पतंजलि योग सूत्र : गढ़वाळि अनुवाद , साधना पाद भाग - 4
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
s = आधा अ
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हेयं दुःखमनागतम् । 2 ,16 ।
आण वळ दुःख नष्ट करण योग्य च।
दृष्ट्रश्ययोः संयोगो हेयहेतु । 2 ,17 ।
दृष्टा अर दृश्य को संयोग दुःख कारण च याने प्रकृति ( जो दिख्यांद च ) तैं आत्मा (जो दिखुद च ) समझ ण ही दुःख कारण च।
प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मकं । 2 ,18 ।
प्रकृति तीन प्रकार का हूंद - सत्व , राजस अर तामस, अर एक विकासज तत्व , मन , धारणा इन्द्रिय , अर क्रियान्ड्रिया छन,अर मन , अन्य इन्द्रिय , कार्येन्द्रिय सब प्रकृति अर आत्मा क सेवा/भोग कुण छन। । अर्थात प्रकाश , क्रिया अर स्थिति जैक स्वाभाव म च , अर भूत व इन्द्रियाँ जैक स्वरूप छन , पुरुषौ कुण भोग अर मुक्ति सम्पादन कर्ण ही जैक प्रयोजन हो वो इन दृश्य च।
विशेषविशेषलिंगमात्रालिङ्गानि गुणपर्वाणि । 2 , 19 ।
गुण लक्षण पैदा करदन अर साक्षी (जु दिखुद ) तै ऊर्जा संचार करदन। यूं गुणुं क अलग अलग सीढ़ी हूंदन - विशेष , अ -विशेष व भेद योग्य अर अ -भेद योग्य।
दृष्टा दृष्टिमात्रः शुद्धोsपि प्रत्ययानुपश्य: । 2 , 20 ।
चरतना मात्र (आत्मा ) दृष्टा सर्वथा शुद्ध च , तो बि बुद्धि वृत्ति का अनुरूप दिखण वाळ च। अर्थात प्रकृति जड़ च तो देख नि सकदी अर आत्मा दिखण वल च किन्तु शुद्ध , निराकार , असंग , कूटस्थ , च अर ना ही कर्ता च ना ही भोक्ता।
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अनुवाद सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती
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