Author Topic: Articles By Dinesh Dhyani(Poet & Writer) - कवि एव लेखक श्री दिनेश ध्यानी के लेख  (Read 29053 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Execellent Articles Dhyani ji.


कहानी
अपना-अपना दर्द
दिनेश ध्यानी


हैलो!
हां.
कैसे हो?
ठीक हूॅं, अपना सुनाओ कैसी हो?
मैं ठीक हूॅं। तुम सुनाओं?
बस चल रहा है।
बस चल रहा है? ये सुबह सुबह मुंह लटकाये क्यों हो?
कुछ नही, बस ऐसे ही।
तुम भी ना कुछ कहो तो मुंह लटकाकर बात करते हो और पूछो तो कहते हो कि कुछ नही।
कहा ना कुछ भी नही।
ठीक है तुम जानो और तुम्हारा काम जाने मैं क्यों परेशान होने लगी तुम्हारी उदासी देखकर।
अरे बाबा मैं उदास नही हूॅं, बस यूंू ही जरा आज सुबह मूड़ खराब हो गया था।
क्यों कुछ कहा किसी ने?
नही किसी ने कुछ नही कहा।
मत बताओं, मैं जानती हूॅं तुम्हारा वही पुराना राग। उसके साथ अभी तक बनाकर नही चले, उसे समझा नही पाये और अपने आप फुकते रहते हो। सच कहॅंू कभी-कभी मुझे लगता है कि तुम शायद सनकी इंसान हो। जानते हो क्यों? क्यों कि तुम अपनी परेशानी को किसी को बताना नही चाहते हो और अपने आपस में बैठकर कभी भी तुमने उससे सुलह की कोशिश की नही फिर कैसे होगा तुम्हारी समस्या का समाधान?
जानती हो दुनियां में कई ऐसी समस्यायें हैं जिनका अभी तक भी कोई समाधान नही निकला है। कई ऐसी बीमारियां हैं कि उनका इलाज नही खोजा जा सका है। इसमें अगर मेरी समस्या भी एक शािमल कर ली जाए तो फिर अचरच नही होना चाहिए।
तुम कोई फैसला क्यों नही ले लेते?
कैसा फैसला?
अरे कि तुम्हें क्या करना है? कैसे रहना है? ऐसे में तो तुम्हारा जीना मुहाल  लगता है।
जानती हो जब मुझे फैसला लेना था तब मेरे अपनों ने मुझे फैसला लेने नही दिया और आज मैं चाहकर भी कुछ फैसला नही कर सकता हूॅं। कैसी बिड़ंबना है जब फैसला लेने के हक में था तब अपनों की बंदिशें और आज किसी की बंदिशें नही हैं तो अब फैसला नही ले सकता हूॅं। वाह! री जिन्दगी तेरे रंग भी अजब-गजब हैं। छोड़ो मेरी तुम अपनी सुनाओं, काफी दिनों बाद मिलना हो रहा है। कैसी हो?
मिलना? मिलना हो रहा है कि फोन पर बातें हो रही हैं? सब ठीक चल रहा है।
घर में सब ठीक हैं?
हां फिलहाल सब ठीक हैं।
अरे तुम्हारे उसका क्या हुआ, वो जिस प्रोजेक्ट पर तुम बात कर रही थीं ना।
हां उसकी बात हो चुकी है मैंने प्रोजेक्ट सम्मिट कर दिया है। शायद अगले सप्ताह देहरादून जाना होगा।
वेरी गुड़।
थेंक्स। अच्छा एक बात कहॅंू?
हाॅं कहां।
तुम ऐसा क्यों नही कर लेते हो कि एक दिन उससे सीधी बात करों कि अब ऐसा कब तक चलेगा?
अरे छोड़ो भी उन बातों को। जिन बातों का कोई हल नही हो सकता है, जो बातें हमारे बस से बाहर हो चुकी हैं उनको कुरेदकर क्या फायदा? जानती हो मैंने क्या क्या नही किया लेकिन हारकर अब मन को मना पाया हॅंू कि दुनियां में कुछ चीजें ऐसी होती हैं कि उन्हें हम बदल नही सकते हैं। अब तो एक ही बहाना है कि किसी तरह से बच्चों का बुरा न हो। सच कहॅंू तो बच्चों के भविष्य और उनकी सलामती के लिए एक छत के नीचे रह रहे हैं।
हूं। लेकिन क्या तुम्हें नही लगता कि इस तरह अजनबियों की तरह रहना ठीक होगा?
अजनबियों की तरह? इसमें बुरा क्या है? लोग भी तो एक ही बस में, एक ही रेल में घंटों तक अजनबियों की तरह यात्रा करते हैं। मैं तो इसे इतना ही समझता हूॅं कि रात को सोने के लिए घर आ जाता हॅंू, खाना मिल जाता है कपड़े धुले मिल जाते हैं और क्या करना है?
अरे बस यही चाहिए?
और?
और भावनायें और इमोसन्स का क्या?
सच कहना, आज के जमाने में कोई किसी की भावनाओं और इमोसंेन्स की परवाह करता है?
अरे मैं औरों की बात नही कर रही हूॅं। जब हम एक ही परिवार में रहते हैं तो फिर पति-पत्नी के बीच भावनात्मक संबंध तो होने ही चाहिए नां
भावनात्मक संबंध? अरे जब रिश्ता ही भावनाओं को  दबाकर हुआ हो तो उसमें भावनात्मक संबध और इमोसेंस कहां से रहेंगे?
तो उस समय विरोध क्यों नही किया तुमने?
विरोध? सब कसाई की तरह खेड़े थे नाते रिश्तेदार। सबके सब इस तरह कर रहे थे कि जैसे इसके बराबर लड़की पूरे ब्रह्माण्ड में न हो या मुझे इसके अलाव कोई लड़की मिलने वाली नही है। वास्ता दिया गया था तब परिवार, नाते रिश्तों और खून का। तब मैं असहाय था और हां कहने के सिवाय कुछ नही कर पाया था।
तो अब क्यों रोते रहतेे हो?
रो नही रहा हूं।
इसे रोना ही कहते हैं। सुनों अब भलाई इसी में है कि चुपचाप अपनी गृहस्थी में जमे रहो और किसी प्रकार का दंश मत पालों। यह किसी के लिए भी उचित नही है। जितना हो सके जीवन को आराम और आनन्द से जियो।
हां तुम कह तो सही रही हो। कहोगी भी क्यों नही समाजशास्त्र की प्रवक्ता हो ना, तुम प्रैक्टीकल से अधिक थ्योरी पर जोर देती हो।
मैं तुम्हें पढ़ा नही रही हूॅं।मैं तो कह रही थी कि हो सके तो सुलह करलो।
सुलह? क्या मैंने कोई कारिगिल छेड़ा है? या शिमला समझौंते का उलंघ्न किया है? इतने साल से मैं सुलह के अलाव क्र ही क्या रहा हूंॅ? तुम सोचती हो कि मैंने अपनी तरफ से किसी तरह की कमी रखी होगी? नही ऐसा नही है मैंने हर वो प्रयास किया है जो कोई नही करता है। जानती हो मैंने हर तरह से समझौता किया लेकिन जानती हो न कि जिसने नही सुधरना है उसके लिए तुम अपनी जान भीे दे दो ना तो कम ही है। इसलिए अब इसे अपनी नियति मानकर चल रहा हॅू। हाॅं एक तुम हो जिससे मैं अपना दर्द बता देता हॅू, नही तो आज के जमाने में दूसरों के दर्द सुनने और समझने की फुरसत किसे हैं? अब जीवन में दर्द के सिवाय रह ही क्या गया है?
तुम कैसे इंसान हो इतनी बातें की दर्द से शुरू की और फिर दर्द पर आकल अटक गये?
क्या करूं? दर्द ही है जो अब मेरे जीवन का संगी साथी हैं। जानती हो ये दर्द ही है जो अपना फर्ज सिद्दत के साथ निभाता है और कभी भी दगा नही करता है। इसके अलाव  आदमी का क्या भरोसा कब धोखा दे जाए। आज तो अपना साया ही जब साथ नही देता तो दूसरों से क्या कामना की जा सकती है।
कभी कभी तुम बहुत ही दार्शनिक बातें करते हो और कभी-कभी छोट बच्चों की तरह उदास हो जाते हो ऐसा क्यों?
मुझे खुद पता होता तो फिर बात ही क्या थी लेकिन मैं तो इतना जानता हूॅं कि जब दर्द उठता है तो एक तड़प उठती है जो मुझे अन्दर तक हिला देती है और जब अपने दर्द को थोड़ा राहत देता हॅंू तो लगता है कि आराम है। बस यही दद्र है जो कम ज्यादा होता रहता है लेकिन सदा ही मेरे साथ बना रहता है। जानती हो दुनियां में सब का अपना अपना दर्द होता है। किसी का कुछ न मिलने का दर्द, किसी का कुछ होने के बाद भी दर्द और किसी का दर्द न होने का दर्द। लेकिन मैं मानता हूॅें कि दर्द हर किसी को है। कुछ सहा जाता है कुछ नही सहा जाता है। लेकिन यही दर्द है जो हमारे साथ है  हमेशा से ही हमेशा के लिए।
हां तुमसे कौन जीत पाया है। दर्द तो है लेकिन अलग-अलग।





dinesh dhyani

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श्रीदेव सुमन की 65 वीं पुण्य तिथि पर
संसद में उनका तैल चित्र लगाने की मांग

दिनेश ध्यानी

नई दिल्ली विगत 25 जुलाई, 2009, राजशाही के खिलाफ अपने प्राणों की आहुति देने वाले भारत माता के अमर सपूत श्री श्रीदेव सुमन की 65 वीं शहादत पर उनको भावभींनी श्रृद्धाॅंजलि अर्पित की गई तथा केन्द्र सरकार से मांग की गई कि श्रीदेव सुमन का एक तैल चित्र संसद भवन में लगाया जाए। गढ़वाल भवन नई दिल्ली में आयोजित सभा में उत्तराखण्ड आन्दोलनकारी समन्वय समिति के उपाध्यक्ष एवं पूर्व राज्य मंत्री श्री धीरेन्द्र प्रताप ने एक प्रस्ताव के माध्यम से श्रीदेव सुमन का तैलचित्र संसद में लगाने की मांग की। सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया गया।
टिहरी उत्तरकाशी जन विकास परिषद एवं श्रीदेव सुमन ट्रस्ट के सौजन्य से आयोजित इस सभा में उत्तराखण्ड के विभिन्न सामाजिक एवं राजनैतिक संगठनों के प्रतिनिधियों, पत्रकारों एवं साहित्यकारों ने भाग लिया। जिनमें सर्वश्री कुलानन्द भारतीय पूर्व महानगर पार्षद शिक्षा, पूर्व राज्य मंत्री धीरेन्द्र प्रताप, प्रताप सिंह असवाल, पूर्व अध्यक्ष टिहरी उत्तरकाशी जनविकास समिति एवं अध्यक्ष श्रीदेव सुमन ट्रस्ट,  लाखीराम ड़बराल, गंभीर सिंह नेगी अध्यक्ष टिहरी उत्तरकाशी जनविकास परिषद, एस.एन. बसलियाल वरिष्ठ उपाध्यक्ष टिहरी उत्तरकाशी जनविकास परिषद, श्री बृजमोहन उप्रेती युवा नेता एवं समाजसेवी, श्रीमती कमला रावत अध्यक्ष गंगोत्री सामाजिक संस्था, श्री दिनेश ध्यानी साहित्यकार एवं कवि, श्री चारू तिवारी वरिष्ठ पत्रकार, वीरेन्द्र सिंह नेगी, कैलाश पाण्डेय एवं कवियत्री श्रीमती मीना पाण्डेय, दयाल पाण्डेय, सहित कई गण्यमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया।
सभा अध्यक्षता कर रहे श्री भारतीय जी ने कहा कि देश और समाज में कुछ ही लोग होते हैं जो अपने जीवनकाल में ऐसे पद चिन्ह छोड़ जाते हैं जिनका अनुसरण कर हम अपने जीवन का धन्य बनासकते हैं। ऐसे कम ही मनीषी होते हैं जो समाज में अपना स्थान छोड़ जाते हैं। श्रीदेव सुमन भी उन्हीं मनीषियों में से हैं जिन्हौंने सामन्तशाही और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी शहादत दे दी। ज्ञातव्य हो कि टिहरी में सामन्त शाही के खिलाफ लगातार 84 दिनों तक भूखहड़ताल करने वाले क्रान्तिवीर श्रीदेव समुन को सामन्तशाही के गुण्डों ने हत्या कर दी थी। आज सुमन जी शरीर से हमारे बीच नही हैं लेकिन उनके विचार और कार्य हमें सदा ही आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहेंगे।
आईए हम सुमन जी जैसे दिवंगत विभूतियों के कार्यों से प्रेरणा लें और उनके अधूरे कार्यों का पूरा करने का प्रयास करेे।


dinesh dhyani

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कहानी
कथ्य-अकथ्य

दिनेश ध्यानी

आज तुम इस तरह की बातें क्यों कर रहे हो?
कैसी?
कैसी? मुझसे पूछ रहे हो। तुम्हें नही पता कि आज तुम उलझी-उलझी बातें कर रहे हो। तुम्हें अपनी उम्र और सामाजिक जीवन को ध्यान में रखते हुए इस तरह की बातें शोभा नही देती हैं। आखिर तुम अपने पद और शक्सियत का तो ध्यान रखा करो।
अच्छा? मैंने ऐसा क्या कह दिया जो आज मुझे सबुह-सुबह ही लेक्चर सुनने मिल रहा है?
फिर तुम प्रश्न करने लगे। तुम्हारे साथ यह बड़ी दिक्कत है। तुम किसी की बात कर ध्यान से नही सुनते हो और दूसरों से अपेक्षा करते हो कि लोग तुम्हारी बातों को सुनें ही नहीं दिलचस्पी से सुनें और उन पर अपने विचार भी दें। चाहें कोई चाहता हो या नही लेकिन तुम दूसरों पर अपनी इच्छा सौंपने की जिद करते हो। इस तरह की बातें मुझे अच्छी नही लगती हैं। कम से कम जब तुम अपनी इच्छा के बारे में सोचते हो तो दूसरों की भावनाओं को भी ध्यान में रखना सीखो।
जी।
सिर्फ जी से काम नही चलेगा, ओके।
ठीक है मैं कोशिश करूंगा।
केशिश करूंगा? बोलने मात्र से हो जाती है कोशिश?
नहीं।
तो फिर अपने को चेंज करो। तुम जानते हो तुम एक पब्लिक फीगर हो और लोग तुम्हारी हर बात और अदा पर गौर करते हैं। तुम्हें इसका ख्याल न हो लेकिन देखने वाले तुम्हारी हर छोटी-छोटी बात को गौर से देखते हैं और उसके बाद तुम्हारे बारे में कोई भी अपनी पक्की राय बनाता है। तुम मुझसे इतने अटैच हो चुके हो कि अपने को भी भूल गये हो।
हाॅं, ऐसा है क्या?
क्यों तुम्हें नही पता?
नहीं।
तो फिर इस तरह से दिन रात मेरे बारे में सोचना और हर समय मेरी बात करना से सब क्या है? तुम जब से मिले हो तुम्हें बातें करने और सामने देखते रहने से कुछ और भी काम मुझसे रहा हो याद नही आता है। तुम कैसे आदमी हो अपनी शक्सियत को भुलाकर एक लड़की के पीछे इतने पागल हो गये हो कि तुम्हें कुछ सूझता नही है। देखो हर काम अपने दायरे में रहकर करोगे ना तो शोभा भी देगा और उसका परिणाम भी दुःखदायी नही होगा।
अच्छा जी।
अच्छा जी? फिर तुम मेरी बातों को मजाक में मजाक में लेने लगे हो।
अरे नहीं ऐसी बात नही है। जानती हो मैं तुम्हारी हर बात को गौर से सुनता हॅॅंू। तुम्हारी हर बात में गूढ़ अर्थ होता है और तुम्हारी हर बात सही होती है। तुम जो भी कहती हो ना बड़े ही सोच और समझकर कहती हो। और शायद यही वजह है कि मैं अब सही में शायद तुम्हें प्यार करने लगा हूॅं।
अच्छा जी। प्यार और तुम जैसा इंसान?
क्यों क्या मुझ जैसा इंसान किसी को प्यार नही कर सकता है।?
नही ऐसी बात नही है। लेकिन जो इंसान खुद अपने को प्यार नही करता वह दूसरों को प्यार क्या करेगा और वह प्यार की कीमत क्या समझेगा
?
हाॅं तुम सही कह रही हो। लेकिन मैंने ऐसा क्या कर दिया है जो तुम ऐसा कह रही हो?
ऐसा क्या कर दिया ? तुम जानते ही नही हो या जानबूझकर अनजान बनने का नाटक करते हो? तुम अगर अपने आप को प्यार करते ना तो इस तरह शराब में नही डूबते।
हाॅं तुम सही कर रही हो। लेकिन क्या तुम ऐसा सोचती हो कि मैं ये सब कुछ जानकर कर रहा हॅू।
नही तुम्हें तो कुछ पता ही नही है। तुम तो अबोध हो ना इसलिए तुम्हें पता ही नही है कि जो कुछ तुम कर रहे हो वह सही है या गलत।
मेरे कहने का मतलब ऐसा नही है। मैं कह रहा था कि सोहबत ही ऐसी मिल गई थी कि कब और कैसे इस दलदल में फंस गया पता ही नही चला। अच्छा एक बात कहो जब से तुम मिली हो तब से मैंने एक दिन भी शराब छुई है?
मुझे क्या पता। लेकिन मेरे कहने का मतलब यह है कि तुम अपनी आदतों को सुधारो। बस बाकी तुम खुद समझदार हो।
जानती हो तुम जब से मिली हो ना मुझे जीने का मकसद मिल गया है। तुम्हारे मिलने से पहले मैं सही में टूट गया था। जी रहा था लेकिन जीने की चाहत अन्दर से खत्म हो गई थी। लेकिन तुमने आकर मेरे जीवन में एक नया उत्साह का सृजन कर दिया है। जानती हो मैं तुम्हें चाहने लगा हूॅं। सही कहॅूं तो मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूॅं। शायद यही वजह है कि कुछ समय से मैं सोते, जागते, और चैबीसों घंटे तुम्हारे ही बारे में सोचता हूॅं। तुम जब से मिली हो ना तब से मैं तुम्हारे ही बारे मंे सोचता हूॅं।
मेरे बारे में क्यों सोचते हो अपने बारे में सोचो। मैं कोई हूर की परी तो हूॅं नही जो तमु मेरे ही बारे में सोचते हो। मेरे बारे में मत सोचा करो। मैं चाहती हूॅं कि तुम सही रहो और अपनी परेशानियों को दूर करो। बस इससे अधिक मैं कुछ नही चाहती तुमसे। मेरा अपने संसार है और अपना घर है। तुम मेरे बारे में इतना अधिक मत सोचा करो।
सच कहना ऐसा करना क्या हमारे बस में है?
हमारे बस में क्या है? तुम किसी चीज को अपने बस में तो करना चाहते हो लेकिन किसी की बातों नही सुनना चाहते हो। यही तो आदमी की भूल है कि वह हर चीज को अपने बस में करना चाहता है और जो उसके बस में नही होता ना उसके बारे में वह भगवान को दोष बढ़ देता है। लेकिन जो बातें हमारे बस में हैं या जिन पर हम बस कर सकते हैं क्या उनको सही तरीके से टैगल करते हैं?
अरे मैं तो इतना कह रहा था कि तुम्हारे बारे में सोचना या न सोचना क्या मेरे बस में हैं?
ये तुम जानो लेकिन मैं तो कहूॅंगी कि तुम अपने बारे में और अपने भविष्य के बारे में सोचो ओके। मैं अपने संसार में खुश हूॅं।
मैंने ऐसा कब कहा कि तुम अपने संसार में दुखी हो?
तो फिर इस तरह की सोच और प्यार-व्यार की बातें क्या शोभा देती हैं?
देखों जरा बैठो। मैं काफी दिनों से सोच रहा था कि तुम्हें स्पष्ट बता दूंगा लेकिन कह नही पाया। मेरी बातों को ध्यान से सुनना। मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूूं। और जानती हो मैं तुम्हारे बिना नही रह सकता हॅूं। अगर तुम एक पल भी नही मिलती हो तो मन खराब हो जाता है। तुम मानों या न मानों तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो लेकिन मैं तो अपनी जानता हूॅं कि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूॅं। बस।
तुमने कहा और मैंने मान लिया। हो गया ना। क्या प्यार इतना आसान है?
मैं नही जानता लेकिन मैं इतना कहना चाहता हूॅं कि तुम्हारे बिना मैं रह नही सकता हूॅं। मैं तुम्हें प्यार क्यों करता हूॅं इस बारे में भी सुनो। मैं मांसल देह के लिए तुमसे प्यार नही करता हॅू। मेरी कुछ वजहें हैं तुम एक तो स्पष्ट बोलने वाली लड़की हो। दूसरी बात तुमने मेरे जीवन में एक मित्र की तरह आकर मुझे दुबारा उठ खड़े होकर जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। तीसरी बात तुमने जीवन में अपना मुकाम खुद बनाया है और अपनी गरिमा को बनाये रखते हुए तुमने बहुत से कम समय में अपने को दिल्ली के वातावरण में ढ़ाला और और के सामने खड़ा होकर साबित कर दिया है कि तुम में आम आदमी से अधिक जीवटपन है। इस का मैं कायल हो चुका हॅू। मैं जानता हूॅं कि तुम मेरी नही बन सकती हो। लेकिन मैं तुम्हें प्रेम करने लगा हूॅं। सच मैं चाहता हॅू कि हमारी दोस्ती आजीवन बनी रहे और तुम यों ही मेरा सम्बल बनकर मुझ उलझे हुए इंसान को सुलझाने का प्रयास करती रहो।
देखो जैसा हम सोचते हैं असल में वह इतना आसान नही है। सोचने और उसे करने में काफी अन्तर है। तुम जो सोचते हो जरूरी नही कि दूसरा भी वही सोचता होगा। दूसरी बात तुम लड़के हो तुम्हारी सोच और नजरिया दूसरा है। तुम पर किसी की बंदिशें या रोके टोक नही है लेकिन मेरे साथ ऐसा नही है। चाहे कोई अपने को कितना भी एडवांस और कितना भी आधुनिक क्यों न कहे लेकिन लड़कियों के मामले में सबकी सोच एक जैसी रहती है। संकुचित और पाबंदियों से लबरेज। इसलिए तुम जो सोचते हो अगर मैं भी वेसे ही चाहूंू तो मैं कह नही सकती हूॅं जब कि तुम लड़के होने के कारण अपनी बात को आसानी से कह सकते हो। इसलिए तुम्हारे में और मेरे में अन्तर है।
मैं ऐसे तो नही कह रहा हॅंू कि तुम भी मुझे प्यार करो? मैंने तुमसे कुछ कहा तो नही हाॅं अपनी भावनओं को तुम्हारे समक्ष उजागर जरूर कर दिया है। इसलिए तुम्हें कर ड़ाला। जानती हो तुम चाहें जो कहांे लेकिन मैं तुम्हें चाहता हूॅं और आजीवन चाहता रहूॅंगा। बस यही कामना है कि हमारा आपस और हमारी दोस्ती बनी रहे। इसे हेतु मुझे तुम्हारा साथ चाहिए और मुझे आशा है कि तुम मुझे समझोगी।
देखो प्यार करना इतना आसान नही है। कहने और करने में अन्तर है। इसलिए अपनी भावनाओं पर कंट्रेाल करों। समय की हकीकत को समझो। अरे बुद्धू पहले अपने को संभालो और उसके बाद सोचना कि क्या करना है। रही बात मेरी मैं तुम्हरी दोस्त थी और उम्मीद तो है कि हमारे बीच कुछ ऐसा न हो जिससे हमें एक दूसरे से अलग होना पड़े लेकिन जहां तक प्यार की बात है तो प्यार कहना और करने में अन्तर है। मैं तो यही समझती हूॅं कि प्यार करना इतना आसान नही है। और वह भी उस स्थिति में जब सामने वाला इसके लिए तैयार न हो। मैं तो नही समझती कि हमारे बीच कुछ ऐसा है कि जिसे मैं प्यार का नाम दूूंॅ। हाॅं एक दोस्त बन कती हूॅं। प्यार बोलकर नही होता है वह तो भावनाओं का सागर है जब वो हिलोरे मारता है ना तो किसी को बिना बताये या समझाये अपने आप अपनी रौ में दिखता है। लेकिन जमाने में सब कुछ हमारे हिसाब से हो यह जरूरी नही है। इसलिए कहती हॅंू कि कहना और करने में अन्तर है। अपने आप को संभालो और अपनी गरिमा में रहकर आगे बढ़ो। तुमने जो समय खराब कर दिया है ना अब उसका कम्पनसेट करों न कि आगे भी यों ही समय बर्वाद करते फिरों। जो ये समय गुजर रहा है ना वो दुबारा नही आयेगा और जिसने समय की कीमत नही जानी या समय की कद्र नही की समय कभी भी उसको माफ नही करता।

dinesh dhyani

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काठ की बेटियां
दिनेश ध्यानी

घर गांव में
खेत खलिहानों में
प्ंादरों, जंगलों में
काम, काज करती
घास, पात लाती
कितनी अच्छी लगती हैं
बेटियां।

उनके भाग में
खेल-खलिहान
काम और काज
खान, पान
लत्ते, कपड़े
और लाड़ प्यार
लड़को के भाग।

आज भी लड़कियां
पराये घर की चीज
उनके भाग में तिरस्कार
भय और भागमभाग
जीवनभर काम और
औरों के सहारे चारों पहर।

नहीं भेजी जाती आज भी
बेटियां स्कूल मेें
पढ़ाया नही जाता उन्हें
काम और काज की खातिर
उनका हो रहा हो
अपनों के द्वारा
तिरस्कार।

अपनो के द्वारा
पराये घर की अमानत को
कसा जाता है
नगाडे़ की तरह
लिया जाता  है
उससे जीभरकर काम
सच में
किस काठ की बनी
होती हैं बेटियां?।।






dinesh dhyani

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फुलसंकरान्द

माॅं आज फलसंरान्द है
तुम्हारे गुजरने के बाद
यह पहली सकरान्द है
माॅं जरा बताओ तो
कहां-कहां फूल बिखेरूं?
कहां-कहां लिपाई पुताई करूं?
किसे-किसे दीप
धूप दिखाउॅंॅ?

माॅं
बताओ तो सही
क्या-क्या
पकवान बनाउॅं
पहले तो तुम सब
खुद ही करती थी
माॅं इस बार
कम से कम बता तो दो।

माॅं
एक बार बस
अनाड़ी हाथों को
पकड़कर जरा
समझा तो दो
मुझसे तो कुछ भी
हो पा रहा है
नही कुछ सुहा रहा है।

माॅं
सच कहूॅं
तुम्हारे जाने के बाद मो
बस अधूरा-अधूरा सा है
यह जग और हमारा जीवन
तीज-त्यौहार,
ऋतु, बहार
क्या मौं के साथ ही
खतम हो जाते हैं
माॅं?

dinesh dhyani

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माॅं

माॅं
तुम्हारे गुजर जाने के बाद
अब तो हमने भी
गाॅंव छोड़ दिया है।
गाॅंव के लिए
वह चाह
वह तड़पन
अब नही रही।
माॅं
ऐसा लग रहा है
तुम्हारे साथ ही
सब खत्म हो गया है।

माॅं
मन कहता है कि
जब माॅं ही नही रही
तो गांव किस बात का?
क्य माॅं सबके साथ
ऐसा होता होगा?

माॅं
जब तुमने ही हमें
छोड़ दिया है तो
फिर गाॅंव क्या करना है?
अब तो गांव जाने का
मन भी नही करता है।

माॅं
घर-गाॅंव में तुमसे ही
थी हमारी पहचान
अब तो सब बेकार सा लगता है
तुम्हारे जाने के बाद।

माॅं
तुम्हारे जाने के बाद
खेत, खलिहान,
घर, गौशाला
जैसे सब हो गये है
बीरान।

माॅं सच अब तो
गांव जाने का
मन भी नही करता है।

क्योंकि जब
जब माॅं ही नही
तों माॅं गाॅंव में
कुछ नही रहा
लगता है जैसे सब
माॅं के साथ ही
उजड़ गया ।।

jagmohan singh jayara

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शैल पुत्र हो कविवर आप, कितना सुन्दर काम,
मन में बसा है उत्तराखंड, जहाँ हैं चार धाम.

कल्पना में कायल होकर, याद करते घर गाँव,
उत्तराखंड में रहती जहाँ, बांज बुरांश की छावं.

कवि "जिग्यांसू" का आपको सत्-सत् नमन.....सुन्दर कल्पना और कविताओं के लिए,
पहाड़ प्रेम सदा बना रहे...लेखनी के माध्यम से समाज को दिशा देते रहें....
जै बद्रीविशाल......

dinesh dhyani

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कहानी
रिश्ता
दिनेश ध्यानी

दफ्तर से घर पहुंचने के बाद श्रीधर बाबू हाथ मुंह धोये, पत्नी ने रोज की तरह चाय लाकर दी। चाय पीने के बाद टेबल पर पड़े अखबार को टटोलते हुए उन्हौंने पत्नी को वहीं से आवाज लगाई। सुनती हो सीमा की मां।
किचन में खाना पका रही पत्नी ने कहा क्या हुआ क्यों चिल्ला रहे हो?
अरी जरा यहां तो आओ
आई.......।
पत्नी के आने के बाद श्रीधर बाबू ने अपने बैग से कुछ कागज निकालते हुए कहा भगवान ने आज हमारी सुन ली है।
क्या हुआ? कुछ बताओ भी।
अपने आफिस में रमेश दत्त बाबू हैं न वे अपने साले के बेटे की जन्म पत्री लाये थे, मैने अपनी सीमा की जन्म पत्री के साथ द्विवेदी जी से मिलवाई तो 36 गुण मिल गये हैं। सुना है कि लड़का इंजीनियर है तथा अच्छा पढ़ा लिखा है। उसके पिता सरकारी विभाग में अफसर हैं। एक लड़का एक लड़की हैं। अपनी जात के हैं और सबसे बड़ी बात अच्छे लोग हैं रमेश बता रहा था।
अजी हमारे कहने से क्या होता है तुम्हारी लाड़ली का पसंद आये तब ना। मुझे तो इस लड़की से ड़र लगता है कि यह क्या चाहती है? देखा नही पीछे दो रिश्ते आये थे लेकिन इसने मना कर दिया। आप ऐसा करें पहले एक दो और पण्डितों से पत्री मिला लें तब ही बात आगे बढे तो अच्छा रहेगा।
अरी भागवान बच्ची को ऐसा दोष क्यों देती हो? उसने मना क्यों किया किया जरा इस बात पर तो गौर करो। पहले वाले रिश्ते की जहां बात हो रही थी वह लड़का तो फौज में था। तुम्ही बताओ फौजी के साथ हमारी सीमा की कैसे निभती? वह यहां काॅलेज में प्रवक्ता और वह फौज में, आखिर उसकी भी तो जिन्दगी है। दूसरा रिश्ता जो कानपुर से तुम्हारी बुआ के माध्यम से आया था उसके बारे में तुम भी जानती हो किस तरह के लालची लोग थे वे। तुम्हें पता है कि हमें लालची लोग पसन्द नही हैं जो लोग लड़की देखने वाले दि नही कहें कि सगाई में हमें पूरे परिवार के लिए कपड़े चाहिए अच्छा सामान चाहिए, तथा हमारे घर-बार तथा पूरी बिरादरी के बारे में व उनके ओहदों व व्यापार के बारे में पूछ रहे थे तथा अपनी बड़ाई करते हुए शेखी बघार रहे थे उन लोगों से हमारी कैसे निभती? जो आग ही इतने दांत दिखा रहे थे वे वे शादी के बाद क्या करते? हमारी सीमा ने ठीक किया कि उनसे रिश्ता जोड़ने से मना कर दिया। मुझे अपनी बेटी पर गर्व है। मुझे विश्वास है कि यह रिश्ता हमारी सीमा को भी पसंद आयेगा और वे लोग भी हमारी सीमा को जरूरी पसंद करेंगे। रही जन्म पत्री मिलाने की बात तो मैं कल ही एक दो जगह पत्री मिला लेता हॅंू।
काश यह रिश्ता तय हो जाये, मुझे तो ड़र सा लगने लगा है अगर एक  दो रिश्ते वापस हो जायें तो लोग अपनी-अपनी समझ से नाम देते हैं उन्हें क्या पता किस असल बात क्या है लोग तो हमें व हमारी बेटी को ही दोष देंगे।
पत्नी की बातें सुनकर श्रीधर बाबू ने कहा,
अरे इसमें दोष देने की क्या बात है? हमने अपनी मर्जी से रिश्ता वापस किया है हम जान बूझकर अपनी बेटी को किसी मुसीबत में तो नही धकेल सकते हैं। रिश्ता होता है दिल से किसी प्रकार की सौदे बाजी या जानबूझकर किसी को फंसाने को रिश्ता नही कहा जाता है।
आप ठीक कहते हो लेकिन फिर भी समाज में ऐसी बातें कौन सोचता है। लोग लड़की वालों पर ही दोष देखते हैं।
देखते रहें दोष। हमारे घर और हमारी बच्चों की जिन्दगी के बारे मंे हमने सोचना है अस वह जमाना नही रहा कि लोग गाय-भैंस की तरह किसी भी खूंटे पर लड़की को बांध दे और लड़की भी जीवनभर अपना नसीब मानकर भोगती रहे दुख, दर्द। अरे हमारी बेटी में क्या कमी है उसने पढ़ाई की है अपने पैरों पर खड़ी है, होनहार है, देखने में सुन्दर है और क्या चाहिए?
आप ठीक कह रहे हैं लेकिन फिर इस बार आप सोच समझकर फैसला करना। देखिये रिश्ते रोज-रोज नही मिलते कहीं-कहीं समझौता भी करना पड़ता है।
देखो सीमी की माॅं मैं जिन्दगी के बारे में किसी भी तरह से अनावश्यक समझौते के पक्ष में नही हूॅं। बच्चों के नसीब में कल क्या है मैं नही जानता, लेकिन मैं अपनी तरफ से अपने बच्चों को खुश देखना चाहता हूॅं। तुम क्या समझती हो तुम्हें की फिकर है बेटी की मुझे नही है? अरे मैं भी तो बाप हूॅं और मैं भी तो चाहता हूं कि जितना जल्दी हो हमारी बेटी अपने घर जाये।
दोनों पति-पत्नी ने तय किया कि अपनी बेटी से इस रिश्ते के बारे में संजीदगी से सोचने व विचार करने के बाद ही कुछ कहने को कहेंगे। शाम को सीमा काॅलेज से घर आई उसकी मां ने उसे इस रिश्ते के बारे में बिस्तार से बता दिया। साथ ही कहा बेटी जरा देखभाल व सोच समझकर ही फैसला करना। हमारी तो यही कोशिश है कि तुम खुश रहो।
सीमा ने कुछ नही कहा बस नीचे मुंह किए मां की बातें सुनती रही। अगले दिन श्रीधर बाबू ने टिपड़ा एक दो पंड़ितो से और मिलवाया और पत्नी से पूछकर तथा बेटी की सलाह से अगले दिन दफ्तर जाकर श्रीधर बाबू ने रमेश दत्त के हाथों लड़के वालों को कहलवा दिया कि वे लोग चाहें तो लड़की देख जायें उनके देखने के बाद ही हम लड़के के घर आदि देखने आयेंगे।
एक सप्ताह बाद लड़के के घर वाले श्रीधर बाबू के घर सीमा को देखने आये। आपसे में मेल मिलाप तथा लड़का-लड़की की बातें व रजामंदी होने के बाद उन लोगों ने घर-परिवार देखकर श्रीधर बाबू से हां कर दी। सब इस रिश्ते से खुश थे। विचार विमर्श के बाद तय हुआ कि अगले माह बैशाखी के दिन सगाई होगी।
श्रीधर बाबू ने फिर शाम को अपनी बेटी सीमा पत्नी बेटे अभिषेक से पूछा कि किसी को इस रिश्ते के बारे मंे कुछ कहना है या किसी प्रकार की शिकायत या कोई बात कहनी हो तो बता दें, बाद में किसी प्रकार की शिकायत न हो खासकर सीमा से कहा कि बेटी तुमने जीवनभर साथ निभाना है इसलिए अभी भी सोच लो मैं ऐसा बाप नही हूं जो अपनी मर्जी बच्चों पर लादे और वह भी तुम जैसी होनहार व समझने वाली लड़की पर मैं किस प्रकार का दबाव नही चाहता हूॅं। सीमा ने पिता को कोई जबाव नही दिया, उसकी मां ने उससे पूछा तो उसने यही कहा कि माॅं जो आप लोगों ने किया है वह ठीक ही होगा। बेटी व परिवार की तसल्ली होने के बाद श्रीधर बाबू ने एक दो दिन शहर जाकर लड़के वालों के घर-परिवार के बारे में पता किया। इधर-उधर से जो जानकारी मिली उसके अनुसार घर-परिवार ठीक है तथा किसी प्रकार की समस्या नही है। श्रीधर बाबू को पूरी तसल्ली होने के बाद वे बेटी की सगाई में जुट गये।
अगले दिन दफ्तर जाकर रमेश दत्त से सगाई आदि के बारे में जरूरी बातें व सलाह करके श्रीधर बाबू सामान आदि जोड़ने में मशगूल हो गये। आखिर वह दिन भी आया घर परिवार के लोग व रिश्तेदारों से घर भर गया सब आपस में मस्त। सगाई के दिन लड़के वाले आये और हंसी खुशी के माहौल में सगाई हो गई। सगाई में सबको जिस बात ने अधिक प्रभावित किया वह थी लड़के की नब्बे वर्ष की दादी का बढ़ चढकर भाग लेना। वे अपने पोते की शादी देखने के लिए काफी लालायित थी। जबसे बुढ़िया दादी आई थी वे सीमा से ही चिपटी रहीं। बार-बार उसके मुंह चूमती व उसे ढे़रों आशीष देतीं। सगाई की रश्म पूरी होने के बाद मेहमानों को खाना आदि खिलाया गया। दादी ने सीमा और सागर के साथ ही खाना खाया। सब खुश थे कि मेहमानों को विदा करने से पहले लड़के के पिता ने श्रीधर बाबू को अलग कमरे में बुलाया कि कुछ खास बातें करनी है। सबको लगा कि अब वे किसी मांग या किसी फरमाईश की बात तो नही करने वाले हैं? सीमा की मां को इस बात की शंका होने लगी कि यदि लड़के वालों की तरफ से किसी प्रकार की ड़िमांड़ रखी गई तो हो न हो उसी तरह फिर सीमा इस रिश्ते के लिए भी मना न कर दे। श्रीधर बाबू लड़के के पिता की पीछे कमरे में गये उनके माथे पर भी पसीना आ गया था। कमरें में पहुंचकर लड़के के पिता ने कहा कि साहब हम आपसे रिश्ता करके काफी खुश हैं हमें आपका घर व आपकी बेटी बहुत पसंद हैं। लेकिन हम आपसे कुछ निवेदन करना चाहते हैं यदि आपको हमारी बात मंजूर हो तो हां कहें अन्यथा अब जैसा आप कहेंगे।
श्रीधर बाबू ने कहा आप आदेश तो करें मैं तो लड़की वाला हूॅं अब आपसे रिश्ता हो गया ही समझो तो आप जो भी कहेंगे हमें मानना ही होगा।
लड़के के पिता ने कहा नही साहब मैं किसी भी तरह से आप पर दबाव नही बनाना चाहते हैं लेकिन हमारी एक समस्या है। आप लड़की वाले हैं आपकी परेशानी मैं समझता हूॅं। लेकिन क्या करूं समय की नजाकत तथा हमारी हालात को देखते हुए मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूॅं आप जितनी जल्दी हो सके हमें हमारी बहू दे दें। हम शीघ्र ही शादी करना चाहते हैं।
श्रीधर बाबू ने कहा इस बारे में मैं अभी कैसे बता सकता हूॅं मैं अपने भाईयों तथा घर-परिवार से बात करके आपको बता दूंगा वैसे आप इतनी जल्दी क्यों कर रहे हैं? आज तो सगाई हुई है कमसे कम मुझे छः माह का समय तो दीजिए। मैं लड़की वाला हूॅं और घर का अकेला आदमी हूॅं इसलिए मुझे थोड़ा समय तो दीजिए।
लड़के के पिता ने कहा साहब आप सही कह रहे हैं मैं भी इसी पक्ष में था इसीलिए मैंने सगाई की लेकिन जैसा कि मैनें आपको बताया कि समय की नजाकत है जिस कारण मैं चाहता हूॅं कि शादी जल्दी हो।
आखिर बात क्या है जो आपको इतनी जल्दी हो रही है कमसे कम हमंे पता तो चले।
लड़के के पिता ने कहा कि साहब क्या बताउूं जब आदमी का नसीब खराब होता है तो वह सोचता कुछ और है और नियति कुछ और मंजूर होता है। असल में बात यह है कि मेरी पत्नी को छाती में दर्द की शिकायत पिछले दो साल से थी उसका इलाज भी चल रहा था। ड़ाक्टरों ने कहा था कि किसी प्रकार की परेशानी नही है, लेकिन पिछले हफ्ते नियमित चेकअप के दौरान पता चला कि उसकी बीमारी काफी बढ़ गयी है ड़ाक्टरों को शंका है कि हो सकता है कि उसे कैंसर हो। ड़ाक्टरों का कहना है कि अभी कुछ कहा नही जा सकता है। उसके टेस्ट बाहर भेजे हैं वहां से पन्द्रह दिनों में रिर्पोट आयेगी। अगर कहीं कछ गड़बड़ हुई तो फिर हमें समय नही होगा। इसलिए जितनी जल्दी हो सके मैं अपनी बहू को अपने घर ले जाना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि अगले पांच-छः महिनों में अपनी बेटी आशा के हाथ भी पीला कर दूं।
श्रीधर बाबू सुनकर सन्न रह गये। उन्हौंने कहा अरे साहब ये क्या कह रहे हैं। भगवान करें ऐसा कुछ भी न हो। जैसा आप कहें मैं तैयार हूं।  कहते हुए श्रीधर बाबू का गला रूंध गया।
थोड़ी देर बात करके श्रीधर बाबू और लड़के के पिता बाहर आये श्रीधर बाबू की नम आंखें देखकर उनके घर वाले तथा नाते रिश्तेदार काफी परेशान हो गये। वे समझ नही पा रहे थे कि अचानक क्या हो गया।
श्रीधर बाबू ने मेहमानों को बिदा किया और चुपके से अपने कमरे में चले गये। उनकी पत्नी उनके पीछे-पीछे आई और उनसे पूछने लगी कि अचानक क्या बात हो गई जो आपकी आंखें नम हो गईं?
श्रीधर बाबू ने कहा कि क्या बताउूं लड़के के पिता शादी जल्दी चाहते हैं।
कितनी जल्दी?
अरे जल्दी का मतलब एक महिने के अन्दर।
अरे ये क्या बात हुई इतनी जल्दी थी तो उन लोगों को पहले बताना चाहिए था हम सगाई में इतना खर्च नही करते सीधे शादी कर देते।
अरी भागवान उनकी भी तो कोई मजबूरी होगी।
ऐसी भी क्या मजबूरी है?
है कोई मजबूरी।
अरे क्या मजबूरी है? हो न हो उनकी कुछ मांग या ड़िमांड़ हो।
अरी भागवान सबको एक की तराजू में क्यों तौलती हो। कम से कम आदमी का स्वभाव और व्यवहार तो देखा कर।
अजी रहने दो। तुम तो रहे सीधे के सीधे। अगर कुछ जल्दी थी तो हमें सगाई के लिए नही कहते और आज शादी हो जाती।
तुम ठीक कहती हो लेकिन दुनियां में और भी तो कई प्रकार की परेशानियां हैं जिनको वही जानता है जो भुगत रहा होता है।
पत्नी की जिद करने पर श्रीधर बाबू ने अपनी पत्नी व बेटे, बेटी से पूरी बात बिस्तार से बताई। सब सुनकर चुप हो गये। श्रीधर बाबू ने कहा कि आखिर वे अब हमारे रिश्तेदार हैं उनकी परेशानी हमारी परेशानी है। इसलिए उनकी सुविधानुसार शादी जल्दी की जायेगी।
अभी सब लोग बातें कर रही रहे थे कि अचानक फोन की घंटी बज उठी।
श्रीधर बाबू ने फोन उठाया तो उधर से श्री कैलाश जी उनके समधी ने फोन पर दुवा सलाम के बाद बताया कि मान्यवर आप बच्चों की शादी को लेकर परेशान न हों मैं कल परसों में पड़ित जी से दिन कराकर आपके पास हाजिर होता हूॅं। आपको सिर्फ पचास सौ आदमियों के खाने की व्यवस्था करनी है बाकी हमें किसी प्रकार का सामान या दहेज नही चाहिए। आपकी दुवा से हमारे पास सबकुछ है बस हम चाहते हैं कि हमारी बहू हमारे घर आ जाय।
श्रीधर बाबू ने कहा जैसा आप चाहें, हम तैयार हैं जी।
फोन रखने के बाद श्रीधर बाबू ने अपनी पत्नी को फोन पर हुई बात का शारांस बताया और बोले।
सच कहूं सीमा की मां, भगवान ने हमें ऐसे लोगों से मिलाया है जैसे हम चाहते थे। मैं समझता हूं हमारी सीमा वहां सुखी रहेगी। तकलीफ बस इसी बात की है कि कैलाश जी की पत्नी की तबियत खराब है। भगवान करें उनकी तबीयत ठीक रहे। सच सीमा की मां आज मुझे अपने बाबू जी की एक बात याद आ रही है वे हमेशा कहते थे कि बेटा यदि आदमी की नियत सही है तथा उसके कर्म यदि सही हैं तो भगवान देर से ही सही उसकी सुनता है। सच में आज हमारे पितरों का आर्शीवाद हमारे लिए फलीभूत हो रहा है। हो भी क्यों नही उनके ही आर्शीवाद से तो हमारा अस्तित्व है। बस मलाल इस बात का है कि सीमा की सास की तबीयत खराब है।
सीमा ने कहा बाबू जी मेरा मन कहता है कि भगवान की कृपा से मेरी सास ठीक हो जायेगीं। भगवान इतने निर्दयी नही हैं।
अभिषेक ने कहा हां बाबू जी दीदी ठीक कहती हैं।
अगले दिन कैलाश जी का फोन आया कि हैदराबाद से रिर्पोट आ गई हैं ड़ाक्टरों का कहना है कि छाती में परेशानी तो हैं लेकिन बीमारी पहली स्टेज में पकड़ी गई है। उन्हौंने दवाई शुरू कर दी हैं,एक-दो माह में सब ठीक हो जायेगा।







dinesh dhyani

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हिमालय की आवाजः चिपकों आन्दोलन
दिनेश ध्यानी

   विश्व प्रसिद्ध चिपको आन्दोलन के बारे में सभी जानते हैं लेकिन इस आन्दोलन की जननी गौरा देवी को कम ही लोग जानते हैं। इस आन्दोलन को विश्व पटलपर स्थापित करने वाली महिला गौरा देवी ने पेड़ों के महत्व को समझा इसीलिए उसने आज से 38 साल पहले  जिला चमोली के रैंणी गांव में जंगलों के प्रति अपने साथ की महिलाओं को जागरूक किया। तब पहाड़ों में वन निगम के माध्यम से ठेकेदारों को पेड़ काटने का ठेका दिया जाता था। गौरा देवी को जब पता चला कि पहाड़ों में पेड़ काटने के ठेके दिये जा रहे हैं तो उसने अपने गांव में महिला मंगलदल का गठन किया तथा गांव की औरतों को समझाया कि हमें अपने जंगलों को बचाना है। आज दूसरे इलाके में पेड़ काटे जा रहे हैं हो सकता है कल हमारे जंगलों को भी काटा जायेगा। इसलिए हमें अभी से इन वनों को बचाना होगा। गौरा देवी ने कहा कि हमारे वन हमारे भगवान हैं इन पर हमारे परिवार और हमारे मवेशी पूर्ण रूप से निर्भर हैं।
25 मार्च सन् 19274 की बात है। उस दिन रैणी गांव के अधिकांश मर्द चमोली गये हुए थे। गांव में अधिकांश महिलायें ही थीं। उसी रोज वन निगम के ठेकेदार अपनी लेबर के साथ रैणी के जंगलों को काटने के लिए यहां पहुंचे। गौरा देवी को जब पता चला तो उसने तो गौरा देवी ने महिला मंगलदल की औरतों को इकट्ठा किया और उन्हें समझाया कि यदि आज हमारे गांव के जंगल यो ही काटे जायेंगे तो कल हमारा क्या होगा? हमारा जीवन इन्हीं वनों पर निर्भर है इसलिए हम कुछ भी करें लेकिन अपने वनों को नही कटने देंगे। साथ की महिलाओं ने कहा कि हम क्या कर सकते हैं? तो गौरा देवी ने कहा कि हमउ न पेड़ों पर चिपक जायेंगी जिन्हें ठेकेदार के आदमी काटने आयेंगे। हम उन्हें कहंेगी कि पहले हमे मारो हमारेे टुकड़े करो तब इन पेड़ों को छुओ। गौरा देवी इसी संकल्प को लेकर अपनी सहेलियों के साथ जंगल में गई। जंगल में ठेकेदार के आदमी उस समय अपने लिए खाना पका रहे थे। गौरा देवी ने उन्हें कहा कि अपना खाना खाओ और चुपचाप यहां से निकल पड़ो यहां अगर तुमने पेड़ काटने की सोची तो ठीक नही होगा। ठेकेदार के एक आदमी ने गौरा देवी पर अपनी बन्दूक तान कर कहा कि तुम जैसी महिलाओं को हम रोज खदेड़ते हैं तुम चुपचाप अपने घर चली जाओ। गौरा देवी ने कहा कि ये जंगल हमारे देवता हैं और यदि हमारे रहते हुए किसी ने हमारे देवता पर हथियार उठाया तो फिर तुम्हारी खैर नही। कुछ देर बार जब ठेकेदार के आदमी पेड़ो को काटने पहंुचे तो गौरा ने अपनी सहेलियों सहित पेड़ों पर चिपट कर उन्हें ललकारा कि यदि तुमने इन पेड़ों को काटा तो बहुत बुरा होगा। यदि तुम्हें पेड़ काटने ही हैं तो पहले हमें मारो। काफी जिद्दोजेहद के बाद ठेकेदार के आदमियों को जंगल से वापस अपने ड़ेरों में आना पड़ा। गौरा देवी जानती थी कि आज तो ये लोग वापस चले गये हैं लेकिन फिर ये आयेंगे और इन पेड़ो को काटेंगे।  आदमियों को कहा कि पहले हमें मारो तब इन जंगलों को काटो। ये हमारे आश्रयदाता हैं इनके बिना हमारे जन-जीवन का महत्व नही है। उस दिन गौरा देवी तथा उनकी सहेलियों के कारण पेड़ काटने का कार्यक्रम ठेकेदार के आदमियों ने निरस्त कर चले गये लेकिन गौरा देवी को शंका थी यदि वे जंगल से घर चली गई तो ये फिर पेड़ काटने आयेंगे इसलिए उनमें से कुछ महिलायें वहीं जंगल में डेरा ड़ालकर बैठ गई। रैणी के लोगों को जब गौरा देवी के जुझारूपन तथा जंगलों के प्रति उनके लगाव को देखा तो वहां के लोग उनके साथ हो लिए। अगले दिन चमोली से लौटकर गांव के लोगों ने बैठक की और ठेकेदार तथा स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों के सामने अपनी बात रखी। अन्ततोगत्वा यह तय हुआ कि रैंणी गांव का जंगल नही काटा जायेगा।
गौरा देवी का जन्म जन्म चमोली जिले के लाता गांव में एक मरछिया गांव में हुआ। गौरा देवी जब 22 वर्ष की थी तब उसके पति का देहान्त हो गया था। बाल विधवा गौरा देवी ने अपने नवजात शिशु के सहारे अपना जीवन अपने ससुराल में रहते हुए अपने बेटे की परवरिश करने के साथ-साथ अपने जीवन को जंगल और अपने गांव के लोगों के हितों के प्रति समर्पित कर दिया।
रैणी के जंगलों को बचाने के बाद गौरा देवी ने रैणी महिला मंगलदल के माध्यम से क्षेत्र के कई गांवों में लोगों को प्रकृति तथा पर्यावरण के प्रति जागरूक किया। उन्हौंने लोगों को बताया कि यदि हम आज अपने वनों तथा पेड़ों का संरक्षण करंेगे तो हमारे साथ-साथ हमारी आने वाली पीढ़ियों को इसका फायदा होगा। गौरा देवी ने वनों की सुरक्षा के अतिरिक्त महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के लिए कई प्रयास किये। गांव में महिलाओं को साक्षर बनाने के लिए कार्य किया। गौरा देवी की जन्म स्थली उत्तराखण्ड में आज चिपको से सीख लिये जाने की आवश्यकता है।
मध्य हिमालय की शान्त वादियों में सदा से यहां का जन मानस तथा वनों के बीच घनिष्टता का संबध रहा है। यहां के लोगों का जीवन इन्हीं वनों पर आधारित रहा है। अपने जीवन यापन से लेकर अपने मवेशियों की उदर पूर्ति, ईंधन के रूप में लकड़ी आदि के लिए लोग सदा से ही जंगलों पर निर्भर रहे है। यह बात भी सच है कि समय-समय पर यहां के लोगों ने इन वनों को अनावश्यक रूप से हानि भी पहुंचाई यही कारण है कि आज मध्याहिमालय के वनों का क्षेत्रफल घटता जा रहा है। हालात आज काफी खराब हो चुके हैं कि यहां न तो वन बचे हैं और न नदियों में पानी। यहां का वातावरण जो जंगलों के कारण सदा ही सुहावना और वन तथा घन युक्त रहता था आज यहां के पहाड़ों में भी भयंकर गर्मी से दो-चार होना पड़ता है। वनों को हमारे जीवन में कितना महत्व है इस बात को अधिकांश लोग आज भी या तो समझ नही पाये हैं या समझते हुए भी वे लालच व स्वार्थवश इन वनों का विनाश जारी रखे हुए हैं।
चिपको आन्दोलन को जन-जन तक पहुंचाने वाली वीरांगना गौरा देवी को  हमारे नीति नियंताओं ने भुला दिया। चिपको आन्दोलन के नाम पर कई लोगों ने अपनी दुकाने खोलीं और कई तो विश्वपटल पर भी छा गये लेकिन गौरा देवी को उसकी सोच और दूरदर्शिता के लिए जो सम्मान दिया जाना चाहिए था वह अभी तक नही दिया गया है। आज जब कि गौरा देवी हमारे बीच नही है उनके विचारों को आने वाली पीढ़ियां सदा ही याद रखेंगी तथा उससे सबक लेंगी। गौरा देवी को वनों से संबधिक नीति बनाने तथा जंगलों की सुरक्षा आदि के लिए आगे लाया जाता तो हिमालय की यह लौह महिला अपने अनुभवों तथा भावों के माध्यम से वनों की और अच्छे तरीके से सुरक्षा तथा व्यवस्था आदि के प्रति समाज का मार्ग दर्शन कर सकती थी। गौरा देवी ने आजीवन अपने प्राकृतिक संसाधनों, जंगलों की सुरक्षा तथा संरक्षण के लिए संर्घष किया यद्यपि आज गौरा देवी के योगदान को भुला सा दिया गया है लेकिन आने वाली पीढ़ियों गौरा देवी के त्याग और साहस की गाथा को याद रखेंगी।







dinesh dhyani

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मान्यवर भैजी जायड़ा साहब आपकु भौत-भौत धन्यवाद मेरू हौसल अफजाई कन कु वास्त। भैजी आप जन ल्वखु क दगड़ मा देखि भाळिकि जो बि सीक वैथैं कि कागज फर उतरण कु प्रयास करदु। आशा चा कि आप ल्वखु कु स्नेह और प्यार इन्नि मिलणू रालु अर हम सब्बि भै-बैंण उत्तराखण्ड रूपि माल कि यी द्वी मोतियों कुमौं अर गढ़वलि बोल्यिूंथैं भाषा का रूपमा मान्चता दिलौंण का वास्त सफल हूूल। आपकु एक बार फिर धन्यवाद भैजि।।
आपकु हि
दिनेश ध्यानी


 

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