Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 56987 times)

Parashar Gaur

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parashar gaur ke kavitaye
« Reply #180 on: November 21, 2012, 03:01:22 AM »
एक  कबिता उस तसबीर को


दर्द का अहसास

दिल में शूल सी चोभो गया कोई
रूठकर हमसे जब गया कोइ
प्रीत में दर्द एक नया ....
नया दे गया मीत जब कोइ  !

       रात भर जागकर , जाते रहे
       यादों के उलझनों में उनकी उलझे रहे
       निगोडी चांदनी  भी  रात भर
       दिलको जलाती रही और हम हम जलते रहे
       हो गए अकेले थे  जब
       जब हमसे हमारा दिल ले गया कोई  !

पीड रात की ..
किसी से कह सके न हम
सीके होंठ अपने उस दर्द को पी गए थे हम !
आसमा की ओर ...
टक -टकी  लगाके  देखते रहे
सूनेपन में ओडे मौन को
 नियति उसको अपनी मानते रहे
हादशा हुआ  छल  गया , छल  गया
प्रेम को प्रेम में जब कोई  !

       रात आके हमसे कह गई
       इस दर्द का इलाज  है ना कोई
       खालीपन का दौर कह गया
       दौर ऐसे जाने और कितने है अभी
       शुनेपन ने दिलको छू  लिया
       दिलने उसको  अपना कहके सह लिया
       शब्द होगये है गूंगे ... गूंगे ....
       दिलने दिलसे चोट खाई  जब कोई !

                         पराशर  गौर  मार्च 15. 2005
   ------------------

एक कबिता उस तसबीर को


एकाकी पन

मत पूछो  मुझ से
एकाकी पन  क्या होता है
न गुजरे किसी पर ऐसा छण
मेरा मन कहता है  !


दिखने मै तो वो यूँ
इस  युग का लगता है
भावनाओं में खोया खोया
वो तो , जड चेतन से उखडा उखडा  रहता  है !


जीवित  है वो,  जीवित है बस
इतना काफी है
प्रशन पूछने हो अगर
जबाब उसकी आँखों में होता है !


कभी कहीं अगर
यादों के परत खोल जाए
पल भर  के लिए नैनो में  नया पन
पर चेहरा तो , मौन को ओडे  होता है  !


चाह मरी होती है उसकी
दृषटी पथराई सी ...
संसार उखडा -उखडा उसका
वो तो बैरागी जीवन  जीता है  !

     पाराशर गौर  अक्तूबर 13, 2003----

--------------------------------

प्रश॓न

जब मैने --
अपनी जवानी की देहलीज़  पर
पांव रखे ही थे की ,
न जाने क्यों  तभी
बुदापे व मौत का गम सताने लगा
   
      मरने को तो मै
      तभी मर गया था
      जब , मै पैदा हुआ था !

मेरे पैदा होने के समय ही
मुझे , मौत की सज्जा भी
सुना  दी गयी थी !

      परन्तु ---,
      जीने की लालसा
      जाने क्यों  बार बार 
      मुझे झूठी तसली देते है
      न मरने की  !

मै .. तो बस .....
उसी दिन के लिए जी रहा हूँ
जिस  दिन मुझे मरना है !

      तब ---
      तब ये सारे  प्रशन
      समाप्त हो  जायेंगे
      जो बार बार  मेरे मन में उठते है
      या उठ रहे है


    पराशर गौर  11 अगुस्त 1989

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur गोल ह्वे  जा
 
 म्यारा बाबाजी
 म्यारा  ब्ब्यु का बना
 जगा जगा  गैनी
 कखी  जम्पत्री नि मिली
 त , कखी नौनी पसंद नि ऐनी
 उन्कू
 आंदा जंदा  पंडितु  से  बस
 एक सवाल  रैन्द  रा  अरे  पडित जी
 जरा येखुणी  कवी नौनी खुज्या !
 एकु कालू मुंड कै दया !
 
 एक रोज एक बामण  आई
 बुबा से बोली  .. जजमान 
 काम ह्यु समझा -----
 मिन  बोली पडित जी
 अब नी तुम्हरी जरूरत
 मिन  ओन लाइन नौनी  डूडयाल
 भलाई यामी च  एबरी तूम
 यख बिटि  गोल  हवेजा  !
 
  --- पराशर गौर   12 12 12

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur ‎" पेशी  "  ( यमदूत के सामने )
 
 यमदूत -  अपने दूत से
 उस दिन का लेखा जोखा पूछ  रहा था
 और कह  रहा था  ....
 बताये ,
 आज कोई , नेता , सेठ,  बड़े तोंद  वाला लाये हो
 या,  यूँही खाली हाथ आये हो  ?
 
 दूत बोला  ---
 आज हम एक एसा  शक्श लेकर  लाये है
 जिसे देखकर आप भी तरस खायेंगे
 है तो इन्सान पर
 इंसान के नाम पर हडियों का ढांचा  ही  पायेंगे  !
 
 दिखाते  वो बोला,,,,,, ये,,,,,
 ये रिक्सा चालक है
 इंसानों को खींचते खींचते
 खुद को खींच नही पाया
 भूख क से ग्रस्त  बेचारा
 आख़री सांस भी,  नही ले पाया
 रिक्से के घंटी पर हाथ रखे रखे
 खुद अपनी घंटी बजा गया  !
 
 देखकर  उसे  यमदूत बोला ---
 नहीं ..., ये मरा नही
 इसे मार दिया गया है
 आदमी ने अमीरी गरीबी का परिचय दे कर
 एक उदाहरण पेश किया है
 इस से  इसका निवाला छीन कर
 खुद का गया है  और ..
 इसे भूख से मरने को छोड़ दिया है !
 
      कापी राईट @ पराशर गौर
 दिनाक 19 जनबरी  2013  समय दिन के 3.36 पर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From -
Parashar Gaur फर्क
     
     किसने मुझ से पूछा --------
     भाई साहिब , जरा बताये
     नेता को नेता क्यू कहते है
     और नेता क्या होता है ?
     
     मैंने कहा , जनाब ---
     संस्कृति में एक श्लोक है
     " लुन्ड़ो बीचत्रो  गति "   अर्थात ,
     जो आवारा किस्म के आदमी होते है
     उनका उठना,बैठना  चाल   /ठाल
     दुनिया से अलग ही होता है
     हम कुर्सियों में बैठते है
     उन्हें , सोफा आफर होता है !
     उनके अचार/बिचार हमसे भिन होते है
     वो आदमी न होकर एक ..
     ख़ास किस्म के आदमी होते है  !
     
     जैसे .
     गधा घोड़ा  खचर  सबके सब
     एक ही जात के होते है
     पर श्रीमान , कुछ भी कहिये
     गधा तो  गधा  ही होता है
     एसा ही नेता होता है !
     
     पराशर गौर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur कच्ची ( दारु ) "
 
 ( सूर्य अस्त /पहाड़ मस्त.. स्वर्गीय कबी गुरुदेब कन्हया लाल डंडरियाल जी की कबिता " चा " से प्रेरित होकर )
 
 कच्ची भवानी इस्ट च मेरी
 दिलम बस्दा, बस क़चि वा
 एक तुराक जख्मी मिलजा
 मंदिर मिखुणि ब्ख्मै चा !
 सुधनी मीथै अपणा बिरण की
 याद नि औंदी मी कै की ...
 स्वीणम बीणम रटना रैंदा
 दगड्ओ मीथै, बस कचिकी
 बच्यु छो, मी कच्ची पीणाकु
 मुरुणच मिन, कच्ची पेकी !
 
 मुरुणु बैठ्लू मुगदानो की तब
 बाछी नि लाणी खोजिकी
 हथपर दिया दगड्ओ मेरा
 बोतल बस एक कच्ची की !
 गिचम म्यारो घी नि धुल्णु
 धुल्या , पैली तुराक भटी का
 हबन कनी चितामा मेरी
 पैलू पैलू कनस्तर कची का !
 कफ़न कपड़ा कवी नि दीणा
 डुरडा ह्वी बस बबला का
 लास पर मेरी चोछ्याड़ी बटी
 लटकी ह्वी अध्य ,बोतल कच्ची का !
 सटी लगया ना छुरक्यु मेरी
 ख्ल्या रस्तोमा बोतल कच्ची की
 अर उकै कदमा रवा सांग मेरी
 ज़ोकी दूकान ह्वी कच्ची की !
 लास मेरी मडघट माँ दगड्यो
 ली जैया ना तुम भूलीकी
 फुक्या मीथै कै रोंला / गदाना
 जख गंघ आणीहो कच्ची की !
 चिताका चोछड़ी मडवे म्यारा
 बिठाली उ , क़चि दीणा
 किरय्म मारू वी बैठला
 बैठी जैल, दिनभर क़चि पिणा !
 एक द्शादीन कटुडया आलू
 कटुडम वे थै भी क़चि देल्या
 दवा दशाका दिन बमणू थै भी
 कची पीलोंण तस्लोला !
 कची बणी ह्व़ा सुंदर सी
 अर गंध आणि हो जैमा
 एक गिलास म्यारा सिरोंदो
 धैरिदिया तुम मीकु खाँदै माँ !
 
 पराशर गौर

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Parashar Gaur फर्क
     
     किसने मुझ से पूछा --------
     भाई साहिब , जरा बताये
     नेता को नेता क्यू कहते है
     और नेता क्या होता है ?
     
     मैंने कहा , जनाब ---
     संस्कृति में एक श्लोक है
     " लुन्ड़ो बीचत्रो  गति "   अर्थात ,
     जो आवारा किस्म के आदमी होते है
     उनका उठना,बैठना  चाल   /ठाल
     दुनिया से अलग ही होता है
     हम कुर्सियों में बैठते है
     उन्हें , सोफा आफर होता है !
     उनके अचार/बिचार हमसे भिन होते है
     वो आदमी न होकर एक ..
     ख़ास किस्म के आदमी होते है  !
     
     जैसे .
     गधा घोड़ा  खचर  सबके सब
     एक ही जात के होते है
     पर श्रीमान , कुछ भी कहिये
     गधा तो  गधा  ही होता है
     एसा ही नेता होता है !
     
     पराशर गौर

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Parashar Gaur हाईकू के लिए मेरा पहला प्रयास है  .... बीर बार 2013 स्याम 6 बजे
 --------
 
 1. माथे के बिदिया
    चमके एसे जैसे
     फूल गुलाब !
 
  2  ओंठ गुलाबी
      नयन शराबी सी
      रोके रास्ते भी !
 
 3. पर्बतो की ओठ
     से झांकता चाँद है
     स्याम ढलते  !
 
 4. मेरे मन का
    दिया जले रात के
    अंधियारों में  !
 
 5. तेरी चुनर
     बात करे हवा से
     पगली बन  !

नवीन जोशी

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बढ़िया प्रयास ..पर 'स्याम' शायद 'शाम' है...
Parashar Gaur हाईकू के लिए मेरा पहला प्रयास है  .... बीर बार 2013 स्याम 6 बजे
 --------
 
 1. माथे के बिदिया
    चमके एसे जैसे
     फूल गुलाब !
 
  2  ओंठ गुलाबी
      नयन शराबी सी
      रोके रास्ते भी !
 
 3. पर्बतो की ओठ
     से झांकता चाँद है
     स्याम ढलते  !
 
 4. मेरे मन का
    दिया जले रात के
    अंधियारों में  !
 
 5. तेरी चुनर
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur आदत
 
 हमारी वो,
 जाने क्या -क्या कहती रही
 आऊ  देखा ना ताऊ
 बस बडबडती रही
 हम्म ,
 हम हाँ हूँ करते रहे
 वो बकती रही
 
 वो बोली---,
 सुन रहे हो ?
 मै  बोला ---" हाँ "
 
 तिलमिलाकर फिर बोली
 सुन रहे हो तो
 फिर बलते क्यों नहीं
 चुप क्यूँ हो ?
 क्या बात है - अरे , सुन रहे हो
 कुछ कहो ना। ।
 
 मै बोला ---, अगर तुम चुप होवोगी तो,
 तो बोलूंगा ना 
 वो बोली,,,,, क्या करूँ
 आदत से मजबूर हूँ 
 मै कहा,,,
 ठीक करो ना !
 
 "ठीक पर"  वो बिफर गई
 फिर शुरू हो गई
 हम तो हम ,
 वो हमारे खानदान को लिपटने लगी
 सोचा था बात थम गई
 लेकिन वो तो चालू हो गई !
 
 उनकी इस आदात का क्या कीजिये
 पति है भाय , सुन लीजिये
 तुम सही, हम गलत कहकर
 छमा मांग लीजिये
 घर को नर्ग बनाने से
 बचा लीजिये !      ----- सर्बाधिकार @ पराशर गौर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur  हथेली पर रखते है अपना कफ़न
 जिन्हें अपना जीवन अमर करने है   
 बहुत सख्त मौसाम है लेकिन। ….
 किसी तौरसे ये दिन बसर करने है !

 

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