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Articles By Rajendra Joshi - वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र जोशी जी के लेख

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
दोस्तों,

श्री राजेन्द्र जोशी जी पत्रकारिता मे लगभग २० वर्षो से ज्यादा समय से है ! Joshi Ji has been into fourth esate for almost two decades. Through his articles, Joshi Ji has been raising various issues of Uttarakhand. Be it development, cultural and other issues.

यहाँ पर जोशी जी के कई लेख उत्तराखंड के विभिन्न विषयो पर आपको पड़ने को मिलेंगे !

एस एस मेहता



 राजेन्द्र जोशी जी का परिचय उन्हीं के शब्दों में
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" लेखनी जो कभी सत्ता की साथी नहीं रही,
    लेखनी जो कभी सरकारी इनामों की प्यासी नहीं रही,
         लेखनी जो स्वाभिमान देष, प्रदेष तथा स्वयं का जगाती रही,
                     लेखनी जो लोकतंत्र के हत्यारों का नकाब उठाती रही,
    
चमोली जिले के सीमांत क्षेत्र थराली विकास खण्ड के बजवाड़ गांव जो कुलसारी बस स्टेण्ड से पांच किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर है मेरा जन्म स्थान, पढाई लिखाई पर्वतीय परिवेष में हुई। पाटी बोळख्या से कक्षा एक दो की पढ़ाई जोषीमठ में इसके बाद मोडल स्कूल गौचर से सात पास किया व आठवीं तथा नौवीं पास राजकीय ईण्टर कालेज नागनाथ पोखरी से किया। इसके बाद दसवीं तथा बारहवीं राजकीय इण्टर कालेज गौचर से स्नातक विज्ञान विषय से गोपेष्वर राजकीय स्नातक महाविद्यालय से प्राप्त कर षिक्षा पूर्ण की। फिर वही नौकरी की खोज करते-करते पत्रकारिता के मैदान में आ जमा।

पिछले 24 सालों से इस मैदान में उछल कूद मचा रहा हूं।

स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्रों से होता हुआ बारह सालों तक राष्ट्रीय सहारा में पत्रकारिता के बाद हलद्वानी नैनीताल से प्रकाषित उत्तराखण्ड के पहले हिन्दी समाचार पत्र उत्तर उजाला में देहरादून व्यूरो के कार्योे का सम्पादन किया।

इसके बाद मुजफ्फरनगर से प्रकाषित रायल बुलेटिन मे बतौर क्षेत्रीय सम्पादक कार्य किया वहीं इसी बीच स्वतंत्र पत्रकारिता का जूनून सवार हुआ से अब पीटीआई भाषा के साथ ही कई अन्य नामी -गिरामी समाचार पत्र संस्थानों के लिए लेखन चल रहा है।[/b]

Rajendra Joshi:
पांच हजार की मशीन पचास हजार में खरीदी

राजेन्द्र जोशी

देहरादून : प्रदेश के जलागम परियोजना के अधिकारियों ने अपनी जेब भरने के लिए पांच हजार रूपए की एक मिक्सर मशीन को पचास हजार में खरीद डाला। उपर से अधिकारियों की यह धमकी कि यदि किसी ने शिकायत की तो वे इस परियोजना को ही बंद करवा देंगे। यह हुई न चोरी भी और सीना जोरी भी। उधार की रकम से घी पीने की उत्तराखण्ड के अधिकारियों की पुरानी आदत है। तभी तो जलागम प्रबंध निदेशालय के मातहत अधिकारियों ने विश्व बैंक से राज्य को उधार में मिले रूपयों को इस कदर पानी की तरह बहाया कि शायद ही कोई अधिकारी होगा जिसने रूपयों की बहती इस गंगा में हाथ साफ न किये हों।

उल्लेखनीय है कि राज्य के जलागम प्रबंध निदेशालय के अधिकारियों नें यू डी डब्ल्यू डी पी योजना के अंतर्गत् गढ़वाल तथा कुमांयूं क्षेत्रों के ग्रामीणों को चीड़ के पेड़ की पत्तियों से कोयला बनाने की योजना शुरू की है। इसके पीछे मंतव्य तो साफ था कि ग्रामीण उनके आस -पास के जंगलों से चीड़ की पत्तियों जिसे निष्प्रयोज्य माना जाता है ,को एकत्र करें और इसे ईंधन के रूप में प्रयोग करें। लेकिन नीचे आते इस योजना को ही ग्रहण लग गया और अधिकारियों ने इस योजना जिसमें राज्य सरकार को विश्व बैंक से कर्जे में एक बहुत बड़ी रकम मिली है को ही ठिकाने लगाने के प्रयास शुरू हो गए। विश्व बैंक से मिले कर्ज की रकम इन भ्रष्ट अधिकारियों को तो वापस नहीं करनी है तो रूपयों की बेदर्दी से खर्च करने में भी इन्हे दर्द का अहसास आखिर क्यों होता। सो इन्होने कर्ज के रूप में राज्य को मिले रूपयों को अपनी जेबें भरने क ी नीयत से एक सप्लायर के साथ मिलकर ठिकाने लगाने की योजना बना डाली।

सूत्रों के अनुसार निविदा प्रक्रिया पूरी किए बिना इन अधिकारियों ने सीधे ही पांच हजार में बाजारों में आमतौर से बिकने वाली मशीन को पचास हजार में यह कहकर खरीद डाला कि यह मशीन चीड़ के पेड़ की पत्तियों से कोयले को आकार देने के लिए विशेष तौर पर बनायी गयी है। जबकि इस मशीन में पत्तियों को डालने से पहले उन्हे एक तंन्दूर जैसे उपकरण में जलाया जाता है जिसके अवशेष को बाद में गोबर तथा मिट्टी में हाथ से मिलाया जाता है । यह मशीन मात्र गोबर मिट्टी तथा पत्तियों को मिलाकर बनाए गए पेस्ट को शक्ल ही देता है जबकि हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत तरीके से गोबर से उपले बनाने की तकनीक पहले से ही है जिन्हे हाथ से शक्ल दी जाती रही है। इससे तो यह साफ है कि मात्र अपनी जेबें भरने के लिए ही यह मशीनें खरीदी गयीं हैं।

इतना ही नहीं इन मशीनों को खरीदने से पहने जलागम परियोजना के अधिकारियों ने इससे बनने वाले कोयले का रसायनिक परीक्षण भी नहीं करवाया। जबकि वैज्ञानिकों का मानना है कि चीड़ की पत्तियों को हवा में जलाने से भीषण रसायनिक प्रक्रिया होती है जो जहरीली गैसों (मिथेन) को उत्सर्जित भी करती है। जिससे प्राणियों को जान तक का खतरा हो सकता है। इतना ही नहीं इस मशीन पर जो दो हार्स पावर की विद्युत मोटर लगाई गई है उस पर कितनी बिजली खर्च होगी इसकी भी गणना अधिकारियों ने नहीं की है। वहीं इसको चलाने पर आने वाले खर्च तथा मोटर की मरम्मत पर आने वाले खर्च को कौन वहन करेगा यह भी साफ नहीं है। जबकि जंगल से चीड़ की पत्तियों को ढो कर लाने तथा गांव में गोबर एकत्र करने सहित इससे कोयले को बनाने के लिए क्या ग्रामीण तैयार हैं इसकी भी रिपोर्ट विभाग के पास नहीं है। यहां यह भी पता चला है कि वन विभाग द्वारा हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखण्ड में पूर्व में ही इस तरह की योजना चलाई गयी थी जोकि फ्लप शो साबित हुई। इसके बाद विभाग को यह योजना बंद करनी पड़ी थी।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जलगम विभाग ने इससे पहले भी इसी तरह से सरकार के पैसे को चूना लगाने की नियत से कई तरह के करोड़ों रूपयों के निष्प्रयोज्य उपकरण खरीदे है जिनका प्रयोग आज तक नहीं किया जा सका है और ये विभाग के गोदामों में धूल फांक रहे हैं। इनमें अभी-अभी करोड़ों में खरीदे गए टर्बेक्यूमीटर तथा मौसम यंत्र शामिल हैं।

वहीं सरकार ने इस मामले के संज्ञान में आने के बाद इसकी जांच के आदेश दे दिये हैं। मंख्यमंत्री ने मामले की जांच मुख्य सचिव को सौंप दी है।

Rajendra Joshi:
वन विभाग के अधिकारियों का कारनामा
सात पैदल मार्ग और घोटाला भी सात करोड़

राजेन्द्र जोशी

देहरादून: सीमांत क्षेत्र विकास योजना (बार्डर एरिया डेवलेपमेन्ट प्रोग्राम)के तहत उत्तरकाशी वन प्रभाग द्वारा भारत तथा सीमा के भीतर गश्त करने के लिए सात ट्रेकिं ग मार्गों पर सात करोड़ रूपये के घोटाले का मामला प्रकाश में आया है। विभाग द्वारा बनाए जा रहे इस पैदल मार्ग को बनाने की स्वीकृति न तो उच्चतम न्यायालय से ही प्राप्त की गयी है और न ही भारत तिब्बत सीमा पुलिस से। इतना ही नहीं करोड़ों के इस कार्य के लिए विधिवत निविदा प्रक्रिया के न अपनाये जाने की जानकारी सूत्रों से मिली है। इतना ही नहीं विभागीय वरिष्ठ अधिकारियों को पता तक नहीं है कि यह पैदल मार्ग बना भी या नहीं।

उल्लेखनीय है कि भारत चीन सीमा पर भारत के सीमांत क्षेत्र के भीतर गश्त करने के लिए केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा राज्य सरकार को वहां के पैदल मार्गों के मरम्मत तथा नए पैदल मार्गो के निर्माण के लिए धन मुहैया कराये जाने की स्वीकृति दी जाती रही है। इस बार भी केन्द्र से सात पैदल मार्गों के लिए केन्द्र ने सीधे जिलाधिकारी उत्तरकाशी के खाते में सीधे सात करोड़ रूपए डाल दिये जिसे जिलाधिकारी द्वारा प्रभागीय बनाधिकारी उत्तरकाशी के खाते में डाल दिया गया। इन मार्गों में तुंगला से थांगलापास (एक), तुंगला से थांगलापास (दो), जादूंग से थांगलापास (एक),जादूंग से थांगलापास (दो), मेढ़ी से सनचोकला, नीलापाली से मुनिग्ला तथा नीलापानी से रोकीनाला प्रमुख हैं।

सूत्रों के अनुसार इन पैदल मार्गों के निर्माण में करोंड़ों का घोटाला बताया गया है। सूत्रों के अनुसार यह पैदल मार्ग गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत आता है इस लिहाज से इन मार्गों के निर्माण से पूर्व उच्चतम न्यायालय की स्वीकृति का लिया जाना आवश्यक था जो नहीं ली गयी है। इतना ही नहीं सीमांत क्षेत्र होने के कारण यह क्षेत्र भारत तिब्बत सीमा पुलिस के अधीन आता है और यहां किसी भी तरह की गतिविधियों को संचालित करने से पहले आईटीबीपी से स्वीकृति का लिया जाना आवश्यक था जिसे नहीं लिया गया है। वहीं सूत्रों का दावा है कि जिस पैदल मार्ग को वन विभाग बनाने की बात कर रहा है वह मार्ग न तो भारतीय सर्वेक्षण विभाग के मानचित्र में ही दर्ज है और न ही वन विभाग द्वारा इसे कभी अपनी कार्ययोजना (वर्किंग प्लान) में ही रखा था। इतना ही वन विभाग के आला अधिकारियों तक को इस सड़क की जानकारी नहीं है कि आखिर यह पैदल मार्ग बन कहां रहा है। सूत्रों के अनुसार वन विभाग के आला अधिकारियों ने इस मार्ग के निर्माण पर आपत्ति तक जताई है कि आखिर यह पैदल मार्ग किसकी स्वीकृति से बनाया जा रहा है। शासन ने मामले में प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री को इसकी जांच सौंप दी है।

ईधर इस मार्ग का कार्य करा रहे प्रभागीय वनाधिकारी उत्तरकाशी श्री पटनायक ने स्वीकार किया कि उनके क्षेत्र के सीमावर्ती क्षेत्र में पैदल मार्ग के कार्य तो चल रहे हैं लेकिन उन्हे कार्य कराने के लिए किसी से स्वीकृति की आवयकता नहीं है। उन्होने यह भी माना कि उन्हे भारत सरकार से पैसा मिला है जिसमें से वे 50 लाख रूपए खर्च भी कर चुके है ं वहीं उन्होने बताया कि गैर वानिकी कार्यो ंके लिए ही उच्चतम न्यायालय से स्वीकृति की आवश्यकता पड़ती है बानिकी कार्यो के लिए नहीं।

Rajendra Joshi:
56 घोटाले और जांच आयोग का सचराजेन्द्र जोशी
देहरादून:   कांग्रेस शासन में हुए 56 घोटालों के लिए बनाए गए जस्टिस एएन वर्मा ने इस्तीफा तो दे दिया लेकिन वे इस इस्तीफे के पीछे कई ऐसे सवाल छोड़ गए है जिनका जवाब अब सरकार को देना होगा है कि आखिर ऐसे कौन से कारण थे जो वर्मा को यह पद छोडऩा पड़ा।      भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता हथियाने में उनके शासन काल के दौरान 56 घोटालों की बात उठायी थी और जनता से चीख-चीख कर यह कहा था कि सत्ता में काबिज होते ही वह इन 56 घोटालों के प्रकरण पर दूध का दूध और पानी का पानी कर घोटालों मे लिप्त लोगों को जेल के भीतर पहुंचा कर ही दम लेंगे। विधान सभा चुनाव भी हुए सरकार भी भाजपा की बनी लेकिन सरकार ने जिस जस्टिस एएन वर्मा को इन 56 घोटालों की जांच की कमान सौंपी वे साल भर बाद ही स्वास्थ खराब होने की बात कहकर इस आयोग से अपना पिंड छुड़ाकर चल निकले। कहा जाता है हमाम में सब नंगे हैं। यह कहावत जस्टिस वर्मा के सामने तो सच ही निकली। जब घोटालों में सब के सब ही लिप्त हों तो बेचारा जांच आयोग तो खुद ही अपाहिज होगा, और हुआ भी यही।     सूत्रों के अनुसार जस्टिस वर्मा ने जब इन घोटालों की जांच के लिए तमाम विभागों से पत्राचार शुरू किया तो उन्हे यह आभास तक नहीं था राज्य की नौकरशाही इतनी बेलगाम हो चुकी है कि उसके सामने जब मुख्यमंत्री के आदेश ही कोई मायने नहीं रखते तो बिना नाखून तथा दांत वाले आयोग की उनके सामने क्या बिसात। हुआ भी यही सैकड़ों बार पत्राचार करने के बाद भी विभागीय अधिकारियों से लेकर सचिवों तक ने उनके पत्रों का जवाब देना गवारा नहीं समझा, तो ऐसे में वे यहां अकेले बैठकर करते तो क्या करते।     इतना ही तीन दशक से ज्यादा न्यायिक सेवा में रहकर नाम कमाने वाले जस्टिस वर्मा ने जब इन विभागीय अधिकारियों तथा सचिवों को इन घोटालों से सम्बधित जानकारियों के लिए पत्रों  के बाद इनक े उत्तर पाने के स्मरण पत्र तक भेजे तो उनका भी वही हश्र हुआ तो पूर्व में भेजे गए पत्रों का हुआ शायद वे भी रद्दी की टोकरी की भेंट चढ़ गए। ऐसे में एक जांच अधिकारी वह भी न्यायिक सेवा का कैसे इस आयोग का अध्यक्ष रहता सो उसने कोई न कोई बहाना तो बनाना ही था तो उन्हेाने स्वास्थ्य का बहाना बनाकर यहां से अपना पिंड छुड़ा दिया।    जस्टिस वर्मा तो गए लेकिन अब जो नए साहब आएंगें जैसा कि मुख्यमंत्री कहते है कि नए अध्यक्ष बनाए जाएंगे ऐसे में जब उनके साथ भी ऐसा होगा तो इस बात की क्या गारंटी है कि वे भी यहां टिक कर इस मामले की जांच को अंजाम तक पहुंचा पाएंगे। जिन घोटालों की बैसाखियों के सहारे भाजपा सत्ता तक पहुंची।    ऐसे में अब एक बात औ उठ रही है कि सरकार इसी आयोग में नए अध्यक्ष का चुनाव कर  इस आयोग का कार्यकाल बढ़ाएगी। और वहीं यह बात भी सत्ता के गलियारों में तैर रही है कि हो सकता है सरकार अब कोई नया आयोग ही बना डाले। लेकिन जिन परिस्थितियों में जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा दिया उससे तो यह साफ ही लगता है कि जिन 56 घोटालों की बात भाजपा ने की थी वह सही थी और उसमें वे सभी अधिकारी तथा सचिव तक लिप्त थे जिन्होने जस्टिस वर्मा का जांच में असहयोग किया था।    कहा जाता है राजनीति में कोई स्थाई मित्र अथवा स्थाई दुश्मन नही होता । इन 56 घोटालों में से एक तिवारी सरकार का आबकारी घोटाला। तत्कालीन आबकारी मंत्री जब कांगेस में थे तो भाजपाईयों को वे सबसे ज्यादा भ्रष्टï तथा चर्चित आबकारी घोटाले का सूत्रधार लगते थे लेकिन राजनीतिक मजबूरीवश जब उन्हेाने भाजपा का दामन सभांलना पड़ा तो वे ही भाजपाईयों की नजर में सबसे ज्यादा ईमानदार बन गए। तो ऐसे में जांच आयोग के अध्यक्ष के सामने तो परेशानी होनी ही थी। जिनके खिलाफ वे सबूत ढूंढ रहे थे अब उन्हे ही बचाने की जिम्मा उनके कंधों पर आ गया ऐसे में इस्तीफा नहीं देते तो क्या करते? [/size]

Rajendra Joshi:
फूलों की घाटी का अस्तिव संकट मेंराजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखण्ड की फूलों की घाटी में फूलों से ज्यादा ऐसी घास उग आयी है कि इसके कारण यहां उगने वाले फूलों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है। वैसे तो पूरी की पूरी भ्यूंडार घाटी इस घास से परेशान है लेकिन फूलों की घाटी जिसका अंर्तराष्ट्रीय महत्व है को लेकर पर्यावरणविद से लेकर वन विभाग तक के आला अधिकारी इसके कारणों को खोजने में लगे हैं। पौलीगोनियम जिसे स्थानीय भाषा में अमेला अथवा नाट ग्रास कहा जाता है इस फूलों की घाटी को अपने चपेट में ले चुकी है। इसे जड़ से समाप्त करने के लिए अब प्रदेश के वन विभाग ने इसे उखाड़ने के लिए एक कार्ययोजना बनाई है, जिसपर कार्य आरम्भ भी हो चुका है।
प्रदेश के ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोविन्दघाट से सिक्खों के पवित्र तीर्थ हेमकुण्ड को जाने वाले मार्ग मेें घंघरिया से पांच किलोमीटर बायीं ओर लगभग 87.5 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस क्षेत्र में लगभग पांच सौ से ज्यादा फूलों की प्रजातियां कभी यहां पाई जाती थी। आज इस घाटी के अधिकांश भाग में इन मोहक फूलों की जगह पौलीगोनियम घास जिसे स्थानीय भाषा में अमेला कहा जाता है, फैल चुका है। यह घास घाटी में उगने वाले फूलों की अन्य प्रजातियों पर क ैंसर की तरह लग गया है। इसके क ारण फूलों की घाटी का अस्तित्व ही समाप्त होने को हैं। वहीं घाटी में इससे मिलती-जुलती पौलीस्टाइका (सरों) घास , पार्थीनियम (गाजर घास ) भी यहां उगने लगी है। फूलों की घाटी में बहने वाले बामनदौड़, स्विचंद आदि नालों तक में पौलीगोनियम घास फैल चुका है। इस क्षेत्र में कई प्रकार की जड़ी बूटियां भी अब देखने को मिलती थी जो इस तरह की घास के उग जाने के कारण अब नहीं दिखाई देती।
उल्लेखनीय है कि 6 नवम्बर 1982 में फूलों की घाटी को नन्दादेवी बायोस्फेयर रिजर्व (नन्दादेची जीवमंडल विशेष क्षेत्र) घोषित किया गया था और तभी से इस क्षेत्र मे पशुओं के चुगान तथा प्रवेश को प्रतिबंधित भी कर दिया गया था। यह इसलिये किया गया था ताकि पशुओं के पैरों से यहां मिलने वाले फू लों की विशेष प्रजातियां कहीं खत्म न हो जांए। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि पशुओं की आवातजाही न होने कारण भी इस क्षेत्र में फूलों की संख्या में कमी हुई है। इनका कहना है कि भेड़-बकरियों के आने जाने तथा उनके गोबर से यहां पैदा होने वाले फूलों को खाद तो मिलती ही थी साथ ही बकरियों के खुरों से बीज भी इधर से उधर होने पर अन्य प्रजातियां विकसित होती थी। इन्हीं लोगों का कहना है कि यहां उगने वाले विनाशकारी घास की जो प्रजातियां आज फूलों की घाटी में उग रही उन्हे उस दौरान यहां आने वाले जानवर ,भेड़-बकरियां चुग लेती थी।
वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार यहां उगने वाले नुकसान देह पौधे की लंबाई ज्यादा होने के कारण छोटी प्रजाति के पुष्प इनके नीचे नहीं पनप पाते हैं। नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के डीएफओ श्रवण कुमार ने माना कि पौलीगोनियम यहां पनप रहा है और इसके जल्दी बढने से छोटी प्रजाति के फूल नहीं खिल पा रहे। उन्होंने बताया कि पौलीगोनियम की करीब चार प्रजातियां फूलों की घाटी में विकसित हुई हैं। इनके अनुसार यदि इस तरह की घास को यथाशीघ्र इस क्षेत्र से उखाडा नहीं गया तो एक दिन यह फूलों की घाटी जहरीली घास की घाटी में बदल जाएगी।
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