Parashar Gaur
SUBH PRBHAT DOSTO SATH ME HOLI MUBARAK KO SAB KO ....
सब मित्रो को होली है मुबारक … इस मौके पर एक हांस्य व्यंग के कविता देखे
"होली और मै "
मलते ही गुलाल, हुआ मलाल
रंग था चेहरा , मल दिए गाल
मलना था किस पे ,
मल दिया किस को
हंगामा हो गया पकड़ो इसको !
बीच चौराहे पर पकड़ा गया
ठोकम ठुकाई होते होते ठुक गया
मित्रो ,
जैसे ही उन से छूटा पत्नी ने आकर कुटा !
कुटते हुए बोली ..........
कौन थी वो ?
जिसपे मलने गुलाल तुम
मोहला छोड़ , गली छोड़
याहा तक आये हो !
मै बोला ……
कसम खला लो , चाहे मुर्गा बना लो
मै उसे जानत तक नहीं ,
पहिचान ता तक नही
सच कहूँ तो ---- वो ,
ऊपर से नीचे तक , रंगो में रंगी थी
चेहरे पे कालिक मली थी
बाल नीले-पीले हो रखे थे
चेहरा दिखाए नही दे रहा था
मैंने समझा झा तू ही थी !
बस आउ देखा ना ताऊ
होली है कह कर उससे चिपक गया
दोनों हाथो से उसपर गुलाल मल दिया
लगाते ही गुलाल , अहसास हुआ
ये कौन है ? ये क्या हो गया
जो होना था सो हो गया
माँ कसम ……
उस पे रंग चढ़ आया था
मेरा रंग उत्तर गया !
अब क्या क्या ब्यान करूँ '
क्या क्या हुआ नहीं
उसके बाद जो कुछ हुआ वो,
तुम से छुपा नहीं
होली के रंग ने वो रंग दिखाए
भया मुझ को दिन भी तारे दिखाए दिए
@ पराशर गौर