं तथा  खम्बों में ज्यामितीय कटान  हुआ है और खड्डा -उभार शैली आकर्षण पैदा करने में सक्षम है।  बरामदे के आधार पर कटघरा /जंगला  है व दो रेलिंग के मध्य जंगल हैं।  कमरों के दरवाजों में सिंगाड़ /फ्रेम  पर भी ज्यामितीय कला उपयोग हुआ है।  मकान को सबसे अधिक आकर्षक बनाने में दीवारों पर समानांतर (पड़े रूप में ) काष्ठ पट्टिकाों के उपयोग से हुआ है।  ये पट्टिकाएं ही रेस्ट  हॉउस  की सुंदरता का  विशेष कारण है।  छत के नीचे तिकोने स्थान  में भी खड़ी पट्टिकाओं का प्रयोग हुआ  है।  शौचालाय की दीवारों में भी पड़ी पट्टिकाओं का प्रयोग हुआ है।
मकान में प्राकृतिक व मानवीय अ लंकरण नहीं हुआ है केवल ज्यामितीय कटान से ही मकान को आकर्षक बना दिया व थका यात्री को भवन की  सुंदरता  देखकर ही राहत पंहुच जायेगी ।   ज्यामितीय कटान से भी  आकर्षक भवन निर्मित हो सकते हैं इसका उदाहरण है कांचुला के खरक  का यह रेस्ट हाउस।   भवन निर्माण में  'गढ़वाली लखड़ कटण ब्यूंत  ' तकनीक व 'गढ़वाली काठ चिरण  ब्यूंत ' तकनीक का ही उपयोग हुआ है।   

सूचना व फोटो आभार : किशोर रावत 

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी श्रुति     माध्यम से  मिलती है अत:  वस्तुस्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्कासी श्रंखला जारी   
   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ;  गोपेश्वर में  भवन काष्ठ कला, नीति में भवन काष्ठ  कला, नक्कासी   ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  , केदारनाथ -बद्रीनाथ मार्ग में रेस्ट हाउस में काष्ठ कला , कांचुला खरक में रेस्ट हाउस में लकड़ी नक्कासी ,  House Wood Carving Ornamentation in rest house of Badrinath Kedarnath track ;  House Wood Carving Ornamentation in a rest house of Kachula Kharak

Bhishma Kukreti

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   कोलसी (यमकेश्वर ) के  एक भवन की तिबारी में काष्ठ कला,  अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , बखाई ,  खोली  ,   कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   - 179

 संकलन -भीष्म कुकरेती

कोलसी  , यमकेश्वर ब्लॉक में बड्यूण, ग्वाड़ी ,  कस्याळी , पहरीसार  के  निकटवर्ती महत्वपूर्ण गाँव है।  कोलसी  से भी कुछ तिबारियों व निमदारियों की सूचना मिलीं हैं विस्तृत सूचनाएं मिलने के बाद उन सभी पर एक एक कर चर्चा की  जाएगी। 
आज कोलसी  की एक तिबारी  में काष्ठ  कला पर चर्चा होगी।  तिबारी आम उदयपुर , ढांगू     की भांति  दुपुर , दुघर /दुखंड  मकान के पहली  मंजिल पर  स्थापित है।  तिबारी दो कमरों से बने बरामदे के बार काष्ठ स्तम्भों से निर्मित है।  कोलसि की  यह तिबारी  चार स्तम्भों से बनी है जो तीन ख्वाळ /खोली बनाते हैं।  तिबारी में तीन  नक्कासीयुक्त मेहराब भी है।
 प्रत्येक स्तम्भ पत्थर की देळी /दहलीज /thershold   के ऊपर  स्थापित हैं व किनारे के स्तम्भ दीवार से एक एक बेल बूटों से अंकित कड़ी के मार्फत जुड़े हैं।  स्तम्भ का आधार  पर एक पत्थर का  गोल डौळ है , फिर स्तम्भ का काष्ठ  आधार कुम्भी नुमा है जो  अधोगामी पद्म पुष्प दलों से निर्मित है।   उल्टे  कमल पुष्प के ुप्त एक ड्यूल (ring type wood plate ) है जिसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल  है , यहां से स्तम्भ लौकीनुमा हो जाता है।  जहां पर स्तम्भ की सबसे कम गोलाई है वहां पर एक    उल्टा कमल फूल है फिर ड्यूल है व उसके ऊपर  सीधा खिला कमल फूल है।   सभी  नीचे व ऊपर के कमल पंखुड़ियों  के ऊपर  बेल बूटों  की नक्कासी हुयी है।  ऊपरी कमल दल में कुछ अलग किस्म का अंकन हुआ है।   जहां पर ऊपर कमल फूल है वहां  से स्तम्भ दो भागों में बंट जाता  है।  सीधा भाग थांत  (crikcet bat blade  जैसे  ) शक्ल  अख्तियार करता है व ऊपर शीर्ष /मुरिन्ड कड़ी से मिल जाता है।  थांत के दोनों तरफ  नक्कासी युक्त लघु स्तम्भ हैं।  जहां से स्तम्भ थांत रूप धारण करता है वहीँ से कई परतों वालाे  मेहराब की अर्ध चाप भी शुरू होती है।  मेहराब दो स्तम्भों के ऊपरी भाग  की मध्य में में स्थापित है।  मेहराब का कटान तिपत्ति (trefoli ) नुमा है।  मेहराब में  चार परते हैं व बाहर दो त्रिभुज हैं।  दोनों त्रिभुजों के किनारे  बहुदलीय पुष्प (लगभग सूरजमुखी जैसे )  अंकित है जिसके  बाहर चिड़िया अंकित है।
तिबारी के अंदर कम के मुरिन्ड में देव प्रतीक आकृति स्थापित है।
 तिबारी का मुरिन्ड /मथिण्ड  चार  तहों (बारीक़ कड़ियों ) से निर्मित है व प्रत्येक कड़ी में प्राकृतिक अलंकरण अंकन हुआ है।
     निष्कर्ष निकलता है कि  यमकेश्वर  ब्लॉक में  कोलसी गाँव की इस प्रतिनिधि तिबारी में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरणों का अंकन हुआ है।  यमकेश्वर ब्लॉक के कोलसी की यह तिबारी भव्य थी में कोई  संशय नहीं होनी चाहिए। 
सूचना व फोटो आभार: जग प्रसिद्ध संस्कृति फोटोग्राफर  बिक्रम तिवारी
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   श्रृंखला
  यमकेशर गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  ;लैंड्सडाउन  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;दुगड्डा  गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ; धुमाकोट गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला ,   नक्कासी ;  पौड़ी गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;
  कोटद्वार , गढ़वाल में तिबारी , निम दारी , जंगलेदार  मकान , बाखली में काष्ठ कला , नक्कासी ;  House Wood art in a Tibari in Kolsi , Ymakeshwar


Bhishma Kukreti

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गंगोली हाट (पिथौरागढ़ ) में  गोपू बिष्ट परिवार  की  भव्य बाखली में काष्ठ कला अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला,  अलंकरण,  लकड़ी नक्कासी   - 180 

 संकलन - भीष्म कुकरेती

-   उत्तराखंड में पारम्परिक भवन   काष्ठ  कला गंगोलीहाट व आस पास पाताल  भुवनेश्वर क्षेत्र से कई भव्य भवनों , बाखलियों की  सूचना व फोटो मिली हैं।  ऐसी ही गंगोलीहाट  के एक  भव्य मकान , बाखली की सूचना फोटो सहित मिली है।  बाखली आकार में व कला में कुछ विशेष है इसमें दो राय नहीं होनी चाहिए।   
बिष्ट परिवार  की तिपुर  (तल +2  मंजिल )  बाखली निर्माण शैली बिलकुल  कुमाऊं की  विशिष्ठ भवन  निर्माण शैली बाखली अनुसार ही है।   गोपू बिष्ट  की बाखली में काष्ठ कला विवेचना हेतु  निम्न बिंदुओं पर टक्क लगानी आवश्यक है -
1 - गोपू  बिष्ट परिवार की बाखली में तल मंजिल में  भंडारों या गौशाला के कमरों के द्वारों पर लकड़ी नक्कासी  -
  गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की बाखली में  तल मंजिल में  चार भण्डारो में बड़े बड़े द्वार हैं और  सपाट हैं अर्थात कोई विशेष काष्ठ अंकन नहीं हुआ  है।
2 -   गोपू  बिष्ट परिवार की बाखली में  लघु झरोखे /खिड़की /मोरी /छाज में काष्ठ  कला व अलंकरण प्रायोजन -
  गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की बाखली में    कुल 12 लघु छाज /झरोखे /मोरी /खिड़की हैं व  सभी लघु  छाजों  का रूप आकार वा काष्ठ अंकन एक  जैसा ही है। लघु   छाज    चौखट का है व स्तम्भों व शीर्षों की  कटाई  ज्यामितीय ढंग से हुयी है याने ज्यामितीय अलंकरण वाले सिंगाड़ /स्तम्भ , मुरिन्ड /शीर्ष  व दरवाजे हैं।   लघु छाज के  दरवाजे में  अंडाकार छेद / ढुढयार  है।  लघु छाजों   की मुख्य विशेषता है कि  छाज के ऊपर अर्धवृत आकृति निर्मित है जिसमे बेल बूटों  की आकृति अंकन आभास हो रहा है।  लकड़ी के अंकित अर्ध वृत्त के ऊपर पाषाण अर्ध वृत्त है।
3  - गोपू  बिष्ट परिवार की बाखली में  बड़े ऊँचे झरोखों /छाजों  में काष्ठ  कला , अलंकरण अंकन  , नक्कासी -
  गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की तिपुर बाखली के पहली मंजिल में    कुल  बड़े   चार छाज हैं व उनके ठीक ऊपर  ही चार बड़े छाज / झरोखे हैं याने पहली मंजिल के छाज का मुरिन्ड /सर /शीर्ष  दूसरी मंजिल के बड़े छाज का आधार भी है।  इस भव्य बाखली के बड़े छज्जों के दो झरोखे या द्वार हैं।   झरोखे के किनारे , दीवार इ लगे  मोठे स्तम्भ युग्म लघु स्तम्भ  से निर्मित हैं तो   दोनों झरोंखों के मध्य का मोटा स्तम्भ तिर्गट (तीन मिलकर ) लघु स्तम्भों से बने हैं।  लघु स्तम्भों के आधार में बारीकी से उल्टा कमल , ड्यूल व सीधा (उर्घ्वगामी ) कमल फूलों का अंकन है व फिर यहाँ से  स्तम्भ सीधे हो मुरिन्ड /शीर्ष  जाते हैं।  प्रत्येक स्तम्भ मुरिन्ड /सर /शीर्ष का एक तह /स्तर बनाता है।  झरोखों के नीचे एक एक आयात आकृति में  की काल्पनिक /प्राटीकात्मक या प्राकृतिक अलंकरण अंकित हुआ है व बारीकी से नक्कासी हुयी है।
 बाखली के ऊपरी मंजिल या दूसरे मंजिल के बड़े छज्जों में दो झरोखों के  मध्य स्तम्भों में ऊर्घ्वाकर कमल फूल से ऊपर शीर्ष/ मुरिन्ड तक  दैव आकृति अंकिं हुयी है। 
4 - गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की बाखली में  तल मंजिल से  ऊपर  पहली मंजिल तक  की दो खोलियों   (मुख्य प्रवेश द्वार में काष्ठ कला , काष्ठ अलंकरण अंकन , लकड़ी पर नक्कासी।
  गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की बाखली में    दो खोलियाँ  (ऊपर मजिल जाने हेतु मुख्य प्रवेश द्वार ) स्थापित हुयी हैं।  दोनों खोलियों  में  किनारों पर दो मुख्य स्तम्भ  हैं। प्रत्येक मुख्य   स्तम्भ  तिरगट  लघु स्तम्भों से मिलकर बना है व ऊपर  स्तम्भों की लकीरे ही  मुरिन्ड के तह  बनाते हैं जैसे बड़े  छाजों में है।  एक खोली के ऊपर अर्ध वृत्त है जैसे लघु  झरोखों के ऊपर है व इस काठ के अर्ध वृत्त में जाली व चौखट आकार अंकन हुआ है  . इस अर्ध वृत्त के ऊपर पाषाण अर्ध वृत्त यही। लकड़ी के अर्ध वृत्त में देव आकृति फिट है।  दूसरी खोली के मुरिन्ड ऊपर चौखटाकार की आकृतियां अंकित है जो ज्यामितीय कटान से सम्भव हुआ है।  यहाँ एक देव आकृति भी फिट हुयी है ।
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की  भव्य व शानदार बाखली में  प्राकृतिक , ज्यामितीय ही नहीं  मानवीय  प्रतीकात्मक  अलंकरण अंकन हुआ है व नक्कासी  में  बारीकी व उत्कृष्टता साफ़ झलकती है।  निर्माण व कला दृष्टि से गंगोलीहाट के  गोपू बिष्ट  परिवार की बाखली  उत्कृष्ट वर्ग की बाखली है। 

सूचना व फोटो आभार : पंकज महर व गोपू बिष्ट
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्कासी;  House wood art in Pithoragarh

Bhishma Kukreti

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Abolition of Kuli Begar and New transport management in Narendra Shah period

History of Tehri King Narendra Shah -20
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 212     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1459

By: Bhishma Kukreti (History Student)

      Abolition of Kuli Begar in Tehri Garhwal:
  Inspired from British government abolishing Kuli Begar ( free loaders and free food from villager sides for Officers visiting village) system, Narendra  Shah announced abolishing Kuli Begar custom in Tehri Kingdom too in 1921. However, the Kuli Begar continued in Tehri till the death of Narendra shah. Patwaris were forcing villagers for offering free loading, lodging and boarding for government officers visiting the villages (2). Tehri Government published abolition of Kuli Begar in Tehri Gazette on 13th October 1941 only.
 Creating Transport department –
 Narendra Shah created Transport department.   The new construction works started from Pratap Shah Time and increased in Kirti Shah and Narendra Shah period.  For new construction works, there was need of mules for transporting iron rods, tin plates, cement and other house or construction materials from one place to others. Tehri kingdom used to hire labour and mules, horses. Pratap Shah and Kirti Shah paid attention for raising mules and horses for such works. Narendra Shah fixed daily wages for labours, mules - horses and reinforces new management for Transportation. Narendra Shah also arranged transport management for road repairing and new motor roads construction. (3)
References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 19
2-Karmabhumi Kotdwara, 15-3-1942
3- Daurgadatti , Narendravanshkavyam p 183 
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Bhishma Kukreti

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Grasses and Weeds mentioned in Sutras of Ashtadhyayi

Plant Science in Panini’s Ashtadhyayi 4
BOTANY History of Indian Subcontinent –118   

Information Compiler: Bhishma Kukreti   

  Dabral stated the plants, grasses of Uttarakhand including Saharanpur mentioned in Panini’s Ashtadhyayi referring  Panini ka Bharatwarsha (1 and 2)).
 The sutras of Panini’s Ashtadhyayi (II, 4, 12) mentions following grasses and weeds (3)-
Name in Ashtadhyayi   --------   Sutra No. -------------Botanical name
Kasa ----------------------------  IV 2, 80 -------------- Saccharum sponteneum
Kusa ----------------------------- V 3, 105---------------Poa cynosuroidus
Munja ----------------------------III , 1,117 ------  ---Saccharum munja
Sara ------------------------------- VIII 4.5 -------------Saccharum arundinaceum
Vetasa ------------------------------IV2,87 ------------ Calamus rotang
References
1-Dabral, Shiv Prasad, 1969, Uttarakhand ka Itihas Bhag -2, Veer Gatha press Dogadda pp 150
2- Dabral, Shiv Prasad 1992, Kuninda Janapad  Veer Gatha press Dogadda
3-Agarawala, V.S, Ancient Indian Flora in Ashtadhyayi of Panini, Palaeobotanist (1952) 1:61-65
4- Vasudev Sharan Agarawala , Panini Kalin Bhartavarsha  (Digitalized book free down load )
5-Agarwal, Ashwini Kumar , Ashtadhyayi of Panini complete

Copyright @ Bhishma Kukreti, //2020

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Narendra Shah establishing new Town Narendra Nagar

History of Tehri King Narendra Shah -21
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 213     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1460 
By: Bhishma Kukreti (History Student)
  King Narendra had ample assets to spend as compared to his predecessors. Narendra Shah decided for establishing a new Township where modern amenities and facilities would be  available as Motor road, new modern houses, electricity  etc.  There were towns as Tehri, Pratap Nagar, Kirti Nagar but it was difficult to construct motor road. Narendra Shah recognized Urhthali place for developing new Township in .Urhthali. Urhthali was just ten miles away from Rishikesh   and it was easy for constructing motor road from Rishikesh to Urhthali having height of 5000 feet. He named the town on his own name Narendra Nagar.   The work for new township development started from 1921 and continued for ten years (1).
 Narendra Shah started Sahashtra Chandi Path a ritual performance in November 1921 as starting ritual for establishing Narendra Nagar.  Jaya Datt Daurgadatti was chief priests for the ritual. Narendra Shah invited  many well acknowledged Karmakandi Brahmins from both the Garhwal for  Chandi Sahashtra Path .Daurgadatti mentioned following priests attending the Chandi  Path and following priests performed the ritual of Chandi i path –
Harinanad Ghildiyal, Sadanand Nautiyal, Kashivisheshwar Ghiliyal, Jagannath Pant, Medniidhar Dangwal,  Bhola Datt Shastri, Satya Prasad Bahuguna,  Medhakar Maithani, Govindram Uniyal, Visheshwarnanad Pande, vamdev Ghildiyal, Lalita Prasad Uniyal, Janhavi Prasad, Siddha Nand , Radhalrishna Maithani, Narayan Datt, Kishor Chnadra , Yongendra Krishna Daurgidatta , Mitra Nand pant, Gangaram naithani (2).  Duputy Collector Bhairav Datt Painyuli and Shriram Painyuli were chief managers.
 In 1924, Narendra Shah returned from England tour and he performed home entry ritual for New palace and from that day, King and King family members started living in the palace. The construction of secretirate and other government buildings work continued till 13th January September1942. The work of Holy Hospital in Narendra Nagar was completed by 1925. There were shops,  houses for government employees  wre also built in Narendra Nagar.  The total expenses was Rs, 30 lakhs  for establishing  the new township. (2) 
References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 19
2- Daurgadatti , Narendravanshkavyam p 214-215 
Copyright@ Bhishma Kukreti

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Grasses and weeds in ‘Gana’ of Panini’s Ashtadhyayi

Plant Science in Panini’s Ashtadhyayi -5
BOTANY History of Indian Subcontinent –119 
Information Compiler: Bhishma Kukreti   
  Dr. Shiv Prasad Dabral the world famous Historian stated the plants, grasses of Uttarakhand including Saharanpur mentioned in Panini’s Ashtadhyayi referring Panini Kalin Bharatwarsha (1 and 2)).
  Apart in Sutras, Panini mentioned grasses and weeds in Gana division in his Ashtadhyayi (3).The following flora are mentioned in Gana of Panini’s Ashtadhyayi –
Sanskrit Name -----------Ref. Ashtadhyayi ---------Botanical name
Balvaja ------------------------IV 2, 80) ---------------Eleusine indica
Virana --------------------------IV 2, 80------------Andropogon  muricatus
Darbha ------------------    IV 3, 142------------Desmostachya bipinnata
Pudika --------------------II , 4, 11-------------Mimosa  pudika
References
1-Dabral, Shiv Prasad, 1969, Uttarakhand ka Itihas Bhag -2, Veer Gatha press Dogadda pp 150
2- Dabral, Shiv Prasad 1992, Kuninda Janapad  Veer Gatha press Dogadda
3-Agarawala, V.S, Ancient Indian Flora in Ashtadhyayi of Panini, Palaeobotanist (1952) 1:61-65
4- Vasudev Sharan Agarawala , Panini Kalin Bhartavarsha  (Digitalized book free down load )
5-Agarwal, Ashwini Kumar , Ashtadhyayi of Panini complete
Copyright @ Bhishma Kukreti, //2020

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Duties and Responsibilities of Chief Deputy and Secretary of Chief Executive Officer

Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 88
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   
By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)
 सत्यं वा यदि असत्यं   कार्यजातं ch यत्किल I
   सर्वेषां राजकृतेषु  प्रधानास्त  द्विचिंतयेत्  II 90
.........
.........
..सान्ग्रामिकश्च  कत्यस्ति  संभारस्तान्विचिंत्य च  I
 सचिवश्चापि तत्कार्य राज्ञे  सम्यग्    निवेदयेत  II 95II (Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 90-95 )
Translation the duties of chief deputy (Pradhan) of the King are –
 Analyses about truth and non -truth in administration
While the duties of the secretary are –
 That he gets knowledge on finger about elephants, horses, chariots, soldiers of infantry, strong camels, symbols of foreign languages, full knowledge of strategies, traveling employees, best employees, men having good knowledge of weapons and using them , and how many are available for state services , what is their present status, cavaliers and how many are suitable, war /weaponry items and the secretary  informing such information time to time to the King.
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 90-95 )


References -
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 74
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020
Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for Chief Executive Officers; Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for Managing Directors; Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for Chief Operating officers (CEO); Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for  General Mangers; Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for Chief Financial Officers (CFO) ; Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for Executive Directors ; Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for ; Refreshing Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for  CEO; Refreshing Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for COO ; Refreshing Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for CFO ; Refreshing Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for  Managers; Refreshing Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for  Executive Directors; Refreshing Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for MD ; Refreshing Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for Chairman ; Refreshing Guidelines  about duties of chief deputy and secretary for President

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  बासुलीसेरा   (अल्मोड़ा ) में  नंदन सिंह बनेशी परिवार की  बाखली  में काष्ठ कला , काष्ठ अलंकरण अंकन , नक्कासी [/color]

कुमाऊँ , गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी पर नक्कासी   - 181
(काष्ठ कला व अलंकरण पर केंद्रित )
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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अल्मोड़ा जनपद का द्वारहाट क्षेत्र समृद्ध क्षेत्र माना जाता है और द्वारहाट क्षेत्र से कई बाखलियों , भवनों की सूचना मिली है जो द्वारहाट की समृद्ध द्योतक हैं।  इसी क्रम में बासुलीसेरा के नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली नुमा  भवन की काष्ठ कला पर चर्चा होगी।  चूँकि फोटो भवन के एक ही भाग की मिली है तो इसे बाखली नुमा भवन नाम दिया है। 
भवन दुपुर (तल मंजिल +पहली मंजिल ) है व दुघर /दुखंड  (एक कमरा आगे व एक पीछे ) है।   बासुलीसेरा के नंदन सिंह बनेशी परिवार की बाखली  में काष्ठ कला मुख्यतया खोली व दो छाजों /झरोखों /मोरियों में ही मिलती है।  बाकी तल मंजिल  के दो कमरों व भवन की खिड़कियों में ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त अन्य कला दृष्टिगोचर नहीं होती है।
   --- बासुलीसेरा   (अल्मोड़ा ) में  नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली के खोली में काष्ठ कला -------
  बासुलीसेरा   (अल्मोड़ा ) में  नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली की खोली भी आम कुमाऊंनी बाखलियों की खोलियों की तरह ही तल मंजिल से शुरू हो पहली मंजिल तक है।  खोली की देहरी .दहलीज /देळी तक जाने हेतु तीन पाषाण सीढ़ियां है।   खोली के दोनों ओर  के सिंगाड़ /स्तम्भ  चार चार लघुस्तम्भों (चरगट छुट सिंगाड़  ) को मिलाकर निर्मित है।  आठों के आठों लघु स्तम्भ एक ही शैली व कला से निर्मित है।    याने  आठों स्तम्भों में समान  कला  सजी  है।   लघु स्तम्भ  के आधार में  अधोगामी पद्म पुष्प दल कुम्भी बनता है व उसके ऊपर ड्यूल  है  जिसके ऊपर  उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल है जिसके ऊपर ड्यूल है फिर उलटा छोटा कमल  फूल है व उसके ऊपर सीधा कमल फूल है।  यहां से प्रत्येक लघु स्तम्भ  सीधाी  कड़ी रूप ले ऊपर मुरिन्ड  की तह बनाते हैं।  तल मुरिन्ड   (शीर्ष ) में भी मेहराब है तो मथि (ऊपरी ) मुरिन्ड में भी मेहराब है व  दोनों मेहराब तिपत्ति शक्ल की हैं।  मथि मुरिन्ड (ऊपरी सिर ) में मेहराब के मध्य चौखट नुमा  क्षेत्र में  चार गणपति , तीन अन्य देव की आकृतियां स्थापित हैं व दो जंजीर से बंधा हाथी की आकृतियां हैं।   मानवीय अलंकरण का  महीन उत्कीर्णन  का  उत्तम उदाहरण नंदन सिंह बनेशी की बाखली भवन में  मिलता है।  इसी तरह स्तम्भों का सीधी कड़ी में बदलना व उनसे मेहराब के अर्ध चाप निकलना भी बारीकी का काम दर्शाता है।
-------बासुलीसेरा   (अल्मोड़ा ) में  नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली के झरोखों /छाजों में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन --------
  नंदन सिंह बनेशी की बाखली भाग में पहली मंजिल पर दो छाज /मोरी /झरोखे स्थापित हैं।   छाज के दोनों सिंगाड़ /स्तम्भ  तिरगट लघु स्तम्भों (तीन स्तम्भों का जोड़ ) को मिलाकर निर्मित हैं। तिरगट लघु स्तम्भ के आधार पर उल्टा कमल कुम्भी बनाता है फिर ड्यूल है फिर अधोगामी (उल्टा ) कमल फूल है उसके ऊपर ड्यूल है व फिर सुल्टा /उर्घ्वगामी कमल दल की आकृति उत्कीर्ण हुयी है व यहां से स्तम्भ सीकढ़ी कड़े बनता है फिर ऊपर  उलटे कमल दल , ड्यूल , कमल दल , सीधा कमल दल व फिर से स्तम्भ का कड़ी बनकर ऊपर मुरिन्ड /शीर्ष का स्तर /तह /layer  बन जाते हैं।  छहों  लघु स्तम्भों में एक जैसी ही काष्ठ  कला उत्कीर्ण हुयी है व सब कार्य बारीकी की नक्कासी का काम बखूबी से हुआ है।  नक्कासी में बारीकी
 के पुरे दर्शन होते हैं व शिल्प की  प्रशंसा हेतु प्रशंसा  शब्द अपने आप    मुंह पर आ जाते हैं। 
खिड़कियों के बड़े आकर से अनुमान लगता है कि मकान संभवतया 1950 के बाद निर्मित हुआ है अथवा  बाखली का जीर्णोंद्धार हुआ है। 
निष्कर्ष निकलता है कि  बासुलीसेरा   (अल्मोड़ा ) में  नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली में  ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (धार्मिक देव आकृतियां  व हाथी ) अलकनकरण अंकन हुआ है व महीन काम बखूबी हुआ है। 

सूचना व फोटो आभार : दीपक मेहता, द्वारहाट

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली, कोटि  बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; भिकयासैनण , अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;  रानीखेत   अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; भनोली   अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; सोमेश्वर  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; द्वारहाट  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; चखुटिया  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;  जैंती  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; सल्ट  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;


Bhishma Kukreti

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चम्पावत के भुतहा चर्च व मुक्ति कुटीर में काष्ठ  कला

चम्पावत के अति प्रसिद्ध भुतहा मकान मुक्ति कोठरी (एबोट चर्च ) में काष्ठ  कला अलंकरण, नक्कासी
  कुमाऊँ ,गढ़वाल,  हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी   -  182
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 चम्पावत  (कुमाऊं ) का एबोट चर्च भारत में भुतहा  स्थ्लों में से एक स्थल रूप में प्रसिद्ध है।  1900  सन  में निर्मित एबोट  चर्च में  1915  के लगभग  एक चिकित्सालय भी था जो तब   एबोट  चिकित्सालय की गिनती भारत में मुख्य चिकित्सालयों में होती थी।  चर्च के बगल में स्थापित  एक कोठरी थी जहाँ  1920  के लगभग डाक्टर मॉरिश अपने विशेष मरीजों का इलाज करते थे व  डा मोरिस के बारे में कई तरह के भ्रामक लोक कथाएं आज भी चम्पावत में ही नहीं भारत की ट्रैवेल पत्रिकाओं में भी तैरती हैं  . चूँकि इस श्रृंखला का उद्देश्य  भवन में काष्ठ कलाओं तक सीमित है तो एबोट चर्च , डा मोरिस   आधारित  लोक कथाएं किसी अन्य लेखक हेतु छोड़ दिए गएँ  हैं। 
मुक्ति कोठरी का निर्माण 1900  व  1915     के मध्य है और यह चर्च   कुमाऊं में वास्तु शिल्प के इतिहास के लिए भी महत्वपूर्ण होगा कि कैसे ईसाई समज के भवनों ने कुमाऊं के पारम्परिक भवनों की वास्तु व काष्ठ कला को प्रभावित किया। 
  प्रस्तुत एबोट चर्च की जो भी जानकारी , सूचनाएँ व फोटो  प्राप्त हैं उससे साफ़ पता चलता है कि  चर्च भवन ब्रिटिश चर्च शैली में  निर्मित हुआ है और कहीं भी  मध्य कुमाऊं  के बाखली शैली व कला  व सीमा के गाँवों जैसे गर्ब्यांग , कुटी या दुग्तू गाँवों के भवन शैली व कला का प्रभाव नहीं मिलता है।  ब्रिटिश लोगों को भारत की भवन शैली पसंद नहीं आयी व शायद उन्हें भारतीय या पराधीन समाज की हर संस्कृति निम्न स्तर की ही लगी।  एबोट चर्च में लकड़ी का काम कमरों के स्तम्भों व शीर्ष में ही दीखता है या मुक्ति कुटी के  बाहर छपरिका के नीचे  छह खम्भे हैं व कड़ियाँ हैं जो ज्यामितीय कटान से बनी हैं , मुक्ति   कुटीर के दोनों  दरवाजों में वानस्पतिक काष्ठ  कला दर्शनीय है व मुक्ति कुटीर की  यह  काष्ठ कला कुमाऊं  काष्ठ  कला पर ब्रिटिश प्रभाव समझने में काम आएगा। 
 प्रत्येक दरवाजे में तीन आयताकार चौखट हैं व प्रत्येक चौखट में   हवा में तैरते जैसे चार गुब्बारों  अंकन हुआ है व गुब्बारों के अंदर बेल बूटे  आभासी अंकन हुआ है।  बाकी सारे चर्च में लकड़ी  के काम में ज्यामितीय  कला ही प्रदर्शित हुयी है। 
निष्कर्ष निकक्लता है कि  सन  1900  में निर्मित चर्च व 1900 -1915  के मध्य मने चिकित्सालय व मुक्ति कुटीर में लकड़ी पर ज्यामितीय कटान काम हुआ है किन्तु मुक्ति कुटीर के दरवाजों पर ही  प्राकृतिक अलंकरण अंकन हुआ है। 
सूचना व फोटो आभार : संजय शेफर्ड
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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Bakhali House wood Carving Art in  Champawat Tehsil ,  Champawat, Uttarakhand;  Bakhali  House wood Carving Art in  Lohaghat Tehsil ,  Champawat, Uttarakhand;  Bakhali , House wood Carving Art in  Poornagiri Tehsil ,  Champawat, Uttarakhand;  Bakhali , House wood Carving Art in Pati Tehsil ,  Champawat, Uttarakhand;  चम्पावत , उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;  चम्पावत    तहसील , चम्पावत , उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला, नक्कासी ; लोहाघाट तहसील   चम्पावत , उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;    पूर्णगिरी तहसील ,    चम्पावत , उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;   पटी तहसील    चम्पावत , उत्तराखंड में भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;   


 

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