प्रिय कविवर सिमन्या...
मेरु पंछी मन आपतैं खोजण लग्युं थौ,
मुलाकात ह्वैगि मेरा पहाड़ पोर्टल फर,
आपकी अनुभूति पढि-पढिक तीस बूझि,
जन बूझ्दि छ पहाड़ का धारा फर.
आपका दूरभास फर संपर्क कन्न की अभिलाषा थै मन मा...पर क्य कन्न कवि सम्मलेन का दिन हुल्ता कुल्ती मा दूरभास संख्या न दी सक्यौं अर् न ली सक्यौं.
"कभी ऐसा हो सकता है"
जब लोग कहेंगे यहाँ गंगा बहती थी,
खूब सूरत तटों पर उसके,
श्रध्दालुओं की स्नान के लिए,
पूजा पाठ हेतु मंदिरों में,
बहुत भीड़ रहती थी.
खूब सूरत धार्मिक शहर,
इसके किनारों पर,
जहाँ लगते थे मेले,
लुप्त हो चुकी अब गंगा,
रह गए हैं अकेले.
आज पथ भूली गई,
या रूष्ट होकर सूख गई,
जिसकी बहती थी अविरल धारा,
प्रकृति का प्रकोप हुआ,
या इंसान ने उसको मारा.
जो भी होगा भविष्य में,
आज गाय को खोल दिया है,
और पवित्र गंगा को,
बांधों में बाँध कर,
त्रस्त होकर मरने के लिए,
जहर घोल दिया है.
सोचो! कभी इसका परिणाम,
गंगा और मानवता के लिए,
घातक हो सकता है,
ये है कवि "जिज्ञासू" की अनुभूति,
"कभी ऐसा हो सकता है"
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
3.8.2009