Author Topic: Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख  (Read 722040 times)

Bhishma Kukreti

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भोजन परोसण,भोजन  अलंकरण करण  ,कला  अर कौंळ


 (परम्परागत उत्तररखण्ड भोजन शृंघला)

संकलन - भीष्म कुकरेती
-
भोजन पकाण महत्वपूर्ण च किन्तु वै से बिंडी महत्वपूर्ण भोजन परोसण हूंद।   

भोजन खाण मशीन को कार्य नि अपितु एक विशेष अनुभव च।  इलै  भोजन म भौत सा कार्य महत्वपूर्ण ह्वे जांद जन कि भोजन अलंकरण /परोसण आदि।
  भोजन परोसण व भोजन अलंकरण  का कारण/किलै  - 
१- उच्चता - भोजन  परोसण / अलंकरण /प्लेटिंग से भोजन बारा म उच्च धारणा बणद अर  साधारण भोजन बि इन लगद जन बुल्यां  धन्याडों कुण बण्युं  हो। 
२- आनंद  - खाणो आनंद  वृद्धि  हूंद। अलंकृत भोजन  मानसिक रूप से भूक वृद्धिकारक हूंद।
३- सर्यूळै प्रतिष्ठा वृद्धिकारक -  अलंकृत भोजन सर्यूळै  प्रतिष्ठा वृद्धिकारक हूंद।  भोजन कै तरां से दिए गे  स्वाद से अधिक महत्वपूर्ण ह्वे जांद किलैकि स्वाद  अमूर्त (जैक अभिव्यक्ति  नि हूंद ) अर सजावट /अलंकरण मूर्त च। 
४- भोजन अलंकरण सर्यूळ/ आतिथ्य/मेजवान   वास्ता एक रचनात्मक कार्य च। 
५- जु आतिथेय व्यापर (होटल )  म छन भोजन परोसण /संवोरण /प्लेटिंग /अलंकरण  लाभ वृद्धिकारक च। 
भोजन अलंकरण का मुख्य अवयव -
टेबल क्लोथिंग -आवश्यक
थाली व चमच आदि  भांड (वर्त्तन ) - सही आकार , रूप   रंग
ध्यान कैपर चयेंद ? भोजन परोसण म कै  भोजन पर चटाक से या बार बार ध्यान जांदो तै ठीक से दिख्याण चयेंद जनकि  मटन म मटन /चिकन टुकड़ा ; तंदूर म तंदूर चिकन व सलाद सामान पनीर म पनीर , अल्लू -गोभी म अल्लू व गोभी सामान , कढ़ी म पकोड़ी ,  पकोड़ी म मथि  बिटेन  डाळ्यूं  मसाला , धनिया आदि , दाळ -भट म शैली  आदि। दाळ कटोरी म इ दीण सही च।  सलाद आदि कुण अलग थाळी / तस्तरी भली हूंद।  पाणि गिलास या लुट्या स्थान किटॉस  नि हूण चएंद। 
रंग रूप पर ध्यान - भोजन इन धरण  कि कॉन्ट्रास्ट उभरी आयी जावो।  जनकि  भात -दाळ म भुजी , सलाद सबि उठिक आण चयेंद।
भोजन तै ऊंचाई दीण  - भौत सा भोजन तै  थाळी म ऊंचाई दीण  आवश्यक च जन कि आइसक्रीम ,  मटन/चिकन  का टुकड़ा , कोरमा  क डळि , करेला , पकोड़ा , भात  यदि  फरमा  दियाणु  च आदि  . भुजी  अलग  धरे जाण चएंदन। 
भोजन रखणम कोण महत्वपूर्ण हूंद -  घड़ी अनुसार  भोजन तै कोणानुसार  धरण चयेंद। 
भोजन तै रंग या प्रतीक द्यावो - यु होटल आदि म सही।   

Copyright@ Bhishma  Kukreti 


Bhishma Kukreti

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             भोममध्यमा
   सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामानंद खंडूड़ी कृत  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका भाग -

 गढ़वाली का उन्नीसवीं सदी  अंत /   बीसवीं सदी पूर्व  भाग में गढ़वाली -  4
  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका साहित्य -
** स्पष्ट नहीं /लिपि अक्षर मिट गए/स्याही फ़ैल गयी  आदि
प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
 
  राहु कावास्तादिनगणमा  १८ को भाग ३ फलपौणा  लिप्तिका तेगाडणी जोड़देणी सवसंस्कार पूर्वोक्त प्रकारहीजाणनोसिर्फयख  भवखेट १२ राशीमाघटाणो चक्रघ्नहीन  क्षेपकयुक्ततेमध्यमाहोयगयेइतिराहुमध्यमाविचार II मंगलकावास्ता अहर्गण १० तेगुणनू १६ को  भागलेणो ३ फलपौणोलिप्तिकाकोभी अहर्गण  १०तेगुणनू ७३ तेभागलेणो घटायदेणो कर्वाकहीन  क्षेपकयुक्त   भोममध्यमाहोंद इति भोममध्यमा।   
 
 सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामा नंद  खंडूड़ी   द्वारा गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका   अग्वाड़ी  भाग   .. निरंतर रालो   

 सूचना आभार -  स्व रामा नंद खंडूड़ी  के पौत्र आशीष खंडूड़ी
सर्वाधिकार @ प्रस्तुति कर्ता
Astrology in Garhwali, Astromatery in Garhwali;  गढ़वाली भाषा में ज्योतिष गणना , गढ़वाली भाषा में ज्योतिष टीका , गढवाली म फलित ज्योतिष टीका


Bhishma Kukreti

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बुधक वास्ता अहर्गणा
सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामानंद खंडूड़ी कृत  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका भाग – 4

 गढ़वाली का उन्नीसवीं सदी  अंत /   बीसवीं सदी पूर्व  भाग में गढ़वाली -  8 
  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका साहित्य -
** स्पष्ट नहीं /लिपि अक्षर मिट गए/स्याही फ़ैल गयी आदि
प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

बुधक वास्ता अहर्गणा 3 तेगुणा क्री पृथग रखणू एक जगह २८ को भागलेणो दूसरीजगापर ३ फलपौणा उपरका स्थम्मा जोड़ देणो लिप्तिका ३८तेनिकालनी घटादेणी दृवा का (**) घटोणोक्षेपकजोड़णो मध्यमाहोंद योमध्यमामिलदो निछ स्पष्ट मिलणो चेंद इतिबुधमध्यमारीति II६II

सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामा नंद  खंडूड़ी   द्वारा गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका   अग्वाड़ी  भाग   .. निरंतर रालो   

 सूचना आभार -  स्व रामा नंद खंडूड़ी  के पौत्र आशीष खंडूड़ी
सर्वाधिकार @ प्रस्तुति कर्ता


Bhishma Kukreti

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१९ वीं सदी का ज्योतिष ग्रंथों म गढ़वाली  (पर्वतीय गढ़वाली  भाषा म गणित )


सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामानंद खंडूड़ी कृत  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका भाग - ५

 गढ़वाली का उन्नीसवीं सदी  अंत /   बीसवीं सदी पूर्व  भाग में गढ़वाली -  ९
  गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका साहित्य -
** स्पष्ट नहीं /लिपि अक्षर मिट गए/स्याही फ़ैल गयी  आदि
प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती
 
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 १९ वीं सदी म संस्कृत  ज्योतिष  ग्रंथों गढ़वाली टीका  अनशन म एक शब्द   अळग आयी - अर  यु शब्द च ' पर्वतीय गढ़वाली भाषा म गणित'
अर्थात ज्योतिष टीका साहित्य म गढ़वाली भाषा महत्व छौ . जब ज्योतिषियों बच्चों तै हिंदी  लिखणो -पढ़णो   ढब दिए गे  तो ज्योतिष टीका से लिखित गढ़वाली लुप्त ह्वे गे .

 सुमल्टा (चमोली ) के पंडित  रामा नंद  खंडूड़ी   द्वारा गढ़वाली में ज्योतिष भाष्य /टीका   अग्वाड़ी  भाग   .. निरंतर रालो   

 सूचना आभार -  स्व रामा नंद खंडूड़ी  के पौत्र आशीष खंडूड़ी
सर्वाधिकार @ प्रस्तुति कर्ता
Astrology in Garhwali, Astrometry in Garhwali;  गढ़वाली भाषा में ज्योतिष गणना , गढ़वाली भाषा में ज्योतिष टीका , गढवाली म फलित ज्योतिष टीका

Bhishma Kukreti

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 जागिये ! कुमाऊंनी -गढ़वाली साहित्यकारो  !

          वेबिनार को आज ही  अपनाओ!

गढ़वाली -कुमाऊंनी  भाषाओं के साहित्यकारों हेतु  प्रसिद्धि वृद्धि हेतु वेबिनार  एक श्रेष्ठ माध्यम है। 

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 आलेख : विपणन विशेषज्ञ /  व्यक्तिगत छविबृद्धि  विशेषज्ञ - भीष्म कुकरेती

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  प्रत्येक साहित्यकार साहित्य संसार में प्रसिद्धि पाने ही आया है व प्रसिद्धि पाना साहित्यकार का जन्म सिद्ध अधिकार है।  साहित्यकार को  अपने साहित्य के अतिरिक्त अन्य माध्यमों से भी आमना सामना करना पड़ता है और अपनी प्रसिद्धि /Personal branding  हेतु कई परम्परागत  रणनीतियों व  परम्परागत माध्यमों कई नए   रणनीतियों माध्यमों को अपनाना पड़ता है। 
वर्तमान में इंटरनेट सर्वथा नया माध्यम है व  कई ऐसे साहित्यकार प्रकाश में आएं हैं जो पारम्परिक माध्यम में  अज्ञात ही थे जैसे गढ़वाली गजलों में पयास पोखड़ा , कविताओं में भी बालकृष्ण ध्यानी , जयाड़ा , वीरेंद्र जुयाल आदि।  हिंदी में इंटरनेट सुविधा का लाभ उठाते युवा कवि नरेश उनियाल ने झंडे गाड़े।
  इंटरनेट ने साहित्यकारों हेतु  बिनव्यय के यी माध्यम प्रदान किये हैं जिससे  साहित्यकार व्यक्तिगत छवि वृद्धि . करने में सफल हुए हैं।  वेबिनार अथवा इंटरनेट द्वारा सम्मेलन आयोजन  भी न्य माध्यम है और गढ़वाली साहित्य में  उदाहरण हैं कि कई नए संयोजक  वेबिनार  माध्यमों से चमके हैं यथा - ऋषिकेश के डा सुनील थपलियाल।  इसी तरह से युवा  आश्विन गौड़ , वीरेंद्र जुयाल व मनोज भट्ट,  ने जताया कि  वे कवि के अतिरिक्त संयोजन में भी कुशल हैं महेंद्र ध्यानी पारम्परिक माध्यमों में जाने माने सम्मेलन संयोजक है उन्होंने भी सिद्ध किया कि  वे वेबिनार में भी सिद्ध हस्त  संयोजक हैं  । 
    संक्षेप में वर्तमान में वेबिनार से अपने  साहित्य व  विद्वता का परचम फहराना साहित्यकारों हेतु एक  नया व क्रांतिकारी माध्यम है।  इसी क्रम में   कुमाऊंनी   संस्कृति संबंधी वेबिनारों में  ' म्योर पहाड़ मेरी पछ्यांण ' संस्था  ने अब तक 69 वेबिनार आयोजित कर लिए हैं। 
                  -: वेबिनार क्या है ? ;:-
वेबिनार  की  सरल परिभाषा  है इंटरनेट द्वारा सम्मेलन।  सम्मेलन दो व्यक्तियों मध्य भी हो सकता है और सौ व्यक्तियों का भी। 

         -:साहित्यकार वेबिनार से क्या क्या लाभ उठा सकते हैं ;-
  साहित्यकार वेबिनार से जग प्रसिद्ध भी बन सकते हैं।   साहित्यकार वेबिनार द्वारा उन ऊंचाइयों  तक पंहुचने में सफल हो सकते हैं  जिन उंचाईयों की आम साहित्यकार ने सपने भी न देखे हों। 
१- वेबिनार से साहित्यकार अपनाी व्यक्तिगत छवि  निर्माण कर सकता है या छवि वृद्धि कर।  अथवा जो छवि है उसे स्थिर भी रख  सकता है। 
२-  वेबिनार से साहित्यकार अपनी छवि वृद्धि व व्यक्तिगत छवि प्रसारण कर सकने में सक्षम हो सकता है।  जैसे अपनी पुस्तक लोकार्पण वेबिनार से  करवाकर अथवा अपनी कृतियों पर विद्वानों मध्य चर्चा करवाकर व दर्शकों से मूलयवान विचार /सलाह मंगवाकर (पाठकों को अपने साहित्य में अंतर्भूत करना  आदि )। 
३-  पाठकों को का आकर्षण वृद्धि हेतु भी वेबिनार सशक्त माध्यम है।  कई वेबिनारों में प्रमुख व अपने देव दूत सरीखे पाठकों को सम्मलित कर अपने प्रशंसा भी करवाई जाती है। 
              वेबिनार द्वारा व्यक्तिगत छवि सुधर
 बहुत से समय साहित्यकार किसी  नकारात्मक छवि  का शिकार होता है।  ऐसे में वेबिनार आयजित कर व्यक्तिगत छवि को सुधारा जा सकता है या साहित्यकार अपना  विचार ठीक से रख सकता है।
              वेबिनार वास्तव में वीडिओ मार्केटिंग का एक भाग है :-
 वेबिनार द्वारा अपनी ब्रैंडिंग करना अर्थात वीडिओ विपणन करना है।  अतः  वेबिनार विपणन में व्ही तकनीक व रणनीति अपनायी जाती हैं जो वीडिओ मार्केटिंग में आवश्यक हैं।
-
वेबिनार विपणन वेबिनार मार्केटिंग हेतु कुछ टिप्स -
              वेबिनार का दिन व समय पक्का करना - वेबिनार हेतु दिन व समय पक्का करने हेतु चर्चा में भाग लेने वालों की अग्रिम सहमति तो आवश्यक है ही अपितु  अधिक से अधिक पाठकों का जुड़ने का आकलन भी आवश्यक है।
                वेबिनार का प्रचार प्रसार आवश्यक है - वेबिनार का इतना प्रचार प्रसार होना चाहिए कि  वेबिनार से बाहर   अन्य संबंधित साहित्यकारों  व  पाठकों को सूचना  मिलनी आवश्यक नहीं अपितु वेबिनार में शामिल होने  की  बाध्तयता भी आवश्यक है।  पाठक व अन्य साहित्यकारों की बाध्यता वेबिनार विषय पर निर्भर करता है।  प्रचार प्रसार में दैनिक समाचार पत्र , इंटनेट मेलिंग, मेसैज, व्हट्सप, फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया आवश्यक है।  व्यक्तिगत फोन भी आवश्यक हैं। 
        सही वेबिनार  प्लेटफार्म  चुनना जो कि  सोशल मीडिया में भी प्रसारित हो सके को चुनना एक शर्त है।
   प्रत्येक तरह से वेबिनार से पाठकों को शामिल कीजिये व देवदूत जस पाठकों  (Evangelists  ) को उत्साहित करना आवश्यक है  .
    वेबिनार में पाठक संबंधी विषय भी उठाये   जाएँ। 
    वेबिनार का संयोजन ऐसा हो कि  व्यवधान  हीन  से हीं हों व  दर्शकों पाठकों का आकर्षण बना रहे।  (तकनीक। ध्वनि  सही रखना,  वेबिनार में शामिल विद्वानों का  वेबिनार  तकनीक से से परिचय , यदि चर्चा में व्यवधान हो तो कोई एक विद्वान गति को बढ़ाने में सक्षम हो, संयोजक का शब्दों पर सही नियंत्रण होना आदि  )
    पाठकों तक पंहुचने का विश्लेषण कीजिये।
    वेबिनार में पाठकों , दर्शकों व अन्य विद्वानों हेतु कुछ ना कुछ कार्य अवश्य निर्धारित कीजिये कि  वे इस वेबिनार को यूट्यूब माध्यम में बार बार देखें। 
  सदा ही पाठक देव दूतों पर समुचित ध्यान दीजिये .
   वेबिनार के उपरांत पर्याप्त मात्रा में प्रचार प्रसार कीजिये कि  दर्शक वेबिनार वीडिओ को देखने को बाध्य हो जांय (वीडिओ मार्केटिंग अपनाईये )
   वेबिनार के उपरांत वीडिओ मार्केटिंग के स्तर पर अपनी प्रसिद्धि वृद्धि का विश्लेषण अवश्य कीजियये।   .     
प्रत्येक साहित्यकार को webinar platform  application APP  अपने लैपटॉप या मोबाइल में संजो लेना ही श्रेयकर है।

 Copyright @ भीष्म कुकरेती २०२१
कवियों हेतु वेबिनार का महत्व ;   गद्य साहित्यकारों  हेतु वेबिनार का महत्;  व्यंग्यकारों   हेतु वेबिनार का महत्;  संयोजन विशेषज्ञों   हेतु वेबिनार का महत्;   उपन्यासकारों   हेतु वेबिनार का महत्;  कथाकारों   हेतु वेबिनार का महत्;  पुस्तक विमोचन   हेतु वेबिनार का महत्;   




Bhishma Kukreti

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 Binisiri: A Historic Kumauni- Garhwali Poetry collection

(Chronological, Critical Review of Garhwali, Kumauni poetries series)
Literature Historian: Bhishma Kukreti
Binisiri means early morning that offers hope to all human beings. Same way, the present poetry collection ‘Binisiri’ too offers the r hope for strengthening Kumauni, Garhwali, and Rawanlti languages. 
 The Garhwali and Kumauni languages Poetry collection ‘Binisiri (the Dawn) is an important poetry collection from various angles. This collection is the second Poetry collection of Garhwali –Kumauni Languages together after Ud Ghughati Ud edited by Gajendra Batohi and Mahendra Dhyani (2005). The editors are young Poets themselves and they offer hope that the future of Garhwali, Jaunsari, and Kumauni langue literature is in safe hands. The third important aspect is that a young organization Rawat Digital Delhi published the said poetry collection.
  This author had been watching the young editor Asheesh Sundariyal for many years from the days he was assisting Madan Duklan the editor of Chitthi a Garhwali magazine in selecting the literature, proofreading, and editing.. Anup Singh Rawat is not only a young poet but has been publishing Garhwali and Kumauni language literature successfully. 
 From the time of the Separate Uttarakhand Movement, the intellectuals and literature creative felt the need of each region understanding of another region not only from cultural level but from language perspective too. The first record is the Hindi Story collections ‘Cheer ke Vanon se’ (edited by Himanshu Joshi and Swarup Dhoundiyal. Alknanda Publication Delhi) together by both the regions that is Garhwali, Rawanlti, and Kumauni. After Uttarakhand's formation, Dr. Rajeshwar Uniyal also published huge Hindi story collections by the story writers of both regions.  After Uttarakhand State's formation, the literature creative and editors of various local language magazines started publishing literature of both the language together and Gajendra Batohi took the lead in publishing the poetry collection of both the languages. ‘Binisiri’ is another golden and memorable step in publishing poetries of both the languages,
  The editors of the said poetry collection expressed their aim that the aim is to offer contemporary poetries (what is being expressed today and how it is being expressed today)  of both the languages for newer generation language lovers of the future.
 There are poetries by more than 300 poets in this historical collection. The poetries are by various ages  (experienced ones and younger ones) from both the regions. Therefore, there are various subjects. The subjects vary from inspirational, illustrative, realistic, natural and love-oriented, sharp, religious, and philosophical; imaginative, humorous, satirical or wryly, parent-oriented and children-oriented; nationalist, region-oriented, humanity-based poems, and other subjects.
  The present poetry collection is having varied subjects but of varied moods and emotions. It is not an exaggeration that there are more than 100 moods and varied style types of poetry in this present poetry collection.
 The poetries of this collection are interesting and attractive too. Each poet took the pain in creating symbols and respective images in each poetry.
 The Binisiri Poetry collection is important too for not only studying the poems of Garhwali, Kumauni, and Rawanlti languages but useful for studying the languages of various regions for standardization of Kumauni and Garhwali languages.
This is the best platform for appreciating those all helped editors of the present poetry collection and those are Ramesh Hitaishi, Govind Ram Pokhariyal, Anoop Negi ‘Khuder’ and Atul Gusain Jakhi. And all those helped other ways.
 As the world literature, lovers appreciate and remember the poetry collection- Modern and Swiss Poetry. Poetry Profiles of Belgium, the same way the people of Kumaun and Garhwal regions will remember and will always appreciate the editors of the work of ‘Binisiri.
Book- Garhwali, Rawanlti and Kumauni poetry collection- Binisiri
Year of publishing – 2020
Editors- Asheesh Sundariyal  and Anoop Singh  Rawat
Publisher – Rawat digital Ghaziabad (UP)
rawtdigitalmedia@gmail.com
Copyright@ Bhishma Kukreti


Bhishma Kukreti

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Khainchatani: A Garhwali Verse collection of varied subject and moods

(Chronological, Critical Review of   Garhwali Poetries series)
(Critical Notes on   Poetry Collection ‘Khainchatani’ by Virendra Juyal’ Upiri’)
Critical Notes by: Bhishma Kukreti
-
 The great Medium Internet came for rescuing the weaker languages as Garhwali and Kumauni. Internet or Social media contributed in raising tens of literature creative to Garhwali Literature world. Virendra Juyal is one of such Garhwali poets that emerged very fast in the Garhwali poetic world. Virendra Juyal is a well-known Garhwali poet in the present social media. Before the publication of his first Garhwali poetry collection, Virendra Juyal was already a well-known entity in the Garhwali Literature of the Web-World.
     This author had been watching the web-world of Garhwali Literature and found that very few kinds of literature creative could sustain for long after the initial contribution. Virendra Juyal “Upiri’ had been contributing the Garhwali poetic World consistently in offline medium and more in the online medium.   Virendra is an energetic poet that offers almost a poem a week.
The present Garhwali Poetry collection ‘Khainchatani’ is a collection of 80 poems. The poems are of varied subjects as spiritual ( Daini Hwe jai), philosophical (Bwe), Social changes by Time (many poems), the pain of migration ( a couple of verses), humanity (Mankhyat) , humor (Chhillu mujhige),   a couple of verses on frustrating situations, a couple of poems are of a paradox too. . However, majority of verses are an illustration of wrong happenings in society, political fields, and in the administration and even in educational institutions too.
 The tomes are of various emotions. However, Juyal took the path of satire for expressing his annoyance on changes or reality in other field of life such as politics. Most of the poems of small formats are sharp satirical and show paradox in the society.
 Structurally, the poems are traditional couplets, conventional poems, non-rhymed poems, haiku or nearest to haiku and Chhitga (smaller format of poetry) too.
  The poems are of various raptures (barring abhorrence) and related sentiments. However, the rapture Shringar (love) is less in poems by Virendra in this collection. The love poem as ‘Sagorya Band’ is less in this collection. That shows that Virendra creates poems based on his intellect than his heart.  This author calls such poets of Abodh Bandhu  Bahuguna type  (more towards Intellectualism) of poets.
Virendra Juyal “Upari’ used conventional phrases    for illustration. Virendra has been successful in creating required images by his symbols or phrases as –
धगुलि हंसुलि बुलक नथुली
शीशफूल चयौ बिंदि टिकूलि
मांगटिका  गुलोबंद झुमकी बालि
पैरिक कतगा स्वाणी लगदि छैI
(from Poem- Sagorya Band)
  Virendra Juyal uses the dialects of Beeronkhal region (Pauri Garhwal) south Garhwal near Salan.
 Payas Pokhara the famous Garhwali Gazal creative appreciated the poems of young poet Virendra Juyal.
 ‘Khainchatani’ is the first Garhwali poetry collection by young poet Virendra Juyal ‘Upiri’ and it is obvious that a few poems seem to be immature.  However, as Gazal Creator Payas too hopes for potentiality in Virendra Juyal for being one of the tall Garhwali poets in the future. .
Khainchatani
Garhwali Poetry collection by Virendra Juyal ‘Upiri’
Year – 2020
Published by Rawat Digital, Ghaziabad (U.P.)
info@rawatdigital.in
Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai


Bhishma Kukreti

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गढवाल , उत्तराखंड में वन पशु -पक्षी मारने , पकड़ने संभालने के पारम्परिक तकनीकें     

   गढवाल    उत्तराखंड  म   वण   पशु पकड़नो , मारणी , अयेड़ी खिलणो   ब्योंत 
    जंगली पशुओं को  ढांगू, उदयपुर डबराल स्यूं  लंगूर में  जंगली पशु , पक्षी मच्छी  पकड़ने, मारने /शिकार खेलने/ संभालने  की  पुरातन तकनीकें  जो अभी भी  प्रचलित हैं
उत्तराखंड  पारम्परिक भोजन श्रृंखला 
 Capturing, Handling and Preserving Wild Animals in  Jaspur, Saur, Gweel, Bareth, Mitragram, Gadmola  Dhangu, Garhwal; Uttarakhand 
अयेड्या, Hunter from Jaspur Dhangu  -  भीष्म कुकरेती
-
   अयेड़ी खिलण या hunting  या  शिकार खेलना/मृगया/आखेट  ब्यूंत आदि मानव संस्कृति म मनिखान अपणै  याल छौ जु गढ़वाळ, उत्तराखंड म आज बि प्रचलित छन।   वन पशु , पक्षी मच्छी  पकड़ने, मारने /शिकार खेलने/ संभालने क  कुछ ब्युंतों विवरण  सक्छिप्त म या च -
   जलचर पशुओं (माछ, गिगड़ )   पकड़नों  विधि -
सरल स्थलों म हाथन विशेषकर गिगुड़ 
रात म उज्यळ ( दिवळ  छिल्ल जळैक  माछों तै  अँधा /कन्फ्यूज्ड करी  पाणी मथि लाण अर  मच्छी पकडन
बड़ा बड़ा पत्थरों पर घौणै  चोट करी माछों तैं  अचेत  करण  अर पकडन/ मच्छी पकड़ना
रामबांस या अन्य माछ विषैला पत्तों तै  थींचि  पाणिम डाळण  अर तब अचेत माछ पकडन/मच्छी पकड़ना । 
 चंळु /बड़ो चंळु  पाणी  तौळ  लगैक या चंळु म पत्थर धरी  मच्छी दार पाणीम डुबैक  माछ पकड़न/मच्छी पकड़ना 
लुट्ट्या, गागर या बंठि  क मुंडळ   दुंळ  वळ कपड़ा  बांधे जांद अर यी भांड  वै पाणी  तौळ  धरे जांद  जख माछ हूंदन।  विशेषकर छूट माछ /गड्याळ  आदि।
 बाँसक , या भ्यूंळक ठुपर /कंडी  मच्छी दार पाणीम डुबाण  या छिंछवड़  तौळ  धरण   अर माछ पकडन /मच्छी पकड़ना
जाळ - भांगौ  जाळ महीन हूंद जु  माछ पकड़नों कार्य करदा  छौ। 
 बाँसक तीर या बल्लम से मच्छी मारण /मच्छी मारना
पाणी  रोकिक  माछ  मारण /पानी रोक कर मच्छी मारना
पाणी तै  दुसर  जिना मुड़ण अर  माछ मारण /पानी की दिशा परिवर्तन कर मच्छी मारना
-
  रातम  उज्यळ  से  कुछ वन पशु या पक्षी पकडन ( पशु अचेत , अँधा ह्वेका )
माछ
जल कुकुड़
गिगड़
कुछ पक्छी 
कुछ जंगली कुखुड़  आदि
 -
 जाळ डाळिक
-
विशेषकर पक्छी व मच्छी पकड़ना
उदाहरण -
पक्षी
मुर्गे
बटेर
टर्की
बतख

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जिबळ/खबळी   गड्ढे बनाकर पशु पकड़ना
-
 जै  बाटम जंगली पशु आदतन आंदा  होवन  वे बाटो  म  गैरो गड्ढा  कौरि मथि  घास फूस धरे जांद अर कुछ समय पैथर  पशु ांदन गड्ढा म लमडी  जांदन।  फिर पकड़िक - सुंगर, हिरण , मिरग , काखड़  आदि।
जै  बाटम जंगली पशु आदतन आंदा  होवन  वे बाटो  म   काठौ  कठघर/खबळी  बणै क पशुओं तै पकडन / पशु पकड़ना
-
घ्वाड़ा बाळों / बांस  से जिबळ  बणैक  कुखुड़  फंसाण  /मुर्गे पकड़ना 
-
बांस का बरछों से पशु /पक्छी मारण /घैल  करण /बरछे से वन  पशु मरना
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शाही /सौलु  मारणो पकड़णो /पकड़ने कुण  बिल का भैर धुंआ डेक शाऊल /शाही तै भैर आणो  विवश करण   अर लाठों से मरण
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  सामूहिक रूप म सुंगर /घ्वीड़  काखड़ दौड़ैक  थकाण , लुड़े क (पत्थर मारकर )  पकड़ण  या मरण 
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खरगोश आदि मरण - जाळ , तीर /बरछा से
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बौणम आग जळैक   पशुओं तै  भर्मित करण  या भगाण


copyright @ Bhishma  Kukreti , 2021
  Capturing, Handling, and Preserving Wild Animals in  Jaspur, Saur, Gweel, Bareth, Mitragram, Gadmola  Dhangu, Garhwal; Uttarakhand     will  be  continued

  जंगली पशुओं को  ढांगू, उदयपुर डबराल स्यूं  लंगूर में  जंगली पशु , पक्षी मच्छी  पकड़ने, मारने /शिकार खेलने/ संभालने  की  पुरातन तकनीकें  जो अभी भी  प्रचलित हैं  श्रृंखला चलती रहेगी   





Bhishma Kukreti

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  उत्तराखंड में प्राचीन युग में आग उतपन्न , आग बचाने , आग परिहवन की तकनीकें


  उत्तराखंड म पुरण युगम आग जळाण , आग बचाण , आग लिजाणो   बनि बनी ब्यूंत   
Primitive Techniques of Fire Starting, Fire Preservation and Fire transportation
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 संकलन: भीष्म कुकरेती
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आग याने अंगी अर्थात ऊर्जा , आग अर्थात सभ्यता परिवर्तन का माध्यम। आज हम सोचि  नि  सकदा कि  उत्तराखंड म आग जळाण , आग बचाण  अर आग एक स्थान बिटेन स्थान म  लिजाण  एक महत्वपूर्ण सामजिक कार्य छौ। 
 आज तो माचिस अर  भिन्न भिन्न प्रकारो लाइटरों आण  से आग प्रज्वलन /आग जळाण , आग बचाण अर आग परिवहन /लिजाण  क्वी समस्या नी च किन्तु  पचास  सौ वर्ष  पैली   उत्तराखंड में प्राचीन युग में आग उतपन्न , आग बचाने , आग परिहवन की एक समस्या छे। 
 द्वी वर्ष पैल  तो  उत्तराखंड में प्राचीन युग में आग उतपन्न , आग बचाने , आग परिहवन की  भौत इ  दीर्घ  समस्याओं में से एक समस्या  छे।     कल्पना  कारो जब एक  गांवम  आठ  दस  मनिख ही रौंदा छा या कखि कखि  कूड़  दूर इकुलास  म हूंदा छ तो  '   उत्तराखंड में प्राचीन युग में आग उतपन्न , आग बचाने , आग परिहवन की' समस्या कथगा  दीर्घ रयी होली ?
  तब आग  उत्तराखंड में प्राचीन युग में आग उतपन्न , आग बचाने , आग परिहवन का कुछ विशेष ब्यूंत /तकनीक छा।  अब संभवतया छिल बाळि आग लिजाण  छोड़ि कुछ बि पुरण  ब्यूंत नी  च। 
 आग मनिख तैं  प्राकृतिक साधनों से मील अर  मनिखान पैल आग बचाण  सीख तब आग लिजाण अर  अंत म आग जळाण सीख या इना  क्वी पैल या क्वी अंत म।
  -----------------उत्तराखंड म आग जळाणो पुरण ब्यूंत /तकनीक (उत्तराखंड में प्राचीन समय में आग जलाने की तकनीक ) -
१- द्वी  बांसों डंडों तै घीसिक अर मध्यम बुगुल /कबासलो धरिक आग जळाणै  पद्धति  या द्वी डंडों से बि
२- द्वी सिलेटी / राड़ा  शक्तिशाली ढुंगों / पत्थरों तै रगड़िक अर  बीचम बुगुल , लाइकेन /पत्थर फूल , बाजक भूसी , मॉस भूसी आदि धरिक  आग जळाणै  पद्धति 
३- हैण्ड ड्रिल - जब लखड़ो  हैंड ड्रिल/ बो ड्रिल  प्राप्त ह्वे  होलु तो उत्तराखंड म हैंड ड्रिल से आग पैदा करणो ब्यूंत आयी होलु।  बीचम बुगुल , लाइकेन /पत्थर फूल , बाजक भूसी , मॉस भूसी आदि धरे इ  गे  होलु। 
४- जैमा  कांच रै  होलु तो कांच तौळ  बीचम बुगुल , लाइकेन /पत्थर फूल , बाजक भूसी , मॉस भूसी आदि धरी  सूर्य किरणों  से आग जळाइ होली किन्तु न्यून ही।
५-  अग्यलु  अर  राड़ा  पत्थर  (रगड़न ) की सहायता  सी आग जळाण  तो सन  १९७५ तक बि  दिखे गे। 
६- चक्कू , दाथी  आदि धातु तै राड़ा पत्थर पर रगड़िक आग जळाण , बीचम माध्यम
  उत्तराखंडम आग बचाणो  पुरण ब्योंत /तकनीक - उत्तराखंड में आग बचाने की प्राचीन पद्धतियां -
 आग जळांण  से कठिन कार्य आग बचाण  हूंद।  प्राचीन युग म आग निम्न प्रकारन बचाये  जांद  छे -
 १- क्वीलाओं तै रंगुड़  तौळ  दबाइक
  २- क्वीलाओं तै  डंगुलड्या  माट  तौळ  दबैक  किन्तु अधिकतर असफल।
  ३- भूसा/ सुखो मोळ ढेरी  तै  जळैक  राखो किन्तु  भूसा /मोळ  हर समय नि  मिल्दो/गुपुळ छोड़ि  .
४ - गिंडा /खुंडुक  जळैक  राखो  अधिकतर गोठम इन  संभव छौ।
५- द्यू  बाळिक - अखंड ज्योति पद्धति
६- गुपुळ पर  आग बचैक
   वास्तव म रंगुड़  व गुपुळ  ही सबसे अधिक व प्रभावशाली छौ।
    -----प्राचीन कालम उत्तराखंड म आग लिजाणो पद्धति/प्राचीन काल में  उत्तराखंड में आग परिहवन पद्धतियां -
  १- छिल्ल/ क्याड़ ( भ्यूंळ /भांगा   क्याड़   आदि )  तै जळैक आग लिजाण
२- दिवळ  छिल्ल/ कुंळै छिल्ल बाळिक 
३- गुपुळ  द्वारा (सबसे अधिक प्रभावशाली माध्यम )
 ६- लालटेन जन माध्यमों ब्रिटिश कालम
७- जळदो लखड़ /अंगेठी
Copyright @ Bhishma  Kukreti , 2021
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 गढ़वाल , कुमाऊं , हरिद्वार , उत्तराखंड में प्राचीन युग में आग उतपन्न , आग बचाने , आग परिहवन की तकनीकें  श्रृंखला
  हरिद्वार , कुमाऊं , गढ़वाल उत्तराखंडम पुरण युगम आग जळाण , आग बचाण , आग लिजाणो   बनि बनी ब्यूंत  श्रृंखला 
Primitive Techniques of Fire  Starting, Fire Preservation and Fire transportation Series


Bhishma Kukreti

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 उत्तराखंड में मिक्सर ग्रिन्डर  ने कब प्रवेश किया होगा ?

मिक्सर ग्रिंडरन   उत्तराखंड म कब  प्रवेश कर  होलु ?

   उत्तराखंड परिपेक्ष म  आधुनिक रसोई यंत्र/उपकरण  इतिहास - भाग १
   आलेख : भीष्म कुकरेती 
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 मिक्सर ग्रिंडर  वास्तव म एक तकनीक नी बल्कण  म मिक्सिंग तकनीक (रळाण ) अर  ग्रिंडर  की मेल च।  भारत म 1970  तक मिक्सर ग्रिंडर नाम का क्वी उपकरण  इ  नि  छौ।  तब भारत अर उत्तराखंड म बि  (मे नि लगद  उत्तराखंड म ब्लेंडर बि तब  आठ दस से अधिक वर्ष म नि  बिकदा  रै होला ) ब्लेंडर से इ मिक्सर ग्रिंडर कु कार्य करे जांद छौ पर तन्नि।  संभवतया  ब्लेंडर   (एल्क्ट्रिक रै ) मसूरी , नैनीताल देहरादून म होटलों म प्रयोग हूंद रै होलु 1970  तक।  तब ब्लेन्डर भारत म   नि  निर्माण हूंद छौ । 
 मुम्बई म सीमेन्स  कम्पनी कु एक इंजीनियर छा 'श्री  सत्य प्रकाश माथुर।  ऊंम जर्मनी म बण्यु  ब्राउन ब्लेंडर  छौ।  आज बि ब्लेंडर दही छुळण , चटनी बणान, दाळ छुळण  जन  जारी हि करदो अर तब बि।  श्रीमती माथुर क ब्लेंडर बिगड़ गे  छौ  अर  श्रीमती माथुरन अपण  कजै  कुण ब्वाल बल ब्लेंडर सुधार द्यावो।  मुम्बई म बल ब्राउन ब्लेंडर कु  सेवा केंद्र नि  छौ।  श्री माथुर से ब्लेंडर त नि सुधर किन्तु मस्तिष्क म भारतीय मसाला आदि पिसणो  मसीनो विचार आई गे।
 1963  म श्री माथुरन  सीमेंस का चार इंजीनियरुं  दगड़  मीलि  अर  माथुर श्री न  पावर  कंट्रोल ऐंड  एप्लियंसेज कम्पनी ' स्थापित कार।
द्वी  वर्षों ऊं  इंजीनियरोंन इन मोटर  विकसित कर इ  दे जु  भारतीय मसाला जन कि हल्दी , काली मर्च , धणिया  पीस सकद छौ '।
1970  म तौंन इन  एल  शेप्ड मिक्सर ग्रिंडर  विकसित कर द जैक मोटर 500 - 600  वात कु छौ  अर आरपीएम छौ २०,०००,  जु  एक जार कु  छौ  अर   ड्राई अर  वेट  ग्रिंडिंग (सूखा व तरीदार ) कर सकण म सफल छौ।  मिक्सर ग्रिन्डर  को ब्रांड नाम सुमित रखे गे  जैको संस्कृत म अर्थ हूंद 'भलो दगड्या' ।  अर सुमित इ  भारत इ  ना संसार कु पैलो मिक्सर ग्रिन्डर छ।  नमन श्री सत्य प्रकाश माथुर तैं। 
  पैल निर्माण भौत  न्यून ही छौ।  १९८०  लगभग ही निर्माणम  वृद्धि  ह्वे अर  संभवतया ५० , ००० मिक्सर मासिक निर्माण तक पौंछ।   सद्यनि  सुमित महामूल्य मिक्सर राई।  उत्तर भारत म सुमित न भौत न्यून ध्यान दे।  निर्माण मांग से भौत न्यून छौ तो   मिक्सर याने सुमित की मांग दक्षिण भारत अर  पश्चिम भारत म अधिक छे किलैकि यूं  द्वी  क्षेत्रों म इडली डोसा क चौंळ अर  दाळ आदि पिसणो  शक्तिशाली मोटर वळ  मिक्सर चयेंद तो यखी इ  मिक्सर की मांग आज भी  बिंडी  च.
मांग व मिक्सर उपयोग को प्रचार व माहराज सरीखा सस्ता ब्रैंड कु  आकलन करे  जाव तो उत्तराखंड म सै माने म मिक्सर ग्रिन्डर उत्तराखण्डं म लगभग १९८५  म इ प्रवेश कौर  होलु।  हाँ तब तक दिल्ली या बढ़ शहरों से लोग मिक्सर लायी होला सया बात अलग।   उत्तर भारत म मिक्सर कम वाट  का बिकदन  कारण उत्तर भारत व पूर्व भारत म चटनी पिसणो  कुण इ  मिक्सर ग्रिन्डर प्रयोग बिंडी  हूंद।  अब इडली डोसा क चौंळ पिसणो  बि  प्रयोग हूंद। 
 इन लगद  सबसे पैल  मिक्सर -ग्रिन्डर  देहरादून , हरिद्वार अर  नैनीताल का दुकानों म इ  बिक होला। 
 भारत जु  उद्यम म नेतृत्व प्राप्त करण  चांदो तो श्री सत्य प्रकाश सरीखा अन्वेषक वळ भारतियो आवश्यकता च।  नमन श्री सत्य प्रकाश माथुर तै।  -
 Copyright@ Bhishma  Kukreti
भोळ  दुसर उपकरणौ विषय म
 भारत में मिक्सर ग्राइंडर  का इतिहास , उत्तर भारत में मिक्सर ग्राइंडर /ग्रिंडर  का इतिहास , हिमालय में मिक्सर ग्रान्डर का इतिहास , उत्तराखंड में मिक्सर ग्राइंडर का इतिहास


 

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