पर्वतीय कृषि मैदानी क्षेत्रों की खेती से भिन्न है, क्योंकि जलवायु में भिन्नता है और स्वयं पर्वतीय खेत्रोंमे भी ढलानों की ऊंचाये और दिशा से प्रवाव पड़ता है. नदी की घाटियों के खेतों और जंगलों में उगने वाले पेड़ पौधे उसी पर्वत के ऊंचे स्थानों में नहीं पाए जाते. इसलिए यह आवश्यक है की जहां आप वाव्सायिक खेत करना चाहते हैं वहाँ पर सब से अच्छा लाभ देने वाली कौन सी उपजें हैं. चाहे अनाज हो, फल हों , जड़ी बूटी हों या रेशे और काठ के पेड़ पौधे, चुनाव पूरी जानकारी के बाद करना उचित होता है.
छुनव के बद्द खेतों की मिटटी की गुणवत्ता भी जाना जरूरी है. इसके लिए कृषि बिभाग आप केइ मदद करेगा. पौध या बीज किस प्रजाति के हों, कहा मिलेंगे, और कब कैसे लगाए बोये जायेगे, यह ज्ञान भी आवश्यक है. खाद, पानी, सदन, गलन, कीड़े मकोड़ों से सुरक्षा करने के उपाय भी और साजो सामन भी जरूरी हैं.
बीच बीच में गुडाई, नलाई, छंटाई, भी जरूरी होती है. अगर आपने मजदूर रखे हैं तो लगातार निगरानी अत्यंत आवश्यक है की वए ठीक से सब काम कर रहे है.
फसल तैयार होने पर कटाई, तुडाई, मंदाई, सुखाई इत्यादि के बाद बज्ज़र ले जाने के लिए पैकिंग,लदान धुला भी ऐसा होना चाहिए की उपज बर्बाद न होने पाय.
यह सब से जरूरी है की bazar में जो भाव है थोक में बेचने के, वए किस मंदी मनीं कैसे हैं, या किस बाजार में कैसे, हैं, शुद्ध लाभ कहाँ , किसे बेचने पर सर्वाधिक होगा, यह जानकारी ही आपकी लागत और मुनाफे को निर्धारित करती है.
यह सब जानकारियों से संतुष्ट होने पर ही काम शुरू कीजिये.,