जन्मदाता मां का तिरस्कार करके क्या भला होगा.........?
दिनेश ध्यानी
मेरे कार्यालय में एक लड़का है वह अपने पिता की जगह नौकरी पर लगा। उसके साथ उसकी बूढ़ी मां एवं बेरोजगार छोटा भाई भी रहता था। कुछ समय तक तो सब ठीक रहा लेकिन एक दिन अचानक उसके जीवन में एक कन्या का आगमन हुआ जो कि हमारे ही कार्यालयम में सेवारत थी। यह भी बताता चलूं कि वे दोनों अलग-अलग समाज से हैं। लेकिन प्यार अंधा होता है इसलिए प्यार की पींग बढ़ते बढते शादी में तब्दील हो गया। चूंकि वह घर का बड़ा एवं रोजगार वाला था इसलिए मां व भाई के लाख न चाहने पर भी उसने उस लड़की से शादी कर ली। शादी के तुरंत बाद नव दम्पति का आचरण दिनांेदिन बूढ़ी मां और भाई के प्रति कूzर से कzूरतम होता चला गया। बूढ़ी मां और भाई ने जितना सहन करना उतना किया लेकिन आखिर कब तक बात छिपी रहती। रिश्तेदारों एवं पड़ोसियों को पता चला। हालात इस कदर खराब हो गये कि दोना पति-पत्नी बाहर से खाकर आते और घर में उसका छोटा भाई और मां भूखी रहतीं। बुढ़िया को जो पंेशन मिलती थी उससे मुश्किल से माह के दस-पन्दzह दिनों का राशन आदि होता था बाकी के पन्दzह दिनों में से अधिकतर यूं ही फांका होकर गुजरते।
एक दिन बुढ़िया और उसके बेटे की पीड़ा पड़ोसियांे तक पहुंची तो दो-चार भले इंसान उस बड़े बेटे को समझाने की खातिर उनके घर पहंुचे क्योंकि सब एक आWफिस के थे इसलिए सोचा कि शायद बात बन जाये। लेकिन उनके आते ही उस बुढ़िया का बड़ा बेटा कहता है कि मैं इनको नही रख सकता। इन्हें कह रहा हूं कि प्रताप विहार वाले मकान में चले जाओं क्यों नही जाते हो? बुढियां मां ने कहा कि वहां एक कमरा है, न दरवाजे हैं न कुछ व्यवस्था खुले मकान में कहां जायें? वह बोला तुम यहां से जाओ, तुम्हारे पति को जो मकान मिला था वह चपरासी मकान था, मैं अब बाबू बन गया हूूं इसलिए न मकान और न ही मेरी कमाई पर तुम्हारा अधिकार है। बूढ़ी मां के आंसू एवं छोटे भाई का सूना चेहरा सबकुछ कह रहा था लेकिन पड़ोसी और रिश्तेदार कर भी क्या सकते थे।
बुढ़िया का वह बड़ा बेटा बोला कि कल सबुह तुम यहंा नही रहोगे। बुढ़िया ने सोचा कि जो भी हो यहां से जाना ही अच्छा है इसलिए पड़ोसियों को बोलकर और एक दो लोगों से मान मनोब्बल करके अगले दिन सुबह एक टैंम्पों बुलाकर बुढिया का सामान उसमें लाद दिया। जब कमरे से बुढ़िया सामान समेट रही थी तो उसके छोटे बेटे ने कहा कि में विस्तर के साथ एक बाल्टी और कुछ ड़िब्बे भी रख लो, तो बुढ़िया मां ने कहा कि बेटा रहने दे हम काम चला लेंगे, इनके डिब्बे हैं फिर इनको खरीदने पड़ेंगे। एक स्कूटर में सामान लाद कर मां-बेटे नम आंखों से पड़ोसियों से विदा लेकर अपने मकान में चले गये। यहां यह भी बताते चलें कि उसकी बहू और बड़ा बेटा उनके जाने से पहले ही घर से गायब हो चुके थे और बुढिया मां को बोल गया कि जाते हुए चाबी पड़ोस में दे देना।
बुढ़िया ने वहां जैसे तैसे कर दिन काटे। उसकी ममता ने एक बेटे को तो पति की नौकरी दिला दी थी लेकिन उसके दामन को थामें जो छोटा बेटा उसके साथ खड़ा था उसके भविष्य की चिंता उसे खाये जा रही थी। लेकिन कहीं भी छोटे वाले की नौकरी नही लगी। दोनों मां-बेटे काफी परेशानी में अपने दिन काट रहे थे। बड़ा बेटा और उसकी पत्नी ने कभी भी मुड़कर नहीं देखा कि बुढ़िया मां और वेरोजगार भाई कैसे होंगे।
काफी लम्बे अन्तराल के बाद आज अचानक उसका छोटा बेटा मुझे कैन्टीन में मिल गया। मैंने कहा यहंा कैसे आये? वह बोला भाई साहब मैं भी यहीं लग गया हूं। मैंने उसकी मां की असल-कुशल पूछी तो वह बोला मां अब ठीक है। मैंने भी शादी कर ली है और हमने गाजियाबाद वाला मकान बेचकर अन्यत्र मकान ले लिया है। हम दोनों बात कर ही रहे थे कि सामने से उसकी भाई भी आगया। छोटा उसके पास नमस्ते करने जा ही रहा था कि वह बड़ा छोटे भाई को दूर से देखते ही वापस हो गया। ऐसा लगा कि उसके मन में अभी भी अपने छोटे भाई एवं माता जी के प्रति विद्वेष कम नहीं हुआ।
मैं सोच में पड़ गया कि तटस्थ रहकर देखा जाये तो इस सज्जन ने परेशान किया अपनी माता जी को और छोटे भाई को, घर से दर बदर किया इन्हीं लोगों को और फिर भी उनके प्रति अभी तक इस प्रकार की कुंठा और बैर क्यों? जब कि उसके भाई से बात करने से पता चला कि वह अपने भाई और भावी का अभी भी आदर करता है। मां को तो कहना ही क्या? कहते हैं न कि मां का दिल तो ऐसा होता है कि अगर बेटे लाख बुराई करें, लाख तिरस्कार करंे फिर भी उसके मुंह से कभी भी बेटों के लिए कुछ भी गलत नहीं निकलता। लेकिन उन कलयुगी बेटों को क्या हो गया जो अपने जन्मदाता और जीवन दाता मां-बाप को इस कदर दर बदर ठोंकरे खाने को मजबूर कर देते हैं?