Parashar Gaur
7 hrs ·
" शिकवे / शिकायत "
मत रखे उन रगों पे हाथ
जो दर्दओं को उगलती है
ब्यान करती दास्ता ओ उन पलों की
जो जुड़ी उन लम्हो से होती है !
सुन सकोगे क्या तुम ?
उन दर्दो को जो तुमने दे दिए
क्या कभी बिता पल लौटा है कभी ?
रहने दे , अबतो जाने भी दीजिये
मि टेगी कैसे वो यादें , वो पल
वो तो अपनी धरोहर जो होती है !
रुकिये न छेड़िये -- वो बात
फिर से कहते है हम
एक उब्बाल है दबा , उब्बल गया तो
रोके रोके रोक ना सकेंगे हम
मौन है तो मौन को मौन ही रहने दो
ना कुरेदो वो बात , बस रहने दो -रहने दो
लगे घाव तो रिस भी जायेंगे
पर लगी चोट तो चोट होती है !
इतने दिनों के बाद जो तूमने पूछा हाल
सुनके मई अतीत मे समा गई
प्रीत थी जहां , नीड थी वहाँ
रस्समे कस्मे वादे थे , वादो में खो गई
धुर्री पे टिका समय घूम जो गया
बीते पलो का सिल-सिला फिर गया
छोड़ कैसे दे, तोड़ कैसे दे
नाते तो नाते होते है !
खुशियाँ तो हमारे रहो पे
कांटे बो गई ----
वो तो हमसे , हमारे सपनो को
हमसे जुदा कर गई ---
बीते इन अंतरालों के बाद
अचानक हमदर्दी कहाँ से आ गई
शुक्रया आपका हम कैसे करें
कहानी हमारे दर्दो की
आपसे ही तो शुरू होती है !
दे रहा समय द्स्तके हमे
बंट गये है रास्ते अबतो चले
दोस्ती को लगे ना दाग
हमने रास्ता बदला दिया
तुम पे उंगुलियाँ ना उठे
हमने मौन ले लिया
प्रश्न ना करो, चुप्प रहो
जो हो गया, सो हो गया
ये समझिये हमारी मुठीयूं से
था समय फिसल गया
टूटना फिसलना, फिसलके बिखरना
अब तो बन गई अपनी नियती है !
------कापी राइट @ पराशर गौर