Dinesh Dhyani
March 23 at 10:32am
बुरू नि मन्यां होळि चा।
भै बंदौ आप त जणदा हि छन हमरा स्वनामधन्य कुर्सी प्रेमी नेतौं का कारण अचकाल उत्तराखण्ड प्रदेश की चर्चा देश का हर हिस्सा म होण लग्यां छन। यि हमरा नेता कतना समाज सेवी अर जनता कि कतना सुध ल्हिंदन स्यु त दिखेण लग्यों, पन्द्र सालौ राज ह्वै गे पण अज्यों तक मूलभूत सुविधाओं का खातिर बि जन्ता परेशान च। अर सि छन कि सिफ अर सिर्फ अपणि कुर्सी खातिर लडणां छन। त ल्याव होरि का बाना से एक चुटकी हम बि ल्हे दिंदा।
हरीश रावत न विजय बौगुणा थैं फोन मिलै।
बल पंडज्यू पैलाग।
विजय बौगुणान बोलि, खुश राव, चिरंजीवी ह्वावा।
हरीश रावत न बोलि, पंडज्यू खुश कनम रैंण?
विजय बौगुणान बोलि, किलै क्य ह्वै?
हरीश रावत न बोलि, पंडज्यू तुम त यन्नु बनां छां जनु तुमथैं कुछ पता नि हो, हैं, अच्छी भलि सरकार चलणीं छै अर तुमन यन्नु घ्वच्चा मारि कि क्य बुन्न? कुर्सी बि अधर म च लटकीं अर न खयेणौं, न पियेणौं, न हैंसेणौं न रूवेणौं हौरि त हौरि निंद त औंणी पण न सियेणौं। जबरि झपकि औंणी तबरि तुम्हरि मुखडि दिखै जौंणी अर मी लगणौं ना हो जो एकाध हौरि विधायक बि तुम नि लपिकि द्या।
विजय बौगुणान बोलि, रौत जी अब लागि रम, रमी? हैं जबरि मि बि छौ तैं कुर्सी परैं तुमन कौन से मिथैं काम कन दे? आपदा का बाद मि जन्नि बि छौं काम कनौं छौ पण तुमन त मिथैं लमडैकि ही सांस सै। धवसन कैं बुबा जी का नौं परैं मिथैं मुख्यमंत्री बणणौं मौका मीलि छौ पण तुमन त दिल्ली से ल्हेकि ड्यारादूण तक क्य-क्य नि कै? मिन व रमकताळ मी जण्दु कनक्वै सै? तुमन सुण्यौं त होलु न रौत जी, जनु बुतिला वन्नि कटिला।
हरीश रावत थैं वो दिन याद एै गेन, जबरि वों थैं मुख्यमंत्री बणौणा खातिर वों का चेला-चपाटा दिल्ली से ल्हेकि ड्यारादूण तक कोपभवन म बैठ्यां छया, क्वी रूण लग्यौं छौ अर क्वी भीड परैं अपणु बरमण्ड फ्वडण लग्यौं छौ। आखिर म विजय बौगुणा थैं हटैकि हरीश रावत थैं कुर्सी थ्यरपैगे छै, वो अपणां लोखौं का दगडि तजबिज से, जोड जतन से ठिक व्यवस्था म जुट्यां दाया पण धन नै किस्मत, कनु सज अयौं छौ, खली की कुश्ती म कतना खेल बणिगे छौ, घ्वाडा की टंगडि टुटि सोचि छौ कि राजनीति की नैय्या पार लगि जालि, हैंका साल चुनौं म सांत्वना वोट मीलि जाला पण यो त अपणी हि कुर्सी खुणे अपशगुन ह्वैगे।
स्वचदा-स्वचदा फोन झणि कब कटि गे।