Author Topic: Articles By Mera Pahad Members - मेरापहाड़ के सदस्यों के द्वारा लिखे लेख  (Read 15325 times)

kundan singh kulyal

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न बदली म्यार गौं -:

         मी पुर उत्तराखंड कै बार मैं त ना जान्नु परन्तु अपना गौं का बार मैं त भली क्यें परचित छू........
 उत्तराखंड आन्दोलन का समय की बात हैं तब हम ज्यादा समझदार नहीं थे हम भी अपने स्कूल के सीनियर बिधार्थियों के साथ अपने स्कूल से नारे लगते हुवे अपने छोटे से कसबे तक जाते थे, फिर नारे लगते हुवे अपने गाँव चले जाते थे, भले ही हमारी आवाज आगे तक नहीं पहुचती होगी लेकिन हमारे जोश मैं कोई कमी नहीं थी|
        हम अप्न्हा ठुला थै पुच्छ्या दाज्यू हमर उत्तराखंड बन जाल त हमौ कै की करन होलू,  तब उन लोग बतौछी की हमर राज्य बन जाल त हमरी पहाड़ी सरकार होली हमरी अपन पहाड़ मैं राजधानी होली अपन स्कूल मैं यक बिषय पहाड़ी भाषा ले होलू हमर पहाड़ मैं खूब विकाश होलू हमोली नौकरी कर्नाहन दिल्ली, बम्बई ना जन पड्लू हम अपने पहाड़ मैं नौकरी कार्ला|
       समय बितते गों ये बिच मैं हमर राज्य ले अलग है गयु जब राज्य की घोषणा भै "इंडिया टुडे" का पहला पन्ना मैं लिखा था "प्रस्तावित राजधानी नैनीताल मुख्या मंत्री निशंख" फिर रातभरि मैं जनि की भो रतेहन मालूम पड्छ कि राजधानी त देहरादून निस्गे मुख्य मंत्री ले अपन पहाड़ी ना छ|
    हमर पहाड़ी त येई मैं खुस छि कि येती लड़ाई लड़ने बाद आज हम जित्या यु कैली ना सोच्यु कि भोवहन कि होलू हमर राज्य बन्ने पीली नेतोली उमै कुरी ब्वे दे जस्य कुरिक झाड़ हमर खेतों कै बर्बाद करनी उस्याई उ दिनै लगायी कुरी अज हमर पुर पहाड़ मैं फ़ैल गै|
          आज हमर गौं का हालत ज्यू का त्यु बनया छान १० साल पीली जू गाँव का हल छि आज उहैले ख़राब हैं गयी,हमर गौं बिलकुल ना बदली घरों मैं पैप लागरी त उनो मैं पानी नि ओनु, घरो मैं बल्ब लागरी बिजलीक ओछी त लो वोल्टेज, गौनो मैं खडंज लगा राखि त उन येती खतरनाक छान कि उनों मैं ठोकर लागिबेरै कती लोग घायल हैं गयी, ठेकदार, नेतालोग जरूर बदली गै, इन १० सालों मैं ना स्कूल खुल्यु ना अस्पताल ना पोस्ट ऑफिस ना ही इन १० सालों मैं कै खै राज्य सरकार मैं नौकरी मिल्ली, जब ले हम अपन गौं जाना त मी कै अपन द्ज्यु लोगोंकी कये बातयद् ओउछी उन लोग उ टाइम मैं कि कौछी आज कि भो........ सायद हमर पहाड़ मई सबै गौं का इने हल होल.......
                                                                             

                                                                                             कुंदन सिंह कुल्याल
                                                      लाधिया घटी (चम्पावत)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  कुंदन दा धव्यवाद आपुन विचार व्यक्त कारन क लीजी!

वास्तव में उत्तराखंड राज्य बन भे जिस विकास हूँ चै छि वो देखन में नि आयी! जस जनता ले सोची रछि उस किस्म क विकास के देखन में नि आई !

न बदली म्यार गौं -:

         मी पुर उत्तराखंड कै बार मैं त ना जान्नु परन्तु अपना गौं का बार मैं त भली क्यें परचित छू........
 उत्तराखंड आन्दोलन का समय की बात हैं तब हम ज्यादा समझदार नहीं थे हम भी अपने स्कूल के सीनियर बिधार्थियों के साथ अपने स्कूल से नारे लगते हुवे अपने छोटे से कसबे तक जाते थे, फिर नारे लगते हुवे अपने गाँव चले जाते थे, भले ही हमारी आवाज आगे तक नहीं पहुचती होगी लेकिन हमारे जोश मैं कोई कमी नहीं थी|
        हम अप्न्हा ठुला थै पुच्छ्या दाज्यू हमर उत्तराखंड बन जाल त हमौ कै की करन होलू,  तब उन लोग बतौछी की हमर राज्य बन जाल त हमरी पहाड़ी सरकार होली हमरी अपन पहाड़ मैं राजधानी होली अपन स्कूल मैं यक बिषय पहाड़ी भाषा ले होलू हमर पहाड़ मैं खूब विकाश होलू हमोली नौकरी कर्नाहन दिल्ली, बम्बई ना जन पड्लू हम अपने पहाड़ मैं नौकरी कार्ला|
       समय बितते गों ये बिच मैं हमर राज्य ले अलग है गयु जब राज्य की घोषणा भै "इंडिया टुडे" का पहला पन्ना मैं लिखा था "प्रस्तावित राजधानी नैनीताल मुख्या मंत्री निशंख" फिर रातभरि मैं जनि की भो रतेहन मालूम पड्छ कि राजधानी त देहरादून निस्गे मुख्य मंत्री ले अपन पहाड़ी ना छ|
    हमर पहाड़ी त येई मैं खुस छि कि येती लड़ाई लड़ने बाद आज हम जित्या यु कैली ना सोच्यु कि भोवहन कि होलू हमर राज्य बन्ने पीली नेतोली उमै कुरी ब्वे दे जस्य कुरिक झाड़ हमर खेतों कै बर्बाद करनी उस्याई उ दिनै लगायी कुरी अज हमर पुर पहाड़ मैं फ़ैल गै|
          आज हमर गौं का हालत ज्यू का त्यु बनया छान १० साल पीली जू गाँव का हल छि आज उहैले ख़राब हैं गयी,हमर गौं बिलकुल ना बदली घरों मैं पैप लागरी त उनो मैं पानी नि ओनु, घरो मैं बल्ब लागरी बिजलीक ओछी त लो वोल्टेज, गौनो मैं खडंज लगा राखि त उन येती खतरनाक छान कि उनों मैं ठोकर लागिबेरै कती लोग घायल हैं गयी, ठेकदार, नेतालोग जरूर बदली गै, इन १० सालों मैं ना स्कूल खुल्यु ना अस्पताल ना पोस्ट ऑफिस ना ही इन १० सालों मैं कै खै राज्य सरकार मैं नौकरी मिल्ली, जब ले हम अपन गौं जाना त मी कै अपन द्ज्यु लोगोंकी कये बातयद् ओउछी उन लोग उ टाइम मैं कि कौछी आज कि भो........ सायद हमर पहाड़ मई सबै गौं का इने हल होल.......
                                                                             

                                                                                             कुंदन सिंह कुल्याल
                                                      लाधिया घटी (चम्पावत)

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बुडापे के आंसू - को सुन्दूं मेरी खैरी, को गणदू मेरा दुःख
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इस तरफ से उत्तराखंड एक अलग राज्य बनाने के बाबजूद, पलायन का दंश झेल रहा है, उस पर नरेन्द्र सिंह ji ka yah gaya bilkul sateek baithta hai!
 
I strongly feel there is increase in migration rate even after formation of new State. The objective behind formation of Uttarakhand state was to stop migration from hills to generate ample sources of employment but nothing such could happened.
 
I see the condition of old aged people who kids have left the pahad. They have only painful old age and lonliness. Once, they used to have full family 3-4 kids not they lead a solitary life.
 
 

kundan singh kulyal

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स्वतंत्रता दिवस की तयारियां जोरों पर हैं प्राथमिक शाला से लेकर लाल किला तक, गाँव की गलियों से लेकर शहर के चौराहों तक, बच्चों से लेकर बूढों तक,  १५ अगस्त इस दिन पूरा देश राष्ट भक्ति मैं रंग जाता हैं, चरों तरफ देश भक्ति के गीत ही सुनाई देते है, देश भक्ति के नारे लगाते हुए स्कूली बच्चे हाथों मैं तिरंगा लिए कितने प्यारे लगते हैं, इस दिन लोगों मैं कितना उत्साह दिखाई देता हैं हर किसी की जुबान से देश भक्ति की ही बातें सुनने को मिलती हैं लोगों मैं एक दुसरे के प्रति कितना प्रेम दीखता हैं, जिनका नाम कभी किसी की जुबान पर नहीं आता हैं इस दिन उनके ही चर्चे सुनने को मिलते है कही गाँधी जी के तो कही नेताजी के कही आज़ाद के तो कही भगत सिंह के, इस दिन ऊँच नीच, छोटा बड़ा, मजदूर अधिकारी, अमीर गरीब, सब एक सामान दिखाई देते हैं किसी को किसी के प्रति भेद भाव नहीं दीखता, इस दिन सभी लोगों के चेहरे पर कितनी मुस्कान दिखाई देती हैं,चरों तरफ कितनी खुशहाली नजर आती हैं.....इस दिन तो सच मैं लगता हैं..... "सरे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा"
जैसे ही १६ अगस्त का सूरज उदय होता हैं सड़कों के किनारे धूल मैं पड़े छोटे छोटे तिरंगे दिखाई देते हैं यहाँ तक की लोग इनके उप्पर पैर रखकर आगे बढ़ जाते हैं फिर वही दिन्चारिया सुरु हो जाती है कही पर राष्ट भक्ति की बातें सुनने को नहीं मिलती कोई देश भक्ति की बातें करता भी हैं तो चार लोग मजाक करने वाले मिल जायंगे देखो गाँधी जी आ गए ये देश का उद्धार करंगे, हर एक दुसरे को नफरत भरी निगाहों से देखता हैं, ग्राहक को दुकानदार लूट रहे हैं ठेकेदार मजदूरों को लूट रहे है ठेकेदारों को अधिकारी लूट रहे हैं अधिकारीयों को नेता लूट रहे हैं जहाँ भी जाओ बिना रिश्वत के कुछ काम नहीं होता चपरासी से लेकर अधिकारी तक का % फिक्स हैं किसी भी दफ्तर मैं जाओ मिनट का कम घंटों मैं घंटे का काम दिनों मैं दिन का काम महीनो मैं महीने का काम सालों मैं होता हैं, आम आदमियों को तो छोटे से कम के लिए दफ्तरों के इतने चक्कर कटवाए जाते हैं आज साहब बिजी हैं  दुसरे दिन साहब मीटिंग मैं हैं तीसरे दिन साहब छुट्टी मैं हैं चौथे दिन साहब अभी आये नहीं पांचवे दिन साहब... मजबूर होकर रिश्वत देना ही पड़ता हैं नहीं तो काटते रहो चक्कर पे चक्कर,  सफ़ेद, खाकी. और काले कोट के चक्कर मैं जो फंस गया सायद ही उससे बड़ा कोई दुखी इंशान दूसरा कोई हो, जहाँ भी देखो छोटा बड़ा,तेरा मेरा,लड़ाई झगडे,लूट पाट,चोरी डगैती,मार धाड,गुंडा गर्दी,न किसी की इज्जत न किसी का सम्मान,  अखबार पढो या टीवी देखो वहां भी कही बलात्कार तो कही भ्रष्टाचार कही हत्या तो कही अत्याचार कही बम धमाके कही अक्सिडेंट, नेताओं का तो एक ही काम हैं  तुम भी खावो मैं भी खाऊँ दोनों की बहार....  ये सब देखकर तो एक फ़िल्मी डयलोग याद आ जाता हैं "सौ मैं से अस्सी बेमान फिर भी मेरा देश महान"

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत सुंदर कुंदन...दा

स्वतंत्रता दिवस की तयारियां जोरों पर हैं प्राथमिक शाला से लेकर लाल किला तक, गाँव की गलियों से लेकर शहर के चौराहों तक, बच्चों से लेकर बूढों तक,  १५ अगस्त इस दिन पूरा देश राष्ट भक्ति मैं रंग जाता हैं, चरों तरफ देश भक्ति के गीत ही सुनाई देते है, देश भक्ति के नारे लगाते हुए स्कूली बच्चे हाथों मैं तिरंगा लिए कितने प्यारे लगते हैं, इस दिन लोगों मैं कितना उत्साह दिखाई देता हैं हर किसी की जुबान से देश भक्ति की ही बातें सुनने को मिलती हैं लोगों मैं एक दुसरे के प्रति कितना प्रेम दीखता हैं, जिनका नाम कभी किसी की जुबान पर नहीं आता हैं इस दिन उनके ही चर्चे सुनने को मिलते है कही गाँधी जी के तो कही नेताजी के कही आज़ाद के तो कही भगत सिंह के, इस दिन ऊँच नीच, छोटा बड़ा, मजदूर अधिकारी, अमीर गरीब, सब एक सामान दिखाई देते हैं किसी को किसी के प्रति भेद भाव नहीं दीखता, इस दिन सभी लोगों के चेहरे पर कितनी मुस्कान दिखाई देती हैं,चरों तरफ कितनी खुशहाली नजर आती हैं.....इस दिन तो सच मैं लगता हैं..... "सरे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा"
जैसे ही १६ अगस्त का सूरज उदय होता हैं सड़कों के किनारे धूल मैं पड़े छोटे छोटे तिरंगे दिखाई देते हैं यहाँ तक की लोग इनके उप्पर पैर रखकर आगे बढ़ जाते हैं फिर वही दिन्चारिया सुरु हो जाती है कही पर राष्ट भक्ति की बातें सुनने को नहीं मिलती कोई देश भक्ति की बातें करता भी हैं तो चार लोग मजाक करने वाले मिल जायंगे देखो गाँधी जी आ गए ये देश का उद्धार करंगे, हर एक दुसरे को नफरत भरी निगाहों से देखता हैं, ग्राहक को दुकानदार लूट रहे हैं ठेकेदार मजदूरों को लूट रहे है ठेकेदारों को अधिकारी लूट रहे हैं अधिकारीयों को नेता लूट रहे हैं जहाँ भी जाओ बिना रिश्वत के कुछ काम नहीं होता चपरासी से लेकर अधिकारी तक का % फिक्स हैं किसी भी दफ्तर मैं जाओ मिनट का कम घंटों मैं घंटे का काम दिनों मैं दिन का काम महीनो मैं महीने का काम सालों मैं होता हैं, आम आदमियों को तो छोटे से कम के लिए दफ्तरों के इतने चक्कर कटवाए जाते हैं आज साहब बिजी हैं  दुसरे दिन साहब मीटिंग मैं हैं तीसरे दिन साहब छुट्टी मैं हैं चौथे दिन साहब अभी आये नहीं पांचवे दिन साहब... मजबूर होकर रिश्वत देना ही पड़ता हैं नहीं तो काटते रहो चक्कर पे चक्कर,  सफ़ेद, खाकी. और काले कोट के चक्कर मैं जो फंस गया सायद ही उससे बड़ा कोई दुखी इंशान दूसरा कोई हो, जहाँ भी देखो छोटा बड़ा,तेरा मेरा,लड़ाई झगडे,लूट पाट,चोरी डगैती,मार धाड,गुंडा गर्दी,न किसी की इज्जत न किसी का सम्मान,  अखबार पढो या टीवी देखो वहां भी कही बलात्कार तो कही भ्रष्टाचार कही हत्या तो कही अत्याचार कही बम धमाके कही अक्सिडेंट, नेताओं का तो एक ही काम हैं  तुम भी खावो मैं भी खाऊँ दोनों की बहार....  ये सब देखकर तो एक फ़िल्मी डयलोग याद आ जाता हैं "सौ मैं से अस्सी बेमान फिर भी मेरा देश महान"

सुधीर चतुर्वेदी

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dajyu na rajya badla na rajya kay logo ki tasvir aaj bhi vo hi hal hai jo u.p. kay samay may hota tha .......... fayda hua to sirf netao ko aaj bhi pahad khali hotay ja
rahay hai , naukri kay liyai aaj bhi mahanagro ki dod hai .............


न बदली म्यार गौं -:

         मी पुर उत्तराखंड कै बार मैं त ना जान्नु परन्तु अपना गौं का बार मैं त भली क्यें परचित छू........
 उत्तराखंड आन्दोलन का समय की बात हैं तब हम ज्यादा समझदार नहीं थे हम भी अपने स्कूल के सीनियर बिधार्थियों के साथ अपने स्कूल से नारे लगते हुवे अपने छोटे से कसबे तक जाते थे, फिर नारे लगते हुवे अपने गाँव चले जाते थे, भले ही हमारी आवाज आगे तक नहीं पहुचती होगी लेकिन हमारे जोश मैं कोई कमी नहीं थी|
        हम अप्न्हा ठुला थै पुच्छ्या दाज्यू हमर उत्तराखंड बन जाल त हमौ कै की करन होलू,  तब उन लोग बतौछी की हमर राज्य बन जाल त हमरी पहाड़ी सरकार होली हमरी अपन पहाड़ मैं राजधानी होली अपन स्कूल मैं यक बिषय पहाड़ी भाषा ले होलू हमर पहाड़ मैं खूब विकाश होलू हमोली नौकरी कर्नाहन दिल्ली, बम्बई ना जन पड्लू हम अपने पहाड़ मैं नौकरी कार्ला|
       समय बितते गों ये बिच मैं हमर राज्य ले अलग है गयु जब राज्य की घोषणा भै "इंडिया टुडे" का पहला पन्ना मैं लिखा था "प्रस्तावित राजधानी नैनीताल मुख्या मंत्री निशंख" फिर रातभरि मैं जनि की भो रतेहन मालूम पड्छ कि राजधानी त देहरादून निस्गे मुख्य मंत्री ले अपन पहाड़ी ना छ|
    हमर पहाड़ी त येई मैं खुस छि कि येती लड़ाई लड़ने बाद आज हम जित्या यु कैली ना सोच्यु कि भोवहन कि होलू हमर राज्य बन्ने पीली नेतोली उमै कुरी ब्वे दे जस्य कुरिक झाड़ हमर खेतों कै बर्बाद करनी उस्याई उ दिनै लगायी कुरी अज हमर पुर पहाड़ मैं फ़ैल गै|
          आज हमर गौं का हालत ज्यू का त्यु बनया छान १० साल पीली जू गाँव का हल छि आज उहैले ख़राब हैं गयी,हमर गौं बिलकुल ना बदली घरों मैं पैप लागरी त उनो मैं पानी नि ओनु, घरो मैं बल्ब लागरी बिजलीक ओछी त लो वोल्टेज, गौनो मैं खडंज लगा राखि त उन येती खतरनाक छान कि उनों मैं ठोकर लागिबेरै कती लोग घायल हैं गयी, ठेकदार, नेतालोग जरूर बदली गै, इन १० सालों मैं ना स्कूल खुल्यु ना अस्पताल ना पोस्ट ऑफिस ना ही इन १० सालों मैं कै खै राज्य सरकार मैं नौकरी मिल्ली, जब ले हम अपन गौं जाना त मी कै अपन द्ज्यु लोगोंकी कये बातयद् ओउछी उन लोग उ टाइम मैं कि कौछी आज कि भो........ सायद हमर पहाड़ मई सबै गौं का इने हल होल.......
                                                                             

                                                                                             कुंदन सिंह कुल्याल
                                                      लाधिया घटी (चम्पावत)

kundan singh kulyal

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कुंवे का मेढक......
एक कुंवा था जिसमें कुछ मेढक रहते थे उनमें से एक मेढक अपने को कुछ ज्यादा बुद्धिमान समझता था अपनी चालाकी से सभी मेढकों पर राज करता था सभी मेढक उसकी चालाकी को नहीं समझ पाते थे तो वो अपने आप को कुछ ज्यादा ही होशियार समझने लगा था तो वो सभी मेढकों को मूर्ख समझता था और उन मेढकों को अपनी चालाकी से उन पर राज करता था जिस गाँव मैं वो कुंवा था उस गाँव के लोग उस कुंवे से पानी भरने आते थे रोज शुभे शाम बाल्टी मैं रस्सी बाधकर कुंवे मै से पानी निकलते थे तब अपनेआप मैं चालक बनने वाला मेढक के मन मैं एक बिचार आया की ये बाल्टी कहाँ से आती हैं फिर वही चली जाती हैं एक दिन वो मेढक उस बाल्टी को देखकर सोचने लगा की क्यों न इस बाल्टी मैं बैठकर देखा जाय की ये बाल्टी कौन सी दुनिया से आती हैं अपनी चालाकी से सब मेढकों मैं राज करने वाला वो मेढक एक दिन जैसे ही वो बाल्टी आई तो कूदकर उस बाल्टी मैं बैठ गया जब बाल्टी उप्पर गई तो वो कूदकर जमीन पर चले गया तब उसने देखा अरे दुनिया तो कितनी बड़ी हैं वो खूब उछल कूद रहा था तब उसको अपने साथियों की याद आई जो सीधे साधे थे और उस कुंवे मैं रहते थे वो मन ही मन सोच रहा था की वो सब तो मूर्ख ही रहंगे कि वो सब उस छोटे से कुंवे को ही अपना संसार समझते हैं मैं कितना बुद्धिमान चतुर और साहसी हु की यहाँ तक आ पंहुचा हू जब ओ ख़ुशी के नशे मैं खूब फुदक रहा था कभी इधर तो कभी उधर कूदते फांदते अपनी कामयाबी की खुद ही प्रशंसा करते हुवे ये भी भूल गया की वो किस दुनिया मैं आ गया हैं इतने मैं एक बाज़ वही आसमान मैं उड़ रहा था तो उसने उछल कूद करते उस मेढक को देखा और उस मेढक को अपना शिकार बनाकर अपने चोंच मैं पकड़कर ले जा रहा था तब वो मेढक सोचने लगा अरे मैं तो आसमान मैं भी उड़ने लगा और अपने आप मै इतना खुश था कि उसे उन मेढकों पर तरस आ रही थी कि वो मुर्ख लोग उस कुंवे को ही अपना संसार समझते हैं जबकि संसार तो बहुत बड़ा हैं मुझे देखो मैं भी उनका जैसा ही मूर्ख होता तो क्या यहाँ पहुच पाता इतने मैं उस बाज़ ने उड़ाते उड़ाते उस मेढक को निगल लिया जब वो मेढक बाज़ के चोंच से अन्दर बाज़ के पेट मैं जा रहा था और उसके प्राण निकल रहे थे तब फिर उसको उन सीधे साधे मेढकों की आंखरी बार याद आयी तब वो यही सोच रहा था की मैं ही अपने आप मैं बुद्धिमान बनता था और अपने साथियों को सबसे बड़ा मूर्ख समझाता था जबकि मैं इतना बुद्धिमान हू नहीं और न ही वो सारे कुंवे मैं रहने वाले मेढक इतने मूर्ख हैं वो जैसे भी हैं अपनी उस छोटी सी दुनिया मैं शुख शांति और सकून से तो होंगे और मैं... मैं... मैं ..........                                                                                             कुन्दन सिंह कुल्याल - लाधिया घाटी (चम्पावत)
                                                                   

Ajay Pandey

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uttarakhand me vikas
« Reply #37 on: April 30, 2012, 12:37:21 PM »
हिमाला को उच्चा डाना कतु भल लागु
छबीलो गढ़वाल मेरो रंगीलो kumaon
जी हाँ गढ़वाल अभी भी छबीलो ही है पर kumaon  अभी भी picchda  है और रहेगा क्योंकि kumaon  में पंचायत निधि सभी खा जा रहे हैं एक गाना नीलमा ओ नीलमा वाली फिल्म में गया गया है
बुड बाड़ियों की बात अब कोई न सुणना
यो घर घर netaunle  यो विजय उठाना
सरकार ने चलायी गों गों विकास योजना
विकास को पैस सब नेता खे जाना
यह गाना सही है हमारा उत्तराखंड का kumaon  प्रदेश का कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है kumaon  में अभी भी नौले सुख गए हैं पानी की परेशानी है और बुनियादी सुविधाएँ कई गाँव में नहीं है जैसे अस्पताल वगेरह और डॉक्टर की सुविधा नहीं है मरीज रस्ते में ही मर जाता है उत्तराखंड के नेता ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं नेताओं को इस बात पर चिंतन करना चाहिए बड़ी चिंता है kumaon  की हालत देखकर बड़ा बुरा लगता है इसका विकास कब होगा यह सोचकर चिंता होती है आखिर kumaon  का विकास कब होगा और अभी भी समय है उत्तराखंड सरकार जागो सोचो विकास का बारे में आखिर देश का भविष्य गाँव में ही होता है में चाहता हूँ की kumaon  का विकास हो और उम्मीद है की सरकार जागेगी तभी विकास होयेगा अभी भी समय है जागो विकास करो जागो
धन्यवाद

 

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