उत्तराखंड दिवस ,९ नवम्बर २००९
उत्तरांचल पत्रिका अंक नवम्बर २००९ में मेरा लेख है 'गैरसैण ही बने राजधानी'.
उसमें से एक वाक्य लिख रहा हूँ. "अपने हे देश में अपना राज्य पाने के लिए स्वतंत्र भारत के इतिहास
में पहली बार अहिंसक आन्दोलनकारियों को शहीद होना पड़ा. वर्ष १९९४ में एक एक करके साडे तीन दर्जन
आन्दोलनकारियों के सीने में गोली उतार दी प्रजातंत्र के कातिलों ने "
"गैरसैण तो पहले हे प्रसिद्ध हो गया है. राजधानी गैरसैण बनाने के लिए विभिन्न संगठनों द्वारा
आन्दोलन जारी है. लेख , परिचर्चा , विचार खूब छप रहें हैं., जलूस . प्रदर्शन, धरने, यात्रा, बहश खूब हो
रहे हैं .आन्दोलन गति पकरने के शंख बज चुकी है. " यह लेख राज्य आन्दोलन के शहीदों को समर्पित है.
इस सप्ताह देश की राजधानी में कई जगह उत्तराखंडी संगठनों ने सभाएं की और राजधानी
गैरसैण बनाने के सरकार से अपील की गयी. इसी तरह एक सभा में उत्तराखंडी भाषा कुमाउनी और
गढ़वाली को मान्यता देने और सविधान की ८वी सूचि में शामिल करने की अपील की गयी.
पूरन चन्द्र कांडपाल