Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 1101471 times)

Bhishma Kukreti

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सिलवाड़ (पौड़ी गढ़वाल ) में स्व चंडी प्रसाद घनसेला की निमदारी में  काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी   -  201
    
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 सिलवाड़  (पौड़ी गढ़वाल )  से  स्व चंडी प्रसाद घनसेला की निमदारी की फोटो सहित सूचना मिली है।  स्व चंडी प्रसाद घनसेला की निमदारी दुपुर , दुखंड (दुघर ) मकान में  स्थापित है।  निमदारी मकान के पहली मंजिल में दो तरफ स्थापित है।  निमदारी  में सामने की  ओर  दस स्तम्भ (खाम ) व दुसरी ओर  सात स्तम्भ (खाम ) स्थापित हैं।  प्रत्येक स्तम्भ (खाम ) लकड़ी के छज्जे से शुरू होकर ऊपर कड़ी रूपी मुरिन्ड (मथिण्ड ) से मिल जाते हैं।   प्रत्येक स्तम्भ  (खाम ) का आधार कुछ मोटा है अन्यथा पूरा  स्तम्भ ( खाम  ) सपाट  है।  आधार पर छह इंच व एक डेढ़ फिट की ऊंचाई पर रेलिंग हैं  व दोनो  रेलिंग के मध्य सपाट जंगला है। 
निमदारी लम्बी व दोनों ओर स्तम्भ (खाम ) होने के कारण  भव्य निमदारी  है व लकड़ी पर केवल ज्यामितीय कटान ही हुयी है।   
निमदारी अपने युवा  समय में सिलवाड़  व घनसेला  परिवार की शान व पहचान थी व आज भी पहचान है।   
सूचना व फोटो आभार :  विकास बडोला   (सोनिया द्वारा )

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी   - 
 
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श

Bhishma Kukreti

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  हिसरियाखाळ  (टिहरी ) में  बगवाल परिवार की भव्य निमदारी में   काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल    ) काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्कासी      - 202

संकलन - भीष्म कुकरेती

उत्तराखंड की तिबारियों , निमदारियों , बाखलियों , कोटि बनालों  के  प्रलेखन या दस्तवेजिकरण  में मित्रों का सहयोग अप्रतिम रहा है।  प्रतिदिन  मित्र भवनों के फोटो व सूचनाएं भेज रहे हैं जो संस्कृति बचाओं का द्योतक है।  ऐसे ही कुछ सूचनाएं परम मित्र भिलेश्वर झल्डियाल  ने श्रीकोट (देवप्रयाग निकट ) क्षेत्र से कई फोटो व सूचनाएं भेजी हैं।  प्रस्तुत है आज  हिसरियाखाल (टिहरी गढ़वाल ) में बग्वाल परिवार की निमदारी की काष्ठ कला विवेचना। 
  हिसरियाखाल  (टिहरी गढ़वाल  )  में बगवाल  परिवार के दुपुर , दुघर (दुखंड /तिभित्या ) मकान की पहली मंजिल में भव्य निमदारी  स्थापित है। बगवाल  परिवार की   निमदारी  पंद्रहखम्या  है याने निमदारी  में 15 स्तम्भ (खाम ) लगे हैं व निमदारी भव्य है। 
     हिसरियाखाल  (टिहरी गढ़वाल  )  में बगवाल  परिवार की निमदारी के  पंद्रह स्तम्भ (खाम )  लकड़ी के छज्जे पर टिके  हैं।  स्तम्भ (खाम ) आधार पर जायमितीय कटान से मोटे  (थांत , crkicket bat  blade ) बने हैं व जैसे  ऊंचाई की ओर  यह कटान समाप्त होता है यहां स्तम्भ (खाम ) घट रूप में प्रकट होता है व घट रूप के बाद उर्घ्वगामी कमल फूल है।   कमल की पंखुड़ियां लम्बी हैं।  कमल फूल  के बाद स्तम्भ (खाम )  लौकी आकर लेता है व जहां  स्तम्भ (खाम ) की मोटाई कम होती है वहां एक उल्टा कमल उभर कर परक होता है जिसके ऊपर सीधा कमल है।  यहां से स्तम्भ फिर से थांत (cricket bat blade जैसे ) रूप धारण करता है जैसे आधार पर है।  मुरिन्ड लम्बी सपाट काष्ठ कड़ी है जिसपर कोई विशेष कला नहीं दिखती है।
      हिसरियाखाल  (टिहरी गढ़वाल  )  में बगवाल  परिवार की निमदारी में  दो स्तम्भों के मध्य आधार व डेढ़ फुट के ऊपर दो लकड़ी की रेलिंग हैं जिनके मध्य XIX  आकर में जंगल बंधे हैं  व आकर्षक हैं।
    हिसरियाखाल  (टिहरी गढ़वाल  )  में बगवाल  परिवार  के मकान में बाकी हिज्जों में कोई  ख़ास नक्कासी देखने को नहीं मिली।
 
    हिसरियाखाल  (टिहरी गढ़वाल  )  में बगवाल  परिवार  की निमदारी अपने बड़े कार व पंद्रह खम्या रूप व स्तम्भों (खामों ) में कमल दल व घट आकर आकृतियों ने  निमदारी को भव्य व उत्कृष्ट श्रेणी में  रखवा दिया है।   

  सूचना व फोटो आभार :   पर्यावरण मित्र -भिलेश्वर झल्डियाल

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यह आलेख कला संबंधित है , मिलकियत संबंधी नही है I  भागीदारों व हिस्सेदारों के नामों में त्रुटी  संभव है I
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल     ) काष्ठ  कला  , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  , Koti Banal )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, लकड़ी नक्कासी ;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्कासी ;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्कासी ; House Wood carving Art from   Tehri;     

Bhishma Kukreti

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King Narendra getting honours from various organizations
History of Tehri King Narendra Shah -28
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 220     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1467
By: Bhishma Kukreti (History Student)
  King Narendra Shah got honours from various organizations (1) .
  King Narendra Shah was honoured by British government by offering him honorary position of offered when he was student. In 1929, Narendra Shah was honoured as major by the British government. In 1931 British government offered him position of Sir and KCSI. He was decorated as Maharaja position. In 1921, he was honoured as CIE by British government .
  Bharat Dharma Mandal honoured him by Dharam Rakshak –Shiromani and Dharmavaibhav . In 1937, Banaras University honoured King Narendra Shah by the honorary degree of L.L.D. In 1937, Garhwal Rifle honoured him by honorary position of Lieutenant Colone.

References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 22
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020


Bhishma Kukreti

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Brihat Samhita: An Introduction 

Glimpses of Botany in Brihat Samhita 1
BOTANY History of Indian Subcontinent –124   

Information Compiler: Bhishma Kukreti 

Varah Mihira was a Hindu Sage who lived in Ujjain ( MP ) .  As per his own work, Varah Mitra got education from Kappithak. Varah Mihira was a part of Nvaratna (Nine Jewels ) of court of Malwa ruler Vikramaditya .(2)
 The notable work of Varah Mihira (early 6th Century) is Brihat Samhita that is called an encyclopaedia of agriculture, architecture, astrology, cloud formation, eclipse, gemmology, mathematics, perfumes, planetary motions, rainfall, seasons, temples, timekeeping and many other topics.  Varah Mitra is credited for wring many texts on astrology .
Brihat Samhita translated into English by Punditbhushan V. Subramaniya Shastri and Vidwan M Ramakrishna Bhat   is available free on Internet. (Digitalized by Hari Prasad Das on 18th April 2013.
In the following chapters, the botanical aspects of Brihat Samhita will be discussed. 
References
1-O’ Connor, John, J.; Robertson, Edmond F, Varahmihira, Mac Tutor History of Mathematics Archive, University of St Andrews
2-History of Indian Literature, Motilal Banrasidass Publications, Delhi, 2008 page 46 
3-Aerial Glucklich (2008) The Studies of Vishnu: Hindu Culture in Historical Perspectiv, Oxford University Press, pp 10 
Copyright @ Bhishma Kukreti, for additional description


Bhishma Kukreti

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Criteria for Promoting Effective employee

Guidelines for Chief Executive Officers (CEO) series – 95
(Guiding Lessons for CEOs based on Shukra Niti)
(Refreshing notes for Chief Executive Officers (CEOs) based on Shukra Niti)   

By: Bhishma Kukreti (Sales and Marketing Consultant)

 यथा यथा श्रेष्ठ पदे ह्याधिकारी यदा भवेत I I116
अनुक्रमेण संयोज्यो  ह्यन्ते त प्रकृति  नयेत् I
अधिकारबलं दृष्टा योजयेद्दर्शकापन् बहून्  II 117
अधिकारणमेकं वा    योजयेद्दर्शकैविना I (Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 116-117 )
Translation –
If an employee becomes extra skilled or does high performance or gets expert that employee should be promoted at higher position. When the employee becomes total expert he should be promoted as head of department. When there is more work at that point, the employees should be more as per work load or there should be one skilled person than non-skilled workers. .
(Shukra Niti Second ChapterYuvrajadi Lakshan 116-117 )
 CEO (Chief Executive Officer) should have right  procedure for promoting the employees and should be informed all employees.
Usually following criteria is fixed for promoting the employees-
Experience in Job tenure
High performances levels in recent reviews
Improved skill than the required one or employee enhanced the skill while in present job .
Self-Motivating and capable for sustaining changes  in new position

 
References -
1-Shukra Niti, Manoj Pocket Books Delhi, page 80 
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020
Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for Chief Executive Officers; Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for Managing Directors; Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for Chief Operating officers (CEO); Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for  General Mangers; Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for Chief Financial Officers (CFO) ; Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for Executive Directors ; Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for ; Refreshing Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for  CEO; Refreshing Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for COO ; Refreshing Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for CFO ; Refreshing Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for  Managers; Refreshing Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for  Executive Directors; Refreshing Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for MD ; Refreshing Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for Chairman ; Refreshing Guidelines for Criteria of Promoting  Employees  for President




Bhishma Kukreti

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Narendra Shah Honouring Ghana Nand Khanduri and settlement of Border disputes

History of Tehri King Narendra Shah -29
History of Tehri Kingdom (Tehri and Uttarkashi Garhwal) from 1815 –1948- 221     
  History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) – 1468
By: Bhishma Kukreti (History Student)

 Ghana Nand Khanduri had good relation with the Royal family. Khanduri also diffused the border disputes with Tibet. Ghana Nand Khanduri was member of Forest Working Committee. Ghana Nand Khanduri helped many students for getting higher education. Ghana Nand Khanduri donated Rs, 35, 000 to Mukandi Lal for  visiting England for barrister degree.
In 1920, Narendra Shah honoured Ghana Nand Khanduri by offering a golden sword and a Khilat. When Ghana Nand Khanduri fell ill, King visited him for knowing his health.
Ghana Nand Khanduri expired on 28th July 1923 and King offered condolence (2)
        Border Disputes Settlements:-
There had been border disputes in West, North and North West border. There was border  dispute with Bushehar kingdom. Bhavani Datt Uniyal diffused dispute with Bushehar Kingdom. There was dispute for Dehradun border in Rishikesh. Bhavani Datt and King Narendra Shah had meeting with British officials and Kingdom agreed border up to Muni ki Reti only. Tehri lost some region to British. (1)

References-
1-Dabral S., Tehri Garhwal Rajya ka Itihas Bhag 2 (new edition), Veer Gatha Press, Dogadda, (1999) page 22
2- Bhakta Darshan , 1952, Garhwal ki Divangat Vibhutiyan p 205
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2020

Bhishma Kukreti

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सुकई (बीरोंखाळ ) में  बसन्वाल बिष्ट  परिवार की   भव्य तिबारी व खोळी में काष्ठ कला, अलकंरण , लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली  , खोली  , मोरी ,  कोटि बनाल   ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी  नक्काशी   - 192 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 एक समय था जब बेटी के विवाह की रजामंदी में गाँव में तनी तिबारियां है  ' का भी महत्व था।  लोक कथ्य था -क्या दीण  उख  बेटी जख तिबारी इ  नी  छन I  पौड़ी गढ़वाल के बीरोंखाल ब्लॉक के बनगरस्यूं पट्टी में सुकई गाँव भाग्यशाली गांव है जहाँ तिबारियों की लंगत्यार लगी है।  आज बसन्वाल बिष्ट  परिवार  द्वारा निर्मित  तिबारी -खोळी  में लकड़ी पर हुयी नक्काशी पर गुफ्तुगू होगी। आज बसन्वाल बंशज  ठाकुर बसन्वाल बिष्ट  परिवार तिबारी  संभालते हैं। 
सुकई  (बीरोंखाल )   में  बसन्वाल बिष्ट  परिवार का  मकान दुपुर है , दुखंड /दुघर है,  मकान में तल मंजिल से पहली मंजिल  की छत तक खोळी (मुख्य प्रवेश द्वार ) है  और पहली मंजिल में आकार , आकृति में समान दो तिबारियां स्थापित हैं।  तिबारी आज भी भव्य हैं और निर्माण काल के तुरंत बाद भी भव्य थी।  खोली की भव्यता की  प्रशंसा हो कम ही पड़ेगी।  कलाकारों को  नमन। 
  सुकई  (बीरोंखाल )  में  बसन्वाल बिष्ट  परिवार  के मकान में  काष्ठ  कला समझने हेतु दोनो  तिबारियों व खोळी पर टक्क लगानी आवश्यक है।  तल मंजिल में दो कमरों के दरवाजों में सपाट  कटान हुआ है। 
---:सुकई  (बीरोंखाल )  में  बसन्वाल बिष्ट  परिवार  के मकान की खोळी  में काष्ठ  कला , नक्काशी :----
खोळी बड़ी ऊँची है जो तल मंजिल से पहिली मंजिल की छत तक पंहुची है। खोळी के दोनों ओर भव्य सिंगाड़ हैं और प्रत्येक सिंगाड़  चार लघु स्तम्भों के जोड़ से निर्मित हुआ है। आंतरिक  दो लघु स्तम्भों के आधार में ज्यामितीय कटान है व ऊपर की ओर दोनों लघु स्तम्भों में वानस्पतिक अलंकरण अंकन हुआ है। दोनों आंतरिक  लघु स्तम्भ ऊपर जाकर निम्न तलीय मुरिन्ड की रचना करते हैं।  बाह्य दो लघु स्तम्भ वास्तव में आम गढ़वाली तिबारियों के ातमभ जैसी आकृति लिए हैं।  प्रत्येक बाह्य स्तम्भ के आधार में उलटे कमल की कुम्भी है फिर ड्यूल है ऊपर सीधा कमल फूल है।  यहाँ पर दोनों बाह्य लघु स्तम्भों के कटान में अंतर् आ जाता है।  बाह्य दो लघु स्तम्भ में जो लघु स्तम्भ अंदर की ओर  है उसमे सीधा कमल  के  ऊपर फिर से ड्यूल है व फिर दूसरा सुल्टा कमल   है।  यहां से लघु स्तम्भ सीधी ऊपर जाता है और  उसी तरह सबसे बाह्य लघु पहले  सीधे  से  सीधा ऊपर।    मुरिन्ड के  नीचे ही दोनों लघु स्तम्भों में उलटा कमल फूल आकृति  उत्कीर्णित है।  अंदर के बाह्य लघु स्तम्भ में यहाँ  कमल फूल के ऊपर ड्यूल है व फिर कमल दल है जो कुम्भी आकृति बनता।  ऊपर फिर ड्यूल है व ऊपर चौकोर सी आकृति में बदल जाता है व फिर थांत शक्ल में बदलते हुए ऊपरी मुरिन्ड की  बदल जाता है।  थांत में  पर्ण -तीर  पैटर्न की आकृतियाँ खड़ी है।  दूसरी और यहां सबसे बाहर का लघु स्तम्भ  गोल सी आकृति लेकर ऊपर मुरिन्ड से मिल जाता है।  इस दौरान  स्तम्भ में fleut -flited ( उभार  व गड्ढा ) आकृतियां दृष्टिगोचर होती है। 
 खोळी में मुरिन्ड में दो भाग हैं - निम्न तलीय मुरिन्ड व  शिखर तलीय मुरिन्ड।  निम्न तलीय मुरिन्ड की सभी तीनों कड़ियों में बारीक वानस्पतिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है।  बेल बूटों की नक्कासी चित्तार्शक है।  इस निम्न तलीय मुरिन्ड के ऊपर  नक्काशीदार मेहराब है जिसके नीचे वाले भाग में ज्यामितीय कटान से  अमूर्त आकृति अन्न हुआ है व मध्य में  बहु भुजीय देव आकृति (संभवतया गणेश ) अंकित है।
 निम्न तलीय मुरिन्ड के ऊपर मेहराब के बाहर के दोनों त्रिभुजों  के किनारे एक एक बहुदलीय पुष्प अंकित है व बाकी त्रिभुज के भाग में प्राकृतिक फर्न जैसे आकृति अंकन हुआ है। 
 ऊपरी मुरिन्ड के दोनों कड़ियों में ज्यामितीय कटान से सुंदर अंकन हुआ है। 
 ऊपरी मुरिन्ड के सबसे ऊपरी कड़ी के बाहर दोनों किनारों में  मेहराब के बाहर त्रिभुज  आकृतियां उत्कीर्ण हुयी है जिनमे एक एक बहुदलीय फूल उत्कीर्णित है। इन त्रिभुजों के बाहर के  कड़ियों में प्राकृतिक व जायमितीय अंकन हुआ है.
 ---: खोळी  के दीवालगीरों में नक्काशी :--
खोळी  के मुरिन्ड से कुछ नीचे स्तम्भों के बाहर दो दो दीवालगीर  स्थापित है याने कुल चार दीवालगीर हैं।  प्रत्येक दीवालगीर में वर्टिकली  सात हैं व प्रत्येक स्टेप में छयूंती  दल या अन्य अमूर्त आकृति खुदी हैं।  ऊपर से निम्न की ओर तीसरे स्टेप में हाथी उत्कीर्ण हुआ है।  नक्काशी में बारीकी है।
--:छप्परिका  आधार में काष्ठ  कला :--
वर्षा बचाव हेतु खोळी  के ऊपर कलयुक्त छप्परिका  है जिसका  आंतरिक  आधार लकड़ी का है।  आंतरिक काष्ठ आधार से दसियों शंकु लटक रहे है जो चित्तार्शक हैं।  छ्प्परिका के आधार में सूर्य आकृति खुदी हैं जहां से कलश नुमा आकृतियां लटकी हैं व देव या प्रतीकात्मक आकृति भी लटकी है।
---------:  सुकई  में बसन्वाल बिष्ट  परिवार की तिबारी में काष्ठ कला , नक्काशी :---
 सुकई में बसन्वाल बिष्ट  परिवार के मकान के पहली मंजिल में दो  भव्य तिबारियां स्थापित हैं।  दोनों तिबारियां   आकार , कला व आकृतियों के हिसाब से बिलकुल समान हैं। प्रत्येक तिबारी चौखम्या व तिख्वळ्या (चार स्तम्भ व तीन ख्वाळ /द्वार वाली ) हैं।    दीवार  स्तम्भ को जोड़ने वाली सभी कड़ियों में ज्यामितीय कटान से वानस्पतिक आकृति उभरी हैं। 
प्रत्येक स्तम्भ देहरी के ऊपर पत्थर के चौकोर डौळ के ऊपर टिके हैं।  प्रत्येक स्तम्भ में आधार पर उल्टा कमल फूल, फिर ड्यूल ,  सीधा खिलता कमल फूल अंकित है व यहीं से स्तम्भ लौकी आकर धारण कर लेता है जब स्तम्भ की मोटाई सबसे कम हो जाती हैं वहां उल्टा कमल फूल अंकन है फिर ड्यूल है व उसके ऊपर चौकोर सीधा खिलता कमल फूल की आकृति में  बदल जाता  यहीं से स्तम्भ दो भागों में विभक्त  हो जाता है।  स्तम्भ के कमल रूपी आधार से एक भाग थांत रूप धारण कर ऊपर मुरिन्ड पट्टिका से मिल जाता है।   थांत के ऊपर दीवालगीर (bracket ) स्थापित हैं। दीवालगीर में  हाथी छोड़ वही आकृतियां खुदी है जो खोळी की दीवालगीरों में खुदी हैं
स्तम्भ के इसी भाग से मेहराब का एक मंडल शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के मंडल से मिलकर पूरा मेहराब बनता है।  महराब तिपत्ति  (trefoil )  अनुरूप है।  मेहराब के बाहर दो त्रिभुज है व प्रत्येक
 त्रिभुज में किनारे पर एक एक बहुदलीय फूल हैं व त्रिभुज प्राकृतिक कटान हुआ है।  मेहराब  ऊपर मुरिन्ड में पांच छह पट्टिकाएं हैं। छत के आधार से दसियों शंकु लटक रहे है जो तिबारी की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे हैं।
 तिबारी के व खोळी दरवाजों  में ज्यामितीय कटान हुआ है। 
निष्कर्ष निकलता है कि सुकई (बीरोंखाल )  में बसन्वाल बिष्ट  परिवार  द्वारा  निर्मित  बसन्वाल बिष्ट  परिवार के भव्य मकान    में  भव्य खोळी  है व भव्य दो तिबारियां स्थापित हुए हैं  ज्यामितीय , प्राकृतिक,  मानवीय (पशु व देव प्रतीक ) कलाएं प्रदर्शित हुयी हैं। सुकई में   मकान की भव्यता व बारीक नक्काशी के लिए  ओड  व काष्ठ  शल्पकार सदा  याद  रहेंगे व बसन्वाल  बिष्ट का  कला प्रेम को भी याद किया जायेगा।
  यह तिबारी  स्व ख्यात सिंह बसन्वाल बिष्ट  परिवार ने निर्मित की थी व अब उनके पुत्र विजय भारत सिंह बिष्ट, दिलबर सिंह बिष्ट व यतेन्द्र बिष्ट  मकान की देखरेख कर रहे हैं .
  सूचना व फोटो आभार : संतन सिंह रावत,  सुकई   
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान ,बाखली ,  बाखई, कोटि बनाल  ) काष्ठ  कला अंकन नक्काशी   - 
 
Tibari House Wood Art in Kot , Pauri Garhwal ; Tibari House Wood Art in Pauri block Pauri Garhwal ;   Tibari House Wood Art in Pabo, Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Kaljikhal Pauri Garhwal ;  Tibari House Wood Art in Thalisain , Pauri Garhwal ;   द्वारीखाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला, लकड़ी नक्काशी  ;बीरों खाल ,  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; नैनीडांडा  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; लकड़ी नक्काशी पोखरा   पौड़ी  गढवाल पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; रिखणीखाळ  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ; जहरीखाल  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;  दुग्गड्डा   पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला , लकड़ी नक्काशी ; यमकेश्वर  पौड़ी  गढवाल में तिबारी,  खोली , भवन काष्ठ  कला नक्काशी ;   खम्भों  में  नक्काशी  , भवन नक्काशी  नक्काशी,  मकान की लकड़ी  में नक्श


Bhishma Kukreti

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मंगोली (उखीमठ ) में आशाराम नौटियाल  की खोली में काष्ठ कला अंकन , लकड़ी नक्कासी


  Traditional House wood Carving Art of   Mangoli , Rudraprayag 

 गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   , खोली , छाज  कोटि बनाल  ) काष्ठ कला अंकन , लकड़ी नक्कासी   -  203
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती

 एक बार प्रसिद्ध विद्वान     डा डी  आर.  पुरोहित ने  रुद्रप्रयाग  में प्रचलित कहावत का उद्धरण दिया था ' उठायीं  बीबी अर भ्यूंतळ  कूड़  इकजनी  हूंदन '  . याने कि  रुद्रप्रयाग  में  केवल उबर वाले मकान व बिन खोली के मकानों की सामजिक स्तर पर कोई कीमत नहीं है मंदाकनी घाटी में।  यह मेरे अब तक के  सर्वेक्षण से भी पता चलता है  कि चमोली, रुद्रप्रयाग व कुमाऊं में कलायुक्त खोली बगैर  कूड़  नहीं सोचा जा सकता है।  पौड़ी गढ़वाल में ब्रिटिश काल के अंत या 1900  के लगभग बड़े छज्जों व बाहर से सीढ़ियों का रिवाज बढ़ा तो कलायुक्त खोलियों का रिवाज काम होता गया। 
 आज प्रस्तुत के रुद्रप्रयाग  के उखीमठ क्षेत्र  में मंगोली गाँव में आशाराम नौटियाल  के मकान की खोली  में काष्ठ कला विवेचना।   कला दरसिहति से मंगोली (उखीमठ ) में आशाराम नौटियाल  की खोली उच्च दर्जे की खोली में  अपना स्थान बनाने के सक्षम है। 
 जैसे कि   पश्चमी देहरादून उत्तरकाशी , उत्तरी गढ़वाल व कुमाऊं में खोली निर्माण शैली का प्रचलन है वैसे ही मंगोली के आशाराम नौटियाल के भवन की खोली में दोनों ओर के सिंगाड़ (स्तम्भ) बहु उप स्तम्भों के युग्म से निर्मित  हुए हैं।   मंगोली में आशाराम नौटियाल के भवन की खोली का प्रत्येक सिंगाड़ (स्तम्भ )  आठ उप स्तम्भों के युग्म (जोड़ ) से निर्मित हुआ है जो इस बात का द्योत्तक है कि काष्ठ कलाकार व नौटियाल परिवार बारीक नक्काशी में विश्वास करते थे।   आठों उप स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिन्ड की कड़ियाँ बन जाते हैं या मुरिन्ड के स्तर बन जाते हैं ।   बाहर के उप स्तम्भों को छोड़ बाकी स्तम्भों में  लता -पर्ण  (creepers  and  leaves ) का  महीन अंकन  हुआ है और महीन अंकन की प्रशंसा बोल  मुंह में आ ही जाते हैं।   बाहर के उप स्तम्भों के आधार पर उल्टा कमल अंकित है फिर ड्यूल है उसके बाद सुल्टा  कमल दल है व फिर स्तम्भ में धार -गड्ढे आकर अंकन है व स्तम्भ ऊपर की ओर  बढ़ जाते हैं ऊपर उल्टा कमल है फिर स्यूल अंकन है फिर सीधा उर्घ्वगामी कमल फूल  अंकन है व फिर स्तम्भ सीधे हो  ऊपर मुरिन्ड की बाह्य कड़ी बन जाते है।  यहां से स्तम्भों में वानस्पतिक व प्रतीकात्मक (काल्पनिक ) मिश्रित अंकन हुआ है जो मुरिन्ड की कड़ी में भी  दृष्टिगोचर होता है। 
मुरिन्ड केंद्र में  चतुर्भुज, जनेऊधारी  गणेश  (देव प्रतीक )  की मूर्ति अंकित है जो लंगोट में है व पालथी मारे बैठे  हैं  .
मुरिन्ड के ऊपर छप्परिका  आधार है व वहां तीन विशेष सूरज मुखी जैसे बड़े बड़े फूल अंकन हुआ है। 
मुरिन्ड के अगल बगल दोनों ओर  दो दो दीवालगीर (bracket ) हैं।  दोनों ब्रैकेट एक दुसरे की पूरी नकल है।  दीवालगीर  सबसे नीचे तोता अंकित है  व दोनों तोतों के मध्य नीचे पहले अष्ट  दलीय पुश अंकन है तो ऊपर मध्य में  सूरजमुखी का फूल की नक्काशी हुयी है।  तोते के सर के ऊपर  सीधा कमल फूल व उसके ऊपर उलटा कमल दल है व  तीन आधार पट्टिका हैं व सबसे ऊपर की पट्टिका में  दंत युक्त हाथी अंकित हुए हैं। 
निष्कर्ष निकलता है कि  मंगोली (उखीमठ ) में आशाराम नौटियाल  की  भव्य खोली में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय तीनों प्रकार के अलंकरण अंकित हुए है व अंकन महीन है व  अंकन में बहुत ध्यान दिया गया है।  कलाकारों की प्रशंसा वश्य्क है किन्तु अफ़सोस  इस अभिलेखीकरण सूचनाओं में में कलाकारों के बारे में सूचना नहीं मिल रही हैं   
सूचना व फोटो आभार :  प्रसिद्ध रंगकर्मी डा. राकेश भट्ट

  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
  Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020   
 Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag    Garhwal  Uttarakhand , Himalaya   
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण , नक्कासी  श्रृंखला 
  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार  मकान , बाखली   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  - 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya ; Traditional House wood Carving Art of  Rudraprayag  Tehsil, Rudraprayag    Garhwal   Traditional House wood Carving Art of  Ukhimath Rudraprayag.   Garhwal;  Traditional House wood Carving Art of  Jakholi, Rudraprayag  , Garhwal, नक्कासी , जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला, नक्कासी  ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला अंकन, नक्कासी  , खिड़कियों में नक्कासी , रुद्रपयाग में दरवाजों में नक्कासी , रुद्रप्रायग में द्वारों में नक्कासी ,  स्तम्भों  में नक्कासी


Bhishma Kukreti

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जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में काष्ठ कला अंकन, अलंकरण, लकड़ी नक्काशी


गढ़वाल,  कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन  ( बाखली  ,   तिबारी , निमदारी , जंगलादार  मकान ,  खोली  ,  कोटि बनाल   )  में काष्ठ कला अलंकरण, नक्काशी  -  205
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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गंगोलीहाट , पिथौरागढ़  से कई बाखलियों की सूचना मिली हैं।  ऐसे ही ज़ाजार से भी कुछ बाखलियों की सूचना मिलीं हैं।  आज नर  सिंह रावल की बाखली में काष्ठ कला की विवेचना की जाएगी। वास्तव में फोटो बाखली के एक ही हिज्जे की मिल पायी है।  बाखली तिपुर व दुखंड /दुघर है।  मकान का तल घर याने गोठ  शायद अब भी गौशाला रूप में  उपयोग होता है।  मकान की फोटो में  खोली नजर नहीं आ रही जिसका अर्थ है खोली दुसरे हिस्से में स्थापित होगी।
 काष्ठ कला विवेचना  दृष्टि से   जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में  छोटी खिड़की (छोटी मोरी ) व बड़ी मोरियों या छाजों (झरोखों ) में काष्ठ कला पर ध्यान देना होगा। 
  जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की तिपुर बाखली    में तल मंजिल में दो कमरे व दो खिड़कियां  ही फोटो में दृष्टिगोचर हो रहे हैं व उनमें केवल ज्यामितीय कटान के लक्षण दिख रहे हैं। 
  जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली   में पहली मंजिल में दो कमरे  व तीन  छोटी मोरियों /खिड़कियों  झरोखों में  ज्यामितीय कटान है।  पहली मजिल  तीन बड़े  झरोखों /छाजों (मोरियों ) व दूसरी मंजिल में पांच बड़े झरोखों /छज्जों  में कुमाऊंनी  पारंपरिक  काष्ठ  कला के दर्शन होते हैं जो पुरे  कुमाऊं मे सब जगह प्रचलित थे व हैं।  यह कला गर्ब्यांग (धारचूला ) में भी दिखती है तो धानाचूली क्षेत्र में भी दिखती है।    सभी आठों छाजों /झरोखों  में काष्ठ कटान , काष्ठ कला अंकन , नक्काशी सब में एक जैसी है। 
    जैसे कि  कुमाऊं की आम छाजों में प्रचलित शैली है कि छाजों के  सिंगाड़ (स्तम्भ ) जोड़े में या त्रियुग्म या चतुर्युग्म में होते हैं  वैसे ही  जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली में सभी छाजों /झरोखों के सिंघाड  (स्तम्भ ) भी  दो दो  स्तम्भों  निर्मित।   आधार  में प्रत्येक उप स्तम्भ कुछ सीधा है पर कुछ ऊपर ही उल्टा कमल दल  अंकित है जिसके ऊपर ड्यूल (ring type wood plate ) है जिसके ऊपर  फूल है व    यहां से उप स्तम्भ सीधा हो ऊपर मुरिन्ड /शीर्ष या abacus   की एक परत बन जाता है।  आधे  स्तम्भ / सिंगाड़ से  अंडाकार ढुढयार (खोह )  का   है।  ढुढ्यार (खोह /छेद )  के नीचे का छेद लकड़ी के पटिले  से बंद है।  लकड़ी के तख्तों  (जो छेद बंद करते हैं )    में ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त कोई कला नहीं दिखी। 
जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली  के पहली मंजिल के खिड़कियों या लघु छाजों /मोरियों  में कोई विशेष  कटान नहीं मिलता है।  जबकि  बाखली के दूसरी  मंजिल की  चौखट नुमा लघु खिड़कियों /छाजों /मोरियों में लकड़ी में तो ज्यामितीय कटान ही मिलता है किन्तु बाहर पत्थर /गारे के अर्द्ध मंडप /मेहराब बने हैं जो इस बात का द्योत्तक  है कि  इस भूभाग पर ब्रिटिश भवन शैली का पूरा प्रभाव पड़ा था। 
 निष्कर्ष निकलता है कि  जाजार (पाताल भुवनेश्वर ) में नर सिंह रावल की बाखली के इस हिज्जे में ज्यामितीय काष्ठ कला व प्राकृतिक (कमल  फूल ) कला अंकन ही मिलता है व मानवीय /प्रतीकात्मक हुलिया नदारद हैं। 
अब धीरे धीरे संयुक्त परिवार की बाखलियों को तोड़कर  सुविधायुक्त मकान बना रहे हैं या संयुक्त परिवार में बंटवारा संभव न हो तो नए मकान बनवाये जा रहे हैं और तिबारियां व बाखलियाँ जर्जर हो खत्म हो रही हैं।  आधुनिक घर निर्माण व्यवहारिक भी हैं व समय की मांग भी है।  ऐसे में बाखलियों , तिबारियों व निमदरियों का दस्तावेजीकरण आवश्यक हो जाता है।   
*तिपुर = तल मंजिल व 2 और मजिल
**दुखंड /दुख्र या तिभित्या = मकान में एक कमरा आगे व एक पीछे याने तीन भीत (दीवाल )
*** मोरी = खिकड़ी , छाज , झरोखा जिसमे अंडाकार ढुढयार (खोह ) होता है।  यह खोह ढका भी हो सकता है व कभी नीचे ढका हो व्  झरोखा बिन ढक्क्न के भी हो सकता है। 
सूचना व फोटो आभार: राजेंद्र रावल , जाजार
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 कैलाश यात्रा मार्ग   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  धारचूला  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  डीडीहाट   पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;   गोंगोलीहाट  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी  ;  बेरीनाग  पिथोरागढ़  के मकानों में लकड़ी पर   कला युक्त  नक्काशी ;  House wood art in Pithoragarh


Bhishma Kukreti

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 बुटकोट (जौनपुर ) में गौड़ परिवार की नौखम्या तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्काशी

H
ouse wood Art, Butkot, Tehri
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल   ) काष्ठ  कला , अलकंरण , अंकन , लकड़ी नक्काशी  -   206
संकलन - भीष्म कुकरेती  

  टिहरी जनपद के जौनपुर , पल्लीगाड पट्टी  क्षेत्र से  कई भव्य  तिबारियों , निमदारियों की सूचना मिल रही हैं। आज इसी क्रम में 80  वर्ष  पहले बुटकोट (जौनपुर )  में  स्व अनंत राम गौड़ द्वारा निर्मित नौखम्या -अठख्वळ्या (नौ स्तम्भ या आठ ख्वाळ वाली ) भव्य तिबारी में काष्ठ कला अलंकरण अंकन (नक्काशी ) पर चर्चा होगी।   आज  बुटकोट के इस भव्य तिबारी   को लोक गायक मनोज गौड़ की तिबारी नाम से पहचाना जाता है।
   बुटकोट (पल्ली गाड )  के गौड़ परिवार के दुपुर , दुघर (दुखंड ) मकान के पहली मंजिल में नौ सिंगाड़ों (स्तम्भों , खामों ) वाली भव्य तिबारी स्थापित है।  नौ खम्या तिबारी का सीधा अर्थ है कम से कम  चार  कमरों से बने बरामदे पर नौ स्तम्भों  से निर्मित तिबारी  स्थापित है।  मकान में सीढ़ी बाहर से है जिसका अर्थ है खोळी   निर्मित नहीं है या बंद कर दी गयी है।
तिबारी के नौ के नौ खामों।/ सिंगाड़ों/ स्तम्भों  में कटान व कला एक जैसी है।  सभी स्तम्भ /खाम  /सिंगाड़  पत्थर के छज्जे के ऊपर स्थापित देळीदेहरी में आधारित हैं।
प्रत्येक स्तम्भ के आधार में कुछ कुछ चौकोर अधोगामी पद्म पुष्प  दल (उल्टे  कमल फूल की पंखुड़ियां ) से बना है। अधोगामी कमल फूल के ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर सीधा कमल फूल खिला है।  यहां से स्तम्भ /सिंगाड़ लौकी शक्ल ले लेता है व जहां पर स्तम्भ सबसे कम मोटा है  वहां एक उल्टा कमल फूल है जिसके ऊपर सीधा कमल फूल है व यहाँ से सिंगाड़ /स्तम्भ सीधा ऊपर थांत (Cricket bat blade type ) की शक्ल अख्तियार कर मुरिन्ड (शीर्ष ) से मिल जाता है और यहीं थांत  की जड़ से ही मेहराब का आधा भाग शुरू हटा है जो सामने के स्तम्भ के आधे भाग से मिलकर पूरा मेहराब बनता है।  मेहराब या तोरण तिपत्ति शैली (trefoil )में कटा है व इसके बाह्य त्रिभुजों में कोई कला अंकन नहीं दिखती है।
  निष्कर्ष निकलता है बल जौनपुर टिहरी के बुटकोट  में  गौड़ परिवार की नौखम्या -अठख्वळ्या तिबारी भव्य है व  भव्य तिबारी में ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण ही हुआ है।  कहीं भी मानवीय अलंकरण (Figurative ornamnetation )  के चिन्ह नहीं मिलते हैं।   
 
  सूचना व फोटो आभार: जगमोहन सिंह जयाड़ा


 यह आलेख कला संबंधित है , मिलकियत संबंधी नही है I  भागीदारों व हिस्सेदारों के नामों में त्रुटी  संभव है I
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, जंगलेदार निमदारी  , बाखली , खोली , मोरी कोटि बनाल     ) काष्ठ  कला  , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी  - 
Traditional House Wood Carving Art (in Tibari), Bakhai , Mori , Kholi  , Koti Banal )  Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -
  Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya   -   
घनसाली तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;  टिहरी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;   धनौल्टी,   टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, लकड़ी नक्काशी ;   जाखनी तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला , नक्काशी ;   प्रताप  नगर तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ;   देव प्रयाग    तहसील  टिहरी गढवाल  में  भवन काष्ठ कला, नक्काशी ; House Wood carving Art from   Tehri; 


 

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