Author Topic: Articles By Dinesh Dhyani(Poet & Writer) - कवि एव लेखक श्री दिनेश ध्यानी के लेख  (Read 59634 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dinesh Dhyani
March 4 at 10:40am
ह्यूंद अक्वे
बरखा नि ह्वै,
रूड़ी छक्वे
पाणी नि पै।
खेती म नाज
जामु नी च
मळसु जम्यू
पुंगड्यू बीच।
ह्युंद - ह्युवाळ
साग न पात
अन्ना दाणी
काण न मास।
दिनेश ध्यानी ४/३/१६

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dinesh Dhyani
March 1 at 5:36pm
पहाड़ को दर्द
विकास की गाथा
खाली होन्दा गौं
तिसाली मौ।
संवासिनियों की पिड़ा
मि तैं नि सुणेदी
नैनिसार की बात
रेता, बजरी अर भू माफ़िया
क्या होंदा
समझ नि औंदी।
मि त बस
यतना जणदू
कि अबरी दौऊ
मि बि बैतरणी
तरेण चांदु।
सत्ता का खुचिल
बैठी कि मि बि
रड्डा घुस्सी
ख्यलण चांदु।
स्वचणौ छौ
एक द्वी सम्मान
तगमा अर स्मृति पत्र
मी बि मिली जैं
ता मि बि
धन्य ह्वै जौं।
मिन क्य कन्न
अब क्या बन्न ?
सत्ता से दूर
सम्मान से बिलग
अब नि रयेंदु
सम्मान को बियोग
अब नई सयेन्दु।
तबी बवनू छौं
क्वी मेरि पीड़ा
बि बींगा
मेरा खातिर बि
इनै - उनै
रींगा
अरे जरसी
सम्मान कि
ही ता बात चा,
औणी द्यावा
अबरी जरसी
एक तराक
मेरा तरपा बि
सम्मान कि
मान कि
द्वी बूँद पेकी
मी बि तरेण द्यावा
मी बि तरेण द्यावा। दिनेश ध्यानी। १/३/१६

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dinesh Dhyani
February 25 at 3:31pm
पळौण्या
ब्याळि रात स्वीणम पळ्यौंण्य एै
बल
क्या च रै!
तुम त सब्बि बौहड प्वड्यां छां।
मुजफ्फर नगर अर
रामपुर तिराहा कांड का बाद
तुम्हरा जो रमठा अर
दथडा पळ्ययां छाया
वों को क्य ह्वै?
शहीदौं कु ल्वै की सौं
खयीं छै तुमरि
वौं थैं बिसरि किलै ग्यां?
अगर नि बिसरा ता फेर
निचंत ह्वै कि बौंहड
किलै छां सियां?
मिन बोलि
न्यायालय म केस च चलणू
निसाब कु जग्वाळ सब्यों थै च
बल
न्यायालय?केस अर निसाप हैं.....!
कनि छ्वीं कनौं छै तु?
य त तु अपणि कमजोरि
थैं छुपाणौं छै,
य यीं व्यवस्था थैं
नि समझणौं छै।
निरसा कैन कन्न
मुजफ्फर नगरौं निसाब?
कैन दीण तुमथैं रामपुर तिराहौं
इनसाफ?
द्यखणौं नि छै
शहीदौं की ल्वै की सिचीं
राजगद्दी परैं बैठ्यां
अर रामपुर तिराहा अर
मुजफ्फर नगरा कांड करवोण वळा
सफेदपोश एक सि हि भाषा
तु बनां छन।
एक जना लगणां छन।
अगर नि छन सि एकसन्नि त
त्वी बथौ, पन्द्र सालौ राज म
रामपुर तिराहा अर
मुजफ्फर नगरा कांड का
दोषियों थैं सजा दिलौणा खातिर
यों हम्हरा कर्णाधारौं न क्य कै?
इनी सूणी!
अज्यों बग्त चा
सोचि ल्या
समझि ल्या
यां से पैलि कि सि
पळ्यां दथुड़ा-रमठौं परैं
जंक लगि जौ
अपणु न्याय, निसाप अर
हिसाब कनौं खातिर एक दौं
फिर से सब्बि गौं-गौं बिटि
धारौं-धारौं बिटि
नगरौं-सैरौं बिटि
कट्ठा ह्वावा अर
इतिहास म अपणि गवै द्यावा
एक ह्वैकि
अपणु निसाब कारा
अपणु निसाब कारा।।
दिनेश ध्यानी, 25, फरवरी, 2016।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dinesh Dhyani
February 24 at 10:26am
क्य बुन्न?
वो देशा बान
अपणि ज्यान खूणा छन
अर
सि देश का
टुकड़ा-टुकड़ा कनौं बान
एक हूणा छन।
दिनेश ध्यानी 24/2/16

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dinesh Dhyani
February 23 at 5:34pm
को गालो फागुण की होरी
गीत वंसत का कख बिटि सुणणी
थड्या झुमैला, बौ अर लाली
औण वळौं न क्या जी जणणीं।
रीत बचैकी रखण म्यारौ
गीत बचैकी रखण
तीज त्यौहरा खौला मेळौं
थाती बचैकी रखणा।
ब्गत का अगनै अटगणां हम
दौका फौक्यों म भटकणां
रीत रिवाज, सान संस्कृति
घडि़ म अपणीं छ्वडणां।
यीं थाती की समाळ कारा
भौळ कनक्वैकी ह्यरणां,
सख्यों की रीत पुरख्यों की
हम्हरि थाती पछ्याण या च।
अपणां जलडौं कबी नि छ्वडणौं
अपणी माटी समाळ कारणां
रीत बचैकी रखण म्यारौं
गीत समाळी रखणा।।
दिनेश ध्यानी. 23 फरवरी. 2016

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dinesh Dhyani
February 21 at 5:49pm
अंतराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस की सब्यों तैं हार्दिक बधाई.
अपणी बोली, अपनी भाषा
लिखा पढ़ा, अग्नै बढ़ा।
बोली को विकास करा
गढ़वाली -कुमाँऊनी अर जौनसारी तैं
संविधान की ८ वीं
अनुसूची म सम्मान दिलावा।
आवां सभी मिल जुलिकी
भाषा को मान बढ़ावा।
दिनेश ध्यानी। २१/२/१६।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dinesh Dhyani
March 23 at 10:32am
बुरू नि मन्यां होळि चा।
भै बंदौ आप त जणदा हि छन हमरा स्वनामधन्य कुर्सी प्रेमी नेतौं का कारण अचकाल उत्तराखण्ड प्रदेश की चर्चा देश का हर हिस्सा म होण लग्यां छन। यि हमरा नेता कतना समाज सेवी अर जनता कि कतना सुध ल्हिंदन स्यु त दिखेण लग्यों, पन्द्र सालौ राज ह्वै गे पण अज्यों तक मूलभूत सुविधाओं का खातिर बि जन्ता परेशान च। अर सि छन कि सिफ अर सिर्फ अपणि कुर्सी खातिर लडणां छन। त ल्याव होरि का बाना से एक चुटकी हम बि ल्हे दिंदा।
हरीश रावत न विजय बौगुणा थैं फोन मिलै।
बल पंडज्यू पैलाग।
विजय बौगुणान बोलि, खुश राव, चिरंजीवी ह्वावा।
हरीश रावत न बोलि, पंडज्यू खुश कनम रैंण?
विजय बौगुणान बोलि, किलै क्य ह्वै?
हरीश रावत न बोलि, पंडज्यू तुम त यन्नु बनां छां जनु तुमथैं कुछ पता नि हो, हैं, अच्छी भलि सरकार चलणीं छै अर तुमन यन्नु घ्वच्चा मारि कि क्य बुन्न? कुर्सी बि अधर म च लटकीं अर न खयेणौं, न पियेणौं, न हैंसेणौं न रूवेणौं हौरि त हौरि निंद त औंणी पण न सियेणौं। जबरि झपकि औंणी तबरि तुम्हरि मुखडि दिखै जौंणी अर मी लगणौं ना हो जो एकाध हौरि विधायक बि तुम नि लपिकि द्या।
विजय बौगुणान बोलि, रौत जी अब लागि रम, रमी? हैं जबरि मि बि छौ तैं कुर्सी परैं तुमन कौन से मिथैं काम कन दे? आपदा का बाद मि जन्नि बि छौं काम कनौं छौ पण तुमन त मिथैं लमडैकि ही सांस सै। धवसन कैं बुबा जी का नौं परैं मिथैं मुख्यमंत्री बणणौं मौका मीलि छौ पण तुमन त दिल्ली से ल्हेकि ड्यारादूण तक क्य-क्य नि कै? मिन व रमकताळ मी जण्दु कनक्वै सै? तुमन सुण्यौं त होलु न रौत जी, जनु बुतिला वन्नि कटिला।
हरीश रावत थैं वो दिन याद एै गेन, जबरि वों थैं मुख्यमंत्री बणौणा खातिर वों का चेला-चपाटा दिल्ली से ल्हेकि ड्यारादूण तक कोपभवन म बैठ्यां छया, क्वी रूण लग्यौं छौ अर क्वी भीड परैं अपणु बरमण्ड फ्वडण लग्यौं छौ। आखिर म विजय बौगुणा थैं हटैकि हरीश रावत थैं कुर्सी थ्यरपैगे छै, वो अपणां लोखौं का दगडि तजबिज से, जोड जतन से ठिक व्यवस्था म जुट्यां दाया पण धन नै किस्मत, कनु सज अयौं छौ, खली की कुश्ती म कतना खेल बणिगे छौ, घ्वाडा की टंगडि टुटि सोचि छौ कि राजनीति की नैय्या पार लगि जालि, हैंका साल चुनौं म सांत्वना वोट मीलि जाला पण यो त अपणी हि कुर्सी खुणे अपशगुन ह्वैगे।
स्वचदा-स्वचदा फोन झणि कब कटि गे।

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Dinesh Dhyani
March 21 at 3:24pm
घर-गौं
बरसौं पैली घौर छोडी द्यसु बस्यां
अज्यों तलक बी उपरि धरति म नि रच्यां।
रोटी-रोजगार की खातिर छां अयां
क्वी बि बौडिकि मुल्क जाण नि लग्यां।
आस्था-बीस्था कै कमै यख देसु म
धीत हमरि अजि बि अपणा मुल्क चा।
देवि-द्यबता , पितृ अपणां पुज्दा छां
रीति-रिवाज तीज त्यौहार मनदा छां।
याद औणी कूडी, पुंगडी छनुडी की
खुद लगीं मीं अपणां पांडा, वोबरा की।
मन पराण अपणां पाड म छन बस्यां
बाळि सगोडी आंख्यों छन रिटणां।
भलु सुभौ भला मनखि छन मेरा पाड़ का
कनी भली छै हवा पाणी पाड की।
याद औणी कफ्फू हिलांस, घुघती की
अपण्य पर्यौ अर बाळपन का दगड्यौं की।
दिनेश ध्यानी। 21, मार्च, 2016

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रूड़ी छक्वे
पाणी नि पै।
खेती म नाज
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Dinesh Dhyani
March 22 at 12:57pm ·
हाय कुर्सी
सब एक छन
यकसनि छन
कुर्सी का बान
बेचैन छन।
जोड़ - तोड़
बिकणु -बिकाणु
खरीदणु - लेणु
जैज चा
कुर्सी का बान।
सत्ता तौं कु
पैली धेय
छल -प्रपंच
कुछ भि ह्वा ।
सर्वाधिकार
चयेंणी कुर्सी
जनता नमान
भाड़ म जावा। दिनेश ध्यानी। २२. मार्च, २०१६

 

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