नारद भक्ति सूत्र कु गढवाली अनुवाद
भाग - 1 से - ८४
भक्ति क्या च ?
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
Garhwali Translation of Narada Bhakti Sutra
अथतो भक्तिं ब्याख्यास्याम: - II 1 II
अब भक्ति की व्याख्या हवेली I1 I
सा तस्मिन परम प्रेम रूपा II2II
वा (भक्ति ) इश्वर का प्रति परम प्रेम रूपा च I 2 I
अमृत स्वरूपा च II 3 II
अर अमृत/आनन्द स्वरूप बि च I 3 I
यल्लब्ध्वा पुमान् सिद्धो भवति अमृतो भवति तृप्तो भवति II 4 II
( भक्ति ) जै तै पैका मनिख सिद्ध ह्वे जान्द, अम्र ह्वेजान्द , तृप्त /छकक हवे जान्द I4I
यत्प्राप्य न किंचिद्वांछति, न शोचति , न द्वेष्टि , न रमते , नोत्साही भवति II5II
जैक (भक्ति ) प्राप्त हूण पर मनुष्य की कै हैंक विषय की इच्छा समाप्त ह्वे जान्द , न पशत्यौ(शोक ) करद , ना इ विषय भोगों प्रति उत्साह हूंद I5 I
यंज्ञात्वा मत्तो मवति, स्तब्धो भवति, आत्मारामो भवति II 6II
जै तै जाणीक इ मनुष्य उनमत ह्वेजान्द , शांत हवे जान्द , अर आत्माराम बण जान्द I6 I
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 2
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
सा न कामयमाना निरोधरूपत्वात (NBS 7)
वु (प्रेम भक्ति ) कामायुक्त नी च; किलैकी भक्ति निरोधस्वरुप च I
निरोधस्तु लोकवेदव्यापारन्यास: ( NBS 8 )
लौकिक अर वैदिक कर्मों त्याग तै ‘निरोध’ बुल्दन I.
तस्मिन्ननन्यता तद्विरोधिषुदासीनता II (NBS 9)
वे प्रियतम भगवान म अन्यनता अर वैक प्रतिकूल विषयों म उदासीनता कुण बि निरोध बुलदं I
अन्याश्रयाणान् त्यागोSनन्यता (NBS 10)
(अपण प्रियतम भगवान तै छोडिक ) दुसर आश्रयों त्यागौ नाम अन्यनता बुले जंद I
लोकवेदेषु तदनुकूलाचरण त्वदिरोधिषुदासीनता (NBS11)
लौकिक अर वैदिक कर्मोंम भगवानौ अनुकूल कर्म करण इ अर वैक प्रतिकूल विषयों म उदासीनता च I
नारद भक्ति सूत्रौ गढवाली अनुवाद
भाग - 3
भक्ति तै अक्षुण रखण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
भवतु निश्चयदाढर्चादूर्घ्व शास्त्ररक्षणम (NBS 12 )
( विविध निरोध आदि से अलौकिक प्रेम प्राप्ति करणों उपरान्त बि मन मा) दृढ निश्चय हूणों उपरान्त बि शास्त्र कि रक्छा करण चएंद अर्थात भगवत अनुकूल शास्त्रानुसार कर्म करण चएंद I
अन्यथा पतित्यशंकया (NBS13 )
निथर गिर सकणो संभावना च I
कपि तावदेव , भोजनादिव्यापारस्त्वा शरीरधारणावधि (NBS14 )
लौकिक कर्मों तै बि तब तक (बाह्य ज्ञान रौण तक ) विधि अनुसार करण चएंद I किन्तु भोजनादि कर्म तो तब तक चलण इ राला जब तक सरैल च I
नारद भक्ति सूत्रौ गढवाली अनुवाद
भाग - 4
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
-
तल्लक्षणानि वाच्यन्ते नानामतभेदात्I NBS 15 I
अब बिगळयां बिगळयां मतानुसार वीं भक्ति क लक्ष्ण व उदहारण बताये जाल I
पूजादिष्वनुराग इति पाराशर्य: I NBS 16 I
पराशर पुत्र व्यास अनुसार भगवान कि पूजा म अनुराग हूण इ बहती च (अर्थात साधनों म अनुराग ) I
कथादिष्विति गर्ग: INBS 17I
गर्गाचार्य अनुसार भगवानै कथा म प्रेम –अनुराग इ भक्ति च I
आत्मरत्यविरोधेनेति शांडिल्य: I NBS18I
शांडिल्य कु मत च बल आत्मरति क अविरोधी विषय म प्रेम भक्ति च I
नारदस्तु त्दार्पिताखिलाचारता तद्विस्मरणे परमव्यकुलतेति I NBS 19 I
किन्तु हमर (नारद ) का मत च बल अपण सब कर्मों तैं भगवान म अर्पण करण अर भगवान क थुड़ा सि बिस्मरण हूण पर अति ब्याकुल हूण इ भक्ति च I
अस्यतेवमेव I NBS 20 I
ठीक इनि च I
यथा ब्रजगोपिकानाम् I NBS 21 I
जन ब्रजै गोपियों प्रेम I
तत्रापि न महात्म्यज्ञानविस्मृत्यपवाद: I NBS 22 I
जन ब्रज कि गोपियों ब्याकुलता अपवाद नी च I
त्वदिहीनं जाराणामिव I NBS 23 I
वैक बिना (भगवान तै ज्ञान हुयां बिना ) प्रेम जार /स्त्री प्रेम जन इ च I
नास्त्येव तस्मिस्तत्सुखसुखित्वम् I NBS 24 I
जार का प्रेम म जार को सुखी हूण भक्ति नी च I
Copyright@ Bhishma Kukreti 2020-21
नारद भक्ति सूत्रौ गढवाली अनुवाद
भाग - 5
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
-
सा तु कर्मज्ञानेयोगेभ्योsप्यधिकतरा II NBS25
वु (प्रेम रूपा भक्ति ) त कर्म (भगवान का प्रति धार्मिक अनुष्ठान ), ज्ञान व योग से बि श्रेष्ठ च I
फलरुपत्वात् II NBS26
किलैकी वो (भक्ति ) फल रूप च I
ईश्वरस्याप्यभिमानद्वेषित्वाद् दैन्यप्रियत्वाच्च II NBS27
इश्वर तैं अहम से द्वेष च अर दैन्यता से प्रेम भाव च I
नारद भक्ति सूत्रौ गढवाली अनुवाद
भाग - 6
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
-
तस्याज्ञानमेव साधनमित्येके I NBS 28 I
वैको (भक्ति कसाधन ज्ञान च . कुछ आचार्यों कु यु मत च I
अन्योन्याश्रयत्वमित्यन्ये I NBS 29 I
दुसर आचार्यों मत च बल भक्ति अर ज्ञान परस्पर एक हैंक पर आश्रित छन I
स्वयंफलरुपतेति ब्रह्मकुमार: I NBS 30I
.ब्रह्म कुमारों (सनत कुमारों अर नारद) विचार च बल भक्ति स्वयम फल रुप इ च I
राजगृहभोजनदिषउ तथैव दृष्टत्वात् I NBS 31 I
राजगृह अर भोजनम यी दिखे जान्द I
न तेनराजपरितोष: क्षुधाशान्तिर्वा I NBS 32 I
ना वांसे (ज्ञान मात्र से ) राजा तैं प्रसन्नता होली ना ही पुटुक भर्यालु I
तस्मात्सैव ग्राह्या मुमुक्षुभि: I NBS 33 I
इले मुक्ति /मोक्ष ( संसार बन्धनों से मुक्ति चाहक) चाहकों तैं इ भक्ति ग्रहण करण चएंद I
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 7
भक्ति पाणों साधन
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
-
तस्या साधनानि गायन्त्याचार्या: II34II
आचार्यगण वीं भक्ति तैं पाणो साधन बतान्दन I
तत्तु विषयत्यागात्संग त्यागाच्च II35II
वो (भक्ति साधन ) विषय त्याग अर संगत्याग से संपन हूंद I
अव्यावृत्तभजनातII 36 II
अखंड भजन से (भक्ति साधन ) संपन हूंद I
लोकेsपि भगवद्गुणश्रवणकीर्तनात् II37II
लोक समाज म बि भगवदगुणश्रवण अर कीर्तन से सम्पन हूंद I
मुख्यतस्तु महत्कृपयैव भगवतकृपालेशाद्वा II 38 II
परन्तु (प्रेमभक्ति प्राप्ति साधन ) मुख्यतया ( प्रेमी )महापुरुषों कृपा से अर भगवत कृपा लेशमात्र से हूंद I
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 8
भक्ति म दगुड़ो महत्व
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
महत्संगस्तु दुर्लभोsगम्योsमोधश्च II 39
परन्तु महापुरुषों की संगत दुर्लभ , अंग्मी अर अमोध च I
लभ्यतेsपि तकृपयैव II 40
वे भगवान कि इ कृपा से महापुरुषों संगत मिलदी I
तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात् II 41
किलैकी भगवान अर वूंक भक्तों मा भेद कु आभाव च I
सदेव साध्याताम् तदेव साध्यतास् 42
इलै वै ( महात्संग ) की इ साधना कारो , वैकी इ साधना कारो
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 9
भक्ति म दुसंग हानि
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
दुसंग सर्वथैव त्याज: II 43II
दुसंग कु सद्यनि इ त्याग करण चएंद I
कामक्रोधमोहस्मृतिभ्रंशबुद्धिनाशसर्वनाशकारणत्वात् II44II
किलैकी वू (दुसंग ) काम, क्रोध , मोह, स्मृतिभ्रंश, बुद्धिनाश अर सर्वनाशौ कारण हूंद I
तरंगायिता अपीमे संगात्समुद्रायन्ति II45 II
यी (काम क्रोध आदि ) पेल तरंग (सूक्ष्म ) का जन ऐका अंत म समोदरजन आकार प्राप्त कर लीन्दन I
कस्तरति मायाम् यस्संगांस्त्यजति, यो महानुभावं सेवते निर्ममो भवति II 46 II
( प्रश्न ) कु तैरदो ? माया से कु तैरदो ? (उत्तर ) जु सब संगों त्यार करदो , जु महानुभावों सेवा करदोअर जु ममता रहित हवे जान्द I
यो विविक्तस्थानं सेवते, यो लोकबन्धुमुन्मूलयति, निस्स्रैगुण्यो भवति, योगक्षेमं त्यजति II 47II
जु निर्जन स्थानों म निवास करदो , जु लौकिक बन्धनों तै तोड़ी दीन्द, जु तीन गुणों से परे हवे जान्द, अर योग व क्षेम कु बि परित्याग कर दीन्दो I
य: कर्मफलं त्यजति कर्माणि संन्यसति ततो निर्द्वंदो भवति II 48 II
जु कर्मफलों त्याग करदो, कर्मों k बि त्याग कर लीन्दो , अर सब कुछ त्याग करीक निर्द्वन्द ह्वे जान्द I
वेदानपि संन्यसति केवलमविच्छिन्नानुरागं लभते II 49 II
जु वेदों बि परित्याग कर दीन्दो अर जु अखंड , असीम भगवत रेम प्राप्त कर लीन्दोI
स तरति स तरति स लोकांस्तारयति II 50II
वो तैरदो , वु तैरदो , वु लोगुं तै तैरा दीन्दो I
भगवत प्रेम का लक्षण
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 10
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
अनिर्वचनीय प्रेमस्वरूपम् II 51
प्रेमौ स्वरूप अनिर्वचनीय च I
मूकास्वादनवत् II 52
जन गूंगो कु स्वाद I
प्रकाशते कापि पात्रे II 53
कै बिरला पात्रम (प्रेमिम ) यु प्रकट बि हूंद Iच ,
गुणरहितं कामनारहितं प्रतिक्षणवर्धमानमविच्छिन्नं सूक्ष्मतरमनुभवरूपम् II 54
यु (प्रेम /भक्ति ) गुण रहित च , कामना रहित (गाणी-स्याणी रहित ) च प्रति क्षण बढ्दो इ रौंद , विच्छेद रहित च , सूक्ष्म से बि सूक्ष्मतर च अर अनुभव स्वरूप च I
ततप्राप्य तदेवावलोकयति, तदेव श्रृणोति, तदेव भाषयति तदेव चिंतयति II 55
ये प्रेम तैं पैको प्रेमी ये प्रेम तैं इ दिखणु रौंद, प्रेम तै इ सणनु रौंद , प्रेम को इ वर्णन करणुरौंद अर प्रत्येक क्षण प्रेम कु इ चिंतन करणु रौंद I
अन्य गौण भक्ति
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 11
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
गौणी त्रिधा गुणभेदादार्तादिभेदाद्वा II 56
गौणी भक्ति गुण भेद से या आर्तादि भेद से तीन प्रकारौ हूंद I
.
उत्तरस्मादुत्तरस्त्पूर्वपूर्वा श्रेयाय भवति II 57
(उंमा) उत्तर –उत्तर क्रम से पूर्व –पूर्व (पैलाकी ) क्रम की भक्ति कल्याणकारी हूंद I
भक्ति का (अति ) विशेष गुण
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 12
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
अन्यस्मात्सौलभ्यं भक्तौ II 58 II
हौर सबुं अपेक्षा भक्ति सुलभ च I
प्रमाणन्तरस्यानपेक्षत्वात् स्वयमप्रमाणत्वात् II 59 II
किलैकी भक्ति स्वयम प्रमाणस्वरूप च , याकण हौरि प्रमाणु आवश्यकता नी च I
शान्तिरुपात् परमानन्दरुपाच्च II 60 II
भक्ति शान्तिस्वरूपा अर परमानंदरूपा च I
भक्ति अन्वेषक कु जीवन
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 13
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
लोकहानौ चिंता ना कार्या निवेदितात्मलोकवेदत्वात् I 61 I
( भक्त ) तैं लोक हानि चिंता नि करण चएंद , किलैकि वैन (भक्तन) त अफु तैं अर
न तदसिद्धौ लोकव्यवहारो हेय: किन्तु फलत्यागस्तत्साधनं च कार्यमेव I 62 I
किलैकि वैन (भक्तन) लौकिक व वैदिक सब कर्मों तै भगवानो कुण पीली समर्पित कौर आलिन I
स्त्रीधननास्तिकचरित्रं न श्रवणीयम I 63 I
स्त्री , धन, नास्तिक अर बैरी कु चरित्र नि सुणन चएंद I
अभिमानदम्भादिकं त्याज्यम I 64 I
अभिमान , दम्भ आदि का त्याग करण चएंद I
तदर्पिताखिलाचार: सन् कामक्रोधभिमानदिकं तस्मिन्नेव करणीयम् I 65 I
सब आचार भगवन तै समर्पण को पश्चात काम , क्रोध, अभिमान हों त वूं तै बि भगवान का प्रति इ करण चएंद I
त्रिरुपभंगपूर्वकं नित्यदास्यनित्यकान्तभजनात्मकं प्रेम कार्य प्रेमैव कार्यम् I 66 I
तीन (स्वामी , सेवक अर सेवा ) रूपों तैं भंग कौरिक नित्य दासभक्ति या नित्या कांताभक्ति से प्रेम इ करण चएंद , प्रेम इ करण चएंद I
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती 2020 -21
श्रेष्ठतम भक्तों की कान्ति
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 14
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
भक्ता एकान्तिनो मुख्या: II 67
एकांत (अन्यान) भक्त इ श्रेष्ठ च I
कंठावरोधरोमान्चाश्रुमि: परस्परं लपमाना: पाक्यन्ति कुलानि पृथिवी च II 68
इन अन्यान भक्त कंठावरोध , रोमांच , अर अश्रुयुक्त आँख ह्वेका परस्पर संभाषण कौरिक अपण कुल अर पृथ्वी तैं पवित्र करदन I
तीर्थोकुर्वन्ति तीर्थानि सुकर्मीकुर्वन्ति कर्माणि सच्छास्त्रीकुर्वन्ति शास्त्राणि II 69
इन भक्त तीर्थों तै सुतीर्थ , कर्मों तै सुकर्म, अर शास्त्रों तै सत्शास्त्र कर दीन्दन (परिवर्तित कर दीन्दन ) I
तन्मया II 70
इ तन्मय छन I
मोदन्ते पितरे नृत्यन्ति देवता: सनाथाचेयं भूर्भवति II 71
(इन भक्तों अविर्भाव देखिक ) पितरगण प्रमुदित हून्दन , दिवता नचण मिसे जान्दन, अर पृत्वी सनाथा ह्वे जान्द I
नास्ति तेषु जातिविद्यारूपकुलधनक्रियादि भेद : II 72
उंमा (भक्तों म ) जाति, विद्या, रुप , कुल धन अर क्रियादि भेद नी च I
यतस्तदीया: II 73
किलैकि भक्त वेका (भगवान का ) इ छन I
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती 2020 -21
प्रेम भक्ति साधकौ कुण आदेश
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 15
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
वादो नावलम्ब्य II 74
( भक्तों तैं ) वाद विवाद नि करण चएंद I
बाहुल्यावकाशत्वादनियतत्वात् II 75
किलैकि वाद –विवाद म बाहुल्यौ अवकाश च अर अनियमित च I
भक्तिशास्त्राणि मननीयानि तदुद्बोधककर्माणयपि करणीयानि II 76
(प्रेमा भक्ति पाणों कुण ) भक्तिशास्त्रौ मनन करणु रौण चएंद , अर इनकार्य बि करण चएंदन जांसे भक्ति म वृद्धि हो I
सुखदु:खेच्छालाभादित्यक्ते काले प्रतीक्ष्यमाणे क्षणार्द्धमपि व्यर्थ न नेयम् II 77
सुख –दुःख , इच्छा , लाभ कु पूर्ण त्याग ह्वे जाव म एक क्षण बि बिना ( भक्ति भजन ) का व्यर्थ रौण चएंद I
अहिंसासत्यशौचदयास्तिक्यादिचारित्र्याणिपरिपालनीयनि II 78
( प्रेम भक्ति साधक तैं ) अंहिसा , सत्य , शौच , दया , आस्तिकता आदि आचरणीय सदाचारों भली भांति पालन करण चएंद I
सर्वदा सर्वभावेन निश्चिन्तितैर्भगवानेव भजनीय: II79
प्रत्येक समय सर्वभाव से निश्चित ह्वेका (केवल ) भगवानौ भजन करण चएंद I
संकीर्त्यमान: शीघ्रमेवाविर्भवत्यनुभावयति भक्तान् II 80
वो भगवन ( प्रेम पूर्वक ) कीर्तित हण पर शीघ्र प्रकट ह्वे जान्दन अर भक्तों तैं अपण अनुभव कराई दीन्दन I
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती 2020 -21
भक्ति का बनि बनि रुप
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 16
भक्ति का उदाहरण
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
त्रिसत्यस्य भक्तिरेव गरीयसी भक्तिरेव गरीयसी II 81
तीनो ( मनसा , वाचा , कर्मणे ) सत्य म अर तिन्नी कालों म भक्ति इ श्रेष्ठ च , भक्ति इ श्रेष्ठ च I
गुणामहात्म्यासक्ति-रूपासक्तिपूजासक्ति –स्मरणसक्ति
दास्यसक्ति-सख्यासक्ति-वात्सल्यासक्ति-कान्त्यासकत्यात्मनिवेदनासक्ति-तन्मयसक्ति-परमविरहासक्ति-रुपैकधाप्येकदादशधा भवति II 82
वो भक्ति प्रेम रूपा हूण पर बि निम्न 11 प्रकार की च –
1-गुणमहात्म्यास्क्ति
2-रूपासक्ति
3-पूजासक्ति
4- स्मरणासक्ति
5- दास्यासक्ति
6-सख्यासक्ति
7-कान्तासक्ति
8- वात्सल्यासक्ति
9- अत्म्निवेदानासक्ति
10- तन्मयतासक्ति
11- प्रमविरहासक्ति
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती 2020 -21
नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद
भाग - 17
महान भक्तों नाम
सूत्र अनुवादक – भीष्म कुकरेती
s = अर्ध अ
इत्येवं वदन्ति जनजल्पनिर्भया एकमत: कुमारव्यासशुकशांडिल्यगर्गविष्णुकौंडिन्यशेषोद्भवारुणिबलिमद्विभीषणदयो भक्त्याचार्या I 83
कुमार (सनत्कुमार ) , वेदव्यास, शुकदेव , शांडिल्य, गर्ग विष्णु, कौडिल्य, शेष, उद्धव, आरुणि, बलि, हनूमान, बिभीषण आदि भक्ति तत्व का अचार्यगण लोकों कि निंदा-स्तुति का भय न करदा करदा एकमत से बुलदन बल भक्ति इ श्रेष्ठ च I
य इह नारदप्रोक्तं शिवानुशासनं विश्वसिति श्रद्धते सा भक्तिमान् भवति , स प्रेष्टं लभत इति II 84
जु ये नारदोक्त शिवानुशासन म विश्वास अर श्रधा करदन वो प्रियतम तै पै जान्दन पै जान्दन
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती 2020 -21
इति नारद भक्ति सूत्र का गढवाली अनुवाद