Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 96271 times)

Parashar Gaur

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( उन शहीदो को नमन ! जिन्होंने मेरी आने वाली पीडी  की सुरक्षा के लिए अपने को कुर्वान किया )


 बलिदान दिवस

जू  युकी  (सहीदो )  पीठ पर चौडी
कुर्सी तक पौचिनी ..
उ थै ---
इनी भी अर् उनभी सलाम !

जोंकी बेटी -ब्वारियु का कपडा नि फटा
वो आज---
सिल्की साडी पैरी उकी लुटी अस्मत का
बार बार जिक्र कैरी,  चुनाऊ जीती
गाडियुम छन घुम्णी
उ थै  सलाम .......

जौन आन्दोलन  नौ पर ,  आ  ,  नि बोली
गडवाल नौ पर ,  ग ,  नि बोली
कुमाऊ नौ पर, का,  नि बोली
वो .............
आज ये थै इनी बोली छना भुनाणा
आ  ----से ---अपणी
ग --- से -- गबर्मेंट /सरकार
का -- से -- कुर्सी  !
 
जू मोरिनी
जोंकी  की इज्जत लुटी
उ से हमनु क्या लींन
उ जाऊ भाड़ माँ
जनता जाऊ खढलमा !

पराशर गौड़ 
 

Parashar Gaur

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हे जी सुणा छा

  ब्याली ठेरादूण्मा ..,  कुई छा बुना की,    अबत बला रातियु माँ भी जाहज उतरला बल याखा !   तारकी होई त या ,    जै राज्यमा दिन्मै टप अन्द्यारू हो .. वख रातं जाहज उतरला ..  ..    धन च या सरकार साब धन...  
   म्यरु गौन्कू ग्याडु, फजितु,  चुफ्ल्या  सब्या सबी  बे रोजगार छन !  रामी बियोण हुई च .. बुबा माँ दुई पीसी निन
वेक हाथ पिला कनु .. अभी भी की गौ माँ पानी नि , बिजली नि .. र्रोजगारा सन साधन निन  !  जख च्ख्लियु थै बैठ्णु डाली नि राइ  वख जाज  ...  ......
 मेरा सम्झ्म यनी याणी च,  की ,  वे जाज म कु जी बैठ्ला परा !   म्यारा पहाडमा अबत , नत गोर ही रै गीनी  ,  ना ही बखरा ..     पुरुष जात भी सब तख्दु चली गीनी !  ब्य्ठुलू थै उनी फुर्सत नीं ,  यु  डाँडि  काँठु थै समल्द समल्द !
हे भाई  सुणा छा ..   कु बैठ्लू वेमा ..,   जू बुना छी उ , की ,    नेता लोग  ?   ज़रा मी भी बताई दिया हो ?????

पराशर गौर
5 oct 2009

Parashar Gaur

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      बिगाणो कु एक हैकुई तरिका 

       बोड़ी हथम,  कागजो कतर लेकी नीमदरिम बैठी छै कि,  तभी कुकर्या बामण उने बिटि गुजारी !  बोडिल वेथै देखि बोली .. "  हे बिटा.. ज़रा इने औ ... धौ !       बामण गे  !  बैठी बोली  " हां बोल क्या काम च  ?"   व बोली  .. " बाबा ज़रा ये तिपडा थै मिला दी धौ ! वेल देखी सब त ठीक ठाक छो पर ,  कैल ,  नौनी बुबा नो लिखाण बिसर गे  !
        वेल पूछी  .." बोडी,  कै गौं क च या नौनी  ?  अर ..,  . ईक बुबो नौ क्या च ?  "
सकल पन माँ बोडी बोली  .. "  गौ ?    त्यारे गौ का बगाल्म   अर बुबा नौ ?    दा ..... कनी बिस्म्रती ह्येगी ..  बिटा ....  ठैर जा हो ... याद कन पर भी नि आई  नौ  .. त,    वीन....   हैकि तरह से बीगाई ...

    " अरे जों का गोओर ,   त्यारा  पुंगड़ उज्याड़ गे छा  ----------  आ ! "   

  "  जत्या  --- "

'हां , वी वी ..ई  .."

न भै,  ईत.. मेल नि खाणु च !    नि मीनू च  यो ..!     बोली चली गे ! 

पराशर गौड़
अक्तूबर १२ सुबेर ८ ४२  २००९ 

Parashar Gaur

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लगुल छै  च त,   ठंकुरु घटे ही जालू  

    ब्वौजी अभी जवान ही छा,   पर , अचाण्चकी वा हम सब थै छोड़ी चलगी ,  उ भी ...,  भरी ज्वानिम ! भैजी परेशान ! बोड़ी हक - चक  ! गौ वाल भोंच्या  अर मी .. खौल्यु,   की,  यु,   हवा त,   क्या हवे !  न रोग न बयाधि ! न मुडरू न  डौ !  न हर्पण , न उकाई ! यु बिजोग पोडी त पोडी किलै !
        भैजी एक कूणम जम्प्या सी  बैठ्या छा  चुपचाप ! गौ का लोग एक एक्कै मुख पर छा आण अर अप्ण अपण तरीका से छा बोड़ी अर भैजी थै सांत्वना दीणा !    एक बुजर्गल बोली " बिटा जांवाला दगड कुई नि गे... जू हून छो सी ह्वै गे ! अब अफु थाई संभाल "  तभी पधान काकी आई अर बोड़ी से बुन बैठी ................
    "   दीदी , ...  सैद वीकू इतुग्वी तक राइ होलू हमर दगड .. अब हुणि थै क्वी टाल थुडी सकद तबा ...  
 भैजी तरफ देखी बुन बैठी  ...      ब्वारी त गे ना ...., ब्यटा त छै च ना ........  
                         " लगुल छै  च त,   ठंकुरु घटे ही जालू "
मिन बोली   .. काकी  .. त ब्वारी ठकुरु .. अर भैजी  लगुलु  व्हा आपक हिसाब से .. है ना ????
वा बोली  'हाँ..."   त एकु मतलब यु ह्वै की  ब्वौजी याने स्त्री जात मरी अर पुरुष बच्यु रेगी त हैकू ब्यो करै जय सक्द ...  व बोली .....    'हाँ" ..
अर जू दादा नि रैन्दुत ,  याने ठंकुरु छै च पर लगुलु नि च,   या ,   नि रायु त ,  क्या ?   बौजी हैकू बियो कई सक्द छा क्या  ??      
उत्तर छो " पत नी "  ...

पराशर गौर
१६ अक्तूबर ०९  दिन में २.३५ पर

Parashar Gaur

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नाक की प्रतीत !

       बात नाक की च साब !     इन बुल्दन की अगर नाक न हो त लोक ............ उ भी खै दीन !  अगर दिखै भी जा त ,  आजकाल कत्कै इन कना भी छन !   जोंकी नाक ही नी उकी क्या प्रतीत ?  बुल्दा कुछ अर करदा कुछ !  बोडी छझा का किनर  खाडू ह्वैकी छै चिलाणी !
           दिसा फिरागत का बाद जनि मै घोर छो आणू त,    बोडी का बचन सुणी मैन पूछी ........
    " बोडी जी...!  यु सूबैर-- सूबैर लेकी,   केकु च यु हल्ला हुणू ? 
    वा बुन बैठी ...  यु मचोद्ल ... सन ५२ बिटी अर आज पट २००० हजार ह्वैगीं !   यु नेताओं न , सदान हम थै ठगा ही च ! बड़ा बड़ा भाषणों माँ बोली की अपणो राज्य मिलालो त उत्तराखंड नौ राखला !  मिलदी अप्ण याखा का नौ जावनु थै काम मिलालू !  बिजली पाणी की  समस्या से मुक्ती !   युका बुल्या पर हमन अपणी नाक ( मुझाफर नगर की वो शर्नाक घटना)  रखी  !    अर जब राज्य मिली  त .............

         यूँ हमरी नाक गिरीबी धरी दे  अर अपणी  नाक उंची कानी शुरू के दे .."

                मी पुछ्णु छो .. जों की नाक नी,,     उकी,   प्रतीत ही क्या ? 

 पराशर गौड़
रात १६ अक्तूबर ०९ ९.४१ पर 

Parashar Gaur

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जख्या तखी
 
     बुनू ,  बल हम बडा आदिम ह्वैग्या.....   तमीज से , सोच से, अर ध्यली पैसो से भी ! ,  जब बीटी हम यख, नार्थ  अमेरिका ( कनाडा ह्वा या अमेरिका ) अया !  ... सब उत का घसा ..  डाल लगली युकी झ्लुडी....., .
बडा आदिम..  ! ////////      जसी बल पडया लिखा छी अर सात समन्दर पार भी ऐगीनी  पर टाग़ खिचैई ,चुगली जानी आदत अभी तक भी नि गे अर जैल भी कने ..!     छा त हम पहाडी ना ?
   बड़ी मुश्किल से ,  नेगी दाद्ल ,  कोशिश करी की याखा का तमाम  पहाडियु थै कठा कराइ जों ! उन सब्यु थै
चिठ्ठी भ्यजिनी !   फोन करी !   एक मायन्म खुदी,  ओर्गानैजर बणी !   कलर्क व चपडसी  भी ! सिर्फ एका बाना की हम लोग एक जगह कठा हुला   अर ,  ..  ह्वैइ भी छन !      हे भै ,  ... बांज पोड्ली युकी जागा ...  शुरुवात अच्छी भली ह्वै पर बीचम तबरी ,     कैल च्युली माने की कोशिश कई दे .. आदत जू ठैरी !
    "   मेरी य सम्झ्म  यनि आणी च की,    एकी जरूरत क्या च ?   अर किलै चैद हम थै ?   अछा .. ,  चला   माना .. ...,     एक आर्गानैजेशन बणीगे !  आप त जण्दे छन की,   यख ,  भी,   हम गडवाल अर कुमाऊ सा छा !      ई पंचैत से  मयारू सवाल यु च की ...     एकु अध्यक्ष कु होलू  ?????   अर कह बिटी होलू  ?
       द जा ....  कख एकता की बात छै हूणी !    यखत यूँ  धडा कराणी की कोशिश शुरू कैदे !  कुछ समझदार  लुखुल समझाई बुझाई की बात आई गई कै दी ,  पर ,  दिमाग्म त एक पिच त डाली दे वेन गडवाल अर कुमाऊ कु ? 
     संस्था बणी ! पैली कार्य-क्रम माँ द्वी ऐनी ( गड्वाली/कुमायुनी - अमेरिका अर कनाडा वाल भी )  .. हे भै .. सुआर का बचों का पेट माँ इनु डो की पूछा ना  ?   हैका कार्य -कर्म माँ  पैलत उन अमरीकी -कनडियनि कराइ ! द्वी युका बीचमा  डालर थै लेकी खीच ताणी ह्वै .. की तुमारु रुपया की कीमत कम च  ये वास्ता हम आप क दगड नि ई सकदा !  द ... करा बल बात ...  स्यु साब हवाय अलग अलग ...  मित बुनू छौ की केकु आई होला साल यख  ?
    " ठीक  ही बोली कैल... पहाडी भी किसके .. डाल /भात  खा के खिसके  .." चला हमर दगडी याने कनाडा वालो
दगड त करी करी  , पर तख क्या ह्वै ...  द्वी धडा  !  एक न्यू जर्सी  अर हैन्कू वाशिंगटन .. पाह्ड्यु का फड़का !
युतक मै चैन नि आयु .. सिकागो म  भी द्वी  ..  हे भै .. यख उत्का पहाडी नीन जतका संथा  बणी गीनी !
     जब हमल यु काम ,  अर,  इना काम कनी ही छा त वाखी रैलिदा ! के फैदा ह्वै हमरु यथा पैड़ी लेखी..
रैगया ना कूप मंडुप का  मंडूप्मा !  जख्या तखी   ......
 
पराशर गौड़
कनाडा अक्तूबर १८  ०९ सुबह  १०.०७ पर

Parashar Gaur

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अंतर

नेता और सांप  में
क्या अंतर है  बताये  ?
एक रेगता है
दुसरा चार कटवाता है 
एक का जहर तुरंत लगता है
दुसरे का ५ साल के बाद पता चलता  है !
-----------------------------

धैर्य

परत दर परत
खुलती रही हमरी बाते
हमरी बाते होती रही
वो सुनाते रहे
हम सुनते रहे
हमे पता था हमें ही शुरू होगी
हम पे ही ख़त्म होगी  !
----------------------------

हकीकत

पानी का बुलबुला
बना ...
फूटा
फिर पानी हो गया
उसने देह नहीं त्यागी
वो जों था वही रहा  !

  -----------------------
अंदाज

उफ़ ..
तुम्हारा ये अंदाज
हमने नही , ये दिल ने कहा
ये तो कहेगा ही
दिल जों दहरा  !

पराशर गौड़
१४ अक्तूबर ०९ २.३० पर

Parashar Gaur

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धनुष बाण
 
    ये चुनाऊ माँ .., हथ खूब चली,    इनु चली   की , वेल ,  अच्हा अछो थै दिन मै तारा दिखाई दिनी ! वेका अग्वडि कमलै दमक  फीकी पडिगे ! शिव सेना की सैना धाराशाई ह्वैगी  ! अर , वेकु धनुष ( बाल ठाकरे )  अर बाण ( राज ठाकरे ) जब बीटी द्वी अलग अलग ह्वेनी त , धनुष ,  कै भी कामो नि रेगे !  अबता रामलीलो  माँ पाठ कना वाला भी , येकी जगह , राकेट , हाथ ग्वाला ,  की डिमांड  कना छिनी !

       शिव सैनल सैद , यु प्रतीक ( धनुष -बाण ) महाभारत या श्री रामचंदरजी का धनुष से प्रेरित ह्वेकी ले होलू ! महाभारत का जमन माँ जब अर्जुन अपनी शक्ती की पराकाष्ठा पर छायु अर वेकु गाँड़ीब की टंकार सूणी धरती आकाश पाताल व चरी दिशा कम्प्दी छै ! पर एक दिन इन भी आई की क्वी वेकी समणी वेकु उ गाँड़ीब थै लुची लेगी अर उ दिखुदु ही रेगी !    उनी आज की कलयुगी माया नगरी माँ बाल ठाकरे की मराठी बनाम बहारी लोगो की  मुद्धाकी हुंकार से वाख माँ बस्या नॉन मराठी लोग  डरया डरया रैद रैनी !
       इनु बुलदिनी,  की , जब बल समय बुरु आन्द त, सबसे पीली अपणु ही छैल साथ छोड़ दीद !  इनिट ह्वे ये चुनाऊ माँ !
      जब तक वो,   सता माँ छो त ,  दम छो  , ख़म छो , वेकी तुणीरमा तब कई तरकश छाया जनकी राने ,भुज्मल  राज ठाकरे  आदि आदि ! जैक बल पर वो,   जब चा , जख चा ,जै पर चा...  हला बोली दया या बुलै दया ! जब बिटि ये सब अलग अलग ह्वेनी वो अपणा दगड धनुष ( माराठी मानस )  बाण ( विचार धार ) थै भी साथ ली गिनी ! जैकू खामियाज आज वेथई भुगतन पुणु च !   युद्घ क्षेत्र हरया भीष्म पितामाह कई तरह जगह जगह  बे बाफा मतदाताओ की वोट की चोट  से   लथ  पथ व अपणा ही स्वाजन का   बाणो  ( राज ठाकरे ) के आघात से त्रस्त   जब वो,   ये चुनाऊ माँ  अपणा हतासा ,निरास ,थ्क्या हरया पार्षदों कई तरफ दिखद त  .  प्रिय  चेला {राज ठाकरे }  ये भी नि बोली सक्द की    " ब्य्टा ..., ये उद्धव थै भी  अपणा दगड ली जा रै ....,  मेरी खातिर ना सै .////   .पर माराठी माणस का खातिर ही सै .... "
 
 
पराशर गौड़

२७ अक्तूबर ०९ ११.३० बजे दिनम

Parashar Gaur

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कशिश

सरहदों के बीचो बीच
मेरा घर था
जो अब बीराना होगया है !

जो कही गुलजार हुआ करता था
दोनों तरफ के लोगो से
कोई आता ,कोई जाता
घडी दो घडी  बैठकर
हमारी सुनते  ,अपनी सुनाते
कल फिर आयेगे   
कह कर जाते  .. 
वो पल लौटा नहीं आकर !

अचानक
जाने क्या हुआ
अब तो वो दोनों  एक दुसरे पर
बंदूके ताने है
एक दुसरे के लहू के प्यासे है
न सुनते है  न सुनाते है
अब तो वो केवल
गोलियो की भाषा जानते है !

मेरा घर....
छलनी  हो गया है
इन दोनों की गोलियों की मार से
काश ....
वो का सकता की   
मर   तुम   रहे हो ...
मर तो नहीं मै रहा हूँ
तुम्हारी इन गोलियों से  !

पराशर गौड़
दिनाक  १२ अक्तूबर ०९ समय  ३.०६ स्याम  न्यू मार्किट

Parashar Gaur

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मै और कविता


मैंने कविता का परमेश्वर माना
शब्दों को प्राण
वाक्यों को नियति
छन्द और अलंकारों को सांस
कलम को बैतरणी ...... !

स्वयम को माना
एक लकीर
जिसे मिटाया, बढाया. घटाया  जा सकता है 
या फिर सब्दो के उप्पर , नीचे या बीचमे
कभी,  कही भी रखा जा सकता है
जिसके द्वारा ..
रची जा सकती है एक
सम्पूर्ण कविता  !

पराशर गौर
दिनाक  १२ अक्तूबर ०९ समय २.१५ बजे  न्यू मार्किट
     ________________________
 
सूचना

लो ,  इसने कहा ....
उसने कहा ..
क्या कहा ?
मालुम नही  !
हां इतना जरुर सूना की
कविता हो गई
अब देखे य कविता क्या गुल खिलाती है
मंच पर ;;;;
मंच से बाहर !

आँख मिलाकर  ,हाथ उठाकर , ईशारे कर के
ये कबिता क्या कह गई
आँख ,कान खोलकर रखना .
ये कबिता ---
क्या  कह कर चली गई ?

पराशर गौर
दिनाक  १२ अक्तूबर ०९ समय २..००  बजे  न्यू मार्किट

 

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