श्रीदेव सुमन की 65 वीं पुण्य तिथि पर
संसद में उनका तैल चित्र लगाने की मांग
दिनेश ध्यानी
नई दिल्ली विगत 25 जुलाई, 2009, राजशाही के खिलाफ अपने प्राणों की आहुति देने वाले भारत माता के अमर सपूत श्री श्रीदेव सुमन की 65 वीं शहादत पर उनको भावभींनी श्रृद्धाॅंजलि अर्पित की गई तथा केन्द्र सरकार से मांग की गई कि श्रीदेव सुमन का एक तैल चित्र संसद भवन में लगाया जाए। गढ़वाल भवन नई दिल्ली में आयोजित सभा में उत्तराखण्ड आन्दोलनकारी समन्वय समिति के उपाध्यक्ष एवं पूर्व राज्य मंत्री श्री धीरेन्द्र प्रताप ने एक प्रस्ताव के माध्यम से श्रीदेव सुमन का तैलचित्र संसद में लगाने की मांग की। सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया गया।
टिहरी उत्तरकाशी जन विकास परिषद एवं श्रीदेव सुमन ट्रस्ट के सौजन्य से आयोजित इस सभा में उत्तराखण्ड के विभिन्न सामाजिक एवं राजनैतिक संगठनों के प्रतिनिधियों, पत्रकारों एवं साहित्यकारों ने भाग लिया। जिनमें सर्वश्री कुलानन्द भारतीय पूर्व महानगर पार्षद शिक्षा, पूर्व राज्य मंत्री धीरेन्द्र प्रताप, प्रताप सिंह असवाल, पूर्व अध्यक्ष टिहरी उत्तरकाशी जनविकास समिति एवं अध्यक्ष श्रीदेव सुमन ट्रस्ट, लाखीराम ड़बराल, गंभीर सिंह नेगी अध्यक्ष टिहरी उत्तरकाशी जनविकास परिषद, एस.एन. बसलियाल वरिष्ठ उपाध्यक्ष टिहरी उत्तरकाशी जनविकास परिषद, श्री बृजमोहन उप्रेती युवा नेता एवं समाजसेवी, श्रीमती कमला रावत अध्यक्ष गंगोत्री सामाजिक संस्था, श्री दिनेश ध्यानी साहित्यकार एवं कवि, श्री चारू तिवारी वरिष्ठ पत्रकार, वीरेन्द्र सिंह नेगी, कैलाश पाण्डेय एवं कवियत्री श्रीमती मीना पाण्डेय, दयाल पाण्डेय, सहित कई गण्यमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया।
सभा अध्यक्षता कर रहे श्री भारतीय जी ने कहा कि देश और समाज में कुछ ही लोग होते हैं जो अपने जीवनकाल में ऐसे पद चिन्ह छोड़ जाते हैं जिनका अनुसरण कर हम अपने जीवन का धन्य बनासकते हैं। ऐसे कम ही मनीषी होते हैं जो समाज में अपना स्थान छोड़ जाते हैं। श्रीदेव सुमन भी उन्हीं मनीषियों में से हैं जिन्हौंने सामन्तशाही और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी शहादत दे दी। ज्ञातव्य हो कि टिहरी में सामन्त शाही के खिलाफ लगातार 84 दिनों तक भूखहड़ताल करने वाले क्रान्तिवीर श्रीदेव समुन को सामन्तशाही के गुण्डों ने हत्या कर दी थी। आज सुमन जी शरीर से हमारे बीच नही हैं लेकिन उनके विचार और कार्य हमें सदा ही आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहेंगे।
आईए हम सुमन जी जैसे दिवंगत विभूतियों के कार्यों से प्रेरणा लें और उनके अधूरे कार्यों का पूरा करने का प्रयास करेे।