Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 717062 times)

Bhishma Kukreti

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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद,    15       

  विभूति पाद: पद  संख्या  16  से   25  तक


अनुवाद  आचार्य  -  भीष्म कुकरेती


s = आधा अ
-
परिणामात्रयसंयमादतीतानागतज्ञानम् I विपा . 16 I
मथ्याक तिनि परिणामों म संयम करण से भूत अर भविष्य ज्ञान ह्वे जान्द I
शब्दार्थप्रत्ययाना मितरेतराध्यासात् संकरस्तप्त विभाग संयमात् सर्वभूतरुतज्ञानम् I वि.पा. 17 I
शब्द , अर्थ अर ज्ञान तिन्यूं जु एक हैंक म आभास हूणो कारण जु मिश्रण हूणू च वैक विभाग म संयम करण से संपूर्ण प्राणियों वाणी ज्ञान ह्वे जान्द I
संस्कारसाक्षातत्कणात्  पूर्व जातिज्ञानम् I वि पा . 18 I
संयम द्वारा संस्कारों कु साक्षात कर लीण से पूर्व जन्मों ज्ञात ह्वे जान्द I
प्रत्ययस्य परिचितज्ञानम् I वि पा . 19 I
दुसरों चित्त  वृति क संयम करण से  वैक चित्त कु ज्ञान ह्वे जान्द I
न च तत्सालम्बनं  तस्याविषयीभूतत्वात् I वि प् . 20 I
दुसरों चित्त विषय सहित साक्षात नि हूंद किलैकि वू संयमी विषय नी च  I
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र  गढवाली अनुवाद;  पतंजलि योग सूत्र   विभूति पाद  गढवाली अनुवाद    अग्वाड़ी  खंडोंम

Bhishma Kukreti

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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद,         

  विभूति पाद: पद  संख्या 21  से  25   तक

अनुवाद  आचार्य  -  भीष्म कुकरेती


s = आधा अ
-
कार्यरुपसंयमात्  तद्ग्राह्यशक्तिस्तम्भे चक्षु: प्रकाशास्त्रम्प्रयोगेsन्तर्धानम् I वि पा 21 I
शरीर क रूप म संयम करण से जब वैकी भैराक शक्ति रोक दिए जान्द तब चक्षु  का प्रकाश  संग  वैक संबंध नि हूण से योगी अन्तर्धान ह्वे जान्द I
सोपक्रमं निरुपक्रमं च कर्म तत्संयमादपरान्तज्ञानमरिष्टेभ्यो वा  I वि पा 22 I
उपक्रम संग , बिन उपक्रम कर्मों म संयम करणन   अर बुरा चिन्हों से बि मृत्यु ज्ञान ह्वे जान्द I
मैत्र्यादिषु बलानि I वि प् २३ I
मैत्री जन भावनाओं (मैत्री, करुणा , मुदिता आदि ) म संयम करण से योगी तैं अमोघ बल मिल्दो I
बलेषु हस्तिबलादीनि I वि पा . 24 I
बनि बनि बलों म (हाथी , घ्वाडा, सिंह आदि ) म संयम करण से हाथी आदि जन इ बल प्राप्त हून्द्न I
प्रवृत्त्यालोकन्यासात् सूक्ष्मव्यवहितविप्रकृष्टज्ञानम् I वि पा 25 I
ज्योतिष्मती प्रवृति क प्रकाश डळण से सूक्ष्म व्यवधान युक्त अर दूर देश म स्तिथ वस्तुओं ज्ञान ह्वे जान्द I
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
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  विभूति पाद: पद  संख्या  26 से   30  तक

पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद,             

  विभूति पाद: पद  संख्या  26 से   30  तक

अनुवाद  आचार्य  -  भीष्म कुकरेती


s = आधा अ
-
भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात्।  26 ।
सूर्यम संयम  करण से  सबि लोकों ज्ञान ह्वे जांद। 
चन्द्रे ताराव्यूहज्ञानम्।  27 । 
जूनि पर संयम करण से तारा समूह को ज्ञान ह्वे जांद। 
ध्रुवे तद्भतिज्ञानम्।  28 ।
ध्रुव पर संयम से तारों गति को ज्ञान ह्वे  जांद।
नाभिचक्रे  कायव्यूहज्ञानम् . ।  29  ।
नाभि चक्र म संयम करण  से देह रचना को ज्ञान ह्वे जांद। 
कंठकूपे क्षुप्तिपासानिवृत्ति।  30 । 
कंठ कूप म संयम करण  से भूक प्यासै निवृति ह्वे  जांद  । .  .  .


अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद,         

  विभूति पाद: पद  संख्या  31  से   35   तक

अनुवाद  आचार्य  -  भीष्म कुकरेती


s = आधा अ
-
कूर्मनाड्यां  स्थैर्यम्।  31
नाड्युं पर संयम से स्थिरता आंदी। 
मूर्धज्योतिषि सिद्धदर्शनम्। 32  । 
मूर्धा (कपाल )  ज्योति  पर संयम से  सिद्ध महात्माओं दर्शन ह्वे  जांदन। 
प्रतिभाद्वा सर्वम् ।  33 । 
अथवा नैसर्गिक प्रतिभा से बिन संयम को बि  महात्माओं दर्शन ह्वे  जांद।
हृदये चित्तसंवित्  ।  34 । 
हृदय म संयम करण  से चित्तौ  ज्ञान  ह्वे  जांद। 
सत्त्वपुरुषयोरत्य न्तासंकीर्णयो: प्रत्ययाविशेषो भोग: परार्थात्स्वार्थ संयमा त्पुरुष  ज्ञानम्  । 35  । 
सत्व (प्रकृति )  अर  आत्मा  जु अत्यंत  बिगळयां  छन।  यूं  दुयुं की प्रतीति का जु  अभेद च वी भोग च।  वैमा प्रार्थ प्रतीति  से अलग  जु  स्वार्थ प्रतीति  च  वैमा संयम करण  से  आत्मा ज्ञान ह्वे  जांद। 

.
अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र  गढवाली अनुवाद;  पतंजलि योग सूत्र   विभूति पाद  गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Patanjali Yoga Samhita    अग्वाड़ी  खंडोंम

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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद,         

  विभूति पाद: पद  संख्या 36 से  55    तक

अनुवाद  आचार्य  - भीष्म कुकरेती


s = आधा अ
-
तत: प्रतिभश्रावणवेदनादर्शा स्वादवार्ता   जायन्ते . I वि पा  36  I
वै स्वार्थ संयम से नैसर्गिक प्रतिभा , श्रवण शक्ति, वेदन , दर्शन /दिखणो  ,  स्वाद , ार वार्ता (बचल शक्ति ) सिद्धियां समिण  आंदन .
ते समाधावुपसर्गा  व्युत्थाने सिद्ध्य :  I वि . पा 37 ।     
इ मथ्याक सिद्धियां समाधि की सिद्धि म बिघन -बाधा छन तो व्युत्थान म सिद्धि छन। 
बंधकारणशैथिल्यात्प्रचार संवेदनाच्च  चित्तस्य परशरीरावेश:   I वि . पा . 38 ।     
बन्धनौ कारण (कर्म संस्कार ) की शिथलता अर  चित्तै गति ज्ञान से दुसरौ  सरैलम प्रवेश ह्वे सक्यांद। 
उदानजयाज्जलपंककष्टकादिष्वसंगउक्रांन्तिश्च     I वि . पा . 39 । 
उदान वायु जितण से जल , कीच , कांड आदि को सरैल से  संसर्ग नि हूंद अर ऊर्घ्वा गति बि  प्राप्त हूंद। 
समानजयाज्ज्वनम्  I वि . पा. 40 । 
संयम द्वारा 'सामान वायु' जितण  से  योगीs  सरैल दीप्तिमान ह्वे जांद। 

श्रोत्राकाशयो:  संबंधसंयमाद्दिव्यं  श्रोत्रम्। वि पा 41 । 
ध्वनि व आकाश का संबंध पर संयम करण  से श्रोत्र पर  योगी की सुणनै शक्ति अपार ह्वे  जांद (श्रोत्र दिव्या ह्वे  जांदन ) । 
कायाsकाशयो: संबंध संयमाल्लघुतूलसमापत्तेश्चा काशगमनम्   । वि पा  42 ।   
सरैल अर  आगासौ संबंध पर संयम से अर हळकी वस्तु पर संयम करण से योगी म  उड़नै शक्ति ऐ  जांद।
बहिरकल्पिता वृत्तिर्महाविदेहा  तत : प्रकाशावरणक्षय:   । वि पा  43  ।   
सरैला भैर न करीँ कल्पना वृति महाविदेह च, वैक ज्ञान हूण  से  ज्ञान का ढक्कण  खुल जांदन।
स्थूल स्वरूप  सूक्ष्मान्वयार्थवत्त्वसंयमाद्  भूतजय:  । वि पा  4 4 ।   
भूतों की स्थूल , स्वरूप, सूक्ष्म, अन्वय, अर  अर्थ तत्व पर संयम करण  से  योगी तै पंची भूतों पर  विजय प्राप्त ह्वे  जांद।
ततोsणिमादिप्रादुर्भाव: कायसम्पत्तद्धर्मानभिघातश्च    । वि पा  4 5 ।   
तै  भूत विजय से अणिमा  आदि  आठ सिद्धियों  (  अणिमा ,  लघिमा , महिमा , गरिमा प्राप्ति ,  प्राकाम्य ,  बशित्व , ईंशित्व  )  प्रकट हूण  से  कायासंपत्त (शरीर सम्पदा )  की प्राप्ति व भूतों धर्मों से बाधा नि  हूण  यी तिन्नी  हूंदन। 
रूपलावण्यबलबज्रसंहननत्वानि  कायसम्पत्   । वि पा  46  ।   
रूप लावण्य , बल अर  बज्र का समान सरैल की रचना यी सरैल की सम्पदा छन। 
ग्रहणस्वरूपास्मितान्वयार्थवत्त्वसंयमादिन्द्रियजय:    । वि पा  4 7 ।   
ग्रहण, स्वरूप, अस्मिता, अन्वय, अर  अर्थ तत्व आदि पांच इन्द्रियों क  अवस्थाओं म संयम करण  से इन्द्रियों पर विजय मिलदी। 
ततो मनोजवित्वं विकरणभाव: प्रधानजयश्च  । वि पा  48  ।   
वै इन्द्रिय जय से मन की  भांति सरैल बि  वायु वेग वळ  ह्वे  जांद , शरीर का बिना भि  विषयों अनुभव की शक्ति अर प्रकृति पर अधिकार ह्वे  जांद।
सत्त्वपुरुषान्यताख्यातिमात्रस्य  सर्वभावाधिष्ठातृत्वं  सर्वज्ञातृत्वं  । वि पा  4 9 ।   
प्रकृति अर पुरुष का भेद को जणगरु  योगी कु सब भावों पर स्वामीभाव व सर्वज्ञ भाव  ह्वे जांद। 
तद्वैराग्यादपि  दोषबीजक्षये कैवल्यम । वि पा  5 0  ।   
वैमा बि बैराग्य हूण दोषौ बीजुं  नाश हूण पर कैवल्य (अपार आनंद /मोक्ष ) प्राप्त हूंद। 
(मोक्ष माने वो स्तिथि जब ना तो पिछ्नै  कु स्मरण हो ना भविष्य की चिंता हो बस वर्तमान ही वर्तमान हो।  )
स्थान्युपनिमंत्रणे संगस्मयाकरणं  पुनर्निष्टप्रसंगात् । वि पा  5 1  ।   
लोकपाल दिवतौं  बुलाण पर न तो संग (तपस्या भंग नि  हूण  चयेंद )  करण  चयेंद अर  ना इ  अभिमान किलैकि इन करणम अनिष्ट की  पुनः संभावना रौंद । 
क्षणतत्क्रमयो: संयमाद्विवेकजं  ज्ञानम् । वि पा  5 2  ।   
क्षण अर वैक कर्म म संयम करण  से विवेक ज्ञान प्राप्त हूंद। 
जातिलक्षणदेशैरन्यतानवच्छेदात्तुल्ययोस्तत: प्रतिपत्ति:  । वि पा  5  3  ।   
 जौं द्वी तुल्य वस्तुओं  का  जाति , लक्षण,अर  देश (स्थान ) नि  हूण पर बि   योगी यूं  वस्तुओं ज्ञान ये ज्ञान से कर लीन्दो।
तारकं सर्वविषयं  सर्वथाविषयमक्रमं चेति विवेकजं ज्ञानम् । वि पा  5  4 ।   
जु संसार समुद्र तै तराण वळ च, सब तै जणन  वळ च ,सब प्रकार से जणन वाळ च , अर बिन कर्म से जणन वळ च वी विवेक जनित ज्ञान च। 
सत्वपुरुषयो: शुद्धिसाम्ये कैवल्यम्  । वि पा  5 5  ।     
प्रकृति अर पुरुष की समान  भाव  से  शुद्धि ह्वे जांद तब कैवल्य हूंद।
 इति  विभूति पाद  सम्पन। 

अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 शेष पतंजलि योग सूत्र  गढवाली अनुवाद;  पतंजलि योग सूत्र   विभूति पाद  गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Patanjali Yoga Samhita    अग्वाड़ी  खंडोंम

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पतंजलि   योग सूत्र : गढ़वाळि   अनुवाद,     
Garhwali Translation of Kavailya Pad of  Patanjali    Yoga Sutra 

  कैवल्य पाद: पद  1संख्या  से  34  तक

अनुवाद  आचार्य  -  भीष्म कुकरेती
s = आधा अ -
जन्मौषधिमंत्रतप: समाधिजा: सिद्धय: II  कै . पा.  1 ।I 
जन्म , औषधि (भांग, शराब आदि बि सम्मलित  ) , समाधि,  तप , मंत्र से हूण वळि , अर समाधि से हूण वळि पांच प्रकारै सिद्धि हूंदन।
जात्यंतरपरिणाम: प्रकृत्यापूरात्  II  कै . पा. 2 ।I  . 
प्रकृतियों क परिवर्तन से  योगी क सरैल व इन्द्रियों प्रकार म बि  परिवर्तन ह्वे जांद। 
निमित्तमप्रयोजकं  प्रकृतीनां  वरणभेदस्तु तत: क्षेत्रिकवत्  II  कै . पा.  3 ।I  . 
यी सिद्धी यूंक विकास निमित्त नि छन किन्तु किसान का तरां  रुकावट दूर करदन। 
निर्माणचित्तान्यस्मितामात्राम्  II  कै . पा.  4 ।I  . 
निर्माण हुयां  चित्त अस्मिता /अहमतत्व से हूंदन। 
प्रवृतिभेदे प्रजोजकं  चित्तमेकमनेकषाम्  II  कै . पा.  5 ।I  . 
भौत सा चित्तों की भौं भौं प्रकारै प्रवृतियों  म नियुक्ति करण  वाळ  एक चित्त हूंद। 
तत्र ध्यानजमनाशयम्  II  कै . पा.  6  ।I  . 
वैमा जु  ध्यान जनित चित्त हूंद वु  संस्कार रहित हूंद  (वासना रहित )
 कर्माs शुक्लाsकृष्णं  योगिनस्त्रि विधमि तरेसाम्   I  कै. पा. 7  ।I 
योगीक कर्म ना तो कृष्ण हूंदन न इ  शुक्ल हूंदन अर्थात पाप पुण्य से रहित।  अन्यों कर्म पाप, पुण्य वा पाप -पुण्य सहित हूंदन। 
ततस्तद्विपाकानुगुणानामेवाभिव्यक्तिर्वासनानाम्   I  कै. पा.  8 ।I
वूं  तीन कर्मोंनुसार  भौं भौं प्रकारै वासना जन्मदन। 
जातिदेशकालव्यवहिता नामप्यानंतर्यस्मृतिसंस्कारयोरेकरुपत्वात्  I  कै. पा.  9 I
जाति, देश अर  काल को व्यवधान  रौण  पर बि  स्मृति अर  संस्कारों स्वरूप एक हूण ो  कारण  वासनाओं म भेद /अंतर् नि  हूंद।  वो इकजनि  ही हूंदन। 
तासामनादित्वं चाशिषो  नित्यत्वात्  I  कै. पा. 10  I
वूं वासनाओं  ( छाप, स्मृति अर  इच्छा )  अनादिता/अम्र छन किलैकि  अपण  हूणै इच्छा हमेशा रैंदी /मोरदी नी।
हेतुफलाश्रयालंबनै :  संग्रहीतत्वादेषामभावेतदभाव:    I  कै. पा. 11 I
वासना अर  इच्छा   कारण व फल पर निर्भरता  का कारण  एक हैंक से जुड्यां  छन।   यूं  हेतु , फल, आश्रय , आलबन  चारो आभाव म वासनाओं बि  आभाव ह्वे  जांद।
अतीतानागतं  स्वरूपतोsस्त्यध्य भेदाद्धर्माणाम्  I  कै. पा. 12    I
धर्मों म काल भेद हूंद ये कारण से जु  धर्म ( अविद्या , वासना , चित्त अर  चित्तौ  वृति आदि )  अतीत ह्वे   गेन  अर  अबि  प्रकट नि  ह्वेन  वो बि  स्वरूप म विद्यमान रंदन। 
ते व्यक्तसूक्ष्मा गुणात्मान :  I  कै. पा. 13    I
वो (सबि  धर्म ) व्यक्त स्तिथि म या सूक्ष्म स्तिथिम सद्यनी  गुण  (सत्व, रजत व तम ) स्वरूप इ  छन। 
परिणामैकत्वाद्  वस्तुतत्वम्  I  कै. पा.  14   I
परिणाम की एकता से वस्तु तत्व एक छन। 
वस्तुसाम्ये  चित्तभेदात्तर्योर्विभक्त: पंथा:  I  कै. पा. 15  I
वस्तुम समता हूण  पर चित्त क भेद  अर वस्तु मार्ग बिगळीं - बिगळीं   छन। 
न चैकचित्ततंत्र वस्तु तदप्रमाणकं  तदा किं  स्यात्   I  कै. पा. 16  I
एक सिवाय दृश्य वस्तु  कै  चित्त को ादिन नी  हूंद। अन्यथा चित्त क अभाव म वस्तु क्या होलु ?
तदुपरागापेक्षित्वाश्चित्तस्य   वस्तु ज्ञाताज्ञात्  I  कै. पा.  17   I
विषयौ चित्त पर प्रतिबिम्ब पड़न  से  वस्तु ज्ञान हूंद।  प्रतिबिम्ब नि पड़न  से वस्तु ज्ञान बि  नि  हूंद। 
चित्त (मन , बुद्धि अर  अहम )
सदा ज्ञाताश्चित्तवृत्तय:स्तप्रभो:पुरुषस्यापरिणामित्वात्त    I  कै. पा. 18  I
वे चित्तौ  स्वामी  पुरुष (आत्मा ) परिणामी नी च।  इलै पुरुष तैं   चित्तै  वृतियां सद्यनि  ज्ञात  रौंदन।
न तत्स्वाभासं  दृश्यत्वात्  I  कै. पा. 19  I
वु  चित्त जड़ च अर स्वप्रकाश नी  च , किलैकि वो दृश्य च। 
एक समये  चोभयानवधारणम्  I  कै. पा. 20  I
अर एक समौ म चित्त व विषयौ ग्रहण नि  कर सकद।
चित्तांतरदृश्ये  बुद्धिबुद्धेरतिप्रसंग स्मृतिसंकरश्च  I  कै. पा.  21   I
एक चित्त तै दुसर  चित्त कु  दृश्य मनण  पर  वु  चित्त दुसर  चित्त क दृश्य  ह्वाल  अर यांसे अनावस्था  प्राप्त होलि अर  स्मृति /सैमळौंण  कु  बि मिलौट  ह्वे जालो।
चित्तेरप्रतिसंक्रमायास्तदाकारपत्तौ  स्वबुद्धि  संवेदनम्  I  कै. पा.  22 I
उन त चेतन शक्ति (आत्म-पुरुष )  क्रिया से रहित व असंग च तब  बि   तदाकार (अपण स्वरूप ) हूण  से अपण  जन्म स्थल  (बुद्धि )  कु  ज्ञान ह्वे  जांद। 
दृष्टदृश्योपरक्तं  चित्तंसर्वार्थम्  I  कै. पा.  23   I
दृष्टा या दृश्य यूं  दुयुं  से रंग्युं  चित्त सबि  अर्थ वळ  ह्वे  जांद।
तदंसंख्येयवासनाभिश्चित्रमपि परार्थं  संहत्यकारित्वात्   I  कै. पा. 24  I
वह  चित्त  असंख्य वासनाओं से चित्रित  हूण  पर दुसरों  कुण  च किलैकि वो मिलजुल करिक  कार्य  करंदेर  च।
विशेषदर्शिन  आत्मभावभावनाविनिवृत्ति:  I  कै. पा.  25   I
समाधिजनित विवेकज्ञान   का  द्वारा  चित्त अर  आत्मा का भेद तैं  प्रत्यक्ष करण  वळ योगी की आत्म भाव  विषयक भावना सर्वथा निवृत /मुक्त ह्वे  जांद। 
तदा विवेकानिम्नं कैवल्य प्राग्भारं  चित्तम्  I  कै. पा.  26   I
वै समौ योगी क चित्त विवेक म झुक्यूं  रौंद  अर  कैवल्य क  समिण  ह्वे  जांद। 
तच्छिद्रेषु  प्रत्ययान्तराणि संस्कारेभ्य :  I  कै. पा.  27  I
वीं समाधि क अंतराल म दुसर  पदार्थों  ज्ञान पूर्व संस्कारों से हूंद। 
हानंमेषां  क्लेशवदुक्तम्  I  कै. पा.  28   I
वूं संस्कारों विनाश  क्लेशों  भांति  बुले जांद।
प्रसंख्यानेsप्यकुसीदस्य सर्वथा विवेकख्यातेधर्ममेघ:  समाधि:  I  कै. पा. 29    I
जै  योगी क विवेक ग्यानी महिमा से बि  बैराग्य ह्वे  जाव  वैका विवेक ज्ञान प्रकाशमान  रौणौ  कारण  वैतै  धर्ममेघ समाधि  प्राप्त हूंदी। 
तत: क्लेशकर्म निवृति:  I  कै. पा.  30   I
वे धर्ममेध समाधि  से  क्लेश अर कर्मों सर्वथा  नाश ह्वे  जांद। 
तदा सर्वावरणमलोपेतस्य  ज्ञानस्यानन्त्याज्ज्ञेयम ल्पम्  I  कै. पा. 31  I
वै  समय  जैका  सब  प्रकारौ पर्दा  अर मल  हट्यां  ह्वावन  इन  ज्ञान  अनंत  ह्वे  जांद।  ये कारण सब ज्ञेय पदार्थ अल्प /सूक्ष्म  ह्वे  जांद।
तत: कृर्थानां  परिणामक्रमसमाप्तिर्गुणानाम्  I  कै. पा. 32  I
वैक पश्च्यात अपण  कार्य पूर  हुयां गुणों परिणाम संबंधी  क्रम की समाप्ति ह्वे  जांद। 
क्षणप्रतियोगी परिणामा परांतनिर्ग्राह्य:  क्रम:  I  कै. पा.   33 I
प्रतिक्षण  हूण वळ  परिणामों पश्चात ग्रहण करण  वळ  ज्ञान तैं  'क्रम' बुल्दन। 
पुरुषार्थशून्यानां  गुणानां  प्रतिप्रसव: कैवल्यं  स्वरूपप्रतिष्ठा  वा चितिशक्ते रिति  I  कै. पा. 34  I
पुरुषार्थ  शून्य गुणों क अपण  कारणम  विलीन ह्वे  जाण  इ  कैवल्य च अथवा चित्त शक्ति का अपण स्वरूप म  प्रतिष्ठित हूण  ही कैवल्य च। 
इति  कैवल्य पादम II
इति  महर्षि पतंजलि  कृत  योग सूत्र समाप्त II


अनुवाद  सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती   
 


Bhishma Kukreti

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नारद भक्ति सूत्र कु   गढवाली अनुवाद

भाग -  1 से - ८४   
भक्ति क्या च ?
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
Garhwali Translation of Narada Bhakti Sutra
अथतो भक्तिं ब्याख्यास्याम: - II 1 II
अब भक्ति की व्याख्या हवेली I1 I
सा तस्मिन परम प्रेम रूपा  II2II
वा (भक्ति )  इश्वर का प्रति परम प्रेम रूपा च I 2 I
अमृत स्वरूपा च II 3 II
अर अमृत/आनन्द  स्वरूप बि च I 3 I
यल्लब्ध्वा  पुमान् सिद्धो भवति अमृतो भवति तृप्तो भवति II 4 II
( भक्ति )  जै तै पैका मनिख सिद्ध ह्वे जान्द, अम्र ह्वेजान्द , तृप्त /छकक हवे जान्द I4I
यत्प्राप्य न किंचिद्वांछति, न शोचति , न द्वेष्टि , न रमते , नोत्साही भवति II5II
जैक (भक्ति ) प्राप्त हूण पर मनुष्य की कै हैंक विषय की इच्छा समाप्त ह्वे जान्द , न पशत्यौ(शोक ) करद , ना  इ विषय भोगों प्रति उत्साह हूंद I5 I
यंज्ञात्वा मत्तो मवति, स्तब्धो भवति, आत्मारामो भवति II 6II
जै तै जाणीक इ मनुष्य उनमत ह्वेजान्द , शांत हवे जान्द , अर आत्माराम बण जान्द I6 I
नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -  2
  भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती

सा न कामयमाना निरोधरूपत्वात (NBS 7)
वु (प्रेम भक्ति ) कामायुक्त नी च; किलैकी भक्ति निरोधस्वरुप च I
निरोधस्तु लोकवेदव्यापारन्यास: ( NBS 8  )
लौकिक अर वैदिक कर्मों त्याग तै ‘निरोध’ बुल्दन I.   
तस्मिन्ननन्यता तद्विरोधिषुदासीनता II (NBS 9)
वे प्रियतम  भगवान म अन्यनता अर वैक प्रतिकूल विषयों म उदासीनता कुण  बि निरोध  बुलदं I
अन्याश्रयाणान्  त्यागोSनन्यता (NBS 10)
(अपण प्रियतम भगवान तै छोडिक ) दुसर आश्रयों त्यागौ नाम अन्यनता बुले जंद I
लोकवेदेषु तदनुकूलाचरण त्वदिरोधिषुदासीनता   (NBS11)
लौकिक अर वैदिक कर्मोंम भगवानौ अनुकूल कर्म करण  इ अर वैक प्रतिकूल विषयों म उदासीनता च I
नारद भक्ति सूत्रौ  गढवाली अनुवाद
भाग -  3 
  भक्ति  तै अक्षुण रखण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती

भवतु निश्चयदाढर्चादूर्घ्व शास्त्ररक्षणम  (NBS 12 )
( विविध निरोध आदि से अलौकिक प्रेम प्राप्ति  करणों उपरान्त बि मन मा) दृढ निश्चय हूणों उपरान्त बि शास्त्र कि रक्छा करण चएंद अर्थात  भगवत अनुकूल शास्त्रानुसार  कर्म करण चएंद I
अन्यथा पतित्यशंकया  (NBS13 )
निथर गिर सकणो संभावना च I
कपि तावदेव , भोजनादिव्यापारस्त्वा शरीरधारणावधि (NBS14 )
लौकिक कर्मों तै बि तब तक (बाह्य ज्ञान रौण तक )  विधि अनुसार करण चएंद I किन्तु भोजनादि कर्म तो तब तक चलण इ राला जब तक सरैल च I
नारद भक्ति सूत्रौ   गढवाली अनुवाद
भाग -  4 
  भक्ति  का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
-
तल्लक्षणानि वाच्यन्ते नानामतभेदात्I NBS 15 I
अब बिगळयां बिगळयां मतानुसार  वीं भक्ति क लक्ष्ण व उदहारण बताये जाल I
पूजादिष्वनुराग इति पाराशर्य: I NBS 16 I
पराशर पुत्र व्यास अनुसार  भगवान कि पूजा म अनुराग हूण इ बहती च (अर्थात साधनों म अनुराग ) I
कथादिष्विति गर्ग: INBS 17I
गर्गाचार्य अनुसार भगवानै कथा म प्रेम –अनुराग इ भक्ति च I
आत्मरत्यविरोधेनेति शांडिल्य: I NBS18I 
शांडिल्य कु मत च बल आत्मरति क अविरोधी विषय म प्रेम भक्ति च I

नारदस्तु त्दार्पिताखिलाचारता तद्विस्मरणे परमव्यकुलतेति  I NBS 19 I
किन्तु हमर (नारद ) का मत च बल अपण सब कर्मों तैं भगवान म अर्पण करण अर भगवान क थुड़ा  सि बिस्मरण हूण पर अति ब्याकुल हूण इ भक्ति च I
अस्यतेवमेव I NBS 20 I
ठीक इनि च I
यथा ब्रजगोपिकानाम् I NBS 21 I
जन ब्रजै गोपियों प्रेम I
तत्रापि न महात्म्यज्ञानविस्मृत्यपवाद: I NBS 22  I
जन ब्रज कि गोपियों ब्याकुलता अपवाद नी च I

त्वदिहीनं जाराणामिव I NBS 23 I
वैक बिना (भगवान तै ज्ञान हुयां बिना ) प्रेम  जार /स्त्री प्रेम जन इ च I


नास्त्येव तस्मिस्तत्सुखसुखित्वम्  I NBS 24 I
जार का  प्रेम म जार को सुखी हूण  भक्ति नी  च I
Copyright@ Bhishma Kukreti 2020-21
नारद भक्ति सूत्रौ    गढवाली अनुवाद
भाग -  5 
  भक्ति  का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
-

सा तु कर्मज्ञानेयोगेभ्योsप्यधिकतरा II NBS25
वु (प्रेम रूपा भक्ति ) त कर्म (भगवान का प्रति  धार्मिक अनुष्ठान ), ज्ञान व योग से बि श्रेष्ठ च I
फलरुपत्वात् II NBS26
किलैकी वो (भक्ति ) फल  रूप च I
ईश्वरस्याप्यभिमानद्वेषित्वाद्  दैन्यप्रियत्वाच्च II NBS27
इश्वर तैं  अहम से द्वेष च अर दैन्यता से प्रेम भाव च I

नारद भक्ति सूत्रौ   गढवाली अनुवाद
भाग -  6
  भक्ति  का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
-
तस्याज्ञानमेव  साधनमित्येके I NBS 28 I
वैको (भक्ति कसाधन ज्ञान च . कुछ आचार्यों कु यु मत च I
अन्योन्याश्रयत्वमित्यन्ये I NBS 29 I
दुसर आचार्यों मत च बल भक्ति अर ज्ञान परस्पर एक हैंक पर आश्रित छन I
स्वयंफलरुपतेति ब्रह्मकुमार: I NBS 30I
.ब्रह्म कुमारों (सनत कुमारों अर नारद) विचार च बल भक्ति स्वयम फल रुप इ च I
राजगृहभोजनदिषउ तथैव दृष्टत्वात्  I NBS 31 I
राजगृह अर भोजनम यी दिखे जान्द I
न तेनराजपरितोष: क्षुधाशान्तिर्वा  I NBS 32 I
ना वांसे (ज्ञान मात्र से ) राजा तैं प्रसन्नता होली ना ही पुटुक भर्यालु I
तस्मात्सैव ग्राह्या मुमुक्षुभि: I NBS 33 I
इले  मुक्ति /मोक्ष ( संसार बन्धनों से मुक्ति चाहक) चाहकों तैं इ भक्ति ग्रहण करण चएंद I

नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   7
  भक्ति  पाणों साधन
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
-
तस्या साधनानि गायन्त्याचार्या:   II34II
आचार्यगण वीं भक्ति तैं पाणो साधन बतान्दन I
तत्तु विषयत्यागात्संग त्यागाच्च II35II
वो (भक्ति साधन ) विषय त्याग अर संगत्याग से संपन हूंद I
अव्यावृत्तभजनातII 36 II
अखंड भजन से (भक्ति साधन ) संपन हूंद I
लोकेsपि भगवद्गुणश्रवणकीर्तनात् II37II
लोक समाज म बि भगवदगुणश्रवण अर कीर्तन से सम्पन हूंद I
मुख्यतस्तु महत्कृपयैव  भगवतकृपालेशाद्वा II 38 II
परन्तु (प्रेमभक्ति प्राप्ति साधन ) मुख्यतया ( प्रेमी )महापुरुषों कृपा से अर भगवत कृपा लेशमात्र से  हूंद I
नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   8
  भक्ति म दगुड़ो महत्व 
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
महत्संगस्तु दुर्लभोsगम्योsमोधश्च II  39
परन्तु महापुरुषों की  संगत  दुर्लभ , अंग्मी अर अमोध च I
लभ्यतेsपि तकृपयैव II 40
वे भगवान कि इ कृपा से महापुरुषों संगत मिलदी I
तस्मिंस्तज्जने  भेदाभावात् II 41
किलैकी भगवान अर वूंक भक्तों  मा भेद कु आभाव च I
सदेव साध्याताम् तदेव  साध्यतास् 42
इलै वै ( महात्संग ) की इ साधना कारो  , वैकी इ साधना कारो


नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   9 
  भक्ति  म दुसंग हानि
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ

दुसंग सर्वथैव त्याज: II 43II
दुसंग कु सद्यनि इ  त्याग करण चएंद I
कामक्रोधमोहस्मृतिभ्रंशबुद्धिनाशसर्वनाशकारणत्वात् II44II
किलैकी वू (दुसंग ) काम,  क्रोध , मोह, स्मृतिभ्रंश, बुद्धिनाश  अर सर्वनाशौ कारण हूंद I
तरंगायिता अपीमे    संगात्समुद्रायन्ति II45 II
यी (काम क्रोध आदि ) पेल तरंग (सूक्ष्म )  का जन ऐका अंत म समोदरजन आकार प्राप्त कर लीन्दन I
कस्तरति मायाम्  यस्संगांस्त्यजति, यो महानुभावं सेवते  निर्ममो भवति II 46 II
( प्रश्न ) कु तैरदो ? माया से कु तैरदो ? (उत्तर )  जु सब संगों त्यार करदो , जु महानुभावों सेवा करदोअर जु ममता रहित हवे जान्द I
यो विविक्तस्थानं सेवते, यो लोकबन्धुमुन्मूलयति, निस्स्रैगुण्यो भवति, योगक्षेमं त्यजति II 47II
जु निर्जन स्थानों म निवास करदो , जु लौकिक बन्धनों तै तोड़ी दीन्द, जु तीन गुणों से परे हवे जान्द, अर योग व क्षेम कु बि परित्याग कर दीन्दो I
य: कर्मफलं त्यजति कर्माणि संन्यसति ततो निर्द्वंदो भवति II 48 II
जु कर्मफलों त्याग करदो, कर्मों k बि त्याग कर लीन्दो , अर सब कुछ त्याग करीक निर्द्वन्द ह्वे जान्द I
वेदानपि संन्यसति केवलमविच्छिन्नानुरागं लभते II 49 II
जु वेदों बि परित्याग कर दीन्दो  अर जु अखंड , असीम भगवत रेम प्राप्त कर लीन्दोI
स तरति स तरति स लोकांस्तारयति II 50II
वो तैरदो , वु तैरदो , वु लोगुं तै तैरा दीन्दो I
भगवत प्रेम का लक्षण
नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   10 
  भक्ति  का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
अनिर्वचनीय प्रेमस्वरूपम् II 51
प्रेमौ स्वरूप अनिर्वचनीय च I
मूकास्वादनवत्   II 52
जन गूंगो कु स्वाद I

प्रकाशते कापि पात्रे  II 53
कै बिरला पात्रम (प्रेमिम ) यु  प्रकट बि हूंद Iच ,
गुणरहितं कामनारहितं प्रतिक्षणवर्धमानमविच्छिन्नं सूक्ष्मतरमनुभवरूपम् II 54
यु (प्रेम /भक्ति ) गुण रहित च , कामना रहित (गाणी-स्याणी रहित ) च  प्रति क्षण बढ्दो इ रौंद , विच्छेद रहित च , सूक्ष्म से बि सूक्ष्मतर च  अर अनुभव स्वरूप च I

ततप्राप्य तदेवावलोकयति,  तदेव श्रृणोति,  तदेव  भाषयति तदेव चिंतयति II 55
ये प्रेम तैं पैको प्रेमी ये प्रेम तैं इ दिखणु रौंद, प्रेम तै इ सणनु रौंद , प्रेम को इ वर्णन करणुरौंद अर प्रत्येक क्षण प्रेम कु इ चिंतन करणु रौंद I
अन्य गौण  भक्ति
नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   11   
  भक्ति  का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ

गौणी त्रिधा गुणभेदादार्तादिभेदाद्वा II 56
गौणी भक्ति गुण भेद से या आर्तादि भेद से तीन  प्रकारौ हूंद I
.   
उत्तरस्मादुत्तरस्त्पूर्वपूर्वा श्रेयाय भवति II 57
(उंमा) उत्तर –उत्तर क्रम से पूर्व –पूर्व  (पैलाकी )  क्रम की भक्ति कल्याणकारी हूंद I

भक्ति का (अति )  विशेष गुण
नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   12   
  भक्ति  का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
अन्यस्मात्सौलभ्यं भक्तौ  II 58 II
हौर सबुं अपेक्षा भक्ति सुलभ च I
प्रमाणन्तरस्यानपेक्षत्वात् स्वयमप्रमाणत्वात् II 59 II
किलैकी भक्ति स्वयम प्रमाणस्वरूप च , याकण हौरि प्रमाणु आवश्यकता नी च I
शान्तिरुपात् परमानन्दरुपाच्च II 60 II
भक्ति शान्तिस्वरूपा अर परमानंदरूपा  च I
भक्ति अन्वेषक  कु जीवन
नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   13   
  भक्ति  का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
लोकहानौ चिंता ना कार्या निवेदितात्मलोकवेदत्वात् I 61 I
( भक्त ) तैं लोक हानि चिंता नि करण चएंद , किलैकि  वैन (भक्तन)  त अफु तैं अर
न तदसिद्धौ लोकव्यवहारो हेय: किन्तु फलत्यागस्तत्साधनं च कार्यमेव I 62 I
किलैकि वैन (भक्तन)  लौकिक व वैदिक सब कर्मों तै भगवानो कुण पीली समर्पित कौर आलिन I
स्त्रीधननास्तिकचरित्रं न श्रवणीयम  I 63 I
स्त्री , धन,  नास्तिक  अर बैरी कु चरित्र नि सुणन चएंद I
अभिमानदम्भादिकं त्याज्यम I 64 I
अभिमान , दम्भ आदि का त्याग करण चएंद I
तदर्पिताखिलाचार: सन् कामक्रोधभिमानदिकं तस्मिन्नेव करणीयम्  I 65 I
सब आचार भगवन तै समर्पण को पश्चात  काम ,  क्रोध, अभिमान हों त वूं तै बि भगवान का प्रति इ करण चएंद I
त्रिरुपभंगपूर्वकं नित्यदास्यनित्यकान्तभजनात्मकं प्रेम कार्य प्रेमैव कार्यम् I 66 I
तीन (स्वामी , सेवक अर सेवा ) रूपों तैं भंग कौरिक नित्य दासभक्ति  या नित्या कांताभक्ति से प्रेम इ करण चएंद , प्रेम इ करण चएंद I
   
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती 2020 -21

श्रेष्ठतम भक्तों की  कान्ति
नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   14     
  भक्ति  का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ

भक्ता एकान्तिनो मुख्या: II 67
एकांत (अन्यान) भक्त इ श्रेष्ठ च I
कंठावरोधरोमान्चाश्रुमि: परस्परं लपमाना: पाक्यन्ति कुलानि पृथिवी च II 68
इन अन्यान भक्त कंठावरोध , रोमांच , अर अश्रुयुक्त आँख ह्वेका परस्पर संभाषण कौरिक अपण कुल अर पृथ्वी तैं पवित्र करदन I
तीर्थोकुर्वन्ति तीर्थानि सुकर्मीकुर्वन्ति कर्माणि सच्छास्त्रीकुर्वन्ति शास्त्राणि II 69
इन भक्त तीर्थों तै सुतीर्थ , कर्मों तै सुकर्म, अर शास्त्रों तै सत्शास्त्र कर दीन्दन (परिवर्तित  कर दीन्दन )  I
तन्मया II 70
इ तन्मय छन  I
मोदन्ते पितरे  नृत्यन्ति देवता: सनाथाचेयं भूर्भवति II 71
(इन भक्तों अविर्भाव देखिक ) पितरगण प्रमुदित हून्दन , दिवता नचण मिसे जान्दन, अर पृत्वी सनाथा  ह्वे जान्द I
नास्ति तेषु  जातिविद्यारूपकुलधनक्रियादि भेद :  II 72
उंमा (भक्तों म ) जाति, विद्या, रुप , कुल धन अर क्रियादि भेद   नी च I
यतस्तदीया: II 73
किलैकि भक्त वेका (भगवान का ) इ छन I
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती 2020 -21
प्रेम भक्ति साधकौ कुण आदेश 
नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   15     
  भक्ति  का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
वादो नावलम्ब्य II 74
 ( भक्तों तैं ) वाद विवाद नि करण चएंद I
बाहुल्यावकाशत्वादनियतत्वात् II 75
किलैकि वाद –विवाद म बाहुल्यौ अवकाश च अर अनियमित च I
भक्तिशास्त्राणि  मननीयानि तदुद्बोधककर्माणयपि करणीयानि II 76
(प्रेमा भक्ति पाणों कुण ) भक्तिशास्त्रौ मनन करणु रौण चएंद , अर इनकार्य बि करण चएंदन जांसे भक्ति म वृद्धि हो I
सुखदु:खेच्छालाभादित्यक्ते काले प्रतीक्ष्यमाणे क्षणार्द्धमपि व्यर्थ न नेयम् II 77
सुख –दुःख , इच्छा , लाभ कु पूर्ण त्याग  ह्वे जाव म एक क्षण बि बिना ( भक्ति भजन ) का व्यर्थ रौण चएंद I
अहिंसासत्यशौचदयास्तिक्यादिचारित्र्याणिपरिपालनीयनि II 78
( प्रेम भक्ति साधक तैं  ) अंहिसा , सत्य , शौच , दया , आस्तिकता आदि आचरणीय सदाचारों भली भांति  पालन  करण चएंद I
सर्वदा सर्वभावेन  निश्चिन्तितैर्भगवानेव भजनीय: II79
प्रत्येक समय सर्वभाव से निश्चित ह्वेका (केवल ) भगवानौ भजन करण चएंद I
संकीर्त्यमान: शीघ्रमेवाविर्भवत्यनुभावयति भक्तान् II 80
वो भगवन ( प्रेम पूर्वक ) कीर्तित हण पर शीघ्र प्रकट ह्वे जान्दन अर भक्तों तैं अपण अनुभव कराई दीन्दन I
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती 2020 -21

भक्ति का बनि बनि रुप
नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   16     
  भक्ति  का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
त्रिसत्यस्य भक्तिरेव  गरीयसी भक्तिरेव  गरीयसी II 81
तीनो  ( मनसा , वाचा , कर्मणे ) सत्य म अर तिन्नी कालों म भक्ति इ श्रेष्ठ च , भक्ति इ श्रेष्ठ च I
गुणामहात्म्यासक्ति-रूपासक्तिपूजासक्ति –स्मरणसक्ति
दास्यसक्ति-सख्यासक्ति-वात्सल्यासक्ति-कान्त्यासकत्यात्मनिवेदनासक्ति-तन्मयसक्ति-परमविरहासक्ति-रुपैकधाप्येकदादशधा भवति  II 82
वो भक्ति प्रेम रूपा हूण पर बि निम्न 11 प्रकार की च –
1-गुणमहात्म्यास्क्ति
2-रूपासक्ति
3-पूजासक्ति
4- स्मरणासक्ति
5- दास्यासक्ति
6-सख्यासक्ति
7-कान्तासक्ति
8- वात्सल्यासक्ति
9- अत्म्निवेदानासक्ति
10- तन्मयतासक्ति
11- प्रमविरहासक्ति
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती 2020 -21

नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद
भाग -   17     
 महान  भक्तों नाम 
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
इत्येवं वदन्ति जनजल्पनिर्भया एकमत: कुमारव्यासशुकशांडिल्यगर्गविष्णुकौंडिन्यशेषोद्भवारुणिबलिमद्विभीषणदयो भक्त्याचार्या I 83
 कुमार (सनत्कुमार ) , वेदव्यास, शुकदेव , शांडिल्य, गर्ग विष्णु, कौडिल्य, शेष, उद्धव, आरुणि, बलि, हनूमान, बिभीषण आदि भक्ति तत्व का अचार्यगण लोकों कि निंदा-स्तुति का  भय न करदा करदा एकमत से बुलदन  बल भक्ति  इ श्रेष्ठ च I

य इह नारदप्रोक्तं शिवानुशासनं  विश्वसिति  श्रद्धते सा भक्तिमान् भवति , स प्रेष्टं लभत इति II 84
जु ये नारदोक्त शिवानुशासन म विश्वास अर श्रधा करदन वो प्रियतम तै पै जान्दन  पै जान्दन

सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती 2020 -21
इति नारद भक्ति सूत्र का  गढवाली अनुवाद 

















Bhishma Kukreti

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सुमल्टा (चमोली )  का पंडित  रामानंद खंडूड़ी कृत  गढ़वाली म  ज्योतिष भाष्य /टीका भाग -2

 गढ़वाली का उन्नीसवीं सदी  अंत /   बीसवीं सदी पूर्व  भाग में गढ़वाली - 5
  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका साहित्य - 5

प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

आभार - आशीष खंडूड़ी

?? -  शब्द/शब्दार्थ / लिपि  स्पष्ट नहीं

 ---- 2 -------------
घटायेदेणोसो  अहर्गणहोये  मलमास  (स्याही मिटी है )  घटायेदेणो  वारमि  लजावत सहीसमझणोएक  कमा ( स्याही मिटी  ) हीनयायुक्त कर देणो  अववादमिलोण  का वास्ता अ हर्गण मा  अयुू  तेगुणादेणोयुक्त करणो ७ सेतपू करेणी  जोशेषरवू (स्याही मिटी )    वृ मंगल १  बुध २ गुरु ३  शुक्र ४ शनि ५ रवि ६ येकिकर  शेतेग्रहला। .. (स्याही मिट )  म्  अबखंडखादि  अहर्गणकीभाषाबोलदान II पहिले  ४०१६ पृअकचक्र   तेगुणा   ... ३१२२८६ तो मा जोडदेणोतेदिनकोग्रहलाधचि  ?? अहर्गण मी  जोडणु  सोखंडखादिअहर्गणहोये  त खंडखादि अहर्गणसे ग्रहलाघ  वीं   अहर्गण ???? णाकीरीती वतलाना  चक्रसहित मिल द   खंडखादि अहर्गण से ग्रह लाघवी अहर्गण वरोणा (??)की रीती बतलाना चक्रसहि  त्तमिलद खंडखादि अहर्गणा ३१ २२८६ यूं अंक घटोणा ४०१६ कोभालेणो जोलबद्ध पायेसो चक्रसमझण शेष ग्रहलाघवि  अहर्गण जाणनो वार पूर्वोक्तते येसभेदछ खंडखादि अहर्गण ७ सेतष्टकर्णो जोशेषरवू सोवारमोरविचंद्र २ आदि जाणनो  इतिसूर्यशिद्धान्तमतोनुशारेण खंडखादि  अहर्गणम II अवशका कोलते ऐ नां शकवणोण की रीती बोलदान     
शेष ३ सर भाग म
सुमल्टा (चमोली )  का पंडित  रामानंद खंडूड़ी कृत  गढ़वाली म  ज्योतिष भाष्य /टीका भाग -३ म
GARHWALI interpretation of Karmkand Astrology, GARHWALI interpretation of Karmkand Astrology by Pundit Khanduri of Chamoli Garhwal


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            गढ़वळिम  रविमध्यमाविचार

सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामानंद खंडूड़ी कृत  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका भाग - ३


 गढ़वाली का उन्नीसवीं सदी  अंत /   बीसवीं सदी पूर्व  भाग में गढ़वाली -  ६
  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका साहित्य - ६
  ** स्पष्ट नहीं /लिपि अक्षर मिट गए/स्याही फ़ैल गयी आदि   
प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
 
पहिले शाकालमा  ४४४ यू अंक घटायदेणा ६० सेभागलेणोजोलब्धपायेसोअथवा (     ** ) शहेयिशेषकलाजाणनी योंकावादमध्यंमास्पष्टबणोणा  कीरीतिछन सूरुमााविकोमध्यमांकर्नु रीतियाछ कि अहर्गण द्वि द्वि जगह पृथग धर्नु  एकजगह ७० कोभागलेणो दूसरीजगापर ३ स्थम् पौणा अंशादि ३ स्थम् घटायदेणा वादलिप्तिकागाडणी   अहर्गणामा १५० कोभागलेणा २ फलपौणा से लिप्तिकाहोंदी तवजो पहिले पायांद त्तोमाघटायदेण वाद अंशमू (**) ३० कोभागलेणु अ लगमूपौणा१२ से अधिकह्वूत  १२ तेतष्ट  कर्णो स्याराशहोये यूंराश अंश कलाविकला ४ स्थम् भवखेट काहोयां वादध्क वींक चक्रत्तेगुणणो भवखेटमा चक्रध्नहीन (**) कर्नो अगर निघहत शुद्धोकरीक घटोणो राश १२ अंश ३० कलादि ६०तेशुध्दोकरनो वाद क्षय कयु के कर्णो  केलाधिक ६० गुणों (**) अंशमू ३० राशी मू १२ चढोणो रविमध्यमाहोंद वृषकोसूर्यहोवूत्त १ एक राशी मिलिदै मिथुनकोहोयत  २ राशी (**स्याही मिट गे )   जाणनो एवंप्रकार अन्यग्रहों की राशी समझणी अंशकाहिसावमायावातछकि १८ प्रविष्टको जन्महोवूत १५ या १६ अंश या १७ अंशओंणचयेंदायामाकमतिवूअधिंक होजावूत्तस्पष्ट परपरीक्षा करणी तखऋणधन कोविचार होयाकर्न ऋणतेघटायजांद धनयुक्त (**) समझणोउपरोक्तअंशस्पष्ट ते पक्काहोंदामध्यमामध्यमहिहोंदस्पष्टतोनामहीसेस्फुटहोंद। इत्तिरविमध्यमाविचार। ।     

   
 सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामा नंद  खंडूड़ी   द्वारा गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका   अग्वाड़ी भागम .. निरंतर रालो   

 सूचना आभार -  स्व रामा नंद खंडूड़ी  के पौत्र आशीष खंडूड़ी
सर्वाधिकार @ प्रस्तुति कर्ता
Astrology in Garhwali, Astrometry in Garhwali;  गढ़वाली भाषा में ज्योतिष गणना , गढ़वाली भाषा में ज्योतिष टीका


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चंद्र मध्यमा की रीति  व  चंद्र उच्च  मध्यमा

सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामानंद खंडूड़ी कृत  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका भाग - 3

 गढ़वाली का उन्नीसवीं सदी  अंत /   बीसवीं सदी पूर्व  भाग में गढ़वाली -  7
  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका साहित्य - 7
** स्पष्ट नहीं /लिपि अक्षर मिट गए/स्याही फ़ैल गयी  आदि
प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
  चंद्र मध्यमा की रीति  या छ कि अहर्गण  १४ से गुणनो  तवपृथग धर्नो  एकजगा १७ कोभागलेणो दुसरीजगहपर ३ स्थम्पौणो लवादिहीनकरदेणलिप्तिका १४० तेगाडणी २ फलपौणाकला विकलामा हीनकर्णी अंश मा ३० कोभागलेणो  अलगपोणो १२ तेतष्टकर्णास्याराशमझणी राश्यादि ४ स्थम् भवखेट काहोया चक्रघ्नघटोणो क्षेपयुक्तमध्यमाहोंद इतिचन्द्रमध्यमा II  उच्चमध्यमाको  अहर्गणमा ६ कोभागलेणो ३ फलपौणा लिप्तिका ७० तेगाडणी  युक्तकर्णी कलविकलाका अंकोमा शेषसंस्कारपूर्वोक्तकरनो धवांक (**) हीन और क्षेपकयुक्त कर्णो मध्यमा होंद यो चंद्रस्पष्टमाकामदेंद इति उच्चमध्यमा :: 


 सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामा नंद  खंडूड़ी   द्वारा गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका   अग्वाड़ी  भाग   .. निरंतर रालो   

 सूचना आभार -  स्व रामा नंद खंडूड़ी  के पौत्र आशीष खंडूड़ी
सर्वाधिकार @ प्रस्तुति कर्ता
Astrology in Garhwali, Astrometry in Garhwali;  गढ़वाली भाषा में ज्योतिष गणना , गढ़वाली भाषा में ज्योतिष टीका,  गढवाली म फलित ज्योतिष टीका


 

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