Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 717084 times)

Bhishma Kukreti

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अथ करुणो नाम , अब करूण  रस
भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा  - 5
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद – भीष्म कुकरेती
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इष्टवधदर्शनाद्वा  विषयवचनस्य संश्रवाद्वापि। 
एभिभविशेषै: करूणरसो नाम संभवति । ।    (6.62 ) 
अपण प्रियजनै ह्त्या दिखण से या   अप्रिय वचन सुणण आदि  का विशेष भावों से उत्पन्न  हूण वळ  रस करुण रस हूंद।    .    .   
भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा 

Bhishma Kukreti

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अथ रौद्र नाम अब रौद्र रस नाम /मोनोविज्ञान 

भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा  - 6
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद – भीष्म कुकरेती
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  अथ रौद्र नाम
युद्ध प्रहारघातनाविकृतच्छेदनविदारऐश्चैव I
संग्रामसम्भ्रमाद्यैरेभि: संजायते रौद्र II (6,64)
जुद्ध म प्रहार , आघात , (धक्का मुक्की ) , चिन्न भिन्न करिक विकृत करण से , कटण , जुद्ध संबंधी कार्यकलापुं , भ्रामक हलचलुं से रौद्र रसौउत्पति हूंद I
भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  अनुवाद  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा 


Bhishma Kukreti

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 अथ वीरो नाम  /वीर रस मनोविज्ञान

भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा
भरत नाट्य शास्त्र   गढवाली अनुवाद – भीष्म कुकरेती
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अथ वीरो  नाम
उत्साहादध्यवसायादविषादित्वादविस्मयान्मोहात् I
विविधादर्थविशेषाद्वीररसो   नाम सम्भवति II   (6 ,67 )
प्रसन्न्तापूर्वक उलार , निरंतर परिश्रम, विषाद , विस्मय , मोह -शून्यता ,सतर्कता  अर इनि विशिष्ठ अर्थो द्वारा उलारमूलक वीर रास उतपन्न हूंद ।   
भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा


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  पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  साधना पद     भाग -  2 , पद 6 -10
अनुवादक -  भीष्म कुकरेती
s = आधा अ
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दृगदर्शन  शक्त्यौरेकात्मतेवा s स्मिता।  -2 . 6
ड्रिंक शक्ति  याने आत्मा  अर दर्शन शक्ति कु  एक जनि भान /समजण  ही त अस्मिता / अहम  च। 
सूखानु शयी रागः  2. 7
सुख भोगण ै इच्छा क उपरान्त सुख भोगणै  इच्छा राग  च। 
 दुखानुशयी  द्वेषः I  2. 8
दुःख घीण  पैदा करद  या  दुःख की प्रतीति क पैथर  रण  वळ क्लेश दुःख च। 
स्वरस  वाही  विदुषोs पि  तथा रुढ़ो sभि निवेशः I  2.  9
जु रुढ़ि (परम्परागत स्वभाव )  बिटेन  चल्युं  आयुं च अर जु मूर्खों भांति  विद्वानों म बि हूंद वो अभिनिवेश' (मुरणो डौर )  '  च। 
ते प्रतिपरसवहेयाः सूक्ष्मा।   2. 10
वु सूक्ष्म क्लेश /दुःख प्रतिप्रसव   अर्थात  योगिक (जटिल ) विधि से कम या समाप्त करे जांदन। 
 
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष योग सूत्र अनुवाद  अग्वाड़ी  खंडोंम 


Bhishma Kukreti

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मर्सू (रामदाना,चौलाई, चुवा) का लाभ :

इकबटोळ – भीष्म कुकरेती
मर्सू तपेदिक रोगी कगर्दन की लिम्फ नोड सूजन हीन करदI
मर्सू (रामदाना )  छाती डा हीन करद
मर्सू (रामदाना )  से विबंध (कब्ज ) राहत मिल्दोI (पत्तों साग खाण) I
मर्सू बबासीर म लाभकारी च I
मर्सू (रामदाना )  उर्जासंचारक च
मर्सू म  प्रतिओउक्सिकार्क तत्व हूंद तो कोलेस्ट्रोल नियन्त्रण म लाभकारी I
मर्सू म कैल्सियम भौत हूंद तो हड्डी कुण लाभकारी I
मर्सू (रामदाना )  चक्षुऊँ कुण लाभकारी
मर्सू (रामदाना )  भार हीन करण म मर्सू लाभकारी च I
मर्सू (रामदाना )   मधुमेय नियन्त्रण  करण म सहायक
मर्सू (रामदाना )   मूत्रकृच्छ (मूत धीरे धीरे हूण ) माँ बि लाभकारी च I
मर्सू (रामदाना )   का बनि बनि भोजन –
आटो से – रुटि , हलवा , परांठा
सत्तू , खील का लड्डू
पत्तों भुज्जी आदि आदि
टिक्की
*** रोग की दशा म वैद्य से इ लाह लेन ! यु लेख एक आम लेख च ना कि भेषज लेख I

 


Bhishma Kukreti

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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  साधन पद     भाग - 3
पद 11 -15
अनुवादक -  भीष्म कुकरेती
s = आधा अ
ध्यानहेयास्तद्वृत्तयः  II 2,11 I
सकल व लघु मनस्ताप जनित अस्थिर  चेतना ध्यान से  समाप्त करे  सक्यांद। 
क्लेशमूल: कर्मशयो दृष्टादृष्टजन्मवेदनीय: ।I  2,12 । 
वर्तमान व भावी जन्मों म भुगण योग्य वासनाओं ( कर्म संस्कारुं  समुदाय )  का मूल  'क्लेश ' च।  याने शेष बच्यां  संताप अगवाड़ी  अस्थिरता लांदन। 
सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगा: ।2,13 । 
जब तक कर्म मूल  विद्यमान  तब तलक पुनर्जन्म, आयु (जीवन) अर भोग  विद्यमान डाला। 
ते ह्लादपरिताप फलाः पुण्यापुण्यहेतुत्वात्।। 2,14 ।   
उ (जन्म , आयु अर भोग)  हर्ष अर शोक रूप फल दीण वळ हूंदन किलैकि ऊंक पुण्य कर्म अर पाप कर्म द्वीइ इ कारण हूंदन। 
परिणामतापसंस्कारदुःखैर्गुणवृत्ति  विरोधाश्च दुःखमेव सर्वविवेकिनः  II2,15  I
परिणाम दुःख, ताप/संताप दुःख, अर संस्कार दुःख यी तिनि प्रकार का दुःख सब म विद्यमान रौणै कारण अर तिनि गुणों ( सत्व , रज , तम) की वृत्यों म विरोध हूणो कारण विवेक्यूं कुण सबका सब दुःख स्वरूप इ छन। 
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष योग सूत्र अनुवाद  अग्वाड़ी  खंडोंम


Bhishma Kukreti

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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  साधना पाद     भाग - 4
अनुवादक -  भीष्म कुकरेती
s = आधा अ
-
हेयं  दुःखमनागतम्  ।  2 ,16 । 
आण वळ दुःख नष्ट करण योग्य च। 
दृष्ट्रश्ययोः  संयोगो हेयहेतु ।  2 ,17 । 
दृष्टा अर दृश्य को संयोग दुःख कारण च याने  प्रकृति ( जो दिख्यांद  च ) तैं  आत्मा  (जो दिखुद  च ) समझ ण  ही दुःख कारण च। 
प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मकं ।  2 ,18 ।   
प्रकृति तीन प्रकार का हूंद - सत्व , राजस अर  तामस, अर एक विकासज तत्व , मन , धारणा इन्द्रिय , अर  क्रियान्ड्रिया छन,अर मन , अन्य इन्द्रिय , कार्येन्द्रिय सब प्रकृति अर  आत्मा क सेवा/भोग  कुण  छन।   ।  अर्थात प्रकाश , क्रिया अर स्थिति जैक स्वाभाव म च , अर भूत व इन्द्रियाँ  जैक स्वरूप छन , पुरुषौ कुण  भोग अर  मुक्ति  सम्पादन कर्ण ही जैक प्रयोजन हो वो इन दृश्य च। 
विशेषविशेषलिंगमात्रालिङ्गानि  गुणपर्वाणि । 2 , 19  ।   
गुण लक्षण पैदा करदन  अर  साक्षी (जु  दिखुद )  तै ऊर्जा संचार करदन।  यूं  गुणुं  क अलग अलग सीढ़ी  हूंदन - विशेष , अ -विशेष व  भेद योग्य अर   अ -भेद  योग्य।   
दृष्टा दृष्टिमात्रः  शुद्धोsपि  प्रत्ययानुपश्य: । 2 , 20 ।
चरतना मात्र (आत्मा ) दृष्टा  सर्वथा शुद्ध च , तो बि बुद्धि वृत्ति  का अनुरूप दिखण  वाळ  च। अर्थात  प्रकृति जड़ च तो देख नि   सकदी अर  आत्मा दिखण वल च किन्तु  शुद्ध , निराकार , असंग , कूटस्थ , च अर  ना ही कर्ता  च ना ही भोक्ता।   
.
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष योग सूत्र अनुवाद  अग्वाड़ी  खंडोंम


Bhishma Kukreti

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 पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  साधना पाद     भाग -  5
अनुवाद आचार्य  -  भीष्म कुकरेती
s = आधा अ
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तदर्थ एव दृश्य स्यात्मा  II 21  II
उ मथ्याक दृश्य वैकुण  इ  (आत्मा ) च।  अथवा प्रकृति अर  बुद्धि आत्मा क सेवा वास्ता  कुण  च।
कृतार्थ प्रति नष्टमप्यनष्टं  तदन्यसाधारण त्वात्  II 22 II
सिद्ध मनिखों  कुण  यी दृश्य भले इ  समाप्त ह्वे  गे  हो किन्तु  साधारणुं  कुण नष्ट नि  हुयुं हूंद। 
स्वस्वमिशकत्यो  स्वरूपोपलब्धिहेतु: संयोग II 23 II
दृश्य अर  साक्षी (आत्मा )  कु मिलन अर्थ च  कि  आत्मा अपण  सत्य रूप प्रकृति से मिलन। 
तस्य हेतुरविद्या II 24 II
वांकु अर्थ च (प्रकृति तै आत्मा समझण ) बल अविद्या ( भौतिक रसायन विद्या किन्तु  बिन मनोविज्ञान /आध्यत्म  )
तदभावात्  संयोगाभावो  हानं  तदृशे: कैवल्यम् II 25 II 
ये अविद्या ( बिन मनोविज्ञान व आध्यात्म विज्ञान )  अंत व विद्या ( मनोविज्ञान /आध्याम विज्ञानं )क  कारण प्रकृति  अर  आत्मा एकी नि दिखेंद अर  पुनर्जन्म  आदि दुःख (हान )अंत  हूंद।  यु इ  कैवल्य (आनंद का आनंद ) .

अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र अनुवाद  अग्वाड़ी  खंडोंम


Bhishma Kukreti

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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद   ,  साधना पाद     भाग -  6

अनुवाद शास्त्री  -  भीष्म कुकरेती
s = आधा अ
-
विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपायः II    -2, 26
निश्चल    अर  निर्दोष विवेकज्ञान 'हान' कु उपाय  च   
तस्य सप्तधा  प्रांतभूमि: प्रज्ञा II 2 ,27
ये पुरुष की सात प्रकार की सबसे ऊंची अवस्था वळि  बुद्धि  हूंद   ।  2 , 27
योगाङ्गानुष्ठानादशुद्धिक्षये  ज्ञानदीप्तिरा विवेक ख्यातिः II  2 , 28
योगांगों  का अनुष्ठान करण  से अशुद्धि  कु  क्षय  ह्वेका   विवेक ख्याति पर्यन्त ज्ञान को  प्रकाश हूंद । 
यमनियमासन  प्राणायाम  प्रत्याहार
धारणा ध्यान    समाधयोs ष्टावंगानि II  2 , 29
यम , नियम , आसन , प्रणायाम , प्रत्याहार ,धारणा , ध्यान , और समाधि  योग का  आठ अंग छन । 
अंहिसासत्यास्तेय  ब्रह्मचर्याs परिग्रहा  यमाः II  2 , 30
अहिंसा , सत्य , अचौर्य , ब्रह्मचर्य , अपरिग्रह (संग्रह नि करण ) यी पांच यम छन। 
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र अनुवाद  अग्वाड़ी  खंडोंम


Bhishma Kukreti

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सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामानंद खंडूड़ी कृत  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका भाग -1

 गढ़वाली का उन्नीसवीं सदी  अंत /   बीसवीं सदी पूर्व  भाग में गढ़वाली - 4
  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका साहित्य - 4
प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती




  यह शुभ सूचना है कि  मेरे द्वारा जसपुर के  बहुगुणा पंडितों द्वारा ज्योतिष गढ़वाली भाष्य /टीका से प्रभावित हो चमोली से आशीष खंडूड़ी ने अपने पितामह श्री द्वारा की गयी ज्योतिष का  गढ़वाली  भाष्य  प्रेषित किया। 
पंडित रामानंद खंडूड़ी ने शीर्षक निर्मित किया है चौकोर। 
उस चौकोर में  बांयीं और हासिये में  लिखा द .  रामा नंद
चौखट में निम्न लिखा मिला -
यह हाश नं   दो पं . रामान्द खंडूड़ी   की है I  श्रीसंम्वतृ  1999  कै  पूर्ण  कीया  है।    ( संभवतया यह 1966   ही है।   अर्थात सन  19 42 )
ततशुभम   I

  II  1  II
 श्रीगणेशाय नम  अथम  जन्म पत्र  परवोद्यिनी लीधते  प्रथम  ( नहीं पढ़ा जा सक रहा है )  .. दिर्थ मंगला चर्णम् II  चूड़ामणी  कृतविधुर्म्वलयीकृतवासुकी II मंवेतभव    तु  भष्याय लीला तांडर्व पण्डित: II 1  II  प्रथमसम्वतसरमा  अका कालघटे रणो  (या उका )  तब १३५  अकनिकल्या इन्कों  शाकालमाजोडनसे  सम्वत् - और सम्वत् माघटोणसे शाकाल उतपन्नहोंद  वाद शाकालमा १४४० हीन  कर्णो  जोशेषरव  तैमा १२ को भागलेणो  जोलबद्धपायेसो चक्रहोयि  शेषां  को १२  तेगुणोदेणो  तेमाचैत्रादि  मासजोड़णा अर्थात जतना अमावस्या गतहोईजावू  वूसंख्या जोड़णी तवद्विज गह पृथग् रखणो एक जह ( ?स्याही मिटी है  )     चक्रद्वि  गुणाकर्णो  १० अंक औरभी युक्त करदेणा   ३३ को भागलेणो  पृथकवाला  मू पौणू  युक्तकरदेणो  ३० तेगुणादेणो और गततिथिभी जोड़णी     द्वितीयाहोवूत  प्रतिपदा  युक्तकरणो कृष्ण शुक्लपक्षविचारीक संस्कार कर्नो कृष्णपक्षमाप्रतिपदा १६ द्विति  व १ ) आदि जाणनो  शुक्लपक्षमाप्रति  पदा दिसीम   येकिसमक्रिया कर्णी  वादचक्रकोछटो ६ ई हिस्सा भी जोड़  ( स्याही मिटी है ) द्विजगह  पृथग = सुरु  धरणो  एकजगह    ६ ७    कोभागले  णो   (स्याही मिटी है )

 सूचना आभार -  स्व रामा नंद खंडूड़ी  के पौत्र आशीष खंडूड़ी

  सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामा नंद  खंडूड़ी   द्वारा गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका  भाग -2  .. निरंतर रालो   

 सूचना आभार -  स्व रामा नंद खंडूड़ी  के पौत्र आशीष खंडूड़ी



 

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