Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1103158 times)

Bhishma Kukreti

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  क्यारी  (टिहरी ) में   तेराखम्या  दिलकश तिबारी  में काष्ठ  कला 

   क्यारी  (टिहरी ) में  एक  तेराखम्या   दिलकश तिबारी  में काष्ठ  कला  अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल    ) काष्ठ कला  , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्कासी      -196 

संकलन - भीष्म कुकरेती

  क्यारी गाँव , पट्टी निगुण , जला टिहरी गढ़वाल से   तिबारी वाले मकान की सूचना मिली है।  तिबारी भ्यूं तळ  होने के बाद भी लाजबाब है , शानदार, दिलकश   है।  मकान दुपुर   शैली  का है व दुखंड , दुघर  प्रकार का है।   तिबारी पहली मंजिल पर है व बाहर के कमरों को बंद न रख तिबारी का बरामदा /बैठक बना दिया गया है व बाहर तेरह  स्तम्भ स्थापित है। 
तेरह के तेरह स्तम्भ एक जैसे हैं व दो स्तम्भों के मध्य मेहराब आकृति भी है।  प्रत्येक स्तम्भ का आधार चौकोर कुम्भी नुमा है उसके ऊपर ड्यूल हैं फिर ड्यूल के ऊपर चौकोर सीधा कमल दल है व यहां से स्तम्भ सीधा गोला है व मेहराब से कुछ नीचे स्तम्भ में दो तीन ड्यूल हैं।  दो स्तम्भों के मुरिन्ड कड़ी से मिलने  से पहले  दो स्तम्भों के मध्य कुछ अलग किस्म का मेहराब बने हैं।  मेहराब कुछ कुछ उलटे {  कोष्टक की आकृति के हैं।  मुरिन्ड की कड़ी में कोई कला दृष्टिगोचर नहीं हुयी।  बरामदे /डंड्यळ  अंदर के कमरों के दरवाजों पर आकर्षक ज्यामितीय कटान दृष्टिगोचर हो रहा है। 

क्यारी (निगुण , टिहरी ) की तिबारी में मानवीय अलंकरण  बिल्कुल नदारद है।
तेराखम्या तिबारी  शानदार , लाजबाब व भव्य  है। 
  सूचना व फोटो आभार :  गुसाईं जी
  *** यह आलेख कला संबंधित है , मिलकियत संबंधी नही है I  भागीदारों व हिस्सेदारों के नामों में त्रुटी  संभव है I   

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020 
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी कोटि बनाल     ) काष्ठ कला  , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  , Koti Banal )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, लकड़ी नक्कासी ;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ; House Wood carving Art from   Tehri;     

Bhishma Kukreti

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बैंजी कांडई  (दशज्यूला , रुद्रप्रयाग  ) में कांडपाल परिवार के भव्य मकान में तिबारी व खोळी  में काष्ठ  कला  अंकन , लकड़ी पर नक्कासी

   Traditional House wood Carving Art of  Bainji  Kandayi  (Dashjyula ) Rudraprayag   

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अंकन , लकड़ी नक्कासी   -  195
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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     ब्रिटिश शासन  में जब  ऋषीकेश -बद्रीनाथ -केदारनाथ सड़कों व वहां स्वास्थ्य सेवाओं   में सुधर हुआ तो ऋषीकेश -चार धाम यात्रियों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुयी . इस वृद्धि से रुद्रप्रयाग व चमोली भूभाग में कई तरह से समृद्धि   भी आयी।  पर्यटन  किस तरह से समृद्धि लाता है यह इस भूभाग के अनुभव से सीखा जा सकता है।  रुद्रप्रयाग व चमोली भूभाग में समृद्धि प्रतीक तिबारियों -खोलियों  के निर्माण  हुए।  ऐसे ही समृद्धि सूचक प्रतीकों  की सूचना रुद्रप्रयाग  बैंजी कांडई  (दशज्यूला )   से मिली हैं।  आज रुद्रप्रयाग के  बैंजी कांडई  (दशज्यूला ) में कांडपाल परिवार के एक मकान में तिबारी  में काष्ट कला की विवेचना होगी।
रुद्रप्रयाग के  बैंजी कांडई  (दशज्यूला ) में कांडपाल परिवार का मकान ढैपुर (1 + 1  1/2 ) , दुखंड (दुघर या तिभित्या ) है। काष्ट  कला विवेचना हेतु  रुद्रप्रयाग के  बैंजी कांडई  (दशज्यूला ) में कांडपाल परिवार  के मकान में तल मंजिल में खोली , पहली मंजिल में तिबारी व  दो कमरों के दरवाजों की   ओर  ध्यान देना होगा।
---  रुद्रप्रयाग के  बैंजी कांडई  (दशज्यूला ) में कांडपाल परिवार के मकान में तल मंजिल पर खोळी  में काष्ठ कला -
प्रस्तुत मकान के तल मंजिल में तीन कमरे व खोली हैं जहां लकड़ी का काम  दृष्टिगोचर होता है। कमरों के सिंगाड के आधार पर व  कमरों के दरवाजों पर ज्यामितीय कटान हुआ है याने  ज्यामितीय अलंकरण के दर्शन होते है।  खोळी  में दो तरह के स्तम्भ हैं बाह्य ओर  गारे  -मिट्टी  से निर्मित स्तम्भ हैं  जिन पर  देव मूर्ति व मानव मूर्तियों के अतिरिक्त हाथी व एक अन्य पशु की आकृतियां सजी हैं। 
  रुद्रप्रयाग के  बैंजी कांडई  (दशज्यूला ) में कांडपाल परिवार  के मकान के खोळी  के भीतरी  दोनों सिंगाड़ /स्तम्भ लकड़ी से बने हैं।  प्रत्येक आंतरिक अथवा काष्ठ सिंगाड़  चार लघु स्तम्भों /सिंगाड़ों  के युग्म से बने हैं।  इनमे भी सबसे अंदर का व फिर बाहर से एक अंदर स्तम्भों में कला अलग है व सबसे बाहर व अंदर से एक छोड़ स्तम्भ की कला कटान अलग रूप में हैं।  सबसे बाहर व अंदर से एक छोड़ अंदर स्तम्भ में आधार से लेकर ऊपर तक प्राकृतिक अंकन हुआ है जैसे जंजीर युक्त बेल /लता हो।  दोनों स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिन्ड (शीर्ष ) की तह में तब्दील हो जाते हैं।  बाकी दो तरह के स्तम्भ के आधार में उल्टा कमल फिर ड्यूल फिर सीधा कमल फूल अंकित हुआ है , नक्काशी बड़ी बारीक तरीके से हुयी है। सीधे कमल दल से स्तम्भ सीधे हो मुरिन्ड के तह बन जाते हैं याने आठों के आठों लघुस्तम्भ मुरिन्ड के तह (layers ) बन जाते हैं।   मुरिन्ड के केंद्र में देव मूर्ति अंकित है व मुरिन्ड के ऊपर  छप्परिका आधार से नीचे काष्ठ शंकु लटके हैं।
  --: रुद्रप्रयाग के  बैंजी कांडई  (दशज्यूला ) में कांडपाल परिवार  की तिबारी में काष्ठ कला , अंलकरण अंकन , लकड़ी की नक्काशी :---
   प्रस्तुत मकान की पहली मंजिल में मकान के  सामने की ओर (Facad )  भव्य तिबारी स्थापित है।  रुद्रप्रयाग के  बैंजी कांडई  (दशज्यूला ) में कांडपाल परिवार  की तिबारी गढ़वाल की आम तिबारियों से कुछ हटकर है और ऐसी तिबारियां गढ़वाल में गिनती की होंगी।  तिबारी आम गढ़वाली तिबारियों जैसे ही चौखम्या व तिख्वळ्या  है।  किन्तु  इस तिबारी की विशेषता है कि प्रत्येक स्तम्भ /सिंगाड़  चार उप स्तम्भों  के युग्म से बने हैं व भव्य हैं।  स्तम्भ पत्थर के छज्जे के ऊपर देळी के ऊपर स्थापित हैं।  पर एक उप स्तम्भ के आधार में उल्टा कमल फूल कुम्भी /दबल आकृति निर्माण करता है व कुम्भी के ऊपर ड्यूल है , ड्यूल के ऊपर खिला  उर्घ्वगामी पद्म पुष्प  अंकन हुआ है व जहां से उप स्तम्भ लौकी आकृति हासिल कर लेता है और उप स्तम्भ के इस लौकीनुमा भाग में उभार  -गड्ढे  (fluet -flitted ) का कटान हुआ है। जहां सबसे कम मोटाई है वहां उल्टा कमल फिर से दृष्टिगोचर होता है जिसके ऊपर ड्यूल है व  ड्यूल के ऊपर सीधा कमल फूल है। सभी चारों उप स्तम्भों के सीधे कमल फूल ऊपर चौखट बन जाते हैं और यहां से मेहराब का आधा मंडल शुरू होता है व सामने के स्तम्भ के उप स्तम्भों के आधे मंडल  से मिलकर पूर्ण मेहराब बनाते है।  इस तरह कुल तीन मेहराब तिबारी में हैं।  मेहराब तिपत्ति (trefoil ) नुमा हैं प्रत्येक  मेहराब के बाहर के त्रिभुज में किनारे पर एक एक फूल हैं याने कुल छह फूल हैं , त्रिभुज में प्राकृतिक कला अंकन हुआ है।
छत आधार लकड़ी का है व कई शंकु लटकते दीखते हैं।   
मकान के पहली मंजिल में अंडाकार मोरियाँ भी हैं जिन्हे ज्यामिति ब्यूंत से अंडाकार सिंघाड़ों से सजाया गया है। मोरियों में झरोखे हैं।
मकान के दुसरे तरफ (Side ) दो कमरे हैं जिनके दरवाजों के  चरों स्तम्भों में कला  तिबारी के उप स्तम्भों  के बिलकुल  समान हैं व कमरों के दरवाजों पर मेहराब भी तिबारी के मेहराब सामान है। 
मकान सन 19 41 में आस पास के गांवों के श्रमदान से निमृत हुआ था।  कुल खर्चा आया था 1600  चंडी के कंळदार।   डिजायनकर्ता थे प्राणी दत्त व शिल्पकार थे क्वीली के कोली धुमु व धामू। 
आज  इस मकान के साझे हकदार हैं -जगदीश कांडपाल , त्रिलोचन कांडपाल,  भगवती कांडपाल , देवेंद्र स्वरूप कांडपाल  और विनोद कांडपाल । 
  निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि रुद्रप्रयाग के  बैंजी कांडई  (दशज्यूला ) में कांडपाल परिवार  के भव्य  मकान में  तीनों प्रकार के ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण अंकन हुआ है।  नक्काशी  की बारीकियां काबिलेतारीफ हैं। 

सूचना व फोटो आभार : किशोर रावत
  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
  Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020   
 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्कासी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्कासी  , खिड़कियों में नक्कासी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्कासी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्कासी ,  स्तम्भों  में नक्कासी


Bhishma Kukreti

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उज्याड़ी (गग्वाड़स्यूं ) में कठैत परिवार की निमदारी  में काष्ठ कला , लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी   -  193

 संकलन - भीष्म कुकरेती

 पौड़ी गढ़वाल में गग्वाड़ स्यूं पट्टी में उज्याड़ी  गांव में  कठैत परिवार की यह  निमदारी गाँव की पहली  निमदारी होने के कारण इस परिवार को निमदारी वळ   नाम पड़  गया था , प्रस्तुत कठैत परिवार की निमदारी सन 1960 के लगभग राम सिंह कठैत , राजेंद्र कठैत , सुरेश कठैत व उनकी भाभी ने मिलकर निर्माण करवाया था। 

 उज्याड़ी गांव की प्रस्तुत कठैत परिवार की  निमदारी सामन्य गढ़वाली निमदारी जैसे ही है।  उज्याड़ी गांव में कठैत परिवार की निमदारी दुपुर , दुघर मकान के पहली मंजिल पर स्थापित है।   उज्याड़ी गांव में कठैत परिवार की निमदारी   तेरा खाम्या (13 स्तम्भ ) की है।   उज्याड़ी गांव में कठैत परिवार की निमदारी  के स्तम्भ लकड़ी के छज्जे की कड़ी पर स्थित हैं व सीधे ऊपर जाकर सीधी कड़ी से मिल जाते हैं।  स्तम्भ के आधार पर स्तम्भ को मोटाई दी गयी है व बाकी स्तम्भ में कोई कलाकारी नहीं हुयी है। दो  स्तम्भों के मध्य दो रेलिंग (कड़ी ) की सहायता से जंगल निर्मित हुआ है।  रेलिंग व जंगल में भी कोई विशेष कला नहीं दिखी।

  अपने  गांव में  उज्याड़ी गांव में कठैत परिवार की निमदारी  पहली निमदारी होने के कारण तिबारी का ऐतिहासिक महत्व है व  उज्याड़ी गांव में कठैत परिवार की निमदारी  ने उज्याड़ी व कठैत परिवार को विशेष पहचान भी दी है। 

सूचना व फोटो आभार : मनमोहन कठैत 

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी   -   

Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श

 

Bhishma Kukreti

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श्रीकोट (मायापुर,  चमोली) में मलासी परिवार की भव्य निमदारी में काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी  - 194
(अलंकरण व कला पर केंद्रित )   
 संकलन - भीष्म कुकरेती

  मूलतः पौड़ी गढ़वाल के पयासु  (कळजी खाल ब्लॉक ) गाँव  के प्रवासियोंकी श्रीकोट (मायापुर , चमोली ) में प्रसिद्ध निमदारी  है।  पंडित  रत्नमणि  मलासी व्यापार हेतु चमोली क्षेत्र में आये थे और यहीं चमोली में बस गए।  पहले कोई और ठौर था अब श्रीकोट में ही मलासी परिवार का ठौर है।   
श्रीकोट (मायापुर , चमोली )  में प्रस्तुत मलासी परिवार का मकान  दुपुर , दुखंड /दुघर्या मकान है।   श्रीकोट (मायापुर , चमोली )  में    मलासी  परिवार के मकान में निमदारी पहली मंजिल में स्थापित है।
निमदारी में 21 से अधिक स्तम्भ /खां हैं जो मकान को भव्यता प्रदान करते हैं।   श्रीकोट (मायापुर , चमोली )  में  मलासी परिवार  की निम दारी  के स्तम्भ  आधार की कड़ी से शुरू होकर ऊपर की कड़ी से मिल जाते हैं।  स्तम्भों के आधार पर दोनों ओर काष्ठ पट्टिका लगी हैं जो स्तम्भ को मोटाई प्रदान करते हैं।  स्त्तम्भ के आधार पर रेलिंग्स हैं ऊपरी रेलिंग  आधार से से डेढ़  फ़ीट ऊपर है तो नीचे की रेलिंग आधार पर है।  रेलिंग में ज्यामितीय आकृति (X I X ) जंगला  फिट किया गया है।
श्रीकोट (मायापुर , चमोली )  में  मलासी परिवार  के  मकान  की निमदारी  व  मकान  के अन्य भागों में कुल मिलाकर ज्यामितीय कला का  प्रदर्शन होता है व स्तम्भों की  संख्या भवन को भव्यतम दर्जा दिलाने में सक्षम है
सूचना व फोटो आभार :प्रदीप मलासी
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तुस्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली , मोरी , खोली,  कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन , लकड़ी नक्काशी श्रंखला जारी   
   House Wood Carving Ornamentation from  Chamoli, Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation/ Art  from  Joshimath ,Chamoli garhwal , Uttarakhand ;  House Wood Carving Ornamentation from  Gairsain Chamoli garhwal , Uttarakhand ;     House Wood Carving Ornamentation from  Karnaprayag Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   House Wood Carving Ornamentation from  Pokhari  Chamoli garhwal , Uttarakhand ;   कर्णप्रयाग में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ;  गपेश्वर में  भवन काष्ठ कला,नक्काशी ;  नीति,   घाटी में भवन काष्ठ  कला, नक्काशी  ; जोशीमठ में भवन काष्ठ कला, नक्काशी , पोखरी -गैरसैण  में भवन काष्ठ कला, नक्काशी श्रृंखला जारी  रहेगी

Bhishma Kukreti

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नैल  खनसर  (चमोली ) में आलम  चंद्र के बखाली नुमा मकान में काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी  - 198
(अलंकरण व कला पर केंद्रित )   

 संकलन - भीष्म कुकरेती

-  नैल  खनसर  ( गैरसैण , चमोली )  गांव से  कुछेक तिबारी  व बखालीनुमा मकानों की सूचना मिली है।  आज  आलम चंद्र के बखाली नुमा मकान में  लकड़ी पर नक्काशी  की   विवेचना  होगी। 
   नैल  खनसर  ( गैरसैण , चमोली )  गांव    में  आलम चंद्र का मकान दुपुर , दुखंड (दुघर या तिभित्या ) है व  कुमाऊं के बखाली शैली से प्रभावित मकान है।  मकान में छज्जे को कोई महत्व नहीं दिया गया है।    नैल  खनसर  ( गैरसैण , चमोली )  गांव    में  आलम चंद्र का मकान  में लकड़ी नक्काशी विवेचना हेतु तीन मुख्य केंद्रों में टक्क लगानी होगी अर्थात - खोळी , पहली मंजिल पर बड़ी बड़ी मोरियां (झरोखे)  और तल मंजिल में दो लघु मोरियों व पहली मंजिल में दो  लघु मोरियों  पर दिन दिया जायेगा। 
   नैल  खनसर  ( गैरसैण , चमोली )  गांव    में  आलम चंद्र के  मकान  में खोळी (आंतरिक मुख्य द्वार ) तल मंजिल से लगभग मकान के छत तक गयी है।  खोळी के दोनों मुख्य सिंगाड़ (स्तम्भ)  तीन तीन उप सिंगाड़ों के युग्म से बने हैं।  प्रत्येक उप सिंगाड़  के आधार में उलटे कमल फूल से  लम्बी कुम्भी निर्मित होती है जिसके ऊपर ड्यूल हैं व ड्यूल के ऊपर  पथ्वड़  नुमा कमल फूल है व फिर ड्यूल है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी कमल पंहुकडियां हैं।  कमल की पंखुड़ियों में  ऊपर से भी बारीक नक्काशी हुयी है।  सुल्टे कमल फूल से तीनों उप सिंगाड़  कड़ी रूप धारण कर ऊपरी मुरिन्ड व निम्न तल मुरिन्ड से मिल जाते हैं।  मुरिन्ड के दो तल  हैं निम्न तल उप सिंगाड़ों  (स्तम्भों ) कड़ियों  से बना है व ऊपरी सिंगाड़ उभरे पटिले (तख्त नुमा ) से निमित हुआ है।  ऊपरी सिंगाड़ के पटिले  में उभय आभासी आक्तिति अंकन हुआ है - चिड़िया व फूल।
   नैल  खनसर  ( गैरसैण , चमोली )  गांव    में  आलम चंद्र का मकान के खोली के दरवाजों पर दो दो  ज्यामितीय व  दो दो छह फूल पंखुड़ियों का अंकन हुआ है।
   नैल  खनसर  ( गैरसैण , चमोली )  गांव    में  आलम चंद्र का मकान में पहली मंजिल पर खोली के दोनों ओर  बड़ी बड़ी मोरियां  (झरोखे) स्थापित हैं। मोरियां  बहुत ही कम चौड़े छज्जे से शुरू होते हैं व छत तक पंहुचते हैं।   इन मोरियों में प्रत्येक ओर  के मुख्य सिंगाड़  भी खोली के ही अनुरूप तीन तीन उप सिंगाड़ों (उप स्तम्भों ) के युग्म से निर्मित हैं. कला दृष्टि से दोनों मोरियों के उप सिंगाड़ खोली के उप सिंगाड़ों  की हु बहु नकल है।  इन खोलियों का निम्न भाग लकड़ी के पटिले  (तख्त ) से ढके हैं व  एक खोली के खोल को ढकने वाले पटिले (तख्ता )  पर चार चार दलीय फूल अंकित हैं व दूसरी मोरी के खोल को ढकने वाले पटिले में  सूरजमुखी नुमा फूल अंकित हैं जैसे पूजा में गणेश पूजा में गोल फूल बनाये जाते हैं।
   नैल  खनसर  ( गैरसैण , चमोली )  गांव    में  आलम चंद्र का मकान  में बाकी चार (दो दो प्रति  मंजिल ) खिड़कियों या मोरियों में दो दो उप स्तम्भों से मुख्य सिंगाड़ (स्तम्भ) बनते हैं।  सभी उप स्तम्भ  आकर को छोड़  खोली के उप  सिंगाड़ों (उप स्तम्भों ) के हु बहु प्रतिरूप (Copies ) हैं।
निष्कर्ष निकलता है    नैल  खनसर  ( गैरसैण , चमोली )  गांव    में  आलम चंद्र का मकान  कुछ कुछ कुमाऊं के बखाई जैसे है व मकान में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (आभास ) अलंकरण हुआ है।
 
सूचना व फोटो आभार: प्रसिद्ध काष्ठ लोक कलाकार राजेंद्र बडवाल 
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तुस्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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Forest Management in Narendra Shah Period

History of Tehri King Narendra Shah -26
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 218     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1465
By: Bhishma Kukreti (History Student)
  Forest department was cash cow . Narendra Shah paid maximum attention on Forest management.  Narendra Shah sent a couple of young men to Forest research Institute Dehradun for studying Forest management and later on appointed them in Tehri state Forest department.  Narendra Shah also sent young men to France and Germany for high education in Forest Management. Narendra Shah called a German forest expert Husky for preparing projects (2). By those efforts, officials also started taking interest in improving forest management. Narendra Shah sent a MSc passed boy Padma Datt Raturi to England for further studies on Forest conservation. Padma Datt Raturi returned in India on 18th July 1926. Narendra Shah appointed Padma Datt Raturi as head of Forest department.
 Getting back Thadiyar forests- Thadiyar (Ravain)  forest were dense Cedar forests and were spread in many square kilo metres. The region was potential cash cow .British too that region on lease in Bhavani Shah period.  By efforts of Diwan Bhavani Datt, Tehri Riyasat got back those renges of forests back and the deal  fetched good income for Riyasat.
References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 22
2-Bhakta Darshan , Garhwal ki Divangat Vibhutiyan p 329
3- Garhwali , 24th July 1926
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020

Bhishma Kukreti

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Plant Classification in Sushruta Samhita based on Morphology

Glimpses of Botany in Sushruta Samhita -3
BOTANY History of Indian Subcontinent –123   

Information Compiler: Bhishma Kukreti   

 Sushruta Samhita classified plants as per morphology almost same as Charaka as follows (4) –
1-Vanasapti –Trees with fruits
2-Vanaspatay ----- Trees with flowers and fruits
3-oushadh – Plants those whither after fruiting
4-Virudha – Other herbs with spreading stem /branches   
References –
Acharya Balkrishna et all, ‘ Ancient Indian Rishi’s (sages) knowledge ……, International Journal of Unani and Integrative medicines 2019 (3) : 40-44
Copyright @ Bhishma Kukreti, for extra description

Bhishma Kukreti

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Guidelines for Job Rotations

Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 94 
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   

By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)

परस्परं समबला: कार्या: प्रकृतयो  दश   I
 एकस्मिन्नधिकारे तु पुरुषाणा  त्रयं  सदा II 110
.....
......
 नियोजयेतद्वर्तने तु  तदभावे  तथा  परम् I I115
  तदगुणो यदि  तत्पुत्रस्तत्कार्ये   तं नियोजयेत्
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 110 -116 )
Translation
The king should have same emotion for all employees or his own staff. King should not lets come up more than he deserves (that becomes challenge for the Kingdom). On all top osts , the King should appoint three top officers in administration, one wise as top most officers and other two as his deputies. Then watching the capabilities, within three to ten years, the King should rotate the positions of officers. No officer should be there for one position for long. Analysing the capabilities the position should be changes of each officer. Because by getting power, person become arrogant . Therefore according to ability there should be job transfer. When a person become over qualifies or more than capabilities that officer should be transferred. If the son of any officer is capable, he should be put on the position of father. 
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 110 -116  )
References -
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 79
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020
Guidelines for Job Rotations for Chief Executive Officers; Guidelines for Job Rotations for Managing Directors; Guidelines for Job Rotations for Chief Operating officers (CEO); Guidelines for Job Rotations for  General Mangers; Guidelines for Job Rotations for Chief Financial Officers (CFO) ; Guidelines for Job Rotations for Executive Directors ; Guidelines for Job Rotations for ; Refreshing Guidelines for Job Rotations for  CEO; Refreshing Guidelines for Job Rotations for COO ; Refreshing Guidelines for Job Rotations for CFO ; Refreshing Guidelines for Job Rotations for  Managers; Refreshing Guidelines for Job Rotations for  Executive Directors; Refreshing Guidelines for Job Rotations for MD ; Refreshing Guidelines for Job Rotations for Chairman ; Refreshing Guidelines for Job Rotations for President



Bhishma Kukreti

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Segregation of Old Records
History of Tehri King Narendra Shah -27
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 219     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1466
By: Bhishma Kukreti (History Student)
   Segregation of Official Record papers-
 There were piles of files lying  in Record room of Tehri Riyasat from Sudarshan Shah Period.  Narendra Shah ordered to segregate those files and destroy worthless files (2). Care was not taken properly and many important records were also destroyed forever.
 
References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 22, 23
2-Daurgadatti , Narendrakavyavansham p 200 
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020



Bhishma Kukreti

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द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के बाखली युक्त मकान  में काष्ठ  कला अलंकरण,लकड़ी पर  नक्कासी

T
raditional House Wood Carving Art  of  Dwarhat, Almora, Kumaon 
कुमाऊँ , गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण,लकड़ी पर  नक्कासी   - 199
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 द्वारहाट अल्मोड़ा में  प्रस्तुत उपाध्याय परिवार का यह मकान ऐतिहासिक है कि  यहां ऐतिहासिक पुरुष मोती लाल नेहरू  ने बैठक की थी व यह मकान  द्वारहाट के प्रथम विधायक मदन मोहन उपाध्याय से संबंधित भवन भी है।  अपरिवर्तित मकान बाखली थी व तिपुर व दुखंड ( बहार भीतर दो कमरे वाला )  भवन था।  अब एक भाग ज्यों का त्यों है व एक भाग स्व  मदन मोहन उपाध्याय  धरोहर में परिवर्तित कर दिया गया है।  परिवर्तित हिज्जे में लकड़ी पर ज्यामितीय कटान हुआ है व  भव्य बनाया गया है.
पारंपरिक बाखली भाग में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्काशी विवेचना हेतु  चार भागों पर टक्क लगानी  आवश्यक है -
१- तल मंजिल की खोली में काष्ठ कला
२- पहली मंजिल की बड़ी मोरी , झरोखा या छाज  में काष्ठ कला
३- पहली मंजिल की छोटी मोरी  झरोखे , छाज में काष्ठ  कला
४- दूसरी मंजिल में खिड़की पर नक्काशी
१-  द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के मकान के   तल मंजिल में खोली पर काष्ठ कला :-  तल मंजिल में  आम  उत्तराखंडी शैली की खोली शुरू होती है व पहली मंजिल में छत आधार तक पंहुचती है।  खोली  में दोनों ओर  सिंगाड़ (स्तम्भ) हैं व प्रत्येक सिंगाड़ (स्तम्भ) तीन तीन  उप सिंगाड़ों (स्तम्भों) के युग्म से  निर्मित हैं।  प्रत्येक उप स्तम्भ पत्थर के देळी (देहरी )  में पत्थर आधार पर स्थापित हैं व आधार पर काष्ठ कुम्भी है फिर ड्यूल है फिर घड़ा नुमा आकृति है व उसके ऊपर   उर्घ्वगामी कमलाकृति है व  यहाँ से उप स्तम्भ सीधी कड़ी में परिवर्तित हो  मुरिन्ड की कड़ी बन जाते हैं। परिवर्तित ससिंगाड़  कड़ी में प्राकृतिक (बेल बूटे ) की नक्काशी हुयी है।   मुरिन्ड के नीचे खोली में  तिप्पत्ति  कटान से बनी मेहराब है।  मेहराब के बहरी त्रिभुजों में एक एक अष्टदलीय फूल उत्कीर्णित हुए हैं।  मेहराब के ऊपर मुरिन्ड चौखट व बहु स्तरीय है।  मुरिन्ड के केंद्र में देव आकृति लगी है।  मुरिन्ड के ऊपर की कड़ी में भी वानस्पतिक कटान हुआ है।  मुरिन्ड के बगल में दोनों ओर दो दो दीवालगीर  (brackets ) लगे हैं. प्रत्येक डेवलगीर का आधार चौकोर है व उसके ऊपर हाथी बैठा है व हाथी के ऊपर पारंपरिक कलायुक्त डंडिकायें  हैं। 
२- द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के मकान   के पहली मंजिल के छाज /झरोखे /मोरी में काष्ठ कला -    पहली मंजिल में बड़ी मोरी या बड़ा छाज या झरोखा है।  छाज में तीन दरवाजे हैं।   दोनो किनारे के  दो दरवाजे  शानदार  बेलबूटे  से युक्त लकड़ी के पटिले  से  ढके हैं  और बीच का झरोखा आधार पर बंद है व ऊपर खनकने हेतु खुला है।  तीनों दर वाजों में किनारे पर दो दो स्तम्भ (सिंगाड़ ) हैं।  सभी छह सिंगाड़ आकृति में बिलकुल समान हैं।  प्रत्येक सिंगाड़ (स्तम्भ )  का आधार गोलाई लिए  आयात आकृति में है व उसके ऊपर बेल बूटों की नक्काशी हुयी है। गोलाई लिए आयताकृती के ऊपर घड़ा आकृति है जिसका आधार भी है व गला भी है।  घड़े के मुंह के ऊपर सीधा आकर्षक कमल फूल की आकृति है व कमल पंखुड़ियों के ऊपर  बेलबूटे उत्कीर्ण हुए हैं।  यहां से सिंगाड़ लौकी आकर ले लेता है  . जहां पर सबसे कम मोटाई है वहां उल्टा कमल दल आकृति है जिसके ऊपर ड्यूल है व ऊपर कुछ कुछ अर्ध घड़े की आकृति अंकित हुयी है व इस आकृति के ऊपर बेल बूटों की नक्काशी हुयी है।  इस आकृति के ऊपर अर्द्ध  धनुषाकार  आकृति उभरी है जिसके ऊपर बेल बोते की नक्काशी हुयी है।  अर्द्ध धनुष्कार आकृति समने वाले स्तम्भ (सिंगाड़ )  के    विपरीत दिशा में है।  सभी झरोखों। मोरियों / खोलों के मुरिन्ड बहुस्तरीय है व तल स्तर में बेल बूटों की नक्काशी हुयी है।
  बीच का खुला छाज  अन्य छज्जों से थोड़ा अलग है कि इस झरोखे के मुरिन्ड के नीचे मेहराब है।  मेहराब के ऊपर भी बेल बूटों की सुंदर नक्काशी हुयी है। 
३-  द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के मकान  के पहली मंजिल की खड़की में काष्ठ कला -  पहली मंजिल में एक छोटी खड़की या छोटी मोरी भी है जिसके दोनो और एक एक काष्ठ सिंगाड़ (स्तम्भ ) हैं।  छोटी खड़की /मोरी का प्रत्येक स्तम्भ  मुख्य खोली के स्तम्भ का प्रतिरूप (हो बहु नकल ) है।
४- द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के मकान  के दूसरी मंजिल  की खिड़की में लकड़ी पर केवल ज्यामितीय कटान ही हुआ है।
  निष्कर्ष निकलता है कि  द्वारहाट (कुमाऊं ) में उपाध्याय परिवार के मकान  में हिंदसे के मुतालिक (ज्यामितीय) , कुदरती (प्राकृतिक ) व  बुत्त युक्त (मानवीय ) नक्काशी हुयी है।  बाखली अपने समय भव्य रही होगी।   
सूचना व फोटो आभार : डा . दीपक मेहता
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
Traditional House Wood Carving art of Almora, Kumaon ;गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली, कोटि  बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन, लकड़ी पर नक्कासी   
अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; भिकयासैनण , अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;  रानीखेत   अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; भनोली   अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; सोमेश्वर  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; द्वारहाट  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; चखुटिया  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;  जैंती  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ; सल्ट  अल्मोड़ा में  बाखली  काष्ठ कला ;


 

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