Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1103143 times)

Bhishma Kukreti

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मलारी  (चमोली गढवाल  ) के एक प्राचीन भवन (भग्न भवन )  में काष्ठ कला , अलंकरण, लकड़ी पर नक्कासी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   - 183
(अलंकरण व कला पर केंद्रित ) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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मलारी क्षेत्र सीमावर्ती गाँव के कारण ही नही ऐतिहासिक नर मुंडों के कारण जग प्रसिद्ध  क्षेत्र है I  मलारी गाँव में आज दो तीन प्रकार के भवन पाए जाने लगे हैं I आधुनिक बव्हं जो  स्वतन्त्रता के आस पास निर्मित मकान और प्राचीन शैली में निर्मित भवन Iमलारी के सभी प्रकार की शैल्यों की विवेचना की जायेगी I
  आज मलारी गाँव के एक प्राचीन (अति प्राचीन नही )  शैली में निर्मित भवन की काष्ठ कला , काष्ठ अलंकरण उत्कीर्णन पर विचार किया जाएगा I बर्फ गिरने वाले क्षेत्र , अत शीत क्षेत्र में लकड़ी के मकानों की एक प्रकार इ शैली नेलंग , जाडंग , मुन्सियारी , गमसाली व मलारी  गाँवों में कुछ कुछ मिलती जुलती है I
 मलारी के इस भवन का नाम मलारी भवन संख्या 1 दिया गया है . मलारी भवन संख्या 1 दुपुर मकान है I इसी भवन से बिलकुल सटा दूसरा मकान है जो कुमाऊं में बाखलियों की  याद दिला देता है I मलारी भवन संख्या 1 के तल मंजिल के बरामदे को उपर लकड़ी के छज्जे से ढका ग्या  हैI तल मंजिल से उपर के बरामदे में जाने हेतु आंतरिक रास्ता है याने सीढ़ी से ही उपर जाया जा सकता हैI आगे आये छज्जे को  तल मंजिल में स्थापित चार गोल खम्बों  (बली) से उठाये रखा गया है I पहली मंजिल की छट के आधार में दो सतह हैं व दोनों लकड़ी से ही निर्मित हैं I पहली मंजिल के बरामदे को काष्ठ आकृति से ढका गया है और यह आकृति विशेष आकृति कहलाई जायेगी I पहली मंजिल के बरामदे को पहले 12 खम्बों /स्तम्भों से ढका गया है व फिर इन स्तम्भों के आधार पर दो लकड़ी के पटलों (चपटी पट्टी ) व सबसे  ऊपर  (मुरिंड कड़ी के नीचे) लकड़ी के एक पटले (चपटी पट्टी ) से ढका गय है व बीच में खोळ छेदिका निर्मित हुआ है जो बाहर झाँकने के काम आता है I
  आधार के निम्न स्तर के पटले पर हर खोह /ख्वळ में सुंदर अलग अलग काष्ठकला के  दर्शन होते हैं याने आधारिक पटले में 11प्रकार की कला उत्कीर्ण हुयी है .
  दूसरे मकान से चिपकी तरफ से पहला ख्वाळ के पटले में कला अंकन -  छाया चित्र में कुछ भी पता नही चल रहा है पर यह निश्चित है कि मानवीय  या  प्राकृतिक  अलंकरण  उत्कीर्ण हुआ है I 
2सरे ख्वाळके पटले में गोल फूल या फर्न पत्ती नुमा कला आकृति के चिन्ह दिखाई दे  रहे हैं I
3सरे ख्वळ के पटले पर गोल फूल ,  सर्पिल , गुंथी चोटी की आक्रति दिख रही है व मध्य में जैसे चिड़िया की चोंच हो के चिन्ह दिख रहे हैं .
4थे व पांचवें ख्वळ के पटलों में भी आक्रति मिट गयी हैं I
6ठे  ख्वळ के पटले  में बड़ा गोल फूल व एक चिड़िया व एक जानवर की आकृति अंकन का आभास हो रहा हैI 
7वें ख्वाळके पटले पर मानव आकृति और सम्भवतया कोई मिथकीय आकृति अंकित हुयी दिख रही है I
8वें ख्वाळ के पटले पर भी कोई पुराण /मिथकीय आकृति लग रही है जैसे कोई देव हो जिसके हजारों हाथ हों या देव से किरण पुंज बिखर रहे हों  I अंकन में आभास अलंकार लग रहा है I
9वें ख्वाळ के पटले में नीचे हाथी उत्कीर्ण (खुदाई ) हुआ है  व उपर एक मानव हनुमान सुमेरु पर्वत उठाये लग रहा है व दूसरी आकृति ऐसे लग रही जैसे शिवजी के हाथ में डमरू हो I
 10 वें ख्वाळ के पटले में  पूजा करते समय चौकी में  जो नव ग्रह का प्रतीक रचा जाता है वाही आकृति दिख रही है I
11 वीं ख्वाळ के पटले पर  कला अंकन सर्वथा अस्पष्ट है  .
भवन के कड़ीयों , खम्बों, तल मंजिल के कमरे के दरवाजों  आदि पर ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त कोई विशेष कला अंकन नही दीखता है .
  मलारी भवन संख्या 1 को अध्ययन के पश्चात  कहा जा सकता है कि मलारी के भवन में लकड़ी प्रयग शैली में शीतप्रदेशों  निलंग –जाडंग घाटी;  जौनसार; मुन्सियारी, गमशाली आदि जैसे हैं या कई मामलों में समानता है विशेषत: पहली मंजिल में बरामदे को लकड़ी के पटलों से द्ज्कने की शैलीI
मलारी भवन संख्या 1 के पहली मंजल के पटलों में वानस्पतिक , मानवीय व ज्यामितीय व आध्यात्मिक /धार्मिक प्रतीक का अलंकरण बड़े सलीके से हुआ हैI
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्कासी श्रंखला जारी   
   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ;  गपेश्वर में  भवन काष्ठ कला, नीति में भवन काष्ठ  कला, नक्कासी   ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ,

Bhishma Kukreti

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चमोला गाँव (कर्णप्रयाग ) में  देवी प्रसाद डोभाल की चौखंब्या - तिख्वळ्या- तोरणदार  तिबारी व खोली में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

   House Wood Carving Ornamentation from  Chamola village of Chamoli garhwal
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   - 184
(अलंकरण व कला पर केंद्रित) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 चमोला गाँव चमोली गढ़वाल का महत्वपूर्ण गाँव है व  समृद्ध गाँवों में गिनती थी।  चमोला (कर्णप्रयाग ) से कुछेक तिबारियों की सूचना मिली है जिसके बारे में अगले खंडों में चर्चा होगी।      आज चमोला गांव के देवी प्रसाद डोभाल परिवार की लगभग 100 वर्ष पुरानी तिबारी व खोली में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी में नक्कासी पर चर्चा  होगी।
चमोला में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार का मकान दुपुर व  , दुखंड / दुघर/तिभित्या  है  .  मकान में तिबारी पहली मंजिल में स्थापित है व ऐसा लगता है मकान के तल मंजिल में भी में तिबारी संरचना शुरुवाती दिनों में  थी क्योंकि तिबारी के मुरिन्ड आकृति /संरचना अभी तक ज्यों की त्यों है। 
   - तल मंजिल में खोली में काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्कासी -
कला व अलंकरण या नक्कासी  दृष्टि से चमोला में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार  के मकान के तल मंजिल में खोली  में ही कला /अलंकरण  विवेचना लायक है।  खोली  के  दोनों ओर  के स्तम्भ कुमाऊं  की बाखलियों  की याद दिलाती हैं याने  गढ़वाल व  कुमाऊँ  दोनों क्षेत्रों में खोली के स्तम्भों में  संरचना शैली  व कला उत्कीर्णन  एक समान पायी गयी है।  यह एक यक्ष प्रश्न है कि यह शैली /कला  उत्तराखंड में कहाँ से पहले पहल आयी और इसका प्रसार किस लाइन /लगुली से हुआ।   चमोला में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार की खोली में  एक एक ओर के स्तम्भ  छह लघु स्तम्भों या shaft या कड़ियों से मिलकर निर्मित हुए है। दीवार  से सटे लघु स्तम्भ पर  कुछ कुछ चूड़ी नुमा या गोलाई में कटे करेला जैसी आकृतियां अंकित हुयी है।  यह कड़ी ऊपर जाकर मुरिन्ड की एक तह बनाती है।  इस कड़ी /लघु स्तम्भ के बाद सपाट कड़ी है जो मुरिन्ड की तह बनते भी सपाट ही  रहती है। फिर इस लघु स्तम्भ या कड़ी के बाद  दो कड़ियाँ  (युग्म ) मिली हैं , एक कड़ी सीधी है व अंदर की ओर दूसरी कड़ी आधार पर थांत (क्रिकेट बैट का ब्लेड  जीएसए ) की आकृति में है व ऊपर थांत  के हत्थे जैसा आकृति लिए मुरिन्ड की तह  बनाता है। थांत  के हत्ते कड़ी में बेल -बूटे  अंकित हैं।   सबसे अंदर की कड़ी /लघु स्तम्भ से पहले वाली कड़ी के आधार में मानवीय जैसे हाथ , मुंडी , व अन्य आकृतियां अंकित हैं यह कड़ी ऊपर जाती है और आधार के बाद इस कड़ी में बेल बूटे अंकित है जो मुरिन्ड  की तह बनाते वक्त भी हैं।  मोरी के सत्मव्ह के सबसे अंदर वाले उप स्तम्भ /कड़ी गोल व सपाट हैं। 
अनुमान लगाने की आवश्यकता नहीं है कि  चमोला (कर्णप्रयाग )  में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार के मकान की खोली के मुरिन्ड में देव आकृतियां फिट होंगीं .
  -चमोला  गांव में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार     की तिबारी  में लकड़ी की नक्कासी -
  चमोला  गांव में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार     की तिबारी  चौखंब्या - तिख्वळ्या- तोरणदार   याने चार स्तम्भों व तीन ख्वाळ  व मेहराब वाली तिबारी है ।  आम गढ़वाली तिबारी स्तम्भ जैसे ही   डोभाल परिवार की इस तिबारी  के स्तम्भ  देहरी के  डौळ के ऊपर टिके हैं।  प्रत्येक स्तम्भ के आधार में उल्टा कमल फूल है उसके ऊपर  ड्यूल है , ड्यूल के ऊपर सीधा खिला कमल फूल है व यहाँ से स्तम्भ की आकृति लौकी जैसे होने लगती है व सबसे कम मोटाई की जगह में उल्टा कमल फूल है जिसके ऊपर ड्यूल है व ड्यूल  के ऊपर सीधा कमल फूल है।  कमल फूल  के ऊपर एक चौकोर ड्यूल है व वहीं से स्तम्भ ऊपर की ओर बढ़ते हुए  चौड़े थांत  (क्रिकेट बैट ब्लेड आकृति ) की सजकल अख्तियार करता है व यहीं कमल दल के ऊपर से मेहराब की ार्ध चाप शुरू होती है जो दूसरे  स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर पूरा मेहराब बनाता है।  मेहराब का आंतरिक कटान  तिपत्तिनुमा है। 
स्तम्भ को दीवार से जोड़ने वाली लकड़ी की कड़ी पर कुदरती पेड़ लताओं की  नक्कासी हुयी है। 
  जहां पर स्तम्भ   थांत    स्वरूपी है वहां सभी स्तम्भों में देव आकृति खुदी हैं।  मेहराब  के ऊपर बाहर दोनों त्रिभुजों  के किनारे बहु दलीय पुष्प अंकित हैन  बीच में मेहराब के ऊपर पट्टिका में  देव आकृत्तियाँ , बीज मंत्र अंकित है जो तिबारी की विशेष विशेहता बन जाती है।  मेहराब के बाहरी त्रिभुजों में प्रकृति आकृति   अंकन हुआ है।  मुरिन्ड  की कड़ियों में बेल बूटे अंकित हैं।   
छत के काष्ठ आधार से कई शंकु लटके हैं। 
  निष्कर्ष निकलता है कि   चमोला  (कर्ण प्रयाग , चमोली )  गांव में देवी प्रसाद डोभाल  परिवार के मकान में जायमितीय कटान , प्राकृतिक अलंकरण अंकन व मानवीय  अलंकरण  अंकन हुआ है व भवन व तिबारी उच्च श्रेणी में रखा  जा सकता है। 

सूचना व फोटो आभार : द्वारिका प्रसाद चमोला

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तुस्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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Motor Road Construction from Rishikesh to Narendra Nagar
H
istory of Tehri King Narendra Shah -22
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 214     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1461 
By: Bhishma Kukreti (History Student)
     For establishing a new town, it was essential that there was motor road for carrying heavy materials for constructing new building s and other infrastructures.  The road construction work started from 1921. The non-motor road widening work also started from Tehri to Rishikesh.  The villagers were engaged in construction of  the both the roads without any wages.  For dangerous works, outsider labour was called on payment.  Ultimately, common people were benefited by roads.

References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 19
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Bhishma Kukreti

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Flowers mentioned in   Panini’s Ashtadhyayi
Plant Science in Panini’s Ashtadhyayi -6
BOTANY History of Indian Subcontinent –120   
Information Compiler: Bhishma Kukreti   
  Dr. S. P. Dabral  offered the flora information of Panini period of Uttarakhand (1, 4) .
There are  following flowers mentioned in Panini’s Ashtadhyayi(3)-
Name -------------- Ashtadhyayi Refe. ----------------Botanical Name
Kumuda ------------------IV 2, 80---------------------Nelumba nucifera

References
1-Dabral, Shiv Prasad, 1969, Uttarakhand ka Itihas Bhag -2, Veer Gatha press Dogadda pp 150
2- Dabral, Shiv Prasad 1992, Kuninda Janapad  Veer Gatha press Dogadda
3-Agarawala, V.S, Ancient Indian Flora in Ashtadhyayi of Panini, Palaeobotanist (1952) 1:61-65
4- Vasudev Sharan Agarawala , Panini Kalin Bhartavarsha  (Digitalized book free down load )
5-Agarwal, Ashwini Kumar , Ashtadhyayi of Panini complete
Copyright @ Bhishma Kukreti, //2020


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Responsibilities and Duties of main Deputies, legal advisor and consultant  of Chief Executive Officer
Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 89
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   
By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)
 साम दान्श्च  भेदश्च  दंड: केषु कदा कथम्  I
कर्तव्य: किं फलं  तेभ्यो  बहुमध्यं तथाअकल्पम् II 96
...............
..............
 शास्त्रेषु के समुद्दिष्टा  विरध्यन्ते ch के अधुना I
  लोक्शास्त्रविरुद्धा: के पंडितस्तान्विचिंत्य  च  II 101 II
 नृपं     सम्बोधयेत्तैश्च      परत्रेह    सुखप्रदै:I (Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 96-101 )
Translation –
A-The duties of minister (chief minister) is to inform to the King –
When to do accord
When to break accord
When to donate
And what will be losses by the above all
B- The duties of judiciary officer  is to –
Analyse the proofs, truth and lie , and due to unavailability of proofs , he should use fire for decision.
The judiciary officer should inform the King about judiciary related  relevancy of profs, guessing and custom .
The duties of Pundit is to inform the King  whether the people are following righteous action or customs or not . Pundit  should also inform the King the rules or customs those are against Shastras.




(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan96-101    )

References -
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 77
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020


Bhishma Kukreti

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  कैन्डूळ  (ढांगू ) में जुयाल  परिवार की तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण  अंकन , घर लकड़ी नक्कासी


Traditional House wood Carving Art of  Kaindul , Garhwal 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , खोली  , कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन,  नक्कासी  -  185
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  द्वारीखाल ब्लॉक में ढांगू पट्टी अंतर्गत , नयार नदी तीरे  कैन्डूळ   एक महत्वपूर्ण गाँव है।  लोक कथा है कि   सती सावित्री को   यमराज ने  कैन्डूळ  में ही उसका पति   जीवित कर लौटाया था।  इसीलिए   कैन्डूळ  में हर वर्ष मेला लगता है। 
   कैन्डूळ  में तिबारियां व निमदारियां  थीं किन्तु सम्भवतया ध्वस्त कर नए भवन बन गए हैँ .  रवि जुयाल से उनकी तिबारी की सूचना मिल पायी है।
जुयाल परिवार की तिबारी ढांगू या पड़ोसी गाँव  वरगडी (चर्चा हो चुकी है ) से कुछ अलग है।    कैन्डूळ  में जुयाल परिवार की तिबारी ढांगू की अन्य तिबारियों जैसे चौखम्या -तिख्वळ्या  कि जगह् तिखम्या -दुख्वळ्या   है याने  कैन्डूळ   में जुयाल परिवार की तुबारी में तीन स्तम्भ व दो ख्वाळ  हैं।  कैन्डूळ  के जुयाल परिवार का घर दुपुर -दुघर /दुखंड है।  तिबारी पहली मंजिल पर है।  तीनों सिंगाड़ /स्तम्भ एक जैसे ही हैं व पत्थर के छज्जे के ऊपर पत्थर के देहरी के ऊपर स्थापित हैं।   प्रत्येक स्तम्भ  देहरी में एक पत्थर डौळ  के ऊपर स्थित है।  स्तम्भ के आधार में उल्टे कमल दल ने कुम्भी बनाई है जिसके ऊपर ड्यूल है फिर सीधा खिला कंडल फूल है व यहां से  स्तम्भ लौकी का रूप धारण कर लेता  है।  जहां पर स्तम्भ सबसे कम मोटा है वहां अधोगामी (उल्टा ) कमल दल है फिर ड्यूल है फिर सीधा कमल दाल है जहाँ से स्तम्भ दो भागों में बंट जाता है।   यहां से स्तम्भ का सीधा भाग   चौकोर आयताकार आकृति  ले ऊपर मुरिन्ड से मिल जाता है।    जहाँ से स्तम्भ से आयत शुरू होता है वहीं स्तम्भ से मेहराब का आधा भाग भी शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के आधे बाहग से मिलकर पूरा मेहराब बनता है।  मेहराब में तिपत्ति (trefoil ) कटान है.
मेहराब के बाहर त्रिभुजों  के किनारे एक एक बहु दलीय फूल अंकित हुए हैं व प्रत्येक  त्रिभुज में चिडयों व गुल्मों की नक्कासी हुयी है।  मेहराब व स्तम्भ के ऊपर  छह स्तरीय मुरिन्ड है जिन पर तरह तरह की नक्कासी हुयी हैं।  मुरिन्ड के ऊपर छत आधार से नीचे एक चौड़ी काष्ठ पट्टिका है जिस पर फूल पत्तियों की नक्कासी हुयी है। 
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि  कैन्डूळ   (द्वारीखाल )  में जुयाल परिवार की तिबारी में  ज्यामितीय कटान , प्राकृतिक व मानवीय तीनों तरह का अलंकरण हुआ है व तिबारी शानदार  तिबारियों में गिनी जाएगी। 
सूचना व फोटो आभार :  रवि जुयाल  कैन्डूळ
यह लेख  भवन  कला,  नक्कासी संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:   वस्तुस्थिति में अंतर      हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 Traditional House wood Carving Art of West South Garhwal l  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ),  Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलियों  ,खोली , कोटि बनाल  में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण,  नक्कासी  श्रृंखला  -
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,  बाखली , खोली, कोटि बनाल   ) काष्ठ अंकन लोक कला , नक्स , नक्कासी )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , नक्कासी  , हिमालय की  भवन काष्ठ कला  नक्कासी , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला , लकड़ी पर नक्कासी , नक्स , नक्कासी 


Bhishma Kukreti

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बनाणी (ढाई ज्यूळी) में ममगाईं परिवार की  निमदारी में काष्ठ कला 

बनाणी (ढाई ज्यूळी ) में ममगाईं परिवार की प्राचीन  निमदारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी पर नक्कासी 
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   -  186
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  मेरी इस श्रृंखला आने से   भवन कलाओं  में क्षेत्रीय भिन्नता पता लगने से मेरे मित्र व पाठक कई प्रश्न करते रहते हैं।  पौड़ी गढ़वाल में मकानों में वह भव्यता व बिचित्रता /विशेषता  नहीं   दिखती जो अल्मोड़ा , चमोली , रुद्रप्रयाग व जौनसार , रवाई आदि क्षेत्रों में मिलती है।   पौड़ी गढ़वाल मकान कला   में  उतना उन्नत नहीं जितना उत्तरी गढ़वाल या कुमाऊं . कारण दो तीन हैं।  पौड़ी गढ़वाल विशेषतर  रोहिला /गुज्जर  छापामारी का शिकार होता रहा है व उदयपुर ,   चंडीघाट के डाकुओं की छापामारी का शिकार  होता रहता था।  सामन्य लोग ही नहीं थोकदार- कमीण  भी भव्य मकान नहीं निर्माण करते थे कि लुटेरों की नजर न पड़े।  मंदिर भी ध्वस्त हटे रहते थे और यही कारण है दक्षिण गढ़वाल में मंदिर मूर्ति को गुज्जरों द्वारा कुल्हाड़ी से तोड़ने की लोक कथाएं अधिक प्रचलित हुयी है (पढ़ें , गोदेश्वर व डवोली  मंदिर की लोक कथा )  I  दुसरा  मुख्य कारण दक्षिण गढ़वाल में देवदारु लकड़ी   उस मात्रा में उपलब्ध भी  नहीं होती तो देवदारु सरीखी  मजबूत लकड़ी नहीं मिलने से पुराने घर भी नहीं बचें है जैसे चमोली या उत्तरकाशी जौनसार में या पिथौरागढ़ में। 
    बनाणी (ढाई ज्यूळी )  की निमदारी के बारे में  आचार्य नवीन ममगाईं  ने इस मकान को 200  साल पुराने  की सूचना दी किन्तु  पौड़ी गढ़वाल में मेरे सर्वेक्षण में पक्के घर 1890  से पहले के नहीं मिले हैं (अपवाद -बंगार   स्यूं ) I   मकान का निर्माण समय जो भी हो मकान अपने समय का भव्य मकान है व उस समय यह मकान अवश्य ही साहूकार परिवार (सौकार ) ने ही निर्मित किया होगा।  अपने समय में ऐसे भवन बारात व सरकारी अधिकारियों  ठहरने हेतु व सामजिक  बैठकों हेतु उपयोग होते थे। 
ममगाईं परिवार के निमदारी मकान दुपुर  व दुखंड मकान है।  निमदारी पहले मंजिल में स्थापित है व  12  स्तम्भ /खम्भे हैं।  स्तम्भ में ज्यामितीय कटान ही है व अन्य कोई कला अंकित नहीं है।  स्तम्भों के आधार  एक डेढ़ फिट ऊंचाई तक लकड़ी के पटिले  से ढक दिए गए हैं।  हाँ आज यह मकान साधारण लगता होगा किंतु  कभी ऐसे मकानों  की गिनती शनदार जानदार मकानों में होती थी। 
   निष्कसरश निकलता है अपने समय कि  भव्य निमदारी में   ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त कोई विशेष अलंकरण अंकन दृष्टिगोचर नहीं हुआ है

सूचना व फोटो आभार :  आचार्य नवीन ममगाईं
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्कासी   - 

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, नक्कासी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी , भवन नक्कासी  नक्कासी, नक्श

Bhishma Kukreti

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साबळी (बीरोंखाळ ) में बहुखंडी परिवार के मकान में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन ,  लकड़ी नक्कासी

 Tibari House Wood Art in   Sabli , Bironkhal   , Pauri Garhwa   
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी   - 187   
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 पौड़ी गढ़वाल के बीरोंखाळ  क्षेत्र  का  गढ़वाल में ऐतिहासिक , सामजिक  व सांस्कृतिक  महत्व है।  इसी  तरह  कैलाड़ खंड में में साबळी  गांव भी महर्वपूर्ण  गाँव है।  साबली से बहुखंडी पधान की तिबारी की सूचना देते हुए  बाचस्पति  बहुखंडी ने  लिखा है कि   बहुखंडियों  प्रथम पुरुष   अखिला नंद बहुखंडी  पंडिताई हेतु गुसाईं भूस्वामी के निमंत्रण  पर  1812 -18 15 लगभग   साबली में  बसे।  अखिला नंद   बहुखंडी के पुत्र धनीराम  बहुखंडी ने प्रस्तुत  तिबारी युक्त मकान   1860 -65  के लगभग  निर्माण किया था।  आज भवन में बहुत से परिवर्तन हो चुके हैं व मकान अब पधान राजकुमार बहुखंडी के  स्वामित्व में है। 
  मकान दुपुर , दुखंड /दुघर  मकान है व तिबारी पहली मंजिल पर है।  कला , अलंकरण दृष्टि से मकान में तिबारी व  पहली मंजिल के तिबारी  के अगल बगल में दो  कलयुक्त काष्ठ   आकृति की ओर ध्यान देना होगा।  तल मंजिल में दो कमरों के सिंगाड़ -दरवाजों , पहली मंजिल के एक कमरे के सिंगाड़  व दरवाजों व खिड़कियों  में काष्ठ  कला केवल ज्यामितीय कटान तक सीमित है। 
 तिबारी चौखम्या  व तिख़्वळ्या है।  सभी स्तम्भ /खम्बे /सिंगाड़  एक सामान हैं।  स्तम्भ /सिंगाड़   पत्थर की देहरी के ऊपर पत्थर डौळ  के ऊपर स्थापित हैं।  स्तम्भ आधार की कुम्भी उल्टे कमल फूल से बनी है।  उल्टे कमल के ऊपर ड्यूल है व उसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल है।  यहां से स्तम्भ लौकी का आकर अख्तियार करता है।  जहां पर स्तम्भ  सबसे  कम मोटा है वहां उल्टा कमल आकृति है व उसके ऊपर ड्यूल है।  ड्यूल के ऊपर खिला सीधा कमल फूल है / यहां से स्तम्भ दो भागों में विभक्त हो जाता है।  एक भाग सीधा ऊपर थांत  की शक्ल अख्तियार कर मुरिन्ड /शीर्ष से मिल जाता है।  थांत (cricket bat blade type )  के ऊपर कुछ अलकंरण हुआ है।   जहाँ से  स्तम्भ थांत आकृति  रूप लेता है  वहीँ से मेहराब का आधा भाग भी शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के  आधा मेहराब  भाग से मिलकर पूरा मेहराब बनता है।  मेहराब में  अंदर कटान तिपत्ति (trefoli ) नुमा है।  मेहराब के बाहर त्रिभुजों के हर किनारे एक बहु दलीय फूल  उत्कीर्णित हुए हैं व तीरभुज में मछली नुमा या कोई जानवर भी अंकित हुआ है।  मुरिन्ड / शीर्ष में अंकन का पता नहीं चल सक रहा है। 
   तिबारी के मध्य भाग में दीवार  पर तिबारी व खड़कियों के मध्य  एक एक काष्ठ चौखट (decorative ) आकृति फिट है।  प्रत्येक चौखट  आधार पर प्रतीकात्मक  आकृति उत्कीर्ण हुआ है व जिसके ऊपर  हाथी  आकृति अंकित हुयी है। 
  निष्कर्ष निकलता है कि  सांबळी  (बीरोंखाल ) में बहुखंडी परिवार (पधानुं  तिबारी )  की तिबारी व मकान में जायमितीय , प्राकृतिल व मानवीय  ( geomatrical , natural and figurative  ornamnetation ) तीनों तरह के अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है। 

सूचना व फोटो आभार :  बाचस्पति बहुखंडी , साबळी   

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्कासी   - 

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, नक्कासी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नैनी डांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; नक्कासी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ; रिखणी खाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी  ; जहरी खाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , नक्कासी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्कासी ;   खम्भों  में  नकासी , भवन नक्कासी  नक्कासी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


Bhishma Kukreti

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Judiciary and Banking Reforms by Narendra Shah

History of Tehri King Narendra Shah -23
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 215     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1462 

By: Bhishma Kukreti (History Student)

  Narendra Shah establishing Panchayat Raj (Village Councils)  -  Narendra Shah  experimented on reforming judiciary system  by establishing Panchayat raj in Chauras and Bhardar regions. The Sarpanch were Jaykrishna Daurgadatti and Singh Bartwal. Later on Narendra Saha established Panchayat in other parts of the Kingdom too. Those Panchayats were established for to look after small judiciary cases that small cases are settled at village level. The council heads were elites of villages and senior citizens.  Narendra Shah fixed budget for Panchayat Raj for  Rs. One lakh in 1936 (1,  based on paper available in Dyundi’s collection).
 Narendra Shah establishing Krishi Bank-   Money landers had been exploiting the farmers for centuries. In 1920, Narendra Shah established a Krishi Bank for offering loan and other services to farmers that they were free from money landers (1).
 Hajoor Court – There was High court of Hajoor court in the capital Tehri. However, kings did not attend the court. From 1920, Narendra Shah started attending Hajoor Court from 1922 (Dyundi. 1).  There was a chief court too in the capital and followingwere the judged of Chief Court (2) –
 Maheshanand Painyuli
Narayan Datt  Raturi
Sureshanand Nautiya
  For quick decision of judicial pleases, Narendra Shah divided Tehri Garhwal into six circles and each circle was headed by following regional judged-
 Tehri circle- Ummadatt Dangwal
Orathali ------ Bhairav Datt Painyuli
Ravayi --- Munshi Karim Khan
Barahat ----------- Nagdatt Raturi
Devprayag – Ramanand Uniyal
Kirti Nagar – Prahlad Das Bahukhnadi 



References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 20
2- Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) p 21
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Bhishma Kukreti

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Responsibilities of Finance Chief or CFO in the Organization

Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 91 
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   

By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)

 इयच्च संचितं  द्रव्यं  वत्सरे  अस्मिंस्तृणा दिकम्   II 102 II
व्ययीभूतमियच्चैव      शेषं         स्थावर  जंगम् I
इयदस्तीति  वै  राज्ञे   सुमन्त्रो    विनिवेदयेत्      II 103(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 102-103 )
Translation –
The responsibilities od minister ( for Account or finance ) is to offer information to the King about  collection of permanent and liquid assets and also the information about  erosion (expenditure) in  assets and balance assets. ((Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 102-103)
 Job Responsibilities of Chief Financial Officer –
 The Chief Financial Officer is the organization is the heist positioned executive in finance and account department of an organization.
Major responsibilities of the Chief Financial Officer are –
The Chief Financial Officer tracks financial details including cash flow and expenses and incoming cash.
 The Chief Financial Officer should have leadership qualities.
The Chief Financial Officer should have knowledge of operation in the organization
The Chief Financial Officer should plan the financial details related to all departments and should have budget for each department
The Chief Financial Officer should control the financial aspects of each department
The Chief Financial Officer should be part of total strategies of the organization.
The Chief Financial Officer should have clear idea about changes happening in the country and outside the country
The Chief Financial Officer should inform the necessary financial details or summery periodically as decided to the CEO and should advice to the CEO accordingly.


References -
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 78
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