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Articles By Bhisma Kukreti - श्री भीष्म कुकरेती जी के लेख

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Bhishma Kukreti:
राजनैतिक ब्रैंडिंग  में  चार मुख्य  ब्रैंडो  की भागीदारी
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राजनीतिक विपणन  : योग   सिद्धांत  पर आधारित - 4
Political Marketing: Theories based on Yoga Principles -
 
   भीष्म कुकरेती (प्रबंध आचार्य ) 
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 राजनैतिक नेता बनने के आकांक्षियों को सदा ही समझना आवश्यक है कि  राजनीति में सर्वोच्च पद प्राप्ति ही नहीं अपितु  चुनाव जीतने व राजनैतिक छवि निर्माण में निम्न  चार  ब्रैंडों का बड़ा महत्व होता है  -
१- पार्टी ब्रैंड
२- पार्टी के सर्वोच्च नेता  की  ब्रैंड छवि
३- पार्टी नीति (पार्टी पॉलिसी )  की ब्रैंड छवि
४- राजनीतिज्ञ  की व्यक्तिगत ब्रैंड छवि
 ये चार ब्रैंड सदा ही एक  दूसरे   पर प्रभाव डालते हैं। 
पार्टी  सर्वोच्च नेता की छवि , राजनीतिज्ञ की छवि इनकी जनता में विश्वसनीयता पर निर्भर करता है।  उदाहरणार्थ - आज २०२२ में कॉंग्रेस चुनाव हार रही है किन्तु कई कॉंग्रेसी चुनाव जीत रहे हैं।  वास्तव में कॉंग्रेस उच्च नेतृत्व की कमजोर छवि के कारण हार रही है व मुस्लिम वोटरों द्वारा कॉंग्रेस को वोट न देना भी है (पार्टी पॉलिसीज)।  जो कॉंग्रेसी चुनाव जीत रहे हैं वे अपनी शक्तिशाली छवि के कारण जीत रहे हैं।  वहीं आज  भाजपा में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की छवि बड़ी शक्तिशाली है।  इसी तरह उच्च नेतृत्व में अमित शाह की भी छवि शक्तिशाली है।  इन दोनों की छवि , भाजपा की हिन्दू  समर्थन नीति,  स्थानीय नेतृत्व की शक्तिशाली  छवि आदि से जीत रही है।  जहां क्षेत्रीय दल जीत रहे हैं वहां क्षेत्रीय दलों की छवि भाजपा की सम्पूर्ण छवि से शक्तिशाली होने से क्षेत्रीय दल  जीत रहे हैं। 
उपरोक्त चार ब्रैंडों के अतिरिक्त निम्न घटक भी महत्वपूर्ण होते हैं -
१- पार्टी में स्थानीय वातावरण (जैसे भाजपा का  बूथ लेवल   कार्यकर्ता , कॉंग्रेस में कार्यकर्ताओं का आज अकाल ) व भाजपा हेतु राष्ट्रीय स्वयं संघ का सहयोग , गठबंधन आदि
२-क्षेत्रीय स्तर पर  पार्टी का  नीति गत कार्य व छवि निर्माण
३- पार्टी के अंदर राजनीतिज्ञों में सहयोग व गुटबाजी
४- राज्य स्तर या जिला स्तर के नेताओं का प्रभाव
५- देस , राज्य या क्षेत्र की आर्थिक व सामजिक वातावरण
६- राजनैतिक कार्य कर्ताओं के लिए सामजिक व राजनैतिक कार्य हेतु सुलभ या कठिनाई  भरा  वातावरण 
७- केंद्रीय पार्टी का सम्पर्क , अनुशासन प्रणाली
 राजनैतिक ब्रैंडिंग या विपणन आम माल बेचने से बिलकुल अलग है क्योंकि राजनीति में की उत्पादन फैक्ट्री में नहीं निर्मित होता है व सैकड़ों कारक एक साथ कार्य करते हैं।  उदाहरणार्थ करोना के कारण २०२२ में प्रादेशिक चुनावों में पहले दो चरणों में नेताओं की रैलियां नहीं हुईं जिसने अवश्य ही चुनाव फल पर प्रभाव डाला होगा। 
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 Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai 2022
 ,  Political Marketing articles will be continued in next chapter
राजनीतिक विपनण न  : योग   सिद्धांत  पर आधारित  शेष आगे ..

Bhishma Kukreti:

 राजनैतिक नेता के  आवश्यक  गुण 
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राजनीतिक विपणन  : योग   सिद्धांत  पर आधारित - ५
Political Marketing: Theories based on Yoga Principles -
 
   भीष्म कुकरेती (प्रबंध आचार्य ) 
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जो भी व्यक्ति  राजनीति में प्रवेश करना  चाहते हैं उन्हें यह समझना आवश्यक है कि एक राजनीतिज्ञ के मुख्य गुण व लक्षण क्या हैं -
१-राजनीतिज्ञ को मिलनसार  व संवाद करने में विशेषज्ञता  होना आवश्यक है। 
२-  राजनीति में दूसरे  व्यक्ति की मानसिकता व शारीरिक भाषा को समझना आवश्यक है तथा सामाजिक विन्यास को भी समझना राजनीति में आवश्यक है।
३- परिवर्तन को समझना राजनीतिज्ञ का मुख्य कार्य होता है। 
४- राजनीतिज्ञ को मानसिक रूप से शक्तिशाली व  समय अनुसार कठिन व कठोर निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए।
५- त्वरित  निष्पक्ष  निर्णय लेने की क्षमता ,  निर्णय पर ठीके रहना  राजनीतिज्ञ के गुण  होते हैं।
६- राजनीतिज्ञ को साहसी होना आवश्यक है। 
७- राजनीतिज्ञ को सामजिक हित  को प्राथमिकता देनी चाहिए।
८- सफल राजनीतिज्ञ में  सुनने व लोक प्रतिनिधत्व की क्षमता आवश्यक है। 
९- लोक भक्ति को श्रेष्ठ समझना राजनीति में आवश्यक है।
१०- २४ घंटे व बारह महीने लोक कार्य में व्यस्त रहना ही राजनीतिज्ञ हेतु आवश्यक है।
११- कई शौकों  / व्यसनों से दूर रहना
१२- अति सहनशील .गुण   आवश्यक
१३- परिवार  व राजनैतिक कार्य मध्य संतुलन किन्तु समाज को अधिक समय देना आवश्यक है।
१४- सही स्वास्थ्य व नित्य व्यायाम आवश्यक है।
१५- शांत मनचित्त व चित्त पर नियंत्रण की कला होनी चाहिए।  लोक को स्वामी समझना व  अपने को स्वामी न समझना।
१६- कम से कम एक सामाजिक कार्य में विशेषज्ञ होना।
१७- समाज सेवा ही सर्वोपरि समझना।
१८- भाषण देने की कला में पारंगत
१९- प्रत्युनमति  मानसिकता
२०- छवि विज्ञान में दीक्षित


 Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai 2022   
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राजनीतिक विपनण न  : योग   सिद्धांत  पर  श्रृंखला ,  राजनैतिक ब्रैंडिंग  , राजनीति में ब्रैंडिंग , पोलिटिकल मार्केटिंग ,  राजनैतिक ब्रैंडिंग , राजनीति में छवि बिगड़ने के अवसर ,  राजनैतिक  विपणन, राजनीति  छवि  निर्माण सिद्धांत  राजनीती संबंधी आधारित  लेख शेष आगे ..

Bhishma Kukreti:
राजनीति  पेशा का  पक्ष व विपक्ष (लाभ हानि ) मा
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राजनीतिक विपणन  : योग   सिद्धांत  पर आधारित - ६
Political Marketing: Theories based on Yoga Principles - 6
 
   भीष्म कुकरेती (प्रबंध आचार्य )
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राजनीति को पेशा बड़ो तीब्र गति वळ , प्रसिद्धिदायक तो च पर समस्याओं से बि भर्युं च।  इलै  राजनीति म उतरण  से पैल  द्वी पक्ष व विपक्ष गुणो पर ध्यान दीण आवश्यक च।
राजनैतिक नेता क निम्न लाभ छन -
राजनीति म खूब धन या कमाई च।
जन सि सेवा निवृति नि  हूंद।
अच्छा निर्णय म प्रसिद्धि किन्तु  गलत  निर्णय म व्यक्तिगत  हानि नि  हूंद।
राजनीतिज्ञौ   समाज म बड़ी पूच  हूंद।
नगर सेवक , विधायक व संसद सदस्यों तै लगभग सब कुछ  निशुल्क
भैर क कार्य भौत हूंद तो भितर क बि।
सफल राजनीतिज्ञों म सहायकों की फ़ौज हूंद तो कार्य हूणू रौंद।
स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध
 बड़ा बड़ा प्रतिष्ठित लोकुं  दगड़ सम्पर्क व विदेश म बि सम्पर्क का अवसर
अपण समाज व देसौ  कुण  भौत कुछ करणो अवसर रंदन।
राजनीतिज्ञ क पदानुसार  प्रभाव मंडल बड़ो हूंद।
राजनीतिज्ञ आकर्षण  केंद्र हूंद अर सबि वर्गों व संस्थानों म पूच।
देस -दुनिया  घुमणो बड़ा अवसर हूंदन।
अपण  विशेष विचारधारा तैं  लागू करवै  सकदन राजनीतिज्ञ।
 उपरोक्त लाभ का अतिरिक्त निम्न समस्या बि हूंदन -
 कठिन परिश्रम करण पड़द।
 परिवार तै लघु समय दिए जांद।
सीण -खाण  म अण भरवस।
भौत सा समय जीवन खतरा म हूंद।
 जनता व प्रतिद्वंदी तौळ  गिराण  म बि  लग्यां  रौंदन।
चुनाव जितण  एक जटिल प्रक्रिया च।
तनाव युक्त जीवन।
लांछन बि लगणा  रौंदन।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता नि  हूंद।
भौत दां  जनता तै या अन्य तै   निर्णय समज म नि  आंदन।
पद व पार्टी टिकट पाणम भौत कठिनाई हूंदन।
 राजनीति म प्रवेश बि सरल नी।
आराम भौत कम।
उगते हुए सूर्य को नमस्कार सिद्धांत मध्य कार्य करण पड़द।

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Bhishma Kukreti:


    राजनीति में प्रवेश से पहले   सामाजिक    या राजनीतिक  आंदोलन कारी आवश्यक

राजनीतिक विपणन  : योग   सिद्धांत  पर आधारित - ७
Political Marketing: Theories based on Yoga Principles - 7
 
   भीष्म कुकरेती (प्रबंध आचार्य ) 
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 यद्यपि राजनीति में प्रवेश कने के कई मार्ग हैं जैसे - पिता की गद्दी , पति या पत्नी मृत्यु या प्रभावशाली  नेता की रिस्तेदारी या चमचागिरी।  किंतु  यह भाग्य राहुल गांधी, नवीन पटनायक  या रेणु खंडूरी सरीखों को ही मिलता है।  राजनीति में प्रसिद्धि व सकारात्मक छवि बड़ी लाभदायी होती है। 
अतः  राजनीति में प्रवेश हेतु किसी भी आकांक्षी को समाज में  प्रसिद्धि  आवश्यक है।  अर्थात सकारात्मक छवि व प्रसिद्धि से राजनीति में प्रवेश सरल हो जाता है। 
 निम्न राजनैतिक आंदोलनों  से  कई राहनेति आकांक्षी राजनीति में आये।
१- स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनकारी (मुख्यतः कॉंग्रेसी ) राजनीति में आये व सफल राजनीतिज्ञ बने यह अलग बात है नेहरू परिवार के एकाधिकार के कारण मनमोहन सिंह व नरसिम्हा राव ही  गैर नेहरू परिवार के प्रदजन मंत्री बन सके।
२- द्रविड़ आंदोलन से कई द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के नेता राजनीति में आये।  यह आंदोलन वास्तव में सामजिक आंदोलन भी था।
३- कम्युनिस्टों का आंदोलन - कम्युनिस्टों के आंदोलन से भी भारत में सैकड़ों आंदोलनकारी राजनीति मी आये।  बंगाल व केरल तो उत्तम उदाहरण हैं।
४- सोसलिस्ट आंदोलन से भी नारायण दत्त तिवारी , राज नारायण सरीखे राजनीतिज्ञ राजनीति में आये।
४- जय प्रकाश आंदोलन - जय प्रकाश आंदोलन वास्तव में इंदिरा विरोधी आंदोलन था व इस आंदोलन से सैकड़ों नेता भारतीय राजनीति के पटल में आये जैसे लालू यादव , मुलायम  सिंह यादव , नितीश कुमार , रवि शंकर प्रसाद , सुशिल मोदी आदि। 
५- झारखंड , उत्तराखंड  व तेलंगाना राज्य आंदोलन से भी कई व्यक्ति राजनीती में उतरे व मुख्यमंत्री भी बने  जैसे तेलंगाना में के सी राव व  झारखंड में शिब्बू सोरेन उदाहरण हैं। उत्तराखंड में काशी सिंह ऐरी व त्रिपाठी उदाहरण हैं। 
 निम्न सामजिक आंदोलनों से भी राजनीति में प्रवेश सरल है -
१- जनता को जल सुलभ हो -  जल की कमी व सबको जल पंहुचे  जैसे आंदलोन से व्यक्ति की पहचान बनती है व राजनीती प्रवेश सरल हो जाता है।  मुम्बई में मृणाल गोरे नारी शक्ति व झुग्गी झोपड़ों हेतु जल सुलभ हो के लिए आंदोलन करती रहती थीं।  मृणाल गोरे पानी वाली बाई के नाम से प्रसिद्द हुयी व १९७७ में संसद हेतु चुनी गयीं। 
२- भ्रस्टाचार हटाओ आंदोलन - भारत में ही नहीं कई अन्य देशों में भ्रस्टाचार हटाओ आंदोलनकारी सरलता से राजनीति में अवतरित हुए हैं।   सर्वश्रेष्ठ  उदाहरण अरविन्द केजरीवाल का है जो भ्रस्टाचार हटाओ जैसे सिविल सोसाइटी आंदोलन की देन है और मुख्य मंत्री बने। 
२-पर्यावरण बचाओ आंदोलन - यह आंदोलन भी राजनीति में प्रवेश का द्वार बन सकता है। 
३- किसान आंदोलन - किसान आंदोलन भी राजनीति में प्रवेश का शक्तिशाली माध्यम है। कई किसान नेता राजनीति में आये।  पूर्व में सहकारी आंदोलन से भी राजनैतिक कद पाने वाले नेता हुए हैं जैसे महाराष्ट्र में  शरद पवार या गोपीनाथ  मुंडे  ।  योगेंद्र यादव हेतु किसान आंदोलन एक प्राण वायु बनकर आया। 
४ -छुवाछुत समाप्ति व दलित  शशक्तिकरण या शिल्पकार  स्वाभिमान अभिव्यक्ति  आंदोलन - दलित आंदोलन से राजनीति में आने वालों में सबसे बड़ा उदाहरण बाबा साहेब  राम अम्बेडकर का है।   दलित आंदोलन आज भी  सामजिक समता हेतु एक सशक्त आंदोलन है  और इस आंदोलन को चलना ही चाहिए। भारत में कई व्यक्ति दलित आंदोलन से राजनीति में आये जैसे बलदेव सिंह आर्य ।  तामिलनाडू में अन्ना दुराई , कांशीराम व मायावती अच्छे उदाहरण हैं।  ताजा उदाहरण चंद्र शेखर आजाद व उदित नारायण का है।   
५-शिक्षा प्रसार  आंदोलन या विद्यालय स्थापित करने वाले - शिक्षा आंदोलन सदा ही राजनीति में प्रवेश करने वालों हेतु एक सशक्त माध्यम बना रहेगा।  आप पार्टी  से कई विद्या आंदोलनकारी  जुड़े व चुनाव लड़े।  चुनाव हारे होंगे किन्तु राजनीति में बखूबी से उन्होंने प्रवेश किया।  जोगेश्वरी मुम्बई में पंकज यादव को भारतीय जनता पार्टी ने उनके कोचीन क्लास की प्रसिद्धि के कारण नगरपालिका का टिकट दिया व जीते .
६- महिला सशक्तिकरण - महिला सशक्तिकरण भी राजनीति में प्रवेश का  शक्तिशाली माध्यम है।
७- आरएसएस जैसे संस्था से जुंडना - राष्ट्रीय स्वयं संघ जैसे सामजिक संस्था से जुड़कर भी राजनीति में आया जा सकता है। 
८- धार्मिक आंदोलन - भारत में भाजपा का अभ्युदय राम जन्म भूमि आंदोलन से हुआ इसी प्रकार मुस्लिम आंदोलन से असाबुद्दीन ओवेसी को लाभ मिला।
९- सामजिक  सांस्कृतिक कार्य संयोजन, भागीदारी  व सहयोग  - क्षेत्रीय राजनीति में आने का सबसे सरल माध्यम सांस्कृतिक कार्यकर्मों का संयोजन, भागीदारी व सहयोग है। 
१०-  समाज को चिकित्सा सहयोग -  राजनीति में प्रवेश व प्रसिद्धि हेतु मुहल्ले गाँव , गलियारे में समाज को चिकित्सा सहयोग देने से बहुत लाभ होता है। 
११ - बच्चो संबंधित सामजिक कार्य
१२- पारम्परिक संस्कृति बचाव के कृत
१३-  किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि जैसे - कला , संगीत , फिल्म , खेल , पत्रकारिता , साहित्य, व्यापार , वकालत आदि  में प्रसिद्धि
१४- क्षेत्रीय स्वाभिमान आंदोलन जैसे NTR  द्वारा राजिव गांधी द्वारा आंध्र के स्वाभिमान आंदोलन
१५- जातीय स्वाभिमान व उत्थान आंदोलन - जैसे बाल ठाकरे द्वारा मराठी अस्मिता का आंदोलन।
१६- मानसिक रोगियों की सहायता
१-७- पशु पक्षियों की  देखभाल
१८- सेना व पुलिस संबंधी आंदोलन
१९- रोजगार /व्यापार आंदोलन
२० - धनिक बनो जैसे आर एन  धूत व विजय मल्ल्या राज्य सभा के सदस्य चुने गए
२१ - आपदा में कार्य से भी प्रसिद्धि मिलती है। 
२२- किसी प्रसिद्द प्रभावकारी नेता की शरण लेना जैसे शीला दीक्षित ने इंदिरा नेहरू की शरण ली थी। 
ऐसे ही सैकड़ों कार्य हैं जो राजनीति में प्रवेश हेतु लाभकारी हो सकते हैं
 Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai 2022   
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राजनीतिक विपनण न  : योग   सिद्धांत  पर  श्रृंखला ,  राजनैतिक ब्रैंडिंग  , राजनीति में ब्रैंडिंग , पोलिटिकल मार्केटिंग ,  राजनैतिक ब्रैंडिंग , राजनीति में छवि बिगड़ने के अवसर ,  राजनैतिक  विपणन, राजनीति  छवि  निर्माण सिद्धांत  आधारित  लेख शेष आगे ..

Bhishma Kukreti:

प्रतियोगी की छवि (नकारात्मक ) निर्मण करना
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( २०२२ के विधान सभा चुनाव पर आधारित )
राजनीतिक विपणन  : योग   सिद्धांत  पर आधारित - ८
Political Marketing: Theories based on Yoga Principles - 8
 
   भीष्म कुकरेती (प्रबंध आचार्य )
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 ( सारांश -
फरवरी मार्च  २०२२ में भारत के उत्तराखंड , पंजाब , गोवा , मणिपुर व उत्तर प्रदेश  में विधान सभा चुनाव् हुए।  विधान सभा  चुनावों के परिणाम अपने आप में अभिन्न माने गए हैं।  उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड में कई दशकों पश्चात कोई दल निरंतर दूसरी पारी हेतु चुनाव जीता है भाजपा और इसी तरह मणिपुर व गोवा में भी भाजपा को निरंतर पुनः सत्ता मिली है।  पंजाब में सदा से ही सत्तासीन दल को सत्ताच्युत होना पड़ा किन्तु   पहली बार अकाली दल या कॉंग्रेस को छोड़ आप दल ने सत्ता पायी। दस मार्च 2022 को सभी परदेसों के परिणाम घोसित हो गए थे।
 इस बार के चुनावों में विभिन्न राजनैतिक दलों की रणनीतियां समझने का अच्छा अवसर मिला।  उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के विधान सभा चुनावों में ही नहीं अन्य परदेसों में भी राजनैतिक दलों ने विरोधी दलों की छवि (नकारात्मक ही ) निर्माण का पूरा प्रयत्न किया  व आप  दल ने  सभी दलों के स्थान पर विकल्प  सामने  रखे व भाजपा  ने  राज्य में अपना ( भाजपा ) ही  के सामने रखा।  चार प्रदेशों में भाजपा सफल रही  व पंजाब में आप दल सफल रहा। 
इस लघु लेख में उत्तर प्रदेश में  विधान सभा चुनाव २०२२ में भाजपा द्वारा  अखिलेश यादव  के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (सपा )  की नकारात्मक छवि कैसे निर्मित की व अपनी  सकारात्मक छवि निर्मित क्र  कैसे जनता के सामने रखा पर चर्चा होगी।  )
    मार्केटिंग  या विपणन कुछ नहीं  संवाद पर्तिस्पर्धा है।  छवि का युद्ध है विपणन (मार्केटिंग)।   संवाद व संचार या कम्म्युनिकेसन छवि निर्माण करते हैं।    किसी भी ब्रैंड की छवि स्वयं या प्रतियोगी ब्रैंड (प्रत्येक व्यक्तिवाचक संज्ञा अथवा नाम ब्रैंड होता है )  निर्मित करते हैं।  छवि निर्मित हो जाय तो हमारे  मन मस्तिष्क से नहीं मिटटी है।  अतः   विद्वान्क व्यक्ति भी भी अपनी या दुसरे की छवि मिटाने का कार्य नहीं  करते  हैं।
   उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव २०२२ में भारतीय जनता पार्टी की  प्रचंड बहुमत वाली सरकार थी।  २०१७ में  भाजपा को ४०३ सीटों में से ३१२ स्थान मिले व मुख्य विरोधी  दल थे समाजवादी दल व कॉंग्रेस का गठबंधन व मायावती की बीएसपी।  तब दोनों को मुंह की खानी पड़ी।  २०१९ में लोक सभा चुनाव हुए इसमें  उत्तर प्रदेश में  भाजपा को ८०  में से ६२  स्थान मिले थे। 
  संक्षेप में कह सकते हैं कि  योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार इंकम्बेंसी झेल रही थी व विरोधी दल  विप्पनण तीखे हथियारों से लैश थे।  दो  वर्ष के कोवड  प्रकोप के कारण  (२० मार्च २०२० को प्रथम लॉकडाउन ) राजनैतिक दलों को विरोध में सड़क  आंदोलन का अवसर  न मिल सका।  चुनाव आते आते लग गया कि  मायावती मैदानी युद्ध से स्वयमेव बाहर हो गयी है।  कॉंग्रेस मृत प्रायः ही थी जिस पर प्राण फूंकने का कार्य  कॉंग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अकेले कर रही थी।  चुनाव से ठीक ६ चीनी पहले समाजवादी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कई परिवर्तन  यात्राएं निकाली  व रैलियां निकालीं व  छवि निर्मित की कि मैदान में भाजपा को समाजवादी टक्कर दे सकता है और छवि बनी कि अखिलेश जीत ही रहे हैं।
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  भाजपा की छवि हिन्दू पार्टी व समाजवादी दल की छवि मुस्लिम व यादवों का दल
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 भाजपा की छवि कट्टर हिन्दू पार्टी का है जो दल  हिन्दू राष्ट्र के सपने देखता है (वास्तविकता अलग है ) ।  दूसरी ओर समाजवादी दल यादव व मुस्लिमों की समर्थित दल माना जाता है व हिन्दू विरोधी मना जाता है (यादव भी तो हिन्दू हैं अतः  सिद्ध होता है छवि व वास्तविकता अलग अलग आयाम हैं )। 
चुनाव से  कुछ दिन पहले  से ही मुस्लिम मसीहा ओवेसी की पार्टी ने बता दिया था कि AIMM  उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ेगा।  महाराष्ट्र व बिहार  विधान सभा चुनाव में ओवेसी ने सेक्युलर दलों जैसे कॉंग्रेस आरजेडी के मुस्लिम वोटों में सेंध मार डाली थी व भाजपा हेतु जीत प्रसस्त क्र दी थी।  यद्यपि बंगाल में यह न हो सका था।  अखिलेश को डर  था कि  समाजवादी पार्टी  को  मुस्लिम वोट एकमुश्त ना मिलकर बंट ना जाएँ।  अखिलेश ने जिन्ना को स्वतंत्रा सेनानी व गाँधी , पटेल , नेहरू के बराबर  का नेता का दर्जा डालते बयां दे दिया।  वास्तविकता यही सही है कि  जिन्ना भी स्वतन्त्रता हेतु  उतना ही लड़ा जितना नेहरू या पटेल आदि, किन्तु छवि अलग ही है भारत में जिन्ना की ।  चूँकि जिन्ना  ने अलग पाकिस्तान  माँगा था तो छवि यह बना दी गयी कि  जिन्ना  भारत का दुश्मन था व जो उसकी प्रशंसा करेगा वह हिन्दू विरोधी कहलाया जायेगा।  अखिलेश के विरुद्ध भाजपा ने समाजवादी को हिन्दू विरोधी बताने में कोई कस्र नहीं छोड़ी।  अर्थात भाजपा ने समाजवादी दल की छवि हिन्दू विरोधी को और जोर से जमाया। 
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  भाजपा द्वारा अपरोक्ष रूप से यादवों को दबंग व दलित हित  विरोधी की छवि निर्माण प्रयत्न
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 यह एक वास्तविक सामजिक वास्तविकता है कि  भूमि मालिक  यादव दलितों पर सदा से ही दबंगई दिखाते आये हैं।  भाजपा ने अपरोक्ष रूप से समजवादी दल को दलितों पर दबंगई करने वाला दल की छवि निर्मित की जिससे दलित ही नहीं अन्य कमजोर ओबीसी वर्ग भी समाजवादी को दबंग दल मानने लग जाय।  अपरोक्ष रूप से भाजपा व बीएसपी सुप्रीमो यादवों को दलित विरोधी  अथवा   दलित दबाने वाली जाति की   छवि  हैं  जिससे दलित समाजवादी दल से दूर ही रहें। यही कारण है  पिछले  लोक सभा चुनाव में बीएसपी व समाजवादी दल का गठबंधन असफल साबित हुआ क्योंकि बीएसपी के  दलित कार्यकर्ता  व समाजवादी के यादव कार्यकर्ताओं मध्य ताल मेल नहीं बैठा।   २०२२ में भाजपा को बीएसपी  छिटके बीएसपी भक्त  वोटर्स समाजवादी  पर भाजपा से जुड़े और कारण था  मार्केटिंग सिद्धांत - अपने विरोधी की छवि  निर्मित करो के आधार पर भाजपा द्वारा समाजवादी  दल  को दबंग , गुंडा ,  कमजोर वर्ग की जमीन हड़पने वाले  माफियों का समर्थक घोषित करना व अपरोक्ष रूप से समाजवादी दल को गैर यादव ओबीसी , दलित वर्ग का विरोधी छवि उतपन करना।  भाजपा जीती अर्थात भाजपा अपने मार्केटिंग कृत कि  विरोधी कि  नकारात्मक छवि  निर्माण या विरोधी की छवि पुनर्स्थापितीकरण  में सर्वथा सफल रही।
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        - समाजवादी दल द्वारा  महंत योगी आदित्यनाथ को राजपूत , बाहरी व्यक्ति व ब्राह्मण विरोधी छवि निर्माण प्रयत्न
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 इस लेखक ने कई बार टीवी बहसों में समाजवादी दल के प्रवक्ताओं द्वारा या अन्य माध्यमों में पाया कि समाजवादी दल  व कभी कभी  कौंग्नेरेस ने    मुख्तय मंत्री  महंत  योगी को  अजय बिष्ट  नाम से पुकारा कि आदित्यनाथ  की उत्तर प्रदेश से बाह्य व्यक्ति की छवि निर्मित हो सके।  इसके अतिरिक्त समाजवादी दल ने योगी (अजय बिष्ट संबंधी ) को राजपूत समर्थक व ब्राह्मण विरोधी कह कर भी योगी की बाह्य व्यक्ति , राजपूत समर्थक व ब्राह्मण विरोधी छवि निर्माण का भरसक प्रयत्न किया गया।  मार्केटिंग द्रष्टि से समाजवादी  दल की  सही रणनीति थी कि योगी की  सवर्णों का सहोदर छवि निर्मित हो।  किन्तु आदित्यनाथ का गोरखनाथ संस्थान के महंत होने व उत्तर प्रदेश में कई लुभावने योजनाओं के कारण यह छवि निर्मित हुयी भी होगी तो यथेष्ठ फल समाजवादी दल को ना दे स्की। 
    भूतकाल में कबीर मूलचंदानी द्वारा फिलिप्स की बुरी  छवि निर्माण करना व विरोधी फल पाना -
भूतकाल में कई बार व्यापारिक ब्रैंडों ने  विरोधी ब्रैंडों की नकारात्मक छवि निर्मित करने के कई प्रयत्न हुए हैं।   प्रसिद्ध उदाहरण है  १९९५ - २००२ लगभग जब अकाई , बैरोन , आइवा के भारतीय मालिक  कबीर मूलचंदानी ने अपने उपरोक्त कलर  टीवी व ऑडियो प्रोडक्ट विज्ञापन में विरोधी ब्रैंडो की अधिक कीमत व कम गुणवत्ता की छवि निर्माण का प्रयत्न  किया था।  कई बार फिलिप्स को बेकार व लुटेरा ब्रैंड जैसे छवि की कोशिस भी हुयी।  कुछ समय जनता झांसे में आयी।  किन्तु कुछ समय पश्चात रहस्य खुला कि  कबीर मूल चंदानी अपने उत्पाद का मूल्य कम इसलिए रख रहा था क्योंकि एक्साइज व अन्य टैक्सों में घाल  मेल किया गया था।  इसी क्रम में झारखंड के  राज्यपाल व   भूतपूर्व कस्टम अधिकारी प्रभात कुमार भी कबीर से  मिले थे (बाजार की सुनी बातें )। 
    समाजवादी दल  के मुखिया अखिलेश द्वारा महंत योगी आदित्यनाथ की ' बुलडोजर बाबा ' की छवि निर्माण का प्रयत्न  व विरोधी प्रभाव -
 कई चुनाव सभाओं में अखिलेश ने उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ को क्रूर व गरीब विरोधी साबित करने हेतु महंत आदित्यनाथ को बाबा बुलडोजर ' नाम से पुकारना शुरू किया।  रणनीति तो सही थी विरोधी को क्रूर शासक छवि निर्माण की।  किन्तु  ' बाबा बुलडोजर' उपमा महंत हेतु सकारात्मक उपमा ही सिद्ध हुयी।  योगी आदित्यनाथ ने खुले आम कहा कि  मेरा बुलडोजर उत्तर प्रदेश में खूब चला और मेरा  बुलडोजर  माफियाओं द्वारा गरीबों की जमीन हडपने पर चला व इस हडपी भूभाग पर गरीबों के घर निर्मित हुए।  बाबा बुलडोजर  उपमा ने वास्तव में योगी  को कड़क अनुशासन प्रिय , गरीबों का मसीहा छवि ही प्रदान की।  जिस तरह से अकाई /आइवा ब्रैंड को फिलिप्स , एल  जी आदि की छिछलेदारी करने से हानि हुयी वैसे ही अखिलेश द्वारा योगी को /बुलडोजर बाबा' नाम देना उलटा पड़  गया जैसे  २०१९ के लोक सभा चुनाव में राहुल गांधी का चौकीदार चोर है नारा अंत में कौंग्रेस को ही हानिकारक सिद्ध हुआ।  भाजपा ने अखिलेश यादव के शासन में गुंडागर्दी , दबंगई, आतंकवादियों (अपरोक्ष रूप से मुस्लिम )  का समर्थक  का बखान कर समाजवादी पार्टी की गुंडा समर्थक, मुस्लिम अपराधियों के खैरम ख़्वाह  व  अनुशासन हीन दल की छवि निर्माण करने की पूरी कोशिस की व चुनाव् परिणाम सिद्ध करते हैं कि भाजपा समाजवादी पार्टी की नकारात्मक छवि निर्मित करने में सफल रही व जनता के अंतर्मन में यह नकारात्मक छवि बैठ भी गयी। 
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      अजंली मिक्सर ग्राइंडर द्वारा सुमित के साथ तुलना  व मंहगाई , बेरोजगारी पर अखिलेश का भाजपा को घेरना
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  मिक्सर ग्राइंडर की खोज सुमित ने की तो सदा ही ग्राहकों के मध्य सर्वोच्च छवि रही - शक्तिशाली व अधिक चलने वाला मिक्सर।  अधिकतर अन्य लघु नामी मिक्सर ब्रैंड  विज्ञापनों में कम कीमत की अपनी मिक्सर की तकनीक तुलना सुमित के साथ करते रहें हैं।  किन्तु  इन मिक्सरों को कोई विशेष  लाभ नहीं मिला।  ग्राहक की बुद्धि , मन व अहम स्वीकार ही नहीं कर  पाटा है कि  बेनामी (जैसे अंजली )  ब्रैंड सुमित से तकनीक में भला हो सकता है। 
    अखिलेश, कॉंग्रेस  व  बीएसपी चुनाव ही नहीं पहले से भाजपा सरकार पर बढ़ती मंहगाई व बेरोजगारी पर घेरने व जनता में भाजपा की नकारात्मक छवि निर्माण करने का बहु प्रयत्न करते पाए गए।  किन्तु जनता का मन , बुद्धि व अहम कैसे इन विपक्षियों के तर्क स्वीकार करती ? उत्तर प्रदेश में पिछले तीस सालों में गैर कॉंग्रेसी सरकार रही व पहले कॉंग्रेस सरकार रही।  उत्तर प्रदेश , उत्तराखंड व बिहार ने बेरोजगारी के कारण  ही सबसे अधिक पलायन का दंश झेला इन सालों में तो कैसे जनता का चित्त (मन , बुद्धि , अहम् ) इन विरोधियों का  तर्क स्वीकारती की ये दल बेरोजगारी दूर कर लेंगे। 
  इसी तरह मंहगाई का भी हाल रहा।  उपरोक्त सभी दलों की सरकारों में मंहगाई जनता की समस्या रही हैं। 
     व्यापारिक विपणन में भी प्रतियोगी की नकारात्मक छवि निर्माण की जाती है व राजनीति में भी। 
     अपने प्रतियोगी की नकारात्मक छवि निर्माण हेतु निम्न रणनीति सफल होती हैं -
प्रतिस्पर्धी की हीनतम ( कमजोर )  कमजोरी पर आघात करना चाहिए जैसे भाजपा ने २०२२ के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी सरकार  के गुंडों को प्रोत्साहन, एक विशेष जाति  समर्थित पार्टी  जो दबंग है व दलित उत्पीड़क है  व अपरोक्ष रूप से मुस्लिमों को ही लाभ वाली प्रवृति। कमजोरी खोजनी आवश्यक है व बार बार आघात करना चाहिए।
  जब भी प्रतिस्पर्धी दल की नकारात्मक छवि निर्माण करना हो तो सदा ही विवाद के लिए तैयार रहना चाहिए व झगड़ा , टकराव से कभी नहीं डरना चाहिए।  इस मामले में  नरेंद्र मोदी उस्ताद हैं विवाद व घपरोळ  पैदा करने में व निडरता में उच्च श्रेणी में हैं ।
 विरोधी की नकारात्मक छवि निर्माण में प्रयोग होने वाला विचार वोटरों के मन में भीजना  चाहिए। 
छवि  निर्माण की संवाद  सरल व जनता की समझ में आने वाली होनी चाहिए।  भाजपा व समाजवादी पार्टी भाषा के मामले में सही रहे हैं। 
प्रतिस्पर्धी के बारे में नकारात्मक विचार वास्तविकता पर आधारित होना चाहिए ना कि काल्पनिक।  विचार को इस तरह सम्प्रेसित किया जाय कि जनता परख सके व नाप तौल भी सके कि  विचार तथ्यपूर्ण है कि  नहीं। 
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 विज्ञापन नहीं समाचार पैदा करना
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 राजनीति में ही नहीं व्यापारिक विपणन में भी प्रतिस्पर्धी को नकारत्मक घोसित करने वाले  विचारों को  विज्ञापन से नहीं अपितु समाचार बनाने से अधिक लाभ मिलता है। 
 

 Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai 2022   
 ,  Political Marketing articles will be continued in next chapter
राजनीतिक विपनण न  : योग   सिद्धांत  पर  श्रृंखला ,  राजनैतिक ब्रैंडिंग  , राजनीति में ब्रैंडिंग , पोलिटिकल मार्केटिंग ,  राजनैतिक ब्रैंडिंग , राजनीति में छवि बिगड़ने के अवसर ,  राजनैतिक  विपणन, राजनीति  छवि  निर्माण सिद्धांत  आधारित  लेख शेष आगे ..

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