गडवलीम एक व्यंग
आखरी इछा
आज साब, उत्तराखंड राज्य कु एक ना , पट १० जन्म दिन जनम दिन च बल ! ! ये मोंका पर जगह जगह , गौ गौ , शहर शहरो माँ जलसा-जलूस अर बनबनी का आयोजन , कार्यक्रम करीणा छन ! पहाडो माँ लूखुल अपना चोक अर कुड़ी लाल पीली , रंग बिरगी झदियुन सजैनी ! हमरा यख पपीता सैण जू एक लम्बो चोड़ सैण च ! वखम एक बडो शानदार कार्यक्रमों आयोजन करेगी जेमा नामी गरामी नेता ,बिधायक कलाकार सामिल होला !
स्यु साब सुबेर बीटी लगी , लुख कु जमघट .! . गाणा बाजाणा क बाद , नेतो कु भाषण भी हुए ! .. एक बाद आई ठोल दमाऊ की बारी ! .. भरण दास जैकी लाकुड से ठोल इनु बजद की , नाचादु कु, खुट रोक रोकी भी रुकुदु नी ! नाच्दरा नचणा छा ! तम्शगेर तामशु दिख्णा छा, की , अचानक बी भीड़ बिटी कवी जोर जोर से रोण बैठी .. सब्युन उने देखी ... ! मिन भी देखि ... क्या देखि की , तिबारी मकै जूपा काकी छै ह्य्ली ह्य्ली गाडी गाडी रूणी !
ठोल दमा रुका.. ! बाजा गाजा थमा ! नाच्दरा एक तरफ हुवेनी ! भीड़ वी काकी का इर्द गिर्द जमा हुन बैठी !
कवी बुन बैठी ... " ह्या भै.... अछू भलू माहोल छो चनू ! य एक्का एक , या रूणी धूणी कैकी भै .... //
तबरी हैन्कू बुन बैठी ... " हर्प्णा लगी गे जणी हर्प्ण ... इन कारो , क्न्डालि लाओ ! अर , तथै झ्प्वाडो खूब कै तबी जालू यु खबेश ...!
कैल बीचम बोली .. " दा, कख छा लगाना छुवी .. वीकी सासू रांड आणी हूएली ! कम तंग नि कै इन वा !"
तभी एक बुजर्गल पाणी छुमा जणी काकी हूद डाली , की वा कम्पन बैठी कम्प्द कम्प्द अर रुद रुद व अड्क्ट ह्वेगी ! कैल भरण थै बोली -- भै भेजी जरा द्याख धो क्या च ? पुछा इ थै की, कु छै? कख्कू छै ? क्या चांदी ?
भरणल ठोल सज़ाई ! बन बनी की ताल बन बनी का गीत लगैनी , पर , काकी पर अण्क न भणक !
जनी कैल बोली . ". कख यार , एक वार हम अप्ण राज्य का जन्म दिन की खुशी छा मनाणा अर यख , सया च रूणी काणी हूणी ! " जनी काकिल वेका ये बचन सुणिनी , काकी का आँखों बीटी आंसू का अन्स्धरा बोगण बैठा ..
रुद रुद बुन बैठी .. " कन खुशी ? ... कैकी खुशी ? तुम त खुश हेग्या ! , हमत, खुदया छा खुदया ! तुम थै त बाटु मिलीगे ! हमत बाटा माँ छा रिंगणा ! तुमरा दगड त, मंत्र्री , कुर्शी अपणु राज्य सब कुछ च ! कम्प्द कम्प्द बोली ... मी दगड त , बुठया, जवान, बिवाई, अण्ब्य्वाक को की पूरी पंगत च पंगत जू अभी मुझाफर नगर का वे तिराहा से भैर ही नि आसक्णा छा !
तभी बिधायक जी भी वाख पहुंचा ! हात जोडी बुन बैठा
" भटका ना .... क्यों छा भटकणा ! हमन ता उत्तराखंड असम्बली का हाल माँ तुम्हारी फोटो छन लगाई ! उख बीटी त , तुम , त रोज दिख्दै हुल्या , तुम्हरी दीई कुर्वानी से हम आज कतका मजामा छा ! तुम बैकुठ भले ही नि गए होला पर हमन त तुम थै असम्बली तक त पहुंचाई ही दे !
अचानक तबरी भीड़ माँ भगदड़ मची गे ! लोग कुरचिण बैठा ! कुई इने पोडी कुई उने ! भीड़ का बीच दुई सांड लड़द लड्ड खुश गिनी ! बिधायक जी भी चपेट माँ आया ! वो जायादे खेल छा ! लुखुल देखी अर पूछी...
" राज्य भी मिलिगे , आप बिधायक भी बणी ग्य ! कुई आखरी इछा हो तो बताऔ ! वें इन्हें उन्हें देखि अर बोली .. :जन आज आप ये राज्य कु जनम दिन छा मनण्ण .. उनी मयारू भी मनया हो .. बिस्र्या न हो /// .. अर हां .., मेरी फोटो थै सी एम् की कुर्सी का पैथर लगे दिया ताकि मी वख बीटी वी कुर्सी थै दिख्दु रोलू की , कबरी हूली या खाली !
पराशर गौर
९ नम्बर ०९ दिनम १ ४५ पर
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From: Vivek Patwal <vivekpatwal@gmail.com>
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Cc: Dr. Ashok <dr.barthwal@live.com>; mumbai@younguttaranchal.com
Sent: Fri, November 6, 2009 11:32:46 PM
Subject: Re: ek Taaj ja vyang हैप्पी बर्थ डे : उत्तराखंड
सही कहा गौड़ जी,
आज हमारे इन उत्सवो का मतलब लोगो के लिए आराम का दिन हो गया है, ये हाल सभी दिवसों का है, चाहे वो २६ जनवरी हो या फिर १५ अगस्त, फिर भी आपने कुच्छ पहल व्यंग के माध्यम से जो की है जरूर कुछ लोग सोचने को मजबूर होंगे,
2009/11/7 Parashar Gaur <parashargaur@yahoo.com>
हैप्पी बर्थ डे : उत्तराखंड
बिस्ट जी , उत्तराखंड के किसी , सरकारी आफिस में कलर्क है ! बगल में तिवारी जी बैठते है ! आज ब्र्हस्पती बार है ! दोनों अपने अपने कामो में व्यस्त है की तभी चपरासी दरवान सिह ने दोनों का ध्यान भंग कर दिया ये कह कर की.... .......
" अरे बिस्ट जी, ... और तिवारी जी , जल्दी घर जाओ .. उत्तराखंड सरकार ने शुक्रबार की भी छुटी करवा दी है ,क्यूंकि उत्तराखंड राज्य का जन्मदिन शनिबार को पड़ रहा है इसीलिए उन्होंने शुक्रबार को छुटी घोषित कर दी है बजाय शानिबर के ! "
वे दोंनो उसकी इस बात को सुनकर एक दुसरे के ओर देखने के बाद कहने लगे तीन दिन की छुटी ! शुक्रबार / शानिबर अर इतवार - ---- " वाह ----" !
बिस्ट जी सारे आफिस में एक नेक, इमानदार व देशभक्त के रूप में जाने जाते रहे है ! उत्तराखंड के जन्मदिन का नाम सुनकर उनमे उत्साह का होना या दिखाना कोई बड़ी बात नही थी ! वे अपने आप से कहने लगे की कल हमरी सरकारी कोलानी में इसका जनम बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा ! वे इसलिए भी आसक्त थे की सभी तो अपने पहाडी भाई बंधू है !
घर पहुँचते ही उन्होंने अपनी पत्नी से कहा ..... " जानते हो आज कया है ? " उसने ज्याद ताबजू न देते ही हुए कहा ,( एक मायेने में वयंग से कहा )
" -----क्या है ? "
----- " अरी भगवान् , आज हमारे राज्य उत्तराखंड का जन्म दिन है , जन्म दिन ...."
पत्नी ने फिर वयंग से देख कर कहा " --- अच्हा .... ? थोड़ी देर रुकने के बाद उसने कहा ...... " चलो , मेरा ना सही ... .. आपको तो अपने बचो का जन्म दिन तक , याद नही रहता .... इसका कैसे याद रहा गया ? "
बात की नाजुकता को पहिचानते हुए उन्होंने कहा ... " अच्हा , अच्हा ...., मुझे, कल जल्दी जगह देना ताकि मै पास पड़ोस वालो को जल्दी उठाकर अपनी इस सरकारी कोलानी में कोई ....., अभी बात पुरी भी कर पाऐ थे बिस्ट जी की, कि पत्नी ने बीच में टोकते हुए कटाक्ष मारते हुए कहा ..............
."----. भाषण दोगे ? " .......
" क्यों नही , क्यों नाही ... /// भाषण बाजीके लिए तो, आज के दिन हर मंत्री, बिधायक , नेता सब के सब कही ना कही बुक हो गए होंगे .. जैसे सादियो में बैंड हो जाया करते है, फिर भला, वो नही.., तो तुम ही सही !
अकड़ते हुए उसने कहा .... " आलाराम लगा दूंगी ! सुबह खुद ही उठ जाना ! हमें और बचो को डिस्टरब मत करना " कहते वो रासोई में चली गई !
सुबह जब घंटी बजी ! बिस्ट जी उठे ! खुद ही चाय बनाई ! अखबार खोलकर पडा , पड़ते पड़ते घडी कि ओर देखा ! अभी ८ बज रहे रहे थे सोचा थोडा और इन्तजार कर लू फिर चलूगा पास पड़ोस वालो को उठाने ! उनके बगल में काला जी, पुंडीर जी , उनियाल जी , तिवाडी जी , आर्य जी , कुकरेती जी , डोभाल जी याने सबी अपने ही लोग रहते थे और सब को पता है कि आज उत्तराखंड राज्य का जन्म दिन है फिर भी कोलानी में कोई रोनक नही ! नहीं कोई उठा है !
सबसे पहले वो बन्दुडी जी के घर गए ! दो तिन बार घंटी बज्जी तो तब जाके उनका बेटा सुधीर आँख मलते हुए दरवाजा पर आया ! सुबह सुबह सामने दरवाजे पर बिस्ट जी को दिखकर पूछने लगा ... " आरे अंकल जी आप ... सब कुछ तो ठीक ठाक है ना ? वो क्या बोलते एसा अटपट सवाल सुनकर ! वो बोले " हां सब ठीक है ! पापा है ? वो बुला ..." जी ... सो रहे है "
" ----सो रहे है ? " बड़े आचर्य के साथ बिस्ट जी ने पुछा !
" हां क्यों ? " जैसा उत्तर वेसे ही जबाब ! अरे , आज उत्तराखंड का जन्म दिन है और वी सो रहे है उन्हें उठाओ ....///
'... पापा ने कहा है कि उन्हें मत जगाना , " कहते , उसने फट से दरवाज बंद कर दिया ! बेचारे बिस्ट जी अपना मुह देखते रह गए !
आगे चले सामने पुंडीर जी का मकान था जा कर घंटी बजाई ! थोड़ी देर में पुंडीर जी बहार आये ! बिस्ट जी को देखकर बोली '------ अरे बिस्टजी, बहुत दिनों के बाद बड़ी मुश्किल से तो आराम करने का समय मिला ... बीच में बिस्ट जी बोल पडे , लेकिन आज तो ऊताराखंड का जन्म दिन है ...
" ---- तभी तो, आराम कर रहे है पुंडीर जी बोले .. आप भी जाकर आराम करे क्यों खामा खा और कि नीद हराब कर रहे हो ! अच्हा नमस्कार ..कहते उन्होंने भी दरवाजा बन्ध कर दिया ! अंत में वे तिवाडी जी के घर गए ! घंटी बजाई सामने मिसेज तिवारी थी ! बिष्ट जी को देखकर वे ठैट कुमौनी में बोली
'-------- वो बिष्ट भेजी , नमस्कार .. की हरियु .. नान तिन भला .... "
" हां सब ठीक ही छै " तिवाडी जी कहा है ? वो भीतर पूजा में है .. पट ३-४ घंटा के बाद उठेगे !
पूजा ?
" हा हा ..पूजा .. /// आज अपण राज्य कु, जन्म दिन जू ठैथरा .. वेके लिए पूजा कर रहे है !"
बिस्ट जी सोचने लगे कि ये क्या हो रहा है सबी आराम कर रहे है जिन्हीने इसके लिए अपने पराणो कि आहुती दी उसके बारमे कोई भी कुछ नही सोच रहा है ! नजर दोडाई देखा हर जगह एक सनाटा ठीक वेसे ही जैसे मुज्ज़फर नगर के तिराह के चोक पर जब गोल्लियो से हमारे लोग मरे थे ! उस समय का वो सनाटा किसे ने नही सूना ! जैसे आज मेरी आवाज को कोई नही सुब रहा है ! वे मरे हमारे लिए और आज ये आराम रहे है अपने लिए !
कोलानी में कोई रोनक नही ! नहीं कोई उठा है ! चारो ओर सुन सान और तो और आज तो इस इलाके के कुते भी चुप्प चाप है जैसे लगता है कि यहाँ कोई कुता रहता ही नहीं !
पराशर गौर
८ नमम्बर ०९ रात ९.२५ पर